رضوی

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इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय ने एक बयान जारी करके ग़ाज़ा में हासिल होने वाले युद्ध विराम के समझौते को प्रतिरोध, शूरवीरता, बहादुरी, साहस और फ़िलिस्तीन के महान लोगों के अद्वितीय धैर्य का परिणाम बताया और फ़िलिस्तीन के धैर्यवान लोगों, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध और क्षेत्र एवं विश्व में प्रतिरोध के समर्थकों और दोस्तों को मुबारकबाद दी।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय ने ग़ाज़ा में होने वाले सीज़फ़ायर की प्रतिक्रिया में एक बयान जारी किया। समझौते का टैक्स्ट इस प्रकार है। "بسم‌الله الرحمن الرحیم

فَاصْبِرْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۖ وَلَا یَسْتَخِفَّنَّکَ الَّذِینَ لَا یُوقِنُونَ

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय ने ग़ाज़ा में होने वाले युद्धविराम को ग़ाज़ा में हासिल होने वाले युद्ध विराम के समझौते को प्रतिरोध, शूरवीरता, बहादुरी, साहस और फ़िलिस्तीन के महान लोगों के अद्वितीय धैर्य व सब्र का परिणाम बताया और फ़िलिस्तीन के धैर्यवान लोगों, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध क्षेत्र एवं विश्व में प्रतिरोध के समर्थकों और दोस्तों को मुबारकबाद दी। इसी प्रकार विदेशमंत्रालय की ओर से जारी होने वाले बयान में इस समझौते को फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को मिलने वाली एतिहासिक विजय का नाम दिया गया है।

अतिग्रहणकारी और नस्ली सफ़ाया करने वाली ज़ायोनी सरकार ने 15 महीनों तक खुल्लम- खुल्ला अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों, मानवाधिकार के क़ानूनों और मानवता प्रेमी का क़ानूनों का हनन किया और मानवता के ख़िलाफ़ जघन्य अपराधों को अंजाम दिया और ज़ायोनी सरकार ने फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को ख़त्म करने व मिटाने की दिशा में किसी भी कार्यवाही में संकोच से काम नहीं लिया और उसकी यह साम्राज्यवादी कार्यवाही आठ दशक पहले से बड़ी साम्राज्यवादी शक्तियों के समर्थन या उनके मौन के साथ आरंभ हुई है।

इसी प्रकार विदेशमंत्रालय की ओर से जारी बयान में आया है कि ज़ायोनी सरकार ने समस्त क़ानूनी रेड लाइनों को पार करके फ़िलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ अपराधों को अंजाम दिया। पागलों की तरह इंसानों विशेषकर महिलाओं और बच्चों की हत्या की, मकानों को तबाह किया, जीवन की आधारभूत सेवाओं को नष्ट किया, अस्पतालों, स्कूलों, बेघर लोगों के शिविरों, पत्रकारों, चिकित्सकों और नर्सों पर हमला किया और ये वे अपराध हैं जिन्हें ज़ायोनी सरकार ने हालिया 15 महीनों के दौरान अंजाम दिया है और उसके इन कृत्यों का लक्ष्य फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को मिटाना और प्रतिरोध की उसकी भावना को तोड़ना व ख़त्म करना था।

इन 15 महीनों के दौरान जिस चीज़ ने ज़ायोनी सरकार को नस्ली सफ़ाया करने और अपराधों को अंजाम देने के लिए दुस्साहसी बनाया वह अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और कुछ दूसरे पश्चिमी देशों का माली, राजनीतिक और व्यापक सैन्य समर्थन था और इन देशों ने राष्ट्रसंघ की ओर से युद्ध बंद कराने के लिए ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं होने दिया। इसी प्रकार इन देशों के नेताओं ने ज़ायोनी सरकार को दंडित करने के लिए The International Court of Justice and the International Criminal Court की ओर से जो प्रयास किये गये उसमें विघ्न उत्पन्न कर दिया और इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ये देश ज़ायोनी सरकार के अपराधों में भागीदार हैं और उन्हें इसका जवाब देना चाहिये।

विदेशमंत्रालय की ओर से जारी बयान में आशा जताई गयी है कि विश्व समुदाय के सहयोग और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी ज़िम्मेदार लोगों की भूमिका व योगदान से युद्धविराम के समझौते को पूरी तरह से लागू किये जाने और अतिग्रहणकारियों के ग़ाज़ा से निकलने, पूरी ग़ाज़ा के लोगों को तुरंत सहायता पहुंचाये जाने, ग़ाज़ा के तुरंत पुनर्निर्माण और ग़ाज़ा के धैर्यवान लोगों के दुःखों व पीड़ाओं के कम होने  के हम साक्षी होंगे।

विदेशमंत्रालय की ओर से जारी बयान में आया है कि ग़ाज़ा में नस्ली सफ़ाये के रुक जाने के साथ विश्व समुदाय को चाहिये कि वह पूरी सूक्ष्मता और ज़िम्मेदारी के साथ ज़ायोनी सरकार ने जो खुल्लम- खुल्ला अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों, मानवताप्रेमी अधिकारों व क़ानूनों का उल्लंघन किया और पश्चिमी किनारे और मस्जिदुल अक़्सा के ख़िलाफ़ वह जो कार्यवाहियां करता रहता है उन पर ध्यान दे और अत्याचारी ज़ायोनी सरकार से मुक़ाबला करे और क्रूरतम और जघन्य अपराध करने के कारण ज़ायोनी सरकार के अपराधी व दोषी अधिकारियों व नेताओं की गिरफ्तारी और उन्हें दंडित करने की भूमि प्रशस्त करे।

इसी प्रकार इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय की ओर से जारी बयान में ज़ायोनी सरकार द्वारा प्रतिरोध के महानायकों व प्रतिष्ठित हस्तियों और शहीदों विशेषकर इस्माईल हनिया, यहिया सिन्वार, सैय्यद हसन नस्रुल्लाह, सैय्यद हाशिम सफ़ीयुद्दीन और हज़ारों फ़िलिस्तीनी, लेबनानी, इराक़ी, यमनी और ईरानी मुजाहिदों पर सलाम भेजा गया है और उनके वैध व सत्य के मार्ग को जारी रखने पर बल दिया गया है।

 

 

फिलिस्तीनी और क्षेत्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर साएब शाअस ने कहा है कि फिलिस्तीनी प्रतिरोध ने कब्जा करने वाली सरकार की ताकत को कमजोर कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप नेतन्याहू को अपनी सेना का बलिदान करने और समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

फिलिस्तीनी और क्षेत्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर साएब शाथ ने आयरलैंड के शहर बेलफास्ट से अल-आलम न्यूज़ चैनल के साथ एक सीधी बातचीत में अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन के बयान का हवाला देते हुए कहा,फिलिस्तीनी प्रतिरोध ने कब्जा करने वाली सरकार को पूरी तरह परास्त कर दिया है।

उन्होंने खुद को सशस्त्र किया है अपनी पंक्तियों को संगठित किया है और अपने सभी नुकसानों की भरपाई कर ली है।

उन्होंने कहा,सियोनिस्ट सेना ग़ज़ा में फिलिस्तीनी प्रतिरोध को हरा नहीं सकती इसका मतलब है कि नेतन्याहू को युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए पीछे हटना पड़ा और अपनी सेना व बंदियों का बलिदान देना पड़ा ताकि इस युद्धविराम को आने वाले युद्धों में ट्रंप के लिए दोस्ती का प्रतीक बताया जा सके।

डॉ. साएब शाथ ने आगे कहा,हम बाइडेन और उनके साथियों से वादा करते हैं कि हम उन्हें अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में मुकदमे का सामना करने पर मजबूर करेंगे। अगर इन अदालतों में सफल नहीं हुए, तो उन्हें दुनियाभर में जनता की अदालतों में न्याय के कटघरे में खड़ा करेंगे वे दुनिया के सबसे बुरे इंसान हैं और ग़ज़ा में नरसंहार की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर है।

हमास की सैन्य शाखा इज़्ज़ुद्दीन अल-क़स्साम ब्रिगेड ने घोषणा की है कि लगातार इजरायली हमले गाजा में कैदियों की जान को खतरे में डाल रहे हैं।

ग़ज़ा में इज़्ज़ुद्दीन क़साम ब्रिगेड्स ने गुरूवार को अपने टेलीग्राम अकाउंट पर एक बयान जारी करते हुए कहा कि इस चरण में किसी भी प्रकार की हमला या गोलाबारी, दुश्मन द्वारा एक कैदी की स्वतंत्रता को त्रासदी में बदल सकती है।

अबू उबैदा, क़साम ब्रिगेड्स के प्रवक्ता ने कहा कि इज़राइल द्वारा एक स्थान पर हमला किया गया जहाँ एक महिला को पहले चरण के संघर्ष विराम समझौते के तहत मुक्त किया जाना था।

हमास के वरिष्ठ अधिकारी इज्ज़त अल-रशक ने इज़राइल के प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा किए गए आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि हमास संघर्ष विराम समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखे हुए है।

इज़राइल की कैबिनेट की बैठक जो ग़ज़ा संघर्ष विराम पर वोटिंग करने वाली थी, उसे स्थगित कर दिया गया है और अब यह बैठक शुक्रवार को होगी।

संघर्ष विराम समझौते के बाद इज़राइल के लगातार हमलों में 80 लोग शहीद हो गए, जिनमें 21 फ़लस्तीनी बच्चे और 25 महिलाएँ शामिल हैं।

ईरान ने ग़ज़्ज़ा में संघर्ष विराम का स्वागत करते हुए कहा कि युद्धविराम समझौते के संबंध में एक बयान जारी किया है।

ईरान विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा गया है कि ग़ज़्ज़ा पट्टी में युद्ध विराम समझौता इतिहास के सबसे बड़े नरसंहार के खिलाफ फिलिस्तीन और ग़ज़्ज़ा के महान लोगों के प्रतिरोध, साहस का परिणाम है।

 फिलिस्तीनी लोगों की इस ऐतिहासिक जीत पर फिलिस्तीनी लोगों और इस क्षेत्र तथा विश्व भर में प्रतिरोध के सभी समर्थको को बधाई।

इस बयान में जोर देते हुए कहा गया है कि अमेरिका और अन्य यूरोपीय उपनिवेशवादी देश, जो बेशर्मी से अतिक्रमणकारी ज़ायोनी शासन का समर्थन कर रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों और मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन कर रहे हैं, उनका भी ज़ायोनी सरकार के अपराधों और नरसंहार में हाथ है जो 15 महीने से अधिक समय से चल रहा है।

ईरानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि इन 15 महीनों के क्रूर आक्रमण के दौरान, हत्यारे ज़ायोनी शासन को अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और कई अन्य पश्चिमी देशों से प्रत्यक्ष सैन्य, वित्तीय और राजनीतिक समर्थन प्राप्त हुआ, जो शर्मनाक है। निस्संदेह, इन देशों को ज़ायोनी शासन के अपराधों में सहयोगी के रूप में जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

हजरत जैनब कुबरा (स) की शहादत के अवसर पर अजमेर के तारागढ़ स्थित अज़ाखाना ए आले अबू तालिब (अ) में "याद जैनब कुबरा (स)" नामक दो दिवसीय शोक समारोह आयोजित किया गया। जिनमे बड़ी संख्या में विश्वासी पुरुष और महिला दोनों ने इन शोक समारोहों में भाग लिया।

तारागढ़ के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी ने अपनी तकरीर में हज़रत ज़ैनब सलाम अल्लाह अलैहा के जन्म की एक रोचक कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि जब हज़रत ज़ैनब का जन्म हुआ, तो पैगंबर (स) मदीना में नहीं थे, और हज़रत फातिमा ज़हरा ने इमाम अली (अ) से उनकी नामकरण के लिए सुझाव मांगा। इमाम अली (अ) ने पैगंबर के लौटने तक इंतजार करने की सलाह दी। जब पैगंबर (स) मदीना लौटे, तो उन्होंने खुदा के संदेश से हज़रत ज़ैनब का नाम रखा।

पैगंबर (स) ने अपनी नवासी को गोदी में लेते हुए कहा कि "मेरी यह बेटी, हज़रत ख़दीजा की तरह है।" हज़रत ख़दीजा (स) ने इस्लाम के पहले दिनों में अपना सब कुछ इस्लाम के लिए दान कर दिया था। पैगंबर (स) चाहते थे कि लोग जानें कि हज़रत ज़ैनब का चरित्र भी हज़रत ख़दीजा (स) जैसा है।

मौलाना ने कहा कि हज़रत ज़ैनब के 61 उपनाम थे, जैसे "आलेमा ग़ैरे मोअल्लेमा" (बिना शिक्षक के ज्ञानी), "आयातुम मिन आयातिल्लाह", "फ़हीमा ए ग़ैरे मुफ़हेमा", मुहद्देसा, सानी ए ज़हरा इत्यादि।  वे अपनी मां हज़रत फातिमा ज़हरा की यादगार थीं और कर्बला में अपनी भूमिका से इस्लाम को बचाने में मदद की। उनकी महानता और क़ुर्बानी हमेशा याद रखी जाएगी।

इंशाअल्लाह, अल्लाह जल्द ही इस जीत को पूरी इस्लामी उम्मत को दिखाएगा, दिलों को खुश करेगा और फ़िलिस्तीनी जनता तथा ग़ज़़्ज़ा के मजलूम लोगों को सबसे अधिक खुश और संतुष्ट करेगा।

यहां हम ग़ज़्ज़ा के लोगों की अंतिम विजय से संबंधित आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई के विचारों के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे हैं:

"ग़ज़्ज़ा का मुद्दा एक तरफ़ मजलूमियत का मामला है, तो दूसरी तरफ़ यह ताक़त और शक्ति का मामला है। दुश्मन इन लोगों को मजबूर करना चाहता था कि वे आत्मसमर्पण कर दें, हाथ खड़े कर लें, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, आत्मसमर्पण नहीं किया।... उनकी यही सहनशीलता और भरोसा उन्हें सफलता दिलाएगा। यही चीज़ उन्हें जीत की ओर ले जाएगी, और अंततः वे विजयी होंगे।" (25 अक्टूबर 2023)

"ग़ज़़ज़ा के मामले में और तूफ़ान अल-अक़्सा की घटना में की गई भविष्यवाणियां धीरे-धीरे स्पष्ट हो रही हैं। शुरू से ही, दुनिया भर के विवेकशील लोगों, चाहे यहां हों या कहीं और, की यही भविष्यवाणी थी कि इस संघर्ष में जीत फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध की होगी और हार उस घिनौने, अभिशप्त ज़ायोनी शासन की।" (9 जनवरी 2024)

"इंशाअल्लाह, अल्लाह अपनी कृपा से यह जीत पूरी इस्लामी उम्मत को निकट भविष्य में दिखाएगा। इससे सभी के दिल प्रसन्न होंगे और विशेष रूप से फ़िलिस्तीन के लोगों और ग़ज़़्ज़ा के मज़लूम नागरिकों के दिल खुश होंगे।" (23 जनवरी 2025)

"‘इन्ना वादल्लाहे हक़्क़ुन - निसंदेह अल्लाह का वादा सच्चा है।’ वला यस्तख़फ़्फ़न्नकल लज़ीना ला यूक़ेनूना - जो लोग अल्लाह के वादे पर विश्वास नहीं रखते, उनके नकारात्मक विचार आपको डगमगा नहीं सकते, आपको कमज़ोर नहीं कर सकते। इंशाअल्लाह, अंतिम और निकट भविष्य की जीत फ़िलिस्तीन और फ़िलिस्तीनी लोगों की होगी।" (1 नवंबर 2023)

करगिल के हौज़ा-ए-इल्मिया में जमीयत-उल-उलमा ए-इमामिया के तत्वावधान में हज़रत अली (अ) की पैदाइश की खुशी में जश्न-ए-मोलूद-ए-काबा का भव्य आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम न सिर्फ धार्मिक आस्था बल्कि अली (अ) के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक था।

करगिल के हौज़ा-ए-इल्मिया में जमीयत-उल-उलमा ए-इमामिया के तत्वावधान में हज़रत अली (अ) की पैदाइश की खुशी में जश्न-ए-मोलूद-ए-काबा का भव्य आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम न सिर्फ धार्मिक आस्था बल्कि अली (अ) के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक था। कड़ाके की सर्दी के बावजूद करगिल और आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में लोगों, विशेष रूप से उलमा और अली (अ) के चाहने वालों ने इस जश्न में हिस्सा लिया। आयोजन स्थल और उसके आसपास के इलाकों को खूबसूरती से सजाया गया था, जिसे एक दुल्हन की तरह सजाने में कई दिनों की मेहनत लगी।

कार्यक्रम की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई, जिसके बाद तकरीरें, मन्कबत और कसीदाख्वानी का सिलसिला चला। वक्ताओं ने हज़रत अली (अ) की ज़िंदगी, उनके चरित्र और उनकी शिक्षाओ पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि अली (अ) की मोहब्बत ईमान और कुफ्र के बीच की पहचान है और उनकी शिक्षाए इंसानियत के लिए हर दौर में मार्गदर्शक हैं। वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें अली (अ) के बताए रास्ते पर चलते हुए उनके सच्चे अनुयायी बनने की कोशिश करनी चाहिए।

जमीयत-उल-उलमा के अध्यक्ष शेख नाज़िर मेहदी मोहम्मदी ने अपनी मुख्य तकरीर में पैगंबर मोहम्मद (स) की हदीसों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि "अली (अ) से मोहब्बत करना ईमान की निशानी है, और अली (अ) से दुश्मनी रखना निफाक की पहचान है।" उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अली (अ) की मोहब्बत के बिना जन्नत में दाखिल होना मुमकिन नहीं। साथ ही उन्होंने मुसलमानों को आगाह किया कि वे उन विचारों और तकरीरों से बचें, जो उनके ईमान को कमजोर कर सकती हैं।

शेख नाज़िर ने यह भी कहा कि हज़रत अली (अ) का जन्म खान-ए-काबा में हुआ, जो इस्लाम का सबसे बड़ा चमत्कार है। यह उनकी महानता और अल्लाह के नज़दीक उनकी खास जगह को दर्शाता है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि कुछ लोग अली (अ) के पैगाम और उनकी महानता को समझने से आज भी दूर हैं।

गुरुवार, 16 जनवरी 2025 16:16

हज़रत ज़ैनब बिन्ते अली स.अ.

हज़रत ज़ैनब स.ल. एक रिवायत के अनुसार 5 जमादिउल अव्वल सन 6 हिजरी को मदीने में पैदा हुईं, आप के वालिद हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई, आप ने अपनी ज़िदगी में बहुतसारी मुसीबतों का सामना किया, मां बाप की शहादत से लेकर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आप ने देखी और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आप के जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र, धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया।

हज़रत ज़ैनब स.ल. एक रिवायत के अनुसार 5 जमादिउल अव्वल सन 6 हिजरी को मदीने में पैदा हुईं, आप के वालिद हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई,

आप ने अपनी ज़िदगी में बहुतसारी मुसीबतों का सामना किया, मां बाप की शहादत से लेकर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आप ने देखी और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आप के जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र, धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 46)

 आपके बहुत सारे लक़ब हैं जिन में से मशहूर सिद्दीक़-ए-सुग़रा, आलिमा, मोहद्दिसा, आरिफ़ा और सानि-ए-ज़हरा हैं, आप के सिफ़ात और आपकी विशेषताएं देखकर आपको अक़ीलए बनी हाशिम कहा जाता है, आप की शादी हज़रत जाफ़रे तैयार के बेटे जनाबे अब्दुल्लाह से हुई थी और आप के दो बेटे औन और मोहम्मद करबला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ दीन को बचाने के ख़ातिर शहीद कर दिए गए थे। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 210)

 आम तौर से बच्चों के नाम उनके मां बाप रखते हैं लेकिन हज़रत ज़ैनब (स) का नाम आप के नाना पैग़म्बरे अकरम (स) ने रखा। जब आप की विलादत हुई तो पैग़म्बरे अकरम (स) सफ़र पर गए हुए थे जब आप वापस आए और जैसे ही आप को हज़रत ज़ैनब (स) की विलादत की ख़बर मिली आप तुरंत इमाम अली अलैहिस्सलाम के घर आए और हज़रत ज़ैनब (स) को गोद में ले कर प्यार किया और उसी समय आप ने ज़ैनब यानी बाप की ज़ीनत नाम रखा। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 39)

 इंसान की अहमियत उसके इल्म और ज्ञान से पहचानी जाती है, जैसा कि क़ुरआन में सूरए बक़रह की आयत 31 और 32 में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बारे में भी यही कहा गया है और सबसे अहम इल्म और ज्ञान वह है जो सीधे अल्लाह से हासिल किया जाए जिसे *इल्मे लदुन्नी* कहा जाता है, हज़रत ज़ैनब (स) का इल्म भी कुछ इसी तरह का था जैसा कि इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने आप को आलिम-ए-ग़ैरे मोअल्लमा नाम दिया यानी ऐसी आलिमा जिसने दुनिया में किसी से कुछ सीखा न हो। (मुन्तहल आमाल, जिल्द 1, पेज 298)

 औरत के लिए सबसे बड़ा कमाल और सबसे बड़ी सआदत यह है कि उसकी पाकीज़गी और पवित्रता पर कोई सवाल न कर सके, हज़रत ज़ैनब (स) ने पवित्रता का सबक़ अपने वालिद से सीखा जैसा कि यह्या माज़नदरानी से रिवायत है कि मैंने कई सालों तक मदीने में इमाम अली अलैहिस्सलाम की ख़िदमत की है और मेरा घर हज़रत ज़ैनब (स) के घर से बिल्कुल क़रीब था लेकिन कभी न मैंने उनको देखा और ना ही उनकी आवाज़ सुनी।

 आप जब भी अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहतीं तो रात के सन्नाटे में जातीं और आप के साथ आगे आगे इमाम अली अलैहिस्सलाम चलते और आप के दाहिने इमाम हसन और बाएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम चलते और जब पैग़म्बरे अकरम (स) की क़ब्र के क़रीब पहुंचते तो पहले इमाम अली अलैहिस्सलाम जाकर चिराग़ की रौशनी को धीमा कर देते थे, एक बार इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद से इसका कारण पूछा तो आप ने जवाब दिया कि मुझे डर है कि कहीं कोई ना महरम मेरी बेटी ज़ैनब (स) को देख न ले।

 आप ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी पाकीज़गी और पवित्रता को ध्यान में रखा, कूफ़ा और शाम जैसे घुटन के माहौल में जहां आप के सर पर चादर नहीं थी लेकिन फिर भी आप अपने हाथों से अपने चेहरे को छिपाए हुए थीं। (अल-ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या, पेज 345)

 हज़रत ज़ैनब (स) की एक और सबसे अहम विशेषता जिसको सैय्यद नूरुद्दीन जज़ाएरी ने किताब "ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या" में ज़िक्र किया है वह यह कि आप क़ुरआन की मुफ़स्सिरा थीं और वह एक रिवायत को इस तरह बयान करते हैं कि जिन दिनों इमाम अली अलैहिस्सलाम कूफ़ा में रहते थे उन्हीं दिनों हज़रत जैनब (स) कूफ़े की औरतों के लिए क़ुरआन की तफ़सीर बयान करती थीं,

एक दिन इमाम अली (अ) घर में दाख़िल हुए देखा हज़रत ज़ैनब (स) सूरए मरियम के शुरू में आने वाले हुरूफ़े मुक़त्तए की तफ़सीर बयान कर रही थीं, आप ने हज़रत ज़ैनब से कहा: बेटी इसकी तफ़सीर मैं बयान करता हूं और फिर आपने फ़रमाया इन हुरूफ़ में अल्लाह ने एक बहुत बड़ी मुसीबत को राज़ बनाकर रखा है और फिर आप ने करबला की दास्तान को बयान किया जिसको सुनकर हज़रत ज़ैनब (स) बहुत रोईं।

 जनाबे शैख़ सदूक़ बयान करते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम की बीमारी के समय हज़रत ज़ैनब को यह अनुमति दी थी कि जो लोग शरई मसले पूछें आप उनका जवाब दीजिएगा।

 शैख़ तबरिसी ने नक़्ल किया है कि हज़रत ज़ैनब (स) ने बहुत सारी हदीसें अपनी मां हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) से बयान की है, इसी तरह 'एमादुल मोहद्देसीन' से नक़्ल हुआ है कि आप ने अपनी मां, वालिद, भाईयों, जनाबे उम्मे सलमा, जनाबे उम्मे हानी और भी दूसरे लोगों से बहुतसी हदीसें बयान की हैं और जिन लोगों ने आप से हदीसें नक़्ल की हैं उनके नाम इस तरह हैं: अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास, इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम, अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र।

 इसी तरह फ़ाज़िल दरबंदी और भी दूसरे बहुत से उलमा ने हज़रत ज़ैनब (स) के बारे में यह बात भी लिखी है कि हज़रत ज़ैनब को इल्मे मनाया वल बलाया था यानी ऐसा इल्म जिस में आने वाले समय में कौन सी घटना पेश आने वाली है इन सबके बारे में आप को मालूमात थी।

हज़रत ज़ैनब स.ल. एक रिवायत के अनुसार 5 जमादिउल अव्वल सन 6 हिजरी को मदीने में पैदा हुईं, आप के वालिद हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई, आप ने अपनी ज़िदगी में बहुतसारी मुसीबतों का सामना किया, मां बाप की शहादत से लेकर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आप ने देखी और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आप के जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र, धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया।

हज़रत ज़ैनब स.ल. एक रिवायत के अनुसार 5 जमादिउल अव्वल सन 6 हिजरी को मदीने में पैदा हुईं, आप के वालिद हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई,

आप ने अपनी ज़िदगी में बहुतसारी मुसीबतों का सामना किया, मां बाप की शहादत से लेकर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आप ने देखी और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आप के जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र, धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 46)

आपके बहुत सारे लक़ब हैं जिन में से मशहूर सिद्दीक़-ए-सुग़रा, आलिमा, मोहद्दिसा, आरिफ़ा और सानि-ए-ज़हरा हैं, आप के सिफ़ात और आपकी विशेषताएं देखकर आपको अक़ीलए बनी हाशिम कहा जाता है, आप की शादी हज़रत जाफ़रे तैयार के बेटे जनाबे अब्दुल्लाह से हुई थी और आप के दो बेटे औन और मोहम्मद करबला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ दीन को बचाने के ख़ातिर शहीद कर दिए गए थे। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 210)

आम तौर से बच्चों के नाम उनके मां बाप रखते हैं लेकिन हज़रत ज़ैनब (स) का नाम आप के नाना पैग़म्बरे अकरम (स) ने रखा। जब आप की विलादत हुई तो पैग़म्बरे अकरम (स) सफ़र पर गए हुए थे जब आप वापस आए और जैसे ही आप को हज़रत ज़ैनब (स) की विलादत की ख़बर मिली आप तुरंत इमाम अली अलैहिस्सलाम के घर आए और हज़रत ज़ैनब (स) को गोद में ले कर प्यार किया और उसी समय आप ने ज़ैनब यानी बाप की ज़ीनत नाम रखा। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 39)

इंसान की अहमियत उसके इल्म और ज्ञान से पहचानी जाती है, जैसा कि क़ुरआन में सूरए बक़रह की आयत 31 और 32 में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बारे में भी यही कहा गया है और सबसे अहम इल्म और ज्ञान वह है जो सीधे अल्लाह से हासिल किया जाए जिसे *इल्मे लदुन्नी* कहा जाता है, हज़रत ज़ैनब (स) का इल्म भी कुछ इसी तरह का था जैसा कि इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने आप को आलिम-ए-ग़ैरे मोअल्लमा नाम दिया यानी ऐसी आलिमा जिसने दुनिया में किसी से कुछ सीखा न हो। (मुन्तहल आमाल, जिल्द 1, पेज 298)

औरत के लिए सबसे बड़ा कमाल और सबसे बड़ी सआदत यह है कि उसकी पाकीज़गी और पवित्रता पर कोई सवाल न कर सके, हज़रत ज़ैनब (स) ने पवित्रता का सबक़ अपने वालिद से सीखा जैसा कि यह्या माज़नदरानी से रिवायत है कि मैंने कई सालों तक मदीने में इमाम अली अलैहिस्सलाम की ख़िदमत की है और मेरा घर हज़रत ज़ैनब (स) के घर से बिल्कुल क़रीब था लेकिन कभी न मैंने उनको देखा और ना ही उनकी आवाज़ सुनी।

आप जब भी अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहतीं तो रात के सन्नाटे में जातीं और आप के साथ आगे आगे इमाम अली अलैहिस्सलाम चलते और आप के दाहिने इमाम हसन और बाएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम चलते और जब पैग़म्बरे अकरम (स) की क़ब्र के क़रीब पहुंचते तो पहले इमाम अली अलैहिस्सलाम जाकर चिराग़ की रौशनी को धीमा कर देते थे, एक बार इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद से इसका कारण पूछा तो आप ने जवाब दिया कि मुझे डर है कि कहीं कोई ना महरम मेरी बेटी ज़ैनब (स) को देख न ले।

आप ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी पाकीज़गी और पवित्रता को ध्यान में रखा, कूफ़ा और शाम जैसे घुटन के माहौल में जहां आप के सर पर चादर नहीं थी लेकिन फिर भी आप अपने हाथों से अपने चेहरे को छिपाए हुए थीं। (अल-ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या, पेज 345)

हज़रत ज़ैनब (स) की एक और सबसे अहम विशेषता जिसको सैय्यद नूरुद्दीन जज़ाएरी ने किताब "ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या" में ज़िक्र किया है वह यह कि आप क़ुरआन की मुफ़स्सिरा थीं और वह एक रिवायत को इस तरह बयान करते हैं कि जिन दिनों इमाम अली अलैहिस्सलाम कूफ़ा में रहते थे उन्हीं दिनों हज़रत जैनब (स) कूफ़े की औरतों के लिए क़ुरआन की तफ़सीर बयान करती थीं,

एक दिन इमाम अली (अ) घर में दाख़िल हुए देखा हज़रत ज़ैनब (स) सूरए मरियम के शुरू में आने वाले हुरूफ़े मुक़त्तए की तफ़सीर बयान कर रही थीं, आप ने हज़रत ज़ैनब से कहा: बेटी इसकी तफ़सीर मैं बयान करता हूं और फिर आपने फ़रमाया इन हुरूफ़ में अल्लाह ने एक बहुत बड़ी मुसीबत को राज़ बनाकर रखा है और फिर आप ने करबला की दास्तान को बयान किया जिसको सुनकर हज़रत ज़ैनब (स) बहुत रोईं।

शैख़ सदूक़ बयान करते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम की बीमारी के समय हज़रत ज़ैनब को यह अनुमति दी थी कि जो लोग शरई मसले पूछें आप उनका जवाब दीजिएगा।

शैख़ तबरिसी ने नक़्ल किया है कि हज़रत ज़ैनब (स) ने बहुत सारी हदीसें अपनी मां हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) से बयान की है, इसी तरह 'एमादुल मोहद्देसीन' से नक़्ल हुआ है कि आप ने अपनी मां, वालिद, भाईयों, जनाबे उम्मे सलमा, जनाबे उम्मे हानी और भी दूसरे लोगों से बहुतसी हदीसें बयान की हैं और जिन लोगों ने आप से हदीसें नक़्ल की हैं उनके नाम इस तरह हैं: अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास, इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम, अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र।

इसी तरह फ़ाज़िल दरबंदी और भी दूसरे बहुत से उलमा ने हज़रत ज़ैनब (स) के बारे में यह बात भी लिखी है कि हज़रत ज़ैनब को इल्मे मनाया वल बलाया था यानी ऐसा इल्म जिस में आने वाले समय में कौन सी घटना पेश आने वाली है इन सबके बारे में आप को मालूमात थी।

इतिहास के पन्नों में हज़रत ज़ैनब (स) उन शख्सियतों में से एक हैं जो सूरज की तरह उदय हुईं और उनकी रोशनी ने पूरी मानवता को अपने आगोश में ले लिया। यह सर्वशक्तिमान ईश्वर की विशेष कृपा और दया है, जिसने इन पवित्र प्राणियों को मानवता के मार्गदर्शन का साधन बनाया। हज़रत ज़ैनब (स) न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पुरुषों के लिए भी एक आदर्श हैं, जिनके पदचिन्हों पर चलकर मानवता मुक्ति का मार्ग पा सकती है।

हज़रत ज़ैनब (स) वंश, ज्ञान, उपासना, शुद्धता, साहस, ईमानदारी और धैर्य में किसी से पीछे नहीं हैं। हज़रत ज़ैनब (स) की उत्कृष्ट विशेषताओं में से एक अत्याचारी और उसके अत्याचार के सामने उनकी दृढ़ता है। आज के दौर में जहां हर तरफ जुल्म ही जुल्म नजर आता है, वहां इस मॉडल को अपनाने की जरूरत है कि जिसके सामने उसके परिवार के लोगों को बेरहमी से शहीद कर दिया गया और जुल्म इस हद तक बढ़ गया कि खुद जुल्म करने वाला भी देखकर खुद को कोसने लगा। डर लग रहा था, लेकिन उस क्षण इस प्राणी के मुंह से यह वाक्य निकला: "जो कुछ भी तुम देखते हो वह सुंदर है।" आज यद्यपि अत्याचारी गाजा में इतना अन्याय करने के बाद अपने आप को शक्तिशाली और सफल समझता है, तथा सोचता है कि अब कोई भी सिर उठाने का साहस नहीं करेगा, परन्तु यह एक मिथ्या विचार है, क्योंकि अन्याय सदैव अत्याचारी की ही कमर तोड़ देता है।

हज़रत ज़ैनब (स) की एक और उत्कृष्ट विशेषता कठिनाइयों का सामना करते हुए उनका धैर्य है। पवित्र कुरान में धैर्यवानों की प्रशंसा विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न शब्दों में की गई है, तथा एक स्थान पर कहा गया है, "अल्लाह धैर्यवानों के साथ है।" लेडी ज़ैनब (स) ने कर्बला की घटना में अपने प्रियजनों को अपने सामने शहीद होते देखा, विशेष रूप से अपने भाई को, जिसके बारे में उन्होंने कहा, "मैं अपने भाई हुसैन (स) के बिना नहीं रह सकती, लेकिन मैंने अपने भाई को अपने लिए बलिदान कर दिया।" ये कुर्बानियाँ अल्लाह की रजा के लिए हैं।" उसने अपने धैर्य और दृढ़ता को उस व्यक्ति के सामने अपने हाथ से फिसलने नहीं दिया जिसके बारे में उसके ज़ियारतनामा में उल्लेख किया गया है: "स्वर्ग के फ़रिश्ते उसे देखकर हैरान हैं तुम्हारे धैर्य को देखकर स्वर्ग के दूत भी चकित हो जाते हैं।

हज़रत ज़ैनब (स) कर्बला की घटना से पहले एक अच्छा और संतुष्ट जीवन जी रही थीं, लेकिन उनकी परवरिश ने उन्हें संतुष्ट जीवन जीने की अनुमति नहीं दी और ज़ालिम अपना जुल्म जारी रखता रहा, बल्कि उन्होंने वही किया जो वह चाहती थीं। उन्होंने इस जीवन को छोड़कर अपने भाई के साथ कर्बला जाना पसंद किया। इसलिए, आज की पीढ़ी को इस मॉडल के पदचिन्हों पर चलने की सख्त जरूरत है।