رضوی

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मौलाना ज़हीन अली नक़वी की मेज़बानी में “क़ौम-साज़ी और आपसी रिश्तों” के विषय पर बांड़ी सिद्दाँ जिला झेलम मे एक बैठक आयोजित की गई। इसमें उलमा-ए-कराम के साथ इलाके के बुज़ुर्गों, सामाजिक और शैक्षिक हस्तियों तथा राजनीतिक प्रतिनिधियों ने भरपूर भाग लिया।

मौलाना ज़हीन अली नक़वी की मेज़बानी में “क़ौम-साज़ी और आपसी रिश्तों” के विषय पर बांड़ी सिद्दाँ जिला झेलम मे एक बैठक आयोजित की गई। इसमें उलमा-ए-कराम के साथ इलाके के बुज़ुर्गों, सामाजिक और शैक्षिक हस्तियों तथा राजनीतिक प्रतिनिधियों ने भरपूर भाग लिया।यह महज़ एक मुलाक़ात नहीं थी, बल्कि क़ौम की तामीर (निर्माण), फ़िक्री जागरूकता और आपसी एकजुटता की तरफ़ एक असरदार क़दम थी।

बैठक का केंद्रीय विषय यह था कि “हमें क़ौम बनने की ज़रूरत है”। इसमें इस बात पर बातचीत हुई कि क़ौम बनने के लिए किन शर्तों और मूल सिद्धांतों की ज़रूरत होती है — रिश्ता, परामर्श और सहनशीलता।

शोरक़ा ने ज़ोर देकर कहा कि क़ौम सिर्फ़ नारों या किसी जुड़ाव के नाम पर नहीं बनती, बल्कि आपस के रिश्तों, बातचीत, एक-दूसरे के एहसास और सम्मान से बनती है। अगर हम छोटे-मोटे मतभेदों के बावजूद सहनशीलता, हौसला-अफ़ज़ाई और कुर्बानी का जज़्बा पैदा करें तो यही रवैये क़ौम की बुनियाद रखते हैं।

सभा में इस बात पर इत्तेफ़ाक किया गया कि समाजी और क़ौमी फ़ैसले बंद कमरों में नहीं, बल्कि खुली मशविरा और सामूहिक सोच से किए जाने चाहिएं। हर तबक़े, हर सोच और हर ज़िम्मेदार व्यक्ति को शामिल करना चाहिए ताकि फ़ैसले सामूहिक दृष्टि और न्याय पर आधारित हों। ऐसी क़ौम जहाँ मशविरा से फ़ैसले होते हैं, वहाँ मतभेद बिखरता नहीं, बल्कि सिमटता है। मशविरा ही वह रास्ता है जो बुद्धि, सब्र और इत्तेहाद को जन्म देता है — और यही अहले-बैत (अ) की तालीमात का असल जौहर है।

शोरक़ा ने यह हक़ीक़त भी सामने रखी कि “इख़्तिलाफ़ कोई जुर्म नहीं, लेकिन इख़्तिलाफ़ में नफ़रत पैदा करना जुर्म बन जाता है।” हमें यह सीखना होगा कि मामूली सैद्धांतिक या सामाजिक मतभेद की बुनियाद पर किसी का पूरा इंकार न किया जाए, बल्कि हर व्यक्ति को उसके किरदार, सेवा और मकाम के मुताबिक़ स्वीकार किया जाए। यही सोच समाज में संतुलन और भाईचारे को जन्म देती है।

बैठक में यह बात भी तय की गई कि सामाजिक, फ़िक्री और तन्ज़ीमी मसाइल का हल आपसी रिश्तों, मशविरा और सहयोग में छिपा है। जब उलमा, शैक्षिक, सामाजिक और राजनीतिक तबक़े मिलकर चर्चा करेंगे तो मसाइल हल होंगे, गलतफ़हमियाँ कम होंगी, और क़ौम में इत्तेहाद पैदा होगा।

इस मौक़े पर मौलाना ज़हीन अली नक़वी ने कहा कि हमें अपनी व्यक्तिगत केंद्रता से निकलकर सामूहिक भलाई को प्राथमिकता देनी होगी। क़ौमें उन लोगों से बनती हैं जो एक-दूसरे से जुड़ते हैं, न कि जो एक-दूसरे को काटते हैं।

उन्होंने न्याय के विषय पर कहा कि हम अली (अ) के मानने वाले हैं और अली (अ) की पहचान ही “अदल” है। इसलिए हमारी हिमायत या मुख़ालफ़त किसी निजी लाभ या रिश्तेदारी पर नहीं, बल्कि उसूल और इंसाफ़ पर आधारित होनी चाहिए।

मौलाना ने कहा कि अगर हम सचमुच “अलवी रास्ते” के मुसाफ़िर हैं तो हर फ़ैसले में इंसाफ़ और ईमानदारी को बुनियाद बनाना होगा। अली (अ) ने आदल के लिए कुर्बानियाँ दी हैं, और उनके चाहने वालों को भी उसी आदल का परचम उठाए रखना चाहिए।

अंत में मौलाना ज़हीन अली नक़वी ने कहा कि यह वक़्त का तक़ाज़ा है कि हम सब अपने निजी घेरे से निकलकर सामूहिक फ़लाह को मक़सद बनाएं। क़ौम तब बनती है जब लोग एक-दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करें, मशविरा को अहमियत दें, और फ़ैसले इंसाफ़ व अकल की बुनियाद पर करें।

उन्होंने कहा कि हमें अपनी सिनफ में रिश्ते और ताल्लुक़ात मज़बूत करने हैं, सहनशीलता को अपना शिआर बनाना है, और सामूहिक हित के लिए व्यक्तिगत लाभ को कुर्बान करना है। यही तरीका क़ौमों को ज़िंदा रखता है — और यही अहले-बैत (अ) की तालीमात का निचोड़ है।

 

आज शैतानी ताक़तों ने हक़ के मोर्चे के ख़िलाफ़ जंग में अपनी सारी ताक़त लगा दी है। इसलिए विभिन्न धार्मिक आंदोलनों को जिहादे तबइनऔर व्यक्तियों की सही परवरिश का केंद्र बनना चाहिए।

साज़मान तबलीग़ात-ए-इस्लामी के प्रमुख  हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहम्मद क़ुमी ने तेहरान में धार्मिक संगठनों के ख़य्येरीन और सक्रिय सदस्यों के साथ आयोजित एक बैठक में कहा: आज शैतानी ताक़तों ने हक़ के मोर्चे के ख़िलाफ़ जंग में अपनी सारी ताक़त लगा दी है। इसलिए विभिन्न धार्मिक आंदोलनों को जिहादे तबइनऔर व्यक्तियों की सही परवरिश का केंद्र बनना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सर्वोच्च नेता मौजूदा दौर की जंग को केवल सैनिक जंग नहीं समझते। उनका मानना है कि शैतान ने हक़ के मोर्चे से टकराने के लिए अपनी सारी शक्ति दांव पर लगा दी है। आज जो संघर्ष जारी है, वह हमें दिफ़ा-ए-मुक़द्दस के दौर की याद दिलाता है।

हुज्‍जतुल इस्लाम मोहम्मद क़ुमी ने आगे कहा: ऐसे वक्त में जनता के दिल जीतने चाहिए, उनके विचार और सोच को मज़बूत करना चाहिए। अगर यह काम हो गया तो दुनिया की कोई ताक़त हमारे रास्ते को नहीं रोक सकेगी।

उन्होंने आख़िरज़मां से संबंधित रिवायतों का हवाला देते हुए कहा: रिवायतों में आया है कि आख़िरज़मां में शैतान कुफ़्र को फैलाने के लिए शरहे सदर तक पहुँच जाता है। यानी बुरी बातों को करने में वह धैर्य रखता है, और शक्ति और अधिकार में विस्तार तक पहुँच जाता है, यानी उसकी ताक़त बढ़ जाती है और उसका हाथ खुल जाता है।

साज़मान तबलीग़ात-ए-इस्लामी के प्रमुख ने कहा: सुप्रीम लीडर फ़रमाते हैं कि ऐसे हालात में जिहादे तबइन पर ज़्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि लोग इस अशूराई जंग की हक़ीक़त को पूरी तरह समझ सकें जिसमें हम आज मौजूद हैं।

अंत में, उन्होंने धार्मिक संगठनों के कार्यकर्ताओं से कहा: धार्मिक संगठनों की बरकतें केवल हज़रत सैय्यदुश्शोहदा इमाम हुसैन (अ) से भावनात्मक लगाव तक सीमित नहीं हैं। यह लोक कल्याण उससे कहीं अधिक बरकतमंद हो सकता है जितना अब है। लेकिन हममें से अधिकतर लोगों ने अपनी ख़ैराती और परोपकारी कोशिशों को सीमित कर दिया है। उदाहरण के तौर पर हमारी नज़र बस स्कूलों के निर्माण तक रह जाती है, जबकि यह भी एक नेक काम है, पर असल में स्कूल के बच्चों की सही परवरिश और प्रशिक्षण प्रणाली का निर्माण स्कूल की इमारत से कहीं ज्यादा महत्व रखता है। काश कि हमारे खय्येरीन लोग इन बातों पर पहले से अधिक ध्यान दें।

 

 

हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के सचिव आयतुल्लाह मोहम्मद मह़दी शब ज़िंदादार ने फ़िक़्ह और उसूल के मदरसों और तखस्सुसी केन्द्रों के प्रबंधकों तथा शिक्षकों के साथ एक बैठक की। इस मौक़े पर उन्होंने उनकी राय, विचार और सुझावों को ध्यान से सुना और उनसे विचार-विमर्श किया।

 हौज़ा ए इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के सचिव आयतुल्लाह मोहम्मद मह़दी शब ज़िंदादार ने फ़िक़्ह और उसूल के मदरसों और तखस्सुसी केन्द्रों के प्रबंधकों तथा शिक्षकों के साथ एक बैठक की। इस मौक़े पर उन्होंने उनकी राय, विचार और सुझावों को ध्यान से सुना और उनसे विचार-विमर्श किया।

रिपोर्ट के अनुसार इस बैठक की शुरुआत में  हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन अहमद फर्रुख़ फ़ाल जो हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के सचिवालय से जुड़े हैं, ने इन सिलसिलेवार बैठकों का ज़िक्र करते हुए कहा कि हम इन निरंतर बैठकों के तहत हौज़ा की सुप्रीम काउंसिल और तखस्सुस केन्द्रों के आदरणीय प्रबंधकों और शिक्षकों की सेवा में हाज़िर हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि समय की कमी की वजह से हम सभी व्यक्तियों के विचार नहीं सुन सकते। इसलिए यह तय किया गया है कि हर मदरसे और केन्द्र से एक प्रतिनिधि अपने दृष्टिकोण और सुझाव प्रस्तुत करेगा।

अपनी बातचीत के दौरान अहमद फर्रुख़ फ़ाल ने हौज़ा इल्मिया की सुप्रीम काउंसिल के कुछ चल रहे कार्यक्रमों की ओर संकेत किया और बताया कि अब तक सर्वोच्च नेता के निर्देशों के तहत चार योजनाएँ —  इस्लामी सभ्यता, बलाग़े मुबीन, मदारिक और धार्मिक शीर्षक — एजेंडा में शामिल की जा चुकी हैं।

उन्होंने अंत में कहा कि इंशाअल्लाह बहुत जल्द हम मराज ए एजाम ए तक़लीद और विशेष रूप से सुप्रीम लीडर की मूल्यवान राय से लाभ उठाकर हौज़ा इल्मिया की और प्रगति और उन्नति का प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन करेंगे।

 

 

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने गंभीर बजट संकट के कारण बांग्लादेश में रोहिंग्या बच्चों के लिए अपने कार्यक्रमों के ठप होने की चेतावनी दी है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने चेतावनी दी है कि बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने की एजेंसी की क्षमता तेज़ी से घट रही है जिससे संकेत मिलता है कि गंभीर बजट संकट के कारण 2026 तक उसके मानवीय कार्यक्रम पूरी तरह से ठप हो सकते हैं।

कॉक्स बाज़ार शिविरों का दौरा करने के बाद, यूनिसेफ की साझेदारी और धन उगाहने की निदेशक कार्ला हद्दाद मर्दिनी ने कहा कि मौजूदा बजट संकट रोहिंग्या बच्चों की वर्षों की प्रगति के लिए ख़तरा है। उन्होंने आगे कहा कि कक्षाओं के बंद होने और सेवाओं में कटौती से उन लाखों बच्चों का भविष्य ख़तरे में है जिनकी जान ख़तरे में है।

उन्होंने बताया कि शिक्षा, जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाएँ धन की कमी से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि संगठन हर डॉलर का अधिकतम लाभ उठाने की पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समर्थन कम होने के कारण उसके विकल्प कम होते जा रहे हैं।

मर्दिनी ने कहा कि 2026 की शुरुआत में रोहिंग्या शरणार्थी संकट पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया के कारण उसे धन की कमी का सामना करना पड़ेगा, और अंतर्राष्ट्रीय सहायता में आधी कटौती का अनुमान है, हालाँकि यह अभी भी वर्तमान ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने कहा कि बच्चों में गंभीर कुपोषण की दर 2017 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है, और चेतावनी दी कि धन की निरंतर कमी से भीड़भाड़ वाले शिविरों में एक आसन्न मानवीय आपदा आ सकती है।

इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने चेतावनी दी थी कि शिक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय धन में भारी कमी के कारण 2026 तक 3,50,000 रोहिंग्या शरणार्थी बच्चे स्थायी रूप से स्कूल से बाहर हो सकते हैं।

 

बरजख और क़ियामत दोनों जगह इंसान से सवाल किए जाते हैं और उसका हिसाब-किताब होता है लेकिन इन दोनों जगहों के सवालों की प्रकृति, गहराई और मकसद बिल्कुल अलग होता हैं। यही फर्क इंसान की आखिरी मंजिल और उसके अंजाम को शुरू से ही साफ कर देता है।

बरजख और क़ियामत दोनों जगह इंसान से सवाल किए जाते हैं और उसका हिसाब-किताब होता है लेकिन इन दोनों जगहों के सवालों की प्रकृति, गहराई और मकसद बिल्कुल अलग होता हैं। यही फर्क इंसान की आखिरी मंजिल और उसके अंजाम को शुरू से ही साफ कर देता है।

ब्रज़ख़ और क़यामत के सवाल

इंसान से एक सवाल कब्र के संसार में होता है और एक सवाल क़यामत के दिन।

ब्रज़ख़ में होने वाला सवाल वास्तव में एक प्रारंभिक पूछताछ है, यानी इंसान से उसके आस्थाओं और कुछ बुनियादी कर्मों के बारे में सवाल किया जाता है।

लेकिन क़यामत में, आस्थाओं, नैतिकता और कर्मों की सभी बारीकियों के बारे में पूछा जाएगा।

उदाहरण के लिए:

ब्रज़ख़ में पूछा जाता है: क्या तुम नमाज़ पढ़ते थे या नहीं?

लेकिन क़यामत में पूछा जाएगा: तुमने जो नमाज़ पढ़ी, उसकी नीयत क्या थी? क्या कपड़ा ग़स्बी तो नहीं था? क़िराअत रुकू और सज्दे सही थे या नहीं? यानी वहाँ हर एक बारीकी पर सवाल होगा।

ब्रज़ख़ में अधिकतर मूलभूत आस्थाओं से संबंधित सवाल किया जाता है, वे आस्थाएँ जो इंसान के व्यक्तित्व और जीवन की दिशा को निर्धारित करती हैं।

आस्था: व्यक्तित्व की आधारशिला

इंसान के व्यक्तित्व के निर्माण में सबसे बुनियादी और प्रभावशाली तत्व उसकी आस्थाएँ हैं। हालाँकि नैतिकता और कर्म भी प्रभाव रखते हैं, लेकिन मुख्य केंद्र आस्था ही है। इसीलिए फ़रिश्ते सबसे पहले इसी के बारे में पूछते हैं:

तुम्हारा माबूद कौन था?

तुम्हारा दीन क्या था?

तुम्हारे पैग़ंबर और इमाम कौन थे?

फिर कुछ ख़ास कर्मों के बारे में पूछा जाता है, जैसे:नमाज़, रोज़ा, ख़ुम्स, हज, क्योंकि ये कर्म ईमान की सच्चाई के गवाह हैं।

इसी तरह सवाल होगा:

  • तुम्हारी कमाई कहाँ से थी? हलाल थी या हराम?]

तुमने अपनी जवानी और ज़िंदगी कहाँ खर्च की?

कर्म क्यों पूछे जाते हैं?

ये कर्म वास्तव में इस बात का मापदंड हैं कि इंसान की आस्थाएँ वास्तविक थीं या सिर्फ़ ज़ुबानी।

अगर कोई कहे: मैं ख़ुदा पर ईमान रखता हूँ, तो फ़रिश्ते कहेंगे: सबूत क्या है? नमाज़ कहाँ है?

अगर तुम इमाम और नबी को मानते थे तो फिर उनके हक़ क्यों नहीं अदा किए? ख़ुम्स क्यों नहीं दिया? हराम कमाई क्यों अपनाई? उम्र को क्यों बेकार और गुनाहों में बर्बाद किया?

ये सवाल इम्तिहान की तरह समय लेकर नहीं किए जाते, बल्कि मलाइका (फ़रिश्ते) ख़ुद-ब-ख़ुद इंसान के अंदर से हक़ीक़त ज़ाहिर कर देते हैं।

ब्रज़ख़ का परिणाम

अगर इंसान इन सवालों में सफल हो जाए, तो ब्रज़ख़ उसके लिए आराम और राहत का स्थान बन जाता है।

उस पर जन्नत का एक दरवाज़ा खुल जाता है, यानी क़यामत की जन्नत की एक झलक उसे ब्रज़ख़ में दे दी जाती है।

लेकिन अगर इंसान इन सवालों में नाकाम हो जाए, तो उस पर जहन्नम का दरवाज़ा खोल दिया जाता है।

यानी इंसान का परिणाम पहले ही चरण में स्पष्ट हो जाता है, और कब्र का सवाल इसी प्रारंभिक चरण में किया जाता है।

ब्रज़ख़ में किसी तरह की भटकन नहीं होती।

तेहरान के इमाम ए जुमआ हुज्जतुल इस्लाम अबू त़ुराबी फ़र्द ने गाज़ा की लड़ाई और शहीदों को सलाम करते हुए कहा कि गाज़ा की हिम्मत ने ज़ालिम इसराइली सेना और सुरक्षा व्यवस्था की नींव हिला दी है। शहीद याहिया अल-सनवार आशूराई की लड़ाई का प्रतीक बन गए हैं।

तेहरान के इमाम जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन सैय्यद मोहम्मद हसन अबू तुराबी फ़र्द ने पिछले दिन जुमे की नमाज़ के खुतबे में फिलिस्तीनियों के प्रतिरोध और प्रतिरोध के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि आज दुनिया फिलिस्तीनी जनता के शानदार प्रतिरोध के सामने सम्मान के साथ खड़ी है जबकि जायोनी मीडिया खुद अपनी सामरिक हार स्वीकार कर रहा है।

तेहरान के जुमआ के इमाम के डिप्टी ने कहा कि ग़ाज़ा का प्रतिरोध ईमान, सब्र और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है और शहीद याहया सनवार की तस्वीर वैश्विक स्तर पर जायोनी काल्पनिक सैन्य शक्ति की हार का प्रतीक बन चुकी है।

हुज्जतुल इस्लाम अबू तुराबी फ़र्द ने ऑपरेशन अल-अक्सा तूफान को प्रतिरोध नेतृत्व की बुद्धिमत्ता और शक्ति का प्रतीक बताते हुए कहा कि इस ऑपरेशन ने इजरायली खुफिया और सुरक्षा प्रणाली को लकवाग्रस्त कर दिया और प्रतिरोध शक्तियों को अधिकृत क्षेत्रों में गहराई तक पहुंच प्रदान की।

उन्होंने आगे कहा कि हमास को खत्म करने के अमेरिका और पश्चिम के दावे विफल साबित हुए और इजरायल को बातचीत के लिए मजबूर होना पड़ा।

हुज्जतुल इस्लाम अबू तुराबी फ़र्द ने फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई को प्रतिरोध के मजबूत इरादे की जीत बताया और कहा कि दुश्मन पूरी सैन्य और मीडिया शक्ति के बावजूद एक भी बंधक को मुक्त नहीं करा सका।

उन्होंने कहा कि इजरायल आंतरिक राजनीतिक संकट, जनता के अविश्वास और आर्थिक दबाव का सामना कर रहा है। अक्टूबर 2023 से जारी युद्धों का खर्च कई सौ अरब डॉलर तक पहुंच चुका है।

तेहरान के जुमे के इमाम ने हिज़्बुल्लाह, यमन, इराक और सीरिया की प्रतिरोध शक्तियों को साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ निर्णायक शक्ति बताया और कहा कि प्रतिरोध धुरी ही जायोनी मंसूबों की विफलता का कारण बन रही है।

उन्होंने कहा कि हाल के अनुभवों ने साबित कर दिया है कि जनता के दृढ़ संकल्प, राजनीतिक और आर्थिक दबाव और प्रतिरोध गठबंधन ने क्षेत्र की स्थिति को बदल दिया है और मज़लूमों के इरादे की जीत निकट है।

 

काज़ान रूस के ऑर्थोडॉक्स थियोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष ने गर्भपात जैसे नैतिक चुनौतियों के वैश्विक होने पर ज़ोर देते हुए कहा: इस्लाम और ईसाई धर्म के बीच सहयोग सांस्कृतिक दबावों का सामना करने का बुनियादी उपाय है, जो आधुनिक व्यक्ति को मौलिक मूल्यों से दूर होने पर मजबूर करता है।

काज़ान रूस की ऑर्थोडॉक्स थियोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष पादरी निकिता कुज़नेत्सोफ ने गुरुवार को इस्लाम और ईसाई धर्म में नैतिकता के तुलनात्मक अध्ययन पर दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में, जो इस्लामी विज्ञान और संस्कृति संस्थान द्वारा आयोजित किया गया था, इस बैठक को एक शुभ कदम और रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च द्वारा इस्लाम की गहरी समझ पाने का अवसर बताया।

पादरी कुज़नेत्सोफ ने सम्मेलन के मुख्य विषय की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा: आज जिस मुद्दे पर हम चर्चा कर रहे हैं, वह एक सामान्य और वैश्विक चुनौती है; जैसे गर्भपात की नैतिक समस्या जिसने सभी धर्मों को कठिन सवालों में डाल दिया है।

उन्होने कहा: ये चुनौतियां भौगोलिक और धार्मिक सीमाओं को नहीं पहचानती और इनके मुकाबले के लिए एक वैश्विक दृष्टिकोण जरूरी है। अफसोस की बात है कि आधुनिक व्यक्ति कई बार अपने बुनियादी मूल्यों से दूर हो जाता है और सांस्कृतिक तथा सामाजिक दबावों के तहत किसी तरह के "नए धर्म" को स्वीकार करता है जो पाप और गुमराही की ओर झुका हुआ हो।

पादरी कुज़नेत्सोफ ने ज़ोर देकर कहा: हमें ऐसे संवाद के माध्यम से ईश्वरीय धर्मों के असली मूल्यों को ज़िंदा रखना चाहिए। इस बैठक में हुई आध्यात्मिक सहयोग ने दिखाया कि धार्मिक संवाद एक बुनियादी ज़रूरत है; अन्यथा समाजों में गलतफहमी, दूरी और अविश्वास पैदा होगा।

रूस की ऑर्थोडॉक्स थियोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष ने इस्लामी दुनिया को मानवता की साझा समस्याओं का सामना करने में एक सच्चा साथी और सहयोगी बताया और धार्मिक बातों का हवाला देते हुए कहा कि विचारधारा और धर्म से परे इंसानों के बीच सहानुभूति धार्मिक मेलजोल का मुख्य प्रतीक है।

उन्होंने अपने समाज का वर्णन करते हुए कहा: रूस, विशेष रूप से काज़ान शहर, बहु-राष्ट्रीय और बहु-धार्मिक सह-अस्तित्व का एक चमकीला उदाहरण है। यहां की सड़कों पर चर्च और मस्जिदें एक साथ हैं और घंटी की आवाज़ और अजान एक साथ गूंजते हैं, जो धर्मों के बीच असली समझदारी की संभावना को दर्शाता है।

पादरी कुज़नेत्सोफ ने कहा: यह मेलजोल धार्मिक नेताओं के लिए भी ज्ञानवर्धक है और मुसलमान धर्मगुरुओं के साथ चर्च की तबलीगी गतिविधियों में बातचीत के माध्यम से सीखे गए अनुभवों का उपयोग करते हैं और इस्लामी मूल्यों को ईसाई नैतिकता के लिए प्रेरणा स्रोत मानते हैं।

 

 

मदरसा ए हज़रत नर्जिस खातून स.ल.की प्रबंधक ने एक नैतिक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक दूसरे के लिए दुआ करना आध्यात्मिक विकास की आधारशिला है।

इस्फ़हान, मदरसा ए हज़रत नर्जिस खातून स.ल.की प्रबंधक ने एक नैतिक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक दूसरे के लिए दुआ करना आध्यात्मिक विकास की आधारशिला है।

मोहतरमा मलकियान ने दूसरों के लिए दुआ करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा,हर इंसान की दुआ यहाँ तक कि एक गैर-मुस्लिम की भी दूसरे के लिए प्रभावी होती है, फिर एक मुसलमान की दुआ तो दूसरे मुसलमान के लिए और भी अधिक प्रभावी होती है! दुआ बिना ज़ुबान के अल्लाह से बातचीत है लेकिन साथ ही यह दो आत्माओं के बीच एक गुप्त संबंध भी है।

उन्होंने नैतिक शिक्षाओं पर लगातार अमल करने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हुए, निरंतर व्यवहार और आध्यात्मिक अभ्यास को आत्मिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण कारक बताया। इसके बाद, तालिबाओं के जीवन में शैक्षिक निरंतरता स्थापित करने के उद्देश्य से उन्होंने छात्राओं के नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए चालीस दिवसीय कार्यक्रम तैयार करने की घोषणा की।

मदरसा हज़रत नर्जिस खातून स.ल. दौलताबाद की प्रबंधिका ने आगे आध्यात्मिक विकास के लिए व्यावहारिक योजना बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए तालिबाओं को छह नैतिक और इबादती सुझाव याद दिलाए जिनमें लगातार दो दिनों तक गुनाह, विशेष रूप से झूठ से दूरी जो बुराइयों से दूर रहने की चाबी है शामिल है।

मुस्तहबात पर अमल करना जैसे हौज़े (मदरसे) में प्रवेश करते समय वज़ू करना, दिल की शांति के लिए रोज़ाना ज़िक्र और इस्तिग़फ़ार करना, कम से कम एक पेज अनुवाद के साथ रोज़ाना तिलावत करके क़ुरान से लगाव बनाए रखना और अंत में आदाब-ए-मुआशरत का पालन करना, विशेष रूप से उस्तादों के साथ व्यवहार में, जैसे उनके सम्मान में खड़े होना और संबोधन में बहुवचन क्रियाओं का उपयोग करना।

मोहतरमा मलकियान ने अपने संबोधन के अंत में याद दिलाया: हम हर रात एक-दूसरे के लिए दुआ करें और आज की रात से ही इस अच्छी परंपरा को विशेष रूप से शुरू करें।

 

ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा है कि धार्मिक शिक्षा और प्रचार में वास्तविक सफलता तभी संभव है जब इसकी नींव मजबूत वैज्ञानिक और शोध सिद्धांतों पर हो, क्योंकि शोध के बिना न तो शिक्षा फलदायी बनती है और न ही प्रचार स्थायी प्रभाव छोड़ता है।

ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा है कि धार्मिक शिक्षा और प्रचार में वास्तविक सफलता तभी संभव है जब इसकी नींव मजबूत वैज्ञानिक और शोध सिद्धांतों पर हो क्योंकि शोध के बिना न तो शिक्षा फलदायी बनती है और न ही प्रचार स्थायी प्रभाव छोड़ता है।

पवित्र शहर क़ुम में हौज़ात ए इल्मिया के प्रबंधकों के तेरहवें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि धार्मिक मदरसों के विकास की निर्भरता शोध और अध्ययन पर है। मदरसों का कर्तव्य है कि वे ऐसे छात्र तैयार करें जो ज्ञान और समझ में अद्वितीय हों, बौद्धिक रूप से उम्मत का मार्गदर्शन कर सकें और आधुनिक युग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नए विचार और सिद्धांत प्रस्तुत कर सकें।

उन्होंने कहा कि हौज़ात ए इल्मिया की मूल जिम्मेदारियाँ दो हैं,पहली छात्रों की वैज्ञानिक, नैतिक और बौद्धिक शिक्षा, जिसके लिए शिक्षा, शोध और आत्मशुद्धि का आपसी संबंध आवश्यक है; और दूसरी नए विचारों और सिद्धांतों का सृजन, लेकिन शोध इन दोनों जिम्मेदारियों में केंद्रीय स्थान रखता है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने शोध विभाग के जिम्मेदारों को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी जिम्मेदारियों के दो पहलू हैं एक स्पष्ट, जैसे शोध केंद्रों की स्थापना, वैज्ञानिक प्रतियोगिताओं और पुस्तक मेलों का आयोजन; और दूसरी छिपी हुई लेकिन अधिक महत्वपूर्ण, यानी शैक्षिक प्रणाली में शोध को मूल दिशा बनाना। उनके अनुसार,हमें शिक्षण को शोध से जोड़ना होगा ताकि छात्र शोध-आधारित शिक्षा प्राप्त कर सकें।

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक और शोध विभाग को कभी-कभी नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि यही वह विभाग है जो सबसे अधिक प्रभाव डालने वाला है।यदि शिक्षा और प्रचार शोध से जुड़े न हों तो अपने लक्ष्यों तक पहुँचना संभव नहीं है।

उन्होंने इस्लामी क्रांति के रहबर की "धार्मिक मदरसों की अग्रणी रणनीति" की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस मार्गदर्शन में भी शोध को प्रमुख स्थान प्राप्त है क्योंकि ज्ञान-आधारित प्रचार ही स्थायी प्रभाव रखता है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस्लामी विज्ञानों के शोध में इज्तिहादी सोच को आधार बनाया जाए। हम यह नहीं कहते कि हर शोधकर्ता मुजतहिद हो, लेकिन यह आवश्यक है कि शोध में इज्तिहादी सोच काम करे ताकि हम अपनी धार्मिक विरासत से सही ढंग से लाभ उठा सकें।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने नई फ़िक़्ह, इस्लामी दर्शन और मानविकी व धार्मिक विज्ञानों में उभरते हुए नए विषयों जैसे अर्थव्यवस्था, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और चिकित्सा विज्ञान पर शोध को समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता बताया। उन्होंने कहा कि मदरसों के जिम्मेदारों को चाहिए कि वे छात्रों का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन इन नए वैज्ञानिक क्षेत्रों में करें।

अंत में उन्होंने प्रतिभाशाली छात्रों की तलाश और उनके संरक्षण को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बताते हुए कहा कि धार्मिक मदरसों में बौद्धिक और शोध संबंधी प्रगति इन्हीं विद्वान छात्रों के माध्यम से संभव है जो जुनून और गंभीरता के साथ ज्ञान और शोध के मार्ग में प्रयासरत हों।

 

ईरान की एटमी ऊर्जा संगठन के प्रमुख मोहम्मद इस्लामी ने कहा है कि हालाँकि दुश्मनों के दबाव के बावजूद, इस्लामी गणराज्य ने एटमी क्षेत्र में वह स्थान हासिल किया है जो राष्ट्रीय सम्मान, आत्मनिर्भरता और वैज्ञानिक प्रगति का प्रतीक है।

ईरान की एटमी ऊर्जा संगठन के प्रमुख मोहम्मद इस्लामी ने कहा है कि हालाँकि दुश्मनों के दबाव के बावजूद, इस्लामी गणराज्य ने एटमी क्षेत्र में वह स्थान हासिल किया है जो राष्ट्रीय सम्मान, आत्मनिर्भरता और वैज्ञानिक प्रगति का प्रतीक है।

उन्होंने क़ुम में हज़रत मासूमा विश्वविद्यालय और प्लाज़्मा प्रौद्योगिकी विकास कंपनी के बीच हस्ताक्षरित सहयोग समझौते को संबोधित करते हुए यह बात कही।

मोहम्मद इस्लामी ने कहा कि इस समझौते के तहत, क़ुम के एक अस्पताल में जल्द ही परमाणु प्रौद्योगिकी आधारित घाव उपचार केंद्र स्थापित किया जाएगा, जो चिकित्सा क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम होगा।

उन्होंने आगे कहा कि क़ुम में जल संकट को देखते हुए, अपशिष्ट जल उपचार और पुन: उपयोग परियोजनाओं में परमाणु प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, और ओआरएस के परिणाम जल्द ही कृषि और पर्यावरण के क्षेत्र में दिखाई देंगे।

ईरान के परमाणु ऊर्जा विनियमन प्रमुख ने स्पष्ट किया कि आज ईरान न केवल परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर है, बल्कि रेडियोफार्मास्युटिकल्स के क्षेत्र में भी दुनिया में दूसरे या तीसरे स्थान पर है।

उन्होंने कहा कि प्लाज़्मा प्रौद्योगिकी वह द्वार है जिसके माध्यम से परमाणु प्रगति के फल सीधे जन जीवन में प्रवेश करेंगे, और यह प्रगति ईरान के वैज्ञानिक अधिकार को और मज़बूत करेगी।