पहले ज्ञानवापी मस्जिद फिर मथुरा की शाही ईदगाह भोजशाला मस्जिद, लखनऊ की टीले वाली मस्जिद, संभल की जामा मस्जिद, जौनपुर की अटाला मस्जिद और अब अजमेर की ऐतिहासिक दरगाह पर दावे किए जा रहे हैं। 830 साल पुरानी इस दरगाह पर हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लोग आते हैं। अजमेर मामले के तूल पकड़ते मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का डेलिगेशन यहाँ पहुंचा और ऐतिहासिक दरगाह पर किए गए आधारहीन दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया और कहा कि प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 के मौजूद होने के बावजूद ऐसे दावे कानून और संविधान का खुला मजाक है।
बोर्ड के प्रवक्ता कासिम इलियास ने कहा कि यह देखकर बड़ी हैरानी और चिंता हुई है कि ऐतिहासिक सबूत, कानूनी दस्तावेजों और 1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के बावजूद अजमेर की स्थानीय अदालत में इस मामले को डाला गया और अदालत में से स्वीकार करते हुए नोटिस भी जारी कर दी।