رضوی

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हज़रत ज़ैनब स.ल. शहीदों के ख़ून का संदेश लानी वाली, अबाअब्दिल्लाहिल हुसैन (अ) की क्रांति की सूरमा, अत्याचारियों और उनके हामियों को अपमानित करने वाली, सम्मान, इज़्ज़त, लज्जा, सर बुलंदी और श्रेष्ठता की उच्चतम चोटी पर स्थित महिला का नाम है।

हज़रत ज़ैनब स.ल. शहीदों के ख़ून का संदेश लानी वाली, अबाअब्दिल्लाहिल हुसैन (अ) की क्रांति की सूरमा, अत्याचारियों और उनके हामियों को अपमानित करने वाली, सम्मान, इज़्ज़त, लज्जा, सर बुलंदी और श्रेष्ठता की उच्चतम चोटी पर स्थित महिला का नाम है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिवार में हज़रत ज़ैनब (स) का स्थान इतना अधिक उच्च और आपका पद इतना ऊँचा है कि क़लम आपकी श्रेष्ठता को लिख नहीं सकता और ज़बान उसको बयान नहीं कर सकती है।

महान फ़क़ीह और इतिहासकार अल्लामा मोहसिन अमीन आमुली हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाहे अलैहा की महानता को बयान करते हुए फ़रमाते हैं

“हज़रत ज़ैनब, महिलाओं में सबसे अधिक महान और उनकी फ़ज़ीलत इससे कहीं अधिक है कि उसको बयान किया जा सके या क़लम उसके लिख सके”।

हज़रत ज़ैनब (स) के व्यक्तित्व की उच्ता, महानता, तार्किक शक्ति, अक़्ल की श्रेष्ठता, ज़बान की फ़साहत और बयान की बलाग़त कूफ़े और शाम में आपने जो ख़ुत्बे दिये हैं उनमें दिखाई देती है और बताती है कि यह उस अली (अ) की बेटी है जिसने अपने युग में वह खुत्बे दिये कि अगर आज उनके एक छोटे से भाग को एक पुस्तक के रूप में संकलित कर दिया गया तो उसका नाम नहजुल बलाग़ा हो गया और दुनिया आज भी उसको देखकर अचंभित है। आपने यज़ीद और इबने जियाद के मुक़ाबले में इस प्रकार तार्किक बाते की हैं और ख़ुत्बे दिये हैं कि इन मलऊनों को ख़ामोश कर दिया और उनको इतना तर्क विहीन कर दिया कि उन लोगों ने बुरा भला कहने, गालियां देने और उपहास को अपना हथियार बनाया जो यह दिखाता है कि उनके पास अपने बचाओ के लिये कोई तर्क नहीं रह गया है।

हज़रत ज़ैनब (स) ने अपने चचाज़ाद अब्दुल्लाह बिन जाफ़र बिन अबी तालिब से शादी की और आपके “अली ज़ैनबी” “औन” “मोहम्मद” “अब्बास” और “उम्मे कुलसूम” नामक संतानें हुआ जिनमें से औन और मोहम्मद कर्बला के मैदान में विलायत की सुरक्षा करते हुए हुसैन (अ) पर शहीद हो गये।

हज़रत ज़ैनब (स) एक ऐसी हस्ती हैं जिनको इतिहास की पुस्तकों में “उम्मुल मसाएब” यानी मुसीबतों की माँ कहा गया है, और अगर आपकी जीवनी का अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि आपको उम्मुल मसाएब सही कहा गया है, उन्होंने अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) के निधन का दुख देखा, अपनी माँ और सैय्यद ए निसाइल आलमीन हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की अत्याचारों और ज़ुल्म सहने के बाद शहादत को देखा, अपने पिता अमरुल मोमिनी हज़रत अली (अ) के ग़मों और अंत में इबने मुलजिम के हाथों मस्जिद में शहादत को बर्दाश्त किया, आपने अपने भाई हसन (अ) के जिगर के बहत्तर टुकड़ों को तश्त में गिरते देखा, और इन सबके बाद कर्बला में अपने चहेते भाई हुसैन (अ) को तीन दिन का भूखा प्यासा बर्बरता से शहीद होते देखा, औऱ आपकी मुसीबतें यहीं समाप्त नहीं हुईं बल्कि हुसैन (अ) की शहादत के बाद क़ैदी बना कर आपको अहले हरम के साथ कभी कूफ़ा के बाज़ारों में बे पर्दा घुमाया गया तो कभी शाम के दरबार में यज़ीदियों के सामने लाया गया।

ज़ैनब (स) इमाम हुसैन (अ) की क्रांति के आरम्भ से ही अपने भाई के साथ थी और इस आन्दोलन के हर पड़ाव पर अपने भाई की हमदम और हमराह थी, शबे आशूर कभी अपने भाई से बात करती दिखाई देतीं हैं तो, कभी आशूर के दिन शहीदों की लाशों का स्वागत करती है, ग्यारह मोहर्रम की रात हुसैन की पामाल लाश के पास फ़रियाद करना और पैग़म्बर (स) को संबोधित करके यज़ीदियों की शिकायत करना यह सब आपके जीवन के वह स्वर्णिम अध्याय हैं जो आपकी महानता, श्रेष्ठता और फ़ज़ीलत को बयान करते हैं।

आपने आशूर के बाद यतीम बच्चों की सरपरस्ती की औऱ हुसैन (अ) के आन्दोलन को जन जन तक पहुँचाया।

कूफे में जब लोगों ने पैग़म्बर (स) के परिवार वाली को इस दयनीय स्थिति में देखा और रोना आरम्भ किया तो आपने इस प्रकार फ़रमायाः

“हे कूफ़े वालों! हे धोखे बाज़ों! और ख़यानत करने वालों और बेवफ़ाओं! तुम्हारी आँखों से आँसू न सूखें और तुम्हारी आवाज़ें बंद न हो.... वाय हो तुम पर जानते हो पैग़म्बर के किस जिगर को टुकड़े टुकड़े किया है और किस संधि को तोड़ा है और कौन पर्दा नशीन महिलाओं को बाहर लाए हो और उनके सम्मान को ठेस पहुँचाई है और किस ख़ून को बहाया है”

कूफ़े में ज़ैनब (स)  के रूप में अली (अ) थे जो बोल रहे थे और जिन्होंने अली को सुना था वह कह रहे थे “ईश्वर की सौगंध इस प्रकार की बा हया और पर्देदार बोलने वाली महिला को नहीं देखा थे ऐसा लगता है जैसे कि अपने अंदर अली (अ) की ज़बान रखती है”।

जब इबने ज़ियाद ने अहंकार में चूर हो कर अपने दरिंगदी दिखाते हुए आलुल्लाह को बुरा भला कहा तो आपने सदैव बाक़ी रह जाने वाले शब्दों से उसको झूठ को उजागर कर दिया और फ़रमायाः

“ईश्वर की सौगंध, तू ने हमारे बुज़ुर्ग को क़त्ल कर दिया और मेरे परिवार को बरबाद कर दिया और मेरी शाखों को काट दिया और मेरी जड़ों को उखाड़ दिया, अगर यह कार्य तेने इंतेक़ाम की आग को ठंडा करता है तो तू ठंडा हो गया”।

और जब यज़ीद ने अपने तख़्त पर बैठ कर अपने लोगों और दूसरे देशों से आए दूतों के सामने अपनी शक्ति को दिखाने के लिये यह दिखाना चाहा कि जो कुछ हुआ है वह अल्लाह का किया हुआ है, तो हज़रत ज़ैनब (स) उठ खड़ी हईं और अपने अपने ख़ुत्बे को इस प्रकार आरम्भ कियाः

“हे आज़ाद किये गए दासों के बेटे (यह कहकर आपने सबके सामने यज़ीद की वास्तविक्ता को खोल कर रख दिया) क्या यह न्याय है कि तेरी औरते हैं दासिया तो पर्दे में रहे और पैग़म्बर के ख़ानदान की औरतों को तू क़ैदी बनाए? तूने उनके पर्दों को खोल दिया उनके चेहरों को खोल दिया और उनको एक शहर से दूसरे शहर घुमाते हैं”?

आपने अपने इस थोड़े से शब्दों से यज़ीद के सारे इतिहास जंग में ग़ुलाम होने और आज़ाद किये जाने उसके पूर्वजों के इस्लाम लाने आदि को बयान कर दिया और इस प्रकार सबको यह बता दिया कि यह व्यक्ति जो अपने आप को ख़लीफ़ा कह रहा है और इस्लामी हुकूमत पर राज कर रहा है वह इसके योग्य नहीं है।

यह हज़रत ज़ैनब (स) के ख़ुत्बों और शब्दों का ही प्रभाव था कि यज़ीन ने शाम को उग्र होते हुए देखा और उसकों चिंता हुई की कही अली की बेटी की यह बातें उसके तख़्त को न हिला दें तो उसने आपको शाम से मदीने की तरफ़ भेज दिया।

दानिशनान ए अमीरुल मोमिनीन (अ) जिल्द 1 पेज 16

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैनी कोहसारी ने कहा: हौज़ा-ए-इल्मिया के प्रमुख उलेमा और शख्सीयतों का सम्मान करना, इल्मी और दीनी संस्थाओं का एक अहम मिशन और जिम्मेदारी है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैनी कोहसारी ने मज़मआ-ए-जहानी अहल-ए-बैत (अ.) में अल्लामा मिर्ज़ा नाईनी (र) पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के मेहमानों की बैठक में कहा कि आज आवश्यकता है कि हम दुनिया के सामने अपने शिया उलेमा और उनके इल्मी योगदान को पेश करें। यह सम्मेलन दरअसल इल्म, हौज़ा और रुहानियत के संस्थान के अंतरराष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक है।

उन्होंने कहा: इस्लामी गणराज्य ईरान की मुक़द्दस हुकूमत की स्थिति और दुनिया में शियो की असरदार भूमिका को देखते हुए, आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरत है कि हम अपने प्रभावशाली हौज़ा ए इल्मिया को अंतरराष्ट्रीय समाज के सामने पेश करें। दुर्भाग्यवश, हमारे बहुत से बुज़ुर्ग आज भी इस्लामी दुनिया और यहाँ तक कि पश्चिमी शोधकर्ताओं के लिए अज्ञात हैं।

हौज़ा-ए-इल्मिया के अंतर्राष्ट्रीय मामलों के सहायक ने कहा: हौज़ा-ए-इल्मिया के प्रमुख और ऊँचे दर्जे के विद्वानों में से एक मरहूम आयतुल्लाहिल उज़्मा मिर्ज़ा नाईनी थे। उनकी अहमियत के कारण, उनके अफ़कार और विचारों तथा शिक्षाओं पर आठ साल तक विस्तृत अध्ययन किया गया जिसका परिणाम अब सामने आया है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन कोहसारी ने बताया: कुल ४० जिल्दें मिर्ज़ा नाईनी (र) की तहरीरात और तकीरात (पाठों के नोट्स) पर आधारित हैं, और पाँच जिल्दें उनके विचारों पर लिखे वैज्ञानिक लेखों पर आधारित हैं। लेखों की संख्या बहुत अधिक थी, लेकिन इल्मी मापदंडो के आधार पर चुने हुए आलेख प्रकाशित किए गए हैं। कुल मिलाकर, यह ४५ जिल्दों का प्रोजेक्ट प्रकाशन के लिए तैयार है।

उन्होंने कहा: मिर्ज़ा नाईनी के सम्मान में यह बड़ा सम्मेलन क़ुम और नजफ़ के हौज़ा-ए-इल्मिया की सहभागिता से आयोजित किया जाएगा। क़ुम की ओर से, मरकज़े मुदीरियत की उच्च परिषद और जामेअ मुदर्रेसीन शिक्षक समाज) इसकी निगरानी करेंगे। इराक की ओर से, आयतुल्लाहिल उज़्मा सिस्तानी का दफ्तर नजफ़ में इस कार्यक्रम की योजना का केंद्र होगा, और अमली तौर पर अस्तान-ए-मुक़द्दस अलवी और अस्तान-ए-मुक़द्दस हुसैनी सम्मेलन की मेजबानी करेंगे।

उन्होंने अंत में कहा: आज आवश्यक है कि हौज़ा-ए-इल्मिया और उलेमा के बीच सहयोग और संवाद को मजबूत किया जाए। यह तालमेल शिया और सुन्नी उलेमा के बीच ही नहीं, बल्कि पूरी इस्लामी उम्मत और दूसरे मज़ाहिब के लोगों के बीच भी ज़रूरी है।

हाल के वर्ष यह दिखा चुके हैं कि इस्लामी क्रांति के बहुत से आदर्श — जैसे फ़िलिस्तीन की हिमायत, पश्चिमी सभ्यता की आलोचना, और मानवाधिकार के झूठे दावेदार संस्थानों पर अविश्वास — अब वैश्विक संवाद का हिस्सा बन गए हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन कोहसारी ने कहा: इस तरह, मिर्ज़ा नाईनी सम्मेलन न केवल एक महान आलिम का सम्मान है, बल्कि क़ुम और नजफ़ के हौज़ों के रचनात्मक सहयोग का प्रतीक और इस्लामी विश्व के उलेमा के बीच एकता व सहयोग की प्रेरणा भी है।

 

ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा है कि मरहूम आयतुल्लाह मिर्जा मोहम्मद हुसैन नाईनी एक महान बौद्धिक और धार्मिक शख्सियत थे जिन्होंने अक्ल,इज़तेहाद,और जिहाद को मिलाकर उम्मत की दूरदर्शिता को एक साथ पेश किया।

ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा है कि मरहूम आयतुल्लाह मिर्जा मोहम्मद हुसैन नाईनी एक महान बौद्धिक और धार्मिक शख्सियत थे, जिन्होंने बौद्धिकता, इज्तिहाद और संघर्ष की दूरदर्शिता को एक साथ मिलाकर इस्लामी सोच में नए आयाम पैदा किए।

अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में "मिर्जा-ए-नाईनी" को संबोधित करते हुए आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि मिर्जा नाईनी को याद करना वास्तव में हौज़ा के बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक जीवन का नवीनीकरण है। नायनी एक संघर्षशील विद्वान थे, जिन्होंने धर्म, बुद्धि और राजनीति के आपसी रिश्ते को बहुत ही विद्वतापूर्ण ढंग से स्पष्ट किया।

उन्होंने कहा कि हौज़ा इल्मिया की मूल जिम्मेदारी यह है कि वह अपने महान लोगों की विरासत को पुनर्जीवित करे क्योंकि यही विरासत आज के छात्रों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है। आयतुल्लाह अराफी के अनुसार, "मिर्जा-ए-नाईनी धार्मिक बौद्धिकता, बौद्धिक स्वतंत्रता और आध्यात्मिकता के मेल की एक ज्वलंत मिसाल हैं, और उनकी बौद्धिक विरासत आज भी इस्लामी उम्मत के लिए मार्गदर्शक है।

उन्होंने आगे कहा कि आयतुल्लाह नाईनी की चालीस से अधिक वैज्ञानिक और शोध संबंधी कृतियों को इस सम्मेलन में प्रस्तुत किया जा रहा है, जिनमें उनके फतवे, इस्तिफ्ता और उसूली विषय शामिल हैं। ये सभी कृतियां न केवल वैज्ञानिक गहराई रखती हैं, बल्कि फिक़्ह (इस्लामी न्यायशास्त्र) और उसूल (सिद्धांत) की इज्तिहाद प्रणाली में एक नए अध्याय का जोड़ हैं।

हौज़ा इल्मिया के प्रमुख ने कहा कि मिर्जा नायनी का स्कूल ऑफ थॉट, इज्तिहादी परंपरा की रक्षा और आधुनिक बौद्धिक चुनौतियों की समझ का एक सुंदर मेल है। उन्होंने न केवल इल्म-ए-उसूल  को एक व्यवस्थित और सटीक प्रणाली में ढाला, बल्कि आधुनिक बौद्धिक और सामाजिक सवालों के जवाब भी प्रदान किए।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने स्पष्ट किया कि "स्वर्गीय नाईनी ने हमें यह सबक दिया कि एक धार्मिक विद्वान यदि वास्तव में दूरदर्शी है, तो वह न केवल अपने समय की मांगों को समझता है, बल्कि उनका जवाब भी धर्म के सिद्धांतों की रोशनी में देता है।

उन्होंने कहा कि स्वर्गीय नाईनी ने संवैधानिक आंदोलन और साम्राज्यवाद विरोधी विद्रोहों में भी प्रभावी भूमिका निभाई, और नजफ और कर्बला के बौद्धिक केंद्रों में उनकी बौद्धिक नेतृत्त्व का दायरा न केवल ईरान बल्कि पूरे इस्लामी विश्व तक फैला हुआ था।

आयतुल्लाह अराफी ने इस अवसर पर क्रांति के नेता और ग्रैंड मरजा-ए-तकलीद के संदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका मार्गदर्शन इस सम्मेलन के लिए मार्ग का प्रकाश स्तंभ है, और हमें चाहिए कि मरजा के वैज्ञानिक और नैतिक बयानों को व्यावहारिक रूप देने की कोशिश करें।

उन्होंने कहा कि मरहूम नाईनी का पाठ, उनका कलम, उनकी इज्तिहाद की पद्धति और राजनीतिक व सामाजिक जागरूकता, आज के छात्रों के लिए एक आदर्श उदाहरण है। वह न केवल अतीत के एक दिव्य विद्वान थे, बल्कि भविष्य के बौद्धिक नेता भी हैं।

अंत में आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि हौज़ा ए इल्मिया को चाहिए कि वह अतीत के इन विचारकों की बौद्धिक प्रणाली को आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में प्रस्तुत करे, ताकि आने वाली पीढ़ियां नायनी जैसे महान लोगों के बौद्धिकता, स्वतंत्रता और इज्तिहाद के संदेश से लाभान्वित हो सकें।

 

आयतुल्लाह शेख हसन जवाहरी ने क़ुम में आयोजित मिर्ज़ा नाईनी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मरहूम आयतुल्लाह मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन नाईनी न केवल एक उच्च स्तरीय फकीह और उसूली शिक्षक थे, बल्कि वह एक राजनीतिक दूरदर्शिता, धार्मिक गर्व और विलायत-ए-फकीह के सिद्धांत पर पूर्ण विश्वास रखने वाले मुजाहिद आलिम भी थे जिन्होंने अपना जीवन तानाशाही, अत्याचार और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में बिताया।

आयतुल्लाह शेख हसन जवाहरी ने क़ुम में आयोजित मिर्ज़ा नाईनी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मरहूम आयतुल्लाह मिर्ज़ा मोहम्मद हुसैन नायनी न केवल एक उच्च स्तरीय फकीह और उसूली शिक्षक थे बल्कि वह एक राजनीतिक दूरदर्शिता, धार्मिक गर्व और विलायत-ए-फकीह के सिद्धांत पर पूर्ण विश्वास रखने वाले मुजाहिद आलिम भी थे, जिन्होंने अपना जीवन तानाशाही, अत्याचार और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में बिताया।

आयतुल्लाह जवाहरी ने कहा कि मिर्ज़ा नायनी ने अपनी वैज्ञानिक और राजनीतिक ज़िंदगी में तीन बुनियादी सिद्धांतों पर अमल किया,आंतरिक तानाशाही के खिलाफ संवैधानिक प्रणाली का समर्थन, विदेशी साम्राज्यवाद के मुकाबले जिहाद, और इस्लामी देशों की आज़ादी और स्वायत्तता का समर्थन।

उनके मुताबिक नाईनी इस बात के कायल थे कि हुकूमत सिर्फ़ फकीह-ए-आदिल के हाथ में होनी चाहिए, मगर उस ज़माने की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने अमली तौर पर उलमा की निगरानी में एक संवैधानिक व्यवस्था को अस्थायी हल के तौर पर कुबूल किया ताकि शरीयत के सिद्धांतों की पासदारी मुमकिन हो।

उन्होंने वज़ाहत की कि मरहूम नायनी ने कभी भी तानाशाही या मौरूसी हुकुमतों को जायज़ नहीं समझा और न ही आवामी हाकिमियत को मुतलक माना। वह विलायत-ए-फकीह के कायल थे, मगर ज़माने की मसलहतों को मद्देनज़र रखते हुए उन्होंने ऐसी व्यवस्था के कायम करने पर ज़ोर दिया जिसमें उलमा की निगरानी के तहत इंसाफ और शरीयत का नफ़ाज़ मुमकिन हो।

आयतुल्लाह जवाहरी ने कहा कि जब इराक़ में ब्रिटिश कब्ज़ा हुआ तो नायनी ने उसके खिलाफ ऐलान-ए-जिहाद किया और इस्तिकलाल-ए-इराक़ के लिए कोशिशें की। ब्रिटिश दबाव और मुक़ामी हुक्मरानों की मुखालफत के सबब वह अपने कुछ साथियों के हमराह इराक़ से निकाले गए और ईरान वापस आकर हौज़ा-ए-इल्मिया के ज़रिए फिक्री और दीनी जद्दोजहद जारी रखी।

उन्होंने आदे कहा कि मिर्ज़ा नायनी ने हमेशा अक़्ल और तदबीर से काम लिया और इल्म, तकवा और सियासत के इम्तेज़ाज से उम्मत के लिए एक मिसाली रास्ता मुअय्यन किया। वह समझते थे कि अगर किसी वक़्त नज़रिये-ए-विलायत-ए-फकीह का नफ़ाज़ मुमकिन न हो तो कम से कम ऐसी व्यवस्था बाक़ी रखी जाए जो दीन के मुखालिफ न हो और उम्मत को ज़ुल्म और ताग़ूत से महफूज़ रखे।

आयतुल्लाह जवाहरी ने आख़िर में कहा कि मिर्ज़ा नायनी की ज़िंदगी इल्म और अमल, बसीरत और मुजाहिदत, और हकीकत पसंदी का हसीन इम्तेज़ाज है। वह ऐसे फकीह-ए-आदिल और मुदब्बिर थे जिन्होंने न सिर्फ़ अपने ज़माने में शरीयत और इंसाफ की हिफाजत की बल्कि आने वाली नस्लों के लिए दीनी बेदारी और सियासी शुऊर की रौशन मिसाल कायम की।

 

उसताद रमज़ानी ने कहा: मिर्ज़ा नाइनी का चयन और उनकी महान रचनाएँ, ख़ास तौर पर तनबीह-उल-उम्मत व तंज़ीह-उल-मिल्लत, इस्लाम के सियासी फ़लसफ़े की एक झलक हैं। ऐसी हस्ती का सम्मान करना एक बहुत ही मूल्यवान कार्य है।

उसताद रज़ा रमज़ानी ने अल्लामा मिर्ज़ा नाईनी (र) की याद में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के मेहमानों की बैठक में कहा कि मज़मआ-ए-जहानी अहले-बैत (अ) दुनिया भर के अहले-बैत (अ) के अनुयायियों में से निपुण विद्वानों और विचारकों का एक समूह है, जो शिया समाजों के मुद्दों पर विचार-विमर्श और आपसी सहयोग के लिए निरंतर संपर्क में रहते हैं।

मज़मआ-ए-जहानी अहले-बैत (अ) के महासचिव ने कहा: “यह सम्मेलन एक समझदार और दूरदृष्टि वाला कदम था। इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल हर शख्सियत की मौजूदगी बहुत अहम है। आप सभी अपने-अपने क्षेत्रों में असरदार हैं और पूरी इस्लामी दुनिया के लिए लाभदायक भूमिका निभा रहे हैं।”

उसताद रमज़ानी ने आगे कहा: “मिर्ज़ा नाईनी (र) के चयन के साथ-साथ उनकी अज़ीम किताब तनबीह-उल-उम्मत व तंज़ीह-उल-मिल्लत इस्लामिक सियासी फ़लसफ़े का उज्जवल उदाहरण है। ऐसी हस्ती को सम्मानित करना एक बहुत क़ीमती कार्य है।”

मज़मआ-ए-जहानी अहले-बैत (अ) के महासचिव ने कहा: “हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम और नजफ़ की गतिविधियाँ बहुत ही विवेकपूर्ण हैं। इन दोनों केंद्रों को एक-दूसरे से अलग दिखाने के प्रयास किए गए हैं, जैसे कि नजफ़ को ‘पारंपरिक’ और क़ुम को ‘राजनीतिक’ कहकर दिखाया गया, लेकिन वास्तव में दोनों हौज़े एक-दूसरे के पूरक हैं और इस्लामी ज्ञान की लंबी परंपरा का हिस्सा हैं।”

उन्होंने कहा: “फ़िक़्ह अब सिर्फ व्यक्तिगत मसलों तक सीमित नहीं रही, बल्कि सामाजिक, सियासी, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी सक्रिय है। फ़िक़्ह शासन की अमली फ़लसफ़ा है और यह शासन में लागू होने वाले उसूलों और नियमों को समेटती है।”

उसताद रमज़ानी ने अंत में ज़ोर देते हुए कहा: “हमारा विश्वास है कि अहले-बैत (अ) की फ़िक़्ह इंसानी जीवन शैली से जुड़े सभी आधुनिक प्रश्नों का जवाब दे सकती है। आज के दौर में दीनी और इलाही शिक्षाओं की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा महसूस की जा रही है।”

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैनी कोहसारी ने कहा: हौज़ा-ए-इल्मिया के प्रमुख उलेमा और शख्सीयतों का सम्मान करना, इल्मी और दीनी संस्थाओं का एक अहम मिशन और जिम्मेदारी है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैनी कोहसारी ने मज़मआ-ए-जहानी अहल-ए-बैत (अ.) में अल्लामा मिर्ज़ा नाईनी (र) पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के मेहमानों की बैठक में कहा कि आज आवश्यकता है कि हम दुनिया के सामने अपने शिया उलेमा और उनके इल्मी योगदान को पेश करें। यह सम्मेलन दरअसल इल्म, हौज़ा और रुहानियत के संस्थान के अंतरराष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक है।

उन्होंने कहा: इस्लामी गणराज्य ईरान की मुक़द्दस हुकूमत की स्थिति और दुनिया में शियो की असरदार भूमिका को देखते हुए, आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरत है कि हम अपने प्रभावशाली हौज़ा ए इल्मिया को अंतरराष्ट्रीय समाज के सामने पेश करें। दुर्भाग्यवश, हमारे बहुत से बुज़ुर्ग आज भी इस्लामी दुनिया और यहाँ तक कि पश्चिमी शोधकर्ताओं के लिए अज्ञात हैं।

हौज़ा-ए-इल्मिया के अंतर्राष्ट्रीय मामलों के सहायक ने कहा: हौज़ा-ए-इल्मिया के प्रमुख और ऊँचे दर्जे के विद्वानों में से एक मरहूम आयतुल्लाहिल उज़्मा मिर्ज़ा नाईनी थे। उनकी अहमियत के कारण, उनके अफ़कार और विचारों तथा शिक्षाओं पर आठ साल तक विस्तृत अध्ययन किया गया जिसका परिणाम अब सामने आया है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन कोहसारी ने बताया: कुल ४० जिल्दें मिर्ज़ा नाईनी (र) की तहरीरात और तकीरात (पाठों के नोट्स) पर आधारित हैं, और पाँच जिल्दें उनके विचारों पर लिखे वैज्ञानिक लेखों पर आधारित हैं। लेखों की संख्या बहुत अधिक थी, लेकिन इल्मी मापदंडो के आधार पर चुने हुए आलेख प्रकाशित किए गए हैं। कुल मिलाकर, यह ४५ जिल्दों का प्रोजेक्ट प्रकाशन के लिए तैयार है।

उन्होंने कहा: मिर्ज़ा नाईनी के सम्मान में यह बड़ा सम्मेलन क़ुम और नजफ़ के हौज़ा-ए-इल्मिया की सहभागिता से आयोजित किया जाएगा। क़ुम की ओर से, मरकज़े मुदीरियत की उच्च परिषद और जामेअ मुदर्रेसीन शिक्षक समाज) इसकी निगरानी करेंगे। इराक की ओर से, आयतुल्लाहिल उज़्मा सिस्तानी का दफ्तर नजफ़ में इस कार्यक्रम की योजना का केंद्र होगा, और अमली तौर पर अस्तान-ए-मुक़द्दस अलवी और अस्तान-ए-मुक़द्दस हुसैनी सम्मेलन की मेजबानी करेंगे।

उन्होंने अंत में कहा: आज आवश्यक है कि हौज़ा-ए-इल्मिया और उलेमा के बीच सहयोग और संवाद को मजबूत किया जाए। यह तालमेल शिया और सुन्नी उलेमा के बीच ही नहीं, बल्कि पूरी इस्लामी उम्मत और दूसरे मज़ाहिब के लोगों के बीच भी ज़रूरी है।

हाल के वर्ष यह दिखा चुके हैं कि इस्लामी क्रांति के बहुत से आदर्श — जैसे फ़िलिस्तीन की हिमायत, पश्चिमी सभ्यता की आलोचना, और मानवाधिकार के झूठे दावेदार संस्थानों पर अविश्वास — अब वैश्विक संवाद का हिस्सा बन गए हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन कोहसारी ने कहा: इस तरह, मिर्ज़ा नाईनी सम्मेलन न केवल एक महान आलिम का सम्मान है, बल्कि क़ुम और नजफ़ के हौज़ों के रचनात्मक सहयोग का प्रतीक और इस्लामी विश्व के उलेमा के बीच एकता व सहयोग की प्रेरणा भी है।

 

हज़रत आयतुल्लाह सुबहानी ने कहा: मरहूम मिर्ज़ा नाईनी ने फ़िक़्ही उसलूब जैसे मसाइल को हक़ीक़ी और ख़ारिजी हिस्सों में बाँटकर, तथा इल्म और रूहानियत को आपस में जोड़कर वर्तमान और भविष्य के हौज़ात-ए-इल्मिया और शोधकर्ताओं के लिए एक रौशन और असरदार रास्ता पैदा किया।

हज़रत आयतुल्लाह सुभानी ने हौज़ा ए इल्मिया इमाम काज़िम (अ) के कॉन्फ़्रेंस हाल में आयोजित “मिर्ज़ा नाईनी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन” के मौक़े पर अपने संबोधन में इस आलिम के इल्मी और अख़लाक़ी मक़ाम पर ज़ोर देते हुए हौज़ा इल्मिया नजफ़ की हज़ार साल पुरानी तारीख़ की समीक्षा पेश किया और मरहूम नाईनी के चरित्र को हौज़ात इल्मिया की इल्मी और सैद्धांतिक कोशिशो की सततता के लिए बहुत अहम क़रार दिया।

उन्होंने कहा: आज का यह अज़ीम इज्तिमा इस्लामी और शिया समाज को ना-मिटने वाली ख़िदमतें देने वाले और सरज़मीन-ए-नजफ़ अशरफ़ के फलदार दरख़्त से उठने वाले अज़ीम आलिम के सम्मान के लिए आयोजित किया गया है। यह सम्मेलन हौज़ा इल्मिया नजफ़ के हज़ार साल पूरे होने के मौक़े पर आयोजित किया गया है। यह हौज़ा 147 हिजरी क़मरी में स्थापित हुआ था, और अब उसकी स्थापना को एक हज़ार साल पूरे हो चुके हैं।

मरजा-ए-तक़लीद आयतुल्लाह सुबहानी ने मरहूम नाईनी की जीवनी और उनकी रचनाओं तथा प्रभावों के अध्ययन के महत्व पर बोलते हुए कहा: मरहूम नाईनी की शख़्सियत पर बात करने से पहले हौज़ा-ए-नजफ़ की तारीख़ पर नज़र डालना ज़रूरी है। नजफ़ शुरू में एक छोटा-सा सहराई शहर था लेकिन वक्त के साथ यह इल्मी समाज और उलमा का मरकज़ बन गया। शैख़ तूस़ी की हिजरत से पहले भी नजफ़ में इल्म और उलमा मौजूद थे। इब्न अल हज्जाज बग़दादी (मृत्यु 391 हिजरी) शैख़ तूस़ी के जन्म (385 हिजरी) के ज़माने में इशारा करते हैं कि नजफ़ उस वक्त हरम में शेअरी और इल्मी महफ़िलों का केंद्र था। सय्यद अब्दुल करीम इब्ऩ ताऊस अपनी किताब “फ़रहतुल ग़रीब” में लिखते हैं कि वह बग़दाद से नजफ़ आए और वहां के मुजावेरीन के लिए पाँच हज़ार दिरहम मख़्सूस किए — यह बात नजफ़ में क़ुर्रा और फ़ुक़हा की मौजूदगी को साबित करती है।

हज़रत आयतुल्लाह सुबहानी ने शैख़ तूस़ी की इल्मी कोशिश पर ज़ोर देते हुए कहा: शैख़ तूस़ी ने जब बग़दाद में उनकी लाइब्रेरी को आग लगी, तो उन्होंने अपनी किताबों का बड़ा हिस्सा नजफ़ मुन्तक़िल किया और वहीं तफ़्सीर “तिब्यान” जैसी अमूल्य रचनाओं को महफ़ूज़ किया। यह अमल इल्मी कोशिश और फ़िक़्री व साकाफ़ती विरसे की हिफ़ाज़त की बेहतरीन मिसाल है।

उन्होंने मिर्ज़ा नाईनी की शख़्सियत पर कहा: मरहूम मिर्ज़ा नाईनी संकटकाल में मुजाहिदाना अकलानियत और सियासी फ़ुक़ाहत की निशानी हैं। उनकी फ़िक्र दीन के दायरे में अकल, आज़ादी और रूहानियत की तरफ़ रुझान रखती है। इसलिए ऐसी महान शख़्सियतों का सम्मान सिर्फ़ कर्ज़ की अदायगी नहीं बल्कि इस्लामी समाज और हौज़ात इल्मिया के लिए पहचान की नींव भी है।

मरजा-ए-तक़लीद ने मरहूम नाईनी की इल्मी रचनाओ और तालीफ़ात की तरफ़ इशारा करते हुए कहा: मरहूम नाइनी फ़िक़्ह, उसूल, कलाम और हदीस शनासी में बेमिसाल जामियत के साथ नजफ़ के तमाम इल्मी हलक़ों में असरअंदाज़ थे। उनकी रचनाओ मे संतुलन, दक़ीक़ इस्तिदलाल और इज्तिहादी रूह के साथ हौज़ात-ए-इल्मिया और शोधकर्ताओ के लिए मार्गदर्शक हैं। ऐसी शख़्सियतों की महानता छात्रो, शिक्षको और युवा शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणादायक है, और हौज़ा-ए-इल्मिया का मुस्तक़बिल नाईनी जैसे मुजाहिद और बसीर उलमा के नक़्श-ए-क़दम पर चलने में है।

हज़रत आयतुल्लाह सुबहानी ने मिर्ज़ा नाईनी के अख़लाक़ी और रूहानी पहलुओं के बारे में कहा: वह इबादत और शब-बेदारी में हमेशा ख़ौफ़-ए-ख़ुदा और ख़शियत में रहते थे। मरहूम नाईनी ने साबित किया कि इंसान का इल्म जितना ज़्यादा होगा, उसकी ख़शियत और विनम्रता भी उतनी ही ज़्यादा होगी। वह नमाज़ और इबादत में अपने दिल और रूह को ख़ुदा से जोड़ लेते थे, और उनके शागिर्द भी इस रूहानी अज़मत से लाभान्वित होते थे।

 

क़ुम शहर में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के स्थल पर इस्लामी क्रांति के नेता का भाषण जारी किया गया। यह भाषण आलमा मीर्ज़ा मुहम्मद हुसैन नाइनी पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजकों के साथ उनकी मुलाकात के दौरान दिया गया था।

आयातुल्लाहिल उज़्मा खामेनई ने इस मुलाकात में आलमा नाइनी को नजफ अशरफ के प्राचीन हौज़ा इल्मिया के एक उच्च बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तंभ के रूप में सम्मानित किया। उन्होंने नाइनी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी सबसे उल्लेखनीय विशेषता अपनी मजबूत बौद्धिक नींव और अनगिनत नवाचारों पर आधारित उर्फ़ इस्लामी कानून के सिद्धांतों में एक नया ढांचा बनाना था।

उन्होंने आलमा नाइनी के द्वारा उल्लेखनीय छात्रों को प्रशिक्षित करने को भी उनकी एक महत्वपूर्ण विशेषता बताया। उन्होंने कहा कि उनकी एक अन्य प्रमुख विशेषता, जो उन्हें अन्य धार्मिक नेताओं के बीच एक असामान्य व्यक्तित्व बनाती है, उनकी राजनीतिक सोच है, जो उनकी मूल्यवान पुस्तक तनबीह उल-उम्मत में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, हालांकि इस पुस्तक पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता।

इस्लामी क्रांति के नेता ने आलमा नाइनी के राजनीतिक विचारों के एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में एक इस्लामी सरकार के गठन के विचार को बताया, जो तानाशाही के विरोध में विलायत के सिद्धांत पर आधारित हो। उन्होंने कहा कि आलमा नाइनी के अनुसार, सरकार और उसके सभी अधिकारियों को जनता की निगरानी में होना चाहिए और जवाबदेह होना चाहिए। इसके लिए निगरानी और कानून बनाने के उद्देश्य से चुनावों के माध्यम से एक सभाका गठन किया जाना चाहिए। इस सभा द्वारा बनाए गए कानूनों को तभी मान्यता दी जानी चाहिए जब वे फ़क़ीहों और प्रमुख धार्मिक विद्वानों द्वारा समर्थित और प्रमाणित हों।

उन्होंने कहा कि आलमा नाइनी जिस इस्लामी और जनता-आधारित सरकार के समर्थक थे, वह आज की भाषा में "इस्लामी गणतंत्र" है। उन्होंने कहा कि मीर्ज़ा नाइनी ने अपनी पुस्तक तनबीह अल-उम्मत को खुद वापस ले लिया था, क्योंकि उन्होंने और नजफ के अन्य विद्वानों ने जिस संवैधानिक आंदोलन का समर्थन किया था, वह वास्तव में न्यायपूर्ण शासन की स्थापना और तानाशाही के अंत के लिए था। लेकिन जो कुछ अंग्रेजों ने ईरान में संवैधानिक आंदोलन के नाम पर शुरू किया, वह इसके बिल्कुल विपरीत था।

इस मुलाकात में ईरान के उच्च धार्मिक शिक्षा संस्थानों के प्रमुख आयातुल्लाह आराफी ने आलमा नाइनी को श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले सम्मेलन के कार्यक्रमों और गतिविधियों के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।

 

मरहूम आयतुल्लाह मिर्ज़ा मुहम्मद हुसैन नाईनी (र) की याद में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन समारोह हौज़ा ए इल्मिया इमाम काज़िम (अ) के सम्मेलन कक्ष में आयोजित किया गया। इस पावन कार्यक्रम की शुरुआत आयतुल्लाहिल उज़्मा जाफ़र सुब्हानी (द) के भाषण से हुई, जिसमें उन्होंने मरहूम नाईनी (र) की वैज्ञानिक और बौद्धिक उपलब्धियों, उनकी उग्र तार्किकता और इस्लामी राजनीति एवं न्यायशास्त्र पर उनके गहन प्रभाव पर प्रकाश डाला। सम्मेलन में प्रमुख धार्मिक अधिकारियों, विद्वानों, शोधकर्ताओं और विभिन्न इस्लामी एवं शैक्षणिक संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन के विभिन्न शैक्षणिक सत्रों में मिर्ज़ा नाईनी के विचारों और फ़लसफ़ा, इज्तिहाद और राजनीतिक विचारों पर लेख प्रस्तुत किए गए।

मुंबई / ज़ूम के माध्यम से एस.एन.एन. चैनल की ओर से “फ़रियाद-ए-फ़िलस्तीन” के शीर्षक पर हुज्‍जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद हमीदुल हसन तक़वी की अध्यक्षता में एक कॉन्फ़्रेंस आयोजित की गई।

पूरी दुनिया मे फ़िलिस्तीन के मज़लूमो के समर्थन ने यह साबित कर दिया कि इंसानियत ज़िंदा हैः हुज्जतुल इस्लाम सय्यद हमीदुल हसन तक़वी

शिकागो (अमेरिका) से हुज्‍जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद महबूब मेहदी आब्दी नक़वी ने कहा कि मौला-ए-कायनात हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ) ने अपनी वसीयत में तक़वा और अल्लाह से डर के साथ-साथ मज़लूमों की मदद पर बहुत ज़ोर दिया है, और इसमें किसी धर्म की शर्त नहीं लगाई गई। यह साबित करता है कि मज़लूम की समर्थन राजनीति नहीं बल्कि इंसानियत और अल्लाह के हुक्म की वजह से है।

उन्होंने कहा, जिस तरह हमने इसराईल के ज़ुल्म का विरोध किया है, उसी तरह उस ईरान के शाह का भी विरोध किया था जो बाहरी रूप से तो शिया था लेकिन हक़ीक़त में ज़ालिम था।

पूरी दुनिया मे फ़िलिस्तीन के मज़लूमो के समर्थन ने यह साबित कर दिया कि इंसानियत ज़िंदा हैः हुज्जतुल इस्लाम सय्यद हमीदुल हसन तक़वी

इस कॉन्फ़्रेंस के अध्यक्ष और जामिया नाज़ामिया लखनऊ के अमीद हुज्‍जतुल इस्लाम सय्यद हमीदुल हसन तक़वी ने अपने देशवासियों को दीपावली की बधाई दी और कहा कि इस्लाम एक व्यापक नज़र रखने वाला धर्म है जो हर धर्म के मानने वालों से मोहब्बत और भाईचारे की शिक्षा देता है।

उन्होंने अपनी विद्वत्तापूर्ण तक़रीर में फ़िलस्तीन के मज़लूमों की खुलकर हिमायत की और इसराईल के ज़ुल्म की सख़्त मज़म्मत करते हुए मज़लूमों के लिए दुआ की।

मौलाना ने कहा कि कुरआन में “काफ़िर” और “कुफ़्र” के शब्दों को लेकर कुछ लोग इस्लाम की तस्वीर गलत पेश कर रहे हैं, जबकि ये शब्द उन लोगों के लिए हैं जिन्होंने हमारे नबी को तकलीफ़ें दीं और उन पर हमला किया। नबी करीम (स) के मक्का में रहने के दौरान कोई लड़ाई नहीं हुई, और मदीना मुनव्वरा में जो जंगें हुईं वो सारी की सारी रक्षात्मक (दिफ़ाई) थीं।

पूरी दुनिया मे फ़िलिस्तीन के मज़लूमो के समर्थन ने यह साबित कर दिया कि इंसानियत ज़िंदा हैः हुज्जतुल इस्लाम सय्यद हमीदुल हसन तक़वी

अहल-ए-सुन्नत वल-जमाअत से ताल्लुक रखने वाले मशहूर क़ारी, मौलाना दानिश नबील क़ासमी ने अपनी तक़रीर में इसराईल को चेतावनी दी कि ज़ालिम को याद रखना चाहिए कि उसकी उम्र ज़्यादा नहीं होती, हर ज़ालिम को एक दिन अपने अंजाम तक पहुँचना पड़ता है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में शिया-सुन्नी एकता बहुत ज़रूरी है।

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लखनऊ से मौलाना सय्यद हैदर हसन आले नजमुल मिल्लत ने कॉन्फ़्रेंस के आयोजकों, ख़ास तौर पर एस.एन.एन. चैनल के एडिटर-इन-चीफ़ मौलाना अली अब्बास वफा की कोशिशों की तारीफ की। उन्होंने कहा कि ग़ज़्ज़ा में हुआ ज़ुल्म इंसानियत के लिए शर्म की बात है। हज़ारों मर्द, औरतें और बच्चे इसराईल की कायराना बमबारी में शहीद हुए, और फिर बाहरी मदद रोक कर लाखों फ़िलस्तीनियों को भूख-प्यास से मरने पर मजबूर किया गया। यह इंसानियत-विरोधी अमल सख़्त नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है।

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पुणे से मौलाना असलम रिज़वी ने मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फ़तह अल-सीसी की शर्म-अल-शैख़ में हुई बैठक को फ़िलस्तीन के मज़लूमों के ख़िलाफ़ एक साज़िश बताया। उन्होंने कहा कि सीज़फ़ायर के नाम पर इसराईल के खिलाफ़ हो रहे ऐतिहासिक विरोध-प्रदर्शन को रोकने की कोशिश की गई ताकि लोग अपने घर लौट जाएँ। लेकिन असलियत में आज भी ग़ज़्ज़ा पर हमले जारी हैं। यह झूठी सीज़फ़ायर तारीख़ में इंसानियत के साथ सबसे बड़ा धोखा कहलाएगी।

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एस.एन.एन. चैनल के एडिटर-इन-चीफ़ मौलाना अली अब्बास वफा ने कॉन्फ़्रेंस के आयोजन और संचालन दोनों की ज़िम्मेदारी निभाई।