
رضوی
आईये फ़ारसी सीखें-१६
ईरान में लकड़ी के हस्तकला उद्योगों में से एक क़लमकारी भी है जो बहुत ही सूक्ष्म कला है। आज की चर्चा में हम आपको क़लमकारी से परिचित कराएंगे। क़लमकारी में क़लमकार, अनेक प्रकार की लकड़ियों, हाथी के दांत, हड्डी और सीप को प्रयोग करता है। इन वस्तुओं को त्रिभुज से लेकर दसभुजाओं के आकार में काटा जाता है। इन्हें बहुत ही छोटे आकार में काटा जाता है और हर भुजा से कई भुजाएं निकलती हैं जो दो से पांच मिलीमीटर की होती हैं। इन टुकड़ों को एक दूसरे से मिलाकर चिपकाया जाता है जिससे बहुत ही सुंदर आकार अस्तित्व में आता है। क़लमकार कई भुजाओं वाले टुकड़ों को बड़ी दक्षता के साथ चिपकाता है और उन्हें सान देता है ताकि एक जैसे दिखाई दें। इस विषय पर मोहम्मद और सईद के बीच बातचीत से पूर्व इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण शब्द पर ध्यान दीजिए। बीता हुआ
कल دیروز
बाज़ार की मस्जिद مسجد بازار
कला هنر
तक्षणकला کاری) (مُنبت مُنبت
लकड़ी पर चित्रकारी معرق
मैं परिचित हुआ من آشنا شدم
हस्तकला उद्योग صنایع دستی
लकड़ी का چوبی
वे हैं آنها هستند
बहुत بسیار
सूक्ष्म ظریف
सुंदर زیبا
ठीक है या सही है درست است
किन्तु ولی
अधिक सूक्ष्म ظریفتر
हमारे पास है ما داریم
नाम اسم
क़लमकारी या जड़ाउ का काम خاتم کاری
कलाकार هنرمند
ईरानी या ईरान का ایرانی
लकड़ी چوب
लकड़ियां چوبها
छोटा کوچک
कई कोणीय چند ضلعی
वह चिपकाता है او می چسباند
जैसे مثل
त्रिकोण مثلث
एक साथ मिला कर کنار هم
लगाए जाते हैं آنها قرار می گیرند
सब همه
सतह سطح
उसे छिपा देते हैं آنها می پوشانند
किन स्थानों पर چه جاهایی
उसे प्रयोग किया जाता है آن به کار می رود
छोटा बक्सा صندوقچه
क़लमदान قلمدان
दूसरी वस्तुएं چیزهایی دیگر
इमारत ساختمان
संसद مجلس
राष्ट्रीय ملی
ढका हुआ پوشیده از
वास्तव में واقعا
क्या ऐसा नहीं है این طور نیست؟
वह है او است
उसे होना चाहिए او باید باشد
इसके साथ ही या इसके अतिरिक्त ضمنا
हाल سالن
आधार بنا
दीवार دیوار
छत سقف
अन्य سایر
उपकरण, औज़ार, وسایل ، تجهیزات
सुंदर زیبا
मोहम्मद: कल बाज़ार की मस्जिद में तक्षणकला और लकड़ी पर चित्रकारीकी कला से परिचित हुए।
محمد: دیروز در مسجد بازار با هنرهای منبت و معرق آشنا شدم
सईद: तक्षणकला और लकड़ी पर चित्रकारी ईरान के हस्तकला उद्योग में हैं।
سعید: منبت و معرق از صنایع دستی چوبی ایران هستند
मोहम्मद: ये कलाएं बहुत की सूक्ष्मव सुंदर हैं।
محمد: آنها بسیار ظریف و زیبا هستند
सईद: ठीक है। किन्तु तक्षकणकला और लकड़ी पर चित्रकारी से भी अधिक सूक्ष्म कलाएं मौजूद हैं।
سعید: درست است. ولی از منبت و معرق ، هنر ظریفتری هم داریم
मोहम्मद: इस कला का क्या नाम है ? محمد: اسم این هنر چیست؟
सईद: क़लमकारी, इस कला में ईरानीकलाकार बहुत ही छोटी व कई कोणीय आकार में कटी हुयी लकड़ियों को एक साथ चिपकाते हैं।
سعید: هنر خاتم کاری. در این هنر، هنرمند ایرانی چوبهای بسیار کوچک و چند ضلعی را به هم می چسباند.
मोहम्मद: लकड़ी पर चित्रकारी कीभांति محمد: مثل معرق؟
सईद: नहीं। क़लमकारी में बहुत हीछोटे छोटे त्रिकोण एक के बाद एकइस प्रकार एक साथ चिपकाए जाते हैंकि पूरी सतह छित जाती है।
سعید: نه. در خاتم کاری، مثلثهای بسیار کوچک کنار هم قرار می گیرند و همه سطح کار رامی پوشانند
मोहम्मद: इस सूक्ष्म कला को कहांकहां प्रयोग किया जाता है?
محمد: این هنر ظریف در چه جاهایی به کار می رود؟
सईद : छोटे छोटे बक्सों, क़लमदानोंसहित दूसरी वस्तुओं पर। ईरान की राष्ट्रीय संसद की इमारत परक़लमकारी की गयी है।
سعید : در صندوقچه ها، قلمدانها و چیزهای دیگر. ساختمان مجلس ملی ایران پوشیده از خاتم کاری است
मोहम्मद: वास्तव में यह इमारत तो बहुत बड़ी होगी? क्यों ऐसा नहीं है?
محمد: واقعا"؟ این ساختمان باید بزرگ باشد. این طور نیست؟
सईद: जी हां। इस इमारत के हाल की दीवारों के साथ ही, छत सहित अन्य सुंदर वस्तुओं पर क़लमकारीकी गयी है।
سعید: بله. ضمنا" در سالن این بنا، خاتم کاری دیوارها ، سقف و سایر وسایل زیبا است
मोहम्मद और सईद के बीच फ़ारसी में वार्तालाप को एक बार फिर।
محمد: دیروز در مسجد بازار با هنرهای منبت و معرق آشنا شدم .
سعید: منبت و معرق از صنایع دستی چوبی ایران هستند.
محمد: آنها بسیار ظریف و زیبا هستند سعید: درست است. ولی از منبت و معرق، هنر ظریفتری هم داریم محمد: اسم این هنر چیست؟
سعید: هنر خاتم کاری. در این هنر، هنرمند ایرانی چوبهای بسیار کوچک و چند ضلعی را به هم می چسباند محمد: مثل معرق؟ سعید: نه. در خاتم کاری، مثلثهای بسیار کوچک کنار هم قرار می گیرند و همه سطح کار را می پوشانند محمد: این هنر ظریف در چه جاهایی به کار می رود؟
سعید: در صندوقچه ها، قلمدانها و چیزهای دیگر. ساختمان مجلس ملی ایران پوشیده ازخاتم کاری است .
محمد: واقعا"؟ این ساختمان باید بزرگ باشد. این طور نیست؟
سعید: بله. ضمنا" در سالن این بنا، خاتم کاری دیوارها، سقف و سایر وسایل زیبا است.
क़लमकारी बहुत ही प्रशंसनीय कला है। इस सूक्ष्म कला का इतिहास ईरान में बहुत पुराना है। उदाहरण के लिए इस्फ़हान की अतीक़ जामा मस्जिद का मिंबर जिस पर क़लमकारी की गयी है, एक हज़ार से अधिक पुराना है। इस मस्जिद के मुख्य बरामदे की पूरी छत पर क़लमकारी की गयी जो कम से कम 600 वर्ष पुरानी है। क़लमकारी में अनेक प्रकार के रंगों का प्रयोग किया है। इसी प्रकार सीप हाथी दांत, हड्डी, धात के तारों की इस प्रकार प्रयोग किया गया है कि इस कला में चार चांद लग गया है। अच्छी क़लमकारी उसे कहा जाता है जिसमें छोटे आकार के चित्र चित्र हों और शीराज़, इस्फ़हान व तेहरान को इस कला का केन्द्र समझा जाता है।अलबत्ता तेहरान में अधिकांश क़लमकार शीराज़ और इस्फ़हान के हैं।
किसी बम को सभी बमों की मां कहना लज्जाजनक है, पोप फ़्रांसिस
पोप ने कहा है कि अमरीका के सबसे बड़े बम को “सभी बमों की मां” का नाम देना लज्जाजनक है।
दुनिया में कैथलिक ईसाइयों के धर्मगुरु पोप फ़्रांसिस ने उस बम को “सभी बमों की मां” कहना लज्जाजनक बताया जिसे अभी हाल में अमरीका ने पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के एक क्षेत्र में टेस्ट किया। इस बम को आधिकारिक रूप से जीबीयू-43/बी एमओएबी नाम दिया गया है।
संवाददाता के अनुसार, पोप फ़्रांसिस ने मई के चौथे हफ़्ते में अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के प्रस्तावित वेटिकन दौरे से पूर्व, शनिवार को बल दिया कि इस बम का नाम लज्जाजनक है क्योंकि “माँ ज़िन्दगी देती है जबकि बम ज़िन्दगी छीनता है।”
ग़ौरतलब है कि 13 अप्रैल को अमरीकी सेना ने पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के नंगरहार प्रांत के ‘आचीन’ शहर के उपनगरीय भाग में सबसे बड़े ग़ैर परमाणु बम का टेस्ट किया जिसमें 100 के क़रीब लोग मारे गए। मरने वालों में कथित रूप 94 मिलिटेंट्स थे।
इस बम के इस्तेमाल के कारण अफ़ग़ान जनता में भय फैल गया है।
इससे पहले भी पोप फ़्रांसिस ने अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की मैक्सिको की सीमा पर दीवार के निर्माण सहित, दुश्मनी भरी नीतियों की आलोचना करते हुए कहा था, “जो व्यक्ति पुल के बजाए दीवार की बात करे वह ईसाई नहीं है।”
पोप और मिस्र के वरिष्ठ मुफ़्ती की मुलाक़ात
कैथोलिक ईसाइयों के सबसे वरिष्ठ धर्मगुरू पोप ने मिस्र के प्रतिष्ठित अलअज़हर विश्व विद्यालय के कुलपति से मुलाक़ात की है।
मिस्र के अलअज़हर विश्व विद्यालय के कुलपति शैख़ अहमद अत्तैयब ने शनिवार को क़ाहेरा में आयोजित हुई अंतर्राष्ट्रीय शांति कान्फ़्रेंस में, जो पोप फ़्रांसिस की सम्मिलिति से आयोजित हुई, कान्फ़्रेंस में भाग लेने वालों से कहा कि सभी मिस्र और संसार में आतंकवाद की भेंट चढ़ने वालों की याद में एक मिनट का मौन धारण करें। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि आतंकवाद के पैदा होने का मुख्य कारण, हथियारों का व्यापार और अत्याचारपूर्ण प्रस्ताव जारी होने के बाद हथियारों के संदिग्ध समझौते हैं।
इस कान्फ़्रेंस में अपने भाषण में कैथोलिक ईसाइयों के सबसे वरिष्ठ धर्मगुरू पोप फ़्रांसिस ने कहा कि रचनात्मक वार्ता और युवाओं को एक दूसरे के सम्मान का पाठ सिखाए बिना कभी भी शांति हासिल नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि मानवता का भविष्य, धर्मों और संस्कृतियों के बीच वार्ता पर आधारित है और शांति की प्राप्ति तथा मतभेदों को दूर करने के लिए धर्मों के बीच बातचीत बहुत ज़रूरी है। पोप अत्यंत कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में मिस्र पहुंचे हैं क्योंकि तीन हफ़्ते पहले ही इस देश में कई चर्चों पर हमले हुए थे।
चुनाव में जनता की भरपूर उपस्थिति, शत्रु के लिए चिंता का विषयः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि विभिन्न क्षेत्रों, विशेषकर चुनाव में जनता की भरपूर उपस्थिति, शत्रु की नज़र में ईरानी राष्ट्र के वैभव का कारण बनेगी।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार को तेहरान में शिक्षकों से भेंट की। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस भेंट में चुनाव को अति महत्वपूर्ण विषय बताया। उन्होंने कहा कि इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव को विशेष महत्व प्राप्त है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि 19 मई 2017 को होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में जनता की भरपूर उपस्थिति, ईरान के वैभव और गौरव का कारण बनेगी। उन्होंने कहा कि जनता की इस प्रकार की उपस्थिति के कारण शत्रु किसी भी स्थिति में ईरानी राष्ट्र पर अपनी इच्छा को थोप नहीं सकता।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि शत्रुओं की शत्रुता के मुक़ाबले में सबसे बड़ी बाधा, विभिन्न क्षेत्रों में जनता की भागीदारी है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने स्पष्ट किया कि चुनाव का महत्वपूर्ण विषय, मतदान केन्द्रों पर जनता की भरपूर उपस्थिति है। इससे यह पता चलता है कि ईरान की जनता इस्लाम और व्यवस्था की सुरक्षा के लिए सदैव तैयार है।
शिक्षक दिवस के अवसर पर वरिष्ठ नेता ने कहा कि देश का शिक्षा विभाग यदि सही योजनाओं के अनुसार आगे बढ़ता रहे तो ज्ञान एवं विज्ञान की दृष्टि से ईरान समृद्ध होगा।
भारत, इस्लाम विरोधी प्रचार पर मुसलमानों की घोर आपत्ति
भारत के सैकड़ों मुसलमानों ने राजधानी नई दिल्ली में शनिवार को कुछ मीडिया की ओर से इस्लामी विरोधी वस्तुओं के प्रसारण पर आपत्ति जताते हुए प्रदर्शन किए।
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने एनडी टीवी चैनल और कुछ पार्टियों के विरुद्ध नारे लगाए और सरकार, सुरक्षा संस्थाओं और न्यायालय से इस प्रकार की मतभेद फैलाने वाली कार्यवाहियों से निपटने की मांग की।
प्रदर्शनकारियों ने घोषणा की है कि ज़ायोनी शासन और कुछ इस्लाम विरोधी शक्तियां, भारतीय जनता के बीच मतभेद को हवा देने और भारत के हिंदुओं और मुसलमानों को आपस में लड़ाने का प्रयास कर रही हैं।
ज्ञात रहे कि एनडी टीवी चैनल ने कुछ दिन पहले तीन तलाक़ के बारे में एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म प्रसारित करके मुसलमानों पर वासना का ग़ुलाम और महिलाओं के अधिकारों के हनन का आरोप लगाया था।
प्रदर्शनकारियों ने इसी प्रकार कहा कि एनडी टीवी और ज़ी न्यूज़ जैसे टीवी चैनल इस्राईल की वित्तीय सहायता से इस्लाम की छवि ख़राब करने का प्रयास कर रहे हैं।
ह्यूमन राइट्स वाॅच ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष 2015 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में पहुंचने के बाद से अब तक दसियों मुसलमान, हिंदु चरमपंथियों के हमले में मारे जा चुके हैं।
हज़रत अब्बास (अ) का शुभ जन्म दिवस।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेटी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा की शहादत के बाद, हज़रत अली (अ) का विवाह फ़ातिमा किलाबिया यानी हज़रत उम्मुल बनीन से हुआ, जिसका अर्थ है बेटों की मां।
वे सद्गुणों वाली एक विशिष्ट महिला थीं, जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों से प्रेम करती थीं और उनका विशेष सम्मान करती थीं। वे क़ुरान की सिफ़ारिश के मुताबिक़, पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम करती थीं। क़ुरान कहता है कि हे पैग़म्बर उन लोगों से कह दो कि मुझे तुम्हारे मार्गदर्शन के बदले में कुछ नहीं चाहिए, केवल यह कि तुम मेरे परिजनों से मोहब्बत करो। उन्होंने इमामे हसन, इमामे हुसैन, हज़रत ज़ैनब और उम्मे कुलसूम को उनके बचपने में मां का प्यार दिया और उनकी सेवा की। इसीलिए पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में उनका एक विशेष स्थान रहा। हज़रत ज़ैनब हमेशा उनके घर उनसे मुलाक़ात के लिए जाती रहती थीं।
अब्बास इब्ने अली (अ) हज़रत उम्मुल बनीन की पहली संतान थे। उनका जन्म 4 शाबान 26 हिजरी को मदीने में हुआ। उनके जन्म से उनके पिता हज़रत अली (अ) बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने उनका नाम अब्बास रखा। हज़रत अब्बास (अ) का पालन-पोषण हज़रत अली (अ) ने किया, जो ख़ुद एक पूर्ण इंसान और सद्गुणों का केन्द्र थे। इतिहास गवाह है कि हज़रत अली (अ) ने अपने बेटे अब्बास की परवरिश पर विशेष ध्यान दिया। हज़रत अब्बास भी अपने दूसरे भाई बहनों की भांति अपने पिता की ख़ास कृपा का पात्र थे। वे हज़रत अली (अ) के बुद्धिजीवी बेटों में से थे। उनकी प्रशंसा में कहा गया है कि हां, हज़रत अब्बास इब्ने अली (अ) ने ज्ञान को उसके स्रोत से प्राप्त किया है।
हज़रत अब्बास (अ) सुन्दर एवं आकर्षण व्यक्तित्व के मालिक थे, उनका सुन्दर चेहरा हर देखने वाले को आकर्षित करता था। वे हाशमी ख़ानदान में एक चांद की भांति चमकते थे। उनके पूर्वज अब्दे मनाफ़ को मक्के का चांद और पैग़म्बरे इस्लाम के पिता अब्दुल्लाह को हरम का चांद कहा जाता था। हज़रत अब्बास (अ) को हाशिम ख़ानदान का चांद कहा जाता था, जो उनके दिलकश चेहरे की सुन्दरता को ज़ाहिर करता है। इसी प्रकार वे शारीरिक रूप से बहुत शक्तिशाली थे और बचपन से ही अपने पिता की भांति बुद्धिमान और साहसी थे। उनके पिता ने उन्हें बचपन में ही तलवारबाज़ी, तीर अंदाज़ी और घुड़सवारी सिखा दी थी।
हज़रत अब्बास (अ) की वीरता और साहस देखकर लोगों को हज़रत अली की वीरता याद आ जाती थी। वे युवा अवस्था से ही अपने पिता हज़रत अली (अ) के साथ कठिन और भयानक अवसरों पर उपस्थित रहे और इस्लाम की रक्षा की। दुश्मनों के साथ युद्ध में आपकी बहादुरी देखने योग्य होती थी। इतिहास ने सिफ़्फ़ीन युद्ध में हज़रत अब्बास की वीरता के दृश्यों को दर्ज किया है। इतिहास के मुताबिक़, सिफ़्फ़ीन की लड़ाई में एक दिन हज़रत अली (अ) की सेना से एक युवा बाहर निकला, उसके चेहरे पर नक़ाब पड़ी हुई थी, चाल ढाल से वीरता, बहादुरी और हैबत झलक रही थी। शाम की फ़ौज से किसी ने इसके मुक़ाबले में आने का साहस नहीं किया। मुआविया ने अपनी फ़ौज के एक योद्धा अबू शक़ा से कहा कि इस जवान का मुक़ाबला करने के लिए मैदान में जाए। उसने कहा हे अमीर मेरी शान इससे कहीं अधिक है कि मैं उसका मुक़ाबला करूं, मेरे सात बेटे हैं, उनमें से किसी एक को भेज देता हूं ताकि उसे जाकर समाप्त कर दे। उसने अपने एक बेटे को भेजा, लेकिन एक ही झटके में उसका काम तमाम हो गया। उसके बाद उसने अपने दूसरे बेटे को भेजा, वह भी तुरंत अपने भाई के पास पहुंच गया। सातों भाई एक दूसरे का बदला लेने के लिए मैदान में उतरे, लेकिन सबके सब मारे गए। मौत के भय से दुश्मन के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं, जबकि हज़रत अली की सेना का यह जवान मैदान में पूरी शक्ति और वीरता के साथ डटा हुआ था और अपने मुक़ाबले के लिए दुश्मन को ललकार रहा था। उस समय अबू शक़ा ख़ुद मैदान में उतरा और कुछ देर ज़ोर आज़माने के बाद अपने बेटों की तरह मारा गया। यह देखकर सब हैरत में पड़ गए। दुश्मन की सेना का हर व्यक्ति जानना चाहता था कि यह जवान है कौन। हज़रत अली (अ) ने उस जवान को अपने पास बुलाया और उसके चेहरे से नक़ाब हटाया और उसके माथे को चूम लिया। सभी ने देखा कि यह जवान हज़रत अली (अ) का बेटा अब्बास है।
हज़रत अली फ़रमाते थे, बाप अपने बेटों को जो बेहतरीन मीरास देते थे, वह गुण और उत्कृष्टता है। अब्बास ने भी अपने पिता से ज्ञान की बड़ी पूंजी हासिल की और उम्र भर अपने भाई इमाम हुसैन की सेवा और मदद की। वे अपने बड़े भाईयों, इमाम हसन और इमाम हुसैन की उपस्थिति में उनकी बिना अमुमति के नहीं बैठते थे और अपनी 34 साल की उम्र में उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के बेटे या अपना स्वामी कहकर संबोधित करते रहे।
हज़रत अब्बास पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से मोहब्बत करने वाली एक आदर्श हस्ती थे। वे अपने समय के इमामों का पूर्ण रूप से अनुसरण करते थे और उनके आज्ञाकारी थे, जबकि उनके दुश्मनों से दूरी बनाकर रखते थे। हज़रत अब्बास (अ) ने आख़िरी दम तक अपने इमाम का पूर्ण समर्थन किया और उनके दुश्मनों से डटकर मुक़ाबला किया। उन्होंने अपने पिता की शहादत के बाद, अपने भाईयों इमाम हसन और इमाम हुसैन की सहायता में अपनी पूरी शक्ति लगा दी। कभी भी उनसे आगे नहीं बढ़े और कभी भी उनकी किसी बात को नहीं टाला।
हज़रत अली (अ) के मुताबिक़, समस्त नैतिक सिद्धांतों का उद्देश्य बलिदान और दूसरों को स्वयं पर वरीयता देना है और यही सबसे बड़ी इबादत है। हज़रत अली (अ) हारिस हमदानी के नाम अपने एक पत्र में लिखते हैं, जान लो कि सबसे विशिष्ट मोमिन वह है जो अपनी और अपने परिवार की जान और माल को पेश करके दूसरे मोमिनों पर वरीयता प्राप्त करता है। धर्म की मार्ग में और मानवीय महत्वकंक्षाओं की प्राप्ति में हज़रत अब्बास (अ) की जान-निसारी और क़ुर्बानी को कर्बला में देखा जा सकता है। हज़रत अब्बास (अ) इमाम हुसैन की सेना के सेनापति थे। जब यज़ीद की फ़ौज ने इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की घेराबंदी कर ली। सातवीं मोहर्रम को हज़रत अब्बास (अ) ने दुश्मन की घेराबंदी तोड़ दी। उसके तीन दिन बाद आशूर के दिन फिर से हज़रत अब्बास एक बार फिर दुश्मनों की घेराबंदी तोड़ते हुए और वीरता से लड़ता हुए फ़ुरात नदी के किनारे पहुंच गए, ताकि इमाम हुसैन (अ) के साथियों और उनके बच्चों के लिए पानी ला सकें। इस समय हज़रत अब्बास (अ) ने अत्यंत वीरता और महानता का परिचय दिया। इमाम हुसैन के साथियों के बच्चों और महिलाओं की प्यास के कारण, अत्यधिक भूख और प्यास के बावजूद फ़ुरात का ठंडा पानी नहीं पिया। बच्चों के लिए पानी लेकर जब वापस लौटे तो दुश्मन ने घात लगाकर हमला कर दिया और उनके हाथों को काट डाला और उन्हें शहीद कर दिया।
अब कर्बला कि वाक़ए को हुए लगभग 1400 वर्ष बीत रहे हैं, लेकिन इतिहास आज भी हज़रत अब्बास (अ) की बहादुरी और साहसपूर्ण कारनामों से जगमगा रहा है। शताब्दियां बीत जाने के बावजूद, आने वाली पीढ़ियां जो सत्य प्राप्त करना चाहती हैं, हज़रत अब्बास के बलिदान और साहस से प्रेरणा ले रही हैं। सलाम हो तुम पर अऐ अबुल फ़ज़्लिल अब्बास, सलाम हो तुम पर या इब्ने अली अबि तालिब (अ)।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का जन्म दिवस।
शाबान की एक विशेषता यह भी है कि इसमें किये जाने वाले सदकर्मों का बदला बढ़ा दिया जाता है।
एक कथन के अनुसार शाबान में किये जाने वाले सदकर्मों का बदला 70 गुना तक हो जाता है।
इस महीने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अपने अनुयाइयों को एकत्रित करके कहा करते थे कि क्या तुमको पता है कि यह कौन सा महीना है? फिर वे स्वंय ही कहते थे कि यह शाबान का महीना है। यही वह महीना है जिसे पैग़म्बरे इस्लाम (स़) ने अपना महीना बताया है। वे कहते थे कि इस महीने का सम्मान करो और रोज़े रखो। इस महीने में अधिक से अधिक ईश्वर की निकटता प्राप्त करने के प्रयास करते रहो। इमाम ज़ैनुल आबेदीन कहते थे कि मेरे दादा इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) से प्रेम की ख़ातिर और ईश्वर की निकटता हासिल करने के लिए इस महीने में जितना भी संभव हो रोज़े रखो। वे कहते थे कि जो भी व्यक्ति इस महीने में रोज़ा रखेगा उसको ईश्वर, विशेष उपहार देगा और उसको स्वर्ग में भेजेगा।
आज शाबान की पांच तारीख़ है। आज ही के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सुपुत्र, इमाम अली के पोते और शिया मुसलमानों के चौथे इमाम, इमाम ज़ैनुल आबेदीन का जन्म हुआ था। हालांकि इमाम ज़ैनुल आबेदीन या इमाम सज्जाद का नाम अली था किंतु अधिक उपासना और तपस्या के कारण उन्हें ज़ैनुल आबेदीन के नाम से ख्याति मिली जिसका अर्थ होता है उपासना की शोभा। कहते हैं कि जिस समय नमाज़ पढ़ने के लिए इमाम सज्जाद वुज़ू के लिए जाते थे तो उनके चेहरे का रंग पीला पड़ जाता था। जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि क्या तुमको नहीं पता है कि वुज़ू करके इन्सान किसकी सेवा में उपस्थित होने जाता है? उनके बारे में कहा जाता था कि जब वे ईश्वर की उपासना में लीन हो जाते थे तो उनका सारा ध्यान ईश्वर की ही ओर होता था।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने अपना जीवन इस्लाम के बहुत ही अंधकारमय काल में व्यतीत किया। यही वह काल था जिमसें इमाम हुसैन जैसे महान व्यक्ति को उनके परिजनों के साथ करबला में केवल इसलिए शहीद कर दिया गया क्योंकि वे समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करके उसमें सुधार करना चाहते थे। यही वह दौर था जिसमें यज़ीद के सैनिकों ने पवित्र काबे पर (मिन्जनीक़) से पत्थर बरसाए थे। उस काल में सरकारी ख़ज़ाने का खुलकर दुरूपयोग किया जा रहा था। शासक, विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। इस्लामी शिक्षाओं में फेरबदल किया जा रहा था। शासकों को खुश करने के लिए उसकी इच्छानुसार धर्म की व्याख्या की जाती थी। इमाम सज्जाद के काल में शासकों का पूरा प्रयास यह रहता था कि मुसलमानों को इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं से दूर रखा जाए और उनको उनके रीति-रिवाजों और परंपराओं में ही उल्झा दिया जाए। एसे अंधकारमय काल में इमाम ज़ैनुल आबेदीन, जहां एक ओर वास्तविक इस्लाम की रक्षा के लिए प्रयासरत थे वहीं पर मुसलमानों के कल्याण के लिए एक केन्द्र की स्थापना भी करना चाहते थे। उस काल की विषम परिस्थितियों में इमाम सज्जाद ने दुआओं और उपदेशों के माध्यम से समाज सुधार का काम शुरू किया।
उन्होंने दुआओं और उपदेशों के रूप में इस्लामी शिक्षाओं का प्रसार किया। हालांकि तत्कालीन शासकों का यह प्रयास रहता था कि लोगों को इमाम से दूर रखा जाए और वे उनकी गतिविधियों पर पूरी तरह से नज़र रखते थे इसके बावजूद इमाम सज्जाद अपने प्रयासों से पीछे नहीं हटे बल्कि अपने मिशन को उन्होंने जारी रखा। क्योंकि शासक उनके प्रति बहुत संवेदनशील रहते थे इसलिए इमाम ने उपदेशों के माध्यम से लोगों को सही बात बताने के प्रयास किये।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, वंचितों की सहायता भी करते थे। वे रात के समय अपनी पीठ पर रोटियों की गठरी लादकर ग़रीबों को बांटने निकलते थे। वे यह काम बिना किसी को बताए ख़ामोशी से करते थे। जब इमाम सज्जाद वंचितों और ग़रीबों की सहातया करते थे तो उस समय वे अपने चेहरे को ढांप लिया करते थे ताकि सहायता लेने वाला उनको पहचानकर लज्जित न होने पाए। वे केवल रोटियां ही ग़रीबों को नहीं देते बल्कि उनकी आर्थिक सहायता भी किया करते थे। लोगों की सहायता वे इतनी ख़ामोशी से करते थे कि सहायता लेने वाले लोग उन्हें पहचान नहीं पाते थे। जब इमाम सज्जाद शहीद हो गए तो उसके बाद उन लोगों को पता चला कि लंबे समय से उनकी सहातया करने वाला अंजान इंसान और कोई नहीं इमाम ज़ैनुल आबेदीन थे। इस प्रकार से उन्होंने यह पाठ दिया कि मुसलमानों को अपने मुसलमान भाई का ध्यान रखना चाहिए और छिपकर उनकी सहायता करनी चाहिए।
इस्लाम सदैव से समाज में समानता का पक्षधर रहा है। इस्लाम की दृष्टि में किसी भी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर धन-दौलत, जाति, मान-सम्मान, सामाजिक स्थिति, पद, रंगरूप, भाषा, विशेष भौगोलिक क्षेत्र या किसी अन्य कारण से वरीयता प्राप्त नहीं है। इस्लाम के अनुसार केवल वहीं व्यक्ति सम्मानीय है जिसके भीतर ईश्वरीय भय पाया जाता हो। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कई बार इस बात को लोगों तक पहुंचाया कि इस्लाम की दृष्टि में सम्मान का मानदंड ईश्वरीय भय के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। वे कहते थे कि मुसलमान, आपस में भाई हैं और उनमें सर्वश्रेष्ठ वह है जिसके भीतर अधिक ईश्वरीय भय पाया जाता है।
बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के पश्चात इस्लामी शिक्षाओं के प्रभाव को कम किया जाने लगा। उमवी शासकों के सत्तासीन होने के साथ ही इस बात के प्रयास किये जाने लगे कि वास्तविक इस्लाम को मिटाकर शासकों के दृष्टिगत इस्लाम को पेश किया जाए। उस काल में अरब मुसलमानों को प्रथम श्रेणी का और ग़ैर अरब मुसलमानों को दूसरी और तीसरी श्रेणी का मुसलमान बताया जाने लगा। अरब मुसलमानों को ग़ैर अरब मुसलमानों पर वरीयता दी जाने लगी। दास प्रथा, जो इस्लाम के उदय से पूर्व वाले काल में प्रचलित थी उसे पुनर्जीवित किया जाने लगा।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन, समाज में पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं को प्रचलित करना चाहते थे। यही कारण है कि जब तत्कालीन समाज में दास प्रथा को पुनः प्रचलित करने के प्रयास तेज़ हो गए तो इमाम सज्जाद ने दासों को ख़रीदकर ईश्वर के मार्ग में उन्हें आज़ाद करना शुरू किया। वे दासों के साथ उठते-बैठते और उनके साथ खाना खाते थे। इमाम सज्जाद दासों को अच्छे शब्दों से संबोधित करते थे। उनके इस व्यवहार से दास बहुत प्रभावित होते थे क्योंकि समाज में उन्हें बहुत ही गिरी नज़र से देखा जाता था। कोई उनसे सीधे मुंह बात करने को तैयार नहीं था। दासों को पशु समाज समझा जाता था और उनके साथ पशु जैसा ही व्यव्हार किया जाता था। दासों को जब इमाम सज्जाद से एसा व्यवहार देखने को मिला तो वे उनसे निकट होने लगे। इस प्रकार इमाम ज़ैनुलआबेदीन ने दासों को परोक्ष और अपरोक्ष रूप में इस्लामी शिक्षाओं से अवगत करवाया। यही कारण है कि आज़ाद होने के बाद भी वे लोग इमाम से आध्यात्मिक लगाव रखते थे। इस प्रकार से अपनी विनम्रता और दूरदर्शिता से इमाम ज़ेनुल आबेदीन ने अपने दौर के अंधकारमय और संवेदनशील काल में भी वास्तविक इस्लाम को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस।
3 शाबान सन 4 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और हज़रत अली अलैहिस्सलाम तथा हज़रत फ़ातेमा ज़ेहरा सलामुल्लाह अलैहा के दूसरे बेटे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ।
पैग़म्बरे इस्लाम को जैसे ही इस जन्म की सूचना मिली वह हज़रत फ़ातेमा के घर पहुंचे और असमा से कहा कि शिशु को मेरे पास लाओ। असमा नन्हें शिशु को सफ़ेद कपड़े में लपेट कर पैग़म्बरे इस्लाम के पास ले गईं। पैग़म्बरे इस्लाम ने बच्चे के दाहिने कान में अज़ान और बाएं कान में इक़ामत कही। जब बच्चे का नाम रखने की बात आई तो ईश्वरीय फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल ईश्वर का संदेश लेकर पैग़म्बरे इस्लाम के पास पहुंचे और कहा कि मुबारकबाद देने के बाद कहा कि हे ईश्वर के पैग़म्बर ईश्वर कह रहा है कि आपके लिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम वही दर्जा रखते हैं जो हारून का हज़रत मूसा के लिए था। इस लिए हज़रत अली के पुत्र का नाम हज़रत हारून के बेटे शुबैर के नाम पर रखिए जिसे अरबी भाषा में हुसैन कहा जाता है।
इस्लामी इतिहासकार लिखते हैं कि इस्लाम से पहले हसन, हुसैन और मुहसिन नाम नहीं थे और किसा का यह नाम नहीं रखा जाता था। यह स्वर्ग के नाम थे जो हज़रत जिबरईल ने पैग़म्बरे इस्लाम को पेश किए। पैग़म्बरे इस्लाम ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जन्म के सातवें दिन भेड़ की क़ुरबानी दिलवाई।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का पालन पोषण जिस परिवार में हुआ वह बड़े पवित्र वातावरण का परिवार था तथा उनका पालन पोषण करने वाले महानतम शिष्टाचारिक गुणों से सुशोभित थे। एसे लोग थे जो पूरे संसार के इंसानों के मार्गदर्शन का दायित्व संभालते हैं। इन गोदियों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का पालन पोषण हुआ। कृपा के प्रतीक पैग़म्बरे इस्लाम, न्याय के दर्पण हज़रत अली और महानताओं की पर्याय हज़रत फ़ातेमा की छत्रछाया में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व में गुण और महानतएं पिरोई गईं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने शुरू के छह साल और कुछ महीने पैग़म्बरे इस्लाम की छाया में व्यतीत किए और इस दौरान पैग़म्बरे इस्लाम उनका विशेष रूप से ख़्याल रखते थे। पैग़म्बरे इस्लाम को कई बार यह कहते सुना गया कि हुसैन मुझसे हैं और मैं हुसैन से हूं।
मिस्र की सुन्नी महिला विद्वान बिन्तुश्शाती ने इमाम हसन और इमाम हुसैन से पैग़म्बरे इस्लाम के गहरे प्रेम के बारे में लिखती है कि हसन और हुसैन नाम पैग़म्बरे इस्लाम के लिए दिल में उतर जाने वाली वाणी के समान थे। यह नाम बार बार दोहराकर पैग़म्बरे इस्लाम को कभी थकन नहीं होती थी। वह हमेशा कहते थे कि यह मेरे बच्चे हैं। ईश्वर ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को यह बड़ी नेमत प्रदान की कि पैग़म्बरे इस्लाम के वंश को उनकी संतान के द्वारा आगे बढ़ाया और इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम के माध्यम से पैग़म्बरे इस्लाम का वंश आगे चला।
जब पैग़म्बरे इस्लाम का स्वर्गवास हो गया तो उसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम को ख़ेलाफ़त मिलने तक 25 साल का समय बीता। इस अविध में इमाम हुसैन अपने ज्ञान, विवेक और अपार साहस के कारण बहुत मशहूर रहे। वह इस्लामी समाज में आने वाले उतार चढ़ाव पर नज़र रखते और हर ज़रूरी मदद करते थे। उन्होंने महत्वपूर्ण कार्यों में बड़े साहस के साथ अपनी भूमिका निभाई। जब भी दान और भलाई की बात आती इमाम हुसैन का ज़िक्र ज़रूर होता था।
एक दिन एक अरब किसी बियाबान से मदीना पहुंचा और उसने पूछा कि शहर का सबसे बड़ा दानी इंसान कौन है? लोगों ने उसे बताया कि हुसैन सबसे बड़े दानी इंसान हैं। वह इमाम हुसैन के पास पहुंचा। उस समय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम नमाज़ पढ़ रहे थे। नमाज़ ख़त्म हो जाने के बाद उसने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अपनी ज़रूरत के बारे में बताया। इमाम हुसैन अपनी जगह से उठे और घर में गए और चार हज़ार दीनार एक कपड़े में लपेट कर जाए और उसे दे दिया। जब उस अरब ने उदारता का यह दृष्य देखा तो उसने कहा कि दानी व्यक्ति कभी नहीं मरता, कभी ओझल नहीं होता उसकी जगह आसमानों में होती है और हमेशा सूरज की भांति चमकता रहता है।
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शिष्टाचार में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक आदर्श थे वह आज ही सारी दुनिया में सूरज की भांति प्रकाशमान हैं। उनसे सब प्रेम करते हैं। उस समय भी सब उनकी श्रद्धा रखते थे यदि उस समय कहा जाता कि इन्हीं लोगों में से कुछ लोग एक दिन इमाम हुसैन को शहीद कर देंगे तो कोई यक़ीन नहीं कर सकता था।
जब हज़रत अली शहीद कर दिए गए तो फिर इमाम हुसैन के जीवन का एक नया दौर शुरू हुआ। अपने भाई इमाम हसन की इमामत के काल में भी उन्होंने ईश्वरीय धर्म के प्रचार के लिए लगातार संघर्ष किया और इमाम हसन की शहादत के बाद समाज के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी अपने हाथ में ली। इसी काल में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम करबला का कारनामा अंजाम दिया। जब इमाम हसन की इमामत का दौर था तब भी लोग अपनी समस्याएं लेकर इमाम हुसैन के पास जाया करते थे और वह सबकी ज़रूरतें पूरी किया करते थे।
इमाम हसन की शहादत के बाद लगभग दस साल तक इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इमामत का दायित्व निभाया। यह कालखंड इमाम हुसैन के बेमिसाल साहस, न्यायप्रेम और महानता का साक्षी है। इस कालखंड में बड़े महान कार्य इमाम हुसैन ने अंजाम दिए। वैसे जिस कारनामे के लिए इमाम हुसैन सबसे अधिक प्रसिद्ध हुए वह उनके जीवन के अंतिम दिनों में कर्बला में अंजाम पाने वाला कारनामा है। इमाम हुसैन का नाम कर्बला की क्रान्ति की याद से जुड़ा हुआ है। अत्याचार के मुक़ाबले में उनके संघर्ष की स्वर्णिम कहानी इतिहास के पन्नों पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। उन्होंने बहादुरी, न्याय प्रेम और बलिदान का वह पाठ दिया जो कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। पैग़म्बरे इस्लाम ने एक अवसर पर फ़रमाया कि मोमिन बंदों के दिलों की गहराई में हुसैन की मोहब्बत छिपी हुई है वह स्वर्ग के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा हैं। क़सम उसकी जिस के हाथ में मेरी ज़िंदगी है, हुसैन की महनता आसमानों में ज़मीन से ज़्यादा है, वह आकाश की शोभा हैं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम आशूर की महान संस्कृति के जनक और दुनिया व इतिहास की महाक्रान्ति के नायक हैं। वह महान व्यक्तित्व हैं जिसने इस्लाम की रक्षा के लिए उमवी सेनाओं के तूफ़ान से ख़ुद को टकरा दिया और आख़िरी सांस तक मुसलमानों की गरिमा की रक्षा के लिए बहादुरी से लड़ते रहे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का पूरा जीवन बहादुरी और दिलेरी की कहानियों से भरा हुआ है। महान विचारक शहीद मुतह्हरी इस बारे में कहते हैं कि यदि कोई कहे कि उसने हुसैन जैसी हस्ती के व्यक्तित्व को समझ लिया है तो वह अतिशयोक्ति कर रहा है, मैं तो एसी बात कहने की जुरअत नहीं कर सकता अलबत्ता मैं बस इतना कह सकता हूं कि जहां तक मैंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पहचाना और उनके जीवन के बारे में पढ़ा है और उनकी बातों का अध्ययन किया है उसके आधार पर मैं इतना कह सकता हूं कि इमाम हुसैन का व्यक्तित्व शौर्य, उत्साह, महानता, दृढ़ता और प्रतिरोध का पर्याय है।
चुनाव, देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को पूरा करते हैं: वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने चुनावी प्रक्रिया सहित विभिन्न क्षेत्रों में जनता की भागीदारी को निर्णायक बताया है।
मज़दूर दिवस के अवसर पर ट्रेड यूनियन के अधिकारियों और मज़दूरों के समूह को संबोधित करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा कि मैदान में जनता की भरपूर उपस्थिति के ही कारण ईरान से दुश्मन और दुश्मन के युद्ध का साया हमेशा दूर रहा है और चुनाव सहित विभिन्न मैदानों में जनता की भरपूर उपस्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा में निर्णायक भूमिका रखती है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि ईरान की जनता कर्म के मैदान में मौजूद रही तो देश भी सुरक्षित रहेगा। उन्होंने कहा कि जनता की कर्म के मैदान में उपस्थिति के कारण ही हमारे दुश्मन ईरान के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कठिन कार्यवाही से बचते रहे हैं।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि दुश्मन, राजनैतिक मैदान में ईरानी जनता की उपस्थिति से भयभीत हैं। उन्होंने कहाकि यह एक एेसी वास्तविकता है जो दुश्मन को पीछे हटने पर विवश कर देती है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने राष्ट्रपति चुनाव और नगर परिषद चुनाव में जनता की भरपूर उपस्थिति पर बल देते हुए कहा कि दुश्मन कर्म के मैदान में जनता की वास्तविक अर्थों में भागीदारी से डरता है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पिछले चालीस वर्षों के दौरान ईरान की जनता और इस्लामी व्यवस्था के मध्य पाए जाने वाले गहरे संबंध की प्रशंसा करते हुए कहा कि क्षेत्र में ईरान का विकास और प्रगति, प्रतिष्ठा और प्रभाव, जनता और सरकार के मध्य संबंध और सहयोग की देन है।
वरिष्ठ नेता ने राष्ट्रपति चुनाव के सभी छह प्रत्याशियों को सलाह दी है कि वह अपनी नीयतों में निष्ठा पैदा करें और जनता की सेवा और विशेषकर कमज़ोर वर्ष की सेवा के लिए आगे आएं और पिछड़ेवर्ग का खुलकर समर्थन करें।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ ने विभिन्न देशों में राजनैतिक व सामाजिक मैदान में मज़दूरों की भूमिका और इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से आज तक ईरान के मज़दूर वर्ग को इस्लामी व्यवस्था के सामने ला खड़ा करने के बारे दुश्मनों के प्रयासों की ओर संकेत करते हुए कहा कि समस्त कुप्रयासों के बावजूद ईरान के मज़दूरों ने हमेशा इस्लामी व्यवस्था का समर्थन किया और वास्तव में हमारे सभ्य परिश्रमी वर्ग ने इस पूरे काल में दुश्मनों के मुंह पर ज़ोरदार थप्पड़ रसीद किए हैं।
अधिकतर इस्लामी देशों में नहीं है वास्तविक इस्लाम।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि धर्मविरोधी शक्तियां, पूरे विश्व में इस्लामी पहचान को मिटाने के प्रयास में व्यस्त हैं।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने गुरूवार को तेहरान में 83 देशों के क़ारियों से भेंट की। इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने पवित्र क़ुरआन को समझने और उसपर अमल करने को इस्लामी राष्ट्र की प्रतिष्ठा का कारण बताया। उन्होंने कहा कि इस समय धर्मविरोधी शक्तियां, पूरी शक्ति के साथ इस्लामी पहचान मिटाने के लिए प्रयास कर रही हैं।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लामी पहचान, शत्रु के वर्चस्व के फैलने में सबसे बड़ी बाधा है। उन्होंने कहा कि पवित्र क़ुरआन की शिक्षाएं, इस्लामी राष्ट्रों के सार्थक और गौरवपूर्ण जीवन का कारण हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि वर्तमान समय में इस्लामी जगत के बहुत से देशों पर पश्चिम के सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक वर्चस्व को स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि कई इस्लामी देशों के पास इस्लामी पहचान नहीं है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि एेसी स्थिति में इस्लाम के शत्रु, एेसे देशों में वर्सचस्व स्थापित करके मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा कर रहे हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि क़ुरआन से दूरी के कारण शत्रु इसका दुरूपयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि अमरीका और ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में इस समय इस्लामी देशों की स्थिति चिंता जनक है लेकिन यदि इस्लामी पहचान को बाक़ी रखा जाए तो समस्त समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि बड़े खेद की बात है कि बहुत से मुसलमान राष्ट्र, इस्लामी शिक्षाओं से दूर हैं एेसे में पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं का अधिक से अधिक प्रचार और प्रसार किया जाए।