
رضوی
ग़दीर इस्लामी जीवन शैली के लिए एक व्यापक और उत्कृष्ट मॉडल है
मदरसा इल्मिया अल-ज़हरा (स) सारी के एक शिक्षक ने कहा: ग़दीर दिवस का संदेश वर्तमान समाज में एकता, न्याय, सहानुभूति और शांति के संदेश को जीवंत, उजागर और सक्रिय करता है और सभी के लिए सद्भाव और प्रगति का एक उज्ज्वल मार्ग प्रदान करता है।
मदरसा इल्मिया अल-ज़हरा (स) सारी की एक शिक्षिका सुश्री सैय्यदा अतिया ख़ातमी ने कहा: ईद ग़दीर ख़ुम एक ऐतिहासिक और धार्मिक घटना है जो 18 ज़िल-हिज्जा, 10 हिजरी को हुई थी, जिसमें पैगंबर मुहम्मद (स) ने हज़रत अली (अ) को इस्लामी उम्माह के उत्तराधिकारी और नेता के रूप में पेश किया। यह घटना मक्का और मदीना के बीच ग़दीर ख़ुम के स्थान पर हुई और इसके बाद आय ए इकमाल नाजिल हुई, जिसने इस्लाम धर्म के पूरा होने की घोषणा की।
उन्होंने कहा: ग़दीर का संदेश विलायत और सद्गुणी नेतृत्व पर जोर देता है। हज़रत अली (अ) का नेतृत्व योग्यता और ईश्वरीय आदेश के आधार पर घोषित किया गया था, जो आज के समाज में प्रबंधकों और नेताओं के चयन के लिए सभ्य शासन और नैतिकता का एक मॉडल है।
मदरसा इल्मिया ज़हरा (स) की शिक्षिका सरी ने कहा: ग़दीर इस्लामी उम्माह की एकता और एकजुटता का प्रतीक है, और वर्तमान परिस्थितियों में जब समाज विभाजित हैं, ग़दीर का एकीकृत संदेश एक उद्धारकर्ता बन सकता है।
उन्होंने कहा: ईद ग़दीर सामाजिक न्याय और वंचितों के समर्थन का एक मजबूत संदेश देता है, जो आज के मुद्दों जैसे न्याय और भ्रष्टाचार का मुकाबला करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह आयोजन धर्म और राजनीति के अंतर्संबंध को भी दर्शाता है; धर्म को समाज और राजनीति के केंद्र में सक्रिय रूप से मौजूद होना चाहिए ताकि समाज में न्याय और निष्पक्षता स्थापित हो सके।
सुश्री सैय्यदा अतिया ख़ातमी ने निष्कर्ष निकाला: ग़दीर इस्लामी जीवन शैली के लिए एक व्यापक मॉडल है जो धर्मपरायणता और मानवीय पूर्णता की छाया में मानवीय भौतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास को सक्षम बनाता है। यह आयोजन इस्लामी समाज में एकता, नैतिकता, ज्ञान, अर्थव्यवस्था और शक्ति की रीढ़ है और इसे इस्लामी समाज की स्थापना के लिए एक बुनियादी मानदंड माना जाता है।
इल्म के बगैर अमल निजात बख्श नहीं
आयतुल्लाह महमूद रजबी ने मंगलवार रात हौज़ा-ए इल्मिया क़ुम के शिक्षकों और छात्रों की उपस्थिति में मस्जिद-ए मासूमिया में आयोजित एक नैतिक व्याख्यान दर्स-ए अख़लाक़ में ज्ञान, ईमान और कर्म के आपसी संबंध को समझाते हुए कहा कि केवल ज्ञान और मारिफ़त अनन्त कल्याण के लिए पर्याप्त नहीं है। यहाँ तक कि यक़ीनी मारिफ़त भी, अगर वह आस्था (अक़ीदा) और अच्छे कर्म में न बदले, तो इंसान को मुक्ति नहीं दिला सकती।
आयतुल्लाह महमूद रजबी ने मंगलवार की रात हौज़ा इल्मिया क़ुम के उस्तादों और छात्रों की उपस्थिति में मस्जिद-ए-मआसूमिया में दिए गए अपने अख़लाक़ी (नैतिकता पर आधारित) बयान में ज्ञान, ईमान और अमल के आपसी संबंध को स्पष्ट करते हुए कहा,सिर्फ़ जानकारी या ज्ञान, इंसान की हमेशा की सफलता के लिए काफ़ी नहीं है क्योंकि यदि पक्की समझ और यक़ीन भी विश्वास और अमल (कर्म) में न बदले, तो वह इंसान को नजात नहीं दे सकता।
फिरऔन जैसे लोग जिन्हें यक़ीन था, फिर भी जहन्नम के हक़दार बना
उन्होंने क़ुरआन की सूरा नम्ल की आयत 14 और उन्होंने (हक़ को) झुठलाया, हालांकि उनके दिल उसे पहचान चुके थे का हवाला देते हुए कहा कि फिरऔन और उसके साथियों को दिल से हज़रत मूसा (अ) की सच्चाई का यक़ीन था, लेकिन उन्होंने उस पर अमल नहीं किया, इसलिए अल्लाह के ग़ज़ब का शिकार हो गए।
नजात की त्रिकोणीय कुंजी: तौहीद, नुबूवत, मआद और उनके साथ विलायत
आयतुल्लाह रजबी ने कहा कि तौहीद नुबूवत (पैग़म्बरी), और मआद की पहचान ज़रूरी है, मगर यह काफ़ी नहीं है। इनके बीच वलायत एक सेतु का काम करती है जो ज्ञान को ईमान में बदलती है। जैसा कि ज़ियारत-ए-इमाम हुसैन (अस.) में कहा गया है,मैं गवाही देता हूँ कि आप एक पाक नूर थे ऊँचे नस्लों में...
अल्लाही इम्तिहान ईमान को मज़बूत करने वाली चीज़
उन्होंने हज़रत इब्राहीम (अ.स. द्वारा अपने बेटे इस्माईल (अ) की क़ुरबानी की घटना और उहुद और अहज़ाब की लड़ाइयों का ज़िक्र करते हुए कहा कि अल्लाह मोमिनों को अमल के मैदान में आज़माता है, ताकि उनका ईमान मज़बूत हो।
क़ुरआन ज़िंदा मोज़िज़ा जो ईमान को रौशन करता है
उन्होंने सूरा अनफाल की आयत 2 का हवाला दिया,सच्चे मोमिन वे हैं जिनके दिल अल्लाह का ज़िक्र सुनकर काँप उठते हैं, और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं, तो उनका ईमान और बढ़ जाता है।
उन्होंने कहा कि क़ुरआन से लगाव न केवल ईमान बढ़ाता है बल्कि इंसान को अल्लाह पर भरोसे की ऊँची मंज़िल तक पहुँचाता है। इमाम खुमैनी (रह.) ने भी गिरफ़्तारी और वतन वापसी के कठिन लम्हों में क़ुरआन से सुकून पाया।
अपने बयान के अंत में उन्होंने ज़ोर दिया कि क़ुरबत-ए-इलाही और उच्च स्तर के ईमान तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता लगातार अच्छे कर्म का अंजाम देना है।
आयतुल्लाह हायरी शिराजी: बच्चों की आखिरत के लिए भी खर्च करें
मरहूम आयतुल्लाह हायरी शिराजी ने बच्चों की तरबियत पालन-पोषण में सिर्फ़ इल्मी पहलू पर भरोसा करने को नाकाफ़ी बताते हुए ज़ोर दिया कि एक अच्छा और दीनदार इंसान बनाने के लिए माता-पिता को दीन और तक़वा के मैदान में भी निवेश करना चाहिए।
मरहूम आयतुल्लाह हायरी शिराजी ने कहा कि ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों की तालीम (शिक्षा) पर खूब खर्च करते हैं ताकि वे डॉक्टर या इंजीनियर बनें, लेकिन यह सिर्फ़ आधी तरबियत है। उन्होंने एक मिसाल देते हुए कहा,अगर बच्चा पानी की डोल (बाल्टी) है और इल्म उसमें से निकाला जाने वाला पानी, तो तक़वा उसकी मज़बूत रस्सी है। जितना इल्म बढ़ेगा, उतनी ही तक़वा की रस्सी मज़बूत होनी चाहिए, वरना पानी नीचे गिर जाएगा!
आयतुल्लाह हायरी के मुताबिक, इल्म के साथ-साथ ज़िम्मेदारी और दीनदारी भी ज़रूरी है, और इन पर भी वैसा ही खर्च होना चाहिए जैसा तालीम पर होता है। अगर कोई दीनी मदरसा बच्चे को इल्म के साथ नमाज़, इबादत और खिदमत-ए-दीन (धर्म की सेवा) की तरफ मोड़े, तो चाहे इसका खर्च दोगुना हो यह खर्च करना वाजिब-उल-इहतराम (सम्मान के योग्य) और क़ाबिल-ए-तर्जीह (प्राथमिकता वाला) है।
उन्होंने माता-पिता से कहा,जब तुम दुनिया के लिए खर्च करते हो, तो क्या आखिरत (परलोक) के लिए खर्च करना ज़रूरी नहीं? सालिह (नेक) बनाना, सिर्फ़ पढ़ा-लिखा बनाने से अलग है।
(किताब: तमसीलात-ए-आयतुल्लाह हायरी शिराजी)
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस्राईल द्वारा मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघनों को रोकने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी शासन द्वारा किये जा रहे मानवाधिकारों के हनन और अभूतपूर्व हमले की निंदा करते हुए, युद्ध अपराधियों पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में शीघ्र मुक़दमा चलाने और ग़ज़ा पट्टी पर हमलों को रोकने तथा मानवीय सहायता भेजने के लिए वैश्विक स्तर पर तुरंत कार्यवाही किये जाने की मांग की है।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बक़ाई ने मंगलवार की सुबह ज़ायोनी शासन द्वारा जबालिया और ख़ान युनुस में फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के शिविरों और टेंटों पर किए गए बर्बर हमलों की कड़ी निंदा की जिनमें कई मासूम फ़िलिस्तीनी शहादत हो गयी और दर्जनों घायल हो गये। शहीद होने वालों में कुछ दूधमुंहे बच्चे भी शामिल थे।
बक़ाई ने अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी शासन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार और मानवीय कानूनों के व्यापक और अभूतपूर्व उल्लंघनों को "अंतरराष्ट्रीय क़ानून के मूलभूत सिद्धांतों और नियमों पर गंभीर हमला" करार दिया।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह याद दिलाते हुए कि प्रत्येक देश और साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ की एक कानूनी और नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वह नरसंहार को रोके और मानवीय कानूनों के नियमों के पालन को सुनिश्चित करे, इस बात पर ज़ोर दिया कि युद्ध अपराध, नरसंहार और मानवता के विरुद्ध अपराधों के कारण ज़ायोनी शासन और उसके अधिकारियों के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) में लंबित मामलों की तेज़ी से सुनवाई की जाए।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय और क्षेत्रीय देशों से ज़ायोनी शासन के आपराधिक हमलों को तुरंत रोकने, ग़ज़ा पट्टी में जल्द से जल्द खाद्य पदार्थों और दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने, इस आपराधिक शासन के अधिकारियों को दंडित करने और अतिग्रहणकारी सैनिकों को पूरी तरह से कब्ज़ा किए गए क्षेत्रों से बाहर निकालने तथा सीरिया, लेबनान और यमन सहित क्षेत्रीय देशों के विरुद्ध ज़ायोनी शासन की दुष्ट गतिविधियों का मुक़ाबला करने के लिए ठोस उपाय किये जाने की मांग की।
हौज़ा ए इल्मिया क़ुम का वैश्विक प्रभाव 100 से अधिक देशों तक फैल चुका है। आयतुल्लाह आराफी
ईरान में हौज़ा-ए-इल्मिया के निदेशक आयतुल्लाह अली रज़ा आ'राफी ने कहा कि आज दुनिया के 100 से ज़्यादा देशों में ऐसे नौजवान मौजूद हैं जो क़ुम की हौज़वी तालीम से लाभान्वित होकर इस्लामी और इंसानी उलूम के केंद्र स्थापित कर रहे हैं और मआरिफ़-ए-अहलेबैत अ.स.को फैलाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम की नए सिरे से स्थापना की 100वीं सालगिरह के मौके पर इंडोनेशिया से आए विद्वानों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात में आयतुल्लाह आ'राफी ने कहा,आज दुनिया के 100 से ज़्यादा देशों में ऐसे युवा मौजूद हैं जो क़ुम से तालीम हासिल कर चुके हैं। वे इस्लामी और इंसानी उलूम के मर्कज़ (केंद्र) बना रहे हैं और अहलेबैत (अ.स.) की शिक्षाओं को फैलाने में अहम किरदार निभा रहे हैं।
उन्होंने कहा,इस्लामी इंक़लाब के बाद इस्लामी तालीम के सारे दरवाज़े औरतों के लिए भी खोल दिए गए। आज पूरे देश में मर्दों के मदरसों की तरह, औरतों के लिए भी दीनी मदारिस (धार्मिक विद्यालय) और तालीमी मराकिज़ (शैक्षिक केंद्र) क़ायम हो चुके हैं।
हौज़ा-ए-इल्मिया-ए-ख़वाहरान एक व्यापक और प्रभावशाली निज़ाम में बदल चुका है, जो इस्लामी, इंसानी और अख़लाक़ी उलूम के फैलाव में अहम रोल निभा रहा है।
उन्होंने बताया कि क़ुम और ईरान के दूसरे शहरों में तक़रीबन 500 महिला मदरसे सक्रिय हैं, और विदेशों में भी ऐसे केंद्र क़ायम किए गए हैं जो सीधे तौर पर क़ुम के इल्मी और तर्बीयती (शैक्षिक व प्रशिक्षण) सिस्टम से जुड़े हुए हैं।
हौज़ा के प्रमुख ने ज़ोर देते हुए कहा,
हौज़ा-ए-इल्मिया-ए-क़ुम अब एक अंतरराष्ट्रीय तहज़ीब (सभ्यता) की शक्ल अख़्तियार कर चुका है। इसने इस्लामी उलूम की रौशनी को आलमी सतह पर फैला दिया है और यह वह पहलू है जो आज दुनिया के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में नज़र आता है।
उन्होंने आगे कहा,क़ुम की फिक्री रिवायत की एक और ख़ास बात यह है कि यह आवाम से बहुत क़रीब है और उन्हें की ताईद (समर्थन) पर क़ायम है। अगर अवाम न होते, तो हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम कभी वजूद में न आता। इमाम खुमैनी (रह.) ने भी अवामी ताक़त पर भरोसा करते हुए ही इस्लामी इंक़लाब को कामयाबी तक पहुँचाया।
आयतुल्लाह आराफी ने यह भी बताया कि हौज़ा की सौवीं सालगिरह पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस की योजना कुछ साल पहले शुरू हुई थी, और अब पूरी तैयारी और प्रकाशित दस्तावेज़ों के साथ इस साल उसका अंतिम चरण आयोजित किया जा रहा है।
रहबर-ए-मुआज़म के ऐतिहासिक पैग़ाम का हर लफ़्ज़ गहरे मायने रखता है
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सईद मीरज़ाई ने कहा, हमें चाहिए कि बहस और तहकीक के ज़रिए इस पैग़ाम से अपनी ज़िम्मेदारियाँ हासिल करें कुछ लोगों को रणनीति तय करनी चाहिए और दूसरों को अमली कार्यक्रम पेश करना चाहिए।
मजलिस-ए-ख़ुबर्गान रहबरी के रुक्न हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सईद सुल्ह मीरज़ाई ने कहा, रहबर-ए-मआज़म-ए-इंक़ेलाब ने हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम की नए सिरे से तासीस की सौवीं सालगिरह के मौके पर एक मुकम्मल और तारीखी पैग़ाम जारी किया है। यह पैग़ाम कई दिनों की इल्मी बारीकी और फिक्री गहराई के बाद तैयार किया गया ताकि हौज़ा से जुड़े लोगों के लिए एक नया अफ़क़ खोला जा सके।
उन्होंने कहा,इस पैग़ाम के असल मुख़ातिब हौज़ा की इंतेज़ामिया, उस्ताद, मुहक़्क़िक़ (शोधकर्ता), तुल्लाब और उलमा हैं जो इसे संजीदगी से पढ़ें और इसके साथ सक्रिय और समझदारी भरा ताल्लुक़ रखें।
हुज्जतुल इस्लाम सुल्ह मीरज़ाई ने रहबर-ए-इंक़ेलाब की इल्मी, अंतरराष्ट्रीय और रणनीतिक सलाहियतों की सराहना करते हुए कहा,रहबर-ए-इंक़ेलाब उन चंद फुक़हा में से हैं जो एक साथ इल्मी ऊँचाई, अंतरराष्ट्रीय और सामाजिक मामलों की समझ और रणनीति बनाने की सलाहियत रखते हैं। इसलिए इस पैग़ाम का हर लफ़्ज़ गहरे मायने रखता है।
उन्होंने कहा,तमाम हौज़वी अफ़राद को चाहिए कि इस पैग़ाम से अपनी ज़िम्मेदारियाँ निकालें। कोई इसकी तशरीह करे, कोई रणनीति बनाए और कोई अमली प्रोग्राम तजवीज़ करे।
हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम के उस्ताद ने आगे कहा,हर तालिबेइल्म, उस्ताद और शोधकर्ता को साल में एक बार खुद से यह सवाल करना चाहिए "रहबर-ए-मआज़म के इस पैग़ाम ने मेरे रास्ते में क्या तब्दीली पैदा की?ऐसी खुद एहतसाबी खुद से और ज़िम्मेदारों से ज़रूरी है।
आख़िर में उन्होंने कहा, उम्मीद है कि हम इस पैग़ाम पर अमल करते हुए हौज़ा की असलियत और इसके मुस्तक़बिल के मिशन को बेहतर तरीके से पहचान सकेंगे और उसे अमली जामा पहनाएंगे।
मोमिन अहले बैत (अ) के पदचिन्हो पर चलता हैः मौलाना वसी हसन खान
कोपागंज मऊ में मरहूम नोहा खावन महदी हसन पुत्र मरहूम इब्न फरयाद हुसैन, महल्ला फुलेल पुरा, ज़व्वार अली मरहूम इब्न अब्दुल मजीद करबलाई मरहूम और उनकी पत्नी रिजवाना खातून मरहूम बिंत गुलाम हुसैन महल्ला बाजिद पुरा के ईसाले सवाब के लिए दो दिवसीय मजलिसो का आयोजन किया गया।
कोपागंज मऊ में मरहूम नोहा खावन महदी हसन पुत्र मरहूम इब्न फरयाद हुसैन, महल्ला फुलेल पुरा, ज़व्वार अली मरहूम इब्न अब्दुल मजीद करबलाई मरहूम और उनकी पत्नी रिजवाना खातून मरहूम बिंत गुलाम हुसैन महल्ला बाजिद पुरा के ईसाले सवाब के लिए दो दिवसीय मजलिसो का आयोजन किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में विद्वानों और आस्तिक लोगों ने भाग लिया।
मौलाना वसी हसन खान ने कहा कि मोमिन अहले-बैत (अ.स.) के पदचिन्हों पर चलता हैं। मजलिस की शुरुआत सोज़ ख़ानी के साथ हुई। मजलिस को मौलाना वसी हसन खान, साहिब किबला फैजाबाद ने संबोधित किया। मौलाना वसी हसन खान ने कुरान और हदीस की रोशनी में अहले-बैत (अ) की खूबियों का वर्णन करते हुए मोमिन लोगों को उनके पदचिन्हों पर चलने और अपना जीवन जीने की सलाह दी। अंत में उन्होंने आले मुहम्मद (अ) के मसाइब का वर्णन किया और मरहूमीन की रूहो की शांति के लिए फातेहा पढ़ी तथा देश और आस्तिक लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए दुआ की। एक आस्तिक अहलुल बैत (एएस), मौलाना वसी हसन खान के नक्शेकदम पर चलता है।
इन मजलिसो में मौलाना जहूर अल-मुस्तफा, मौलाना शमशेर अली, मौलाना मुहम्मद तकी, मौलाना नाजिम अली, मौलाना हसन रजा, मौलाना अम्मार नकी, मौलाना अंसार अली, मौलाना हैदर अब्बास, मौलाना नफीसुल हसन, मौलाना मुजफ्फर अली, मौलाना शमसुल हसन, मौलाना अली रजा, मौलाना मुहम्मद जहीरुल हसन, मौलाना मुंतजर मेहदी, मौलाना कर्रार हुसैन, मास्टर जाफर अली समेत बड़ी संख्या में अकीदतमंद शामिल हुए।
मरने वालो को नसीहत और सबक का स्रोत बनाएं; गूदरज़ी
महिला धार्मिक मदरसे के निदेशक हुज्जुल इस्लाम वल मुस्लेमीन गूदरज़ी ने कहा है कि मनुष्य को मृतकों से सबक सीखना चाहिए, न कि उन पर गर्व करना चाहिए। उन्होंने लापरवाही को मनुष्य के दुख और भटकाव की जड़ बताया।
मध्य प्रांत के मदरसा के निदेशक हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन गूदरज़ी ने कहा है कि मनुष्य को मृतकों से सबक सीखना चाहिए, न कि उन पर गर्व करना चाहिए। उन्होंने लापरवाही को मनुष्य के दुख और भटकाव की जड़ बताया।
उन्होंने यह बात मदरसा की छात्राओं के लिए बौद्धिक सत्रों की “मिनहाज” श्रृंखला के दूसरे सत्र में कही, जो व्यक्तिगत और ऑनलाइन दोनों तरह से आयोजित किया गया था। इस सत्र में उन्होंने मानव जीवन, मृत्यु और कब्रिस्तान से सीखे गए सबक पर प्रकाश डाला।
हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन गूदरज़ी ने अपने भाषण में कहा: “कुछ लोग अपने मृतकों और उनकी कब्रों की बहुतायत पर गर्व करते हैं, हालांकि यह सोचने का तरीका पूरी तरह से गलत अज्ञानता है। मृतक को गर्व का स्रोत बनाने के बजाय, हमें उनसे सबक सीखना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा: “हम जीवित लोग हर दिन कब्रिस्तानों से गुजरते हैं, मृतक द्वारा छोड़ी गई विरासत से लाभ उठाते हैं, तो क्या हमें उनसे सबक नहीं सीखना चाहिए?” उन्होंने लापरवाही को मनुष्य के आध्यात्मिक विनाश का वास्तविक आधार बताया और कहा कि लापरवाही में हर वह स्थिति शामिल है जिसमें मनुष्य अपने समय, परिस्थितियों और ईश्वरीय संदेशों से अनजान हो जाता है। “असावधानी मनुष्य को अहंकार, आत्म-महत्व और गुमराही की ओर ले जाती है और अंततः उसे दुख की घाटी में ले जाती है।” पवित्र कुरान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कुरान में “अज्ञानता” शब्द 35 बार आया है और इसका विलोम “धिक्र” है। जो व्यक्ति ईश्वर की याद से बेखबर हो जाता है, वह धीरे-धीरे जानवरों के स्तर से नीचे गिर जाता है। उन्होंने नहज अल-बलाघा के एक प्रसिद्ध उपदेश का उल्लेख किया, जिसे इब्न अबी अल-हदीद ने वाक्पटुता की उत्कृष्ट कृति बताया है। "मुआविया का कथन कि पूरे अरब में हज़रत अली (अ.स.) जितना वाक्पटु और वाक्पटु कोई नहीं है, इस उपदेश की सच्चाई को दर्शाता है।" अपने भाषण को समाप्त करते हुए उन्होंने कहा, "क्या हम नरक के लिए बनाए गए हैं? बिल्कुल नहीं, बल्कि, मनुष्य को पूजा और पूर्णता के लिए बनाया गया है। जिस तरह एक बढ़ई लकड़ी को तराशता है, अगर वह सही है, तो वह दरवाजे और खिड़कियां बनाता है, अन्यथा वह उसे जला देता है। इसी तरह, एक आदमी का भाग्य उसके कर्मों पर निर्भर करता है।" यह बौद्धिक सत्र न केवल मदरसा अल-इल्मिया की छात्राओं के लिए एक शैक्षणिक सत्र था, बल्कि आध्यात्मिक जागृति और बौद्धिक विकास का स्रोत भी था।
फ़िलिस्तीन के अतिग्रहित क्षेत्रों में आग लगी; इस बार अश्दूद जल उठा
ज़ायोनी मीडिया ने फ़िलिस्तीन के अतिग्रहित शहर अश्दूद के आसपास के जंगलों में एक बड़े अग्निकांड की सूचना दी है।
ज़ायोनी वेबसाइट 0404 की रिपोर्ट के अनुसार कम से कम 10 दमकल दल और 4 अग्निशमन विमान आज से अश्दूद शहर के पास के जंगलों में लगी भीषण आग को बुझाने की कोशिश में लगे हुए हैं।
अश्दूद बंदरगाह फ़िलिस्तीन के दक्षिणी अतिग्रहित क्षेत्रों में भूमध्य सागर के तट पर स्थित है।
रिपोर्ट के मुताबिक़ आग की लपटों के तेज़ी से फैलने और रिहायशी इलाकों को ख़तरे में पड़ने के कारण स्थानीय प्रशासन ने "कफ़ार आफीयू" क्षेत्र की पहली पंक्ति के घरों को खाली कराने का आदेश दिया है।
अब तक आग लगने का कारण स्पष्ट नहीं हुआ है लेकिन आग पर काबू पाने की कोशिशें जारी हैं।
इससे पहले भी फ़िलिस्तीन के अवैध अधिकृत क्षेत्रों में खासतौर पर कब्ज़ा किए गए क़ुद्स और तबरीया के तटीय इलाकों के आसपास बड़े पैमाने पर जंगल की आग लग चुकी है
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में आत्मघाती विस्फोट, दो पुलिसकर्मी की मौत
उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में हुए आत्मघाती विस्फोट में एक उपनिरीक्षक समेत कम से कम दो पुलिसकर्मी मारे गए और तीन अन्य घायल हो गए। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।
उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में हुए आत्मघाती विस्फोट में एक उपनिरीक्षक समेत कम से कम दो पुलिसकर्मी मारे गए और तीन अन्य घायल हो गए। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।
एसएसपी मसूद बंगश ने बताया कि आत्मघाती हमलावर ने पेशावर के चमकनी पुलिस थाने के अंतर्गत रिंग रोड पर मवेशी बाजार के पास पुलिस की मोबाइल वैन पर हमला किया।
खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री अली अमीन गंदापुर ने हमले की निंदा की और घटना पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी।मुख्यमंत्री ने विस्फोट में मारे गए दो पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
गंदापुर ने कहा, लोगों के जीवन और संपत्ति के रक्षकों पर हमला करना निंदनीय और कायरतापूर्ण कृत्य है। ऐसे कायरतापूर्ण हमलों से पुलिस का मनोबल नहीं गिरेगा।
थिंक टैंक ‘पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2025 में पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में वृद्धि देखी गई, जो पिछले महीने की तुलना में 42 प्रतिशत अधिक है