رضوی

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इमाम जफार सादीक अलैहिस्सलाम ने एक रिवायत में नौरोज़ की अहमियत को बयान फरमाया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "मुस्तद्रक अलवसाएल"पुस्तक से लिया गया है। इस कथन का पाठ इस प्रकार है:

:قال الامام الصادق علیه السلام

ما من یوم نیروز الا ونحن نتوقع فیه الفرج لانه من أیامنا وأيام شيعتنا

हज़रत इमाम जफार सादीक अलैहिस्सलाम ने फरमाया:

कोई ऐसा नौरोज़ नहीं है मगर यह कि उसमें हम कायम ए आले मुहम्मद के ज़ुहूर के मुंतज़िर होते हैं क्योंकि नौरोज़ हमारे और हमारे शियों के दिनों में से हैं।

मुस्तद्रक अलवसाएल,भाग 6,पेंज 352

नवरोज का त्योहार ईरानी समुदाय में मनाया जाता है. यहां के लोग इसे नए साल का आगमन मानते हैं. ईरानी न्यू ईयर 20 मार्च को पड़ रहा है. जानें क्यों मनाया नवरोज का त्योहार, क्या है

अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से पूरी दुनिया में नए साल का जश्न 1 जनवरी को मनाया जाता है. लेकिन अलग-अलग धर्मों में कैलेंडर के हिसाब से नया साल आता है. हिंदू और इस्लामिक धर्म का अपना अलग कैलेंडर है और इसी को ध्यान में रखकर लोग अपना नववर्ष मनाते हैं. ईरानी समुदाय के लोग इस खास मौके पर अपनों को, दोस्तों और रिश्तेदारों को शुभकामनाएं भेजते हैं.

यहां के लोग सर्दियों के जाने और वसंत के आने की खुशी में भी नवरोज को सेलिब्रेट करते हैं. नवरोज के मौके पर अपनों को शुभकामना संदेश भेजना कॉमन है. ये अलग और अट्रैक्टिव नवरोज शुभकामना संदेश अपनों को भेजें.

क्यों मनाया जाता है नवरोज का त्योहार

नवरोज का त्योहार एक प्राचीन ईरानी त्योहार है. ये नए साल के आगमन से जुड़ा हुआ है और ईरानी इसे सेलिब्रेट करते हैं. वैसे अलग-अलग देशों में अलग टाइमिंग पर इसे लोग अपने-अपने रीति-रिवाजों से मनाते हैं. ईरानीयों में माना जाता है कि ये सर्दियों के जाने और वसंत ऋतु के आगमन को दर्शाता है. इसे नेचर से प्रेम का त्योहार भी माना जाता है. देखा जाए तो नवरोज नेचर को थैंक्यू देने का दिन है. बता दें कि भारत के ईरानी शहंशाही पंचांग के अनुसार नवरोज को मनाते हैं. इस बार इसका दिन 20 मार्च तय किया गया है

नवरोज को मनाने का तरीका

नए साल के जश्न में ईरानी अपनों से मिलते-जुलते हैं और उन्हें गिफ्ट तक देते हैं. त्योहार के आने से पहले घरों में साफ-सफाई का काम शुरू हो जाता है. इस दौरान घरों को सजाने के लिए रंगोली तक बनाई जाती है. वैसे जश्न की बात हो टेस्टी फू्ड्स को कैसे इग्नोर किया जा सकता है. ईरानी समुदाय के लोग इस मौके पर खाने पीने की पारंपरिक चीजें तक तैयार करते हैं. और लोग खुशी में नाचते-गाते भी हैं.

नौरोज़ या नवरोज़ (फारसी: نوروز‎‎ नौरूज़; शाब्दिक रूप से "नया दिन"), ईरानी नववर्ष का नाम है, जिसे फारसी नया साल भी कहा जाता है और मुख्यतः ईरानियों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। यह मूलत: प्रकृति प्रेम का उत्सव है। प्रकृति के उदय, प्रफुल्लता, ताज़गी, हरियाली और उत्साह का मनोरम दृश्य पेश करता है। प्राचीन परंपराओं व संस्कारों के साथ नौरोज़ का उत्सव न केवल ईरान ही में ही नहीं बल्कि कुछ पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता है। इसके साथ ही कुछ अन्य नृजातीय-भाषाई समूह जैसे भारत में पारसी समुदाय भी इसे नए साल की शुरुआत के रूप में मनाते हैं।पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, काकेशस, काला सागर बेसिन और बाल्कन में इसे 3,000 से भी अधिक वर्षों से मनाया जाता है। यह ईरानी कैलेंडर के पहले महीने (फारवर्दिन) का पहला दिन भी है। यह उत्सव, मनुष्य के पुनर्जीवन और उसके हृदय में परिवर्तन के साथ प्रकृति की स्वच्छ आत्मा में चेतना व निखार पर बल देता है। यह त्योहार समाज को विशेष वातावरण प्रदान करता है, क्योंकि नववर्ष की छुट्टियां आरंभ होने से लोगों में जो ख़ुशी व उत्साह दिखाता है वह पूरे वर्ष में नहीं दिखता।

हिजरी शमसी कैलेण्डर के अनुसार नौरोज़ या पहली फ़रवरदीन नव वर्ष का उत्सव दिवस है। नौरोज़ का उदगम तो प्राचीन ईरान ही है किंतु वर्तमान समय में ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमनिस्तान, क़िरक़ीज़िस्तान, उज़्बेकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, आज़रबाइजान, भारत, तुर्की, इराक़ और जार्जिया के लोग नौरोज़ के उत्सव मनाते हैं। नौरोज़ का उत्सव "इक्वीनाक्स" से आरंभ होता है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है समान। खगोलशास्त्र के अनुसार यह वह काल होता है जिसमें दिवस और रात्रि लगभग बराबर होते हैं। इक्वीनाक्स उस क्षण को कहा जाता है कि जब सूर्य, सीधे भूमध्य रेखा से ऊपर होकर निकलता है। हिजरी शमसी कैलेण्डर का नव वर्ष इसी समय से आरंभ होता है और यह नए वर्ष का पहला दिन होता है। ईसवी कैलेण्डर के अनुसार नौरोज़ प्रतिवर्ष 20 या 21 मार्च से आरंभ होता है।

यह एक ऐसा बेहतरीन अवसर होता है जो पिछले वर्ष की थकावट व दिनचर्या के कामों से छुटकारा व विश्राम की संभावना उत्पन्न कराता है। नववर्ष, अतीत पर दृष्टि डालने और आने वाले जीवन को उत्साह व ख़ुशियों से भर अनुभव से जारी रखने का नाम है। प्रकृति की हरियाली और हरी भरी पत्तियों से वृक्षों का श्रंगार, नये व उज्जवल भविष्य का संदेश सुनाती है। इस अवसर पर प्रचलित बेहतरीन परंपराओं में से एक है सगे संबंधियों से भेंट। इस परंपरा में इस्लाम धर्म में बहुत अधिक बल दिया गया है। यहाँ तक कि नौरोज़ को सगे संबंधियों से भेंट और अपने दिल की बात बयान करने का बेहतरीन अवसर माना जाता है जो परिवारों के मध्य लोगों के संबंधों को अधिक सृदृढ़ करता है। यह त्योहार समाज में नववर्ष के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है।

नववर्ष के पहले ही दिन से लोगों का एक दूसरे के यहां आने जाने का क्रम आरंभ हो जाता है। समस्त परिवारों में यह प्रचलन है कि वे सबसे पहले परिवार के सबसे बड़े सदस्य के यहां जाते हैं और उन्हें नववर्ष की बधाई देते हैं। उसके बाद परिवार के बड़े सदस्य अन्य लोगों के यहां बधाई के लिए जाते हैं। इस अवसर पर परिवार के अन्य सदस्य एक साथ एकत्रित होते हैं और यह क्रम तेरह तारीख़ तक या महीने के अंत तक जारी रहता है। परिवार के सदस्यों, निकटवर्तियों, मित्रों और पड़ोसियों से मिलने के अतिरिक्त दुखी व संकटग्रस्त लोगों से भी मिलना, नौरोज़ के प्रचलित संस्कारों में से एक है। इस भेंट व मेल मिलाप में यह भी प्रचलित है कि पहले उस व्यक्ति के घर जाते हैं जिसके वर्ष के दौरान किसी सगे संबंधी का निधन हो गया हो। इस संस्कार को नोए ईद भी कहा जाता है। यदि किसी घर में किसी सगे संबंधी का निधन हो जाता है जो शोकाकुल परिवार ईद के पहले दिन घर में बैठता है और सामान्य रूप से परिवार के बड़े सदस्य शोकाकुल परिवार से काले कपड़े उतरवाते हैं और उन्हें नये कपड़े उपहार में देते हैं। ईद के पहले दिन या नोए ईद का प्रतीकात्मक आयाम है और साथ ही नौरोज़ के मेल मिलाप का वातावरण भी उपलब्ध कराता है। भेंटकर्ता, ईद के पहले दिन शोकाकुल परिवार को सांत्वना नहीं देते बल्कि उनके लिए ख़ुशी की कामना करते हैं।

कई अन्य देशों में भी ईरानी लोगों द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता है, इन जगहों में यूरोप, अमेरिका भी शामिल है।

शाहनामा नौरोज़ के त्यौहार को महान जमशेद के शासनकाल से जोड़ता है। पारसी ग्रंथों के मुताबिक़ जमशेद ने मानवता की एक ऐसे मारक शीतकाल से रक्षा की थी जिसमें पृथ्वी से जीवन समाप्त हो जाने वाला था।[6] यह पौराणिक राजा जमशेद, पुरा-ईरानी लोगों के शिकारी से पशुपालक के रूप में परिवर्तन और अधिक स्थाई जीवन शैली अपनाने के काल का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। शाहनामा और अन्य ईरानी मिथकशास्त्रों में जमशेद द्वारा नौरोज़ की शुरुआत करने का वर्णन मिलता है। पुस्तक के अनुसार, जमशेद ने एक रत्नखचित सिंहासन का निर्माण करवाया और उसे देवदूतों द्वारा पृथ्वी से ऊपर उठवाया और स्वर्ग मने स्थापित करवाया तथा इसके बाद उस सिंहासन पर सूर्य की तरह दीप्तिमान होकर बैठा। दुनियावी लोग और जीव आश्चर्य से उसे देखने हेतु इकठ्ठा हुए और उसके ऊपर मूल्यवान वस्तुयें चढ़ाईं, और इस दिन कोई नया दिन (नौ रोज़) कहा। यह ईरानी कालगणना के अनुसार फ़रवरदीं माह का पहला दिन था।

 

सुप्रीम लीडर ने फरमाया, दुआ हमको हमेशा करनी चाहिए विशेषकर उन अवसरों पर जब दुआ के कबूल होने की बात कही गई है मिसाल के तौर पर शुभ रातों को, आधी रात को, रमज़ान अलमुबारक में भोर के समय कि जब अल्लाह तआला दुआ करने पर बहुत बल दिया गया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली खामेनेई ने फरमाया, दुआ की विभिन्न विशेषताएं हैं दुआ की कुछ एसी विशेषताएं भी हैं जो बलाओं के दूर करने से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। दुआ के माध्यम से हमारे और ईश्वर के मध्य संपर्क स्थापित होता है।

अतः आप देखते हैं कि इमामों द्वारा दी गयी शिक्षाओं में दुआ की विशेष स्थान है यहां तक कि इमामों ने धार्मिक शिक्षाओं को दुआ के माध्यम से बयान किये हैं।

हमने बार बार कहा है कि सहीफये सज्जादिया की दुआओं में बहुत ही गूढ़ ईश्वरीय व इस्लामी शिक्षाएं नीहित हैं और इंसान कम ही दूसरी हदीसों या इमामों के बयानों में इन शिक्षाओं को पाता है। इमामों ने इन शिक्षाओं को दुआओं के माध्यम से बयान किया है।

यानी इमामों ने हमारा ध्यान दुआओं की ओर दिलाना चाहा है। अतः दुआ के माध्यम से हम ईश्वर से संपर्क स्थापित करते हैं और उन शिक्षाओं से अवगत होते हैं जो दुआओं में हैं। इसी प्रकार दुआएं बलाओं को भी टालती हैं और हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह दुआओं के माध्यम से बलाओं को टाल दे।

हमेशा दुआ करें विशेषकर उन अवसरों पर जब दुआ के कबूल होने की बात कही गयी है। मिसाल के तौर पर शुभ रातों को, आधी रात को, भोर के समय कि जब महान ईश्वर से प्रार्थना करने पर बहुत बल दिया गया है। इसी तरह उस समय ईश्वर से दुआ करने पर बल दिया गया है जब इंसान के दिल की विशेष आध्यात्मिक स्थिति हो जाती है। एसे समय में ज़रूर दुआ करना चाहिये और महान ईश्वर दुआ को कबूल करता है।

एक रवायत है जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” हर समूह का प्रमुख उस समूह का सेवक होता है।“

पैग़म्बरे इस्लाम के इस कथन के दो अर्थ हो सकते हैं पहला अर्थ यह हो सकता है कि जो व्यक्ति सबसे अधिक सेवा करता है वह प्रमुख बनने का अधिकार रखता है। इस आधार पर हम यह समझने के लिए कि क़ौम व समुदाय का प्रमुख कौन है वंश और नाम आदि का पता लगाने नहीं जा रहे हैं बल्कि हम यह देखना चाहते हैं कि कौम व समुदाय की सेवा कौन सबसे अधिक करता है वही कौम का प्रमुख है।

या पैग़म्बरे इस्लाम का जो यह कथन है कि हर समूह का प्रमुख उस दल का सेवक होता है” इसका अर्थ यह हो सकता है कि हम यह कहें कि जो किसी कौम का प्रमुख व नेता होता है उसे कौम का सेवक होना चाहिये चाहे जिस कारण से भी उसे प्रमुख बनाया गया हो।

कभी जो यह कहा जाता है कि अधिकारी जनता के नौकर हैं तो इस पर कुछ लोग आपत्ति जताते और कहते हैं कि श्रीमान नौकर शब्द का प्रयोग न करें। ठीक है इस शब्द का प्रयोग पैग़म्बरे इस्लाम ने किया है सेवक यानी नौकर। यह शब्द जहां जनता की सेवा के महत्व व मूल्य को दर्शाता है वहीं इस बात का सूचक है कि जनता को लाभ पहुंचाना और उसके लिए परिश्रम करना कितना महत्वपूर्ण है।

जब हम या आप अमुक विभाग या अमुक जनसंख्या के प्रमुक बन जाते हैं तो हमारे मन में एक बात आती है और वह यह कि आम लोगों से हटकर हमारी एक ज़िम्मेदारी बनती है। रवायत यह नहीं कह रही है कि जिस कारण से भी अगर आप किसी जनसंख्या व राष्ट्र के प्रमुख बन गये हैं तो फौरन आप पर एक दायित्व व ज़िम्मेदारी आ जाती है और वह उसकी सेवा है।

देखिये इसका अर्थ क्या है! और जो भौतिक दुनिया की संस्कृति में प्रचलित है उसका क्या अर्थ है! जैसे ही वह केवल अध्यक्ष व प्रमुख पद की कुर्सी पर बैठता है मानो एक प्रकार की दीवार उसके चारों ओर खिंच जाती है और किसी को इस बात का अधिकार नहीं है कि वह उस दीवार को पार करे। आप अध्यक्ष हैं बहुत अच्छा है। आपका दायित्व सेवा करना है।

कार्यक्रम के आरंभ में हमने पैग़म्बरे इस्लाम का जो कथन बयान किया था उसके अर्थ के संबंध में पहली संभावना यह है कि अगर हम यह देखना चाहें कि कौन प्रमुख है तो देखें कि कौन सबसे अधिक सेवा करता है ताकि हम यह समझें कि वही प्रमुक है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने हिजरी शम्सी वर्ष 1403 की शुरुआत के अवसर पर एक संदेश में ईरानी जनता विशेष रूप से शहीदों के परिवारों और उन सभी राष्ट्रों को  नौरोज़ की बधाई देते हुए नए साल को "जनता की भागीदारी से उत्पादन में छलांग का वर्ष" क़रार दिया है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने शहीदों और शहीदों के इमाम को याद करते हुए ईरानी राष्ट्र को प्रकृति और आध्यात्मिकता की दो बहारों से लाभान्वित होने की कामना करते हुए हिजरी शम्सी वर्ष 1402 की मिठास और कड़वाहटों पर एक संक्षिप्त नज़र डाली।

उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष की अच्छी और बेहतरीन खबरों में, महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगतियां, बुनियादी ढांचों का उत्पादन, विभिन्न समारोहों में जनता की भव्य उपस्थिति, विशेष रूप से विश्व कुद्स दिवस और 22 बहमन की रैलियों में, मार्च में होने वाला शांतिपूर्ण और पारदर्शी चुनाव और विभिन्न आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में सरकार की अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियां इत्यादि थीं।

सुप्रीम लीडर अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई ने जनता की आर्थिक और रोज़गार की समस्याओं को वर्ष 1402 हिजरी शम्सी की कड़वी ख़बरों में बताया।

उन्होंने कहा कि शहीद जनरल सुलेमानी की बरसी के अवसर पर किरमान में हुई कड़वी घटना, बलूचिस्तान में बाढ़ और हालिया महीनों में सुरक्षा बलों के साथ हुई घटनाएं, पिछले साल की अन्य कड़वी घटनाओं में थीं लेकिन ग़ज़ा की घटना को सबसे दुखद और सबसे कड़वी घटना समझा जाना चाहिए।

पिछले साल के नारे और स्लोगन का हवाला देते हुए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने मुद्रास्फीति और उत्पादन वृद्धि पर अंकुश लगाने के क्षेत्र में किए गए कार्यों के मूल्यांकन को अच्छा लेकिन ज़्यादा वांछित क़रार नहीं दिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी को भी एक साल के अंदर इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे के पूरी तरह से साकार होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि नए साल में देश का मुख्य मुद्दा अभी भी "अर्थव्यवस्था" है क्योंकि देश की मुख्य कमज़ोरी यही क्षेत्र है और देश को इसी क्षेत्र में सक्रिय होना चाहिए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अर्थव्यवस्था और उत्पादन के क्षेत्र में जनता की उपस्थिति के बिना उत्पादन में उछाल संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि उत्पादन क्षेत्र में जनता की उपस्थिति में आने वाली बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए और जनता की अपार और बड़ी क्षमताओं को सक्रिय किया जाना चाहिए।

सुप्रीम लीडर ने अपने बयान के अंत में महा मुक्तिदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम को सलाम करते हुए ईश्वर से उनके शीघ्र प्रकट होने की दुआ की जो मानवता को मुक्ति दिलाने वाले हैं।

ईरान के राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहीम रईसी ने ईरानी नव वर्ष के मौके पर बधाई देते हुए आयतुल्लाह नूरी हमदानी के साथ टेलीफोन पर बातचीत की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ईरान के राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहीम रईसी ने ईरानी नव वर्ष के मौके पर बधाई देते हुए आयतुल्लाह नूरी हमदानी के साथ टेलीफोन पर बातचीत की देश की स्थिति के बारे में रिपोर्ट पेश की,

हज़रत आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने भी हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहीम रईसी को बधाई दी और उनके प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया और कहा अल्लाह ने चाहा, तो देश की सभी समस्याएं जल्द ही हल हो जाएंगी।

बातचीत के अंत में मरजाय तकलीद ने लोगों की समस्याओं को हल करने में सरकार की सफलता के लिए दुआ की और ईरान के सम्मानित लोगों की सेवा में नए साल की शुभकामनाएं व्यक्त कीं हैं।

इस्लामी गणतंत्र ईरान ने संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण कन्वेंशन की अध्यक्षता ग्रहण कर ली है।

जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में ईरान के स्थायी प्रतिनिधि अली बहरीनी ने इस कन्वेंशन की पहली बैठक में अपनी अध्यक्षता के दौरान ईरान की योजनाओं और कार्यक्रमों की घोषणा करते हुए कहाः इस्लामी गणतंत्र ईरान, शांति प्रिय और युद्ध और हिंसा के विरोधी देशों के साथ मिलकर सामूहिक विनाश के हथियारों विशेषकर परमाणु हथियारों के उन्मूलन के माध्यम से विश्व शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देगा।

विश्व निरस्त्रीकरण कन्वेंशन की स्थापना 1978 में हुई थी। यह निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय बहुपक्षीय वार्ता संस्था है, जो इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर बातचीत करने और निष्कर्ष निकालने के लिए ज़िम्मेदार है।

निरस्त्रीकरण कन्वेंशन ने जैविक निरस्त्रीकरण कन्वेंशन (बीडब्ल्यूसी) और व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) सहित कई अंतरराष्ट्रीय निरस्त्रीकरण संधियों पर वार्ता की और उन्हें अंतिम रूप दिया।

ईरान ने निरस्त्रीकरण कन्वेंशन की अध्यक्षता के दौरान, परमाणु हथियार धारकों के दायित्वों का कार्यान्वयन, परमाणु हथियारों की प्रतिस्पर्धा का अंत और मध्यपूर्व को सामूहिक विनाश के हथियारों से मुक्त करने जैसे लक्ष्यों का निर्धारण किया है।

सोशल नेटवर्क एक्स (पूर्व ट्विटर) के एक यूज़र ने एक अपनी एक पोस्ट में ग़ज़ा के पास एक बंदरगाह स्थापित करने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के छिपे लक्ष्यों से पर्दा उठाया है।

नेहला ने एक्स सोशल नेटवर्क पर लिखा: ग़ज़्ज़ा के पास एक बंदरगाह बनाने के बाइडेन के छिपे लक्ष्य? अमेरिका के हीरो पायलट आरोन बुशनेल के समर्थन में होने वाले विरोध प्रदर्शन और ग़ज़ा में युद्ध को रोकने के अनुरोध के बाद अमेरिकियों के गुस्से को कम करना, अमेरिकियों और दुनिया को धोखा देना कि इस बंदरगाह का उद्देश्य ग़ज़ा की जनता की मदद के लिए मानवीय कार्य है जबकि इसका उद्देश्य इन क्षेत्रों से प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर गैस की लूटपाट है।

अमेरिकी वायु सेना के 25 वर्षीय पायलट आरोन बुशनेल ने ज़ायोनी शासन द्वारा ग़ज़ा पट्टी में रहने वाले फिलिस्तीनी लोगों के खुले नरसंहार के लिए वाइट हाउस के समर्थन का विरोध किया और वाशिंगटन में इस्राईल के दूतावास में सामने उन्होंने खुद को आग लगा ली और गंभीर रूप से जलने के कारण अस्पताल ले जाने के बाद उनकी मृत्यु हो गई।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत ने यमन और लाल सागर के संबंध में अमेरिका और ब्रिटेन के आरोपों को निराधार कहकर उन्हें रद्द कर दिया है।

राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत अमीर सईद ईरवानी ने सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के नाम पत्र में लिखा है कि अमेरिका और ब्रिटेन के राजदूतों ने एक बार फिर सुरक्षा परिषद के मंच का दुरूपयोग करने का प्रयास किया है।

उन्होंने कहा कि तेहरान कड़ाई से इन आरोपों को रद्द करता है और उसका मानना है कि वाशिंग्टन और लंदन अपने राजनीतिक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए उसे बहाने के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि इसी प्रकार अमेरिका और ब्रिटेन यमन के खिलाफ अपने ग़ैर कानूनी हमलों व कार्यों का औचित्य दर्शाने के लिए इस प्रकार की बातें कर रहे हैं। राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान किसी प्रमाण के बिना उस बयान को रद्द करता है जिसे सुरक्षा परिषद की बैठक में फ्रांसीसी राजदूत ने पढ़ा।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि फ्रांस सुरक्षा परिषद का एक स्थाई सदस्य है इस नाते तेहरान पेरिस का आह्वान करता है कि वह ज़िम्मेदारी से अमल करे और स्वतंत्र व स्वाधीन देशों पर राजनीतिक आरोप का लेबल लगाने से परहेज़ करे।

इसी प्रकार राष्ट्र संघ में ईरानी राजदूत ने यमन के खिलाफ अमेरिका के तथाकथित घटबंधन के हमलों को गैर कानूनी बताया और एक बार फिर उनकी भर्त्सना की और उसे यमन की संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुला उल्लंघन बताया। इसी प्रकार सईद ईरवानी ने इन हमलों को क्षेत्र की शांति व सुरक्षा के गम्भीर खतरा बताया

माहे रमज़ान के पवित्र महीने में कुछ विशेष क्षण होते हैं। इन विशेष क्षणों में सबसे सुंदर क्षण सहर अर्थात भोर के समय के होते हैं। बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि वर्तमान जीवन शैली तथा शारीरिक एवं मानसिक थकान ने अधिकांश लोगों को भोर समय में उठने से वंचित कर रखा है। माहे रमज़ान के पवित्र महीने में हमें यह सुअवसर प्राप्त होता है कि भोर समय उठने के आनन्द तथा उसके लाभ का हम आभास कर सकें। दिन भर के 24 घण्टों में भोर का समय ही सबसे अच्छा समय होता है। इस समय का महत्व इतना अधिक है कि ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन की आयतों में इसकी सौगंध खाई है ताकि लोग भोर के बारे में अधिक विचार करें।

इस्लाम के बड़े-बड़े महापुरूषों तथा विद्धानों के जीवन पर यदि एक दृष्टि डाली जाए तो हमें ज्ञात होगा कि वे सब ही भोर समय उठा करते थे। वे लोग इस समय ईश्वर की उपासना, चिंतन तथा ज्ञानार्जन में व्यस्त रहा करते थे। भोर समय की प्रार्थना या उपासना मनुष्य के मन तथा आत्मा पर गहरा प्रभाव डालती है। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि दुआ के लिए बेहतरीन समय भोर समय है। भोर समय की अनुकंपाओं के संबन्ध में इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम का कथन है कि ईश्वर अपने मोमिन बंदों में से उस बंदे से अधिक प्रेम करता है जो अधिक दुआ करता है। इसीलिए भोर समय से सूर्योदय तक प्रार्थना किया करो क्योंकि उस समय आकाशों के द्वार खुल जाते हैं, लोगों की रोज़ी बांटी जाती है और बड़ी-बड़ी दुआएं स्वीकार की जाती हैं।

भोर में उठने से आत्मा को आनन्द एवं शान्ति प्राप्त होती है। लगभग सभी धर्मों में भोर समय उठकर उपासना करने के आदेश मिलते हैं। इस्लामी शिक्षाओं में यह भी आया है कि भोर में उठने से आजिविका में वृद्धि होती है। पैग़म्बरे इस्लाम का इस संबन्ध में कथन है कि प्रातःकाल मे अपनी रोज़ी प्राप्त करने के लिए घर से निकल जाओ क्योंकि भोर में उठना विभूतियों की प्राप्ति का कारण बनता है। माहे रमज़ान का पवित्र महीना आत्मनिर्णाण का महीना है। महापुरुषों का कहना है कि आत्मनिर्माण में भोर समय उठने की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।

विश्व में जिन लोगों ने कोई विशेष स्थान प्राप्त किया है उनके जीवन का अध्धयन करने से ज्ञात होता है कि वे प्रातः उठा करते थे। अरबी भाषा में भी एक कथन है जिसका अर्थ यह है कि जो भी सफलता की कामना करता है उसे भोर समय उठना चाहिए। भोर समय उठने से केवल आत्मा को ही लाभ नहीं मिलता बल्कि शरीर को भी इसका लाभ प्राप्त होता है। भोर समय उठने वाला व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से स्वस्थय रहता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भोर समय उठना मनुष्य के लिए हर दृष्टि से लाभकारी है अतः हमें इसे अपनाना चाहिए।

 

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّٰهُمَّ ارْزُقْنِی فِیهِ رَحْمَةَ الْاَیْتامِ وَ إِطْعامَ الطَّعامِ وَ إِفْشاءَ السَّلامِ وَصُحْبَةَ الْکِرامِ، بِطَوْلِكَ یَا مَلْجَأَ اللآمِلِینَ

اے معبود! آج کے دن مجھے یتیموں پر رحم کرنے، ان کو کھانا کھلانے اور امن و سلامتی کے اظہار اور اس کو پھیلانے اور شرفاء کے پاس بیٹھنے کی توفیق دے اپنے فضل سے اے آرزومندوں کی پناہ گاہ ۔

ऐ माबूद !आज के दिन मुझे यतीमों पर रहम करने, इनको खाना खिलाने और अमन व सलामती के इज़हार और उसको फैलाने शरीफ लोगों के पास बैठने की तौफीक दें, अपने फज़ल से ए आरजूमंदओं की पनाह गाह,

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम..