
رضوی
इस्लामी क्रांति इमाम ख़ुमैनी की जीवन परिस्थितियाँ
ईरान की इस्लामी क्रांति इमाम खुमैनी की उस पुकार से आंरभ हुई
जिस की ध्वनि आज विश्व के कोने कोने में सुनाई दे रही है।
ईरान के शोषित समाज में जिस पर शक्तिशाली व अत्याचारी शासकों का राज था पीड़ा से कराहती, जनता के कानों से अचानक एक धर्मगुरू की पुकार टकराई अत्याचार व शोषण की दीवारें ढह गयीं और स्वतंत्रता व स्वाधीनता के गीत कानों में रस घोलने लगे और फिर स्वतंत्रता का यह गीत ईरानी राष्ट्र के हर सदस्य की ज़बान पर आ गया और अन्ततः रूहुल्लाह मूसवी खुमैनी नामक एक महान व अद्वीतीय व्यक्तिव ने इतिहास की एक अत्यन्त आश्चर्यजनक घटना अर्थात क्रांति को अस्तित्व प्रदान कर दिया और शताब्दियों तक स्वतंत्रता व स्वाधीनता के वियोग में छटपटाते राष्ट्र में स्वाधीनता व स्वतंत्रता स्थापित कर दी। यही कारणा है कि ईरान की इस्लामी क्रांति की इमाम खुमैनी से अलग कोई कल्पना नहीं की जा सकती।
ईरान की जिस इस्लामी कांति ने वर्तमान विश्व में जो परिवर्तन किये और जिस की सफलता व शक्ति ने विश्ववासियों को दांतों तले उंगुली दबाने पर विवश कर दिया उस का नेतृत्व करने वाली हस्ती अर्थात इमाम खुमैनी का व्यक्तित्त संभवतः इस क्रांति से भी अधिक आश्चर्य जनक है।
इमाम खुमैनी के महान कार्य उन की व्यक्तिगत विशेषताओं की ही भांति अनगिनत हैं किंतु यदि देखा जाए तो इमाम खुमैनी ने जो पहला संदेश दिया वह ईश्वर पर भरोसा और विश्व साम्राज्य विशेषकर अमरीका के चंगुल से छुटकारा प्राप्त करना था ।
इमाम खुमैनी के अनुसार सरकार को जनता के लिए जनता के साथ और जनता की सेवा में होना चाहिए वे सदैव आत्मविश्वास और स्वाधीनता पर अत्याधिक बल देते थे क्योंकि पूर्वी व पश्चिमी शक्तियों के हस्तक्षेपों को समाप्त करने के लिए आत्मविश्वास के अतिरिक्त कोई अन्य साधन नहीं है और यह भावना उसी समय उत्पन्न होती है जब मनुष्य के अस्तित्व में कोई बड़ी क्रांति आए।
इमाम खुमैनी का आशय समस्त क्षेत्रों में स्वाधीनता था किंतु इस के साथ ही वे आत्ममुग्धता को स्वाधीनता के मार्ग की बाधा समझते थे तथा आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को स्वाधीनता बल्कि मानसिक स्वाधीनता के लिए आवश्यक समझते थे। इमाम खुमैनी ने वर्ष उन्नीस सौ इक्यासी में ईरान के शिक्षा मंत्री से भेंट में कहाः
हमें वर्षों तक परिश्रम करना होगा स्वंय को खोजना होगा, अपने पैरों पर खड़ा होना और स्वाधीनता तक पहुंचना होगा इस स्थिति में हमें पूरब या पश्चिचम की आवश्यकता नहीं होगी और यदि हम ऐसा करने में सफल हो गये तो विश्वास रखें कि कोई भी शक्ति हमें अघात नहीं लगा सकता। यदि हम वैचारिक दृष्टि से स्वाधीन होंगे तो वे किस प्रकार से हमें नुकसान पहॅंचा सकते हैं।
इमाम खुमैनी ने इसी प्रकार अपने एक भाषण में कहाः आप विश्वास करें यदि चाहेंगे तो हो जाएगा यदि जाग जाए तो चाहेंगे । आप जागें यह समझें कि जर्मन जाति आर्य जाति से और पश्चिम वाले हम से श्रेष्ठ नहीं हैं। यदि कोई राष्ट्र यह विश्वास कर लें कि हम बड़ी शक्तियों के सामने डट सकते हैं तो उस का यह विश्वास उस में वह क्षमता उत्पन्न कर देगा जिस के बल पर वह बड़ी शक्तियों के सामने डट जाएगा। यह जो सफलता आप को मिली है उसका यह कारण है कि आप को विश्वास हो गया था कि आप में इस की क्षमता है।
इमाम खुमैनी का एक अन्य महान कार्य जिसे एक चमत्कार भी कहा जा सकता है यह था कि उन्हों ने अपने महान अभियान द्वारा सैंकड़ों वर्षों से जारी उस षडयन्त्र को एक झटके में विफल कर दिया जिसके अंतर्गत यह प्रचार किया जा रहा था कि धर्म का राजनीति से कोई संबंध नहीं है और कोई भी धर्म विशेषकर इस्लाम सरकार चलाने की क्षमता नहीं रखता ।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई इमाम खुमैनी द्वारा इस्लाम के आधार पर सरकार गठन के संदर्भ में कहते हैः
जिस विषय की मुस्लिम और गैर मुस्लिम कल्पना भी नहीं करते थे वह धर्म और वह भी इस्लाम धर्म के आधार पर एक राजनीतिक व्यवस्था का गठन था यह वह लक्ष्य था जिस की साधारण मुसलमान कल्पना भी नहीं कर सकता था और न ही उस के बारे में सोच सकता था इमाम खुमैनी ने इस कल्पना को व्यवहारिक बनाया जिसे यदि चमत्कार कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी।
इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह ने राजनीति में इस्लामी शैलियों को व्यवहारिक बनाया तथा इस के साथ ही उन्हों ने शासकों के लिए जो वर्जनाए और सीमाएं निर्धारित कीं उससे इस पूरी व्यवस्था की आधार शिला को सुदृढ़ता प्राप्त हो गयी।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई इस संदर्भ में कहते हैः
विश्व में यह विषय स्वीकार किया जा चुका है कि जो लोग सरकार में होते हैं या जिन के कांधों पर समाज के नेतृत्व का बोझ होता है उन में कुछ विशेष नैतिक गुण होने चाहिएं घंमड , ऐश्वर्य प्रेम , सुखभोग ,अहंकार और स्वार्थ एसी वस्तुएं हैं जिन के बारे में विश्व वासियों ने यह सोच लिया है कि यह चीज़ें शासकों और राजनेताओं में होती ही हैं यहां तक कि उन देशों में भी जहां क्रांति के बाद सरकार बनी है जो लोग कल तक क्रांतिकारी के रूप में शिविरों में रहते थे गुफाओं में छुपे रहते थे वह लोग भी सरकार में आते ही अपनी जीवन शैली बदल लेते हैं और उन का ढब वही हो जाता है जो अन्य शासकों का होता है इसे हम ने निकट से देखा है और यह वस्तु अब जनता के लिए भी आश्चर्य जनक नहीं है किंतु इमाम खुमैनी ने इस गलत धारणा को समाप्त कर दिया उन्हों ने यह दर्शा दिया कि किसी राष्ट्र का एक अत्यन्त लोकप्रिय नेता और विश्व भर के मुसलमानों का नेता अत्यन्त साधारण जीवन शैली अपना सकता है और भव्य महलों के स्थान पर एक छोटे से इमाम बाड़े में अपने अतिथियों का स्वागत कर सकता है।
इमाम खुमैनी के बारे में पश्चिम के पत्रकार राबिन वूड्स वर्थ ने उन से उन के घर में भेंट के पश्चात लिखा। जैसे ही इमाम खुमैनी द्वार से भीतर आए मुझे लगा कि उन के अस्तित्व से आध्यात्म का पवन बह रहा है । मानो उन के कत्थई लबादे , काली पगड़ी और सफेद दाढ़ी के पीछे से आत्मा व जीवन की लहरें उठ रही हैं यहां तक कि कमरे में उपस्थित सारे लोग उन के व्यक्तित्तव में खो गये , उस समय मुझे लगा कि उन के आते ही हम सब बहुत छोटे हो गये और यह लगने लगा कि जैसे वहां उन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। उन्हों ने मेरे सारे मापदंडो और शब्दों को उलट पुलट दिया जिनके द्वार मुझे लगता था कि मैं उन के व्यक्तित्व का वर्णन कर सकता हूं। मुझे लगा मानो वह मेरे अस्तित्व पर छा गये तो क्या कोई साधारण व्यक्ति एसा हो सकता है ? मै ने तो आज तक किसी भी बड़े नेता या बड़ी हस्ती को उन से अधिक महान नहीं पाया , मैं उन की छोटी सी प्रशसां में बस यही कह सकता हूं कि वह मानो अतीत में ईश्वरीय दूतों की भांति हैं या फिर यह कि वे इस्लाम के मूसा हैं जो फिरऔन को अपनी भूमि से बाहर निकालने के लिए आए हों ।
निश्चित रूप से इस पश्चिमी पत्रकार ने इमाम खुमैनी को किसी सीमा तक पहचान लिया था। फिरऔन वास्तव में अत्याचारी तानाशाह और स्वंय को सब से बड़ा समझने वाले हर शासक का प्रतीक है। ईश्वरीय दूत हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने प्राचीन मिस्र के अत्याचारी शासक और स्वंय को ईश्वर कहने वाले फिरऔन के विरुद्ध संघर्ष किया और उस का विनाश किया था। इमाम खुमैनी ने भी विश्व में वर्तमान फिरऔनों के विरूद्ध संघर्ष की जो लहर उत्पन्न की थी आज वह राष्ट्रों में तूफान का प्रंचड रूप धार कर शक्ति व सत्ता के बल पर मनमानी करने वाली शक्तियों की नैया डूबो रही है और साम्राज्यवाद के डगमगाते बेड़ों के बौखलाए नाविक इसी लिए ईरान और ईरान की इस्लामी क्रांति तथा इस्लामी व्यवस्था को विभिन्न षडयन्त्रों का लक्ष्य बना रहे हैं किंतु इमाम खुमैनी के मार्ग पर चलने वाला ईरानी राष्ट्र हर वर्ष इमाम खुमैनी के बरसी के अवसर पर विशेषरूप से यह प्रतिज्ञा करता है कि उन के मार्ग पर चलते हुए अत्याचारियों व साम्राज्यवादियों के विरूद्ध संघर्ष जारी रखेगा।
इस संसार में जीवन और मृत्यु का चक्र किसी से न रुका है और न ही रूकेगा जीवन व मृत्यु का यह क्रम , धूप छांव और दिन रात की भांति अनवरत जारी है मृत्यु व विनाश हर शरीर के लिए है इस बात की घोषणा कुरआने मजीद ने की है किंतु यदि यह एक अटल वास्तविकता है तो फिर कुछ लोगों को अमर क्यों कहा जाता है ? वास्तव में हमने कभी सोचा कि अमरत्व प्राप्त कैसे होता है? यदि इस विषय पर विचार किया जाए तों हमें पता चलेगा कि मृत्यु व विनाश शरीर के लिए होता है विचार मृत्यु व विनाश चक्र की परिधि से बाहर होते हैं विचारों में इतनी शक्ति होती है कि वह जीवन व मृत्यु के अनवरत चलते इस चक्र को जीवन बिन्दु पर रोक देता है।
यही कारण है कि शारीरिक रूप से नज़रों से ओझल हो जाने के बावजूद महापुरूष अपने विचारों के कारण सदैव जीवित रहते हैं। इस वास्तविकता को यदि कोई आज के युग में अपनी आंखों से देखना चाहे तो उसे ईरान और विश्व के उन क्षेत्रों की यात्रा करनी चाहिए जहां साम्राज्यवाद के विरुद आंदोलन चल रहा है या उस की आहटें सुनाई देने लगी हैं । इन स्थानों में उसे आज भी कि जब इस्लामी ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की उन्नीसवीं बरसी मनाई जा रही है इमाम खुमैनी अपने विचारों व संदेशों के कारण जीवित नज़र आएंगे।
रचना से रचनाकार की महानता का बोध होता है ईरान की इस्लामी क्रांति इमाम खुमैनी के अनथक प्रयासों और निरंतर संघर्ष तथा ईश्वर के मार्ग में त्याग का परिणाम है जिसे स्वंय इमाम खुमैनी ने ईश्वरीय चमत्कार कहा है वे कहते हैः
समाज में एक समाज की मानसिकता में परिवर्तना आया जिसे मैं सिवाए इस के कि यह एक ईश्वरीय चमत्कार व ईश्वरीय सकंल्प था कोई और नाम नहीं दे सकता।
इसी प्रकार वे एक अन्य स्थान पर कहते हैः
इस में ईश्वर का हाथ है यह ईश्वरीय मामला है लोग स्वंय ही ऐसी शक्ति के स्वामी नहीं हो सकते यह ईश्वर का निर्णय था जिसने भौतिकवाद में विश्वास रखने वालों के सारे समीकरण बिगाड़ दिये ।
इस संदर्भ में केनेडा के बुद्धिजीवी राबर्ट कैलिस्टोन कहते हैः
मैं पश्चिम का नागरिक और गैर मुस्लिम हूं किंतु मेरी दृष्टि में यह एक चमत्कार है कि एक धार्मिक क्रांति वर्तमान समय में इस प्रकार से सफल हो जाए और न्याय की स्थापना की ओर अग्रसर हो इस क्रांति को निश्चित रूप से ईश्वरीय सहायता प्राप्त है।
यही कारण है कि विश्व के एक अत्यन्त संवेदनशील क्षेत्र में इमाम खुमैनी के नेतृत्व में आने वाली इस्लामी क्रांति ने विश्व साम्राज्य की शांत व सुरक्षित समझी जाने वाली छावनी अर्थात ईरान में पांव पसार कर बैठे अमरीकी साम्राज्य को बौखलाकर भागने पर विवश कर दिया।
ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही पहली बार एक मुस्लिम देश ने पश्चिम की महाशक्तियों को सफलता के साथ चुनौती दी, उन की अक्षमता को सिद्ध किया और उन के हितों के लिए गंभीर ख़तरे उत्पन्न कर दिये। इमाम खुमैनी ने ईश्वर व धर्म पर भरोसा करके एक ऐसा आंदोलन आरंभ किया और फिर उसे सफल बनाया जिसने धर्म व आध्यात्म के पतन की भविष्यवाणी करने वाले समस्त पश्चिमी विचारकों व बुद्धिजीवियों के भौतिकवाद पर आधारित ज्ञान के खोखलेपन को सिद्ध कर दिया।
यदि देखा जाए तो इस्लामी क्रांति सोलहवीं शताब्दी के बाद से पश्चिम के मुक़ाबले में इस्लाम की प्रथम विजय समझी जा सकती है। रोचक तथ्य तो यह है कि ईरान की क्रांति का निर्देशक इस्लाम था और नेशनलिज्म , कैप्टालिज़्म कम्यूनिज्म और सोशलिज्म जैसे किसी भी पश्चिमी इज्म या विचारधारा की इस क्रांति में कोई भूमिका नहीं थी। ईरान की इस्लामी क्रांति से पश्चिम की शत्रुता का संभवतः एक कारण यह भी है।
इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने ईश्वर की असीम शक्ति पर भरोसे के साथ ही क्रांति की सफलता में जनता की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी बहुत बल दिया है। ईरान में इस्लामी क्रांति के इतिहास का ज्ञान रखने वालों को भलीभांति ज्ञान है कि इमाम खुमैनी ने इस्लामी क्रांति की पूरी प्रक्रिया में जनता पर अत्याधिक भरोसा किया और उसे आगे ले आए।
फ्रांस के प्रसिद्ध समाजशास्त्री व विचारक मिशल फोको ने जो इस्लामी क्रांति की सफलता के समय ईरान में उपस्थित थे लिखा हैः
मैं यह बात स्वीकार करता हूं कि १८ वीं शताब्दी के बाद से समस्त समाजिक परिवर्तन आधुनिकता की दिशा में थे किंतु केवल ईरान की क्रांति एक ऐसा समाजिक आंदोलन है जो आधुनिकता के सामने खड़ी हो गयी।
इमाम खुमैनी ने वर्तमान युग में धर्म की क्षमताओं को उजागर कर दिया और ईरान में इस्लाम के आधार पर एक सरकार का गठन करके यह सिद्ध कर दिया कि जो इस्लाम पैगम्बरे इस्लाम सल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम लाए थे वह किस प्रकार सर्वकालिक है। लगभग तीन दशकों से इस्लामी गणतंत्र ईरान की सफलता इस का सब से बड़ा प्रमाण है।
इमाम ख़ुमैनी की ज़िंदगी पर एक नज़र
चार जून सन 1989 ईसवी को दुनिया एक ऐसी महान हस्ती से बिछड़ हो गई जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, हिम्मत, समझबूझ और अल्लाह पर पूरे यक़ीन के साथ दुनिया के सभी साम्राज्यवादियों ख़ास कर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किया और इस्लामी प्रतिरोध का झंडा पूरी दुनिया पर फहराया। इमाम खुमैनी की पाक और इलाही डर से भरी ज़िंदगी इलाही रौशनी फ़ैलाने वाला आईना है और वह पैगम्बरे इस्लाम (स) की जीवन शैली से प्रभावित रहा है। इमाम खुमैनी ने पैगम्बरे इस्लाम (स) की ज़िंदगी के सभी आयामों को अपने लिये आदर्श बनाते हुये पश्चिमी और पूर्वी समाजों के कल्चर की गलत व अभद्र बातों को रद्द करके आध्यात्म एंव अल्लाह पर यक़ीन की भावना समाजों में फैला दी और यही वह वातावरण था जिसमें बहादुर और ऐसे जवानों का प्रशिक्षण हुआ जिन्होने इस्लाम का बोलबाला करने में अपने ज़िंदगी की बलि देने में भी हिचकिचाहट से काम नहीं लिया।
पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद (स) की पैगम्बरी के ऐलान अर्थात बेसत की तिथि भी नज़दीक है इसलिये हम इमाम खुमैनी के कैरेक्टर पर इस पहलू से रौशनी डालने की कोशिश करेंगे कि उन्होने इस युग में किस तरह पैगम्बरे इस्लाम (स) के चरित्र और व्यवहार को व्यवहारिक रूप में पेश किया।
पश्चिमी दुनिया में घरेलू कामकाज को महत्वहीन समझा जाता है। यही कारण है कि अनेक महिलायें अपने समय को घर के बाहर गुज़ारने में ज़्यादा रूचि रखती हैं। जबकि पैगम्बरे इस्लाम (स) के हवाले से बताया जाता है कि पैगम्बरे इस्लाम (स) ने एक दिन अपने पास मौजूद लोगों से पूछा कि वह कौन से क्षण हैं जब औरत अल्लाह से बहुत क़रीब होती है? किसी ने भी कोई उचित जवाब नहीं दिया। जब हज़रत फ़ातिमा की बारी आई तो उन्होने कहा वह क्षण जब औरत अपने घर में रहकर अपने घरेलू कामों और संतान के प्रशिक्षण में व्यस्त होती है तो वह अल्लाह के बहुत ज़्यादा क़रीब होती है। इमाम खुमैनी र.ह भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पदचिन्हों पर चलते हुये घर के वातावरण में मां की भूमिका पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देते थे। कभी-कभी लोग इमाम ख़ुमैनी से कहते थे कि औरत क्यों घर में रहे तो वह जवाब देते थे कि घर के कामों को महत्वहीन न समझो, अगर कोई एक आदमी का प्रशिक्षण कर सके तो उसने समाज के लिये बहुत बड़ा काम किया है। मुहब्बत व प्यार औरत में बहुत ज़्यादा होता है और परिवार का वातावरण और आधार प्यार पर ही होता है।
इमाम खुमैनी अपने अमल और व्यवहार में अपनी बीवी के बहुत अच्छे सहायक थे। इमाम खुमैनी की बीवी कहती हैः चूंकि बच्चे रात को बहुत रोते थे और सवेरे तक जागते रहते थे, इस बात के दृष्टिगत इमाम खुमैनी ने रात के समय को बांट दिया था। इस तरह से कि दो घंटे वह बच्चों को संभालते और मैं सोती थी और फिर दो घंटे वह सोते थे और मैं बच्चों को संभालती थी। अच्छी व चरित्रवान संतान, कामयाब ज़िंदगी का प्रमाण होती है। माँ बाप के लिये जो बात बहुत ज़्यादा महत्व रखती है वह यह है कि उनका व्यवसाय और काम तथा ज़िंदगी की कठिनाइयां उनको इतना व्यस्त न कर दें कि वह अपनी संतान के पालन पोषण एवं प्रशिक्षण की अनदेखी करने लगें।
पैगम्बरे इस्लाम (स) की हदीस हैः अच्छी संतान, जन्नत के फूलों में से एक फूल है इसलिये ज़रूरी है कि माँ-बाप अपने बच्चों के विकास और कामयाबियों के लिये कोशिश करते रहें।
इमाम ख़ुमैनी बच्चों के प्रशिक्षण की ओर से बहुत ज़्यादा सावधान रहते थे। उन्होने अपनी एक बेटी से, जिन्होंने अपने बच्चे की शैतानियों की शिकायत की थी कहा थाः उसकी शैतानियों को सहन करके तुमको जो सवाब मिलता है उसको मैं अपनी सारी इबादतों के सवाब से बदलने को तैयार हूं। इस तरह इमाम खुमैनी बताना चाहते थे कि बच्चों की शैतानियों पर क्रोधित न हों, और संतान के पालने पोसने में मायें जो कठिनाइयां सहन करती हैं वह अल्लाह की निगाह में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं और परिवार व समाज के लिये भी इनका महत्व बहुत ज़्यादा है।
इमाम खुमैनी र.ह के क़रीबी संबंधियों में से एक का कहना है कि इमाम खुमैनी का मानना था कि बच्चों को आज़ादी दी जाए। जब वह सात साल का हो जाये तो उसके लिये सीमायें निर्धारित करो। वह इसी तरह कहते थे कि बच्चों से हमेशा सच बोलें ताकि वह भी सच्चे बनें, बच्चों का आदर्श हमेशा माँ बाप होते हैं। अगर उनके साथ अच्छा व्यवहार करें तो वह अच्छे बनेंगे। आप बच्चे से जो बात करें उसे व्यवहारिक बनायें।
हजरत मोहम्मद (स) बच्चों के प्रति बहुत कृपालु थे। उन्हें चूमते थे और दूसरों से भी ऐसा करने को कहते थे। बच्चों से प्यार करने के संबंध में वह कहते थेः जो भी अपनी बेटी को ख़ुश करे तो उसका सवाब ऐसा है जैसे हजरत इस्माईल पैगम्बर की संतान में से किसी दास को ग़ुलामी से आज़ाद किया हो और वह आदमी जो अपने बेटे को ख़ुश करे वह ऐसे आदमी की तरह है जो अल्लाह के डर में रोता रहा हो और ऐसे आदमी का इनाम व पुरस्कार जन्नत है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़िंदगी बहुत ही साधारण, बल्कि साधारण से भी नीचे स्तर की थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके ज़िंदगी के बारे में बताते हैं कि पैग़म्बर (स) ग़ुलामों की दावत को स्वीकार करके उनके साथ भोजन कर लेते थे। वह ज़मीन पर बैठते और अपने हाथ से बकरी का दूध दूहते थे। जब कोई उनसे मिलने आता था तो वह टेक लगाकर नहीं बैठते थे। लोगों के सम्मान में वह कठिन कामों को भी स्वीकार कर लेते और उन्हें पूरा करते थे।
इमाम ख़ुमैनी र.ह भी अपनी ज़िंदगी के सभी चरणों में चाहे वह क़ुम के फ़ैज़िया मदरसे में उनकी पढ़ाई का ज़माना रहा हो या इस्लामी रिपब्लिक ईरान की लीडरशिप का समय उनकी ज़िंदगी हमेशा, साधारण स्तर की रही है। वह कभी इस बात को स्वीकार नहीं करते थे कि उनकी ज़िंदगी का स्तर देश के साधारण लोगों के स्तर से ऊपर रहे।
इमाम ख़ुमैनी के एक साथी का कहना है कि जब वह इराक़ के पाक शहर नजफ़ में रह रहे थे तो उस समय उनका घर, किराये का घर था जो नया नहीं था। वह ऐसा घर था जिसमें साधारण स्टूडेंट्स रहते थे। इस तरह से कहा जा सकता है कि इमाम ख़ुमैनी की जीवन स्तर साधारण स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि उनसे भी नीचे स्तर का था। ईरान में इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद हुकूमती सिस्टम का नेतृत्व संभालने के बाद से अपनी ज़िंदगी के अंत तक जमारान इमामबाड़े के पीछे एक छोटे से घर में रहे। उनकी ज़िंदगी का आदर्श चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) थे इसलिये उन्होंने अपने घर के भीतर आराम देने वाला कोई छोटा सा परिवर्तन भी स्वीकार नहीं किया और इराक़ द्वारा थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध में भी वह अपने उसी साधारण से पुराने घर में रहे और वहीं पर अपने छोटे से कमरे में दुनिया के नेताओं से मुलाक़ात भी करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण, व्यवहार और शिष्टाचार के दृष्टिगत इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेतृत्व की कठिनाइयों को कभी बयान नहीं किया और कभी भी स्वयं को दूसरों से आगे लाने की कोशिश भी नहीं की। वह हमेशा यही मानते और कहते रहे कि “मुझे अगर जनता का सेवक कहो तो यह इससे अच्छा है कि मुझे नेता कहो”।
इमाम ख़ुमैनी जब भी जंग के जियालों के बीच होते तो कहते थे कि मैं जेहाद और शहादत से पीछे रह गया हूं इसलिये आपके सामने लज्जित हूं। जंग में हुसैन फ़हमीदे नामक नौजवान के शहीद होने के बाद उसके बारे में इमाम ख़ुमैनी का यह कहना बहुत मशहूर है कि हमारा नेता बारह साल का वह किशोर है जिसने अपने नन्हे से दिल के साथ, जिसकी क़ीमत हमारी सैकड़ों ज़बानों और क़लम से बढ़कर है हैंड ग्रेनेड के साथ ख़ुद को दुश्मन के टैंक के नीचे डाल दिया, उसे उड़ा दिया और ख़ुद भी शहीद हो गया।
लोगों के प्यार का पात्र बनना और उनके दिलों पर राज करना, विभिन्न कारणों से होता है और उनकी अलग-अलग सीमाएं होती हैं। कभी भौतिक कारण होते हैं और कभी निजी विशेषताएं होती हैं जो दूसरों को आकर्षित करती हैं और कभी यह कारण आध्यात्मिक एवं इलाही होते हैं और आदमी की विशेषताएं अल्लाह और धर्म से जुड़ी होती हैं। अल्लाह ने पाक क़ुरआन में वचन दिया है कि जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और भले काम करते हैं, अल्लाह उनका प्यार दिलों में डाल देता है। इस इलाही वचन को पूरा होते हम सबसे ज़्यादा हज़रत मुहम्मद (स) के कैरेक्टर में देखते हैं कि जिनका प्यार दुनिया के डेढ अरब मुसलमानों के दिलों में बसा हुआ है।
इमाम ख़ुमैनी भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्यार में डूबे हुए दिल के साथ इस ज़माने के लोगों के दिलों में बहुत बड़ी जगह रखते हैं। इमाम ख़ुमैनी के बारे में उनके संपर्क में आने वाले ईरानियों ने तो उनके कैरेक्टर के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा है ही, विदेशियों ने भी माना है कि इमाम ख़ुमैनी समय और स्थान में सीमित नहीं थे। दुनिया के विभिन्न नेताओं यहां तक कि अमरीकियों में भी जिसने इमाम ख़ुमैनी से मुलाक़ात की वह उनके कैरेक्टर और बातों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इमाम ख़ुमैनी पूरे संतोष के साथ साधारण शब्दों में ठोस और सुदृढ़ बातें करते थे। उनके शांत मन और ठोस संकल्प को बड़ी से बड़ी घटनाएं और ख़तरे भी प्रभावित नहीं कर पाते थे। दुनिया को वह अल्लाह का दरबार मानते थे और अल्लाह की कृपा और मदद पर पूरा यक़ीन रखते थे तथा यह विषय, नेतृत्व संबन्धी उनके इरादों के बारे में बहुत प्रभावी था। इस बात को साबित करने के लिए बस यह बताना काफ़ी होगा कि जब सद्दाम की फ़ौज ने इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के फ़ौरन बाद ईरान पर अचानक हमला किया तो इमाम ख़ुमैनी ने जनता से बड़े ही सादे शब्दों में कहा था कि “एक चोर आया, उसने एक पत्थर फेंका और भाग गया”। इमाम के यह सादे से शब्द, रौशनी और शांति का स्रोत बनकर लोगों में शांति तथा हिम्मत भरने लगे और चमत्कार दिखाने लगे। हमारी दुआ है कि उनकी आत्मा शांत और उनकी याद सदा जीवित रहे।
15 ख़ुरदाद के शहीद गुप्तकाल के सबसे उत्पीड़ित शहीद हैं: मुहम्मद जवाद हाज अली अकबरी
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन मुहम्मद जवाद हाज अली अकबरी ने कहा: 15 खुरदाद के शहीद गुप्तकाल के सबसे उत्पीड़ित शहीद हैं और "अस साबेक़ून अल अव्वलून" के उदाहरणों में से एक हैं।
इमाम जुमा की नीति परिषद के अध्यक्ष, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुहम्मद जवाद हाज अली अकबरी ने इमाम रज़ा (अ) के हरम में 15 ख़ुरदाद (5 जून, 1964) के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा: अत्याचार के खिलाफ़ 15 ख़ुरदाद की ऐतिहासिक आंदोलन में शहीद होने वाले वो थे जो इमाम अल-ज़माना (अ) और उनके सच्चे उत्तराधिकारी इमाम खुमैनी (र) के समर्थन में सामने आए थे और वे शहीद हो गए थे। उसी तरह, वे गुप्तकाल के सबसे उत्पीड़ित शहीदों में से हैं।
उन्होंने सूर ए अल-तौबा की आयत 100,का उल्लेख किया और कहा: ये शहीद वे शहीद हैं जो जीत से पहले युद्ध के मैदान में आए और अपने प्राणों की आहुति दे दी। उस समय विजय के कोई चिह्न नहीं थे, उनका उल्लेख तक नहीं होता था, आज उनका उल्लेख कम ही होता है और कोई नामोनिशान भी नहीं बचा है।
तेहरान के अंतरिम इमाम जुमा ने कहा: इन उत्पीड़ित शहीदों ने 15 ख़ुरदाद की स्थापना में इमाम खुमैनी (र) को वचन दिया और इस तरह इमाम और उम्माह के हाथ एकजुट हो गए, और उसके बाद क्षेत्र और दुनिया में एक बड़ा बदलाव शुरू हुआ।
हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन हाज अली अकबरी ने कहा: इमाम खुमैनी (र) के निर्वासन के बाद, एक महान क्रांति होने में लगभग पंद्रह साल लग गए, और इस महान कार्य की तैयारी अपने निर्वासन के दौरान नेता द्वारा की गई थी।
ग़ज़्ज़ा, ज़ायोनी बमबारी के बाद अब भूख ले रही है जान, 30 बच्चों ने दम तोडा
ग़ज़्ज़ा में 8 महीने से इस्राईल की ओर से फिलिस्तीनी जनता का जनसंहार जारी है। इस्राईल की बमबारी और क़त्ले आम से बच जाने वाले फिलिस्तीनी नागरिको, विशेष कर बच्चों पर भुखमरी क़हर बन कर टूट रही है।
इस क्षेत्र में दिन प्रतिदन बढ़ते ज़ायोनी शासन के अपराधों का ब्यौरा देते हुए ग़ज़्ज़ा सरकार ने कहा है कि ज़ायोनी हमलों के कारण उपजे संकट और भुखमरी से अब तक 30 से अधिक फिलिस्तीनी बच्चों की मौत हो चुकी है।
इस बयान में कहा गया है कि ज़ायोनी शासन ग़ज़्ज़ा के मध्य क्षेत्रों में अब भी लगातरा मिसाइल बरसा रहा है और इन बर्बर हमलों को सही ठहराने के लिए दावा करता है कि प्रतिरोध बल इस क्षेत्र में मौजूद हैं।
21 स्वर्ण पदक के साथ ईरान की राष्ट्रीय धावक टीम पश्चिम एशिया में चैंपियन
ईरान की राष्ट्रीय धावक टीम पश्चिम एशिया में चैंपियन
इस्लामी गणतंत्र ईरान की धावक टीम पश्चिम एशिया में होने वाले मुक़ाबले में चैंपियन हो गयी।
पश्चिम एशिया में दौड़ने का मुकाबला 29 मई से दो जून तक इराक़ के बसरा नगर में आयोजित हुआ।
इन मुक़ाबलों में इस्लामी गणतंत्र ईरान की धावक टीम 21 स्वर्ण पदक, 16 रजत पदक और 3 कांस्य पदक हासिल करके चैंपियन रही।
मेज़बान इराकी टीम भी ने इन मुकाबलों में 9 स्वर्ण पदक, 13 रजत पदक और 17 कांस्य पदकों के साथ दूसरा स्थान हासिल किया जबकि क़तर भी इन मुकाबलों में 6 स्वर्ण पदक, 2 रजत और 4 कांस्य पदकों के साथ तीसरे स्थान पर रहा।
ईरानी महिलाओं ने इन मुकाबलों में अच्छा प्रदर्शन किया इस प्रकार से कि उन्होंने जो 40 पदक हासिल किये जिसमें 17 स्वर्ण पदक, 12 रजत पदक और 2 कांस्य पदक थे और चार राष्ट्रीय रिकार्ड भी बदले।
मर्दों के मुकाबलों में भी ईरान की मिल्ली पुशान टीम ने चार स्वर्ण पदक, चार रजत पदक और 1 कांस्य पदक हासिल किया।
इस्लामी गणंत्र ईरान की धावक टीम के चालिस खिलाड़ी इन मुकाबलों में मौजूद थे।
अज़रबैजान को ईरान की नसीहत, इलाक़े में इस्राईल की मौजूदगी से फैलेगा फ़ित्ना
अज़रबैजान के राष्ट्रपति, इल्हाम अलीयोव ने एक बार फिर ईरान के कार्यवाहक राष्ट्रपति मोहम्मद मुखबिर के साथ एक फोन कॉल में ईरान के दिवंगत राष्ट्रपति सय्यद इब्राहीम रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत पर संवेदना व्यक्त की और ईरान की सरकार और लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त की। इल्हाम ने डॉ रईसी की शहादत को एक बड़ी क्षति बताया, यह केवल ईरान नहीं बल्कि सभी क्षेत्रीय देशों के खास कर मुस्लिम राष्ट्रों का नुकसान है।
मोहम्मद मुखबिर ने इल्हाम का आभार जताते हुए कहा जैसा कि शहीद राष्ट्रपति डॉ. रईसी ने कहते थे कि, ईरान और अजरबैजान के लोगों का एक दूसरे के साथ धार्मिक, आपसी रिश्तेदारी और दिल का रिश्ता है, जो एक अटूट बंधन है। मैं कहना चाहूंगा कि इलाक़े में शांति और स्थायित्व स्थानीय देशों की कोशिशों से ही आएगा। अवैध राष्ट्र इस्राईल व्यवहारिक दृष्टि से नाटो का ही सदस्य है और ऐसे पराए देशों को अगर इलाक़े में पैर जमाने का मौक़ा मिल गया तो यह पूरा इलाक़ा अशांत हो जाएगा।
अमेरिका और चीन आमने सामने, ताइवान पर हमला हुआ तो सेना भेजेगा वाशिंगटन
चीन और ताइवान की तनातनी के बीच अमेरिका ने एक बार फिर चीन को उकसाने वाली हरकत करते हुए कहा है कि अगर चीन ने ताइवान के खिलाफ कोई मूर्खता की तो हम अमेरिकी सेना भेजने में संकोच नहीं करेंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बार फिर दोहराया है कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका अपनी सेना भेज सकता है। उन्होंने टाइम मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि ताइवान पर चीनी आक्रमण की स्थिति में अमेरिकी सैन्य बल के इस्तेमाल से इनकार नहीं किया जा सकता है। बाइडन ने ही अपने कार्यकाल के शुरुआती दिनों में दो टूक कहा था कि अमेरिका ताइवान की रक्षा के लिए अमेरिकी सैनिकों को उतारने से पीछे नहीं हटेगा। इसे अमेरिका की विदेश नीति में बड़ा परिवर्तन बताया गया था।
अमेरिका ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर कसा शिकंजा, 13 गिरफ्तार
अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ में इस्राईल के विरुद्ध और फिलिस्तीन के समर्थन में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन का सिलसिला तेज़ होता जा रहा है। इसी क्रम में अमेरिका के कैलिफोर्निया के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में फिलिस्तीन समर्थकों ने जमकर प्रदर्शन किया जिसे पुलिस ने बलपूर्वक कुचलते हुए 13 लोगों को गिरफ्तार किया है। इस दौरान कई लोग घायल भी हो गए।
स्टैनफोर्ड डेली अखबार के मुताबिक करीब 10 छात्र सुबह साढ़े 5 बजे विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कार्यालय की बिल्डिंग में दाखिल हुए और करीब 50 छात्रों ने बिल्डिंग को चारों और से घेर लिया। इसके बाद सभी छात्र 'फिलिस्तीन को आजाद करो’ के नारे लगाने लगे।
‘छात्रों के एक समूह ने विश्वविद्यालय अध्यक्ष के कार्यालय को घेर लिया और छात्रों ने ग़ज़्ज़ा जनसंहार से जुड़ी कंपनियों को स्कूल से अलग करने सहित अन्य मांगें की।
अयोध्या से हारी भाजपा, तो समर्थकों ने बताया धोखेबाज़
भारत में आम चुनाव के बीच सबसे ज़्यादा चर्चा राम मंदिर और अयोध्या को लेकर थी लेकिन भाजपा को अयोध्या में ही शर्मनाक हार का मुंह देखना पड़ा जिसके बाद भाजपा समर्थकों की ओर से अयोध्या वासियों को ग़द्दार और धोकेबाज़ बताया जा रहा है वहीँ आम जन मानस का कहना है कि खुद राम जी ने भाजपा को धुत्कार दिया है।
अब मशहुर सीरियल रामायण में राम के भाई लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले एक्टर ने अयोध्या वासियों पर ज़बानी हमला तेज़ करते हुए उन्हें ग़द्दार और धोकेबाज़ बताया है।
बता दें कि फैजाबाद संसदीय सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने अपने निकटतम बीजेपी प्रतिद्वंद्वी लल्लू सिंह को हराया है। रामायण के एक्टर सुनील ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरीज में बाहुबली फिल्म के मशहूर सीन की एक तस्वीर शेयर की है, जिसमें कटप्पा बाहुबली को मारते हुए दिख रहा है। बाहुबली पर बीजेपी लिखा हुआ है, जबकि कटप्पा पर अयोध्या लिखा हुआ है।
उन्होंने कहा कि यह वही अयोध्यावासी हैं जिन्होंने देवी सीता को नहीं बख्शा', इतिहास गवाह है कि अयोध्या के नागरिकों ने हमेशा अपने राजा के साथ विश्वासघात किया है उन्हें शर्म आनी चाहिए। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से स्थानीय स्तर पर भाजपा को चुनावी लाभ नहीं मिला क्योंकि पार्टी फैजाबाद निर्वाचन क्षेत्र हार गई जहां मंदिर का शहर है।
इस्राईल ने लेबनान पर प्रतिबंधित फॉस्फोरस बम बरसाए, 170 से अधिक नागरिक घायल
ग़ज़्ज़ा में जनसंहार मचा रहा ज़ायोनी शासन जहाँ फिलिस्तीन में 37 हज़ार लॉगऑन का क़त्ले आम कर चुका है वहीँ लगातार सीरिया और लेबनान पर भी बर्बर हमले करते हुए सैंकडो लोगों की जान ले चुका है।
ज़ायोनी सेना ने एक बार फिर सभी मानवाधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों को रौंदते हुए लेबनान पर फॉस्फोरस बम बरसाए। एक वैश्विक मानवाधिकार समूह ने बुधवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया कि इस्राईल ने दक्षिणी लेबनान में कम से कम पांच कस्बों व गांवों में आवासीय भवनों पर सफेद फॉस्फोरस बमों का इस्तेमाल किया है। इससे नागरिकों को काफी क्षति पहुंच रही है और यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। इससे पीड़ित 173 लोगों का इलाज किया गया है।
मानवाधिकार समर्थकों का कहना है कि आबादी वाले क्षेत्रों में विवादास्पद हथियार दागना अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध है। उधर, ज़ायोनी शासन ने सफेद फॉस्फोरस के इस्तेमाल की बात स्वीकारते हुए कहा है कि हम सिर्फ धुएं के परदे के रूप में इसका इस्तेमाल करते हैं नागरिकों को निशाना बनाने के लिए नहीं।