رضوی

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जूलानी शासन से जुड़े तत्वों द्वारा सीरिया में नागरिकों की सामूहिक हत्या के संबंध में अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की चुप्पी ने एक बार फिर इन संस्थानों के दोहरे मानकों व मापदंडों को साबित कर दिया है।

जबकि जोलानी शासन से जुड़े तत्वों ने कल रात इस देश में नागरिकों की सामूहिक हत्याएं कीं और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद ने इन घटनाओं पर कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी।

कल रात, सीरिया की सत्तारूढ़ सरकार के प्रमुख अबू मोहम्मद अल-जूलानी ने उत्तरी क्षेत्रों में अपनी सेना के खिलाफ आम नागरिकों के विरोध के जवाब में कहा: हम आंतरिक शांति को भंग नहीं होने देंगे।

उन्होंने दावा किया कि सीरिया में बश्शार अल-असद के शासन से जुड़ी ताकतें इस देश में अराजकता फैलाने की योजना बना रही हैं।

अल-जूलानी ने यह दावा तब किया है जब कुर्दिश सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एसडीएफ़) के कमांडर मजलूम अब्दी ने घोषणा की कि बश्शार अल-असद शासन से जुड़ी कोई भी सेना, सीरिया के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में मौजूद नहीं है।

अल-मयादीन चैनल ने यह भी बताया कि सीरियन ऑब्ज़र्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने घोषणा की कि सीरिया के तटीय इलाकों में पांच अलग-अलग नरसंहार हुए, जिसके दौरान महिलाओं और बच्चों सहित लगभग 1 हज़ार से अधिक लोग मारे गये हैं।

इस संबंध में सीरिया में इस्लामिक काउंसिल ऑफ एलविस ने एक बयान जारी कर इस देश में संघर्षों का दायरा बढ़ने और नागरिकों की हत्याओं की बाबत चेतावनी दी है।

इस परिषद ने सुरक्षा परिषद से इस देश के समुद्री तट पर सीरियाई जनता का समर्थन करने के लिए हस्तक्षेप करने की अपील की है।

यह ऐसी हालत में है कि सुरक्षा परिषद और अंतरराष्ट्रीय संगठन, सीरिया के घटनाक्रम और इस देश में नागरिकों की हत्या के संबंध में पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं।

हिज़्बुल्लाह लेबनान ने कुछ पक्षों द्वारा सीरिया की घटनाओं से जुड़े हुए अपने नाम के दावे को सख्ती से खारिज कर दिया।

हिज़्बुल्लाह लेबनान ने घोषणा की है कि कुछ पक्ष जबरदस्ती सीरिया की घटनाओं से हिज़्बुल्लाह का नाम जोड़ना चाहते हैं और संगठन पर आरोप लगा रहे हैं कि वह सीरिया में जारी संघर्ष का एक पक्ष है।

हिज़्बुल्लाह ने स्पष्ट रूप से कहा,हम इन निराधार आरोपों को पूरी तरह और सख्ती से खारिज करते हैं।

इसके अलावा हिज़्बुल्लाह ने मीडिया से अपील की कि वे समाचार प्रसारित करते समय सावधानी बरतें और उन भ्रामक अभियानों का हिस्सा न बनें जो कुछ राजनीतिक उद्देश्यों और संदिग्ध विदेशी एजेंडों की सेवा के लिए चलाई जा रही हैं।

हरम-ए-मुतह्हर हज़रत मासूमा स.ल. में ख़िताब के दौरान हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोमिनी ने कहा कि इमाम से दूरी सबसे बड़ी यतीमी है इमाम रज़ा अ.स. फरमाते हैं,इमाम एक मेहरबान पिता, एक सच्चे भाई और मां से भी ज़्यादा शफ़ीक़ (दयालु) होते हैं चाहे हम उन्हें याद करें या न करें वे हमें हमेशा याद रखते हैं और हमारे लिए दुआ करते हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हुसैन मोमिनी ने हरम-ए-मुतह्हर हज़रत मासूमा स.ल. में मुनाजात-ख़्वानी की महफ़िल के दौरान ख़िताब करते हुए कहा कि इंसान के आमाल का असर दुनिया और आख़िरत दोनों में ज़ाहिर होता है।

उन्होंने इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. की एक रिवायत का हवाला देते हुए कहा कि अगर हम अपने जीवन में मरिफत ए ख़ुदा अल्लाह की पहचान), मरिफत ए-रसूल (पैग़ंबर की पहचान) और मरिफत ए-इमाम (इमाम की पहचान) को उतार लें और उनसे सच्ची मोहब्बत करें तो इसका पहला असर यह होगा कि हम वाजिबात की पाबंदी करेंगे और मुहर्रमात से बचेंगे।

हुज्जतुल इस्लाम मोमिनी ने अल्लाह की पहचान के बारे में कहा कि सब कुछ अल्लाह के हाथ में है और उसकी क़ुदरत (शक्ति) से बड़ी कोई ताक़त नहीं जब इंसान ख़ुद को अल्लाह का बंदा और उसके दर पर मोहताज समझे तो वह क़ुरआन की आयतों, ख़ास तौर पर सूरह हम्द के ज़रिए अल्लाह से इश्क़ (प्रेम) का रिश्ता क़ायम कर सकता है।

हुज्जतुल इस्लाम मोमिनी ने कहा कि हमें यह जानना चाहिए कि नबी-ए-अकरम स.ल. ख़ुशख़बरी देने वाले हैं जो कुछ वे फ़रमाते हैं, वह वही अल्लाह की ओर से भेजी गई वही है उन्होंने सूरह तौबा की आयत 128 का हवाला देते हुए कहा कि पैग़ंबर (स) अपनी उम्मत की तकलीफ़ों को महसूस करते हैं और उनकी हिदायत के लिए बेइंतिहा फ़िक्रमंद रहते हैं।

हुज्जतुल इस्लाम मोमिनी ने मरिफत ए इमाम को सबसे अहम फ़रीज़ा क़रार देते हुए कहा कि इमाम वह हस्ती हैं, जिन्हें हमें अपनी ज़िंदगी का केंद्र बनाना चाहिए हमें ग़ौर करना चाहिए कि हमारी ज़िंदगी में इमाम-ए-ज़माना (अज) का कितना ज़िक्र है? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने अपने दिल में इमाम का दाख़िला मना है का बोर्ड लगा रखा हो?

उन्होंने इमाम रज़ा अ.स. की रिवायत को बयान करते हुए कहा:इमाम एक सच्चे साथी, शफ़ीक़ पिता, मेहरबान भाई और मां से भी ज़्यादा मोहब्बत करने वाली हस्ती होते हैं।चाहे हम इमाम को याद करें या न करें, वह हमें याद करते हैं, और हम उनकी दुआ करें या न करें वह हमारे लिए दुआ करते हैं।

हुज्जतुल इस्लाम मोमिनी ने कहा कि इमाम से दूरी सबसे बड़ी यतीमी है क्योंकि इमाम वह हस्ती हैं जो हमें कभी तन्हा नहीं छोड़ते।.उन्होंने सूरह मायदा की आयत 35 का ज़िक्र करते हुए कहा कि अल्लाह तक पहुंचने के लिए हमें तक़वा अपनानी होगी और "वसीला" (साधन) को पकड़ना होगा और अहलुल बैत अ.स. ही वह वसीला हैं जो हमें अल्लाह से जोड़ते हैं।

अपने ख़िताब के आख़िर में उन्होंने कहा कि अगर हम सच्चे दिल से इमाम की याद में रहें और उनकी मोहब्बत को अपनी ज़िंदगी में शामिल करें तो इमाम भी हमारी तरफ़ मुतवज्जेह होंगे और हमें अपनी ख़ास इनायतों से नवाज़ेंगे।

 

यमन के जनांदोलन अंसारुल्लाह के महासचिव ने ज़ायोनी शासन को चेतावनी दी कि यदि मानवीय सहायता को ग़ज़ा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई, तो वह इज़राइल के खिलाफ अपने हमले फिर से शुरू कर देंगे।

यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के महासचिव सैयद बदरुद्दीन अल-हूसी ने शुक्रवार शाम को चेतावनी दी कि अगर ज़ायोनी शासन ने अगले 4 दिनों में ग़ज़ा को मानवीय सहायता भेजने से रोकना जारी रखा, तो इज़राइल के खिलाफ नौसैनिक अभियान फिर से शुरू हो जाएंगे।

समझौते के दूसरे चरण का क्रियान्वयन ही कैदियों की रिहाई का एकमात्र रास्ता

दूसरी ख़बर यह है कि ग़ज़ा में अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के राजनीतिक और सैन्य अधिकारियों को संबोधित करते हुए ज़ायोनी  बंदी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि क़ैदियों को रिहा करने का एकमात्र तरीका, क़ैदियों के  आदान-प्रदान पर एक समझौता और ग़ज़ा में संघर्ष विराम समझौते के दूसरे चरण का कार्यान्वयन है।

ज़ायोनी सेना के प्रवक्ता का इस्तीफ़ा

वरिष्ठ इज़राइली सैन्य अधिकारियों के इस्तीफ़े के बाद ज़ायोनी मीडिया ने बताया कि इज़राइली सेना के प्रवक्ता डैनियल हगारी ने शुक्रवार को अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। बताया जाता है कि ज़ायोनी सेना के ज्वाइंट स्टाफ के नये प्रमुख "इयाल ज़मीर" ने यह इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।

सैन्य सेवा के विरोधी चरमपंथी ज़ायोनियों की गिरफ़्तारियां तेज़

ज़ायोनी अख़बार मआरीव ने हाल ही में रिपोर्ट दी है कि ज़ायोनी शासन की कैबिनेट के न्यायिक सलाहकार के आदेश से, इज़राइ की सेना उन अति- हरेदी ज़ायोनियों के बीच गिरफ्तारियां बढ़ाने की तैयारी कर रही है जो सेना में सेवा करने से इनकार या विरोध करते हैं।

 

 

 

रमज़ान के पवित्र महीने में फ़िलिस्तीनियों के लिए मस्जिदुल अक़्सा में दाख़िले पर रोक

 

 

 

अवैध अधिकृत बैतुल मुक़द्दस में फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ अपनी उत्तेजक कार्रवाइयों को जारी रखते हुए, ज़ायोनी शासन ने रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान मस्जिदुल अक़्सा में उनके प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया है। ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री कार्यालय ने पिछले सप्ताह के अंत में घोषणा की थी कि केवल 55 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों, 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं और वेस्ट बैंक से 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को रमज़ान के दौरान मस्जिदुल अक़्सा में दाख़िले की इजाज़त दी जाएगी।

मुल्क के आला अधिकारियों ने 8 मार्च 2025 की शाम को हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने रमज़ान मुबारक को अल्लाह की याद और क़ुरआन की तिलावत का महीना क़रार देते हुए कहा कि ज़िक्र, ग़फ़लत और फ़रामोशी के मुक़ाबले में है और ग़फ़लतों में ख़ुद को और अल्लाह को भूल जाना बहुत ज़्यादा नुक़सानदेह है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती।

मुल्क के आला अधिकारियों ने 8 मार्च 2025 की शाम को हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने रमज़ान मुबारक को अल्लाह की याद और क़ुरआन की तिलावत का महीना क़रार देते हुए कहा कि ज़िक्र, ग़फ़लत और फ़रामोशी के मुक़ाबले में है और ग़फ़लतों में ख़ुद को और अल्लाह को भूल जाना बहुत ज़्यादा नुक़सानदेह है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने उन आयतों का हवाला दिया जिसमें अल्लाह को भूलने के बुरे नतीजों का ज़िक्र है। उन्होंने कहा कि अगर इंसान अल्लाह को भूल जाए तो अल्लाह भी उसे भुला देता है, यानी अपनी रहमत और हिदायत के दायरे से उसे निकाल देता है और उसकी ओर से उदासीन होकर उसे तनहा और उसके हाल पर छोड़ देता है।

उन्होंने ख़ुद को भुला देने के भारी सामाजिक आयाम की व्याख्या में सूरए तौबा की आयत का हवाला देते हुए कहा कि अगर इस्लामी गणराज्य में पूर्ववर्तियों की तरह यानी सरकश शाही शासन के अधिकारियों की तरह हम भी अमल करें तो मनो हम बहुत बड़ा और चिंताजनक अपराध करेंगे जिसका बहुत भारी नुक़सान होगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने राष्ट्रपति की अच्छी व लाभदायक बातों और इसी तरह उनके जज़्बे और ज़िम्मेदारी की भावना की सराहना करते हुए उसे बहुत मूल्यवान बताया और कहा कि जनाब पेज़िश्कियान का अल्लाह और बड़े काम करने की क्षमता पर भरोसे पर ताकीद, पूरी तरह मुश्किल को हल करने वाली है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने विदेश मंत्रालय की सरगर्मियों पर ख़ुशी जताते हुए और पड़ोसियों और दूसरे देशों से संबंध विस्तार पर ताकीद करते हुए कहा कि कुछ विदेशी बदमाश सरकारें और नेता वार्ता पर इसरार कर रहे हैं हालांकि वार्ता के पीछे उनका लक्ष्य मसले का हल नहीं है बल्कि वे अपने मद्देनज़र मसलों में हुक्म चलाना और अपनी इच्छा थोपना चाहते हैं, अगर सामने वाले पक्ष ने मान लिया तो ठीक! नहीं तो प्रोपैगंडा करके उस पर वार्ता की मेज़ छोड़ने का इल्ज़ाम लगाएं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि मसला सिर्फ़ परमाणु विषय का नहीं है, बल्कि उनके लिए वार्ता मुल्क की रक्षा सलाहियतों, मुल्क की अंतर्राष्ट्रीय क्षमताओं सहित नए मुतालबे पेश करने का रास्ता और मार्ग है और इस तरह की अपेक्षाएं पेश करने के लिए है कि आप फ़ुलां काम न कीजिए, फ़ुलां शख़्स से न मिलिए, मिसाइल की रेंज फ़ुलां सीमा से ज़्यादा न हो! निश्चित तौर पर इस तरह की बातें ईरान नहीं मानेगा।

उन्होंने सामने वाले पक्ष की ओर से वार्ता की रट का लक्ष्य जनमत पर दबाव डालना बताया और कहा कि वे चाहते हैं कि जनमत के मन में संदेह पैदा करें कि क्यों उनकी ओर से वार्ता के लिए तैयार होने के वावजूद हम वार्ता के लिए तैयार नहीं हैं? वार्ता के पीछे उनका लक्ष्य हुक्म चलाना और अपनी इच्छा थोपना है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने तीन योरोपीय देशों के परमाणु समझौते जेसीपीओए में ईरान के अपने वचन पर अमल न करने पर आधारित बयान की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि क्या आपने जेसीपीओए में अपने वचन पर अमल किया? उन्होंने तो पहले दिन से कोई अमल नहीं किया और अमरीका के परमाणु समझौते से निकलने के बाद, उसकी भरपाई के वचन के बावजूद वे लोग दो बार अपने वचन से मुकर गए।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने योरोपियों की ओर से वचन पर अमल न किए जाने के साथ ही उनकी ओर से ईरान पर ख़िलाफ़वर्ज़ी का इल्ज़ाम लगाने को उनकी ढिठाई की इंतेहा बताया और कहा कि तत्कालीन सरकार ने एक साल तक इंतेज़ार किया और फिर संसद मैदान में आ गयी और एक प्रस्ताव पास हुआ क्योंकि इसके सिवा कोई और रास्ता नहीं था और इस वक़्त भी धौंस और धमकी के मुक़ाबले में इसके सिवा कोई और रास्ता नहीं है।

उन्होंने अपनी स्पीच के दूसरे भाग में इस्लामी सिस्टम के ढांचे को क़ुरआन के नियमों और उसूलों और क़ुरआन तथा सुन्नत के मानदंडों और लक्ष्यों पर आधारित बताया और कहा कि इस बुनियाद पर हम पश्चिमी सभ्यता के पिछलग्गू नहीं हो सकते, अलबत्ता दुनिया में पश्चिमी सभ्यता सहित जहाँ भी अच्छी चीज़ होगी, हम उससे फ़ायदा उठाएंगे लेकिन हम पश्चिम के मानदंडों पर भरोसा नहीं कर सकते, क्योंकि वे ग़लत और इस्लामी मूल्यों के ख़िलाफ़ हैं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने पश्चिम वालों की साम्राज्यवादी हरकतों, राष्ट्रों के स्रोतों की लूटमार, बड़े पैमाने पर नरसंहार, मानवाधिकार और महिला अधिकार के बारे उनके झूठे दावे और इसी तरह अनेक मुद्दों पर उनके दोहरे मानदंडों के कारण पश्चिमी सभ्यता के रुसवा होने की ओर इशारा करते हुए बल दिया कि पश्चिम में सूचना की आज़ादी की बात, निरा झूठ है जैसा कि पश्चिम के सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म्ज़ पर जनरल सुलैमानी, सैयद हसन नसरुल्लाह, शहीद हनीया और कुछ दूसरे मशहूर लोगों के नाम का उल्लेख करना मुमकिन नहीं है और फ़िलिस्तीन तथा लेबनान में ज़ायोनियों के अपराधों पर विरोध नहीं जताया जा सकता।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ईरान की स्थिति के बारे में पश्चिमी मीडिया में बोले जाने वाले झूठ की ओर इशारा करते हुए कहा कि इनमें किस मीडिया में ईरान की वैज्ञानिक तरक़्क़ी, बड़ी जनसभाओं, इस्लामी सिस्टम और राष्टॉ की कामयाबियों का ज़िक्र होता है जबकि कमज़ोर बिंदुओं को दस गुना बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है।

उन्होंने पश्चिम के कुछ समाज शास्त्रियों के कथनों का हवाला देते हुए कहा कि पश्चिमी सभ्यता दिन ब दिन पतन की ओर बढ़ रही है अतः हमें उसका पालन करने की इजाज़त नहीं है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ईरान के दुश्मनों के इस प्रकार के नकारात्मक प्रचार के बावजूद, ईरानी क़ौम की ज़्यादा से ज़्यादा होने वाली तरक़्क़ी को एक हक़ीक़त बताया और इसे बनाए रखने को देश के अधिकारियों की सही दिशा में प्रगति और पहचान की रक्षा पर निर्भर बताया।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच में देश से विशेष मुद्दों में मुख्य रूप से आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करते हुए कहा कि आर्थिक मुश्किलों के बावजूद 21वीं सदी के दूसरे दशक के आग़ाज़ में दुश्मन की सुरक्षा और सूचना से संबंधित धमकियों सहित ज़्यादातर धमकियों का लक्ष्य, अवाम की आर्थिक स्थिति को ख़राब करना था। उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य यह है कि इस्लामी गणराज्य अवाम की आर्थिक स्थिति का सही तरह संचालन न कर पाए इसलिए आर्थिक स्थिति बहुत अहम है और इसमें सुधार के लिए गंभीर रूप से कोशिश की ज़रूरत है।

मुल्क के आला अधिकारियों ने 8 मार्च 2025 की शाम को हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने रमज़ान मुबारक को अल्लाह की याद और क़ुरआन की तिलावत का महीना क़रार देते हुए कहा कि ज़िक्र, ग़फ़लत और फ़रामोशी के मुक़ाबले में है और ग़फ़लतों में ख़ुद को और अल्लाह को भूल जाना बहुत ज़्यादा नुक़सानदेह है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती।

मुल्क के आला अधिकारियों ने 8 मार्च 2025 की शाम को हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने रमज़ान मुबारक को अल्लाह की याद और क़ुरआन की तिलावत का महीना क़रार देते हुए कहा कि ज़िक्र, ग़फ़लत और फ़रामोशी के मुक़ाबले में है और ग़फ़लतों में ख़ुद को और अल्लाह को भूल जाना बहुत ज़्यादा नुक़सानदेह है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने उन आयतों का हवाला दिया जिसमें अल्लाह को भूलने के बुरे नतीजों का ज़िक्र है। उन्होंने कहा कि अगर इंसान अल्लाह को भूल जाए तो अल्लाह भी उसे भुला देता है, यानी अपनी रहमत और हिदायत के दायरे से उसे निकाल देता है और उसकी ओर से उदासीन होकर उसे तनहा और उसके हाल पर छोड़ देता है।

उन्होंने ख़ुद को भुला देने के भारी सामाजिक आयाम की व्याख्या में सूरए तौबा की आयत का हवाला देते हुए कहा कि अगर इस्लामी गणराज्य में पूर्ववर्तियों की तरह यानी सरकश शाही शासन के अधिकारियों की तरह हम भी अमल करें तो मनो हम बहुत बड़ा और चिंताजनक अपराध करेंगे जिसका बहुत भारी नुक़सान होगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने राष्ट्रपति की अच्छी व लाभदायक बातों और इसी तरह उनके जज़्बे और ज़िम्मेदारी की भावना की सराहना करते हुए उसे बहुत मूल्यवान बताया और कहा कि जनाब पेज़िश्कियान का अल्लाह और बड़े काम करने की क्षमता पर भरोसे पर ताकीद, पूरी तरह मुश्किल को हल करने वाली है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने विदेश मंत्रालय की सरगर्मियों पर ख़ुशी जताते हुए और पड़ोसियों और दूसरे देशों से संबंध विस्तार पर ताकीद करते हुए कहा कि कुछ विदेशी बदमाश सरकारें और नेता वार्ता पर इसरार कर रहे हैं हालांकि वार्ता के पीछे उनका लक्ष्य मसले का हल नहीं है बल्कि वे अपने मद्देनज़र मसलों में हुक्म चलाना और अपनी इच्छा थोपना चाहते हैं, अगर सामने वाले पक्ष ने मान लिया तो ठीक! नहीं तो प्रोपैगंडा करके उस पर वार्ता की मेज़ छोड़ने का इल्ज़ाम लगाएं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि मसला सिर्फ़ परमाणु विषय का नहीं है, बल्कि उनके लिए वार्ता मुल्क की रक्षा सलाहियतों, मुल्क की अंतर्राष्ट्रीय क्षमताओं सहित नए मुतालबे पेश करने का रास्ता और मार्ग है और इस तरह की अपेक्षाएं पेश करने के लिए है कि आप फ़ुलां काम न कीजिए, फ़ुलां शख़्स से न मिलिए, मिसाइल की रेंज फ़ुलां सीमा से ज़्यादा न हो! निश्चित तौर पर इस तरह की बातें ईरान नहीं मानेगा।

उन्होंने सामने वाले पक्ष की ओर से वार्ता की रट का लक्ष्य जनमत पर दबाव डालना बताया और कहा कि वे चाहते हैं कि जनमत के मन में संदेह पैदा करें कि क्यों उनकी ओर से वार्ता के लिए तैयार होने के वावजूद हम वार्ता के लिए तैयार नहीं हैं? वार्ता के पीछे उनका लक्ष्य हुक्म चलाना और अपनी इच्छा थोपना है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने तीन योरोपीय देशों के परमाणु समझौते जेसीपीओए में ईरान के अपने वचन पर अमल न करने पर आधारित बयान की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि क्या आपने जेसीपीओए में अपने वचन पर अमल किया? उन्होंने तो पहले दिन से कोई अमल नहीं किया और अमरीका के परमाणु समझौते से निकलने के बाद, उसकी भरपाई के वचन के बावजूद वे लोग दो बार अपने वचन से मुकर गए।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने योरोपियों की ओर से वचन पर अमल न किए जाने के साथ ही उनकी ओर से ईरान पर ख़िलाफ़वर्ज़ी का इल्ज़ाम लगाने को उनकी ढिठाई की इंतेहा बताया और कहा कि तत्कालीन सरकार ने एक साल तक इंतेज़ार किया और फिर संसद मैदान में आ गयी और एक प्रस्ताव पास हुआ क्योंकि इसके सिवा कोई और रास्ता नहीं था और इस वक़्त भी धौंस और धमकी के मुक़ाबले में इसके सिवा कोई और रास्ता नहीं है।

उन्होंने अपनी स्पीच के दूसरे भाग में इस्लामी सिस्टम के ढांचे को क़ुरआन के नियमों और उसूलों और क़ुरआन तथा सुन्नत के मानदंडों और लक्ष्यों पर आधारित बताया और कहा कि इस बुनियाद पर हम पश्चिमी सभ्यता के पिछलग्गू नहीं हो सकते, अलबत्ता दुनिया में पश्चिमी सभ्यता सहित जहाँ भी अच्छी चीज़ होगी, हम उससे फ़ायदा उठाएंगे लेकिन हम पश्चिम के मानदंडों पर भरोसा नहीं कर सकते, क्योंकि वे ग़लत और इस्लामी मूल्यों के ख़िलाफ़ हैं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने पश्चिम वालों की साम्राज्यवादी हरकतों, राष्ट्रों के स्रोतों की लूटमार, बड़े पैमाने पर नरसंहार, मानवाधिकार और महिला अधिकार के बारे उनके झूठे दावे और इसी तरह अनेक मुद्दों पर उनके दोहरे मानदंडों के कारण पश्चिमी सभ्यता के रुसवा होने की ओर इशारा करते हुए बल दिया कि पश्चिम में सूचना की आज़ादी की बात, निरा झूठ है जैसा कि पश्चिम के सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म्ज़ पर जनरल सुलैमानी, सैयद हसन नसरुल्लाह, शहीद हनीया और कुछ दूसरे मशहूर लोगों के नाम का उल्लेख करना मुमकिन नहीं है और फ़िलिस्तीन तथा लेबनान में ज़ायोनियों के अपराधों पर विरोध नहीं जताया जा सकता।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ईरान की स्थिति के बारे में पश्चिमी मीडिया में बोले जाने वाले झूठ की ओर इशारा करते हुए कहा कि इनमें किस मीडिया में ईरान की वैज्ञानिक तरक़्क़ी, बड़ी जनसभाओं, इस्लामी सिस्टम और राष्टॉ की कामयाबियों का ज़िक्र होता है जबकि कमज़ोर बिंदुओं को दस गुना बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है।

उन्होंने पश्चिम के कुछ समाज शास्त्रियों के कथनों का हवाला देते हुए कहा कि पश्चिमी सभ्यता दिन ब दिन पतन की ओर बढ़ रही है अतः हमें उसका पालन करने की इजाज़त नहीं है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ईरान के दुश्मनों के इस प्रकार के नकारात्मक प्रचार के बावजूद, ईरानी क़ौम की ज़्यादा से ज़्यादा होने वाली तरक़्क़ी को एक हक़ीक़त बताया और इसे बनाए रखने को देश के अधिकारियों की सही दिशा में प्रगति और पहचान की रक्षा पर निर्भर बताया।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच में देश से विशेष मुद्दों में मुख्य रूप से आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करते हुए कहा कि आर्थिक मुश्किलों के बावजूद 21वीं सदी के दूसरे दशक के आग़ाज़ में दुश्मन की सुरक्षा और सूचना से संबंधित धमकियों सहित ज़्यादातर धमकियों का लक्ष्य, अवाम की आर्थिक स्थिति को ख़राब करना था। उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य यह है कि इस्लामी गणराज्य अवाम की आर्थिक स्थिति का सही तरह संचालन न कर पाए इसलिए आर्थिक स्थिति बहुत अहम है और इसमें सुधार के लिए गंभीर रूप से कोशिश की ज़रूरत है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ग़ज़ा पट्टी में फ़िलिस्तीनी सरकार के मीडिया कार्यालय के प्रमुख ने फ़िलिस्तीनी महिलाओं के विरुद्ध ज़ायोनी सरकार के दिल दहलाने वाले आंकड़ों को प्रकाशित किया है।

इस रिपोर्ट के आधार पर सात अक्तूबर 2023 से 19 जनवरी 2025 तक अतिग्रहणकारी ज़ायोनियों ने 12316 फ़िलिस्तीनी महिलाओं को शहीद कर दिया।

 इसी प्रकार इस अवधि के दौरान 13901 फ़िलिस्तीनी महिलाओं के पति और उनके घरों के अभिभावक ज़ायोनी सरकार के अपराधों व हमलों में शहीद हो गये।

 इसी प्रकार 17 हज़ार फ़िलिस्तीनी महिलाओं के बच्चे शहीद हो गये।

 ज़ायोनी सरकार के हमलों व अपराधों के कारण दो हज़ार फ़िलिस्तीनी महिलायें व लड़कियां अपंग हो गयीं और उनके शरीर के कुछ अंगों को काटना पड़ा है।

 दसियों हज़ार फ़िलिस्तीनी महिलायें अतिग्रहणकारी ज़ायोनी सरकार की जेलों में बंद हैं जहां उन्हें विभिन्न प्रकार की यातना दी जाती और प्रताड़ित किया जाता है किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि नारीवादी और महिलाओं के अधिकारों के समर्थक संगठनों व संस्थाओं ने ज़ायोनी सरकार के अपराधों के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीनी महिलाओं के लिए कोई प्रभावी व अमली कार्य अंजाम नहीं दिया।

 

ईरान के विदेशमंत्री ने तेहरान द्वारा फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की आकांक्षाओं के समर्थन पर बल दिया है।

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार ईरान के विदेशमंत्री सय्यद अब्बास एराक़ची ने शुक्रवार को इस्लामी कांफ़्रेन्स सहयोग संगठन ओआईसी के विदेशमंत्रियों की आपात बैठक में कहा कि फ़िलिस्तीन में दो सरकारों का विकल्प फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के अधिकारों को पूरा नहीं करेगा। साथ ही विदेशमंत्री ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की सरकार और लोगों द्वारा फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की आकांक्षाओं का समर्थन हमेशा जारी रहेगा और किसी भी स्थिति में इसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा।

ट्रम्प और नेतनयाहू के प्रतिनिधियों के मध्य तनावपूर्ण वार्ता

ज़ायोनी सरकार की सुरक्षा साइट "वाला" ने पिछले हफ़्ते के अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू के प्रतिनिधियों के मध्य तनावपूर्ण टेलीफ़ोनी वार्ता की सूचना दी थी।

इस रिपोर्ट के अनुसार हमास के साथ वाशिंग्टन की गुप्त वार्ता को लेकर ज़ायोनी सरकार के प्रधानमंत्री के प्रतिनिधि Ron Dermer और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आधिकारिक प्रतिनिधि Adam Buehler के बीच तनावपूर्ण टेलीफ़ोनी वार्ता हुई।

ईरान के संबंध में डिप्लोमैसी बेहतरीन मार्ग हैः राष्ट्रसंघ के प्रवक्ता

संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रवक्ता Stephane Dujarric ने शुक्रवार की रात को कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के संबंध में डिप्लोमैसी बेहरीन मार्ग है।

राष्ट्रसंघ के प्रवक्ता का यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति के उस एलान के बाद आया जिसमें उन्होंने कहा था कि ईरान को हमने लेटर दिया है।

 अमेरिकी सरकार ने एलान किया है कि वह फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन करके कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय को दी जाने वाली मदद रोक रही है

अमेरिकी सरकार ने कल एलान किया है कि वह न्यूयार्क में स्थित एक विश्वविद्यालय को दी जा रही लगभग 40 करोड़ डा᳴लर की सहायता रोक रही है।

ज्ञात रहे कि पिछले साल अमेरिकी विश्वविद्यालय के छात्रों ने विश्वविद्यालय के प्रांगड़ में ग़ज़ा पट्टी के ख़िलाफ़ ज़ायोनी सरकार के अपराधों पर आपत्ति जताई थी और ज़ायोनी सरकार के अपराधों की भर्त्सना की थी।

ग्रोसीः पश्चिम के प्रतिबंध ईरान की परमाणु प्रगति में बाधा नहीं बने हैं

परमाणु ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी (IAEA) के महानिदेशक राफ़ाएल ग्रोसी ने शुक्रवार की शाम को ईरान के ख़िलाफ़ पश्चिम के प्रतिबंध को विफ़ल बताते हुए कहा कि ये प्रतिबंध ईरान के परमाणु कार्यक्रम की प्रगति में बाधा नहीं बने हैं।

पाकिस्तान सरकार ने अफ़ग़ान नागरिकों को निकालने के लिए अंतिम समय का एलान कर दिया

पाकिस्तान की सरकार ने अपने नवीनतम कार्यक्रम में ग़ैर क़ानूनी विदेशी नागरिकों को वापस लौटाने के बारे में एलान किया है कि जिन अफ़ग़ानी नागरिकों के पास पहचान पत्र का कार्ड है वे भी अगले महीने तक पाकिस्तान छोड़ दें वरना उनके निकालने का काम आरंभ कर दिया जायेगा।

यूरोप की विशेष बैठक समाप्त, यूक्रेन जंग के संबंध में ब्रसल्ज़ का जुआ जारी

यूरोपीय संघ के देशों के नेताओं की आपात बैठक पिछले गुरूवार को ऐसी हालत में समाप्त हो गयी जब यूरोपीय देशों ने यूक्रेन के वित्तीय और सैनिक समर्थन और साथ ही इन देशों ने रूस पर दबावों को अधिक किये जाने पर बल दिया था।

रोचक बात यह है कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के नेताओं ने यूक्रेन संकट के समाधान के लिए कोई सुझाव पेश नहीं किया।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में प्रमुख धर्मगुरु मुफ्ती शाह मीर की अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में प्रमुख धर्मगुरु मुफ्ती शाह मीर की अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी।

‘डॉन’ अखबार की खबर में कहा गया कि मीर को शुक्रवार को केच के तुरबत शहर में तब निशाना बनाया गया जब वह रात की नमाज के बाद एक मस्जिद से बाहर निकल रहे थे।

अखबार ने पुलिस के हवाले से कहा,मोटरसाइकिल सवार हथियारबंद लोगों ने मुफ्ती शाह मीर पर गोलियां चलाईं जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए।

उन्हें तुरंत तुरबत अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई मुफ्ती शाह मीर जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-एफ (जेयूआई-एफ) के करीबी थे। इससे पहले उन पर दो बार जानलेवा हमले किए गए थे।

 

हौज़ा-ए-इल्मिया खुरासान के अख़लाक़ के शिक्षक ने इंसानी ज़िंदगी में अल्लाह की रज़ामंदी की अहमियत की तरफ़ इशारा करते हुए कहा,किसी भी बंदे की सबसे बड़ी पूंजी खुदा-ए-मुतआल की रज़ा है जो उसी वक्त हासिल होती है जब इंसान नेकी करे और बुराइयों से दूर रहे।

मशहद के प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए हौज़ा-ए-इल्मिया खुरासान के अख़लाक़ के आचार्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ग़फ्फ़ारफ़ाम ने रमज़ान मुबारक की छठी दुआ के ख़ास मफ़हूम और उसकी मोमिनाना ज़िंदगी के लिए गहरी तालीमात को बयान करते हुए कहा,इस दुआ में हज़रत इमाम सज्जाद (अ.स.) खुदा-ए-तबारक व तआला से तीन अज़ीम और बुनियादी दरख़्वास्तों के ज़रिए बंदगी और सआदत (सफलता) का रास्ता वाज़ेह करते हैं। ये दुआएं हमारे लिए बेहद अहम सबक़ रखती हैं।

उन्होंने आगे कहा,जिस तरह नेक आमाल और इलाही अहकाम की पाबंदी सआदत और खुशबख्ती का बाइस (कारण) बनती है, उसी तरह गुनाह और इलाही हुदूद (नियमों) को तोड़ना ज़िल्लत (अपमान) और बदबख्ती (दुर्भाग्य) का सबब बनता है। गुनाह इंसान की दुनिया और आख़िरत की जड़ों को काट देता है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ग़फ्फ़ारफ़ाम ने कहा,ज़ुल्म इंसान की ज़िंदगी में सबसे तबाहकुन (विनाशकारी) गुनाहों में से एक है। हिकमत-ए-इलाही (ईश्वरीय न्याय) के तहत कोई भी ज़ुल्म बेअसर नहीं रहता, जैसा कि हुकमा (दार्शनिकों) ने कहा है।

दुनिया में हर अमल का एक रद्दे-अमल (प्रतिक्रिया) होता है।' जो शख़्स अपनी ज़िंदगी को ज़ुल्म की बुनियाद पर क़ायम करेगा, उसे जान लेना चाहिए कि उसका अंजाम भी उसी के ज़ालिमाना रवैये के मुताबिक़ होगा, क्योंकि ज़ुल्म इंसान की जड़ों को काट देता है और उसे रहमत-ए-इलाही  से दूर कर देता है।

उन्होंने आगे कहा,जो चीज़ इंसान को खुदा के ग़ज़ब (क्रोध) के क़रीब करती है, वह गुनाह है। जिस तरह तक़वा और परहेज़गारी खुशबख्ती का सबब बनते हैं, उसी तरह गुनाह और इलाही अहकाम से ग़फ़लत (लापरवाही) न सिर्फ इंसान को रहमत-ए-इलाही से महरूम कर देती है, बल्कि दुनिया और आख़िरत में उसके लिए जहन्नम का बाइस भी बनती है।