
رضوی
इंडोनेशियाई लोगों का कुरआन के साथ रूहानी रिश्ता
कुरआन प्रदर्शनी में इंडोनेशिया के प्रतिनिधि ने कहा,कि शांतिपूर्ण जीवन केवल एक नारा नहीं है यह इस्लामी पहचान का एक हिस्सा है इंडोनेशिया के लोगों का कुरान से परिचय रूहानी है।
31वीं अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी के समाचार मुख्यालय के अनुसार बताया कि इंडोनेशिया के मोहम्मद ओली ने तेहरान में दूसरी कुरान बैठक में कहा, जो इस्लामिक पहचान स्थापित करने में कुरान की भूमिका और प्रतिरोध शीर्षक वाली 31वीं कुरान प्रदर्शनी के मौके पर आयोजित की गई थी,
गुरुवार 22 मार्च को लालेह होटल में आयोजित की गई थी। बताया गया कि आंकड़ों के आधार पर इस देश की आधिकारिक तौर पर 2021 में जनसंख्या 272 मिलियन तक पहुंच गई इस देश की आबादी में 87% मुसलमान हैं।
इंडोनेशिया आधिकारिक तौर पर छह धर्मों को मान्यता देता है इस्लाम ईसाई धर्म, कैथोलिक धर्म, हिंदू धर्म, कन्फ्यूशीवाद और बौद्ध धर्म। हालाँकि, सभी इंडोनेशियाई लोग कुरान की शिक्षाओं के आलोक में एक दूसरे के साथ सहयोग करते हैं।
उन्होंने आगे कहा शांतिपूर्ण जीवन सिर्फ एक नारा नहीं है और यह इस्लामी पहचान की पुष्टि है। कुरान के प्रेमी होने के नाते इन कार्यों की एक अभिव्यक्ति यह है कि वे कुरान में पाए जाने वाले शब्दों का उपयोग करते हैं। सरकार की शर्तों में, वे नेशनल असेंबली का उपयोग करते हैं, और यह शब्द (परिषद) कुरान की शिक्षाओं में से एक है।
अलनही ने कहा, कि एक और विशेषता जो दर्शाती है कि इंडोनेशियाई मुसलमान कुरान से प्यार करते हैं वह पवित्र कुरान की शिक्षण विधियां हैं।
इसकी शुरुआत स्कूलों से हुई पिछले दशक में कुरान को याद करने और पढ़ने को लेकर एक विशेष आंदोलन चला जिसमें कई नई विधियों और नई वैज्ञानिक शिक्षाओं का इस्तेमाल किया गया।
सुफियान एफेंदी एक शोधकर्ता हैं जो इंडोनेशिया में कुरान पढ़ाने के तरीकों का अध्ययन करते हैं और दो सौ अस्सी से अधिक तरीकों की पहचान की गई है।
इस बैठक में इंडोनेशिया के प्रतिनिधि ने कहा, कुरान प्रेमी इंडोनेशियाई मुसलमानों का एक और संकेत इंडोनेशिया में कुरानिक स्कूलों का अस्तित्व है जकार्ता में कुरान शिक्षा की संख्या 190,000 कुरान केंद्रों तक पहुंचती है।
उन्होंने इंडोनेशियाई मुसलमानों और कुरान के बीच संबंधों के अन्य संकेतों इंडोनेशियाई भाषाओं में कुरान विज्ञान लेखन और टिप्पणियों के अस्तित्व का उल्लेख किया और कहा शेख मुहम्मद मंडावी ही थे जिन्होंने 1315 में पवित्र कुरान की व्याख्या के चरणों पर पुस्तक पूरी की थी।
फ़िलिस्तीनियों की सामूहिक हत्या की साज़िश पहले ही तैयार थी
यमन के जनांदोलन अंसारुल्लाह के महासचिव ने कहा कि ग़ज़ा में फिलिस्तीनियों की सामूहिक हत्या की नीति, पूर्व नियोजित थी।
उनका कहना था कि यह नरसंहार ज़ायोनियों की बर्बरता का चिन्ह है।
यमन के जनांदोलन अंसारुल्लाह अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हूसी ने अमेरिका को ज़ायोनी अपराधों का पहला समर्थक क़रार दिया और कहा कि ग़ज़ा में इस्राईल के अपराधों ने अमेरिका के नैतिक पतन और मानवीय पतन को उजागर कर दिया।
यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के महासचिव ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ज़ायोनी पूरी मानवता के लिए ख़तरा हैं।
उन्होंने कहा कि ज़ायोनियों को बचपन से ही ऐसे विचार और तरीक़े सिखाए जाते हैं जिनके आधार पर वे मुसलमानों की हत्या के शौक़ीन हो जाते हैं।
अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हूसी ने यमन द्वारा मज़लूम फिलिस्तीनी राष्ट्र और प्रतिरोध मोर्चे के समर्थन का ज़िक्र करते हुए कहा कि यमनी सशस्त्र बलों ने अब तक ग़ज़ा के समर्थन में इस्राईली ठिकानों और अवैध अधिकृत क्षेत्रों पर 479 मिसाइलें और ड्रोन फ़ायर किए हैं।
ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के हमलों में 31 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और 74 हज़ार से अधिक घायल हो चुके हैं।
ज़ायोनी शासन की स्थापना 1917 में ब्रिटिश साम्राज्यवादी योजना और विभिन्न देशों से फिलिस्तीनी भूमि पर यहूदियों के पलायन के माध्यम से की गई थी और इसके अस्तित्व की घोषणा 1948 में की गई थी।
तब से लेकर अब तक फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार और उनकी पूरी ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए विभिन्न सामूहिक हत्या की योजनाएं चलाई गईं हैं।
इमाम ख़ुमैनी के शेरों पर एक नज़र, प्रेम से लेकर ईश्वर में फ़ना हो जाने तक का सफ़र
वर्ष 1979 में ईरान की कामयाब होने वाली इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह (1989-1902) अपनी युवावस्था से ही शेर व शायरी का शौक़ रखते थे और उन्होंने एक ऐसी कविता या शेर कहा है जिसमें कवियों की प्रशंसा की गयी है।
इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के शेरों की किताब यानी दीवान में 6 अध्याय हैं जिनमें ग़ज़लें, रोबाइयां, क़सीदे, आज़ाद शायरी, क़ाफ़िए वाली शायरी, खंड वाली शायरी और अलग अलग शेरों की ओर इशारा किया जा सकता है।
स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के 438 पृष्ठों पर आधारित इस दीवान को इसे पहली बार इमाम खुमैनी वर्क्स एडिटिंग एंड पब्लिशिंग इंस्टीट्यूट ने प्रकाशित किया।
उनकी पहली प्रकाशित कविता या शेर 14 छंदों वाली ग़ज़ल थी जिसका शीर्षक था "हे दोस्त मैं तेरे होंटों की बनावट पर फ़िदा हो गया"
इमाम खुमैनी की कविता या शेर उनकी भावनाओं, एहसासों और विचारों का प्रतिबिंब हैं और ईश्वर के साथ एकांत और उससे दिल लगाने के लम्हों से जुड़े हुए हैं।
इमाम के शेरों दर्पण में, कोई भी इंसान सच्चे इरफ़ानी व्यक्ति की आंतरिक पवित्रता, मोमिनों के दिलों की शांति, भविष्य के प्रति आशावान और क्रूरता और अन्याय से मुक्ति जैसे जज़्बों को महसूस कर सकता है।
साहित्यिक शैलीविज्ञान की दृष्टि से इमाम ख़ुमैनी की शायरी में उत्साह और आशा की स्थिति उत्पन्न करने वाले शब्दों का प्रयोग बहुत अधिक हुआ है।
हालाकि मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी की गुप्त पुलिस सावाक जिसे इस्राईल और अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित किया गया था, के एजेंटों के उनके घर और निजी पुस्तकालय पर हमलों के बाद उनकी कुछ युवा कविताएं खो गईं लेकिन इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, इमाम ख़ुमैनी ने अपनी बहु और अपने बेटे सैयद अहमद खुमैनी की पत्नी श्रीमती फ़ातेमा तबताबाई के बहुत अधिक अह्वान के बाद, विभिन्न प्रारूपों में और रहस्यमय विषयों पर शेर कहे और सौभाग्य से यह शेर अब तक सुरक्षित हैं।
इस दीवान के शेरों का दुनिया की दूसरी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और दुनिया के विभिन्न देशों में यह दीवान छप भी चुका है।
अनेक समकालीन शायरों ने इस दीवान का विश्लेषण किया और बहुत ज़्यादा तारीफ़ें की हैं। इस दीवान को कुछ यूरोपीय देशों के राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों पर भी दिखाया गया है।
ईश्वरीय आतिथ्य- 11
पवित्र रमज़ान का महीना अपनी बरकतों और विभूतियों के साथ जारी है।
सलाम हो हे सबसे अच्छे दिन और सबसे अच्छी रातें और घड़ियां, सलाम हो उस महीने पर जिसमें समस्त पाप माफ़ कर दिए जाते हैं। सलाम हो उस साथी जो महान है और उसका उच्च स्थान है। इसका गुज़र जाना बहुत दुखद था, सलाम हो उस महीने पर जो अपने बंदों के कल्याण का कारण बनता है, सलाम हो उस महीने पर जो अपने बंदों को कृपा और दया की शुभ सूचना देता है। सलाम हो उस महीने पर जिसमें बंदा अपने दिल की बात ईश्वर से बयान करता है और अपनी परिपूर्णता की प्राप्ति की दुआ करता है।
दुआ कभी उस चीज़ के लिए होती है जिसकी दुआ करने वालों को आवश्यकता होती है या वह चीज़ जो उसके पास न हो। कभी कभी दुआ इस चरण से भी आगे की होती है। यद्यपि प्रेम को आत्मा की एक आवश्यकता कहा जा सकता है किन्तु इसलिए कि यह स्वयं एक स्वतंत्र आवश्यकता है। यह मनुष्य की आत्मा के भीतर छिपी एक प्रवृत्ति है और मनुष्य जीवन में हर चीज़ से अधिक इसकी उपियोगिता है। वह दुआएं जो प्रेमी के दिल से निकलती हैं सबसे अच्छी और बड़ी दुआएं हैं।
पवित्र रमज़ान में पढ़ी जाने वाली सबसे सुन्दर और अच्छी दुआ, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की वह दुआ है जो सहीफ़ए सज्जादिया में वर्णित है। सहीफ़ए सज्जादिया, दुआ करने वालों और ईश्वर से अपने दिल की बात कहने वालों का श्रंगार है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम अपनी दुआओं में जिसमें वह सिखाते हैं कि दुआ इस अर्थ में नहीं है कि हमें जो कुछ प्राप्त हुआ है, इस लिए है कि उसको अपनी बौद्धिक और मानवीय ज़िम्मेदारियों का उतराधिकारी बना दें। इस्लामी संस्कृति में दुआ, संसार और मानवीय आवश्यकताओं के प्रति जागरूकता है और इसी प्रकार ईश्वरीय शक्ति से जुड़ने का बेहतरीन रास्ता है। इसीलिए इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की समस्त दुआओं में ईश्वर की प्रशंसा और उसकी सराहना है। यह दुआएं व्यक्तिगत और सामाजिक शिष्टाचार के बेहतरीन और उच्च विषयों को शामिल किए हुए हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने वर्तमान स्थिति को दृष्टि में रखते हुए शीया मुसलमानों की शुद्ध शिक्षाओं को दुआओं की परिधि में बयान किया। वास्तव में यह किताब ईश्वर से इंसान, स्वयं और दूसरों से संपर्क पर बल देती है।
सहीफ़ए सज्जादिया वास्तव में उस परिपूर्ण मनुष्य की बातों का प्रतीक है जो दुआ और बातचीत के रूप में ईश्वर के दरबार में पेश की जाती हैं। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने लोगों को यह बताया कि किस प्रकार एकांत में ईश्वर से दुआ करे और उसके दरबार में किस प्रकार गिड़गिड़ाए कि उसकी दुआ स्वीकार कर ली जाए। पवित्र रमज़ान में की जाने वाली महत्वपूर्ण दुआओं में से एक सहीफ़ए सज्जादिया की रमज़ान की विशेष दुआ है। पवित्र रमज़ान का चांद देखते ही हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम दुआओं और उपासनाओं का क्रम शुरु कर देते थे और रज़मान की विभूतियों और उसकी अनुकंपाओं को याद करत थे। जब पवित्र रमज़ान का महीना ख़त्म होने लगता था तब भी उसकी विदा के लिए विशेष दुआएं पढ़ते थे और ईश्वर का बहुत अधिक स्मरण करते थे।
हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम सहीफ़ए सज्जादिया में पवित्र रमज़ान के बारे में दो दुआएं बयान करते हैं जिसको पढ़ना रमज़ान के महीने में बहुत लाभदायक है। इस दुआ में इस महीने में रोज़दारों की ज़िम्मेदारियों और इस महीने के गुणों को बयान किया गया है। मनुष्य इन दुआओं द्वारा समझ जाता है कि वह पवित्र रमज़ान की किन विभूतियों से संपन्न है और रमज़ान के महीने के समाप्त होते ही ईश्वर की मेहमानी का दस्तरख़ान उठा लिया जाता है और जिन लोगों ने इस महीने का ख्याल नहीं रखा और इस अवसर से लाभ नहीं उठाया उन्होंने कितना नुक़सान उठाया।
पवित्र रमज़ान उन महीनों में से है जिसमें आम तौर पर सभी लोग उपासना और ईश्वर की इबादत में व्यस्त होते हैं। इस महीने में अल्लाह के मोमिन बंदे, व्यापारिक, सामाजिक और आसपास के विभिन्न प्रकार के माहौल में उपासना और अनुसरण के लिए अधिक प्रयास करते हैं और सुबह के समय पवित्र क़ुरआन के सूरए सजदा की आयत संख्या 16 पर अमल करते है जिसमें कहा गया है कि उनके शरीर बिस्तर से अलग रहते हैं और वे अपने ईश्वर को भय और लोगों के आधार पर पुकारते रहते हैं और हमारे दी हुई आजीविका को हमारी राह में ख़र्च करते रहते हैं। इसी प्रकार इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम पवित्र रमज़ान के महीने का चांद देखने के बाद अपनी दुआ में फ़रमाते हैं कि ख़ुदा का शुक्र कि उसनें हमें अपनी प्रशंसा का शुभ अवसर प्रदान किया। हम उसकी नेमतों को भूले नहीं हैं और उसकी हम्द और उसका आभार व्यक्त करते हैं। उसनें हमारे लिये ऐसे रास्ते खोले हैं जिनके द्वारा हम उसकी हम्द कर सकें और उन रास्तों पर चल सकें।
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम कहते हैं कि हे पवित्र रमज़ान ईश्वर ने तुझे नये काम के लिए नये महीने की चाभी क़रार दिया है। उस ईश्वर से जो मेरा और तेरा पालनहार है, मेरा और तेरा सृष्टिकर्ता है, मेरा और तेरा भाग्य निर्धारित करने वाला है, मुझे और तुझे रूप प्रदान करने वाला है, चाहता हूं कि तुझे बरकतों का महीना क़रार दूं और उसकी विभूतियों से आजीविका कम न हो।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम दुआ क्रमांक 44 में पवित्र रमज़ान की विशेषताओं को इस प्रकार बयान करते हैं। रमज़ान का महीना रोज़ों का महीना है, यह इस्लाम का महीना है। यह रोज़ों का महीना है अर्थात रोज़े द्वारा दिल और आत्मा को शुद्ध करने का महीना है, क्योंकि रोज़े द्वारा इन्सान भूख, प्यास और दूसरी चीज़ों से लड़ता है। इस्लाम का महीना है अर्थात ख़ुदा के सामने समर्पित हो जाने का महीना है। रोज़े में भी इन्सान को भूख और प्यास लगती है लेकिन कुछ खाता पीता नहीं है क्योंकि ख़ुदा के सामने समर्पित है, बहुत से वैध काम जो ख़ुदा ने छोड़ने को कहे हैं, छोड़ देता है। आम दिनों में इस तरह इन्सान ख़ुदा के सामने समर्पित नहीं होता, जिस तरह रमज़ान में होता है। दूसरे दिनों में शायद इस तरह से आज्ञा पालन नहीं करता जिस तरह इस महीने में करता है, इसी लिये इसे इस्लाम का महीना कहा गया है।
इंसान इस महीने में ईश्वरीय परिपूर्णता का मार्ग प्राप्त कर सकता है। वास्तव में रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें मनुष्य उच्च स्थान प्राप्त कर सकता है क्योंकि यह हालात हमेशा उपलब्ध नहीं होते। इस प्रकार से इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम दुआ के द्वारा मोमिनों को कुछ निर्देश देते हैं। वह कहते हैं कि हे मेरे पालनहार मुझे यह क्षमता दे कि मैं इस महीने में नेकी व भलाई से अपने रिश्तेदारों का ध्यान रखूं, क्षमा याचना द्वारा पड़ोसियों के ख़्याल रखूं, लोगों के अधिकारों से अपनी संपत्ति को पाक करूं, ज़कात निकाल कर उसे पवित्र करूं, जो लोग मुझसे दूर हो गये हों उनसे सुलह करूं, जिन लोगों ने मुझपर अत्याचार किए हैं, इंसाफ़ के तक़ाज़े के अनुसार उनसे बर्ताव करूं, जिन लोगों ने मुझसे दुश्मनी की हो उससे सुलह करूं, किन्तु जिससे तेरी राह में और तेरे लिए उससे दुश्मनी की, वह तो दुश्मन है और उससे दोस्ती नहीं करूंगा, वह उन लोगों से है जिसमें मैं ढल नहीं सकता।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने पवित्र रमज़ान को जीवन के बेहतरीन दिन बताते हुए कहा कि सलाम हो कालों के बीच सबसे प्रतिष्ठित साथी पर, मेरी ज़िंदगी के दिनों और घंटों के सबसे बेहतरीन महीने। इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर इंसान के सभी काम के लिए एक समय होता है। इसी बीच मोमिन लोग अपने समय से अधिक लाभ उठाते हैं और कुछ काल को अपने शिष्टाचार को बेहतर बनाने के लिए बेहतरीन अवसर समझते हैं और इन अवसरों से भरपूर लाभ उठाकर उसे अपने जीवन का यादगार लमहा बना लेते हैं। इसीलिए कुछ समय लोगों से संपर्क और उनसे बात करने स्वर्णिम अवसर होते हैं जिसमें मनुष्य के लिए निर्णायक परिणाम सामने आते हैं। कालों की आत्माके रूप में पवित्र रमज़ान का महीना, मनुष्य की अध्यात्मिक परिपूर्णता में निर्णायक भूमिका अदा करता है। इसकी रातें और दिन और इसके हर क्षण, मनुष्य को अपने महबूब की सुन्दरता का दर्शन कराने के लिए आसमान की सैर कराते हैं। इसीलिए इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इस पवित्र महीने को अपनी उम्र का सबसे बेहतरीन समय और सबसे अच्छा साथी क़रार देते हैं और उससे जुदा होते समय उससे लाड प्यार करते हैं और उसकी विभूतियों के बारे में बातें करते हैं। इस प्रकार से उन्होंने पवित्र रमज़ान में छिपी अनुकंपाओं को दूसरों के सामने खोला है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआ के दूसरे भाग में आया है कि सलाम हो तुम पर, मुझसे कितनी बूराईयों को दूर कर दिया, कितनी ज़्यादा विभूतियां और अनुकंपाएं इसकी छत्रछाया में मुझपर बरसीं। दुआ के इस भाग में इमाम ज़ैनुल आबेबदीन अलैहिस्सलाम पवित्र रमज़ान को बुराईयों से दूर रहने का कारक बताते हैं जबकि दूसरी ओर इसको विभूतियों की बारिश का कारण बताते हैं।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पवित्र रमज़ान के अंतिम दिनों में दुआ संख्या 45 में बहुत दुखी लहजे में कहते हैं कि हमारे बीच पवित्र रमज़ान का महीना है, ईश्वरीय प्रशंसा का महीना है क्योंकि यह अपने साथ विभूतियां और अनुकंपाएं लाया है और हमारे लिए बहुत सारी ख़ूबिया उपहार स्वरूप लाया है। हम इस महीने की छत्रछाया में विभूतियों और अनुकंपाओं तक पहुंचे, ऐसा दोस्त था जो अपने साथ क्षमा, दया और अनुकंपाए लाया। रमज़ान का मुबारक महीना शुरू होने से पहले रसूले अकरम स. लोगों को इस महीने के लिये तैयार करते थे। रसूलुल्लाह (स) का एक ख़ुतबा है जिसे ख़ुतबए शाबानिया कहते हैं, इसमें इस तरह आया हैः रमजान का महीना तुम्हारी ओर अपनी बरकत और रहमत के साथ आ रहा है। जिसमें पाप माफ़ होते हैं, यह महीना ईश्वर के यहां सारे महीनों से बेहतर और श्रेष्ठ है। जिसके दिन दूसरे महीनों के दिनों से बेहतर, जिसकी रातें दूसरे महीनों की रातों से बेहतर और जिसकी घड़ियां दूसरे महीनों की घड़ियों से बेहतर हैं। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पवित्र रमज़ान के विदा होने पर दुखी लहजे में कहते हैं कि सलाम हो तुम पर कि तुम्हारी विदाई से परेशान नहीं होता, तुम्हारा रोज़ा छोड़ने से थकन और दुख नहीं होता, सलाम हो तुम पर कि तुम्हारे आने से पहले, मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में था और तुम्हारे जाने से मुझे दुख हो रहा है।
बंदगी की बहार- 11
पवित्र रमज़ान, आत्मा को स्वच्छ करने का महीना है।
यह आत्मा के साफ़ सुथरा होने का महीना है। रमज़ान का महीना, शैतानी बंधनों और जानवरों वाली इच्छाओं से भागने का महीना है। इस महीने के दिन सबसे बेहतरीन दिन और इसकी रातें सबसे बेहतरीन रातें हैं। इसमें सांस लेना पुण्य और सोना उपासना है। यह महीना कठिनाइयों और आसानियों का मिश्रण है। रमज़ान का महीना, पवित्र क़ुरआन के उतरने का महीना है। यह इस्लामी कैलेण्डर का सबसे विभूति भरा महीना है।
रमज़ान में स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं और नरक का दरवाज़ा बंद कर दिया जाता है। इस महीने में उपासना का पारितोषिक बहुत अधिक होता है विशेषकर शबेक़द्र में उपासना का पारितोषिक, हज़ार महीने की उपासना के पारितोषिक से भी बेहतर बताया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने रमज़ान की विशेषता का उल्लेख करते हुए कहा है कि हे ईश्वर के बंदो! ईश्वर का महीना, विभूतियों, अनुकंपाओं और पापों की क्षमा के साथ तुम्हारी ओर आ रहा है। यह वह महीना है जो समस्त महीनों से अधिक मूल्यवान और महत्वपूर्ण है।
इसके दिन सबसे बेहतर दिन है और इसकी रातें सबसे बेहतर राते, इसकी घड़ियां सबसे बेहतरीन घड़ियां हैं। इस महीने में सांस लेना पुण्य है जो ईश्वर की प्रार्थना करने के समान है। रमज़ान में तुम्हारी नींद भी इबादत है। इस महीने में जब भी तुम ईश्वर की ओर उन्मुख होगे और उससे प्रार्थना करोगे तो ईश्वर तुम्हारी प्रार्थना को अवश्य स्वीकार करेगा, अतः स्वच्छ तथा सच्चे मन से ईश्वर से कामना करो कि वह तुमको रोज़ा रखने तथा पवित्र कुरआन का पाठ करने का अवसर प्रदान करे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि दुर्भाग्यशाली है वह व्यक्ति जो विभूतियों से भरे इस पवित्र महीने में ईश्वर की अनुकंपाओं और उसकी क्षमा से वंचित रह जाए।
जब रमज़ान का पवित्र महीना आता है तो मुसलमानों से रोज़ा रखने का आह्वान किया जाता है। इस महीने में रोज़े रखना अनिवार्य है। पूरी दुनिया के मुसलमान रमज़ान के महीने में सुबह की अज़ान से लेकर मग़रिब की अज़ान तक भूखा और प्यासा रहता है। मुसलमान, रमज़ान के दौरान रोज़ा रखने के साथ ही ईश्वर की उपासना करते हैं। वे अधिक से अधिक क़ुरआन की तिलावत करते हैं। इसके अतिरिक्त वे ईश्वर से दुआ करके पापों का प्रायश्चित करते हैं। इन कामों से मनुष्य की आत्मा को शांति मिलती है। रोज़ा जहां पर मनुष्य की आत्मा की शुद्धि करता है वहीं पर उसको शारीरिक दृष्टि से लाभ पहुंचाता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि रोज़ा रखो ताकि स्वस्थ्य रहो।
आधुनिक युग में जैसे-जैसे नई-नई बीमारियां सामने आ रही हैं उसी हिसाब से लोगों का ध्यान, स्वास्थ्य की ओर अधिक जा रहा है। आज लोग इस बात को समझ रहे हैं कि स्वस्थ्य रहने के लिए खान-पान की ओर ध्यान देना और व्यायाम करना आवश्यक है। वर्तमान समय में फास्ट फूड, कोल्डड्रिंक, नाना प्रकार की चाकलेट्स, तले हुए व्यंजन और ऐसी ही चीज़ों से अपने स्वास्थ्य को ख़राब कर रहा है। लोग इन चीज़ों से ऊबकर अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने लगे हैं। क्या मनुष्य का शरीर केवल अच्छे खानों से ही स्वस्थ्य रहता है या उसे स्वस्थ्य रहने के लिए किसी अन्य चीज़ की आवश्यकता होता है। डाक्टरों का कहना है कि मनुष्य का अमाश्य या मेदा, सदैव खाई हुई चीज़ों को पचाने में व्यस्त रहता है। यदि उसे विश्राम का अवसर न मिले तो इसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
मनुष्य के शरीर के भीतर एक अंग मेदा होता है जिसका काम खाने को पचाना है। अमाशय या मेदा, मनुष्य द्वारा ग्रहण किये गए भोजन को पचाता है। हम जो कुछ खाते हैं वह आहार नली से होता हुआ अमाशय तक जाता है। जैसाकि हम पहले बता चुके हैं कि अमाशय यदि लगातार काम करता रहे तो इससे स्वास्थ्य प्रभावित होता है किंतु यदि उसे कुछ आराम मिल जाए तो यह स्वयं मेदे के लिए और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। ग्यारह महीनों तक लगातार काम करने के बाद रमज़ान में रोज़ों के दौरान अमाशय को बहुत विश्राम मिल जाता है। इस प्रकार मेदे के लिए विश्राम का अंतराल पूरे एक महीने रहता है। इस स्थिति में अमाशय की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। अब यदि रमज़ान के दौरान खाने-पीने का एक निर्धारित कार्यक्रम बना लिया जाए तो उससे रोज़ा रखने वाले को अधिक शारीरिक लाभ मिल सकता है। अमाशय या मेदे के महत्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि मेदा ही हर बीमारी की जड़ है और परहेज़ उसका उपचार है।
चिकित्सकों का कहना है कि खाने-पीने के लिए किसी निर्धारित कार्यक्रम का न होने और अधिक खाने-पीने से सत्तर से अधिक बीमारियां जन्म लेती हैं। इन सभी बीमारियों का उपचार भूख और प्यास से किया जा सकता है। भूखे और प्यासे रहने का सबसे अच्छा माध्यम रोज़ा है। डाक्टर इस बात से सहमत हैं कि रोज़े से अतिरिक्त चर्बी घुल जाती है और मोटापा कम होता है। रोज़े से आंतें दुरूस्त रहती हैं। मेदा साफ और शुद्ध हो जाता है। पेट के विषैले कीटाणु मर जाते हैं। अपच या बदहज़मी की शिकायत ठीक हो जाती है। रोज़े को बल्ड प्रेशर, जोड़ों के दर्द, हृदय रोग, स्मरण शक्ति में कमी और बहुत सी बीमारियां समाप्त हो सकती हैं तथा शरीर को स्फूर्ति मिलती है। रोज़ा रखकर रोज़ेदार स्वयं को कई प्रकार की बीमारियों से सुरक्षित रख सकता है।
डाक्टर सैयद मुहम्मद मूसवी रोज़े के लाभ के बारे में कहते हैं कि एक महीने तक रोज़ा रखने से शरीर में मौजूद ज़हरीले कीटाणु मर जाते हैं। वे कहते हैं कि रोज़े के कारण शरीर में मौजूद कफ़ या बलग़म समाप्त हो जाता है। डाक्टर मूसवी का कहना है कि रोज़ा रखने से हर प्रकार के विषाक्त पदार्थ बदन से निकल जाते हैं। उनका कहना है कि बहुत सी बीमारियों का स्रोत यही विषाक्त पदार्थ होते हैं और उनके निकलने से कई प्रकार की बीमारियों का ख़तरा कम हो जाता है।
जानकारों का कहना है कि खान पान में संतुलन के कारण लोगों में शक्ति बढ़ती है और साथ ही उपसना करने की क्षमता भी बढ़ती है। इसी प्रकार कम खाने पीने से आलस्य भी दूर होता है। इसके विपरीत पेट भर खाने से जो बोझिलपन बढ़ता है उससे भूखा रहने से मुक्ति मिलती है किन्तु इन सब बातों से महत्वपूर्ण, विचारों का प्रशिक्षण तथा दिल की सफ़ाई है। पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से बयान किया गया है कि जो व्यक्ति अपने पेट को ख़ाली रखता है तो उसके विचार प्रशिक्षित होते हैं। जब मनुष्य के विचार सभी दिशा में प्रशिक्षित होते हैं तो उसका दिल साफ़ हो जाता है। जब मनुष्य का दिल साफ़ हो जाता है तो ईश्वर से निकट होता जाता है।
जैसाकि हमने अबतक रोज़े के शारीरिक लाभों का उल्लेख किया उसके साथ ही इस बात का उल्लेख भी आवश्यक है कि रोज़ा रखते समय सहर खाने और इफ़्तार करने में आलस से काम नहीं लेना चाहिए। रोज़ेदार को किसी भी स्थिति में सहर नहीं छोड़नी चाहिए। सहर न करने से रोज़े पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ता किंतु इस काम को कोई सराहनीय काम नहीं बताया गया है। रोज़ा रखने के लिए जहां सहरी न छोड़ने की बात कही गई है वहीं पर यह भी कहा गया है कि भूख और प्यास के कारण खाने-पीने में अधिकता नहीं करनी चाहिए। यहां पर इस बिंदु की ओर संकेत करना आवश्यक है कि हालांकि रोज़े के बहुत से शारीरिक लाभ हैं किंतु कुछ बीमारियों में रोज़ा रखने से मना किया गया है। कुछ गंभीर रोग एसे होते हैं जिनमें किसी भी स्थिति में रोज़ा रखने की मनादी है लेकिन जब भी यह बीमारी समाप्त हो जाए तो उसके बाद रोज़े रखे जा सकते हैं।
मनोचिकित्सकों का कहना है कि रोज़े का मनुष्य की आत्मा पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन चिकित्सकों के अनुसार जब मनुष्य एक महीने तक लगातार रोज़े रखता है और तीस दिनों तक खाने-पीने से वंचित रहता है तो इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। उनका मानना है कि महीने भर की भूख और प्यास से रोज़ेदार को जो आत्मबल मिलता है वह उल्लेखनीय है। इसी के साथ लोगों के बीच अपराध और पाप की भावना कम हो जाती है। इस बात को एसे समझा जा सकता है कि बहुत से इस्लामी देशों में रमज़ान के दौरान अपराध की दर कम हो जाती है। इस बात को कई मुस्लिम देशों में देखा जा सकता है। मिस्र, मलेशिया, ईरान, अल्जीरिया और एसे ही कुछ देशों की वार्षिक रिपोर्टों में बताया गया है कि रमज़ान के कारण अपराध की दर में बहुत कमी दर्ज की गई।
माहे रमज़ान के ग्यारहवें दिन की दुआ (11)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّهُمَّ حَبِّبْ اِلَيَّ فيہ الْإحسانَ وَكَرِّهْ إلي فيہ الْفُسُوقَ وَالعِصيانَ وَحَرِّمْ عَلَيَّ فيہ السَخَطَ وَالنّيرانَ بعَوْنِكَ ياغياثَ المُستَغيثينَ.
अल्लाह हुम्मा हब्बिब इलैय फ़ीहिल एहसान, व कर्रिह इलैय फ़ीहिल फ़ुसूक़ वल इस यान, व हर्रिम अलैय फ़ीहि अस्सख़ता वन्नीरान, बे औनिका या ग़ियासल मुस तग़ीसीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! आज के दिन मेरे लिए नेकीयों को महबूब बना दे, फ़िस्क़ व फ़ुजूर और गुनाहों को ना पसंदीदा बना दे और मेरे उपर अपनी नाराज़गी और जहन्नम को हराम कर दे अपनी ख़ास मदद से, ऐ फ़रियादियों की फ़रियाद सुनने वाले...
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
ग़ज़ा की हालिया घटनाओं ने पश्चिमी अत्याचारों के मोर्चे की सच्चाई को साबित कर दिया
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने नए हिजरी शम्सी साल के पहले दिन बुधवार 20 मार्च की शाम को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में जनता के विभिन्न वर्गों के हज़ारों लोगों से मुलाक़ात की।
सुप्रीम लीडर ने ग़ज़ा की दलदल में ज़ायोनी शासन के फंसने और ज़ायोनियों के अपराधों के मुख्य भागीदार के रूप में अमरीका के दुनिया के राष्ट्रों की बढ़ती नफ़रत की ओर इशारा किया और कहा कि हालिया घटनाओं ने पश्चिम में सत्तासीन अत्याचारों और प्रतिरोध के मोर्चे की सच्चाई को सिद्ध कर कर दिया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने यह बयान करते हुए कि प्रतिरोध के मोर्चे ने अमरीका के सारे समीकरणों को धराशायी कर दिया, कहा कि अत्याचार विरोधी इस जनमोर्चे ने अपनी वास्तविक क्षमता और शक्ति का प्रदर्शन किया और ईश्वर की इच्छा और उसकी ताक़त से ज़ायोनी शासन के बड़े अत्याचारी अस्तित्व को समाप्त करने का मार्ग जारी रखेगा।
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर के नेता ने कहा कि ग़ज़ा की घटनाओं और कथित सभ्य व मानवाधिकार की रक्षा की दावेदार दुनिया की नज़रों के सामने 30 हज़ार से ज़्याद बच्चों, औरतों, बूढ़ों और जवानों के क़त्ले आम ने पश्चिमी दुनिया पर छाए हुए अंधकार को स्पष्ट कर दिया है।
उन्होंने कहा कि अमरीका और योरोप वालों ने न सिर्फ़ यह कि क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन के जुर्म की रोकथाम नहीं की बल्कि आग़ाज़ के दिनों में ही मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन का दौरा करके अपने सपोर्ट का एलान किया और अपराध जारी रखने के लिए तरह तरह के हथियार और मदद भेजी।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पश्चिम एशिया में प्रतिरोध के मोर्चे के गठन की उपयोगिता उजागर होने को हालिया कुछ महीनों के दौरान की घटनाओं का नतीजा बताया और कहा कि इन घटनाओं ने दिखा दिया कि इस क्षेत्र में प्रतिरोध के मोर्चे की मौजूदगी, सबसे अहम मुद्दों में से एक है और जागरूक अंतरात्माओं से निकलने वाले तथा ज़ायोनी अपराधियों के 70 वर्षीय अत्याचार व अवैध क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ गठित होने वाले इस मोर्चे को दिन ब दिन अधिक मज़बूत बनाना चाहिए।
सुप्रीम लीडर ने प्रतिरोध के मोर्चे की क्षमता के सामने आने को ग़ज़ा की मौजूदा जंग का एक और नतीजा बताया और कहा कि पश्चिम वालों को भी और क्षेत्र की सरकारों को भी प्रतिरोध के मोर्चे की ताक़त व क्षमताओं के बारे में कुछ पता नहीं था।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने प्रतिरोध के मोर्चे की ताक़त के ज़ाहिर होने को अमरीकियों के अंदाज़ों और क्षेत्रीय मुल्कों पर हावी होने की उनकी योजना के नाकाम होने का सबब बताया और कहा कि प्रतिरोध की ताक़त ने उनके अंदाज़ों को नाकाम कर दिया और ये दिखा दिया कि अमरीकी न सिर्फ़ इलाक़े पर हावी नहीं हो सकते बल्कि वो क्षेत्र में रुक भी नहीं सकते और इलाक़े से निकलने पर मजबूर हैं।
फ़िलिस्तीनी बच्चे, बच्चे नहीं हैं :वाशिंगटन पोस्ट
माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट टम्बलर पर एक यूज़र ने अपनी एक पोस्ट में फ़िलिस्तीनी बच्चों को इंसान नहीं बताने की पश्चिमी मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।
अगर यह मीडिया आउटलेट्स बच्चों को बच्चा नहीं कह सकते, तो हक़ीक़त में उनके बारे में क्या सोचा जाए?
इस यूज़र ने जो फ़ोटो पोस्ट किए हैं, उससे पता चलता है कि एसोसिएटेड प्रेस, गार्जियन और वाशिंगटन पोस्ट जैसे मीडिया आउटलेट्स बच्चों को बच्चा कहने के बजाए उन्हें 18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति कहते हैं और उनकी मौत के बारे में बात करने के बजाए, उनके लिए हताहत जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।
अवैध ज़ायोनी शासन की स्थापना की शुरुआत से अब तक लाखों निर्दोष फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए, लाखों अन्य विस्थापित हुए हैं। इस बीच, कुछ पश्चिमी मीडिया आउटलेस्ट इस शासन के अपराधों पर पर्दा डालकर, उसके मानव विरोधी अपराधों में वृद्धि के लिए भूमि प्रशस्त करते हैं।
फ़िलिस्तीन के समर्थन में एकजुट हो जाएं लेबनान के मंत्री ने दुनिया से की अपील,
लेबनान संस्कृति मंत्री के सलाहकार ने प्रतिरोध के मोर्चे और मानवाधिकारों का समर्थन करने के क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में ईरान को याद किया है।
गुरुवार को पवित्र कुरआन की 31वीं अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी के मौके पर, लेबनान के संस्कृति मंत्री के सलाहकार, रोनी अल्फ़ा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ईरान हमेशा फिलिस्तीनी प्रतिरोध, इस्लामी उम्मा और मानवाधिकारों का समर्थन करने में अग्रणी रहा है।
लेबनान के संस्कृति मंत्री के सलाहकार ने ईरान की प्रशंसा की और सभी गुटों को ग़ज़ा और दक्षिणी लेबनान में प्रतिरोध के मोर्चे का समर्थन करने के लिए एकजुट होने की सलाह दी।
बुधवार को हिजरी शम्सी नव वर्ष के पहले दिन इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरानी जनता के विभिन्न वर्गों के हज़ारों लोगों से अपनी मुलाक़ात में इस बात पर ज़ोर दिया कि इस क्षेत्र में मौजूद सबसे बड़े अत्याचार को यानी ज़ायोनी शासन के अस्तित्व को ख़त्म होना चाहिए।
उन्होंने कहा किहम हर उस शख़्स के समर्थक और मददगार हैं जो इस इस्लामी, इंसानी और अंतरात्मा के जेहाद में शामिल हो।
न्यूयॉर्क टाइम्स की शैतानी चाल, ईरानी महिला ने खोली पोल
एक्स सोशल नेटवर्क पर एक ईरानी पत्रकार ने ग़ज़ा की ख़बरों को कवर करने में न्यूयॉर्क टाइम्स की मीडिया चौकड़ी व शरारत का ख़ुलासा किया है।
इल्हाम आबेदीनी ने लिखा कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने किसी तरह एक तस्वीर ली और उसका शीर्षक दिया कि ग़ज़ा तक अधिक सहायता क्यों नहीं पहुंचती? मानो ग़ज़ा परिवेष्टन का शिकार है और सहायता पहुंचाना कितना कठिन है।
ईरान की महिला पत्रकार इल्हाम आब्दीनी लिखती हैं कि यदि कोई ख़बर के अंदर की विषय वस्तु न पढ़ेता है और केवल शीर्षक देखे तो वह स्वभाविक रूप से इस्राईली शासन और नाकाबंदी के मुख्य तत्व पर कम से कम दोष लगाएगा, देखें किस तरह से वे शब्दों को कैसे बदलते हैं और उनसे कैसा खिलवाड़ करते हैं।
यह पहली बार नहीं है कि जब पश्चिमी मीडिया फिलिस्तीन में नरसंहार की सच्चाई छिपाने के लिए ग़ज़ा की जनता की मज़लूमियत और अवैध ज़ायोनी शासन के अपराधों को इस तरह से पेश कर रहा है ताकि हक़ीक़त को नजरअंदाज किया जाए कि ग़ज़ा युद्ध, इस्राईल के माथे पर एक कलंक है और वह पश्चिमी मीडिया कभी भी इन हरकतों से इस्राईल के इस कलंक को जनता की आंखों से छिपा नहीं सकता