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इतिहास पर नज़र डालने से पता चलता है कि  साम्राज्यवादियों या बाहरी दबाव से मजबूर हुए बिना साम्राज्यवादियों ने शायद ही कभी साम्राज्यवादी शासन छोड़ा हो। इसीलिए, साम्राज्यवादियों के ख़िलाफ लगातार बढ़ती और निरंतर हिंसा को रोकने का एकमात्र और सही तरीका, कठोर आंतरिक और बाहरी दबाव का इस्तेमाल करना है। साम्राज्यवाद को ख़त्म करने का इतिहास सदैव हिंसा से जुड़ा रहा है।

हालांकि, ऐसे दुर्लभ मामलों में जहां छोटे द्वीपों को साम्राज्यवादी ताक़तों द्वारा ख़ाली कर दिया गया है और साम्राज्यवादियों के ख़ात्मे को सर्वसम्मति से नहीं बल्कि हिंसा के बिना किया गया है।

हमास, इजराइली शासन और उसके प्रति दुनिया में मौजूद विभिन्न दृष्टिकोणों पर चर्चा करने के लिए, किसी को ज़ायोनियों की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को समझना होगा और फिलिस्तीनी प्रतिरोध को साम्राज्यवादी विरोधी संघर्ष के रूप में पहचानना होगा।

पार्सटुडे पत्रिका के इस लेख में इस मुद्दे के कुछ पहलुओं पर रोशनी डाली जाएगी:

नरसंहार के मुद्दे का विश्लेषण, जिसे ज़ायोनियों के अस्तित्व के जन्म के बाद से अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की सरकारों ने नज़रअंदाज कर दिया है।

इससे पता चलता है कि फ़िलिस्तीन में हिंसा की जड़ 19वीं सदी के अंत में ज़ायोनियों के विस्तार और अप्रवासियों की एक साम्राज्यवादी योजना में निहित है क्योंकि ज़ायोनिज़्म, अप्रवासियों की अन्य साम्राज्यवादी योजनाओं की तरह, मूल आबादी को खत्म करने की कोशिश करता था।

जब हिंसा के बिना बहिष्कार हासिल नहीं किया जा सकता है तो साम्राज्यवादियों का समाधान ज़्यादा हिंसा के इस्तेमाल पर निर्भर हो जाता है और एकमात्र चीज़ जिसमें एक साम्राज्यवादी अप्रवासी योजना, स्वदेशी लोगों के खिलाफ अपनी हिंसा को समाप्त कर सकती है और यह तब ही मुमकिन होती है जब वह योजना समाप्त हो जाती है या ख़त्म हो जाती है।

हिंसा का प्रारूप

आधुनिक फ़िलिस्तीन में 1882 से 2000 तक हिंसा का इतिहास उल्लेखनीय है। 1882 में फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी अप्रवासियों के पहले ग्रुप का आगमन, सिर्फ़ हिंसा का पहला क़दम नहीं था।

अप्रवासियों की हिंसा, जानकारियों पर आधारित और जानबूझकर थी। इसका मतलब यह था कि फ़िलिस्तीन में प्रवेश करने से पहले अप्रवासियों द्वारा फ़िलिस्तीनियों को हिंसक तरीके से हटाना उनके लेखन, कल्पनाओं और सपनों में शामिल था:

"लोगों के बिना ज़मीन" दास्तान। ज़ायोनियों ने इस विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए 1918 में फ़िलिस्तीन पर ब्रिटिश क़ब्ज़े का इंतज़ार किया। कुछ साल बाद, 1920 के दशक के मध्य में, ब्रिटिश सरकार की मदद से ग्यारह गांवों का जातीय सफ़ाया कर दिया गया।

सिर्फ़ यहूदियों के लिए काम

फ़िलिस्तीनियों को बेदखल करने के प्रयास में हिंसा का यह पहला व्यवस्थित क़दम था। हिंसा का दूसरा रूप "यहूदी काम" की रणनीति थी जिसका मक़सद, फिलिस्तीनियों को श्रम बाज़ार से निकालकर बाहर फेंकना था।

इस रणनीति और जातीय सफाए के कारण फ़िलिस्तीनियों को अन्य स्थानों पर जबरन प्रवास करना पड़ा जो निश्चित रूप से, काम या उचित आवास मुहैया कराने में सक्षम नहीं थे।

अशुभ उपासना स्थल और इंतिफ़ाज़ा की शुरुआत

1929  में जब हिंसा की इन कार्रवाइयों को हरम अल-शरीफ़ की जगह पर अशुभ उपासना स्थल बनाने की बात के साथ जोड़ा गया तो फिलिस्तीनियों ने पहली बार हिंसा से जवाब दिया।

 

यह कोई समन्वित जवाब नहीं था, बल्कि फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी साम्राज्यवाद के कड़वे परिणामों के प्रति एक सहज और हताश प्रतिक्रिया थी।

सात साल बाद, जब ब्रिटेन ने अधिक अप्रवासियों को अनुमति दी और अपनी सेना के साथ एक नई ज़ायोनी सरकार के गठन का समर्थन किया तो फिलिस्तीनियों ने और अधिक संगठित अभियान शुरू किया।

यह पहला इंतिफ़ाज़ा था जो तीन साल (1936-1939) तक चला और इसे अरब विद्रोह के नाम से जाना जाता है। इस अवधि के दौरान, फिलिस्तीन के मेधावी वर्ग ने अंततः ज़ायोनियों को फिलिस्तीन और उसके लोगों के लिए एक संभावित खतरे के रूप में पहचान लिया।

रक्षा की आड़ में हमला

विद्रोह को दबाने में ब्रिटिश सेना के साथ सहयोग करने वाले ज़ायोनी पक्षपातियों के मुख्य ग्रुप को हेगाना कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है "रक्षा"।

फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ किसी भी आक्रामक कार्रवाई का वर्णन करने के लिए इजराइली कहानी में भी यही बात कही जाती है। यानी, किसी भी हमले को आत्मरक्षा के रूप में प्रस्तुत किया गया था, एक अवधारणा जो इजराइली सेना का नाम, इजराइल के रक्षा बलों के नाम से जोड़ती होती है।

ब्रिटिश प्रभाव के ज़माने से लेकर आज तक, इस सैन्य शक्ति का उपयोग, ज़मीनों और बाज़ारों को जब्त करने के लिए किया जाता रहा है।

इस सेना को फ़िलिस्तीन के साम्राज्यवादी विरोधी आंदोलन के हमलों के ख़िलाफ़ एक रक्षा बल के रूप में पेश किया गया था और इसीलिए यह 19वीं और 20वीं शताब्दी में अन्य साम्राज्यवादियों से अलग नहीं थी।

मक़तूल की जगह आतंकवादी का नाम देना

फ़र्क़ यह है कि आधुनिक इतिहास में ज़्यादातर मामलों में जहां साम्राज्यवाद, समाप्त हो गया है, साम्राज्यवादियों के कार्यों को हमलों के के रूप में देखा जाता है, न कि आत्मरक्षा के रूप में। ज़ायोनियों की बड़ी सफलता, हमलों को आत्मरक्षा और फ़िलिस्तीनियों के सशस्त्र संघर्ष को आतंकवाद के रूप में देखना है।

ब्रिटिश सरकार कम से कम 1948 तक हिंसा के दोनों कृत्यों को आतंकवाद मानती थी लेकिन उसने 1948 में फिलिस्तीनियों के खिलाफ सबसे ख़राब हिंसा की अनुमति देना जारी रखा, ठीक उसी समय जब वह फिलिस्तीनियों के जातीय सफाए का पहला चरण देख रही थी।

दिसम्बर 1947 और मई 1948 के बीच, जब ब्रिटेन अभी भी क़ानून और व्यवस्था का ज़िम्मेदार था, ज़ायोनी सैनिकों ने फिलिस्तीन के मुख्य शहरों और उनके आसपास के गांवों को नष्ट कर दिया था। यह आतंक से कहीं अधिक और मुख्यरूप से मानवता के विरुद्ध अपराध था।

मई और दिसम्बर 1948 के बीच जातीय सफाए का दूसरा चरण पूरा होने के बाद, फिलिस्तीनी आबादी के आधे हिस्से को जबरन निष्कासित कर दिया गया, उसके आधे गांवों को नष्ट कर दिया गया और इसके अधिकांश शहरों को सबसे हिंसक तरीकों से नष्ट कर दिया गया जो फिलिस्तीन ने सदियों से देखा है।

इससे पता चलता है कि फ़िलिस्तीन में हिंसा की जड़ 19वीं सदी के अंत में ज़ायोनियों के विस्तार और अप्रवासियों की एक साम्राज्यवादी योजना में निहित है क्योंकि ज़ायोनिज़्म, अप्रवासियों की अन्य साम्राज्यवादी योजनाओं की तरह, मूल आबादी को खत्म करने की कोशिश करता था।

जब हिंसा के बिना बहिष्कार हासिल नहीं किया जा सकता है तो साम्राज्यवादियों का समाधान ज़्यादा हिंसा के इस्तेमाल पर निर्भर हो जाता है और एकमात्र चीज़ जिसमें एक साम्राज्यवादी अप्रवासी योजना, स्वदेशी लोगों के खिलाफ अपनी हिंसा को समाप्त कर सकती है और यह तब ही मुमकिन होती है जब वह योजना समाप्त हो जाती है या ख़त्म हो जाती है।

स्रोत:

Ilan Pappe. 2024.To stop the century-long genocide in Palestine, uproot the source of all violence: Zionism. The new Arab.

पवित्र क़ुरआन कहता है कि अगर कोई इंसान किसी इंसान की हत्या करता है और जिस इंसान की हत्या की गयी है उसने किसी की न तो हत्या की है और न ही ज़मीन में फ़साद किया हो तो ऐसे इंसान की हत्या समस्त इंसानों की हत्या के समान है और जिसने एक इंसान को मुक्ति दिला दी यानी उसे नजात दिला दी तो मानो उसने समस्त इंसानों को ज़िन्दा कर दिया।

एक इंसान की हत्या बहुत बड़ा गुनाह व अपराध है और प्राचीन समय से समस्त मानव समाजों में इस पर ध्यान दिया गया है। एक इंसान की हत्या उस समय अपराध व गुनाह समझी जाती है जब जानबूझ कर इंसान की हत्या की जाये और इस्लाम में इसकी कड़ी भर्त्सना की गयी है और उसे माफ़ न किया जाने वाला गुनाह समझा जाता है।

 पवित्र क़ुरआन और इस्लामी रिवायतों में बारमबार इसके हराम होने की ओर संकेत किया गया है। इसी प्रकार यह भी कहा गया है कि जो भी इंसान किसी निर्दोष इंसान की हत्या करेगा उसे कड़ा से कड़ा दंड दिया जायेगा।

 इस्लाम में इंसान की हत्या हराम है

इस्लाम में किसी इंसान की हत्या की कड़ी भर्त्सना की गयी है और उसकी गणना बड़े गुनाहों में की जाती है। पवित्र क़ुरआन सूरे इस्रा की 33वीं आयत में कहता है कि उस नफ़्स व इंसान की हत्या न करो जिसे अल्लाह ने हराम क़रार दिया है मगर यह कि वह सच व वास्तव में क़त्ल किये जाने का हक़दार हो और अगर किसी की नाहक़ व मज़लूमी की हालत में हत्या कर दी जाये तो हमने उसके वली व अभिभावक को बदला लेने व क़ेसास करने का अधिकार क़रार दिया है तो रक्तपात न करो और मज़लूम की मदद की जायेगी।

 यह आयत स्पष्ट शब्दों में किसी इंसान की हत्या को हराम बताती है और कहती है कि इंसान की जान सम्मानीय है और केवल विशेष परिस्थिति में और अल्लाह के क़ानून के अनुसार क़ेसास किया जा सकता है।

 पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में भी गम्भीरता से इस विषय का उल्लेख किया गया है। मिसाल के तौर पर इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं" क़यामत के दिन एक आदमी को एक आदमी के पास लाया जायेगा। वह उस आदमी को उसी के ख़ून में लथपथ करेगा जबकि लोगों का हिसाब- किताब हो रहा होगा तो जो इंसान अपने ख़ून में लथपथ होगा वह कहेगाः हे अल्लाह के बंदे! मेरे साथ क्यों ऐसा व्यवहार कर रहे हो? तो वह कहेगा अमुक व फ़ला दिन मेरे ख़िलाफ़ काम किये थे और मैं मारा गया था"

 यह रिवायत स्पष्ट रूप से इस बात की सूचक है कि जो किसी इंसान की हत्या करेगा परलोक में कड़ा दंड उसकी प्रतीक्षा में है और यह रिवायत इंसान की जान की सुरक्षा पर बल देती है।

 

फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहां हैं, कि पिछले कुछ महीनों में इजरायली सेना ने गाज़ा में सैकड़ों चिकित्सा कर्मियों की हत्या कर दी है और दर्जनों एम्बुलेंस को नष्ट कर दिया हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक , शनिवार शाम को फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है इजरायली हमलों की शुरुआत के बाद से गाज़ा में लगभग 500 चिकित्सा कर्मी शहीद हो गए हैं और सैकड़ों घायल हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा क्या हैं कि कब्ज़ा करने वाली इज़रायली सेना ने गाज़ा से 310 और चिकित्सा कर्मियों को गिरफ्तार कर लिया है और इज़राइली शासन के हमलों में 130 एम्बुलेंस भी नष्ट हो गई हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले महीनों में वेस्ट बैंक में स्वास्थ्य सुविधाओं और उनके कर्मचारियों पर 340 से अधिक हमले किए गए।

फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि इज़रायली सेना जानबूझकर स्वास्थ्य केंद्रों पर हमला करती है जिसके कारण फ़िलिस्तीनी बुनियादी चिकित्सा सेवाओं तक पहुँच से वंचित रहे।

 

एक बयान में कहा गया है कि गाजा में पानी,खाना की स्थिति बहुत खराब है और पानी और सीवेज की खराब स्थिति के कारण नई बीमारियाँ फैल रही हैं।

फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने जल भंडारों की कमी और चारों ओर फैली गंदगी के कारण गाज़ा में चिकित्सा स्थिति को विनाशकारी बताया है।

इस संबंध में फिलिस्तीनी मंत्रालय का कहना है कि चिकित्सा कर्मियों के साथ साथ चिकित्सा उपकरणों की भी भारी कमी है।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के चागी जिले के पदाग इलाके में ज़ायरीन की बस का एक्सीडेंट हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप कई ज़ायरीन घायल हो गए हैं।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के चागी जिले के पदाग इलाके में ज़ायरीन की बस का एक्सीडेंट हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप कई ज़ायरीन घायल हो गए हैं।

पाकिस्तानी एक्सप्रेस न्यूज़ के मुताबिक, बलूचिस्तान प्रांत के चागी जिले के पदाग इलाके के पास ज़ायरीन की बस का एक्सीडेंट हो गया, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग घायल हो गए.

लेवी सूत्रों के मुताबिक, हादसा तेज रफ्तार के कारण हुआ है जिसके कारण बस पलट गई।

घायलों में पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल हैं घायल तीर्थयात्रियों को चिकित्सा के लिए जिला मुख्यालय अस्पताल नुश्की में स्थानांतरित कर दिया गया है।

 

 

 

 

 

बांग्लादेश में नहीं थम रही हिंसा, प्रदर्शनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट को घेरा इस्तीफा देने को मजबूर हुए मुख्य न्यायाधीश

बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश ओबैदुल हसन ने इस्तीफा दे दिया शनिवार  10 अगस्त  को सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने राजधानी ढाका में सुप्रीम कोर्ट परिसर का घेराव किया इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने सीजे और अपीलीय प्रभाग के अन्य न्यायाधीशों को दोपहर 1 बजे स्थानीय समय तक पद छोड़ने का अल्टीमेटम जारी किया था।

बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश ओबैदुल हसन ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट को घेरने वाले प्रदर्शनकारियों के बाद अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला किया उन्होंने एक घंटे के भीतर पद छोड़ने की चेतावनी दी है।

द डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार,प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी थी कि अगर वे इस्तीफा नहीं देते हैं तो वे शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीश के आवासों पर धावा बोल देंगे।

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे तथाकथित हमलों को मामला भारत में भी गर्माता जा रहा है। कई हिंदू संगठनों ने इसे लेकर आवाज उठाई है। अब इस मामले में गोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है।

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एक वीडियो के माध्यम से इस मुद्दे पर कहा है कि शांति बनाने के लिए मुसलमान हिंदुओं पर कृपा न करें, मुसलमानों को चाहिए वे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए हिंदुओं को संरक्षित और स्वावलंबी रखें। उन पर आंच न आने दें। यदि हिंदुओं को निशाना बनाकर हमला किया गया तो हो सकता है सौ-दो सौ हिंदू मार दिए जाएं, लेकिन फिर मुसलमानों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

 

ईरान के मशहूर नौहा ख़्वान और बीबी मासूमा ए क़ुम के रोज़े के ख़ादिम हाज अहमद शम्स ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

आपका इंतेक़ाल इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की कमसिन शहज़ादी हज़रत सकीना की शबे शहादत में हुआ।

कर्बला से हमने क्या सीखा ? क्या लोगों का किरदार इमाम हुसैन अलैहिसलाम के शहादत के बाद सुधरा ? 

असत्य पे सत्य की जीत की पूरी दुनिया में पहचान बन चुके हुसैन पैगंम्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद के नाती थे और मुसलमानो के खलीफा हज़रत अली के बेटे थे | इमाम हुसैन की माँ हज़रत मुहम्मद की इकलौती बेटी फातिमा बिन्ते मुहम्मद थीं | इस घराने ने हमेशा दुनिया के हर मसले का हल शांतिपूर्वक तलाशने की कोशिश की यहां तक की लोग जब इनपे ज़ुल्म करते तो यह सब्र करते | इनका पैग़ाम था समाज में जहां रहते हो वहाँ हक़ का साथ दो , इन्साफ से काम लो और जो अपने लिए पसंद करते हो वही दूसरों के लिए पसंद करो और दुनिया के हर धर्म के इंसानो के साथ नेकी करो मानवता का त्याग कभी मत करना |

जैसा की दनिया में होता आया है सत्य का परचम जहां लहराया की असत्य की राह पे चलने वालों को तकलीफ होते लगती है क्यों की उनको उनका वजूद ख़त्म होता दिखाई देने लगता है | ऐसा  ही उस दौर के असत्य की राह पे चलने वालों लगता था और वे हज़रत मुहम्मद के इस घराने पे ज़ुल्म किया करते थे लोगों को उनके लिए अफवाहों और झूटी कहानियों से भ्रमित किया  करते थे लेकिन इस घराने ने कभी सत्य का हक़ का और सब्र का साथ नहीं छोड़ा |

पैगंम्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स ) की वफ़ात के बाद से इस घराने पे ज़ुल्म बढ़ते गए | हज़रत अली के इल्म के आगे कोई नहीं था लेकिन मिम्बर ऐ रसूल पे लोगों ने साज़िश फरेब से किसी और को बिठा दिया | हज़रत अली की नमाज़ के आगे क्या किसी की नमाज़ थी लेकिन उनके खिलाफ अफवाह फैलाई और उन्हें बेनमाजी क़रार दिया गया और यह अफवाह इतनी फैली की जब मस्जिद ऐ कूफ़ा में सजदे में शहादत पायी तो लोग पूछते थे अरे अली मस्जिद में क्या कर रहे थे ?

यह ज़ुल्म का सिलसिला हज़रत अली के बाद इमाम हुसैन के साथ बढ़ता चला गया और इंतेहा यह हो गयी की  शराबी यज़ीद ज़ालिम यज़ीद खलीफा बन गया और कमाल तो यह  की  मुसलमानो ने बग़ावत भी न की जबकि सब जानते थे हक़ क़ुरआन है हक़ हुसैन के साथ है |

आज भी यह सिलसिला जारी है | हक़ का साथ देने वाला , इन्साफ करने वाला, , आलिम और जाहिल का फ़र्क़ करने वाला , सब्र करने वाला , हराम माल से परहेज़ करने वाला , अफवाहों को फैलाने से परहेज़ करने वाला , झूटी तोहमतें न लगाने वाला, औरतों की इज़्ज़त  करने वाला , दूसरों के अकेले में किये गए गुनाहों को आम न करने वाला  शिया ने अली , हुसैनी कहलाता और जो कोई भी इसके खिलाफ चले वो खुद को चाहे कुछ भी कहे हुसैनी नहीं हो सकता |

अफ़सोस का मक़ाम है की कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद आज भी मजमा ऐ आम उस दौर की तरह अपना दुनियावी फायदा देख के लोगों  का साथ देता , इज़्ज़त करता नज़र आता है जबकि देना चाहिए उसका साथ जो क़ुरआन के साथ हो जो हुसैन के नक़्शे क़दम पे चलने की कोशिश करता हो जो इंसाफ पसंद हो अब ऐसे में हमारे  वक़्त ऐ इमाम का ज़हूर हो जाय तो क्या होगा ? खुदा न करे हमारी आदत हक़ पसंदगी की न रही खौफ से लालच से हक़ का  साथ न देने की आदत रही तो कहीं फिर एक कर्बला ना हो जाय की अलअजल की दुआ कर के इमाम को बुलाने वाले कोफ़ियों की तरह साथ न छोड़ दें?

अपने किरदार को हुसैनी किरदार बनाएं और यक़ीन रखें ज़हूर ऐ इमाम ऐ वक़्त जल्द से जल्द होगा और कर्बला के शहीदों को इन्साफ मिलेगा और हमें ज़ुल्म से निजात |

 

ईरान में हमास चीफ की हत्या कर संकट में घिरे इस्राईल को बचने के लिए अमेरिका ने पूरा ज़ोर लगा दिय्या है। अमेरिका मध्य पूर्व में लड़ाकू विमानों और अन्य साधनों को तैनात कर रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि अवैध राष्ट्र इस्राईल पर ईरान और हिज़्बुल्लाह के संभावित हमले के कारण तनाव बहुत अधिक है। दावा किया जा रहा है कि अमेरिका ने भी इस जंग के लिए तैयारी पूरी कर ली है। अमेरिकी वायुसेना के एफ-22 रैप्टर विमान, अमेरिकी सेंट्रल कमांड के जिम्मेदारी वाले क्षेत्र में पहुंचे हैं।

अमेरिका की न्यूज वेबसाइट एक्सियोस ने दावा किया है कि कुछ ही दिनों में ईरान और हीज़बबुल्लाह अवैध राष्ट्र इस्राईल पर हमला कर सकते हैं। हमास और हिज़्बुल्लाह के शीर्ष नेताओं की मौत के बाद से मध्य पूर्व में तनाव बढ़ा हुआ है, क्योंकि ईरान और हिज़्बुल्लाह ने ज़ायोनी शासन से बदला लेने की बात कही है। हालांकि, अभी तारीख तय नहीं है कि हमला कब होगा लेकिन कहा जा रहा है कि ईरान और हिज़्बुल्लाह दोनों जवाबी कार्रवाई ज़रूर करेंगे।

 

ग़ज़्ज़ा में विस्थापित हुए बेघर लोगों के आवास वाले स्कूल पर ज़ायोनी सेना के बर्बर हमले में कम से कम 90 लोगों की मौत हो गई। इस्राईल ने दावा किया है कि यह हमला का हमास कमांड सेंटर पर किया गया था।

ग़ज़्ज़ा की नागरिक सुरक्षा एजेंसी ने शनिवार को कहा कि ग़ज़्ज़ा शहर में स्कूल पर तीन ज़ायोनी रॉकेट गिरे। उसने इस घटना को भयानक नरसंहार बताया, जिसमें कुछ शवों में आग लग गई। ज़ायोनी सेना ने शनिवार को कहा कि उसने अल-ताबेईन स्कूल में स्थित हमास कमांड और कंट्रोल सेंटर में सक्रिय हमास पर सटीक हमला किया।

इस हमले से 2 दिन पहले ही ग़ज़्ज़ा के अधिकारियों ने कहा था कि ग़ज़्ज़ा शहर में दो अन्य स्कूलों पर ज़ायोनी हमलों में 18 से अधिक लोग मारे गए हैं जबकि ज़ायोनी सेना ने उस वक्त भी कहा था कि उसने हमास के कमांड सेंटर पर हमला किया था।