رضوی

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अमेरिकी टीवी चैनल CNN ने एक बड़ा खुलासा करते हुए बताया है कि इज़राइली ग़ासिब और जौलानी हुक्काम के बीच बाको, अज़रबैजान में सीधी बातचीत हुई है।

अमेरिकी टीवी चैनल सी एन एन ने खुलासा किया है कि इज़राइली ग़ासिब हुकूमत और शाम (सीरिया) के खुदसाख्ता हुक्मरान जौलानी के नुमाइंदों के बीच हाल ही में बाको, अज़रबैजान में सीधी बातचीत हुई है।

सी एन एन के अनुसार, एक इसराइली स्रोत ने बताया कि इस बैठक में इज़राइली फौज के ऑपरेशन्स डिपार्टमेंट के प्रमुख ओदेद बासियोक, जोलानी के नुमाइंदे, और तुर्की हुक्काम शामिल थे।

यह भी ज़िक्र किया गया है कि शामी हुक्मरान और आतंकी संगठन तहरीर अलशाम के नेता अल-जोलानी ने पिछले हफ्ते एलान किया था कि इज़राइली हुकूमत के साथ बातचीत चल रही है ताकि देश पर होने वाले हमलों को रोका जा सके।

अब तक शाम की किसी सरकारी ज़रिए ने इज़राइल के साथ सीधे बातचीत की पुष्टि नहीं की है।CNN के सूत्रों ने न तो बातचीत के एजेंडे और न ही मध्यस्थ (third party mediator) के बारे में कोई जानकारी साझा की।

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले सऊदी अरब में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, शामी नेता जौलानी और तुर्की राष्ट्रपति एर्दोआन के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस की थी। इसमें चर्चा हुई कि अगर सीरिया इज़राइल के साथ संबंध सामान्य करता है, तो उस पर लगी पाबंदियां हटाई जा सकती हैं।

ट्रंप और जोलानी की सऊदी में यह मुलाकात मीडिया की खास तवज्जो का विषय बनी रही, क्योंकि हाल के वर्षों में अमेरिका ने आतंकी नेता अलजोलानी के बारे में सूचना देने पर 1 करोड़ डॉलर का इनाम घोषित किया था। अब ट्रंप ने यू-टर्न लेते हुए, उसी शख्स का गर्मजोशी से इस्तकबाल किया और उसकी तारीफ़ की।

 

ईरानी लड़कियों ने चीन को हराकर 2025 की फ़ुटसाल विश्व कप में भाग लेने की योग्यता हासिल कर लिया है।

बधाई हो! यह ईरान के महिला खेलों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।

 ईरान की राष्ट्रीय महिला फ़ुटसाल टीम ने चीन पर जीत हासिल कर के विश्व कप में भाग लेने की योग्यता सहमति प्राप्त कर ली है।

 ईरान की राष्ट्रीय महिला फ़ुटसाल टीम ने एशियाई महिला फ़ुटसाल चैंपियनशिप के प्ले-ऑफ अर्थात तीसरे स्थान के मुकाबले में चीन को 3-1 से हराकर, महिला फ़ुटसाल विश्व कप के पहले मुक़ाबले में भाग लेने का अधिकार प्राप्त कर लिया है।

ईरानी महिला फ़ुटसाल टीम ने शनिवार को प्रतियोगिता के अपने अंतिम मैच में मेज़बान देश चीन का सामना किया और 3-1 से शानदार जीत दर्ज की।

 यह मैच तीसरे स्थान और महिला फ़ुटसाल विश्व कप के अंतिम मुक़ाबले के लिए विशेष महत्व रखता था और ईरानी टीम ने यह मुक़ाबला जीतकर इतिहास रच दिया।

 फ़ुरूज़ान सुलैमानी की शिष्याओं ने संगठित और समझदारी भरा प्रदर्शन करते हुए मेज़बान टीम के खिलाफ अपनी बेहतरी व श्रेष्ठता को मज़बूती से साबित कर दिया और एशिया में तीसरा स्थान प्राप्त करते हुए 2025 महिला फ़ुटसाल विश्व कप में खेलने का अधिकार हासिल कर लिया।

 महिला फ़ुटसाल विश्व कप सन् 2025 के अंत में फिलिपींस की मेज़बानी में आयोजित होगा।

इस प्रतियोगिता में ईरान, फिलिपींस, जापान और थाईलैंड एशिया की ओर से प्रतिनिधित्व करेंगे। 

 

 ईरान के व्यापार विकास संगठन में भारतीय उपमहाद्वीप मामलों के उपाध्यक्ष ने जानकारी दी है कि तेहरान और काबुल के बीच व्यापार में ईरान की 21 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

ईरान के व्यापार विकास संगठन में भारतीय उपमहाद्वीप मामलों के उपाध्यक्ष ने जानकारी दी है कि तेहरान और काबुल के बीच व्यापार में ईरान की 21 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

 हमीद रज़ा कर्बलायी ने, जो कि ईरान के व्यापार विकास संगठन में भारतीय उपमहाद्वीप मामलों के उपाध्यक्ष हैं, पिछले गुरुवार को इस बात पर ज़ोर दिया कि ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच व्यापार के विकास, सरलीकरण और प्रोत्साहन की आवश्यकता है।

 उन्होंने यह भी बताया कि दोनों देशों के बीच छठी संयुक्त आयोग की धाराओं के मसौदे को अंतिम रूप देने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

 उन्होंने कहा: अफ़ग़ानिस्तान का कुल वार्षिक आयात 10.6 अरब डॉलर है

जिसमें से ईरान की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत है।

ईरान पश्चिमी एशिया में सबसे बड़े विद्युत उत्पादकों में से एक

ईरान के ऊर्जा मंत्री अब्बास अली आबादी ने बीते गुरुवार, पश्चिम करमांशाह की यात्रा के दौरान, जहाँ वे जल और विद्युत से संबंधित चार परियोजनाओं का उद्घाटन करने पहुंचे थे, कहा: ईरान, क्षेत्र में सबसे बड़े बिजली उत्पादकों में से एक है और रूस के बाद दूसरे स्थान पर आता है।

 ट्रांस-कैस्पियन और अलमाटी-तेहरान-इस्तांबुल कॉरिडोर पर बैठक आयोजित

संयुक्त राष्ट्र यूरोपीय आर्थिक आयोग और ईसीओ अर्थात आर्थिक सहयोग संगठन की सातवीं संयुक्त समन्वय समिति की बैठकगुरुवार को उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में आयोजित हुई।

इस बैठक में समिति के आठ सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

 बैठक का विषय था: ट्रांस-कैस्पियन कॉरिडोर और अलमाटी-तेहरान-इस्तांबुल गलियारे के कार्यान्वयन और समन्वय।

इस बैठक में अलीरज़ा महमूदी ने ईसीओ संगठन में परिवहन और संचार विभाग के प्रमुख  ने ईसीओ सचिवालय के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।

 

ईरान और रूस के बीच मानचित्रण सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर

ईरान की मानचित्रण संगठन और रूस की फेडरल रजिस्ट्रेशन, कैडस्ट्रे और मैपिंग एजेंसी के बीच सहयोग के एक समझौते पर शुक्रवार को रूस के कज़ान शहर में आयोजित 'रूस - इस्लामी दुनिया: कज़ान फोरम' की 16वीं अंतरराष्ट्रीय आर्थिक बैठक के मौक़े पर हस्ताक्षर हुआ।

 इस समझौते का उद्देश्य: मानचित्रण प्रौद्योगिकियों के आदान-प्रदान में सहयोग को मजबूत करना

 यह समझौता, मानचित्रण और भू-स्थानिक विज्ञान के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच तकनीकी और वैज्ञानिक संबंधों को गहरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है।

 ईरान और स्पेन के बीच व्यापार में वृद्धि

ईरान के चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अंतरराष्ट्रीय मामलों के विभाग ने हाल ही में घोषणा की है कि: पिछले कैलेंडर वर्ष में ईरान और स्पेन के बीच व्यापारिक लेन-देन में 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई और इसका कुल मूल्य 350 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया,जिसमें ईरान की निर्यात हिस्सेदारी 70 मिलियन डॉलर रही।

 साल 2024 में: स्पेन का ईरान को निर्यात लगभग 280 मिलियन डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 2 प्रतिशत अधिक है।

 वहीं, ईरान का स्पेन को निर्यात भी 7 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 70 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया।

 मुख्य व्यापारिक वस्तुएँ: ईरान से स्पेन को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ इस प्रकार हैं: पेट्रोकेमिकल उत्पाद, केसर और मेवे

स्पेन से ईरान को आयात की जाने वाली मुख्य वस्तुएँ इस प्रकार हैं: मशीनरी और चिकित्सा उपकरण तथा खाद्य सामग्री।

 

सिपाहे इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) में सुप्रीम लीडर के प्रतिनिधि ने कहा: मीडिया युद्ध में, आप, इस क्षेत्र में एक सैनिक के रूप में, अपनी गुणवत्ता और समृद्ध सामग्री के माध्यम से विचारों को बदल सकते हैं और संदेहों का उत्तर दे सकते हैं।

सिपाहे इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) में सुप्रीम लीडर के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हुसैन दशती ने जनसंपर्क दिवस के अवसर पर आयोजित "रविदाद ओमिद" नामक सम्मेलन में अपने भाषण के दौरान, अशरा ए करामत और जनसंपर्क संचार मामलों के दिवस और शहीद आयतुल्लाह रईसी को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा: प्रत्येक संस्था की जनसंपर्क शाखा उसके आंतरिक वातावरण का प्रतिनिधि है, और इस संबंध में, दो मुद्दे महत्वपूर्ण हैं: वास्तविकता, पहचान और संस्था की प्रगति का प्रतिबिंब, और संदेश या सामग्री की प्रकृति।

संगठन की खबरों को प्रतिबिंबित करने के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा: "मीडिया में आना प्रत्येक संगठन का अधिकार है ताकि उसे ध्यान और समर्थन मिले, और इसे प्राप्त करने का साधन जनसंपर्क है।"

सिपाहे इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि ने कहा: मीडिया एक व्यक्तित्व निर्माता है; कभी-कभी यह किसी व्यक्ति को बहुत बड़ा बना देता है जबकि कुछ व्यक्ति गुमनाम रह जाते हैं। इसलिए, मीडिया को इस प्रक्रिया में अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए तथा अतिशयोक्ति और अनावश्यक प्रचार से बचना चाहिए।

मीडिया सामग्री के महत्व पर चर्चा करते हुए, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन दश्ती ने कहा: वर्तमान असंतुलित और संयुक्त युद्ध के संदर्भ में, सामग्री की तैयारी में अधिक सावधानी और ध्यान देने की आवश्यकता है। इस मीडिया युद्ध में, आप एक सैनिक के रूप में, अपनी गरिमापूर्ण और व्यावहारिक विषय-वस्तु के माध्यम से लोगों की सोच बदल सकते हैं तथा उनकी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं।

उन्होंने यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला: मीडिया का क्षेत्र बहुत कठिन और संवेदनशील है, इस पर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि हम प्यासे तक सच्चाई का संदेश सफलतापूर्वक पहुंचा सकें।

 

मिस्री विश्लेषकों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तीन अरब देशों के दौरे का उल्लेख करते हुए कड़ी आलोचना की है कि ट्रंप को मुफ़्त में पैसा, तोहफे और निवेश दिया गया लेकिन उनसे यह नहीं कहा गया कि वे ग़ाज़ा के ख़िलाफ युद्ध को रोकें।

क़ाहिरा विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर यमनी अल-ख़ौली ने शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप के क्षेत्रीय दौरे और सऊदी अरब, क़तर और संयुक्त अरब अमीरात के अधिकारियों द्वारा उन्हें गर्मजोशी से किये गये स्वागत और महंगे तोहफों पर प्रतिक्रिया दी।

 यमनी अल-ख़ौली ने कहा: "इतिहास में कोई भी देश, यहां तक कि विश्व युद्ध के समय भी, अमेरिकी शासक को लाखों डॉलर के तोहफ़े और ट्रिलियनों की दान राशि नहीं देता।"

 मिस्री अर्थशास्त्री हानी तौफीक़ ने भी अरब शासकों द्वारा ट्रंप के लिए की जा रही अत्यधिक सेवा और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ की तीव्र आलोचना की। उन्होंने इस पर भी कड़ा विरोध जताया कि ज़ायोनी शासन के ग़ाज़ा पट्टी पर हमलों को रोकने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया जा रहा है।

 

हानी तौफ़ीक ने अरब शासकों से कहा: जो कुछ हो रहा है वह एक अपराध है  और यह अपराध न केवल ईश्वरीय न्याय के सामने बल्कि इतिहास में भी आपके ख़िलाफ सवाल उठाएगा।"

 आलिया महदी, मिस्र की पूर्व अर्थशास्त्री और राजनीतिक विज्ञान संकायाध्यक्ष, ने अरब शासकों के व्यवहार की तीव्र आलोचना करते हुए कहा: अमेरिका और उसके राष्ट्रपति को इतने सारे पैसे और तोहफ़ों का क्या फायदा है? सफ़ल नेता अपने जनाधार और जनता के समर्थन पर भरोसा करते हैं और देश के सुचारू संचालन में अपनी सफलता को महत्व देते हैं।"

 मिस्र के पूर्व राजनयिक फौज़ी अल-अशमावी ने भी कड़ी आलोचना की कि अरब देश अपनी ताक़त के साधनों जैसे संबंध तोड़ना, ज़ायोनी शासन के साथ समझौतों को रद्द करना और तेल अवीव के समर्थक अमेरिका में निवेश न करने का उपयोग नहीं कर रहे हैं। उन्होंने इसे ग़ाज़ा पट्टी में हत्याओं के लगातार जारी रहने का कारण बताया।

 मिस्री विश्लेषक कमाल हबीब ने ट्रंप के क्षेत्रीय दौरे की घटनाओं का ज़िक्र करते हुए इसे अरब शासकों की अमेरिका के प्रति पूरी तरह समर्पण बताया। उन्होंने कहा: यह स़िर्फ़ आर्थिक और व्यापारिक समझौतों या सहयोग की बात नहीं थी, बल्कि अमेरिका के सामने स्पष्ट समर्पण था।

 इस विश्लेषक ने ट्रंप के तीन अरब देशों के दौरे के दौरान आयोजित स्वागत समारोहों, महंगे उपहारों और मीडिया प्रचार का उल्लेख किया और कड़ी आलोचना की कि इन तीनों देशों ने गाज़ा पट्टी के ख़िलाफ़ जारी युद्ध को रोकने की कोई मांग नहीं की।

 कमाल हबीब ने जोर देकर कहा: कि गाज़ा बिकाऊ नहीं है और यह किसी भी अत्याचारी और ज़ालिम के सामने गले की हड्डी नहीं बनेगा। 

 

नाइल बरग़ूती, जिन्हें दुनिया का सबसे लंबे समय तक क़ैद में रहने वाला राजनीतिक क़ैदी माना जाता है, इज़राइल की एक जेल में क़ैद थे और क़ैदियों की अदला-बदली के एक समझौते के तहत रिहा किया गया। उन्होंने फ़िलस्तीनियों पर ढाए जा रहे अंतहीन अत्याचारों पर दुनिया की "शर्मनाक" ख़ामोशी की कड़ी निंदा की है।

नाइल बरग़ूती, जिन्हें दुनिया का सबसे लंबे समय तक क़ैद में रहने वाला राजनीतिक क़ैदी माना जाता है इज़राइल की एक जेल में बंद थे और क़ैदियों की अदला-बदली के एक समझौते के तहत रिहा किए गए। उन्होंने फ़लस्तीनियों पर हो रहे न खत्म होने वाले अत्याचारों पर दुनिया की "शर्मनाक" ख़ामोशी की कड़ी निंदा की है।

एक बयान में जो कल जारी किया गया बरग़ूती ने जो इस साल फरवरी में हमास और इज़राइल के बीच क़ैदियों के अदला-बदली समझौते में रिहा हुए कहा,इज़राइली क़ैदियों की रिहाई के समय दुनिया की पूरी तवज्जो और फ़िलस्तीनियों की हत्या व गिरफ़्तारी के समय की बेरुख़ी व लापरवाही वाक़ई हैरान करने वाली है!

इस 65 वर्षीय व्यक्ति ने इज़राइली जेलों को ज़िंदगी का क़ब्रिस्तान क़रार दिया, जहाँ क़ैदियों को हर दिन शारीरिक और मानसिक यातनाओं, धीरे-धीरे मौत देने वाली नीतियों और मानव गरिमा की ऐसे उल्लंघनों का सामना करना पड़ता है, जिनकी मिसाल इतिहास के सबसे अंधेरे दौरों में भी नहीं मिलती।

45 साल इज़राइली जेलों में गुज़ारने वाले बरग़ूती ने मांग की कि इज़राइल की इन घिनौनी नीतियों को बेनकाब करने के लिए फौरन कार्रवाई की जाए। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इन अपराधों में इज़राइल का सहभागी और ज़िम्मेदार ठहराया।

हौजा में प्रोफेसर और शोधकर्ता हुज्जुल इस्लाम मुजतबा नजफी ने एक लेख में शहीद आयतुल्लाह सय्यद इब्राहिम रईसी की पहली बरसी के अवसर पर उनके व्यक्तित्व और सेवाओं की समीक्षा की है।

हौज़ा ए इल्मिया और जामेअतुल -मुस्तफा में प्रोफेसर और शोधकर्ता हुज्जतुल इस्लाम मुजतबा नजफी ने शहीद आयतुल्लाह सय्यद इब्राहिम रईसी की पहली बरसी के अवसर पर उनके व्यक्तित्व और सेवाओं की समीक्षा की है।

उन्होंने लिखा:

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के राष्ट्रपति शहीद आयतुल्लाह सय्यद इब्राहिम रईसी की शहादत को एक साल बीत चुका है। आस्थावान व्यक्ति जिन्होंने ईमानदारी और दृढ़ता के साथ लोगों की सेवा करना अपना धार्मिक कर्तव्य माना और न्याय और निष्पक्षता के मार्ग पर सत्य से कभी पीछे नहीं हटे। यह लेख एक ऐसे राष्ट्र की भावनाओं की अभिव्यक्ति है जो आज भी उनके जाने का दर्द महसूस करता है।

आयतुल्लाह रईसी ने अपनी युवावस्था से ही धार्मिक ज्ञान और न्याय के प्रति जुनून से प्रेरित होकर न्यायशास्त्र का मार्ग अपनाया। उन्होंने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के प्रतिष्ठित शिक्षकों, विशेष रूप से शहीद आयतुल्लाह बहश्ती से लाभ उठाया और उत्पीड़ितों का समर्थन करना और न्याय की मांग करना अपने जीवन का आदर्श वाक्य बना लिया। उनके व्यक्तित्व की विशेषता ईमानदारी, निर्णायकता और सार्वजनिक मित्रता थी। लोगों के प्रति उनकी विनम्रता, वंचितों के प्रति करुणा और भ्रष्टाचार के खिलाफ दृढ़ संकल्प ने उन्हें ईरानी राष्ट्र के दिलों में एक स्थायी स्थान बना दिया।

उन्हें अपनी सभी जिम्मेदारियों में न्यायपालिका के एक महान समर्थक और रक्षक के रूप में जाना जाता था, खासकर न्यायपालिका की अध्यक्षता और गणतंत्र की अध्यक्षता के दौरान। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ जिहाद को अपनी प्राथमिकता बनाया और सरकारी ढांचे को जनसेवा के लिए प्रभावी बनाने का प्रयास किया।

विदेश नीति में भी उनकी भूमिका प्रमुख थी। उन्होंने प्रतिरोध की धुरी को मजबूत किया और दुनिया के उत्पीड़ित लोगों, खासकर फिलिस्तीन, लेबनान और यमन के लोगों का जोरदार समर्थन किया। उनका मानना ​​था कि ईरान को उत्पीड़ित राष्ट्रों के साथ खड़ा होना चाहिए और उत्पीड़न के सामने चुप नहीं रहना चाहिए। आर्थिक क्षेत्र में, सबसे कठोर प्रतिबंधों के बावजूद, उन्होंने देश को बाहरी निर्भरता से मुक्त करने, घरेलू उत्पादन का समर्थन करने और लोगों की अर्थव्यवस्था में सुधार करने के प्रयास किए।

हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई उनकी शहादत की खबर ने न केवल ईरानी राष्ट्र बल्कि दुनिया भर के उत्पीड़ित लोगों में भी शोक की लहर दौड़ा दी। उनका निधन न केवल ईरान के लिए एक क्षति थी, बल्कि वे उन नेताओं में से एक थे जो सत्य के मार्ग के कठिन रास्तों पर चलते हैं। ईरान और विदेशों में उनकी याद में आयोजित शोक समारोह इस बात का प्रमाण थे कि उनके व्यक्तित्व का दिलों पर कितना गहरा प्रभाव था। देश भर से हजारों शोक संतप्त लोग नम आंखों से उनके स्मारक समारोहों में शामिल हुए।

आयतुल्लाह रईसी की शहादत भविष्य की पीढ़ियों पर न्याय, प्रतिरोध और उत्पीड़न के खिलाफ दृढ़ता के मार्ग पर चलने की भारी जिम्मेदारी डालती है। उनकी विरासत न केवल राजनीतिक निर्णयों में बल्कि सार्वजनिक सेवा, न्याय और विनम्रता में भी स्पष्ट है।

आयतुल्लाह रईसी केवल एक राष्ट्रपति नहीं थे, बल्कि न्याय, प्रतिरोध और सेवा के प्रतीक थे। हालाँकि उनकी शहादत एक दुखद त्रासदी है, लेकिन उनका नाम और स्मृति हमेशा ईरानी राष्ट्र के दिलों में ज़िंदा रहेगी। यह लेख शहीद रईसी के एक वाक्य के साथ समाप्त होता है:

"हम न्याय को लागू करने आए हैं, हम किसी भी खतरे से नहीं डरते हैं, और जब तक हमारा जीवन रहेगा हम लोगों के साथ खड़े रहेंगे।"

यह लेख न्याय के दर्द से परिचित हर व्यक्ति को संदेश है कि शहीदों का मार्ग कभी नहीं रुकता। इतिहास गवाह है कि शहीदों का खून हमेशा समाज को नया जीवन देता है और सच्चाई के मार्ग को रोशन करता है।

 

मजलिस-ए-खुबरेगान रहबारी के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद मेहदी मीर बाकरी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका अपनी धमकियाँ जारी रखता है, तो सभी प्रतिरोध समूह जल्द ही आधुनिक और उन्नत हथियारों से लैस हो जाएँगे।

मजलिसे खुबरेगान रहबरी के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद मेहदी मीर बाकरी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका अपनी धमकियाँ जारी रखता है, तो सभी प्रतिरोध समूह जल्द ही आधुनिक और उन्नत हथियारों से लैस हो जाएँगे।

उन्होंने यह बात हौज़ा-ए-इल्मिया रजविया के शहीद छात्रों और क़ुम में रूहानीयत के शहीदों की याद में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कही।

उन्होंने कहा: “धार्मिक विद्यालयों को इतिहास के दर्शन और औपनिवेशिक मानचित्रों की गहरी समझ के साथ पश्चिमी भौतिक सभ्यता का सामना करना चाहिए, एक सभ्यता जो पुनर्जागरण से शुरू होकर आज पूरी दुनिया पर हावी होना चाहती है।”

हुज्जतुल इस्लाम मीर बाकरी ने पश्चिमी प्रभाव के तीन चरणों का उल्लेख किया: 1. संवैधानिक सैन्य युग के बाद, 2. रजा खान के युग से आधुनिक राज्यों की स्थापना, 3. तीसरा चरण, सांस्कृतिक आक्रमण जो अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं और आध्यात्मिकता को मिटाने के लिए शुरू किया गया था।

उन्होंने इस्लामी क्रांति को इस संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में वर्णित किया और कहा: "इमाम खुमैनी (र) के नेतृत्व में, हौज़ा ए इल्मिया ने पश्चिम के खिलाफ एक वैश्विक आंदोलन की नींव रखी। शहीद मुताहरी और शहीद बहश्ती जैसे विद्वान इस महान जिहाद के अग्रदूत थे, और उनका मार्ग जारी रहना चाहिए।"

उन्होंने कहा कि पश्चिम आज अरब देशों और इजरायल के साथ षडयंत्र जैसे समझौतों के माध्यम से इस्लामी दुनिया पर वर्चस्व की एक नई व्यवस्था स्थापित करना चाहता है, लेकिन इस्लामी गणतंत्र ईरान के नेतृत्व में प्रतिरोध मोर्चा दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा है, और यदि अमेरिकी राष्ट्रपति की धमकियाँ जारी रहीं, तो सभी प्रतिरोध समूह जल्द ही आधुनिक हथियारों से लैस हो जाएँगे।

हौज़़ा की भूमिका पर जोर देते हुए, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुसलेमीन मीर बाकरी ने कहा: "क्रांति के सर्वोच्च नेता के घोषणापत्र के अनुसार, हौज़ा की जिम्मेदारी है कि वह सांस्कृतिक नाटो का मुकाबला करने के लिए क्रांतिकारी व्यक्तियों को प्रशिक्षित करे, और इस्लामी जागृति को जीवित रखने, पैगंबर के इस्लाम की तुलना में अमेरिकी इस्लाम के प्रभाव को रोकने और अहले-बैत (अ) की शुद्ध शिक्षाओं को व्यक्त करने में प्रभावी भूमिका निभाए।"

 

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ ईरान ब्रॉडकास्टिंग ऑर्गनाइज़ेशन के प्रमुख ने कहा है कि शहीद इस्माइल हनिया, याह्या सिनवार और सैयद हसन नसरुल्लाह का ख़ून, शिया और सुन्नियों के बीच प्रतिरोध और एकता का प्रतीक है।

आईआरआईबी के प्रमुख पैमान जिब्बिली ने गुरुवार को ईरान के होर्मोज़्गान प्रांत में सुन्नी विद्वानों से मुलाक़ात की और शियाओं द्वारा सुन्नियों के लिए निरंतर समर्थन और ग़ज़ा और फ़िलिस्तीन के इतिहास में इसकी स्पष्ट अभिव्यक्ति का ज़िक्र करते हुए कहाः शहीद इस्माइल हनिया, याह्या सिनवार और सैयद हसन नसरुल्लाह का ख़ून शिया और सुन्नियों के बीच प्रतिरोध और एकता का प्रतीक है।

ईरान के राष्ट्रीय मीडिया के प्रमुख ने विभिन्न क्षेत्रों में सुन्नियों की क्षमताओं के उपयोग पर आधारित इस्लामी गणराज्य की नीतियों के उल्लेख के लिए संगठन के प्रयासों पर ज़ोर देते हुए कहाः इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के अनुसार, जो शिया सुन्नियों की धार्मिक मान्यताओं का अपमान करता है, वह एक ब्रिटिश शिया है।

एकता बनाए रखना पहले से कहीं अधिक आवश्यक है

ईरानी कुर्दिस्तान के गवर्नर आरश ज़र्रेहतन लहौनी ने भी पिछले सप्ताह प्रांत के सुन्नी मौलवियों और विद्वानों के एक समूह के साथ बैठक में कहा था कि आज एकता का महत्व अतीत की तुलना में कहीं अधिक है। उनका कहना थाः सुन्नी और शिया विद्वानों के व्यवहार और बातों में एकता को मज़बूत करने के लिए किए गए प्रयास और रुख़ स्पष्ट हैं और यह देश और ईरानी राष्ट्र के हित में है। उन्होंने आगे कहाः सुन्नी मुसलमानों का पवित्र पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिवार के प्रति विशेष सम्मान और विश्वास है, और इस संबंध में, लोगों ने हमेशा विद्वानों का अनुसरण किया है।

इस्लामी उम्माह की एकजुटता मुसलमानों की गरिमा को बहाल करती है

ईरान के दक्षिण ख़ुरासान प्रांत के असदिए शहर के इमामे जुमा मौलवी सैयद अहमद अब्दुल्लाही इस्कंदर ने भी कहा है कि हमें इस्लामी देशों के बीच एकता और मेल-मिलाप के माध्यम से दुश्मनों की योजनाओं को विफल और पराजित करना होगा। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मुसलमानों की गरिमा को बढ़ाने और एकीकृत करने के लिए इस्लामी उम्माह की एकता को मज़बूत करना बहुत ज़रूरी है। मौलवी इस्कंदर ने कहाः पिछले कुछ वर्षों में, हमने संयुक्त राज्य अमेरिका और ज़ायोनियों द्वारा इस्लाम के दुश्मनों के क्रूर प्रतिबंधों के साथ-साथ उनके षड्यंत्रों को भी देखा है, इसलिए इस्लामी राष्ट्र की यह सहानुभूति, भाईचारा और एकता दुश्मनों की इन कई भयावह योजनाओं को बेअसर कर सकती है।

शोषितों की रक्षा में शहीद रईसी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता

बुधवार को ईरान के दिवंगत राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहीम रईसी और उनके अन्य साथियों की शहादत की पहली वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित एक समारोह के दौरान, महाबाद के इमामे जुमा अब्दुल सलाम इमामी ने कहाः ग़ज़ा पट्टी के उत्पीड़ित लोगों और मुसलमानों की रक्षा में शहीद रईसी के प्रयास प्रशंसनीय हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहाः शहीद रईसी ने शहीद जनरल क़ासिम सुलेमानी की तस्वीर और पवित्र क़ुरान दिखाकर संयुक्त राष्ट्र में प्रतिरोध की धुरी और इस्लाम धर्म का साहसपूर्वक बचाव किया। मौलवी इमामी ने ज़ोर देकर कहाः ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन की बमबारी और अपराधों को दो साल बीत चुके हैं, और अभी भी इस्लामी  रेज़िस्टेंस, ईरान और यमन के अलावा कोई भी मुस्लिम देश अवैध ज़ायोनी शासन के नरसंहार के ख़िलाफ़ खड़ा नहीं हुआ है। 

 

फिलिस्तीनी सूत्रों के अनुसार, गुरुवार और शुक्रवार की दरम्यानी रात ग़ाज़ा पट्टी पर इस्राइली हमले का सिलसिला एक बार फिर बेहद खूनखराबे वाला साबित हुआ, जिसमें 100 से अधिक फिलिस्तीनी नागरिक या तो शहीद हो गए या लापता हैं।

फिलिस्तीनी स्रोतों ने बताया कि यह हमला ग़ाज़ा पर जारी ज़ायोनी बर्बरता की एक और खौफनाक मिसाल है, जिसने एक बार फिर इलाके को लहूलुहान कर दिया।

क़ाबिज़ ज़ायोनी सेना की आपराधिक बमबारी ने ग़ाज़ा में तबाही मचा दी, जबकि मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, वे खामोश दर्शक बनी हुई हैं।

फिलिस्तीनी सूत्रों ने चिकित्सा अधिकारियों के हवाले से बताया कि शुक्रवार की सुबह किए गए हमलों में खास तौर पर ग़ाज़ा के उत्तर में स्थित बेइत लाहिया और जबालिया इलाकों को गंभीर रूप से निशाना बनाया गया, जिससे दर्जनों लोग मलबे के नीचे दब कर शहीद या लापता हो गए।

स्थानीय मीडिया ने हमलों के बाद की तबाही की भयावह तस्वीरें और वीडियो जारी किए हैं, जिनमें घरों का मलबा, घायल बच्चे, मलबे के नीचे दबे हुए लोग और बिलखते हुए परिवार देखे जा सकते हैं।

ग़ाज़ा में ज़ायोनी अत्याचार का यह नया अध्याय ऐसे समय सामने आया है जब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से न तो कोई प्रभावी कदम उठाया गया है और न ही कोई स्पष्ट निंदा की गई है। विश्लेषकों के अनुसार, यह ख़ामोशी स्वयं एक गंभीर आपराधिक अनदेखी के समान है।