
رضوی
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की 40 अहादीस
यहां पर अपने प्रिय अध्ययन कर्ताओं के लिए हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के चालीस मार्ग दर्शन कथन प्रस्तुत कर रहे है।
1- निःस्वार्थता पूर्ण सदुपदेश
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मनुषयों जो निःस्वार्थ रूप से सदुपदेश दे तथा अल्लाह की किताब को अपना मार्ग दर्शक बनाए तो उसके लिए मार्ग प्रशस्त होगा व अल्लाह उसको सफ़लता देगा व उसकी अच्छाईयों को चिरस्थायी बना देगा। क्योंकि जो अल्लाह की शरण में आगया वह सुरक्षित हो गया अल्लाह का शत्रु(नास्तिक) सदैव भयभीत व निस्सहाय है। अल्लाह का अधिक ज़िक्र (यश गान) करके अपने आप को पापों से बचाओ।
2-हिदायत के लक्षणो को जानना
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जान लो कि हिदायत के लक्ष्णों को जाने बिना तुम तक़वे से परिचित नहीं हो सकते और कुऑन को त्याग देने वालों से परिचित हुए बिना कुऑन के अनुबन्धों को ग्रहण नहीं कर सकते। जब तुम यह सब जान लोगे तो उन चीज़ो से जो लागों ने स्वंय बनाली हैं परिचित हो जाओगे तथा देखोगे कि स्वार्थी लोग किस प्रकार नीचता करते है।
3- वास्तविक्ता व अवास्तविक्ता
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि हक़ (वास्तविक्ता) व बातिल (अवास्तविक्ता) के मध्य चार अँगुल का अन्तर है। जो चीज़ आपने अपनी आखोँ से देखी वह हक़ है तथा जिस चीज़ को अपने कानों से सुना वह अधिकाँश बातिल है।
4-मानव की स्वतन्त्रता व अधिकार
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह बलपूर्वक अपनी अज्ञा का पालन नहीं कराता और वह अवज्ञा से पराजित नहीं होता। उसने मनुषय को निरर्थक शासनाधीन नहीं छोड़ा है। वह उन समस्त वस्तुओं का मालिक है जो उसने मनुषयों को दी हैं और उन समस्त चीज़ों पर शक्तिमान है जिनमे उनको शक्तियाँ दी हैं। उसने मनुषयों को आदेश दिया कि जिन चीज़ों का आदेश दिया उनको ग्रहण करें तथा उसने मनुषयों को मना किया कि जिन चीज़ों से मना किया उनको न करें।
5-ज़ोह्द हिल्म व दुरुस्ती
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से प्रश्न किया गया कि ज़ोह्द क्या है ?आपने उत्तर दिया कि तक़वे को अपनाना व सांसारिक मोहमाया से मूहँ फेरना।
इमाम से प्रश्न किया गया कि हिल्म क्या है? तो आपने उत्तर दिया कि क्रोध को कम करना व इन्द्रियों को वंश में रखना।
इमाम से प्रश्न किया गया कि दुरुस्ति क्या है? आपने उत्तर दिया कि अच्छाईयों के द्वारा बुराईयों का समापन ।
6- तक़वा
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि तक़वा तौबा का द्वार व प्रत्येक ज्ञान का रहस्य है। तथा प्रत्येक कार्य की प्रतिष्ठा तक़वे से है। जो साहिबाने तक़वा (तक़वा धारण करने वाले व्यकति ) के साथ सफल रहा उसने तक़वे मे सफलता प्राप्त करली।
7-वास्तविक ख़लीफ़ा
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ख़िलाफ़त का पद उसके लिए है जो हज़रत पैगम्बर की शैली पर चलते हुए अल्ला की अज्ञानुसार कार्य करे। मैं अपनी जान की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि हम अहले बैत हिदायत की निशानियां व परहेज़गारी की शोभा है।
8- श्रेष्ठता व नीचता की वास्तविक्ता
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से प्रश्न किया गया कि करम क्या है? आपने उत्तर दिया कि माँगने से पूर्व प्रदान करना व भोजन के समय भोजन कराना।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलामसे प्रश्न किया गया कि दिनायत (नीचता) क्या है? आपने उत्तर दिया कि छोटी चीज़ें भी प्रदान करने से मना करना तथा दृष्टि का संकुचित होना।
9- परामर्श सफलता की कुँजी
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि कोई भी दो क़ौमें (जातियां) केवल सफलता प्राप्ति के लिए ही परामर्श करती हैं।
10-नीचता
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि नेअमत का शुक्रिया (धन्यवाद) अदा न करना नीचता है।
11-लज्जा व नरक
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि लज्जा नरक में जाने से उत्तम है। अर्थात अगर लज्जित होने से बचने के लिए कोई ऐसा कार्य करना पड़े जो नरक में जाने का कारण बनता हो तो उस कार्य को नहीं करना चाहिए।
12-मित्रता का गुर
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने एक पुत्र से कहा कि ऐ मेरे प्रियः किसी से उस समय तक मित्रता न करना जब तक यह न देखलो कि वह किन लोगों के साथ उठता बैठता है । जब उसके व्यवहार से भली भाँती परिचित हो जाओ तथा उसके व्यवहार को पसंद करने लगो तो उससे मित्रता करो इस शर्त के साथ कि उसकी ग़लतीयों को अनदेखा करो व विपत्ति के समय उसका साथ दो।
13-अपना व पराया
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर एक पराया व्यक्ति अपने प्रेम व मैत्रीपूर्ण व्यवहार से आपसे निकटता प्राप्त कर चुका है तो वह आपका सम्बन्धि है। तथा अगर आपका एक सम्बन्धि भी आपसे प्रेम व मैत्री पूर्ण व्यवहार नहीं करता तो वह पराया है।
15-अल्लाह पर भरोसा
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति उस चीज़ पर क़नाअत (निरीहता) करता है जो अल्लाह ने उसके लिए चुनी है तो वह उस चीज़ की इच्छा नहीं करता जो अल्लाह ने उसके लिए नहीं चुनी।
16-मस्जिद में जाने के लाभ
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति निरन्तर मस्जिद में जाता है उसको आठ लाभ प्राप्त होते हैं
1- उसको अल्लाह की आयतों का ज्ञान प्राप्त होता है।
2- उसको लाभ पहुचाने वाले मित्र प्राप्त होते हैं।
3- उसको नवीनतम ज्ञान प्राप्त होता है।
4- वह जिस रहमत (दया व कृपा) को चाहता है वह प्राप्त होती है।
5- उसे सही मार्ग दर्शन वाले कथन सुनने को मिलते हैं।
6- वह कथन सुनने को मिलते है जो उसे नीचता से निकालने में सहायक होते हैं।
7- अल्लाह के सम्मुख लज्जित होने से बचने के लिए वह पापों को त्याग देता है।
8- अल्लाह के भय के कारण पापों से दूर होजाता है।
17- सर्व श्रेष्ठ आँख,कान व दिल
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि सर्व श्रेष्ठ आँख वह है जो नेकी के मार्ग को देख ले। सर्व श्रेष्ठ कान वह है जो नसीहत को सुने व उस से लाभ उठाए। सर्व श्रेष्ठ दिल वह है जिसमे संदेह न पाया जाता हो।
18-वाजिब व मुस्तहब
जब मुस्तहब्बात* वाजिबात** को नुकसान पहुँचाने लगे तो उस समय मुस्तहब्बात को त्याग देना चाहिए।
* वह कार्य जिनको अल्लाह ने मनुष्य के लिए अनिवार्य नहीं किया है। परन्तु अगर उनको किया जाये तो पुण्य प्राप्त होगा।
**वह कार्य जिनको अल्लाह ने मनुष्यों के लिए अनिवार्य किया है अगर उनको न किया जाये तो मनुष्य दण्डित होगा।
19-नसीहत
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि बुद्धिमान को चाहिए कि जब कोई उससे परामर्श ले तो उसके साथ विश्वासघात न करे।
20-इबादत के चिन्ह की महत्ता
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब तुम अपने भाई से मिलो तो उसके माथे के प्रकाशित भाग(सजदे का चिन्ह) का चुम्बन करो।
21- तज़किया
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर कोई इबादत करने के लिए अल्लाह से दुआ करे तो समझो कि उसका तज़किया हो गया है। अर्थात उसने बुराईयों को त्याग दिया है।
22-सद्व्यवहारिता के लक्षण
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि सद् व्यवहारिता के लक्षण इस प्रकार हैं--
1- सत्यता
2- कठिनाई के समय में भी सत्यता
3- भिखारियों को दान देना
4- कार्यों के बदले को चुकाना
5- अपने रिश्तेदारों से अच्छे सम्बन्ध रखना
6- पड़ौसियों की सहायता करना
7- मित्रों के बारे में वास्तविकता जानना
8- मेहमान नवाज़ (अतिथि पूजक) होना
23- आदर व वैभव
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर सम्बन्धियों के बिना आदर व शासन के बिना वैभव चाहते हो तो अल्लाह की अज्ञा का पालन करो तथा उसके आदेशों की अवहेलना न करो।
24-अहंकार, लोभ, व ईर्ष्या
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अहंकार लोभ व ईर्ष्या मनुष्य को मार डालती है।
अहंकार इससे धर्म बर्बाद होता है तथा इसी के कारण शैतान को स्वर्ग से निकाला गया।
लोभ यह आदमी की जान का शत्रु है इसी के कारण हज़रत आदम को स्वर्ग छोड़ना पड़ा।
ईर्ष्या बुराईयों की जड़ है इसी के कारण क़ाबील ने हाबील की हत्या की।
25-चिंतन
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं तुमको वसीयत करता हूँ कि अल्लाह से डरते रहो व चिंतन में लीन रहो , क्योंकि चिंतन ही समस्त अच्छाईयों का जनक है।
26-हाथों का धोना
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि भोजन से पहले हाथों को धोने से भुखमरी दूर होती है। तथा भोजन के बाद हाथों को धोने से दुखः दर्द समाप्त होते है।
27-संसार व परलोक
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि इस संसार में मनुष्य बेखबर है वह केवल कार्य करता है परन्तु उसके बारे में नहीं जानता। तथा जब परलोक में पहुँचता है तो उसको विश्वास प्राप्त होता है। अतः उस समय उसे ज्ञान प्राप्त होता है परन्तु वह वहां कोई कार्य नहीं कर सकता। अर्थात यह संसार कार्य करने की जगह है जान ने की नही व परलोक जान ने का स्थान है वहां कार्य करने का अवसर नहीं है।
28-व्यवहार
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम मनुष्यों के साथ इस प्रकार से बात चीत करो जैसी बात चीत की तुम उनसे इच्छा रखते हो।
29-पाप व पुण्य
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं डरता हूँ कि पापियों का दण्ड हमारे कारण दोगुना हो जाएगा। तथा उम्मीदवार हूँ कि पुण्य करने वालों के पुण्य का बदला भी हमारे कारण दोगुना हो जाएगा।
अर्थात अगर हमसे प्रेम करते हुए पुण्य करेगा तो उसको पुण्य का दोगुना बदला मिलेगा। व अगर कोई हमारी शत्रुता रखते हुए पाप करेगा तो उसके पाप का दण्ड दोगुना हो जायेगा।
30-बुद्धि हिम्मत व धर्म
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिसके पास बुद्धि नहीं उसके पास शिष्टाचार नहीं। जिसके पास साहस नहीं उसके पास वीरता नहीं। जिसके पास धर्म नहीं उसके पास लज्जा नहीं।
31-ज्ञान व शिक्षा
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने ज्ञान से दूसरों को शिक्षित करो तथा दूसरों के ज्ञान से स्वंय शिक्षा ग्रहण करो।
32-आदर व वैभव<यh3>
अगर सम्बन्धियों के बिना आदर व शासन के बिना वैभव चाहते हो तो अल्लाह की अज्ञा का पालन करो तथा उसके आदेशों की अवहेलना न करो।
33-धन, दरिद्रता, भय व आनंन्द
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि बुद्धि से बढ़कर कोई धन नहीं, अज्ञानता से बढ़कर कोई दरिद्रता नहीं, घमंड से बढ़कर कोई भय नहीं व सद्व्यवहार से बढ़कर कोई आनंन्द नहीं।
34-ईमान का द्वार
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि हज़रत अली इमान का दरवाज़ा हैं। जो इसमे प्रविष्ठ हो गया वह मोमिन है तथा जो इससे बाहर होगया वह काफ़िर है।
35-अहलेबैत का हक़
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि हज़रत मुहमम्द को पैगम्बर बनाने वाले अल्लाह की सौगन्ध जो भी हम अहलेबैत के हक़ में कमी करेगा अल्लाह उसके अमल में कमी करेगा।
36-सलाम
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो सलाम करने से पहले बात करना चाहे उसकी किसी बात का उत्तर न दो।
37-श्रेष्ठता
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि किसी कार्य को अच्छाई के साथ शुरू करना व इच्छा प्रकट करने से पहले दान देना बहुत बड़ी श्रेष्ठता है।
38-ज्ञान प्राप्ति
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ज्ञान प्राप्त करो अगर उसको सुरक्षित न कर सको तो लिखकर घर में रखो।
39- अल्लाह की प्रसन्नता
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि केवल अल्लाह की प्रसन्नता का ध्यान रखने वाला जब अल्लाह से कोई दुआ करता है तो उसकी दुआ स्वीकार होती है।
40-अनुज्ञापी
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो अल्लाह का अनुज्ञापी हो जाता है अल्लाह समस्त वस्तुओं को उसका अनुज्ञापी बना देता है।
हज़रत इमाम हसन अ.स. की सरदारी
माविया ने जैसे ही माहौल को अपने हित में पाया तुरंत इमाम अ.स. के सामने सुलह की पेशकश की, इमाम हसन अ.स. ने इस बारे में अपने सिपाहियों से मशविरा करने के लिए एक ख़ुत्बा दिया और उन लोगों के सामने दो रास्ते रखे या माविया से जंग कर के शहीद हो जाएं या सुलह कर के अहलेबैत अ.स. के सच्चे चाहने वालों की जान को बचा लिया जाए
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,माविया ने जैसे ही माहौल को अपने हित में पाया तुरंत इमाम अ.स. के सामने सुलह की पेशकश की, इमाम हसन अ.स. ने इस बारे में अपने सिपाहियों से मशविरा करने के लिए एक ख़ुत्बा दिया और उन लोगों के सामने दो रास्ते रखे या माविया से जंग कर के शहीद हो जाएं या सुलह कर के अहलेबैत अ.स. के सच्चे चाहने वालों की जान को बचा लिया जाए
हज़रत इमाम हसन अ.स., इमाम अली अ.स. और हज़रत ज़हरा अ.स. के बेटे और पैग़म्बर स.अ. के नवासे हैं, आप 15 रमज़ान सन् 3 हिजरी में पैदा हुए और आपके पैदा होने के बाद पैग़म्बर स.अ. ने आपको गोद में लेकर आपके कान में अज़ान और अक़ामत कही और फिर आपका अक़ीक़ा किया, एक भेड़ की क़ुर्बानी की और आपके सर को मूंड कर बालों के वज़न के बराबर चांदी का सदक़ा दिया, पैग़म्बर स.अ. ने आपका नाम हसन नाम रखा और कुन्नियत अबू मोहम्मद रखी, आपके मशहूर लक़ब सैयद, ज़की, मुज्तबा वग़ैरह हैं।
आपकी इमामत
इमाम हसन अ.स. ने अपने वालिद इमाम अली अ.स. की शहादत के बाद ख़ुदा के हुक्म और इमाम अली अ.स. की वसीयत के मुताबिक़ इमामत और ख़ेलाफ़त की ज़िम्मेदारी संभाली और लगभग 6 महीने तक मुसलमानों के मामलात को हल करते रहे, और इन्हीं महीनों में माविया जो इमाम अली अ.स. और उनके ख़ानदान का खुला दुश्मन था और जिसने कई साल हुकूमत की लालच में जंग में गुज़ारे थे उसने इमाम हसन अ.स. की हुकूमत के मरकज़ यानी इराक़ पर हमला कर दिया और जंग शुरू कर दी।
लोगों का इमाम अ.स. की बैअत करना
जिस समय मस्जिदे कूफ़ा में इमाम अली अ.स. के सर पर वार किया गया और आप ज़ख़्म की वजह से बिस्तर पर थे उस समय इमाम हसन अ.स. को हुक्म दिया कि अब वह नमाज़ पढ़ाएंगे, और ज़िंदगी के आख़िरी लम्हों में आपको अपना जानशीन होने का ऐलान करते हुए कहा कि मेरे बेटे मेरे बाद तुम हर उस चीज़ के मालिक हो जिसका मैं था, तुम मेरे बाद लोगों के इमाम हो, और आपने इमाम हुसैन अ.स., मोहम्मद हनफ़िया, ख़ानादान के दूसरे लोगों और बुज़ुर्ग शियों को इस वसीयत पर गवाह बनाया, फिर आपने अपनी किताब और तलवार आपके हवाले की और फ़रमाया मेरे बेटे पैग़म्बर स.अ. ने हुक्म दिया था कि अपने बाद तुमको अपना जानशीन बनाऊं और अपनी किताब और तलवार तुम्हारे हवाले करूं बिल्कुल उसी तरह जिस तरह पैग़म्बर स.अ. ने मेरे हवाले किया था और मुझे हुक्म दिया था कि मैं तुम्हें हुक्म दूं कि तुम अपने बाद इन्हें अपने भाई हुसैन (अ.स.) के हवाले कर देना।
इमाम हसन अ.स. मुसलमानों के बीच आए और मिंबर पर तशरीफ़ ले गए, मस्जिद मुसलमानों से छलक रही थी, उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास खड़े हुए और लोगों से इमाम हसन अ.स. की बैअत करने को कहा, कूफ़ा, बसरा, मदाएन, इराक़, हेजाज़ और यमन के लोगों ने पूरे जोश और पूरी ख़ुशी से आपकी बैअत की, लेकिन माविया अपने उसी रवैये पर चलता रहा जो रवैया उसने इमाम अली अ.स. के लिए अपना रखा था।
माविया की चालबाज़ियां
इमाम हसन अ.स. ने इमाम और ख़ेलाफ़त की ज़िम्मेदारी संभालते ही शहरों के गवर्नर और हाकिमों की नियुक्ति शुरू कर दी, और सारे मामलात पर नज़र रखने लगे, लेकिन अभी कुछ ही समय गुज़रा था कि लोगों ने इमाम हसन अ.स. की हुकूमत का अंदाज़ और तरीक़ा बिल्कुल उनके वालिद की तरह पाया, कि जिस तरह इमाम अली अ.स. अदालत और हक़ की बात के अलावा किसी रिश्तेदारी या बड़े ख़ानादान और बड़े बाप की औलाद होने की बिना पर नहीं बल्कि इस्लामी क़ानून और अदालत को ध्यान में रखते हुए फ़ैसला करते थे बिल्कुल यही अंदाज़ इमाम हसन अ.स. का भी था, यही वजह बनी कि कुछ क़बीलों के बुज़ुर्गों ने जो ज़ाहिर में तो इमाम हसन अ.स. के साथ थे लेकिन अपने निजी फ़ायदों तक न पहुंचने की वजह से छिप कर माविया को ख़त लिखा और कूफ़ा के हालात का ज़िक्र करते हुए लिखा कि जैसे ही तेरी फ़ौज इमाम हसन अ.स. की छावनी के क़रीब आए हम इमाम हसन अ.स. को क़ैद कर के तुम्हारी फ़ौज के हवाले कर देंगे या धोखे से उन्हें क़त्ल कर देंगे, और चूंकि ख़्वारिज भी हाशमी घराने की हुकूमत के दुश्मन थे इसलिए वह भी इस साज़िश का हिस्सा बने।
इन मुनाफ़िक़ों के मुक़ाबले कुछ इमाम अली अ.स. के शिया और कुछ मुहाजिर और अंसार थे जो इमाम हसन अ.स. के साथ कूफ़ा आए थे और वहीं इमाम अ.स. के साथ थे, यह वह असहाब थे जो ज़िंदगी के अलग अलग कई मोड़ पर अपनी वफ़ादारी और ख़ुलूस को साबित कर चुके थे, इमाम हसन अ.स. ने माविया की चालबाज़ी और साज़िशों को देखा तो उसे कई ख़त लिख कर उसे इताअत करने और साज़िशों से दूर रहने को कहा और मुसलमानों के ख़ून बहाने से रोका, लेकिन माविया इमाम अ.स. के हर ख़त के जवाब में केवल यही बात लिखता कि वह हुकूमत के मामलात में इमाम अ.स. से ज़्यादा समझदार और तजुर्बेकार है और उम्र में भी बड़ा है।
इमाम हसन अ.स. ने कूफ़े की जामा मस्जिद में सिपाहियों को नुख़ैला चलने का हुक्म दिया, अदी इब्ने हातिम सबसे पहले वह शख़्स थे जो इमाम अ.स. की इताअत करते हुए घोड़े पर सवार हुए और भी बहुत से अहलेबैत अ.स. की सच्ची मारेफ़त रखने वालों ने भी इमाम अ.स. की इताअत करते हुए नुख़ैला का रुख़ किया।
इमाम हसन अ.स. ने अपने एक सबसे क़रीबी चाहने वाले उबैदुल्लाह जो आपके घराने से थे और जिन्होंने लोगों को इमाम अ.स. की बैअत के लिए लोगों को उभारा भा था उन्हें 12 हज़ार की फ़ौज के साथ इराक़ के उत्तरी क्षेत्र की तरफ़ भेजा, लेकिन वह माविया की दौलत के जाल में फंस गया और इमाम अ.स. का सबसे भरोसेमंद शख़्स माविया ने उसे 10 लाख दिरहम जिसका आध उसी समय दे कर उसे छावनी की तरफ़ वापस भेजवा दिया, और इन 12 हज़ार में से 8 हज़ार तो उसी समय माविया के लश्कर में शामिल हो गए और अपने दीन को दुनिया के हाथों बेच बैठे।
उबैदुल्लाह के बाद लश्कर का नेतृत्व क़ैस इब्ने साद को मिला, माविया की फ़ौज और मुनाफ़िक़ों ने उनके शहीद होने की अफ़वाह फैला कर लश्कर के मनोविज्ञान और मनोबल को कमज़ोर और नीचा कर दिया, माविया के कुछ चमचे मदाएन आए और इमाम हसन अ.स. से मुलाक़ात की और इमाम अ.स. द्वारा सुलह करने की अफ़वाह उड़ाई, और इसी बीच ख़्वारिज में से एक मनहूस और नजिस वुजूद रखने वाले ख़बीस ने इमाम अ.स. के ज़ानू (जांघ) पर नैज़े पर ऐसा वार किया कि नैज़ा अंदर हड्डी तक ज़ख़्मी कर गया, इसके अलावा और भी दूसरे कई हालात ऐसे सामने आ गए जिससे इमाम अ.स. के पास मुसलमानों ख़ास कर अहलेबैत अ.स. के सच्चे चाहने वालों का ख़ून बहने से रोकने के लिए अब सुलह के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था।
माविया ने जैसे ही माहौल को अपने हित में पाया तुरंत इमाम अ.स. के सामने सुलह की पेशकश की, इमाम हसन अ.स. ने इस बारे में अपने सिपाहियों से मशविरा करने के लिए एक ख़ुत्बा दिया और उन लोगों के सामने दो रास्ते रखे या माविया से जंग कर के शहीद हो जाएं या सुलह कर के अहलेबैत अ.स. के सच्चे चाहने वालों की जान को बचा लिया जाए......, बहुत से लोगों ने सुलह करने को ही बेहतर बताया लेकिन कुछ ऐसे भी कमज़ोर ईमान और कमज़ोर अक़ीदा लोग थे जो इमाम हसन अ.स. को बुरा भला कह रहे थे (मआज़ अल्लाह), आख़िरकार इमाम अ.स. ने लोगों की सुलह करने वाली बात को क़ुबूल कर लिया, लेकिन इमाम अ.स. ने सुलह इसलिए क़ुबूल की ताकि माविया को सुलह की शर्तों का पाबंद बना कर रखा जाए क्योंकि इमाम अ.स. जानते थे माविया जैसा इंसान ज़्यादा दिन सुलह की शर्तों पर अमल करने वाला नहीं है और वह बहुत जल्द ही सुलह की शर्तों को पैरों तले रौंद देगा जिसके नतीजे में उसके नापाक इरादे और बे दीनी और वादा ख़िलाफ़ी उन सभी लोगों के सामने आ जाएगी जो अभी तक माविया को दीनदार समझ रहे हैं।
इमाम हसन अ.स. ने सुलह की पेशकश को क़ुबूल कर के माविया की सबसे बड़ी साज़िश को नाकाम कर दिया, क्योंकि उसका मक़सद जंग कर के इमाम अ.स. और अहलेबैत अ.स. के चाहने वाले इमाम अ.स. के साथियों को क़त्ल कर के उनका ख़ात्मा कर दे, इमाम अ.स. ने सुलह कर के माविया की एक बहुत बड़ी और अहम साज़िश को बे नक़ाब कर के नाकाम कर दिया।
इमाम अ.स. की शहादत
इमाम अ.स. ने दस साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और मुसलमानों की सरपरस्ती की, और बहुत ही घुटन के माहौल में आपने ज़िंदगी के आख़िरी कुछ सालों को गुज़ारा जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, और आख़िरकार माविया के बहकावे में आकर आपकी बीवी जोअदा बिन्ते अशअस द्वारा आपको ज़हर देकर शहीद कर दिया गया और फिर आपके जनाज़े के साथ जो किया गया उसकी मिसाल इतिहास में कहीं नहीं मिलती और वह यह कि आपके जनाज़े पर तीर बरसाए गए।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जनम दिवस
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम तथा आपकी माता हज़रत फ़ातिमा ज़हरा थीं। आप अपने माता पिता की प्रथम संतान थे।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जन्म रमज़ान मास की पन्द्रहवी (15) तारीख को सन् तीन (3) हिजरी में मदीना नामक शहर में हुआ था। जलालुद्दीन नामक इतिहासकार अपनी किताब तारीख़ुल खुलफ़ा में लिखता है कि आपकी मुखाकृति हज़रत पैगम्बर से बहुत अधिक मिलती थी।
पालन पोषण
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का पालन पोषन आपके माता पिता व आपके नाना हज़रत पैगम्बर (स0) की देख रेख में हुआ। तथा इन तीनो महान् व्यक्तियों ने मिल कर हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम में मानवता के समस्त गुणों को विकसित किया।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इमामत का समय
शिया सम्प्रदाय की विचारधारा के अनुसार इमाम जन्म से ही इमाम होता है। परन्तु वह अपने से पहले वाले इमाम के स्वर्गवास के बाद ही इमामत के पद को ग्रहन करता है। अतः हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भी अपने पिता हज़रत इमाम अली की शहादत के बाद इमामत पद को सँभाला।
जब आपने इमामत के पवित्र पद को ग्रहन किया तो चारो और अराजकता फैली हुई थी। व इसका कारण आपके पिता की आकस्मिक शहादत थी। अतः माविया ने जो कि शाम नामक प्रान्त का गवर्नर था इस स्थिति से लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सहयोगियों ने आप के साथ विश्वासघात किया उन्होने धन ,दौलत ,पद व सुविधाओं के लालच में माविया से साँठ गाँठ करली। इस स्थिति में इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सम्मुख दो मार्ग थे एक तो यह कि शत्रु के साथ युद्ध करते हुए अपनी सेना के साथ शहीद होजाये। या दूसरे यह कि वह अपने सच्चे मित्रों व सेना को क़त्ल होने से बचालें व शत्रु से संधि करले । इस अवस्था में इमाम ने अपनी स्थित का सही अंकन किया सरदारों के विश्वासघात व सेन्य शक्ति के अभाव में माविया से संधि करना ही उचित समझा।
संधि की शर्तें
1-माविया को इस शर्त पर सत्ता हस्तान्त्रित की जाती है कि वह अल्लाह की किताब (कुरऑन) पैगम्बर व उनके नेक उत्तराधिकारियों की शैली के अनुसार कार्य करेगा।
2-माविया के बाद सत्ता इमाम हसन अलैहिस्सलाम की ओर हस्तान्त्रित होगी व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के न होने की अवस्था में सत्ता इमाम हुसैन को सौंपी जायेगी। माविया को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने बाद किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करे।
3-नमाज़े जुमा में इमाम अली पर होने वाला सब (अप शब्द कहना) समाप्त किया जाये। तथा हज़रत अली को अच्छाई के साथ याद किया जाये।
4-कूफ़े के धन कोष में मौजूद धन राशी पर माविया का कोई अधिकार न होगा। तथा वह प्रति वर्ष बीस लाख दिरहम इमाम हसन अलैहिस्सलाम को भेजेगा। व शासकीय अता (धन प्रदानता) में बनी हाशिम को बनी उमैया पर वरीयता देगा। जमल व सिफ़्फ़ीन के युद्धो में भाग लेने वाले हज़रत इमाम अली के सैनिको के बच्चों के मध्य दस लाख दिरहमों का विभाजन किया जाये तथा यह धन रीशी इरान के दाराबगर्द नामक प्रदेश की आय से जुटाई जाये।
5-अल्लाह की पृथ्वी पर मानवता को सुरक्षा प्रदान की जाये चाहे वह शाम में रहते हों या यमन मे हिजाज़ में रहते हों या इराक़ में काले हों या गोरे। माविया को चाहिए कि वह किसी भी व्यक्ति को उस के भूत काल के व्यवहार के कारण सज़ा न दे।इराक़ वासियों से शत्रुता पूर्ण व्यवहार न करे। हज़रत अली के समस्त सहयोगियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाये। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ,इमाम हुसैन व पैगम्बर के परिवार के किसी भी सदस्य की प्रकट या परोक्ष रूप से बुराई न कीजाये।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के संधि प्रस्ताव ने माविया के चेहरे पर पड़ी नक़ाब को उलट दिया तथा लोगों को उसके असली चेहरे से परिचित कराया कि माविया का वास्तविक चरित्र क्या है।
इमाम हसन (अ) के दान देने और क्षमा करने की कहानी।
एक दिन इमाम हसन (अ) घोड़े पर सवार कहीं जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया। इमाम हसन (अ) चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे ,जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो इमाम हसन (अ) ने उसे मुसकुरा कर सलाम किया और कहने लगेः
ऐ शेख़ ,मेरे विचार में तुम यहां अपरिचित हो और तुमको धोखा हो रहा है ,अगर भूखे हो तो तुम्हें खाना खिलाऊं ,अगर कपड़े चाहिये तो कपड़े पहना दूं ,अगर ग़रीब हो तो तुम्हरी ज़रूरत पूरी कर दूं ,अगर घर से निकाले हुये हो तो तुमको पनाह दे दूं और अगर कोई और ज़रूरत हो तो उसे पूरा करूं। अगर तुम मेरे घर आओ और जाने तक मेरे घर में ही रहो तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा क्योंकि मेरे पास एक बड़ा घर है तथा मेहमानदारी का सामान भी मौजूद है।
सीरिया के उस नागरिक ने जब यह व्यवहार देखा तो पछताने और रोने लगा और इमाम को संबोधित करके कहने लगाः मैं गवाही देता हूं कि आप ज़मीन पर अल्लाह के प्रतिनिधि हैं तथा अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि अपना प्रतिनिधित्व किसे प्रदान करे। आप से मिलने से पहले आपके पिता और आप मेरी निगाह में लोगों के सबसे बड़े दुश्मन थे और अब मेरे लिये सबसे से अच्छे हैं।
यह आदमी मदीने में इमाम हसन का मेहमान बना और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. एवं उनके अहलेबैत का श्रद्धालु बन गया। इमाम हसन (अ) की सहनशीलता व सब्र इतना मशहूर था कि “हिल्मुल- हसन ” अर्थात हसन की सहनशीलता सब की ज़बानों पर रहता था।
इबादत
पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और हज़रत अली के बेटे इमाम हसन भी अपने नाना और पिता की तरह अल्लाह की इबादत के प्रति बहुत ज़्यादा पाबंद एवं सावधान थे। अल्लाह की महानता का इतना आभास करते थे कि नमाज़ के समय चेहरा पीला पड़ जाता और जिस्म कांपने लगता था ,हर समय उनकी ज़बान पर अल्लाह का ज़िक्र व गुणगान ही रहता था।
इमाम हसन गरीबो के साथ
इतिहास में आया है कि किसी भी ग़रीब व फ़क़ीर को उन्होने अपने पास से बिना उसकी समस्या का समाधान किये जाने नहीं दिया। किसी ने सवाल किया कि आप किसी मांगने वाले को कभी ख़ाली हाथ क्यों नहीं लौटाते। तो उन्होने जवाब दिया “ मैं ख़ुद अल्लाह के दरवाज़े का भिखारी हूं ,और उससे आस लगाये रहता हूं ,इसलिये मुझे शर्म आती है कि ख़ुद मांगने वाला होते हुये दूसरे मांगने वाले को ख़ाली हाथ भेज दूं। अल्लाह ने मेरी आदत डाली है कि लोगों पर ध्यान दूं और अल्लाह की अनुकंपायें उन्हें प्रदान करूं।
हज़रत इमामे हसन (अ.स.) के कथन
१. जो शख़्स (मनुष्य) हराम ज़राये से दौलत (धन) जमा करता है ख़ुदावन्दे आलम उसे फ़क़ीरी और बेकसी में मुबतला करता है।
२. दो चीज़ो से बेहतर कोई शैय (चीज़) नहीं एक अल्लाह पर ईमान और दूसरे ख़िदमते ख़ल्क (परोपकार)।
३. ख़ामोश सदक़ा (गुप्त दान) ख़ुदावन्दे आलम के ग़ज़ब (प्रकोप) को ख़त्म कर देता है।
४. हमेशा नेक लोगों की सोहबत (संगत) इख़्तेयार (ग्रहण) करो ताकि अगर कोई कारे नेक (अच्छा कार्य) करो तो तुम्हारी सताएश (प्रशंसा) करें और अगर कोई ग़लती हो जाये तो मुतावज्जेह (ध्यान दियालें) करें।
५. जिसने ग़लत तरीक़े से माल जमा किया वह माल ग़लत जगहों पर और नागहानि-ए-हवादिस (अचानक घटित होने) में सर्फ़ होता है।
६. हर शख़्स की क़ीमत उसके इल्म के बराबर है।
७. तक़वा (सँयम ,ईश्वर से भय) से बेहतर लिबास ,क़नाअत (आत्मसंतोष) से बेहतर माल ,मेहरबानी व रहम से बेहतर एहसान मुझे न मिला।
८. बुरी आदतें जाहिलों की मुआशेरत (कुसंग) में और नेक ख़साएल (अच्छी आदतें) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की सोहबत (संगत) से मिलते हैं।
९. अपने दिल को वाएज़ व नसीहत (अच्छे उपदेश) से ज़िन्दा रखो।
१०. गुनाहगारों (पापियों) को नाउम्मीद (निराश) मत करो (क्योंकि) कितने गुनाहगार ऐसे गुज़रे जिनकी आक़ेबत ब-ख़ैर हुई।
११. सबसे बेचारा वह शख़्स है जो अपने लिये दोस्त (मित्र) न बना पाये।
१२. जो शख़्स दुनिया की बेऐतबारी को जानते हुए उस पर ग़ुरूर (घमण्ड) करे बड़ा नादान है।
१३. ख़ुश अख़लाक़ (सुशील) बनो ताकि क़यामत (महाप्रलय) के दिन तुम पर नर्मी की जाए।
१४. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह इन्सान को नेकियों से महरूम कर देता है।
१५. हमेशा नेक बात कहो ताकि नेकि से याद किये जाओ।
१६. अल्लाह की ख़ुशनूदी माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है और अल्लाह का ग़ज़ब उनके ग़ज़ब के साथ है।
१७. अल्लाह की किताब पढ़ा करो और अल्लाह की नाराज़गी और ग़ज़ब से ख़बरदार रहो।
१८. बुख़्ल (कंजूसी) और ईमान एक साथ किसी के दिल में जमा नहीं हो सकता।
१९. किसी इन्सान को दूसरे पर तरजीह (प्राथमिकता) नहीं दी जा सकती मगर दीन या किसी नेक काम की वजह से।
२०. मैने किसी सितमगर को सितम रसीदा के मानिन्द नहीं देखा मगर हासिद (ईर्ष्यालु) को।
२१. अपने इल्म (ज्ञान) को दूसरों तक पहुँचाओ और दूसरों के इल्म (ज्ञान) को ख़ुद हासिल करो।
२२. अपने भाईयें से फ़ी सबीलिल्लाह (केवल ईशवर के लिए) भाई चारा रखो।
२३. नेकियों और अच्छाइयों का अन्जाम उसके आग़ाज़ (प्रारम्भ) से बेहतर है।
२४. अच्छाई से लज़्ज़त बख़्श कोई और मसर्रत नहीं।
२५. अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) से पेश आती हो।
२६. जिसका हाफ़ेज़ा (याद्दाश्त) क़वी (ताक़तवर) न हो और अपना दर्स (पाठ) पूरे तौर से याद न कर पाता हो उसे चाहिये के वह उस्ताद के बयान करदा मतालिब (मतलब का बहु) पर ग़ौर करे और अपने पास महफ़ूज़ (सुरक्षित) करे ताकि वक़्ते ज़रूरत काम आये।
२७. जितना मिले उसपर ख़ुश रहना इन्सान को पाकदामनी तक ले जाता है।
२८. नुक़सान उठाने वाला वह शख़्स है जो ओमूरे दुनिया (सांसारिक कार्य) में इस तरह मश्ग़ूल रहे के आख़ेरत (आख़रत) के ओमूर रह जायें।
२९. धोका और मक्र (छल) ख़ासतौर से उस शख़्स के साथ जिसने तुमको अमीन (सच्चा) समझा कुफ़्र है।
३०. गुनाह क़ुबूलियते दुआ में मानेअ और बदख़ुल्क़ी शर व फ़साद का बायस (कारण) है।
३१. तेज़ चलने से मोमिन का वेक़ार (आत्मसम्मान) कम होता है और बाज़ार में चलते हुए खाना पस्ती (नीचता) की अलामत है।
३२. जब कोई तुम्हारा ख़ैर अन्देश (शुभचिन्तक) अक़्लमन्द तुमको कुछ बताये तो उसे क़ुबूल करो और उसकी ख़िलाफ़ वर्ज़ी (विरोध) से बचो क्योंकि उसमें हलाक़त है।
३३. नादानों की बातों की बेहतरीन जवाब ख़ामोशी है।
३४. हासिद (ईर्ष्यालु) को लज़्ज़त ,बख़ील (कंजूस) को आराम और फ़ासिक़ (ईशवरीय आदेशों का मन से विरोध) को एहतेराम (आदर) तमाम लोगों से कम मिलता है।
३५. बेहतरीन किरदार गुर्सना (भूखे) को खाना खिलाना और बेहतरीन काम जाएज़ काम में मशग़ूल (लिप्त) रहना।
३६. जब तुम बुरे काम से परेशान हो और नेक कामों से ख़ुशहाल तो समझ लो के तुम मोमिन हो।
३७. बेहतर यह है के तुम अपने दुश्मन पर ग़लबा (विजय) हासिल (प्राप्त) करने से पहले अपने नफ़्स पर क़ाबू पा लो।
३८. बख़ील (कंजूस) इन्सान अपने अज़ीज़ों (रिश्तेदारों) में ख़ार रहता है।
३९. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह (पाप) इन्सान के हस्नात (अच्छाइयों) को भी तबाह (बर्बाद) कर देता है।
४०. जिसके पास अज़्म (द्रढ़ता) व इरादा है वह दूसरों लोगों के मुक़ाबले में अपने ऊपर मुसल्लत (हावी) है।
शहादत (स्वर्गवास)
माविया से सुलह के बाद जबकि इमाम हसन (अ.स.) ने हुकुमत को छोड़ दिया था लेकिन फिर भी माविया का आपके वूजुदे मुबारक को बरदाश्त करना बहुत सख्त था और वैसे भी सिर्फ इमाम हसन (अ.स) ही वो शख्सियत थे कि जो माविया को अपनी मनमानी करने और यज़ीद को अपना जानशीन बनाने और खिलाफत को विरासती करने मे सबसे बड़े मुखालिफ थे और उस दौर मे सिर्फ इमाम हसन (अ.स.) ही वो सलाहियत रखते थे कि जो उम्मत की रहबरी और हिदायत के लिऐ जरूरी थी ।
और सुलह के बाद से ही हमेशा उसकी कोशीश रही कि किसी भी तरह से इमाम हसन (अ.स.) को जल्दी से जल्दी मौत के दामन मे पहुंचा दे लिहाजा पोशीदा तौर पर उसने इस काम के लिऐ मदीने की मस्जिद मे भी कई दफा इमाम हसन (अ.स.) पर हमले कराऐ लेकिन जब इन हमलो का कोई नतीजा नही निकला तो माविया ने इमाम हसन (अ.स) की ज़ौजा जोदा बिन्ते अशअस के ज़रीए आपको ज़हर दिलाकर शहीद करा दिया।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 50 हिजरी मे सफ़र मास की 28 तरीख को हुई।
समाधि
जब इमाम हसन (अ.स.) की शहादत का वक्त करीब आया तो आपने अपने भाई इमाम हुसैन (अ.स.) को अपने करीब बुलाया और उन हज़रत से इरशाद फरमायाः ये तीसरी मरतबा है कि मुझे ज़हर दिया गया है लेकिन इस से पहले जहर असर नही कर पाया था औऱ क्यों कि इस बार असर कर गया है तो मै मर जाऊंगा और जब मै मर जाऊं तो मुझे मेरे नाना रसूले खुदा (स.अ.व.व) के पहलु मे दफ्न कर देना क्योंकि कोई भी मुझसे ज्यादा वहाँ दफ्न होने का हक़दार नही है लेकिन अगर मेरे उस जगह दफ्न होने की मुखालिफत हो तो इस हाल मे ख़ून का एक क़तरा भी न बहने देना।
और जब इमाम शहीद हो गऐ और उनके जिस्मे अतहर को रसूले खुदा (स.अ.व.व) के रोज़ाऐ मुबारक मे दफ्न करने के लिऐ ले जाया जाने लगा तो मरवान बिन हकम और सईद बिन आस आपके वहा दफ्न होने की मुखालिफत करने लगे और उनके साथ-साथ आयशा भी मुखालिफत करने लगी और कहने लगी कि मै हसन के यही दफ्न होने की बिल्कुल इजाज़त नही दूंगी क्यो कि ये मेरा घर है।
इस पर आयशा के भतीजे कासिम बिन मौहम्मद बिन अबुबकर ने कहा कि क्या दोबारा जमल जैसा फितना खड़ा करना चाहती हो ?
जिस वक्त इमाम के वहा दफ्न की मुखालिफत की जा रही थी तो वो लोग कि जो इमाम की मैय्यत मे शिरकत के लिऐ आऐ हुऐ थे चाहते थे कि मरवानीयो के साथ जंग करे और इस काम के लिऐ इमाम हुसैन (अ.स.) से इजाज़त मांगने लगे लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.) ने इमाम हसन की वसीयत को याद दिलाया और इमाम हसन (अ.स.) को जन्नतुल बकी मे दफ्न कर दिया।
।। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिंव वा आले मुहम्मद।।
माहे रमज़ान के चौदहवें दिन की दुआ (14)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّهُمَّ لاتُؤاخِذْني فيہ بالْعَثَراتِ وَاَقِلْني فيہ مِنَ الْخَطايا وَالْهَفَواتِ وَلا تَجْعَلْني فيہ غَرَضاً لِلْبَلايا وَالأفاتِ بِعزَّتِكَ يا عِزَّ المُسْلمينَ...
अल्लाह हुम्मा ला तुआख़िज़नी फ़ीहि बिल असरात, व अक़िलनी फ़ीहि मिनल ख़ताया वल हफ़वात, व ला तज अलनी फ़ीहि ग़रज़न लिल बलाया, वल अफ़ाति बे इज़्ज़तिका या इज़्ज़ल मुस्लिमीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! इस महीने में मेरी लग़ज़िशों पर मेरी गिरफ़्त ना फ़रमा, मुझे ख़ताओं व गुनाहों में मुब्तला होने से दूर रख, मुझे मुश्किलों और आफ़तों का निशाना क़रार ना दे, तेरी इज़्ज़त के वास्ते, ऐ मुसलमानों की इज़्ज़त व अज़मत...
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
बंदगी की बहार- 14
रमज़ान का पवित्र महीना तक़वे, ईश्वर की उपासना और आत्ममंथन का महीना है।
इस महीने में अन्य महीनों की तुलना में ईश्वर के बंदों पर उसकी अनुकंपाएं अधिक होती हैं। रमज़ान में लोगों पर ईश्वर की कृपा, तुल्नात्मक रूप में अधिक रहती है। इस महीने में हर रोज़ेदार का यह प्रयास रहता है कि वह ईश्वरीय आदेशों पर अधिक से अधिक पालन करके उसकी अधिक से अधिक अनुकंपाओं को हासिल करे और ईश्वर से निकट हो जाए। इस्लामी शिक्षाओं में बताया गया है कि रोज़े का अर्थ केवल यह नहीं है कि मनुष्य खाना-पीना छोड़ दे बल्कि इस महीने में उसके शरीर के सारे अंग भी रोज़ेदार रहें अर्थात वह हर प्रकार के बुरे कामों से बचता रहे। रमज़ान का बेहतरीन काम यह है कि रोज़ा रखने वाला ईश्वर की उपासना करते हुए हर प्रकार की बुराइयों से बचता रहे।
रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने वाले ईश्वर के अतिथि होते हैं इसलिए पवित्र हृदय और ईश्वरीय प्रेरणा से उसकी मेहमानी में जाने की कोशिश करें। रमज़ान के दौरान मुसलमान, इसके पवित्र दिनों में आध्यात्मिक क्षणों का आभास करते हुए धैर्य का पाठ सीखते हैं। बहुत से समाजशास्त्रियों का मानना है कि रमज़ान में ऐसी भूमिका प्रशस्त होती है जिसके माध्यम से रोज़ेदार सच्चाई, परोपकार और मानवजाति से प्रेम की भावना में वृद्धि होती है। इसका परिणाम यह निकलता है कि लोगों के भीतर अपने समाज और परिवार के सदस्यों के साथ प्रेम बढ़ता है और ख़तरे कम होते हैं।
एक समाजशास्त्री डाक्टर मजीद अबहरी का मानना है कि रमज़ान का माहौल, बुराइयों से दूरी की भी भूमिका प्रशस्त करता है। इसका मुख्य कारण यह है कि जब कोई व्यक्ति ईश्वर की प्रशंसा के कारण घण्टों तक भूखा और प्यासा रहता है तो फिर वह नैतिक मूल्यों को क्षति नहीं पहुंचाएगा। रोज़ा रखने से पाप करने की इच्छा प्रभावित होती है जिसके परिणाम स्वरूप पाप और अपराध कम होते हैं। रोज़े में भूखा रहकर मनुष्य के मन में ग़रीबों, भूखों, दीन-दुखियों और वंचितों के लिए सहानुभूति उत्पन्न होती है। ऐसा व्यक्ति इन लोगों की अधिक से अधिक सहायता करना चाहता है। इस महीने में न केवल रोज़ेदार ही रमज़ान से लाभान्वित होते हैं बल्कि दूसरे लोग भी रोज़ेदारों को देखकर भलाई की ओर उन्मुख होते हैं। इस दौरान लोगों के भीतर एक विशेष प्रकार का बदलाव आता है। लोगों के प्रति अधिक कृपालू होना, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना, मानवजाति की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहना और नैतिकता का ध्यान वे बातें हैं जो रमज़ान की ही देन होती हैं।
पवित्र रमज़ान और रोज़ा रखने का एक बहुत प्रभावी असर यह है कि इससे, अपने जैसे इंसानों के प्रति दोस्ती की भावना जागृत होती है। रोज़े के ज़रिए दूसरों को किसी हद तक मदद अवश्य मिलती है। हक़ीक़त में रोज़ा रखने से इंसान, दूसरों के दुख-दर्द को समझने लगता है। इंसान की ज़िन्दगी में नाना प्रकार के दुख व दर्द होते हैं। इस बात की कल्पना नहीं की जा सकती कि सभी इंसान सभी प्रकार के दुखों का शिकार हों। जब मनुष्य हर प्रकार के दुख का शिकार नहीं होगा तो वह उनको समझेगा कैसे? जैसे कुछ लाइलाज बीमारियां होती हैं जो बहुत कम लोगों को होती हैं। कुछ ख़ास प्रकार की मुश्किलें और संकट होते हैं जिनसे कुछ विशेष वर्ग को सामना होता है लेकिन एक पीड़ा ऐसी है जिसे प्राचीन समय से लेकर आज के इस आधुनिक युग में सभी इंसान महसूस करता है और वह है भूख व प्यास की पीड़ा। ईश्वर ने पवित्र रमज़ान के महीने में भूख और प्यास की मुसीबत को बर्दाश्त करने का आदेश दिया है ताकि सभी लोग भूख और प्यास की मुसीबत को समझें। शायद अगर पवित्र रमज़ान का महीना न होता तो धनवान कभी भी निर्धन की मुश्किलों के बारे में न सोचता। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने रमज़ान से पहले शाबान के महीने में पवित्र रमज़ान के महत्व के बारे में अपने भाषण में कहा था कि "इस महीने में भूख और प्यास के ज़रिए प्रलय के दिन की भूख-प्यास को याद करो। निर्धनों व ज़रूरतमंद लोगों की मदद करो।" इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपने जैसे लोगों से मेलजोल के महत्व को समझाने के लिए कहा है, “हे लोगो! तुममे से जो भी इस महीने अपने किसी मोमिन भाई को इफ़्तार कराए तो उसे एक क़ैदी को आज़ाद कराने का पुण्य तथा पापों के क्षमा होने का बदला मिलेगा।”
पवित्र रमज़ान का वातावरण समाज के भीतर आध्यात्म को अधिक से अधिक सुदृढ़ करता है। इस महीने का वातावरण पाप और अपराध की भावना को कुचल देता है। रमज़ान के दौरान ईश्वर और उसके दास के बीच संबन्धों के मज़बूत होने के कारण मनुष्य के व्यवहार पर इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
रमज़ान का एक लाभ यह भी है कि इस में खाने और पीने पर नियंत्रण करने से आंतरिक इच्छाएं नियंत्रित रहती हैं। इसका परिणाम यह निकलता है कि पाप और अपराध की भावना कम होती है और समाज के भीतर फैली बहुत सी बुराइयां कम हो जाती हैं। यह वे बुराइयां हैं जो दूसरे अन्य महीनों में अधिक दिखाई देती हैं। एक अन्य बिंदु यह भी है कि खाने-पीने पर नियंत्रण से आंतरिक इच्छाएं दबने लगती है और जिसके नतीजे में बुरे कामों की ओर झुकाव में कमी आ जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि समाजिक बुराइयों को कम करने का यह बहुत बड़ा कारण है। बहुत से पाप और अपराध एसे हैं जो मनुष्य एकदम से अंजाम देता है और उसके लिए वह पहले से कोई योजना नहीं बनाता। कभी एसा होता है कि मनुष्य किसी बात पर एकदम से क्रोधित हो जाता है और झगड़ा करने लगता है। यही झगड़ा कभी-कभी हत्या का भी कारण बन जाता है। रोज़े की स्थिति में ऐसी भावना का उत्पन्न होना लगभग असंभव होता है क्योंकि एक तो मनुष्य भूखा और प्यासा होता है दूसरे उसके मन में सदैव यह रहता है कि किसी भी प्रकार के ग़लत काम से उसका रोज़ा बातिल हो जाएगा इसलिए वह कोई भी अनुचित हरकत करने से बचता है।
शरीर पर रोज़े के प्रभाव के बारे में हालांकि अबतक बहुत से शोध किये गए हैं किंतु मनुष्य के मन पर पड़ने वाले इसके प्रभाव एसे हैं जिन्हें अनेदखा नहीं किया जा सकता। इस बारे में ईरान में किये जाने वाले शोध से पता चलता है कि रोज़ा रखने से तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है। इस बारे में डाक्टर अब्बास इस्लामी कहते हैं कि रोज़ा सामाजिक एकता और एकजुटता का कारण बनता है। जब एसा वातावरण बन जाता है तो लोगों के भीतर परस्पर सहयोग की भावना बढ़ जाती है। जब सब लोग एक प्रकार से सोचने लगते हैं तो बहुत सी सामाजिक समस्याएं हल होने लगती हैं।
रमज़ान में मस्जिदों में जब लोग एकसाथ मिलकर उपासना में व्यस्त होते हैं तो उसका दृश्य बहुत ही मनमोहक होता है। इससे एक प्रकार की सामाजिक एकता का प्रदर्शन होता है। यह भावना संसार के बहुत से हिस्सों में बहुत ही कम देखने को मिलती है। एसे दृश्यों को केवल उन स्थानों पर ही देखा जा सकता है जहां पर बड़ी संख्या में नमाज़ी, उपासना में व्यस्त हों।
मनुष्य अपने जीवन में चाहे कोई भी काम करे, उस काम को करने के लिए उसके भीतर किसी भावना का पाया जाना ज़रूरी है। अच्छा या बुरा कोई भी काम हो उसके करने की अगर भावना या कारक नहीं है तो वह काम हो ही नहीं सकता। रोज़े की एक विशेषता यह है कि वह रोज़ेदार के भीतर सदकर्म करने की भावना जागृत करता है। रोज़े से ईमान को भी मज़बूत किया जा सकता है। ईमान को मज़बूत करके कई प्रकार की बुराइयों से बचा जा सकता है। यदि ईमान को मज़बूत करने के साथ ही आंतरिक इच्छाओं का भी दमन किया जाए तो भी मनुष्य निश्चित रूप से सफलता की ओर बढ़ेगा। रोज़े से मनुष्य के भीतर तक़वे या ईश्वरी भय की भावना बढ़ती है जो हर अच्छाई की कुंजी है। इस बारे में सूरे बक़रा की आयत संख्या 183 में ईश्वर कहता है कि हे ईमान लाने वालो! रोज़े तुम्हारे लिए निर्धारित कर दिये गए उसी प्रकार से जैसे कि तुमसे पहले वालों पर निर्धारित किये गए थे। हो सकता है कि तुम परहेज़गार बन जाओ।
तक़वे का अर्थ होता है स्वयं को पापों से सुरक्षित रखना। कहते हैं कि अधिकांश पाप, दो चीज़ों से अस्तितव में आते हैं क्रोध और वासना से। रोज़े की एक विशेषता यह है कि वह इन दोनों को नियंत्रित करता है। रोज़े की देन तक़वा या ईश्वरीय भय है और यही तक़वा मनुष्य का मुक्तिदाता है।
ईश्वरीय आतिथ्य- 14
इस महीने में रोज़ेदार, ईश्वर के मेहमान होते हैं। यह ऐसा महीना है जिसमे ईश्वरीय अनुकंपाएं नाज़िल होती हैं और इसमे पापों का प्रायश्चित होता है। यह महीना ईश्वर का है जिसमें प्रार्थना करने का आह्वान किया गया है। इस महीने में जितना भी संभव हो उतनी ही ईश्वर से दुआ या प्रार्थना की जाए। रमज़ान के महीने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि हे लोगो! इस महीने में ईश्वर से गिड़गिड़ाकर दुआ करो क्योंकि तुम्हारे जीवन का यह अति महत्वपूर्ण काल है। रमज़ान के महीने में ईश्वर अपने बंदों पर विशेष प्रकार की कृपा करता है।
दुआ अरबी भाषा का शब्द है जिसे हम प्रार्थना कहते हैं। दुआ का शाब्दिक अर्थ होता है मांगना। इसको हम इस प्रकार से भी कह सकते हैं कि खुशी-ग़म, आसानी-परेशानी, उतार-चढ़ाव और हर स्थिति में मनुष्य को ईश्वर से ही मांगना चाहिए। दुआ का एक अर्थ है केवल ईश्वर से ही मांगना। रमज़ान के पवित्र महीने में ईश्वर के विशेष बंदों की दुआएं बढ़ जाती हैं और वे हर पल उसकी सेवा में उपस्थित रहना चाहते हैं। दुआ मांगने की एक परंपरा यह है कि दुआ मांगने वाला अपने दोनो हाथों को ऊपर की ओर उठाकर ईश्वर की सेवा में अपनी मांग पेश करे क्योंकि इस महीने में ईश्वर अपने बंदों की दुआओं को अवश्य सुनता है।
आइए अब हम दुआए जौशने कबीर के बारे में बात करते हैं। रमज़ान के पवित्र महीने में जिन दुआओं के पढ़ने पर बल दिया गया है उनमें से एक जौशने कबीर नाम की दुआ है। जौशन, अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है युद्ध की पोशाक या ज़िरह। इसे हिंदी में कवच कहते हैं। धर्मगुरूओं का कहना है कि इस दुआ का नाम जौशने कबीर इसलिए पड़ा क्योंकि एक युद्ध में पैग़म्बरे इस्लाम (स) जो कवच पहने हुए थे वह बहुत भारी थी। कवच इतनी भारी थी जिससे आपको परेशानी हो रही थी। इस युद्ध में जिब्रईल, ईश्वर की ओर से एक संदेश लाए। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को संबोधित करते हुए कहा कि हे मुहम्मद! ईश्वर आपको सलाम भेजते हुए कहता है कि आप उस भारी कवच को उतार दीजिए और इस दुआ को पढ़िए। यह एसी दुआ है जो आपको और आपके मानने वालों को हर प्रकार के ख़तरों से सुरक्षित रखेगी। इस घटना के बाद से इस दुआ का नाम जौशने कबीर पड़ गया। आइए देखते हैं कि दुआए जौशने कबीर क्या है?
दुआए जौशने कबीर एक बड़ी दुआ है। इस दुआ के 100 भाग हैं और हर भाग में अल्लाह के दस नाम हैं। दुआए जौशने कबीर के 100 भागों में से केवल 55वें भाग में ईश्वर के ग्यारह नाम हैं। इस प्रकार से जौशने कबीर में ईश्वर के एक हज़ार एक नाम हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) जौशने कबीर के महत्व की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि मेरे मानने वालों में से कोई भी ऐसा बंदा नहीं है जो रमज़ान के पवित्र महीने में इसे तीन बार पढ़े, ईश्वर नरक की आग को उससे दूर कर देता है और जन्नत उसके लिए वाजिब कर देता है। एक अन्य स्थान पर कहा गया है कि दुआए जौशने कबीर का महत्व इतना अधिक है कि यदि संभव न हो तो इसे जीवन में कम से कम एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
दुआए जौशने कबीर में ईश्वर के जिन हज़ार नामों का उल्लेख किया गया है वे बहुत ही अच्छे ढंग से एकेश्वरवाद, प्रलय और अन्य उच्च इस्लामी विषयों को पेश करते हैं। आइए अब हम दुआए जौशने कबीर के 55वें भाग का उल्लेख करने जा रहे हैं जिसमें ईश्वर के ग्यारह नामों का ज़िक्र किया गया है। इस दुआ के हर भाग की कुछ पक्तियां हैं। 55वें भाग की ग्यारह पक्तियां है जिनका अनुवाद इस प्रकार हैः हे वह कि जिसका आदेश हर चीज़ पर चलता है। हे वह जिसके ज्ञान में सबकुछ है। हे वह कि जिसकी शक्ति के घेरे में सबकुछ है। हे वह कि जिसकी अनुकंपाओं को बंदे गिनने में अक्षम हैं। हे वह कि बनाने वाले उसकी प्रशंसा न कर सकें। हे वह कि जिसकी महानता को बुद्धियां न समझ सकें। हे वह कि महानता जिसकी पोशाक है। हे वह कि तेरे बंदे, जिसकी हिकमत को न समझ सकें। हे वह कि उसके अतिरिक्त कोई शासक नहीं। हे वह कि जिसके अतिरिक्त कोई अन्य देने वाला नहीं है अर्थात उसके जैसा कोई भी देने वाला है ही नहीं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक कथन में मिलता है कि ईश्वर के 99 नाम हैं। जो भी ईश्वर को इन नामों के माध्यम से पुकारे, उसकी दुआ सुनी जाती है। जो भी ईश्वर के इन नामों को याद करे वह स्वर्ग में जाएगा। जैसाकि आप जानते हैं कि ईश्वर का हर नाम उसकी एक विशेषता का प्रतीक है। जो भी इन्सान, इन नामों को सोच-विचार के साथ याद कर ले वह स्वर्ग जाने वालों में से होगा।
जैसाकि हमनें आरंभ में बताया था कि दुआए जौशने कबीर के सौ भाग हैं। इस दुआ का हर भाग कुछ पक्तियों पर आधारित है। इन पक्तियों को बंद भी कहा जाता है। परंपरा यह रही है कि जब दुआए जौशने कबीर पढ़ी जाती है तो उसके हर भाग या बंद के अंत में एक वाक्य पढ़ा जाता है जिसका अर्थ इस प्रकार होता है कि हे ईश्वर! तू हर बुराई से पवित्र है और तेरे अतिरिक्त कोई अन्य ईश्वर नहीं है। हे ईश्वर! हमे आग से सुरक्षित रख। इस वाक्य को हर बंद के बाद पढ़ना चाहिए जिसका विशेष प्रभाव है।
पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं में बताया गया है कि पापियों और काफ़िरों को नरक की आग में डाला जाएगा। आग देखने में तो प्रकाशमान होती है किंतु भीतर से झुलसा देने वाली होती है। पाप और भीतरी नकारात्मक सोच, कुछ एसी होती हैं जो देखने में तो शायद सुन्दर दिखाई दें किंतु भीतर से यह अंधकार में डूबे होते हैं। एक रोज़ा रखने वाला, दुआए जौशने कबीर जैसी दुआ पढ़कर वास्तव में ईश्वर से कहता है कि हम तेरे बारे में कही जाने वाली सारी वास्तविकताओं को स्वीकार करते हैं। हे ईश्वर तू मेरी ग़लतियों और बुराइयों को क्षमा कर दे और अपने नामों की वास्तविकता को मेरे अस्तित्व में उतार दे ताकि उनके प्रभाव से मैं उन सभी व्यर्थ बातों से दूर हो जाऊं जो मेरी समस्याओं और कठिनाइयों का कारण बनती रहती हैं।
एसे लोग जो मन की गहराइयों से इस बारे में विश्वास रखते हों कि सृष्टि में जो कुछ भी पाया जाता है वह सब ईश्वर का है, इस प्रकार के लोग सांसारिक सुख-दुख से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होते। एसे लोग सांसारिक मायामोह की वास्तविकता को भलिभांति पहचानते हैं। अगर कोई इन्सान कठिनाई के समय में भी ईश्वर को याद रखता है तो वह हर प्रकार की चिंता से सुरक्षित हो जाता है। इस प्रकार का व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी निराश नहीं हो सकता। वह अपने समाज में लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।
यही कारण है कि इस दुआ को पढ़कर पहले ईश्वर की विशेषताओं की वास्तविकता का स्मरण किया जाता है। हम एसा इसलिए करते हैं कि यदि इसके बारे में हम यदि कुछ भूल जाएं या कुछ छूट जाए तो उसको दोहरा लिया जाए। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमको नरक की आग और वास्तविकताओं को भूल जाने जैसी बुराई से बचाए रखे। यह इस अर्थ में है कि हे! ईश्वर, हम तेरे नामों की वास्तविकताओं पर पूरा भरोसा रखते हैं अतः तू हमे इस मार्ग से हटने से दूर रख। अपनी वास्तविकताओं को हमारे अस्तित्व में उंडेल दे ताकि इसके माध्यम से हम हर प्रकार की बुराई से बच सकें।
युद्धविराम के बिना कैदियों की अदला-बदली संभव नहीं, हमास
हमास आंदोलन के एक नेता ने 40 इजरायली कैदियों के बदले 700 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करने के समझौते के बारे में कहा है कि अगर युद्ध, अपराध और घेराबंदी जारी रहेगी तो कैदियों की अदला-बदली नहीं होगी.
हमास के वरिष्ठ नेता ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि ज़ायोनी मीडिया में यह दावा कि इज़राइल हमास को उदारवादी समाधान दे रहा है और रियायतें दे रहा है, निराधार और खोखला प्रचार है।
हमास के नेता ने कहा कि ज़ायोनी दुश्मन के प्रचार का उद्देश्य इज़रायली सरकार की कठोरता को छिपाना और सुलह के रास्ते में बाधा डालने की ज़िम्मेदारी से बचना है।
हमास के नेता ने कहा कि हमने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है और हम इससे पीछे नहीं हटेंगे और अगर युद्ध, अपराध और घेराबंदी जारी रही तो कैदियों की अदला-बदली नहीं होगी.
इससे पहले ज़ायोनी सरकार के टीवी-रेडियो ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से घोषणा की थी कि तेल अवीव 40 इज़रायली कैदियों के बदले में 700 हमास कैदियों को रिहा करने के लिए तैयार है। वे वापसी के लिए बड़ी रियायतें देने के लिए भी तैयार हैं।
ब्रिटिश न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्ज़ दुनिया का सबसे झूठा मीडिया, मस्क
माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट एक्स पर एलन मस्क ने अपनी एक पोस्ट में ब्रिटिश न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्ज़ को दुनिया का सबसे झूठा संचार माध्यम क़रार दिया है।
पूर्व में ट्विटर के नाम से जानी जाने वाली वेबसाइट पर मस्क ने लिखाः मेन स्ट्रीम मीडिया आउलेट्स अपने संबंधोकों से पानी पीने की तरह आसानी से झूठ बोलते हैं और इनमें रॉयटर्ज़ का हाल सबसे बुरा है।
इससे पहले एलन मस्क ने कहा था कि अमरीकी नागरिकों को अमरीकी सरकार द्वारा सेंसरशिप का थोड़ा सा भी आइडिया नहीं है।
दक्षिण अफ्रीका में गाजा के पक्ष में 41 किलोमीटर की पैदल यात्रा
दुनिया भर से हजारों लोग दक्षिण अफ़्रीकी शहर केपटाउन में एकत्र हुए और गाजा में युद्धविराम की मांग करते हुए 41 किलोमीटर लंबा मार्च निकाला.
दक्षिण अफ्रीकी मीडिया सूत्रों के अनुसार, दुनिया के 20 देशों के 160 शहरों से हजारों लोग फिलिस्तीन के साथ एकजुटता व्यक्त करने और चर्चों की अपील पर "गाजा में संघर्ष विराम के लिए मार्च" करने के लिए केप टाउन में एकत्र हुए। ईसाई समुदाय। के शीर्षक के तहत
पैदल मार्च किया. मार्च केप टाउन के दक्षिण में साइमन टाउन से शुरू हुआ और केप टाउन शहर के केंद्र में समाप्त हुआ।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, गाजा पट्टी की लंबाई को देखते हुए 41 किलोमीटर तक का मार्च निकाला गया, जिसमें शामिल होने वालों की संख्या हजारों में थी. प्रदर्शनकारियों ने फ़िलिस्तीनी झंडे पकड़ रखे थे और मार्च के अंत तक गाजा में संघर्ष विराम का आह्वान किया और फ़िलिस्तीनियों के लिए प्रार्थना की।
मार्च के दौरान प्रदर्शनकारियों ने दमनकारी इजरायली सरकार के खिलाफ नारे भी लगाए।
तेहरान में फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन
तेहरान विश्वविद्यालय के छात्र और जनता रविवार रात को ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने और फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने के लिए एकत्र हुए।
तेहरान विश्वविद्यालय के छात्र और लोग ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने और फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने के लिए रविवार रात ब्रिटिश दूतावास के सामने एकत्र हुए, जबकि इसी तरह की एक सभा तेहरान के फ़िलिस्तीन स्क्वायर और ज़ायोनी अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में आयोजित की गई थी। संस्थानों से जवाब मांगा गया.
तेहरान की मस्जिद में पवित्र कुरान की प्रदर्शनी के अवसर पर लोगों ने एकत्र होकर फिलिस्तीनियों के समर्थन में नारे लगाये और ज़ायोनी अपराधों की निंदा की। आज रात फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में और तेहरान की अर्ग मस्जिद में ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने के लिए एक सभा आयोजित करने की घोषणा की गई है। इसी तरह की सभाएं ईरान के कई अन्य शहरों में भी आयोजित की जा रही हैं।