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शुक्रवार, 13 दिसम्बर 2024 19:03

डॉ. जाकिर हुसैन पुस्तकालय

 डॉ. जाकिर हुसैन पुस्तकालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में स्थित भारत के प्रमुख शैक्षिक केंद्रों में से एक है, जिसे 1920 में स्थापित किया गया था और इसका नाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के नाम पर रखा गया है।

डॉ. जाकिर हुसैन पुस्तकालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में स्थित भारत के प्रमुख शैक्षिक केंद्रों में से एक है, जिसे 1920 में स्थापित किया गया था और इसका नाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के नाम पर रखा गया है। इस पुस्तकालय मे 600,000 से अधिक पुस्तकों और 2,230 हस्तलिखित पांडुलिपिया है, जो विभिन्न भाषाओं में हैं, जिनमें उर्दू और फारसी भी शामिल हैं। इसे शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।

इस पुस्तकालय के संग्रह में विविध विषयों को शामिल किया गया है, जैसे कि कुरआन विज्ञान, हदीस, कानून, सूफीवाद, दर्शन, तर्कशास्त्र, यूनानी चिकित्सा, ज्योतिष, गणित, खगोलशास्त्र, संगीत, रसायन शास्त्र, कविता, फारसी भाषा और साहित्य, शब्दकोश, इतिहास, भूगोल और हिंदू धर्म। इसके अलावा, पुस्तकालय में संस्कृत, वेद, उपनिषद, मनुस्मृति, रामायण, भगवद गीता, महाभारत, गुरु नानक, स्वामी दयानंद सरस्वती, और स्वामी विवेकानंद की पांडुलिपियाँ भी संरक्षित की जाती हैं।

फिलिस्तीनी सूत्रों ने कहा कि मध्य गाज़ा पट्टी में अलनुसीरत के शरणार्थी शिविर में आवासीय घरों पर इज़रायली हमलों में कम से कम 27 फिलिस्तीनी मारे गए और दर्जनों अन्य घायल हो गए।

एक रिपोर्ट के अनुसार,फिलिस्तीनी सूत्रों ने कहा कि मध्य गाज़ा पट्टी में अलनुसीरत के शरणार्थी शिविर में आवासीय घरों पर इज़रायली हमलों में कम से कम 27 फिलिस्तीनी मारे गए और दर्जनों अन्य घायल हो गए।

फ़िलिस्तीनी नागरिक सुरक्षा प्रवक्ता महमूद बसल ने बताया कि इज़रायली बमबारी ने एक आवासीय ब्लॉक को निशाना बनाया जिसमें सरकारी डाकघर की इमारत है, जो विस्थापित लोगों को आश्रय दे रही थी।

एक रिपोर्ट के अनुसार, बसल ने कहा कि उपकरणों की कमी और इजरायली विमानों की भारी उड़ान के बीच बचाव अभियान अभी भी जारी है मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है क्योंकि घायलों में से कई गंभीर रूप से घायल हैं।

हमलों पर इज़रायली सेना की ओर से तत्काल कोई टिप्पणी नहीं आई है गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी नागरिक सुरक्षा ने कहा कि इससे पहले बुधवार को मध्य गाजा शहर में एक सभा पर इजरायली ड्रोन हमले में कम से कम 10 फिलिस्तीनी मारे गए थे।

समाचार एजेंसी के मुताबिक नागरिक सुरक्षा प्रवक्ता महमूद बसल ने एक प्रेस बयान में कहा कि पीड़ितों में बच्चे और महिलाएं शामिल हैं।

आज भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने 1991 के 'पूजा स्थल अधिनियम' की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि ''देश में कोई भी न्यायालय किसी भी पूजा स्थल की कानूनी हैसीयत को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला नहीं देगा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगली सुनवाई तक आराधनालय के स्वामित्व या नाम को चुनौती देने वाला कोई मामला दायर नहीं किया जाएगा।

आज भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि "अब पूजा स्थलों की वैधता के खिलाफ कोई मामला दायर नहीं किया जाएगा।" सभी सिविल अदालतों को स्वामित्व या नाम को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई करने से रोक दिया गया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट 1991 के "पूजा स्थल अधिनियम" की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। यह याद रखना चाहिए कि "इस अधिनियम के तहत, किसी भी पूजा स्थल को नहीं बदला जा सकता है और इसकी कानूनी स्थिति वही रहेगी जो 15 अगस्त, 1947 को थी।

केंद्र सरकार ने अभी तक इस मामले पर हलफनामा दाखिल नहीं किया है. सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी अदालतों को किसी भी आराधनालय के स्वामित्व या नाम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला देने से रोक दिया है। कोर्ट ने सुनवाई के बीच में कहा कि ''पूजा स्थलों की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई मामला दर्ज नहीं किया जाएगा।'' कोर्ट ने केंद्र को जवाब देने के लिए 4 हफ्ते का वक्त दिया है. गौरतलब है कि इस मामले में 1991 के कानून की वैधानिकता को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं में वकील अश्विनी कुमारपाध्याय भी शामिल थे, जिन्होंने आपत्ति जताई कि यह अधिनियम हिंदुओं, जैनियों और सिखों को अदालत में पूजा स्थल का दावा करने से रोकता है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) और जमीयत उलेमा हिंद जैसे मुस्लिम संगठनों ने इन प्रस्तुतियों पर चिंता व्यक्त की थी।

कोर्ट ने अपनी सुनवाई में कहा है कि ''इस मामले की अगली सुनवाई तक लंबित याचिकाओं पर कोई अंतरिम या अंतिम निर्णय नहीं सुनाया जाएगा और कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा।'' सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है।

 असम सरकार के फैसले से दिल्ली तक की सियासत में उबाल आ गया है। हिंदुत्व और नफरती राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभरे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार ने आधार कार्ड को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर(एनआरसी) से जोड़ने की कोशिश में बड़ा फैसला लिया है। अब असम में आधार हासिल करने के लिए सरकार के कठोर नियमों का पालन करना होगा। सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने ऐलान किया है कि अब आधार कार्ड बनाने के लिए एनआरसी में आवेदन करना होगा। जिसने NRC के लिए आवेदन नहीं किया होगा, उसे अब आधार कार्ड नहीं मिलेगा और आवेदन न करने वालों का आधार कार्ड कैंसिल कर दिया जाएगा।

फातिमा पुर मेंहदी ने कहा,हिजाब की रक्षा का उपाय हज़रत ज़हरा स.ल.से प्रेरणा लेना है जब उनके वालिद ने पूछा कि सर्वश्रेष्ठ महिलाएँ कौन हैं तो उन्होंने उत्तर दिया, خَیْرُ لِلْنِّساءِ اَنْ لا یَرَیْنَ الرِّجالَ وَ لا یَراهُنَّ الرِّجالُ." सबसे अच्छी महिलाएँ वे हैं जो पुरुषों को न देखें और न ही पुरुष उन्हें देखें।

एक रिपोर्ट के अनुसार,फातिमा पूरमहदी हज़रत ख़दीजा स.ल. विशेष धार्मिक विद्यालय बाबुल की प्रबंधक ने महिला का हिजाब मानवीय गरिमा और इस्लामी पहचान की रक्षा विषय पर आयोजित एक शैक्षणिक शोध बैठक में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा,क़ुरान के सूरा नूर (आयत 30 और 31) और सूरा अहज़ाब (आयत 59) में स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया है,

कि मोमिन से कहो कि वे अपनी निगाहें झुका लें और अपने दामन को पाक रखें।यग़ज़ू' शब्द का अर्थ है कम करना या नियंत्रित करना यह आँखों की पूर्ण बंदी का आदेश नहीं देता बल्कि अपनी निगाहों को सीमित रखने की हिदायत देता है।

इस तरह मर्द औरतों के चेहरे और शरीर को न देखें और अपनी दृष्टि को नीचे रखें यह दृष्टिकोण हराम दृश्य को देखने से बचने का मार्ग दिखाता है।

उन्होंने कहा,जैसे पुरुषों के लिए ग़लत दृष्टि हराम है वैसे ही महिलाओं के लिए भी है और औरतों के लिए अपने शरीर को ढकना और अपनी सजावट को गैर महरम से छुपाना अनिवार्य है।

इस्लामी शिक्षाओं में दो प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख है ख़िमार (सिर और गहनों को ढकने के लिए) और जिलबाब (पूरा शरीर ढकने के लिए) हैंपूरमेंहदी ने आगे कहा,आंतरिक पवित्रता (इफ़्फ़त) और बाहरी पवित्रता (तक़वा) के बीच गहरा संबंध है।

उन्होंने यह भी कहा,हिजाब की रक्षा का उपाय हज़रत ज़हरा स.ल.से प्रेरणा लेना है जब उनके वालिद ने पूछा कि सर्वश्रेष्ठ महिलाएँ कौन हैं तो उन्होंने उत्तर दिया,

خَیْرُ لِلْنِّساءِ اَنْ لا یَرَیْنَ الرِّجالَ وَ لا یَراهُنَّ الرِّجالُ."

सबसे अच्छी महिलाएँ वे हैं जो पुरुषों को न देखें और न ही पुरुष उन्हें देखें।

पहले ज्ञानवापी मस्जिद फिर मथुरा की शाही ईदगाह भोजशाला मस्जिद, लखनऊ की टीले वाली मस्जिद, संभल की जामा मस्जिद, जौनपुर की अटाला मस्जिद और अब अजमेर की ऐतिहासिक दरगाह पर दावे किए जा रहे हैं। 830 साल पुरानी इस दरगाह पर हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लोग आते हैं। अजमेर मामले के तूल पकड़ते मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का डेलिगेशन यहाँ पहुंचा और ऐतिहासिक दरगाह पर किए गए आधारहीन दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया और कहा कि प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 के मौजूद होने के बावजूद ऐसे दावे कानून और संविधान का खुला मजाक है। 

बोर्ड के प्रवक्ता कासिम इलियास ने कहा कि यह देखकर बड़ी हैरानी और चिंता हुई है कि ऐतिहासिक सबूत, कानूनी दस्तावेजों और 1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के बावजूद अजमेर की स्थानीय अदालत में इस मामले को डाला गया और अदालत में से स्वीकार करते हुए नोटिस भी जारी कर दी। 

 

 

आयतुल्लाह हुसैनी बूशहरी ने कहा: अगर हम आधुनिक संसाधनो का उपयोग नही करेंगे सकते तो हम समाज का सही दिशा में मार्गदर्शन नहीं कर सकते। अगर हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर काबू पा लें, तो इसके खतरों से बच सकते हैं।

जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम के प्रमुख आयतुल्लाह हुसैनी बूशहरी ने 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अवसर, चुनौतियाँ और समाधान' विषय पर मदरसा दार अल शिफ़ा के मिटिंग हाल मे आयोजित होने वाली जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मिया क़ुम की सोलहवीं आम सभा में, जिसमें उच्च स्तरीय शिक्षक और हौज़ा इल्मिया से बाहर के शिक्षक भी शामिल हुए और आयतुल्लाहिल उज़्मा नूरी हमदानी का संदेश भी प्रस्तुत किया गया, कहा: "इमाम अली (अ) की हदीस हे कि याद रखो जो व्यक्ति अपने समय के परिवर्तन से चकित नहीं होता, वही सबसे जागरूक होता है, हमें न केवल वर्तमान, बल्कि भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयार रहना चाहिए।"

आयतुल्लाह हुसैनी बूशहरी ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कई वर्षों से चिकित्सा, कृषि और पर्यावरण के क्षेत्रों में इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन इसकी प्रगति ने जो गति पकड़ी है, वह हैरान करने वाली है। उन्होंने यह भी कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने सीमाओं को पार कर लिया है और यह सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं को प्रभावित कर रहा है। अगर हौज़ा इस बदलाव को सही तरीके से नहीं समझेगा और इसका स्वागत नहीं करेगा, तो हम मानवता की प्रगति से पीछे रह जाएंगे।

उन्होंने आगे कहा: अगर हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सही तरीके से उपयोग करेंगे, तो यह शोध, ज्ञानवर्धन और निर्णय लेने में बहुत मददगार हो सकता है। यह हमारे लिए इस्लामी सभ्यता के निर्माण में भी महत्वपूर्ण हो सकता है। हालांकि, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम इसे अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ न जाने दें।

इस क्षेत्र में प्रशिक्षण और शिक्षा की आवश्यकता है, ताकि हौज़ा के छात्र और शिक्षक इस तकनीक के बारे में पूरी तरह से जान सकें और इस क्षेत्र में अधिक प्रभावी रूप से काम कर सकें।

क़ुरआन करीम समाज के सभी मामलों के लिए, चाहे वह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक, नियुक्तियाँ और चुनाव हों, मार्गदर्शन प्रदान करता है। और इन सभी योजनाओं को लागू करने के लिए हमें इस आसमानी किताब की ओर रुख करना चाहिए।

काशान में छात्रों और उलेमाओं के लिए आयोजित एक नैतिक शिक्षा कक्षा में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहसिन कराती ने देश में क़ुरआन के योगदान के लिए एक आंदोलन शुरू करने की अपील की और कहा: इस पहल से समाज की कई समस्याएँ हल हो सकती हैं। हालांकि, यह आंदोलन केवल शब्दों और भाषणों से सफल नहीं हो सकता, इसके लिए मजबूत इरादे और संकल्प की आवश्यकता है।

उन्होंने यह कहते हुए कि क़ुरआन करीम लोगों को जीवन जीने के तरीके और मार्गदर्शन सिखाता है, कहा: हमें यह जानना चाहिए कि क़ुरआन का समाज के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कितना योगदान है, और हमें इस आसमानी किताब से संदेश लेकर उसे अपने जीवन में लागू करना चाहिए।

नमाज़ आयोग के प्रमुख ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि क़ुरआन के लिए कुछ कार्य किए गए हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं। हमें सभी को क़ुरआन करीम की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए, मजलिसों को क़ुरआनी बनाना चाहिए, छात्रों को अपने शिक्षकों से तफ्सीर सत्र आयोजित करने की मांग करनी चाहिए और क़ुरआन तफ्सीर आयोग की स्थापना करनी चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन क़राती ने कहा: इमाम रज़ा (अ) ने फ़रमाया, "ख़ुदा ने नमाज़ को वाजिब किया ताकि क़ुरआन की अनदेखी समाप्त हो और वह प्रमुख बन सके।"

उन्होंने धार्मिक शिक्षकों से यह सिफारिश की कि वे लंबे भाषणों से बचें, युवाओं और किशोरों से मित्रवत संबंध बनाए रखें, और क़ुरआन से सरल और समझने योग्य बातें निकालकर उन्हें प्रस्तुत करें।

नमाज़ आयोग के प्रमुख ने यह भी कहा कि हालांकि अज़ान के लिए कुछ हदीसें और रिवायात हैं, लेकिन तवाशीह के लिए ऐसा कुछ नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि शहरों में तवाशीह समूहों का गठन किया गया है, लेकिन अज़ान के लिए कोई समूह नहीं है!

 

वक्फ बिल में संशोधन को लेकर बनी जेपीसी की मीटिंग की गई इस मीटिंग में दारुल उलूम देवबंद की तरफ से शामिल प्रतिनिधिमंडल ने वक्फ बिल को खारिज कर दिया प्रतिनिधिमंडल की तरफ से मीटिंग में मौलाना अरशद मदनी ने करीब 2 घंटे तक अपनी बात रखी मौलाना अरशद मदनी ने इस दौरान कहा, ‘अगर ये संसोधन आए तो मुसलमानों की इबादतगाहें महफूज नहीं रह पाएगी।

एक रिपोर्ट के अनुसार,वक्फ बिल में संशोधन को लेकर बनी जेपीसी की मीटिंग की गई इस मीटिंग में दारुल उलूम देवबंद की तरफ से शामिल प्रतिनिधिमंडल ने वक्फ बिल को खारिज कर दिया प्रतिनिधिमंडल की तरफ से मीटिंग में मौलाना अरशद मदनी ने करीब 2 घंटे तक अपनी बात रखी मौलाना अरशद मदनी ने इस दौरान कहा, ‘अगर ये संसोधन आए तो मुसलमानों की इबादतगाहें महफूज नहीं रह पाएगी।

अरशद मदनी ने कहा,मुल्क में इतनी पुरानी मस्जिदें और इबादतगाहें हैं जिनका अब कई सौ बरस बाद ये बताना मुश्किल हैं कि इनके वाकिफ (वक्फ करने वाला) कौन है इस संसोधन में कई बड़ी खामिया हैं जिसको लाने के पीछे की नियत ठीक नहीं है।

बता दें कि वर्तमान में वक्फ संशोधन बिल जेपीसी के पास है इस मामले में ऐसी संभावना जताई जा रही थी कि संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्र सरकार इस बिल को पास करा सकती है।

हालांकि अबतक ऐसा नहीं हो सका है वहीं वक्फ बोर्ड के मामले पर देश के ईसाई सांसदों ने मुस्लिमों का समर्थन करने का फैसला किया है। ईसाई सांसदों ने कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) की बैठक में कहा कि ईसाई समुदाय को वक्फ विधेयक पर सैद्धांतिक रूप से अपना रुख अपनाना चाहिए क्योंकि यह संविधान में निहित अल्पसंख्यकों के अधिकारों को प्रभावित करता है।

भारत में कैथोलिकों की सबसे बड़ी संस्था सीबीसीआई ने 3 दिसंबर को सभी ईसाई सांसदों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में कुल 20 सांसदों ने हिस्सा लिया जिनमें से अधिकांश सांसद विपक्षी दलों के थे।

इस मीटिंग में शामिल सांसदों में टीएमसी के संसदीय दल के नेता डेरेक  ओ ब्रायन, कांग्रेस सांसद हिबी ईडन, डीन कुरियाकोसा, एंटो एंटनी और सीपीआईएम के सांसद जॉन ब्रिटास शामिल थे हालांकि बाद में केंद्रीय राज्य मंत्री जॉर्ज कुरियन भी इस बैठक में शामिल हुए।

 

 

 

 

सीरिया में उलमा परिषद के अध्यक्ष ने कहां,सीरिया में कुछ भी सुरक्षित नहीं आतंकियों पर भरोसा संभव नहीं क्योंकि इसके पीछे अमेरिका और इजरायल की बहुत बड़ी चाल है।

एक रिपोर्ट के अनुसार,सीरिया में उलमा परिषद के अध्यक्ष ने कहां,सीरिया में कुछ भी सुरक्षित नहीं आतंकियों पर भरोसा संभव नहीं क्योंकि इसके पीछे अमेरिका और इजरायल की बहुत बड़ी चाल है।

धार्मिक मामलों में हमे परेशान किया जाना शुरू हो चुका है उदाहरण स्वरूप नमाज़ के सिलसिले में भी हमे आतंकी गुटों की ओर से परेशान किया जा रहा है हम दो नमाज़ों को एक साथ नहीं पढ़ सकते।

सीरिया में उलमा परिषद के अध्यक्ष ने एक ऑडियो फ़ाइल में इस देश के शिया समुदाय को संबोधित करते हुए सय्यदा ज़ैनब इलाक़े की घटनाओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि मैंने पहले आपको बताया था कि हालात अच्छे हैं और हैयते तहरीर अल-शाम के लोगों ने हमें आश्वासन और कई वादे किए हैं, और उनकी बातें वास्तव में व्यावहारिक रूप ले चुकी हैं।

उन्होंने कहा समस्या यह है कि इस संघर्ष में भाग लेने वाले सशस्त्र समूह अलग अलग हैं इसका मतलब यह है कि यदि एक सशस्त्र समूह हमें कोई वादा करता है, तो यह निश्चित नहीं है कि अन्य समूह उसी वादे के प्रति वफादार रहेंगे।

उन्होंने कहा हम कुछ पक्षों के मनमाने और विध्वंसक कार्यों के गवाह हैं, इस तरह से कि हमारे कुछ विद्वानों को कुछ क्षेत्रों में सशस्त्र समूहों के धार्मिक आदेशों को लागू करने के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है।

सय्यद अब्दुल्लाह निज़ाम ने कहा कि कुछ धार्मिक मामलों में हमे परेशान किया जाना शुरू हो चुका है उदाहरण स्वरूप नमाज़ के सिलसिले में भी हमे आतंकी गुटों की ओर से परेशान किया जा रहा है हम दो नमाज़ों को एक साथ नहीं पढ़ सकते।