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सन 2002 में जेनीन शर्णार्थी शिविर पर इस्राईल की हिंसक कार्यवाही की समीक्षा

मार्च सन 2002 के अंत में अवैध ज़ायोनी शासन के भूतपूर्व बदनाम और घृणित प्रधानमंत्री एरियल शेरून के आदेश पर ज़ायोनी सेना ने फ़िलिस्तीनी क्षेत्र पर हमला कर दिया।  सन 1967 से लेकर उस समय तक, ज़ायोनियों की यह सबसे बड़ी सैन्य कार्यवाही थी।  यह हमला रामल्ला, तूलकर्म, क़िलक़ीलिए, नाबलुस, बैते लहम और जेनीन पर किया गया।

इस हमले का मुख्य लक्ष्य, जार्डन नदी के पश्चिमी तट के अधिक जनसंख्या वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों पर ज़ायोनियों द्वारा नियंत्रण करना था।  3 से लेकर 7 अप्रैल 2002 तक ज़ायोनी सेना ने एरियल शेरून के आदेश पर फ़िलिस्तीनियों के जेनीन नामक शर्णार्थी शिविर पर यह हमला किया था।/यह हमला टैंकों, बख़्तरबंद गाड़ियों, युद्धक हैलिकाप्टरों, एफ-16 युद्धक विमानों, दो पैदल बटालियनों, कमांडोज़ और कई बुल्ड़ोज़रों तथा बहुत से बख़्तरबंद बुल्डोज़रों से किया गया था।  ज़ायोनियों की ओर से पूरी तैयारी के साथ किये गए इस हमले में 52 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए।  ज़ायोनियों के इस हमले में उसके 23 सैनिक भी मारे गए।  संयुक्त राष्ट्रसंघ के ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट के अनुसार जेनीन शरणार्थी शिविर में शहीद होने वाले 52 फ़िलिस्तीनी शहीदों में 22 आम नागरिक थे।

इस जनसंहार के बारे में संयुक्त राष्ट्रसंघ के ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट बताती है कि ज़ायोनियों के इस हमले के समय वे फ़िलिस्तीन, पत्रकार और विदेशी लोग जो इस शिविर से बाहर थे उन्होंने फ़िलिस्तीनियों के शर्णार्थी शिविर पर मिसाइलों, हैलिकाप्टरों और युद्धक विमानों को हमला करते हुए देखा था।  इस हमले के बारे में सैन्य विशेषज्ञों और संचार माध्यमों का मानना है कि कार्यवाही के दौरान बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनी मारे गए।  4 अप्रैल से 14 अप्रैल तक फ़िलिस्तीनी शिविर और वहां के अस्पताल के इर्दगिर्द का घेराव इसीलिए किया गया था ताकि बाहर की दुनिया को यह पता ही न चलने पाए कि फ़िलिस्तीनियों के जेनीन शरणार्थी शिविर में इस दौरान क्या हुआ?

जेनीन शर्णार्थी शिविर में 2002 में नष्ट किये गए अपने घर के बाहर रोती हुई एक फ़िलिस्तीनी महिला

ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट यह भी बताती है कि वहां पर फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार के अतिरिक्त उनको मानवीय ढाल के रूप में प्रयोग करने, दर्दनाम यातनाएं देने, गिरफ्तार किये गए फ़िलिस्तीनियों के साथ दुर्वयव्हार करने, उनको खाने-पीने से रोकने, उनतक दवाएं ले जाने में बाधाएं डालने और इस शिविर की भूलभूत सुविधाओं को नष्ट करने जैसे अमानवीय काम भी किये गए।

प्रोफेसर जेनीफर लोवेंशटाइन को, जो स्वतंत्र पत्रकारिता भी करती हैं, 2002 के वसंत के मौसम में फ़िलिस्तीनियों के जेनीन शर्णार्थी शिविर में भेजा गया था। वहां के बारे में अपनी रिपोर्ट में वे लिखती हैं कि आरंभ में तो मुझको यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या मैं सही जगह पर पहुंची हूं?  मेरी आंखों के सामने एक खण्डहर था।  मुझको याद है कि मैंने एक बूढ़े व्यक्ति से पूछा था कि क्या यहां पर कोई शिविर है? उसने एक बार मुझको बहुत ही ग़ौर से देखा और फिर उसी खण्डहर की ओर संकेत करते हुए कहा कि वह है।  उसको देखकर मेरी समझ में आया कि इस शिविर पर कितना भयावह हमला किया गया होगा।  मुझको तो उस खण्डहर में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कुछ टीले से दिखाई दे रहे थे।  वहां की ज़मीन कीचड़ वाली थी।  वहां पर मौजूद लोग उस खण्डहर से अपना सामान निकाल रहे थे।  कुछ लोग कीचड़ में रास्ता बना रहे थे ताकि मारे गए लोगों को निकाला जा सके या घायलों तक सहायता पहुंचाई जा सके।

वहां पर लाशों की बू फैली हुई थी।  वहां के लोग इस बदबू के बारे में बातें कर रहे थे।  उस समय तक मैंने कभी भी एसा दृश्य नहीं देखा था।  मैं लोगों से दूर वहां पर मौजूद अस्पताल में गई।  वहां के कर्मचारी, मारे गए लोगों को सफेद कपड़ों में लपेट रहे थे।  कफन पहनाकर लाशों को वहीं पर तपते हुए सूरज में रखा जा रहा था।  उसी के पीछे कुछ क़ब्रे बनी हुई थीं।  उनको देखकर लग रहा भा कि उनको जल्दी में खोदा गया है ताकि लाशों को फौरन की दफ़्न कर दिया जाए और कोई बीमारी न फैलने पाए।

जेनीन शर्णार्थी शिविर में जघन्य अपराध करने वाले यह नहीं चाहते थे कि उन्होंने वहां पर जो अमानवीय कार्यवाही की है उसकी ख़बर दूसरों तक पहुंचे। वे इसके पक्ष में नहीं थे कि कोई उस स्थान की तस्वीर खींचे या फ़िल्म बनाए।  स्वाभाविक सी बात है कि आक्रमणकारी इस बात को छिपाने में लगे हुए थे कि इस शिविर की बिजली और पानी की सप्लाई काटी जा चुकी है और वहां पर मेडिकल फैसिलिटी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।  इसीलिए उस स्थान पर किसी को भी जाने नहीं दिया जा रहा था।  बड़ी मुश्किल से वहां पर कुछ विदेशी पत्रकार पहुंच पाए थे।  विडंबना यह है कि ज़ायोनी सैनिकों ने जेनीन शर्णार्थी शिविर पर हमला करके फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार करने के बाद फ़िलिस्तीनियों के बरतनों में पेशाब किया और उनको उसी हालत में छोड़ दिया। जब वे यह काम कर चुके तो यह इस्राईली सैनिक हंसते हुए वहां से चले गए और आगे जाकर आइसक्रीम खाने लगे।

परिवेष्टन का शिकार जेनीन कैंप के लिए बचाव एवं सहायता संगठन सहायता नहीं भेज पा रहे थे।  हालांकि वहां पर मौजूद फ़िलिस्तीनियों को इसकी ज़रूरत थी।  किसी को फ़िल्म बनाने का अधिकार नहीं था।  कोई एसा फोटो नहीं दिखाई दिया जिसमें किसी बच्चे को डर ही वजह से अपनी मां से चिपटा हुए दिखाया गया हो।  खेद की बात यह है कि ज़ायोनियों से सहानुभूति जताई जा रही थी।  दुखी करने वाले यह दृश्य उस समय सामने आए जब बहुत बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी तेलअवीव और येरूश्लम पहुंचे और उन्होंने घटना को अंजाम देने वालों से हाथ मिलाए और उनसे सहानुभूति प्रकट की।

जेनीन को भुलाया जा चुका है।  यह घटना 20 साल पहले की है।  उस समय से लेकर अबतक ग़ज़्ज़ा में कई ख़तरनाक कार्यवाहियां की जा चुकी हैं।  ऐसे में इस दुखद घटना की याद को बाक़ी रखना बहुत ज़रूरी है।  इसकी वजह यह है कि सामान्यतः प्रतिरोध और विशेषकर विश्व वर्चस्ववाद के विरुद्ध कड़ा प्रतिरोध ऐसी ही ऐतिहासिक घटनाओं की पुनरावृत्ति से आरंभ होते हैं।

ऐतिहासिक घटनाओं की पुनरावृत्ति, लोगों को प्रेरित करने में सहायक सिद्ध होती है।  अगर अपनी सरकारों की हां-हुज़ूरी के कारण संचारा माध्यम इस काम को अंजाम न दें तो फिर हम इंसानों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे उस काम को आगे बढ़ाएं।  जेनीन को भुला दिया गया है।  जेनीन या इस जैसी अन्य भुलाई जाने वाली घटनाओं को याद दिलाना भी एक प्रकार का प्रतिरोध है।  अतीत को याद रखना और वर्तमान को बदलने की हिम्मत, वह चीज़ है जो भविष्य के निर्माण का पहला क़दम है।

ईरान के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहिम रायसी ने हमास के प्रमुख के तीन बेटों और तीन पोतों की शहादत पर कहा है कि स्टैजमैट फ्रंट के नेता भी कुद्स की आजादी के लिए बलिदान देने और मरने में अपने लोगों के साथ अग्रिम पंक्ति में हैं।

आईआरएनए के मुताबिक, देश के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहिम रईसी ने हमास के प्रमुख इस्माइल हनियेह से टेलीफोन पर बातचीत में अपने बेटों की शहादत पर संवेदना व्यक्त की. ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि इस कायरतापूर्ण हमले ने बर्बर और बच्चों की हत्या करने वाली ज़ायोनी सरकार की विनम्रता और असहायता को पहले से कहीं अधिक स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा के दावेदार निरंकुश और घृणित ज़ायोनी शासन के अपराधों में समान रूप से शामिल हैं, ज़ायोनी शासन के अपराधों के लिए उनकी चुप्पी और कायरतापूर्ण समर्थन है।

ईरान के राष्ट्रपति ने इस दर्दनाक परीक्षा पर हमास के प्रमुख के धैर्य और बलिदान की प्रशंसा की और कहा कि प्रतिरोध मोर्चे के नेता अपने लोगों के साथ कुद्स की मुक्ति के लिए बलिदान की पहली पंक्ति में हैं।

इस टेलीफोन बातचीत में हमास के प्रमुख इस्माइल हनिएह ने ईरान के राष्ट्रपति को उनके फोन कॉल और सहानुभूति की अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि इस खून से हम अपने राष्ट्र के लिए आशा और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेंगे। उन्होंने कहा कि आपराधिक दुश्मन सोचता है कि नेता दृढ़ता के बच्चों को निशाना बनाकर हमारे दृढ़ संकल्प और हमारे राष्ट्र को कमजोर कर सकते हैं, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि यह खून हमें दृढ़ता के रास्ते पर मजबूत और अधिक स्थिर बना रहा है

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के विदेश मंत्री ने कहा है कि जब हमलावर इजराइल सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों और वियना कन्वेंशन का उल्लंघन कर रहा है और राजनयिक पदों और व्यक्तियों की सुरक्षा को खतरा पैदा कर रहा है, तो इन परिस्थितियों में कानूनी रूप से अपना बचाव करना जरूरी है और यह बहुत ही जरूरी है. हमलावर को सज़ा देना ज़रूरी है.

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्री, होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने अपने जर्मन समकक्ष, अनलना बर्बॉक के साथ टेलीफोन पर बातचीत में, ईरानी के कांसुलर अनुभाग पर ज़ायोनी हमले में सात ईरानी सैन्य सलाहकारों की शहादत का उल्लेख किया। सीरिया की राजधानी दमिश्क में दूतावास ने कहा कि ईरान ने हमेशा तनाव से दूर रहने की नीति अपनाई है.

विदेश मंत्री अमीर अब्दुल्लाहियन ने उल्लेख किया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान को उम्मीद है कि जर्मनी नरसंहारक ज़ायोनी सरकार की हालिया आक्रामकता की स्पष्ट शब्दों में निंदा करेगा, यह कहते हुए कि इज़राइल एक हड़पने वाली सरकार है और फ़िलिस्तीन को भी कानूनी और वैध तरीके से अपनी रक्षा करने का अधिकार है, यही एकमात्र रास्ता है इस संबंध में मौजूदा समस्याओं का समाधान गाजा में नरसंहार और युद्ध अपराधों को समाप्त करना है।

जर्मन विदेश मंत्री ने ईद के आगमन पर मुसलमानों को बधाई देते हुए ईद-उल-फितर को शांति का दूत बताते हुए कहा कि इस तनावपूर्ण स्थिति में जर्मनी इस्लामी गणतंत्र ईरान से संयम से काम लेने का अनुरोध करता है। जर्मनी के विदेश मंत्री बर्बॉक ने दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग पर इजरायली सरकार के हमले का उल्लेख किया और कहा कि राजनयिक पदों को पूर्ण छूट प्राप्त है.

लेबनान में हिज़्बुल्लाह ने क़फ़्र शुबा क्षेत्र में कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सेना के दो सैन्य ठिकानों पर मिसाइल हमला किया है।

लेबनानी मीडिया के अनुसार, हिज़्बुल्लाह लेबनान ने एक संक्षिप्त बयान में घोषणा की है कि हमारे मुजाहिदीन ने लेबनान के माउंट काफ़र शोबा में ज़ायोनी सरकार के समाकाह नामक सैन्य अड्डे को मिसाइलों से निशाना बनाया, जो उनके लक्ष्य पर हमला कर गईं।

लेबनान में हिज़्बुल्लाह ने एक अन्य बयान में कहा है कि काफ़र शुबा में ज़ायोनी सेना के एक अन्य अड्डे पर भी मिसाइलों से हमला किया गया है, और मिसाइलों ने यहाँ भी अपना निशाना साधा है।

इन मिसाइल हमलों के बाद ज़ायोनी सरकार के युद्धक विमानों ने दक्षिणी लेबनान के अल-ख़याम शहर पर बमबारी की है. कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सेना के विमानों ने दक्षिणी लेबनान के विभिन्न क्षेत्रों पर सिलसिलेवार बमबारी की है।

भारत देश धर्म की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहां अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। सभी धर्मों के अलग-अलग त्योहार होते हैं। हिंदुओं के लिए दुर्गा पूजा, दिवाली, छठ पूजा, होली, रक्षाबंधन इत्यादि प्रमुख त्यौहार है। ईसाइयों के लिए क्रिसमस हंसी-खुशी एवं प्रसन्नता का त्यौहार है। ठीक उसी तरह यह ईद मुस्लिमो की प्रसन्नता और हर्षोल्लास का त्यौहार है। यह त्यौहार संपूर्ण इस्लामीयों का महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस त्यौहार का दूसरा नाम ईद- उल-फितर है। इसका अर्थ होता है फिर से 'खाना पीना' ईद से पहले मुसलमानों का एक महीना रमजान का होता है। रमजान के महीने में लोग रोजा रखते हैं। रोजा का मतलब होता है, केवल रात में खाना। रमजान का महीना पूरा होने पर जिस दिन चांद दिखता है उसके अगले दिन ईद का त्यौहार होता है। रमजान का महीना कठिन परिश्रम, बलिदान और आस्था का महीना होता है। ईद का इंतजार सभी लोग बेसब्री से करते हैं।

ईद मनाने की विधि

ईद के पवित्र त्यौहार का संबंध मुस्लिमो से है। 1 महीने रोजा के बाद ईद का त्यौहार आता है। रोजा में लोग सूर्योदय से पहले तथा सूर्यास्त के बाद खाना खाते हैं। इसमें बहुत धैर्य रखने की आवश्यकता होती है।

रमजान का महीना बड़ा ही पवित्र माना जाता है।

तथा इस व्रत के दौरान अपने मन में नकारात्मक विचार नहीं रखा जाता है। जैसे ही आसमान में 'ईद का चांद' निकलता है। ईद की तैयारी आरंभ हो जाती है। ईद के दिन लोग नहा– धोकर नए कपड़े पहनते हैं। और सभी मस्जिद की ओर प्रस्थान करते हैं। बुड्ढे बच्चे, तथा नवयुवक सभी मिलकर नमाज पढ़ते हैं। और खुदा की इबादत करते हैं। नवाज समाप्त होने पर सभी एक दूसरे को गले लगाकर ईद मुबारक कहते हैं। इस अवसर पर  सभी के घरों में अनेक प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। इन पकवानों में  सेवइयां बनाना बहुत महत्वपूर्ण होता है। सभी मीठी–मीठी सेवइयां खाते हैं और दूसरों को भी खिलाते हैं। इसीलिए 'ईद-उल-फितर' को 'मीठी ईद' कहकर पुकारते हैं। और इस दिन के बाद सब दिन में भी खाना शुरू कर देते हैं। ईद में कई जगह पर मेला लगता है। सभी मेला देखने जाते हैं, तथा अपने मनपसंद की चीजों को खरीदते है ।

ईद एक एकता और समता का त्यौहार है।

ईद मुस्लिमो का महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह एकता और भाईचारे का त्यौहार है। ईद के पावन अवसर पर लोग एक– दूसरे को गले लगाकर ईद मुबारक कहते हैं। इस दिन कोई दुखी और परेशान नहीं रहता है। इस दिन कोई छोटा या बड़ा नहीं माना जाता सभी एक समान होते हैं। चारों तरफ खुशियों का महौल छाया रहता है। सभी के घरों में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। सभी लोग मिलकर पकवान खाते हैं तथा अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों को भी खिलाते हैं। इस तरह से यह त्यौहार एकता और समता का त्योहार माना जाता है।

हमारे देश में हर एक त्यौहार का अपना अलग परिचय होता है। ईद भी एक ऐसा ही त्यौहार है। जहां लोग अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर एक दूसरे को गले लगाकर हर्ष और उल्लास के साथ यह पर्व मनाते हैं। ईद के दिन लोग एक दूसरे के घर जाते हैं और स्वादिष्ट पकवानें खाते हैं। यह त्यौहार आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश देता है। यह त्यौहार सभी को एक दूसरे से जोड़ता है।

ईद उल-फ़ित्र या ईद उल-फितर (अरबी: عيد الفطر) मुस्लमान रमज़ान उल-मुबारक के एक महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार मनाते हैं। जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है।

इतिहास

मुसलमानों का त्यौहार ईद रमज़ान का चांद डूबने और ईद का चांद नज़र आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख़ को मनाया जाता है। इस्लाम में दो ईदों में से यह एक है (दुसरी ईद उल जुहा या कुरबानी की ईद कहलाती है)। पहली ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनायी थी। ईद उल फित्र के अवसर पर पूरे महीने अल्लाह के मोमिन बंदे अल्लाह की इबादत करते हैं रोज़ा रखते हैं और क़ुआन करीम कुरान की तिलावत (इबादत) करके अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र या मजदूरी मिलने का दिन ही ईद का दिन कहलाता है जिसे उत्सव के रूप में पूरी दुनिया के मुसलमान बड़े हर्ष उल्लास से मनाते हैं

ईद उल-फितर का सबसे अहम मक्सद एक और है कि इसमें ग़रीबों को फितरा देना वाजिब है जिससे वो लोग जो ग़रीब हैं मजबूर हैं अपनी ईद मना सकें नये कपड़े पहन सकें और समाज में एक दूसरे के साथ खुशियां बांट सकें फित्रा वाजिब है उनके ऊपर जो 52.50 तोला चाँदी या 7.50 तोला सोने का मालिक हो अपने और अपनी नाबालिग़ औलाद का सद्कये फित्र अदा करे जो कि ईद उल फितर की नमाज़ से पहले करना होता है।

ईद भाई चारे व आपसी मेल का तयौहार है ईद के दिन लोग एक दूसरे के दिल में प्यार बढाने और नफरत को मिटाने के लिए एक दूसरे से गले मिलते हैं

ईद के दौरान जामा मस्जिद दिल्ली

उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। हालांकि उपवास से कभी भी मोक्ष संभव नहीं क्योंकि इसका वर्णन पवित्र धर्म ग्रन्थो में नहीं है। पवित्र कुरान शरीफ भी बख्बर संत से इबादत का सही तरीका लेकर पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए सर्वशक्तिमान अल्लाह की पूजा करने का निर्देश देता है।[6] ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार का सबसे मत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।

ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ होता है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं। यह दान दो किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज़ का हो सकता है, मिसाल के तौर पे, आटा, या फिर उन दो किलोग्रामों का मूल्य भी। से पहले यह ज़कात ग़रीबों में बाँटा जाता है। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें पूरे महीने के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।

ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं।

महत्त्व

ईद का पर्व खुशियों का त्योहार है, वैसे तो यह मुख्य रूप से इस्लाम धर्म का त्योहार है परंतु आज इस त्योहार को लगभग सभी धर्मों के लोग मिल जुल कर मनाते हैं। दरअसल इस पर्व से पहले शुरू होने वाले रमजान के पाक महीने में इस्लाम मजहब को मानने वाले लोग पूरे एक माह रोजा (व्रत) रखते हैं। रमजान महीने में मुसलमानों को रोजा रखना अनिवार्य है, क्योंकि उनका ऐसा मानना है कि इससे अल्लाह प्रसन्न होते हैं। यह पर्व त्याग और अपने मजहब के प्रति समर्पण को दर्शाता है। यह बताता है कि एक इंसान को अपनी इंसानियत के लिए इच्छाओं का त्याग करना चाहिए, जिससे कि एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके।

ईद उल फितर का निर्धारण एक दिन पहले चाँद देखकर होता है। चाँद दिखने के बाद उससे अगले दिन ईद मनाई जाती है। सऊदी अरब में चाँद एक दिन पहले और भारत में चाँद एक दिन बाद दिखने के कारण दो दिनों तक ईद का पर्व मनाया जाता है। ईद एक महत्वपूर्ण त्यौहार है इसलिए इस दिन छुट्टी होती है। ईद के दिन सुबह से ही इसकी तैयारियां शुरू हो जाती हैं। लोग इस दिन तरह तरह के व्यंजन, पकवान बनाते है तथा नए नए वस्त्र पहनते हैं।

ईश्वर से दुआ करने के महत्व को क़ुरआन की रौशनी में पेश किया जा रहा है।

दुआ एक तरह की इबादत है।  दुआ के ज़रिए इंसान, ख़ुदा की तरफ एक नए अंदाज़ में मुड़ता है।  जिस तरह से हर इबादत का एक विशेष प्रभाव होता है उसी तरह से दुआ का भी एक असर है जो इंसान को प्रशिक्षित करता है।

पवित्र क़ुरआन के सूर बक़रा की आयत संख्या 186 में ईश्वर कहता हैः हे रसूल, कह दो कि मैं नज़दीकतर हूं।  जब मुझसे कोई दुआ मांगता है तो मैं हर दुआ करने वाले की दुआ को सुनता हूं।  बस उनको चाहिए कि वे मेरा कहना मानें और मुझपर ईमान लाएं ताकि लक्ष्य तक पहुंच सकें।

इस आयत में कुछ बिंदु ध्यान देने योग्य हैं।

ईशवर के बंदों द्वारा उससे संपर्क बनाने का एक मार्ग, उससे दुआ करना है।  इस आयत में ईश्वर, पैग़म्बर (स) को संबोधित करते हुए कहता है कि जब मेरे बंदे तुमसे मेरे बारे में पूछें तो कह दो कि मैं बहुत नज़दीक हूं।

ईश्वर अपने बंदों से, उसकी सोच से अधिक नज़दीक है। वह उसके बहुत ही क़रीब है।  यहां कि वह इंसान की शैरग या गर्दन की रग से भी अधिक नज़दीक है।  इस बात को ईश्वर सूरे क़ाफ की आयत संख्या 16 में इस प्रकार से कहता है कि मैं बंदे की गर्दन की रग से भी अधिक उससे क़रीब हूं।

इसके बाद वह कहता है कि मैं दुआ करने वालों की दुआओं को क़बूल करता हूं जब वे मुझसे मांगते हैं।  इस आधार पर मेरे बंदों को चाहिए कि वे मेरा कहना मानें और मुझपर ईमान ले आएं।  उनको अपना रास्ता ढूंढकर गंतव्य तक पहुंचना चाहिए।

रोचक बात यह है कि इस आयत में खुदा ने सात बार अपनी ज़ात और सात ही बार बंदों की तरफ़ इशारा किया है।  इस तरह से उसने बंदों के बारे में अपनी अधिक निकटता को दर्शाया है।

वास्तव में दुआ, दिल और विचारों की जागृति के साथ एक प्रकार की आत्म जागरूकता है अर्थात सारी अच्छाइयों और भलाइयों के स्रोतों के साथ यह, ईश्वर के साथ एक आंतरिक संबन्ध है।

दुआ एक प्रकार का आंतरिक संबन्ध है जिसमें इंसान, पूरी निष्ठा के साथ अपने ध्यान को ईश्वर की ओर केन्द्रित करता है।  जिस प्रकार से दूसरी अन्य उपासनाओं का मनुष्य पर एक सिखाने वाला असर पड़ता है उसी तरह से दुआ भी अपना काम करती है।

दुआ के महत्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर के निकट कुछ ऐसे स्थान हैं जिनको बिना दुआ किये हासिल नहीं किया जा सकता।

एक विद्वान का कहना है कि जब हम दुआ करते हैं तो स्वय को उस असीम शक्ति से जोड़ लेते हैं जो सर्वशक्तिमान है।  इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि दुआ चाहे जब और चाहें जहां भी की जाए फ़ाएदेमंद है क्योंकि खुदा कहता है कि उस समय मैं बंदे के बहुत नज़दीक होता हूं।

एक ध्यान योग्य बात यह है कि ईश्वर तो हमारे निकट है लेकिन हम कहां हैं? कहने का तातपर्य यह है कि हम अपने कर्मों के कारण ही ईश्वर से दूर हो जाते हैं वर्ना ख़ुदा तो हमारे निकट है।  आयत यह भी बताती है कि ईश्वर से अगर दुआ की जाए तो वह स्वीकार की जाती है।

हालांकि ईश्वर तो सबकुछ जानता है लेकिन फिर भी दुआ करना हमारी ज़िम्मेदारी है।  इंसान की दुआ केवल उसी समय स्वीकार की जाती है जब वह ईश्वर पर पूरे भरोसे के साथ की जाए।  दुआ की एक विशेषता यह भी है कि वह, मनुष्य के विकास, उसके मार्गदर्शन, प्रशिक्षण और आराम एवं शांति का कारण है।

भारत में आज ईद-उल-फितर बड़े धार्मिक उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाई गई

दिल्ली से हमारे संवाददाता ने जानकारी दी है कि आज भारत में ईद-उल-फितर बड़े धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. देश भर में ईद-उल-फितर की प्रार्थनाओं की भावना से भरी सभाएं आयोजित की गईं, जिसमें बड़ी संख्या में इस्लाम के बच्चों ने एक महीने के उपवास और पूजा के बाद साष्टांग प्रणाम किया।

ईद की नमाज़ की मुख्य सभाएँ दिल्ली के साथ-साथ मुंबई हैदराबाद लखनऊ की जामा मस्जिदों के साथ-साथ देश के सभी प्रमुख शहरों और अन्य शहरों और कस्बों में आयोजित की गईं।

भारतीय राष्ट्रपति मुर्मू और प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय लोगों को ईद-उल-फितर की बधाई दी. अपने बधाई संदेश में भारत के राष्ट्रपति ने कहा कि ईद-उल-फितर हमें शांतिपूर्ण जीवन जीने और समाज की समृद्धि के लिए काम करने की प्रेरणा देता है.

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईद-उल-फितर की बधाई देते हुए कहा कि ईद-उल-फितर का त्योहार करुणा, एकता और शांति की भावना को मजबूत करता है और कमजोर वर्गों की मदद करता है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डॉ. रायसी ने इस्माइल हानियेह को एक संदेश भेजा है और ज़ायोनी सरकार द्वारा एक वाहन पर किए गए हमले के दौरान उनके परिवार के कई सदस्यों सहित उनके तीन बेटों की शहादत पर संवेदना व्यक्त की है। गाजा में अल-शती शिविर।

ईरान के राष्ट्रपति ने अपने शोक संदेश में इस्माइल हानियेह को भाई मुजाहिद कहकर संबोधित किया और लिखा कि अल-अल-पर हमले में क्रूर ज़ायोनी शासन की क्रूर कार्रवाई में उनके तीन बेटों और पोते-पोतियों की शहादत की खबर सुनने के बाद। शती शिविर, मैं और ईरान के लोग गहरे सदमे में हैं।

राष्ट्रपति सैयद इब्राहिम रईसी ने कहा कि इस अपराध ने निस्संदेह इस सरकार की क्रूरता और शिशुहत्या को उजागर कर दिया है और यह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार स्थिरता के मोर्चे पर अपनी लाचारी और विफलता को छिपाने की कोशिश कर रही है और किसी भी मानवीय और नैतिक सिद्धांतों से बंधी नहीं है .

ईरान के राष्ट्रपति के संदेश में कहा गया है कि दुर्भाग्य से, इतिहास के सबसे भयानक अपराधों के सामने मानवाधिकार के दावेदार न केवल दर्शक बनकर बैठे हैं, बल्कि अपनी चुप्पी और कायरतापूर्ण समर्थन से इज़राइल के लिए रास्ता बना रहे हैं. ऐसे अपराधों की पुनरावृत्ति के लिए, जो निश्चित रूप से अपराध हैं।

शोक संदेश के अंत में कहा गया है कि दुख के अवसर पर मैं आपके और आपके परिवार के लिए और प्रतिरोध मोर्चे के मुजाहिदीन की सेवा के लिए और शहीदों के रैंक की उन्नति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं आपको धैर्य और दृढ़ता प्रदान कर सकता है।

यमन के सशस्त्र बलों ने अपने देश के जलक्षेत्र में चार अमेरिकी और ज़ायोनी जहाजों को निशाना बनाया है।

अल-मसीरा नेटवर्क के मुताबिक, यमनी सशस्त्र बल के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल याह्या ने कहा कि अदन की खाड़ी में दो इजरायली जहाजों और दो अमेरिकी जहाजों पर हमला किया गया।उन्होंने कहा कि अदन की खाड़ी में दो इजरायली जहाजों (MSC डार्विन) और (MSC GINA) को निशाना बनाया गया.

याह्या ने कहा कि अमेरिकी जहाज (MAERSK YORKTOWN) के अलावा, अदन की खाड़ी में एक और अमेरिकी युद्ध अभियान चलाया गया था। उन्होंने कहा कि इन इजरायली और अमेरिकी जहाजों को कई क्रूज मिसाइलों और ड्रोन द्वारा निशाना बनाया गया था।

यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने कहा कि हम उत्पीड़ित फिलिस्तीनी राष्ट्र के प्रति अपने धार्मिक, नैतिक और मानवीय कर्तव्य को पूरा करते हुए यमन की रक्षा करना जारी रखेंगे।

याहया ने इस बात पर जोर दिया कि लाल सागर, अरब सागर और हिंद महासागर में हमारा अभियान गाजा पर इजरायली आक्रामकता और नाकाबंदी के अंत तक जारी रहेगा।

यमनी सेना ने अब तक गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी प्रतिरोध के समर्थन में लाल सागर और बाब अल-मंदब जलडमरूमध्य में कब्जे वाले क्षेत्रों की ओर जाने वाले कई अमेरिकी, ब्रिटिश और ज़ायोनी जहाजों या जहाजों को निशाना बनाया है।