رضوی

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इस्लाम ने औरत की हालत को मुलभूत रूप से बदल दिया और उसे पुरुष की तरह एक स्थायी और बराबर इंसान के रूप में माना। इस्लाम के अनुसार पुरुष और महिला सृष्टि और कर्म के हिसाब से बराबर हैं, और किसी को दूसरे पर कोई बढ़त नहीं है, सिवाय तक़वा के। इस्लाम से पहले महिलाओं को गलत सांस्कृतिक विचारों और सामाजिक भेदभाव के जरिए कमजोरी और नीचता तक सीमित कर दिया गया था।

तफ़सीर अल मीज़ान के लेखक अल्लामा तबातबाई ने सूरा ए बक़रा की आयात 228 से 242 की तफ़्सीर में “इस्लाम और दीगर क़ौमों व मज़ाहिब में औरत के हक़ूक़, शख्सियत और समाजी मक़ाम” पर चर्चा की है। नीचे इसी सिलसिले का नवाँ हिस्सा पेश किया जा रहा है:

इस्लाम ने औरत के मुद्दे में क्रांति ला दी

दुनिया भर में वही आरसे प्रचलित थे जिनका हमने उल्लेख किया; औरत को उसी नजर से देखा जाता था और उसका उसी जुल्म के साथ व्यवहार किया जाता था। उसे अपमान, कमजोरी और ग़रीबी के जाल में फंसा दिया गया था, यहाँ तक कि कमजोरी उसकी स्वाभाविक प्रकृति बन गई। औरत उसी ही अपमान की भावना में पैदा होती, उसी में जीती और उसी में मरती थी। यहाँ तक कि "औरत" शब्द खुद औरतों की नजर में कमजोरी और अपमान का पर्याय बन गया था, जबकि शब्दों के मायने अलग थे। यह आश्चर्यजनक है कि कैसे लगातार सिखाने और ब्रेनवॉशिंग से मानव सोच उलट जाती है।

अगर आप विभिन्न देशों की सभ्यताओं का अध्ययन करें तो कोई भी देश ऐसा नहीं मिलेगा — न जंगली और न सभ्य — जिसमें औरत की कमजोरी और गिरावट से संबंधित कहावतें न हों। हर भाषा और साहित्य में औरत को कमजोर, डरपोक, असहाय और अपमानित समझ कर उपमाएँ दी जाती हैं।

अरब के एक कवी ने कहा:

"و ما ادری و لیت اخال ادری         اقوم آل حصن ام نساء"

"मुझे नहीं पता" काश पता होता कि आल-ए हिस्न पुरुष हैं या औरतें!"

ऐसी हजारों उदाहरण हर भाषा में मिल जाएंगे।

इस्लाम में औरत की पहचान

यह है कि इस्लाम घोषणा करता है कि औरत भी इंसान है, बिलकुल वैसे ही जैसे पुरुष इंसान है। इंसान के अस्तित्व में पुरुष और औरत दोनों बराबर भागीदार हैं, दोनों उसकी सृष्टि का मूल हिस्सा हैं। इनमें कोई श्रेष्ठता नहीं सिवाय तकवा के। जैसा कि कुरान कहता है:

"یَا أَیُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاکُمْ مِنْ ذَکَرٍ وَأُنْثَیٰ وَجَعَلْنَاکُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا ۚ إِنَّ أَکْرَمَکُمْ عِنْدَ اللَّهِ أَتْقَاکُمْ "

" ए लोगो हमने तुम्हे एक पुरूष और एक महिला से पैदा किया ... अल्लाह के नज़दीक सबसे इज़्ज़त वाला वह है जो सबसे अधिक परहेज़गार है।"

कुरान स्पष्ट करता है कि हर इंसान, चाहे पुरुष हो या महिला, अपनी पैदाइश में दोनों माता-पिता का बराबर हिस्सा रखता है। और यह कि संतान सिर्फ "मां के पेट का बर्तन" नहीं है, न यह कि "बेटे तो हमारे बेटों के बेटे हैं और बेटियां तो दूसरों के परिवार की होंगी!" बल्कि कुरान हर इंसान (बेटा या बेटी) को पुरुष और महिला दोनों की बराबरी की हिस्सेदारी से अस्तित्व में आने वाला बताता है। इस तरह सभी इंसान समान हैं और किसी के लिए कोई विशेषाधिकार साबित नहीं होता, सिवाय तकवा के।

इस्लाम में पुरुष और महिला की सृष्टि में समानता 
कुरान एक अन्य स्थान पर कहता है: أَنِّی لَا أُضِیعُ عَمَلَ عَامِلٍ مِنْکُمْ مِنْ ذَکَرٍ أَوْ أُنْثَیٰ ۖ بَعْضُکُمْ مِنْ بَعْضٍ
"मैं तुम में से किसी पुरुष या महिला की मेहनत को व्यर्थ नहीं करता, तुम सभी एक-दूसरे से हो।"
इसका मतलब है पुरुष और महिला दोनों एक ही मानव प्रजाति से हैं। दोनों की मेहनत, प्रयास और कर्तव्य अल्लाह की नज़र में बराबर महत्वपूर्ण हैं। कोई कर्म किसी और के खाते में नहीं जाता, जब तक व्यक्ति स्वयं अपनी मेहनत व्यर्थ न करे।

कुरान जोर से घोषणा करता है: کُلُّ نَفسِۭ بِمَا کَسَبَتۡ رَهِینَةٌ "हर व्यक्ति अपने कर्मों का स्वयं जिम्मेदार है।"

यह उस झूठे विचार की निंदा है जो इस्लाम से पहले प्रचलित था, अर्थात्: "औरत के पाप तो उसकी जिम्मेदारी हैं, लेकिन उसके अच्छे कर्म और उसकी पहचान के फायदे पुरुष के खाते में जाएंगे!"
इस्लाम ने इस गलत और अन्यायपूर्ण विचार का सदा के लिए अंत कर दिया।

(जारी है…)
(
स्रोत: तर्ज़ुमा तफ़्सीर अल-मिज़ान, भाग 2, पेज 407)

 

इजरायली चैनल 14 के अनुसार, सीरिया और दमिश्क के आसपास के क्षेत्रों से इजरायल कभी भी अपनी सेनाएं नहीं हटाएगा और कब्ज जारी रखेगा।

इजरायली चैनल 14 का कहना है कि इजरायल सीरिया की जमीन, जिसमें गोलान हाइट्स और दमिश्क के आसपास के इलाके शामिल हैं,यहा से कभी भी अपनी सेना नहीं हटाएगा।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सीरिया के साथ सैन्य समझौतों पर हस्ताक्षर उत्तरी फिलिस्तीन के निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मददगार साबित हो सकते हैं।

इजरायली टीवी ने सीरिया में रूसी, कुर्द, तुर्की सेनाओं की मौजूदगी और अमेरिका द्वारा नए सैन्य अड्डे के निर्माण का भी जिक्र किया।

गौरतलब है कि बशर अलअसद के शासन के पतन के बाद से सीरिया विदेशी ताकतों का युद्धक्षेत्र बन गया है, जिनका मकसद देश को तोड़ना है। इजरायल ने भी जोलानी से जुड़े तत्वों की मौजूदगी का फायदा उठाते हुए सीरिया के विभिन्न इलाकों पर सैकड़ों हवाई हमले किए और दक्षिणी सीरिया में जमीनी कार्रवाइयां अंजाम दी हैं।

 

हज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद वाएज़ी ने कहा,शिया उलेमा की विशेष पहचान यह रही है कि शिक्षा और आत्म-शुद्धि के साथ-साथ उन्होंने हमेशा आम लोगों की सेवा की है और सामाजिक मुद्दों में उनका सहारा बने हैं।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के इस्लामिक प्रचार कार्यालय के प्रमुख हज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद वाएज़ी ने बाक़रुल उलूम अ.स.रिसर्च इंस्टीट्यूट क़ुम में 40 खंडों वाले संग्रह "तजरबा निगारी फ़रहंगी व तबलीग़ी के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए इस महत्वपूर्ण और मूल्यवान शैक्षिक एवं शोध पहल पर बधाई दी और उन सभी प्रबंधकों और कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया जो इस संग्रह की तैयारी और संकलन में शामिल रहे।

उन्होंने कहा,यह संग्रह "स्वरूप" और "सामग्री" दोनों ही दृष्टि से सराहनीय है। किसी भी रचना का सामग्रीगत महत्व उसके विषय और प्रस्तुति के तरीके पर निर्भर करता है, लेकिन इस संग्रह की सभी पुस्तकों में जो बात सामान्य है, वह यह है कि ये सभी शिया विद्वानों की सच्ची परंपरा और हौज़ा ए इल्मिया की उज्ज्वल सामाजिक सेवाओं के क्रम में एक व्यावहारिक कदम हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन वाएज़ी ने कहा, इतिहास में विद्वानों का सम्मान और विश्वसनीयता आम लोगों के साथ रहने उनके दुख-दर्द को कम करने और समाज की समस्याओं में उनकी शरणस्थली बनने से कायम हुआ है। उन्होंने हमेशा शैक्षिक और नैतिक शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक सेवा को अपना दायित्व समझा है।

उन्होंने कहा, इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद पादवियों के सामने नई जिम्मेदारियाँ और क्षेत्र खुले जिन्होंने गतिविधि के दायरे को तो विस्तृत किया, लेकिन कुछ अवसरों पर आम लोगों से सीधे सामाजिक संपर्क में कमी का कारण भी बने।

इस्लामिक प्रचार कार्यालय के प्रमुख ने कहा, हौज़ा और आम लोगों के विभिन्न वर्गों के बीच सामाजिक दूरी को बढ़ने नहीं देना चाहिए। विद्वानों की सामाजिक उपस्थिति और सामाजिक व सांस्कृतिक आवश्यकताओं के समाधान में सक्रिय भूमिका निभाना समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

 

मदीना मुनव्वरा में हुए इस दुखद हादसे में हैदराबाद और आस-पास के 40 से ज्यादा यात्रियों के शहीद होने पर साउथ इंडिया शिया उलमा कौंसिल के अध्यक्ष और हज कमेटी सदस्य मौलाना सैयद तकी रजा आबिदी ने गहरा शोक व्यक्त किया और इसे मुस्लिम उम्मत के लिए एक बड़ा बलिदान बताया।

मदीना मुनव्वरा में हुए इस दुखद हादसे में हैदराबाद और आस-पास के 40 से ज्यादा यात्रियों के शहीद होने पर साउथ इंडिया शिया उलमा कौंसिल के अध्यक्ष और हज कमेटी सदस्य मौलाना सैयद तकी रजा आबिदी ने गहरा शोक व्यक्त किया और इसे मुस्लिम उम्मत के लिए एक बड़ा बलिदान बताया।

जानकारी के अनुसार, मदीना के पास हुए इस हादसे ने केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी इस्लामी दुनिया के दिलों को आघात पहुंचाया है। शहीद होने वालों में बड़ी संख्या हैदराबाद और आसपास के इलाकों के यात्रियों की थी जो हजरत नबी (स) के ताबूत की ज़ियारत के लिए निकले थे।

मौलाना सैयद तकी रजा आबिदी ने अपने शोक संदेश में कहा कि हजरत रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ताजि़यात की ज़ियारत के सफर में जान देने वाले ये लोग बहुत नसीबवान हैं। अल्लाह तआला उन्हें अपनी खास रहमत और जन्नत के सर्वोच्च स्थान पर जगह दे।

उन्होंने शहीदों के परिवार वालों के प्रति गहरी सहानुभूति जताई और कहा कि यह हादसा उनके लिए अपूरणीय दुख है जिन्होंने अपने करीबियों को सफर-ए-ज़ियारत में खो दिया, परंतु सब्र और दुआ ही इस परीक्षा की घड़ी का एकमात्र सहारा है।

मौलाना तकी रजा आबिदी ने आगे कहा कि हम सब इस दुख में बराबर के साझेदार हैं और दुआ करते हैं कि अल्लाह परिवार वालों को बेहतर सब्र दे और सभी यात्रियों को अपनी हिफाज़त में रखे।

अंत में उन्होंने पूरे मुस्लिम समाज से अपील की कि अपनी एकजुटता और भाईचारे को कायम रखें और शहीदों के लिए दुआ करें।

 

 

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को सोमवार को मौत की सजा सुनाई गई है उन्हें ढाका की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) ने हत्या के लिए उकसाने और हत्या का आदेश देने के लिए मौत की सजा सुनाई हैं।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को सोमवार को मौत की सजा सुनाई गई है उन्हें ढाका की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) ने हत्या के लिए उकसाने और हत्या का आदेश देने के लिए मौत की सजा सुनाई हैं।

ट्रिब्यूनल ने शेख़ हसीना को जुलाई 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं का मास्टरमाइंड बताया। वहीं दूसरे आरोपी पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान को भी हत्याओं का दोषी माना और फांसी की सजा सुनाई। सजा का ऐलान होते ही कोर्ट रूम में मौजूद लोगों ने तालियां बजाईं।

तीसरे आरोपी पूर्व IGP अब्दुल्लाह अलममून को 5 साल जेल की सजा सुनाई गई। ममून हिरासत में हैं और सरकारी गवाह बन चुके हैं। कोर्ट ने हसीना और असदुज्जमान कमाल की प्रॉपर्टी जब्त करने का आदेश दिया है। फैसले के बाद बांग्लादेश के अंतरिम पीएम ने मोहम्मद यूनुस ने भारत से हसीना को डिपार्ट करने की मांग की है।

5 अगस्त 2024 को तख्तापलट के बाद शेख हसीना और पूर्व गृहमंत्री असदुज्जमान ने देश छोड़ दिया था। दोनों नेता पिछले 15 महीने से भारत में रह रहे हैं।

बांग्लादेश के पीएम ऑफिस ने बयान जारी कर कहा कि भारत और बांग्लादेश के बीच जो प्रत्यर्पण संधि है, उसके मुताबिक यह भारत की जिम्मेदारी बनती है कि वह पूर्व बांग्लादेशी पीएम को हमारे हवाले करे।

 

आयतुल्लाह दरी नजफाबादी ने इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम की रिवायत की रौशनी में दुनिया को एक अस्थाई ठिकाना और बरज़ख की ओर निरंतर यात्रा बताते हुए कहा कि हर इंसान को आखिरत का सामान अभी से तैयार करना चाहिए।

ईरान के शहर अराक में स्थित मदरसा ए फातिमा अज़ ज़हरा में बरज़ख के विषय पर एक अख़्लाकी नशिस्त आयोजित हुई। इस सभा में नमाइंद-ए वली-ए-फकीह प्रांत मरकज़ी आयतुल्लाह दरी नजफाबादी ने खिताब किया।

आयतुल्लाह दरी नजफाबादी ने इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम से मनक़ूल एक मोतबर हदीस बयान करते हुए कहा कि इंसान दुनिया में एक अस्थाई क़याम पर है और यह पूरी ज़िंदगी बरज़ख की तरफ एक सफ़र है।

उन्होंने फरमाया कि इमाम सादिक अलैहिस्सलाम इस रिवायत की शरह में फरमाते हैं,ऐ लोगो! तुम एक अस्थाई घर में जीवन बसर कर रहे हो; तुम सभी मुसाफ़िर हो और यह ज़मीन एक सवारी की तरह है जो तुम्हें तुम्हारे असल मुक़ाम, यानी बरज़ख, तक पहुँचाती है।

नमाइंद-ए वली-ए-फकीह ने उम्र की तेज़ी से गुज़रने की तरफ इशारा करते हुए कहा कि रात और दिन का गुज़रना इंसान के सीमित वक़्त का सबसे बड़ा पैग़ाम है। जिस तरह नया पुराना होता है और हरा पेड़ एक दिन पीला पड़ जाता है, उसी तरह ज़िंदगी भी अपने सफ़र के मरहले तेज़ी से तय कर रही है।

उन्होंने कहा कि आख़िरत का सफ़र बहुत लंबा है, इसलिए ज़रूरी है कि इंसान अपने अमल, किरदार और नेकियों के ज़रिए इस सफ़र की ज़रूरतें अभी से तैयार करे, क्योंकि मौत के बाद हर इंसान को इस दुनिया से जुदा होना ही है।

आयतुल्लाह दरी नजफाबादी ने कुरान ए करीम को इंसान की नजात का एकमात्र हक़ीकी रास्ता क़रार देते हुए कहा कि इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम के मुताबिक,कुरान शफ़ीअ (सिफारिश करने वाला) भी है और गवाही देने वाला भी; अमल करने वालों का मुहाफिज़ और अमल तर्क करने वालों के ख़िलाफ़ शिकायत करने वाला भी। यही किताब हक़ और बातिल और ख़ैर और शर्र के दरमियान वाज़ेह हद ए फ़ासिल है और आयात-ए-रब्बानी में से एक अज़ीम निशानी है।

उन्होंने आख़िर में तालिबा ए इल्म को कुरान से ज़्यादा लगाव तदब्बुर और उसकी अख़लाकी तालीमात पर अमल की तलक़ीन करते हुए कहा कि खूबसूरत तिलावत के साथ कुरान को समझना और उस पर अमल करना ही हक़ीकी हिदायत का रास्ता है।

 

हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमिली ने रसूल अक़रम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि वसल्लम) की हज़रत अली (अलैहिस्सलाम) को वसीयत में माता-पिता और संतान के अधिकार बताते हुए फरमाया: जो भी अपने माता-पिता को दुखी करता है, उसने खुद को उनके प्रति नाफरमान बना लिया।

हजरत आयतुल्लाह जवादी आमोली ने रसूल अक़रम (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की हजरत अली (अलैहिस्सलाम) को वसीयत के एक हिस्से की ओर इशारा करते हुए माता-पिता और संतान के आपसी अधिकारों के बारे में फरमाया:

पिता के बच्चों पर अधिकार:

  1. पिता अपनी संतान का अच्छा और नेक नाम रखे: "ऐ अली! संतान का हक उसके पिता पर है कि वह उसका अच्छा नाम रखे।"
  2. उसकी अच्छी तालीम करे: "और उसे अदब सिखाए।"
  3. जीवन के सभी व्यक्तिगत और सामाजिक मामलों में उसे उचित स्थान पर रखे: "और उसे उचित स्थान दे।"

संतान के माता-पिता पर अधिकार:

  1. संतान अपने पिता को उसके नाम से न पुकारे: "और पिता का बेटे पर अधिकार है कि वह उसे उसके नाम से न पुकारे।"
  2. पिता के आगे-आगे न चले: "और उसके सामने आगे न चले।"
  3. उसके सामने (पीठ करके) न बैठे: "और उसके सामने न बैठे।"

माता-पिता के लिए चेतावनी:
ऐ अली! अल्लाह उन माता-पिता को शाप दे जो अपनी संतान को अपनी अवज्ञा की ओर प्रेरित करें।

आपसी जिम्मेदारी:
ऐ अली! जो मुसीबत और सजा माता-पिता की नापसंदगी के कारण संतान को मिलती है, वह माता-पिता को संतान की नापसंदगी के कारण भी मिलती है।

माता-पिता के लिए दुआ:
ऐ अली! अल्लाह उन माता-पिता पर रहमत नाज़िल करे जो अपनी संतान को अपनी भलाई और अपनी रज़ा की ओर प्रेरित करें।

महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
ऐ अली! जो कोई भी अपने माता-पिता को दुखी करता है, उसने खुद को उनके प्रति नाफरमान बना लिया।

चेतावनी:
इस हदीस में जो बताया गया है वह माता-पिता और संतान के आपसी अधिकारों का केवल एक हिस्सा है, बाकी हिस्से दूसरी रिवायतो में बताए गए हैं।

[स्रोत: वसाइल उश शिया, भाग  21, पेज 389 / किताब अदब फनाय मुक़र्रबान, भाग 3, पेज 208-209]

 

हमारा समय और हमारा इल्म कीमती पूंजी है। इसे या तो मामूली और बेकार कामों में बर्बाद किया जा सकता है, या कभी-कभी हम इसे किसी ज़हरीली चीज़ के बराबर नुकसानदेह काम में लगा देते हैं। हर पल हमें यह परखना चाहिए कि हमारे काम भगवान के लिए हैं या दुनिया के लिए। सच्ची नीयत के लिए समझ, सोच और मोहब्बत चाहिए, तभी काम की असली अहमियत होती है। यहां तक कि अगर पूरी जिंदगी सिर्फ़ एक इंसान की हिदायत में लग जाए, तो भी उसकी क़ीमत पूरी दुनिया से ज्यादा है।

मरहूम आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने अपने एक उपदेश में इस महत्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान दिलाया: "हमने अपने कामों में से कौन सा काम सिर्फ़ अल्लाह के लिए किया?" ये बातें अपने प्रिय पाठको और विचारशीलों के लिए प्रस्तुत की जा रही हैं।

وَاعلَمَوا اِنَّهُ لَیسَ لاَنفُسِکُم ثَمَنٌ دُون الجَنَّةُ

"जान लो! हमारी जान की कीमत जन्नत के अलावा कुछ नहीं है।"

यह हमारी ज़िंदगी है, जो भगवान ने हमारे हवाले की है, जिसे कभी-कभी हम मामूली चीज़ के बदले बेच देते हैं। काश कुछ काम तो कम से कम एक छोटे से दाने के बराबर ही होते, लेकिन अफ़सोस कि कभी-कभी हम अपनी उम्र, अपना ज्ञान और मेहनत ऐसे कामों में लगाते हैं जो सिर्फ़ नुकसान ही नहीं, बल्कि ज़हरीली घातक साबित होती हैं।

अगर हम अपनी समझदारी और जीवन ऐसे मकसदों के लिए खर्च करें जिससे भगवान खुश नहीं होते; अगर अपनी काबिलियत को ऐसे व्यक्ति या काम के पक्ष में लगाए जो भगवान के नजर में नापसंद है, तो यह न केवल बेकार सौदा है बल्कि ऐसा है जैसे हमने सब कुछ ज़हरीले दाम के बदले बेच दिया हो।

असल में हम अपने आप को जलाते हैं, जबकि उसी उम्र और ज्ञान को ऐसे काम में लगाया जा सकता था जिसका फल इतना बड़ा है कि कोई मात्रा नहीं गिन सकता। क्या लिमिटेड को लिमिट से मापा जा सकता है?

चलो अपने दिल से सच बोलें। आज सुबह उठने से अब तक हमने क्या किया?
कल्पना करो हमने दस बड़े काम किए, और हर पल का हिसाब है। अब ईमानदारी से अपने आप से पूछें: इनमें से सच में कौन सा काम सिर्फ भगवान के लिए था?

कौन सा ऐसा काम था जिसे हम सिर्फ इसलिए करते थे कि भगवान ने आदेश दिया है? वह काम जिसे अगर भगवान न कहते तो हम कभी न करते, और जब भगवान ने कहा तो हमने उसके लिए कष्ट, नुकसान और मुश्किलें भी सह लीं?

हम अपनी ज़िंदगी के कितने पल ऐसे कामों में लगा सकते हैं जिनमें अल्लाह की मरज़ी होती, ऐसे काम जिनकी कीमत असीम है?
यह केवल ज़ुबानी निर्णय नहीं कि बस कह दिया जाए कि हमने नीयत बना ली है या हमारी नीयत अपने आप पूरी हो जाएगी। नीयत इस तरह नहीं होती। इसके लिए ज्ञान चाहिए, सोच चाहिए। जब सोच से ज्ञान होगा, जब कहीं जाकर दिल में भगवान से मोहब्बत होगी, और फिर वे चीजें जो उस मोहब्बत के ख़िलाफ़ होती हैं, आदमी धीरे-धीरे उन्हें अपने अंदर से निकालता रहेगा। तभी जाकर काम शुद्ध होगा और उसकी अहमियत होगी।

अगर हम अपनी पूरी ज़िंदगी एक इंसान की हिदायत में लगा दें, तो इसकी कीमत दुनिया की सारी दौलत से ज़्यादा है। ये बातें अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि दिन आख़िरत की सच्चाई है।

कभी इंसान सोचता है कि उसने इस्लाम और धर्म के लिए बहुत सेवा की है और अब उसे ढेर सारा इनाम मिलेगा, लेकिन जब हिसाब शुरू होता है तो पता चलता है कि जो कुछ किया वह किसी खास संगठन, समूह या दुनियावी लाभ के लिए था। उसका इनाम दुनिया में मिल गया "पेट के लिए किया था" अब आख़िरत के पुरस्कार में उसका कोई हिस्सा नहीं।

तो असली सवाल यही है:
हमने कौन सा अमल सिर्फअल्लाह के लिए किया?
अगर काम वाकई भगवान के लिए हो, तो फिर ज्यादा आमदनी की लालसा, शोहरत की ख्वाहिश, इज़्ज़त और सम्मान की मोहब्बत में से कोई चीज़ हमें हिला नहीं सकती। क्योंकि हमारी नीयत साफ़ है और हमारी मंजिल सिर्फ़ रेडा-ए-इलाही है।

 

जन्नत वालों को बस इस बात का अफ़सोस होगा कि उन्होंने दुनिया में कुछ वक़्त के लिए ख़ुदा की याद से बेपरवाही बरती। क्योंकि अल्लाह ही तमाम फ़ायदों और सच्ची दोस्ती का ज़रिया है और वही इंसान को सच्ची ख़ुशी देता है। दुनिया में जो अनमोल पल ख़ुदा की याद के बिना गुज़रे, जन्नत में बस उन्हीं का अफ़सोस बाकी रहेगा। और अल्लाह इतना मेहरबान है कि अगर कोई बंदा उसकी तरफ़ एक कदम बढ़ाता है, तो वो अपनी रहमत से दस कदम आगे बढ़ाकर जवाब देता है।

मरहूम आयतुल्लाह हक़ शनास ने अपने एक भाषण में "जन्नत वालों का दुःख" विषय पर प्रकाश डाला है, जो आप पाठकों के लिए प्रस्तुत है।

जन्नत वालों को वहाँ कोई दुःख, शोक या पीड़ा नहीं होगी। सिवाय एक अफ़सोस के: दुनिया के वे पल जब वे अल्लाह की याद से बेखबर होते हैं। क्योंकि जन्नत में, मनुष्य के लिए यह सत्य पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि अल्लाह तआला ही सभी सिद्धियों, प्रेम और मित्रता का स्रोत है; ऐसी मित्रता जो पूर्ण दया, आनंद और सद्भावना से परिपूर्ण हो, जो अपने सेवक की उन्नति, पद की उन्नति और सच्ची खुशी चाहती हो। लेकिन जब कोई व्यक्ति दुनिया में अल्लाह के आह्वान पर ध्यान नहीं देता और अल्लाह की याद से बेखबर रहता है, तो उसे परलोक में एहसास होता है कि उसने कितने अनमोल और सुनहरे अवसर गँवा दिए हैं।

इसीलिए रिवायत में कहा गया है: "जन्नत वालों को कोई गम नहीं होगा, सिवाय उस वक़्त के जो उन्होंने दुनिया में अपने रब की याद के बिना बिताया।"

जन्नत में किसी को भी धन, पद, परिवार, प्रतिष्ठा या सांसारिक अवसरों के खोने का अफ़सोस नहीं होगा; ये सब पीछे छूट जाएँगे। बस एक ही अफ़सोस रहेगा, वो पल जो इस दुनिया में ख़ुदा की याद में बिताए जा सकते थे, लेकिन इंसान ने उन्हें लापरवाही में बर्बाद कर दिया।

अल्लाह बड़ा रहमदिल है; अगर कोई बंदा उसकी तरफ़ एक कदम बढ़ाता है, तो ख़ुदा उसकी तरफ़ दस कदम बढ़ाता है। यह अपने बंदों पर ख़ुदा की असीम मुहब्बत, मेहरबानी और कृपा का स्पष्ट प्रमाण है।