رضوی

رضوی

यह आयत मुसलमानों को याद दिलाती है कि वे हमेशा अल्लाह की निगरानी में हैं और अपने कर्मों का हिसाब देने के लिए तैयार रहें। अल्लाह से कोई भी चीज़ छुपाना संभव नहीं है, इसलिए हर काम नेक नीयत से करना चाहिए।

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम

يَسْتَخْفُونَ مِنَ النَّاسِ وَلَا يَسْتَخْفُونَ مِنَ اللَّهِ وَهُوَ مَعَهُمْ إِذْ يُبَيِّتُونَ مَا لَا يَرْضَىٰ مِنَ الْقَوْلِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطًا. यस्तखफ़ूना मेनन नासे वला यसतख़फ़ूना मेनल्लाहे व होवा मअहुम इज़ योबय्येतूना मा ला यरज़ा मेनल कौले व कानल्लाहो बेमा यअमलूना मोहीता  (नेसा, 108)

विषय: अल्लाह की हर समय मौजूदगी और इंसानी कर्मों की जवाबदेही

पृष्ठभूमि: यह आयत उन मुसलमानों और मुनाफिकों (पाखंडियों) के लिए नाजिल हुई, जो अपने बुरे कर्म इंसानों से छुपाने की कोशिश करते हैं, लेकिन अल्लाह से उन्हें नहीं छुपा सकते।

तफ़सीर: इस आयत में "इस्तिख़फा" (छुपाना) का ज़िक्र किया गया है। यह तब होता है जब इंसान किसी के खिलाफ साजिश करे और उसे दूसरों से छुपाने की कोशिश करे। इंसान भले ही दूसरों से अपने काम छुपा ले, लेकिन अल्लाह से कुछ छुपाना असंभव है।

वे रातों को जागकर बुरे इरादे और नापसंद कार्यों की योजनाएँ बनाते हैं। लेकिन अगर कोई गुनाह करने से पहले यह सोचे कि वह उस इंसाफ करने वाले अल्लाह के सामने है, जिसके सामने उसे एक दिन हाज़िर होना है, तो वह कभी गुनाह नहीं करेगा।

महत्वपूर्ण बातें:

इंसानों से छुपाना संभव है, लेकिन अल्लाह से नहीं।

अल्लाह की हर समय मौजूदगी इंसान को गलत कार्यों से बचने की सीख देती है।

अल्लाह हर चीज़ का घेराव किए हुए है, इसलिए कर्मों के इनाम और सज़ा से कोई नहीं बच सकता।

परिणआम:

यह आयत मुसलमानों को याद दिलाती है कि वे हमेशा अल्लाह की निगरानी में हैं और अपने कर्मों की जवाबदेही के लिए तैयार रहें। अल्लाह से कुछ भी छुपाना मुमकिन नहीं, इसलिए हर कर्म नेक नीयत और खालिस इरादे से करना चाहिए।

सूर ए नेसा की तफसीर

उन्नीस रमज़ान वह शोकमयी तिथि है जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर विष भरी तलवार मारी गयी। हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के परिजनों में अत्यन्त वरिष्ठ व्यक्ति और इस्लामी शासक थे। वही अली जिनकी महानता की चर्चा इस्लामी जगत में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के विद्वानों और इतिहासकारों द्वारा भी की जाती है। वही अली जिनकी सत्यता, अध्यात्म, साहस, वीरता, धैर्य, समाज सेवा एवं न्यायप्रियता आदि की गवाही, मित्र ही नहीं शत्रु भी देते थे। एक स्थान पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा था कि ईश्वर की सौगन्ध नग्न शरीर के साथ मुझे कांटों पर लिटाया जाए या फिर ज़ंजीरों से बांध कर धरती पर घसीटा जाए तो मुझे यह उससे अधिक प्रिय होगा कि अल्लाह और पैग़म्बर से प्रलय के दिन ऐसी दशा में मिलूं कि मैंने किसी पर अत्याचार कर रखा हो।

अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे व्यक्ति से जो अत्याचार के ऐसे विरोधी और न्याय के इतने प्रेमी थे कि एक ईसाई विद्वान के कथनानुसार अली अपनी न्याय प्रियता की भेंट चढ़ गये। अब प्रश्न यह उठता है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम से इतनी शत्रुता क्यों की गयी? इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें हज़रत अली (अ) के समय के इतिहास और सामाजिक स्थितियों को देखना होगा। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चाम के पच्चीस वर्षों में इस्लामी समाज कई वर्गों में बंट चुका था। एक गुट वह था जो बिना सोचे समझे सांसारिक दुःख सुख, कर्तव्य सब कुछ छोड़कर केवल नमाज़ और उपासना को ही वास्तविक इस्लाम समझता था और इस्लाम की वास्तविकता को समझे बिना कट्टरवाद को अपनाए हुए था। आज के समय में उस गुट को यदि देखना चाहें तो पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान के तालेबान गुट में "ख़वारिज" नामी उस रूढ़िवादी गुट की झलक मिलती है। दूसरा गुट वह था जो सोच समझकर असीम छल-कपट के साथ इस्लाम के नाम पर जनता को लूट रहा था, उन पर अत्याचार कर रहा था और स्वयं ऐश्वर्य से परिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा था। यह दोनों की गुट हज़रत अली के शासन काल में उनके विरोधी बन गये थे। क्योंकि हज़रत अली को ज्ञान था कि मूर्खतापूर्ण अंधे अनुसरण को इस्लाम कहना, इस्लाम जैसे स्वभाविक धर्म पर अत्याचार है और दूसरी ओर चालबाज़ी करके जनता के अधिकारतं का दमन करने तथा बैतुलमाल अर्थात सार्वजनिक कोष को अपने हितों के लिए लुटाने वाला गुट भी इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत कार्य कर रहा है। इस प्रकार वे ख़वारिज तथा मुआविया जो स्वयं को ख़लीफ़ अर्थात इस्लामी शासक कहलवाता था, दोनों की शत्रुता के निशाने पर आ गये थे। ख़वारिज का गुट उनके जैसे विद्वान और आध्यात्मिक को इस्लाम विरोधी कहने लगा था और मुआविया हज़रत अली के व्यक्तित्व से पूर्णता परिचित होते हुए भी उनके न्याय प्रेम के आधार पर उन्हें अपने हितों के लिए बहुत बड़ा ख़तरा समझता था।इस प्रकार ये दोनों ही गुट उन्हें अपने रास्ते से हटाना चाहते थे कई इतिहासकारों का कहना है कि खवारिज के एक व्यक्ति अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम ने मुआविया के उकसावे में आकर हज़रत अली पर विष में डूबी हुई तलवार से वार किया था। 19 रमज़ान की रात हज़रत अली (अ) मस्जिद से अपने घर आये। आपकी पुत्री हज़रत ज़ैनब ने रोटी, नमक और एक प्याले में दूध लाकर पिता के सामने रखा ताकि दिन भर के रोज़े के पश्चात कुछ खा सकें। हज़रत अली ने जो ये भोजन देखा तो बेटी से पूछा कि मैं रोटी के साथ एक समय में दो चीज़ें कब खाता हूं। इनमें से एक उठा लो। उन्होंने नमक सामने से उठाना चाहा तो आपने उन्हें रोक दिया और दूध का प्याला ले जाने का आदेश दिया और स्वयं नमक और रोटी से रोज़ा इफ़्तार किया। हज़रत अली द्वारा इस प्रकार का भोजन प्रयोग किए जाने का यह कारण नहीं था कि वे अच्छा भोजन नहीं कर सकते थे बल्कि उस समय समाकज की परिस्थिति ऐसी थी कि अधिकतर लोग कठिनाईपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे और शासन की बागडोर हाथ में होने के बावजूद हज़रत अली का परिवार अपना सब कुछ ग़रीबों में बांटकर स्वयं अत्यन्त कठिन जीवन व्यतीत कर रहा था। हज़रत अली का विश्वास था कि शासक को चाहिए कि जनता के निम्नतम स्तर के लोगों जैसा जीवन व्यतीत करे ताकि जनता में तुच्छता और निराशा की भावना उत्पन्न न हो सके।इस प्रकार हज़रत अली नमक रोटी से अपनी भूख मिटाकर ईश्वर की उपासना में लग गये। आपकी पुत्री का कथन है कि उस रात्रि मेरे पिता बार-बार उठते, आंगन में जाते और आकाश की ओर देखने लगते। इसी प्रकार एक बेचैनी और व्याकुलता की सी स्थिति में रात्रि बीतने लगी। भोर समय हज़रत अली उठे, वज़ू किया और मस्जिद की ओर जाने के लिए द्वार खोलना चाहते थे कि घर में पली हुई मुरग़ाबियां इस प्रकार रास्ते में आकर खड़ी हो गयीं जैसे आपको बाहर जाने से रोकना चाहती हों। आपने स्नेह के साथ पछियों को रास्ते से हटाया और स्वयं मस्जिद की ओर चले गये। वहां आपने मुंह के बल लेटे हुए इब्ने मुल्जिम कत भी नमाज़ के लिए जगाया। फिर आप स्वयं उपासना में लीन हो गये। इब्ने मुल्जिम मस्जिद के एक स्तंभ के पीछे विष में डूबी तलवार लेकर छिप गया। हज़रत अली ने जब सजदे से सिर उठाया तो उसने तलवार से सिर पर वार कर दिया। तलवार की धार मस्तिष्क तक उतर गयी, मस्जिद की ज़मीन ख़ून से लाल हो गयी और नमाज़ियों ने ईश्वर की राह में अपनी बलि देने के इच्छुक हज़रत अली को कहते सुनाः काबे के रब की सौगन्ध मैं सफल हो गया। और फिर संसार ने देखा कि अली अपने बिछौने पर लेटे हुए हैं। मुख पर पीलाहट है, परिजनों और आपके प्रति निष्ठा रखने वालों के चेहरे दुःख और आंसूओं में डूबे हुए हैं कि इब्ने मुल्जिम को रस्सियों में बांध कर लाया जाता है। आपके चेहरे पर दुःख के लक्षण दिखाई देते हैं आप अपने पुत्र से कहते हैं कि इसके हाथ खुलवा दो और ये प्यासा होगा इसकी प्यास बुझा दो। फिर आपने अपने लिए लाया दूध का प्याला उसको दिला दिया। कुछ क्षणों के पश्चात उससे पूछा क्या मैं तेरा बुरा इमाम था? आपके इस प्रश्न को सुनकर हत्यारे की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे। फिर आपने अपने सुपुत्र इमाम हसन से कहा कि यदि मैं जीवित रह गया तो इसके विषय में स्वयं निर्णय लूंगा और यदि मर गया तो क़ेसास अर्थात बदले में इस पर तलवार का केवल एक ही वार करना क्योंकि इसने मुझपर एक ही वार किया था।हम इस दुखदायी अवसर पर अपने न्यायप्रेमी सभी साथियों की सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि सत्य और न्याय के मार्ग पर निडर होकर चलने में हमारी सहायता कर।

 

बुधवार, 19 मार्च 2025 12:03

बद्र की लड़ाई और उसके कारण

जंगे बदर 17वीं रमज़ान से 21वीं रमजान तक दूसरी हिजरी मे कुफ़्फ़ारे कुरैश और मुसलमानों के बीच हुई । बद्र मूल रूप से जुहैना जनजाति के एक व्यक्ति का नाम था जिसने मक्का और मदीना के बीच एक कुआँ खोदा था और बाद में इस क्षेत्र और कुएँ दोनों को बद्र कहा जाने लगा, इसलिए युद्ध का नाम भी बद्र के नाम से जाना जाने लगा।

जंगे बदर 17वीं रमज़ान से 21वीं रमजान तक दूसरी हिजरी मे कुफ़्फ़ारे कुरैश और मुसलमानों के बीच हुई । बद्र मूल रूप से जुहैना जनजाति के एक व्यक्ति का नाम था जिसने मक्का और मदीना के बीच एक कुआँ खोदा था और बाद में इस क्षेत्र और कुएँ दोनों को बदर कहा जाने लगा, इसलिए युद्ध का नाम भी बदर के नाम से जाना जाने लगा।

अबू सुफियान 40 लोगों के व्यापारिक कारवां के साथ सीरिया के लिए रवाना हुआ, जिनके पास 50,000 दीनार का सामान था। कारवां सीरिया से मदीना लौट रहा था जब पैगंबर (स) ने साथियों को उनकी संपत्ति जब्त करने और इस तरह दुश्मन की आर्थिक शक्ति को कमजोर करने के लिए अबू सुफियान के नेतृत्व वाले कारवां की ओर बढ़ने का आदेश दिया। अबू सुफियान को तकनीक के बारे में पता चला मुसलमानों ने बड़ी जल्दी से एक दूत को मदद मांगने के लिए मक्का भेजा। अबू सुफियान के आदेश के बाद, दूत ने अपने सवार (ऊंट) के नाक और कान काट दिए और उसका खून बहा दिया, उसकी कमीज फाड़ दी और लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक अजीब पोशाक पहनकर मक्का में प्रवेश किया और चिल्लाया: कारवां को बचाओ , बचाओ, बचाओ, मुहम्मद और उनके अनुयायियों ने कारवां पर हमला करने की योजना बनाई है। इस घोषणा के साथ, अबू जहल 950 योद्धाओं, 700 ऊंटों और 100 घोड़ों के साथ बद्र के लिए रवाना हो गया। दूसरी ओर, अबू सुफियान ने खुद को बचाने के लिए अपना रास्ता बदल लिया और मुसलमानों से खुद को बचाकर मक्का पहुँचने में कामयाब रहा। अल्लाह के रसूल (स) 313 आदमियों के साथ बद्र के स्थान पर पहुँचे और दुश्मन से आमने-सामने मिले। उसी समय, रसूल अल्लाह (स) ने अपने साथियों से परामर्श किया, और साथी दो समूहों में विभाजित हो गए। एक समूह ने अबू सुफ़ियान का अनुसरण करना पसंद किया, जबकि दूसरे समूह ने अबू जहल की सेना से लड़ना पसंद किया। निर्णय अभी नहीं हुआ था। इस बीच, मुसलमानों को दुश्मन की संख्या, साधन, उपकरण और तैयारियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। असहमति पहले से अधिक तीव्र हो गई अल्लाह के रसूल ने दूसरी राय को प्राथमिकता दी और दुश्मन से लड़ने के लिए तैयार होने का आदेश दिया। इस्लाम की सेना और कुफ़्फ़ार की सेना एक दूसरे के सामने खड़ी थी। शत्रु मुसलमानों की कम संख्या देखकर आश्चर्यचकित रह गया। इधर कुछ मुसलमान काफ़िरों की संख्या और उनके युद्ध उपकरणों को देखकर कांपने लगे। इस भयानक स्थिति को देखकर, अल्लाह के रसूल (स) ने अपने साथियों को अनदेखी खबर से अवगत कराया और कहा: "सर्वशक्तिमान ने मुझे सूचित किया है कि हम इन दो समूहों में से एक, अबू सुफियान का व्यापार कारवां या अबू जहल की सेना, निश्चित रूप से उनमें से एक पर विजयी होंगे, और भगवान अपने वादे में सच्चे हैं।अल्लाह की कसम! ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी आंखों से उन जगहों को देख रहा हूं जहां अबू जहल और कुरैश के कुछ अन्य प्रसिद्ध लोग मारे गए थे। अपने साथियों के डर और आतंक को देखकर, रसूल अल्लाह ने कहा, "चिंता मत करो यद्यपि हम संख्या में कम हैं, फिर भी स्वर्गदूतों का एक बड़ा समूह हमारी सहायता के लिए तैयार है » बद्र का मैदान रेत की नरमता के कारण युद्ध के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं था, लेकिन भगवान की मदद से, इस दौरान भारी बारिश हुई रात और सुबह रेगिस्तान युद्ध के लिए तैयार था।अल्लाह के रसूल (स) ने पहले दुश्मन की ओर शांति का हाथ बढ़ाया, लेकिन अबू जहल ने इसे अस्वीकार कर दिया और युद्ध की घोषणा कर दी। काफ़िर, उतबा, शैबा और वलीद, जबकि मुसलमानों की ओर से तीन अंसार मैदान में घुस आए। उन्होंने अंसार के सैनिकों को लौटाते हुए कहा कि हम अपने साथी कुरैश लोगों से लड़ेंगे। अल्लाह के रसूल ने अपने परिवार से तीन लोगों, उबैदा बिन हारिस, हज़रत हमज़ा और हज़रत अली (अ) को बुलाया और उन्हें युद्ध के मैदान में भेजा। उन्होंने अपना काम पूरा किया और ऊबैदा की सहायता के लिए आए। उत्बा का एक पैर कट गया और वह भी उसके एक वार से मर गया और इस तरह हज़रत अली (अ) ने तीन योद्धाओं को मार डाला। अमीर अल-मोमिनीन (अ) ने अपने शासनकाल के दौरान मुआविया को एक पत्र लिखते हुए इस घटना का इन शब्दों में उल्लेख किया: (मैं वही अबू अल-हसन हूं जिसने आपके दादा उतबा, चाचा शैबा, चाचा वलीद और भाई हंजला को मौत के घाट उतारा था)

इन तीन लोगों की हत्या के बाद, अबू जहल ने एक सामान्य हमले का आदेश दिया और यह नारा लगाया: इन्ना लाना अल-उज्जा वल उज्जा लकुम, फिर मुसलमानों ने नारा लगाया: अल्लाहो मौलाना वा मौलाया लकुम।

अल्लाह के रसूल (अ) अबू जहल की हत्या की प्रतीक्षा कर रहे थे, जैसे ही उन्हें उनकी मृत्यु की खबर मिली, उन्होंने कहा: हे अल्लाह! आपने अपना वादा पूरा किया है.

 

बद्र की लड़ाई काफ़िरों की करारी हार और मुसलमानों की जीत के साथ समाप्त हुई। इस लड़ाई में अबू जहल सहित काफिरों के प्रसिद्ध कमांडर उपयोगी थे। काफिरों की सेना ने 70 लोगों को मार डाला और इतने ही लोगों को पकड़ लिया गया, जबकि 14 मुसलमान शहीद हो गए, जिनमें 6 मुहाजिर और 8 अंसार शामिल थे। 150 ऊँट, 10 घोड़े और अन्य युद्ध उपकरण मुसलमानों के हाथ लग गये।

इस युद्ध में काफ़िरों ने हज़रत अली (अ) को लाल मौत का नाम दिया क्योंकि उनके महान योद्धा उनके (अ) के हाथों नरक में चले गये। उन सभी के नाम इतिहास की किताबों में हैं।

एक शंका और उसका उत्तर:

आज के इस्लाम के दुश्मनों ने खुदा के पैगम्बर और मुसलमानों पर संदेह जताया है और कहा है कि मुसलमानों ने बिना किसी जानकारी के विरोधियों के कारवां को लूटने की योजना बनाई और इसे लूटपाट माना जाता है।

यदि हम पूर्वाग्रह का चश्मा उतारकर तथ्यों को जानने का प्रयास करें तो यह स्पष्ट है कि ईश्वर के पैगंबर ने निम्नलिखित कारणों से अबू सुफियान के व्यापारिक कारवां की ओर रुख किया:

पहला: जब मुसलमान मक्का से पलायन कर मदीना चले गए, तो उनकी सारी संपत्ति और सामान पर कुरैश ने कब्जा कर लिया। न्यायशास्त्र के अनुसार, मुसलमानों को अपनी हड़पी हुई संपत्ति के लिए अबू सुफियान के कारवां को मुआवजा देने का अधिकार है, यानी अपनी संपत्ति के नुकसान की भरपाई करने के लिए, हालांकि अबू सुफियान के वाणिज्यिक कारवां में संपत्ति का मूल्य मुसलमानों के हड़पे हुए घर और संपत्ति के बराबर है। .अशर तो अशर भी नहीं बन पाया.

दूसरा: अविश्वासी कुरैश ने मक्का के जीवन में मुसलमानों पर अत्याचार किया और जितनी क्रूरता वे कर सकते थे, की।

तीसरा: मुसलमानों के प्रवास के बाद, काफिर कुरैश ने मदीना पर हमला करने और ईश्वर के दूत और विश्वासियों को नष्ट करने की योजना बनाना शुरू कर दिया था। कारवां की ओर बढ़ गए।

लेखक: मोहम्मद हुसैन चमनाबादी

यमन के रक्षा मंत्री ने गाजा पट्टी का समर्थन जारी रखने के लिए देश के सशस्त्र बलों की पूरी तैयारी पर जोर देते हुए कहा कि अमेरिका के यमन पर हमले ने वाशिंगटन द्वारा सियोनिस्ट अपराधों के समर्थन को दुनिया के सामने साबित कर दिया है, और हम नाकाबंदी का जवाब नाकाबंदी से और हमले का जवाब हमले से देंगे।

यमन के आधिकारिक अधिकारियों द्वारा अमेरिका के बर्बर हमलों की प्रतिक्रिया में यमन के रक्षा मंत्री मोहम्मद नासिर अलअतफी ने कहा कि देश के सशस्त्र बल चुनौतियों के स्तर के अनुसार दुश्मन के साथ टकराव को बढ़ाने और किसी भी आपात स्थिति में कार्रवाई करने के लिए तैयार हैं।

मोहम्मद अलअतफी ने कल रात अपने बयान में कहा,यमन के सशस्त्र बल गाजा में हमारे भाइयों का समर्थन करने और अस्थायी सियोनिस्ट शासन के जहाजों के खिलाफ समुद्री नाकाबंदी के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

उन्होंने कहा,अनसारुल्लाह आंदोलन के नेता सैयद अब्दुलमलिक अलहौसी द्वारा गाजा की नाकाबंदी तोड़ने के लिए दुश्मन को दी गई समय सीमा समाप्त होने के बाद यमन के सशस्त्र बलों ने अपने मिशन को पूरा करने के लिए सभी स्तरों पर आवश्यक सैन्य कार्रवाई और प्रक्रियाएं की हैं। साथ ही यमन की खुफिया एजेंसी सियोनिस्ट जहाजों की नौवहन गतिविधियों पर नजर रख रही है और हमने सियोनिस्टों की स्थिति के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त की है।

यमन के इस सैन्य अधिकारी ने कहा,भविष्य के ऑपरेशनों में सियोनिस्ट शासन के जहाजों के साथ एक व्यापक समुद्री युद्ध की आवश्यकताओं के अनुसार व्यवहार किया जाएगा यमनी बल सियोनिस्ट शासन और उसके सभी समर्थकों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों और समझौतों यहां तक कि युद्धविराम समझौतों का पालन करने के लिए मजबूर करेंगे।

हौज़ा इल्मिया किरमान की शिक्षिका फ़हीमा मुत्तक़ीफ़र ने हज़रत मरियम (अ) की घटना के प्रकाश में कहा कि विश्वास और व्यक्तिगत प्रयास जीवन की समस्याओं में सफलता की कुंजी हैं।

किरमान के सिरजान शहर में नर्जिसिया सेमिनरी में महिलाओं और महिला छात्राओं की उपस्थिति में कुरान पाठ और व्याख्या बैठक का सोलहवां सत्र आयोजित किया गया, जिसमें फ़हीमा मुताक़िफ़ार ने सूरह मरियम की आयत 22 से 25 की व्याख्या बताई।

उन्होंने मरियम और ईसा के जन्म को अल्लाह की असीम शक्ति और अपने नेक बन्दों के लिए उसकी विशेष मदद का प्रकटीकरण बताया।

सुश्री मुत्तकीफ़र ने कहा कि हज़रत मरियम अपनी पवित्रता और धर्मपरायणता के कारण अल्लाह की विशेष दया की पात्र थीं और हज़रत ईसा का बिना पिता के चमत्कारी जन्म ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है जो असंभव को संभव बना सकता है।

 

उन्होंने मरियम के अकेलेपन, सामाजिक दबाव और शारीरिक कठिनाई की ओर इशारा करते हुए कहा कि ईश्वर पर उनके विश्वास के कारण चमत्कार हुए, जैसे कि पानी का झरना बहना और सूखे पेड़ पर फल लगना।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह घटना हमें सिखाती है कि कठिनाई के समय में विश्वास और व्यक्तिगत प्रयास ही समाधान की कुंजी हैं।

मुत्तक़ीफ़र ने स्वस्थ आहार के महत्व के बारे में भी बात की और कहा कि अल्लाह ने हज़रत मरियम के लिए जन्म देने के बाद खाने के लिए खजूर का चयन किया, जो मानव स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार और प्राकृतिक आशीर्वाद के महत्व पर प्रकाश डालता है।

उन्होंने आगे कहा कि यद्यपि हज़रत मरियम कोई पैगम्बर नहीं थीं, फिर भी उनकी पवित्रता और धर्मपरायणता ने उन्हें ईश्वरीय कृपा का पात्र बना दिया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि अल्लाह की दया उन लोगों पर छा जाती है जो धर्मपरायणता का आचरण करते हैं और धर्म के मार्ग पर चलते हैं।

शाहगंज जौनपुर नगर के कोरवालिया सेन्ट थामस रोड मास्जिद चादबीबी के इमाम ने लोगो को बताया की रमजान इस्लाम का पावित्र माहिना है जिसमे रोजा रखा जाता है लेकिन उपवास सिर्फ इस्लाम तक सिमित नही है यह सभी धर्मो मे होता है हिन्दू,ईसाई,व सिख धर्म मे भी उपवास की परम्परा है।

शाहगंज जौनपुर/नगर के कोरवालिया सेन्ट थामस रोड मास्जिद चादबीबी के इमाम ने लोगो को बताया की रमजान इस्लाम का पावित्र माहिना है जिसमे रोजा रखा जाता है लेकिन उपवास सिर्फ इस्लाम तक सिमित नही है यह सभी धर्मो मे होता है हिन्दू,ईसाई,व सिख धर्म मे भी उपवास की परम्परा है जैन धर्म मे भी उपवास रखा जाता है।

जो आत्म संयम अल्लाह के नजदीक होना और आत्मा शुध्दि का माध्यम है बाल्कि रोजा समाज मे समानता की भावना भी पैदा करता है अमीर और गरीब दोनो एक साथ भूखा प्यासा रहते है तो यह सहानुभूति और एक जुटता को बढावा देता है।

रोजे के दौरान गरीब की मदद करना व इफ्तार कराना इस्लाम की एक महत्वपुर्ण परम्परा है रोजा आत्म शुध्दि का एक साधन है इन्सान अपनी आत्मा को संसारिक लालसा से मुक्त करके अल्लाह की ओर आधिक झुकाव महसूस करता है नमाज मे इन्सान दुआ के जारिये गुनाहो की माफी मागता है मौलाना सैय्यद आबिद ने मुल्क मे अमन चैन के लिये दुआ कराई।

गज्ज़ा युद्धविराम के बाद फिलिस्तीनी बच्चों के संकट पर यूनिसेफ की चेतावनी, अमेरिकी धमकियों पर हमास की स्पष्ट प्रतिक्रिया और युद्धविराम के सख्ती से पालन पर जोर देना, गाजा युद्धविराम के 58वें दिन की प्रमुख घटनाएं हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय टीम की रिपोर्ट के अनुसार, गाज़ा पट्टी में युद्धविराम के 58वें दिन, सोमवार को खबर आई कि इजरायली शासन ने दक्षिण गाजा पट्टी के राफाह पर हवाई हमले किए।

यूनिसेफ ने इस बात पर जोर दिया कि फिलिस्तीनी बच्चे, विशेष रूप से गाजा और वेस्ट बैंक में, जीवित रहने के लिए बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं और लगातार चिंता में जी रहे हैं।

संगठन ने कहा कि इजरायल द्वारा चिकित्सा उपकरणों के प्रवेश पर रोक लगाने के कारण गाजा में 4,000 नवजात शिशुओं की जान खतरे में है।और 20 लाख फिलिस्तीनी अकाल के कगार पर है।

 इफ्तार पार्टी का उद्देश्य विभिन्न समुदायों को करीब लाना और अंतर-धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना था। इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम में सरकारी मंत्रियों, संसद सदस्यों, विभिन्न देशों के राजदूतों, प्रोफेसरों और सभी धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

मेलबर्न की एक रिपोर्ट के अनुसार/ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने हर साल की तरह, सोमवार 17 मार्च को एक भव्य इफ्तार पार्टी का आयोजन किया, जो मेलबर्न के इन्वेस्टमेंट सेंटर विक्टोरिया के सर रेडमंड बैरी रूम में आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम की मेजबानी विक्टोरिया की प्रीमियर महामहिम जैकिंटा मैरी एलन ने की।

इफ्तार पार्टी का उद्देश्य विभिन्न समुदायों को करीब लाना तथा अंतर-धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना था। इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम में सरकारी मंत्रियों, संसद सदस्यों, विभिन्न देशों के राजदूतों, प्रोफेसरों और सभी धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

विशेष अतिथियों में ऑस्ट्रेलिया के शिया उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष और मेलबर्न के इमाम जुमा हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन मौलाना सय्यद अबुल क़ासिम रिज़वी और इमाम मुहम्मद नवास (सचिव, इमाम बोर्ड) शामिल थे।

मुख्यमंत्री जसिंटा एलन ने मौलाना रिज़वी की राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सेवाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलिया में सभी धर्मों, जातियों और नस्लों के लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं, और इस्लामोफोबिया की कड़ी निंदा की और घोषणा की कि 15 मार्च को ऑस्ट्रेलिया में "इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस" ​​के रूप में मनाया जाएगा।

मौलाना सय्यद अबुल क़ासिम रिजवी ने ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता और प्रभावशीलता पर प्रकाश डाला और ब्रह्मांड के मालिक हजरत अली (अ) की सरकार की शैली को दुनिया के लिए एक अनुकरणीय प्रणाली बताया। हजरत अली (अ) द्वारा मालिक-ए-अश्तर को लिखे गए ऐतिहासिक पत्र का हवाला देते हुए मौलाना ने न्याय और निष्पक्षता की व्यवस्था के महत्व पर जोर दिया और वैश्विक आतंकवाद की कड़ी निंदा की।

मौलाना ने इस अवसर पर यह भी बताया कि 15 मार्च दुनिया के कुछ हिस्सों में रमजान का 15वां रोज़ा था जो इमाम हसन मुजतबा (अ) का मुबारक जन्मदिन है। इमाम हसन (अ.) को मेल-मिलाप, शांति और सामंजस्य के प्रतीक के रूप में पहचाना जाता है और उनका जीवन आज के युग में शांति और न्याय की स्थापना के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।

उल्लेखनीय है कि मौलाना सय्यद अबुल क़ासिम रिज़वी अपनी इस्लामी और राष्ट्रीय सेवाओं के कारण ऑस्ट्रेलिया में एक प्रसिद्ध व्यक्ति (आइकन) के रूप में जाने जाते हैं। वे गुरुवार, 13 मार्च को मेलबर्न पहुंचे और तुरंत अपने धार्मिक और मिशनरी कर्तव्यों में शामिल हो गए।

शुक्रवार: मिल्टन में हैदराबादी बिलीवर्स सेंटर में शुक्रवार की नमाज का नेतृत्व करना, शाम को कुरान की व्याख्या करना, और शाम को हजरत मुख्तार (र) की मजलिस-ए-शहादत को संबोधित करना।

शनिवार: मेलबर्न के सबसे पुराने इमामबारगाह, पंजतन में इमाम हसन (अ) के जन्म दिवस के अवसर पर संबोधन, तथा मगरिब से पहले कुरान के अध्ययन और टीका के महत्व पर चर्चा।

रविवार, 15 रमजान: मेलबर्न के उत्तर में स्थित इमामबारगाह शाह-ए-नजफ़ में इमाम हसन (अ) के जन्म के उत्सव को संबोधित करेंगे।

 

सोमवार: विक्टोरियन सरकार के इफ्तार रात्रिभोज में विशेष अतिथि के रूप में भाग लेना तथा शिया समुदाय के समक्ष उपस्थित मुद्दों पर चर्चा करेंगे।

मौलाना की शैक्षणिक, मिशनरी और सामाजिक सेवाओं के सम्मान में ऑस्ट्रेलियाई संसद, सिख समुदाय और अन्य संस्थाओं ने उन्हें पुरस्कारों से सम्मानित किया। उनकी निरंतर सेवा ने उन्हें न केवल ऑस्ट्रेलिया में बल्कि पूरे विश्व में शियावाद और इस्लामी राष्ट्र की गरिमा के लिए एक शक्तिशाली आवाज बना दिया है।

निस्संदेह, मौलाना सय्यद अबुल क़ासिम रिज़वी विदेशों में राष्ट्र के एक महान राजदूत हैं और अपनी बहुमूल्य सेवाओं के माध्यम से शिया धर्म की प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं।

दक्षिणी लेबनान में इज़राइल के ड्रोन ने एक कार पर हमला किया जिसमें 2 लोग शहीद हो गए।

अलजजीरा न्यूज़ नेटवर्क के अनुसार, दक्षिणी लेबनान के "यहमूर" शहर में सियोनिस्ट शासन की सेना के ड्रोन ने एक कार को निशाना बनाया। इस हमले में २ लोगों के शहीद होने की रिपोर्ट है लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दी है।

वहीं, अलअख़बार अख़बार के संवाददाता ने बताया कि इस घटना में २ लोग घायल हुए हैं और एक आवासीय भवन व एक कार को नुकसान पहुँचा है।

सियोनिस्ट शासन के ड्रोन हमले का निशाना दक्षिणी लेबनान का "यहमूर" इलाका में २ लोगे के शहीदों की पुष्टि लेबनानी स्वास्थ्य मंत्रालय ने की। २ घायल और संपत्ति को नुक़सान की सूचना।

अब अचानक आपको पता चला कि 150 से अधिक देश संयुक्त राष्ट्र में ईरान पर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं! या फिर वे कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित है! लेकिन कोई भी यह नहीं बताता कि यह "वैश्विक समुदाय" वास्तव में क्या है। और इसका गठन कैसे हुआ?

नीचे दिए गए नामों पर एक नज़र डालें!

लेसोथो, बारबाडोस, कोमोरोस, मॉरीशस, नाउरू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, सैन मैरिनो, सेंट किट्स और नेविस, समोआ, साओ टोम, सेशेल्स, स्वाजीलैंड, टोंगा, तुवालु, वानुअतु, मलावी, केप वर्डे, जिबूती, बेनिन, बेलीज, एंटीगुआ बारबुडा, सोलोमन द्वीप, फरो द्वीप, मार्शल द्वीप, मॉरिटानिया और कई अन्य देश...

ये उन देशों के नाम हैं जो 100 वर्ष से भी कम पुराने हैं, जिनकी जनसंख्या 100,000 से भी कम है, तथा जिनका निर्माण पूरी तरह से संयुक्त राज्य अमेरिका की गंदी नीतियों के तहत योजना बनाकर किया गया था। ये सभी देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं और प्रत्येक को एक वोट का अधिकार है!

1945 में जब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी, तब केवल 51 देश इसके सदस्य थे, लेकिन उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्वावधान में कई देशों को "स्वतंत्र" कर दिया गया और उन्हें संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप अब इसके लगभग 200 सदस्य देश हैं।

अब अचानक आपको पता चला कि 150 से अधिक देश संयुक्त राष्ट्र में ईरान पर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं! या फिर वे कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित है!

लेकिन कोई भी यह नहीं बताता कि यह "वैश्विक समुदाय" वास्तव में क्या है। और इसका गठन कैसे हुआ?

कोई यह नहीं कहता कि इन देशों की जनसंख्या कुछ हजार लोगों की है और उन्हें शायद यह भी पता नहीं है कि विश्व मानचित्र पर ईरान कहां स्थित है!

यह जानकर आश्चर्य होगा कि 10 देशों की संयुक्त जनसंख्या ईरान के एक औसत शहर की जनसंख्या के बराबर भी नहीं है।

उदाहरण के लिए:

नाउरू की जनसंख्या 11,000 से भी कम है।

तुवालु की जनसंख्या 12,000 से कम है।

पलाऊ की जनसंख्या लगभग 18,000 है।

संयुक्त राष्ट्र के 126 सदस्य देशों की कुल जनसंख्या केवल 70 मिलियन है, जो पूरी तरह से अमेरिका के गुलाम हैं और उसके हुक्म के अधीन हैं। इन सभी देशों का कुल क्षेत्रफल ईरान के बराबर भी नहीं है!

अब आप समझ गए होंगे कि कौन सी दुनिया हम पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाती है?

और दिलचस्प बात यह है कि इनमें से कोई भी देश वास्तव में स्वतंत्र नहीं है, बल्कि ये सभी संयुक्त राज्य अमेरिका के नियंत्रण में हैं।

उदाहरण के लिए, यमन का अंसार अल्लाह अमेरिकी और ब्रिटिश जहाजों पर हमलों के प्रति बहुत संवेदनशील है। पिछले वर्ष, "बारबाडोस" के झंडे तले लाल सागर से गुजर रहे एक अमेरिकी जहाज को यमनी प्रतिरोध द्वारा निशाना बनाया गया था।

बाद में अमेरिकी अधिकारियों ने खुले तौर पर स्वीकार किया कि यह एक अमेरिकी जहाज था।

हक़ीक़त क्या है?

अंततः, यमनी मामले का विश्लेषण करते समय, सबसे पहले वैश्विक परिदृश्य को समझना महत्वपूर्ण है।

यदि हम छोटी-छोटी बातों में उलझे रहेंगे तो वास्तविक सत्य और सिद्धांत पृष्ठभूमि में लुप्त हो जाएंगे।

वास्तविक सच्चाई यह है कि यह युद्ध अस्तित्व का युद्ध है। अर्थात्, या तो एक पक्ष को पूरी तरह से समाप्त करना होगा, या उसे सैन्य रूप से अप्रभावी बनाना होगा।

युद्धविराम, वार्ता और अन्य बातें केवल समय बिताने के बहाने हैं।

अस्तित्ववादी युद्ध में आर्थिक या मानवीय क्षति गौण होती है; वास्तविक लक्ष्य यह है कि जो पक्ष अंत तक टिका रहेगा, वही विजेता होगा।

असली युद्ध किसके विरुद्ध है?

वर्तमान में ईरान और उसके सहयोगियों के बीच युद्ध इजरायल के साथ नहीं, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों के साथ है।

इजरायल इतना बड़ा नहीं है कि वह विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए खुद को राजी कर सके। इजरायली अधिकारियों ने स्वयं स्वीकार किया है कि यदि अमेरिका ने उनकी मदद नहीं की होती तो वे आंतरिक रूप से ध्वस्त हो गए होते।

यही कारण है कि इस्लामी क्रान्ति के नेता ने हाल के दिनों में अपने भाषणों में इजरायल पर अधिक जोर नहीं दिया है, बल्कि सीधे तौर पर अमेरिका को चुनौती दी है।

कभी अमेरिका का पालतू कुत्ता रहा इजरायल अब इतना महत्वहीन हो गया है कि उसका जिक्र भी कम हो गया है।

अनुवाद एवं संयोजन: सुश्री सईदा नुसरत नकवी