
رضوی
'मुहम्मद' मक़्बूज़ह ज़मीनों में सबसे लोकप्रिय नाम
तुर्की अनातोलिया समाचार एजेंसी के हवाले से, इन आँकड़े के आधार पर 2630 नवजात मुस्लिम बच्चों के नाम मोहम्मद रखे गऐ, और 1414यहूदी बच्चे के नामकरण नौवआम दिया गया।
इसी तरह 480 नवजात मुस्लिम लड़कियों के नाम "मर्यम" और 1,445 यहूदी नवजात लड़कियों के नाम नौवआ से नामित हुईं।
इन आंकड़ों के आधार पर 844 बच्चे "अहमद" नाम के साथ नामित हुऐ।
इसराइल शासन द्वारा सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मक़्बूज़ह क्षेत्र की जनसंख्या85 लाख थी, और उस में से 20 प्रतिशत कि अनुमान है लगभग एक मिल्युन 400 हजार लोग, अरबों के रूप में रह रहे हैं।
हज़रत ईसा मसीह का शुभ जन्म दिवस
आज हज़रत ईसा मसीह का शुभ जन्म दिवस है जिन्होंने मानव जाति को आपस में एक दूसरे के साथ प्रेम करने की रीति सिखाई।
ईसा मसीह पर सलाम हो जो ईश्वर की निशानी और शांति की शुभसूचना देने वाले हैं। उनके आगमन से मानवता ने दोस्ती व मोहब्बत सीखी। उनका वजूद ग़रीबों के लिए आसरा था। वह ग़रीबों के इतने हमदर्द थे कि धनवान उनके धर्म को ग़रीबों से विशेष समझते थे।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश बहुत ही हैरत में डालने वाली घटना है जिसका पवित्र क़ुरआन में उल्लेख है। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम अपनी पवित्र मां के पेट से चमत्कार के ज़रिए पैदा हुए हालांकि हज़रत मरयम का कोई शौहर नहीं था। ईश्वर पवित्र क़ुरआन में हज़रत इमरान की बेटी हज़रत मरयम अलैहस्सलाम के बारे में आया है कि वह चरित्रवान व सदाचारी महिला थीं। इस महान महिला को बचपन से ही ईश्वर पर गहरी श्रद्धा थी और उपासना व आत्मशुद्धि के ज़रिए आध्यात्म के उस चरण पर पहुंची कि उनके पास स्वर्ग से खाना आने लगा। संगीत
एक दिन हज़रत मरयम ईश्वर की उपासना में लीन थीं कि अचानक ईश्वरीय संदेश ‘वही’ लाने वाले फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल उनके पास पहुंचे और उन्हें एक बेटे के जन्म की शुभसूचना दी। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के मरयम सूरे की आयत नंबर 16 से 21 में इस घटना का उल्लेख है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम उन महान ईश्वरीयत दूतों में हैं जिनका पवित्र क़ुरआन में बहुत सम्मान के साथ उल्लेख है। उन्हें ईश्वर की बात और ईश्वर की आत्मा की उपाधि के रूप में याद किया गया है। पवित्र क़ुरआन में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का 45 बार उल्लेख है और कई बार उन्हें मसीह के ख़िताब से याद किया गया है। उनकी मां हज़रत मरयम दुनिया की सदाचारी व चुनी हुयी महिलाओं में हैं। उन्होंने तपस्या से ईश्वर का सामिप्य हासिल किया। यहां तक कि ईश्वरीय फ़रिश्ते ने उन्हें हज़रत मसीह के शुभ जन्म की ख़ुशख़बरी दी।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का जन्म पवित्र ईश्वर की निशानियों में है कि उसने अपनी कुछ मख़लूक़ की पैदाइश को किसी कारण के अधीन नहीं रखा है। कुछ लोगों ने हज़रत ईसा के बिना बाप के जन्म को उनके ईश्वर होने की दलील दी जबकि कुछ लोगों ने इसे उनकी मां पर लाछन लगाने के लिए एक सुबूत माना या उनकी पैदाइश पर ही शक किया। ईसाइयों का एक गुट पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से मिलने मदीना पहुंचा। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम से बातचीत के दौरान हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की बिना बाप के पैदाइश को उनके ईश्वर होने का चिन्ह कहा। इस बीच पैग़म्बरे इस्लाम पर सूरे आले इमरान की आयत नंबर 59 उतरी जिसमें ईश्वर ने उनके जवाब में कहा, “मरयम के बेटे ईसा की पैदाइश आदम की पैदाइश की तरह है (बल्कि आदम की पैदाइश अधिक अहम है)” अगर बिना बाप के पैदा होना उनके ईश्वर होने का चिन्ह है तो फिर हज़रत आदम को भी जिन्हें बिना मां-बाप के पैदा किया गया ईश्वर माने हालांकि उनके बारे में किसी ने इस प्रकार की बात नहीं कही है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का जिस दौर में जन्म हुआ वह अत्याचार से भरा हुआ दौर था। वह ऐसा दौर था जिसमें एक ईश्वरीय दूत के वजूद की ज़रूरत महसूस हो रही थी ताकि लोगों का मार्गदर्शन हो और वे पथभ्रष्टता से मुक्ति पाएं। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने अपनी पैग़म्बरी का एलान किया और लोगों को सदाचारिता व एकेश्वरवाद की ओर बुलाया। उन्होंने बनी इस्राईल की मुक्ति और उनके बीच व्याप्त गुमराही को ख़त्म करने के लिए बहुत कठिनाई झेली और बहुत बलिदान दिया। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम बैतुल मुक़द्दस में विद्वानों के क्लास में पहुंचते, उनकी बात सुनते और उस पर विचार करते थे। वह देखते थे कि लोग बड़ी आसानी से इस तरह की बात सुनकर उस पर विश्वास कर लेते थे। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम इस तरह ख़ुद को उनके साथ समन्वित नहीं कर सके और अपने विचार पेश करने के लिए लोगों के बीच आ गए और सत्य के ज़रिए विद्वानों के साथ बहस की यहां तक कि कुछ ज्योतिष हज़रत ईसा पर क्रोधित हुए और उनके सवालों को उन्होंने नज़रअंदाज़ किया। धीरे-धीरे हालात ऐसे हो गए कि जब भी हज़रत ईसा मसीह कोई बात कहते लोग उनकी बात पूरे ध्यान से सुनते। इस प्रकार वे लोग लाजवाब होने लगे जिनकी ग़लत आस्था थी। उस समय तक कोई ज्योतिषों की ग़लत आस्था के ख़िलाफ़ बहस नहीं करता या अपनी बात को ज्योतिषियों की बात पर वरीयता देता। लेकिन हज़रत ईसा उनकी आपत्तियों पर ध्यान नहीं देते। ज्योतिषियों में क्रोध व द्वेष भी हज़रत ईसा को उनकी शैली से नहीं रोक सका बल्कि वे उनके ख़िलाफ़ सवालों की भरमार करते और अपने तर्क से उन्हें लाजवाब कर देते थे।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर ईश्वरीय संदेश वही उतरती थी। ईश्वर ने उन्हें इंजील ग्रंथ के साथ लोगों के मार्गदर्शन के लिए नियुक्त किया। वह 30 साल की उम्र में पैग़म्बर नियुक्त हुए और लोगों को अपनी शिक्षा की ओर बुलाते और इस बात की कोशिश करते कि यहूदियों को पथभ्रष्टता से बचाएं और उन वर्जित व वैध चीज़ों को उनके सामने बयान करें जिनके बारे में उनमें मतभेद हैं। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की एक ज़िम्मेदारी यह भी थी कि वह अपने बाद आने वाले ईश्वरीय दूत अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के आगमन की शुभ सूचना दें कि जिनका नाम बाइबल में ‘अहमद’ है। ईश्वर ने इस घटना को हज़रत ईसा की ज़बान से यूं बयान किया है, “और जब ईसा बिन मरयम ने कहा, हे बनी इस्राईल! निःसंदेह मैं ईश्वर की ओर से तुम्हारी ओर भेजा गया हूं और तौरैत की पुष्टि करता हूं और तुम्हे अपने बाद आने वाले पैग़म्बर की शुभसूचना देता हूं जिसका नाम अहमद है।”
इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के उच्च स्थान के बारे में कहते हैं, “इस्लाम में हज़रत ईसा का बहुत सम्मान है। उन्हें बहुत बड़ा ईश्वरीय दूत माना है। उनका और उनकी मां हज़रत मरयम का पवित्र क़ुरआन में बहुत समर्थन किया गया है। हम मुसलमान हज़रत मसीह को ईश्वर का बड़ा पैग़म्बर मानते हैं। क़ुरआन में हज़रत मसीह को बड़ा पैग़म्बर कहा गया है।” एक अन्य स्थान पर इमाम ख़मैनी कहते हैं, “हज़रत ईसा मसीह का पूरा वजूद ही चमत्कार था। वह ऐसी मां से पैदा हुए जिन्हें किसी पुरुष ने छुआ नहीं था। चमत्कार यह था कि उन्होंने पालने में बात किया। यह चमत्कार था कि मानवता के लिए शांति व अध्यात्म लाए। ईसा मसीह शांति के दूत थे और वे चाहते थे कि दुनिया में शांति रहे।”
मानव जाति की मुक्ति का अंतिम नुस्ख़ा पेश करने वाले धर्म के रूप में इस्लाम, दूसरे आसमानी धर्म और ईश्वरीय दूतों की पुष्टि करता है और सबसे उनके सम्मान का आहवान करता है। इसी तरह दूसरे आसमानी धर्मों की तरह इस्लाम भी एकेश्वरवाद का ध्वजवाहक है। ईश्वर इस बारे में पवित्र क़ुरआन के निसा सूरे की आयत नंबर 136 में कहता है, “हे ईमान लाने वालो! ईश्वर, उसके पैग़म्बरे और उस पर उतरे ग्रंथ और उससे पहले उतरने वाले ग्रंथों पर आस्था रखो तो जो कोई भी ईश्वर, उसके फ़रिश्तों, उसके पैग़म्बरों व किताबों का इंकार करे तो वह पथभ्रष्टता में है।” इस्लाम ने सभी ईश्वरीय दूतों की पुष्टि की है और मुसलमान भी सभी ईश्वरीय दूतों को मानते हैं। इन महापुरुषों के नैतिक व शैक्षिक निर्देशों का पालन, मुक्ति के ख़ज़ाने तक पहुंचाने वाले मानचित्र की तरह है।
ईरान में ईसाई हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस का जश्न मनाते हैं। तेहरान, इस्फ़हान और तबरीज़ जैसे बड़े शहरों में दुकानों के शोकेस, सुपर मार्केट व होटलों के प्रवेश द्वार और इन शहरों में ईसाई मोहल्लों में क्रिस्मस ट्री लाल, हरे और सुनहरे रंग के उपहारों के पैकेट से सजे होते हैं। ईरान में कुछ ईसाई 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हैं और पहली जनवरी को नव वर्ष का जश्न मनाते हैं जबकि अर्मनी ईसाई 6 जनवरी को क्रिसमस मनाते हैं।
ईरान में ईसाइयों, यहूदियों और ज़रतुश्तियों को धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता दी गयी है और ईरानी संसद में उनका प्रतिनिधित्व भी है। ये अल्पसंख्यक पूरी आज़ादी से अपने धार्मिक समारोह का आयोजन करते हैं।
ईरान में एक अर्मनी ईसाई राफ़ी मोरादयान्स का कहना है, “किसी भी इस्लामी देश में ईसाई उस तरह क्रिसमस का जश्न नहीं मना सकते जिस तरह हम ईरान में मनाते हैं।”
ईरान की 8 करोड़ की आबादी का 97 फ़ीसद हिस्सा मुसलमान है और 3 फ़ीसद ग़ैर मुसलमान है। इसके बावजूद इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान में आसमानी धर्मों के अनुयाइयों को बहुत से मामलों में मुसलमानों के समान अधिकार हासिल हैं।
30 दिसंबर 2009 का कारनामा, ईरानी व्यवस्था की शक्ति का परिचायकः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने 30 दिसंबर 2009 की घटना के अवसर पर इस अनुदाहरणीय कारनामे और जनता की वैचारिक शक्ति को इस्लामी व्यवस्था की शक्ति का एक उदाहरण बताया।
वरिष्ठ नेता ने 9 दैय 1388 बराबर 30 दिसंबर 2009 के कारनामे की वर्षगांठ के पूर्व अपने एक संबोधन में इस्लाम से सम्राज्यवादियों की दुश्मनी और द्वेष तथा इस्लामी शासन व्यवस्था को समाप्त करने के उनके प्रयासों की ओर संकेत किया।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने मंगलवार को कहा कि साम्राज्यवादी शक्तियां, इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र के संकल्प तथा उसकी भौतिक व अध्यात्मिक शक्ति छीन लेना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि इसके मुक़ाबले में इस शक्ति को सुरक्षित रखकर इसमें दिन-प्रतिदिन वृद्धि किए जाने की आवश्यकता है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक कथन की ओर संकेत करते हुए कहा कि मानवीय समाज में भलाई और कल्याण की प्राप्ति, शक्ति की छाया में संभव है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लाम की छाया में प्राप्त होने वाली सैन्य शक्ति और क्षेत्रीय मामलों में उसका प्रभाव, वर्चस्ववादी शक्तियों के क्रोध का कारण बना है। उन्होंने कहा कि विश्व की वर्चस्ववादी व्यवस्था, संसार में हर प्रकार की अत्याचार विरोधी प्रक्रिया का विरोध करती है किंतु उस विरोध के मुक़ाबले में वह घुटने टेकने पर विवश हो जाती है जो अपने पूरे अस्तित्व के साथ सामने आ जाता है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि ईरान द्वारा विश्व वर्चस्ववाद का विरोध, उसके विरुद्ध शत्रुता और षडयंत्रों का कारण बना है। उन्होंने बल देकर कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान को इस शत्रुता के मुक़ाबले के लिए अपनी शक्ति को बढ़ाना चाहिए।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता के लगभग 40 वर्ष व्यतीत होने के बावजूद 22 बहमन के दिन पूरे राष्ट्र का सड़कों पर निकल आना, इस्लामी शासन व्यवस्था की शक्ति और उसके प्रभाव का परिचायक है। उन्होंने कहा कि यह बात पूरी दुनिया में अद्धितीय है।
ईरान, ईसाइयों के लिए क्षेत्र का सबसे सुरक्षित देश: एएफ़पी
फ्रांसीसी समाचार एजेंसी ने एक रिपोर्ट में ईरानी ईसाइयों को मिलने वाली सुरक्षा के बारे में लिखा है कि ईरान, ईसाइयों के लिए मध्यपूर्व का सबसे सुरक्षित देश है।
इस समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी (र.ह) ने क्रांति के बाद यह आदेश दिया था कि ईरान में रहने वाले ईसाइयों, यहूदियों और पारसियों को भी वैसा ही सम्मान दिया जाए जैसा इस देश में रहने वाले मुसलमानों को दिया जाता है और किसी के साथ धर्म के नाम पर भेदभाव न बरता जाए।
फ्रांस की समाचार एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में तेहारान में रहने वाले ईसाई धर्म के लोगों द्वारा क्रिसमस के जश्न को पूरी स्वतंत्रता और सरकार के भरपूर सहयोग से मनाए जाने की ओर संकेत करते हुए लिखा है कि ईरानी ईसाइयों को अधिकारियों की ओर से किसी प्रकार के प्रतिबंधों का सामना नहीं करना पड़ता है।
एएफ़पी ने ईरानी ईसाइयों के वरिष्ठ धार्मिक नेता "रम्ज़ी गारमू" से विशेष बातचीत की है। समाचार एजेंसी ने ईसाई धर्मगुरू से हुई बातचीत की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि रम्ज़ी गारमू ने ईरान में विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्राप्त सुरक्षा का उल्लेख करते हुए कहा है कि मैं इस बात के लिए ईश्वर का आभारी हूँ कि इस युद्धग्रस्त क्षेत्र में ईरान शांति का केंद्र है।
फिलिस्तीन की राह में हर प्रकार के बलिदान के लिए तैयार, सैयद हसन नसरुल्लाह
लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन के महासचिव ने मंगलवार को लेबनान के वरिष्ठ धर्मगुरु शेख अब्दुन्नासिर जबरी के श्रद्धांजिल अर्पित करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण के दौरान इस्लामी जगत के विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार पेश किये।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि इस्लामी जगत को इस समय चरमपंथ नाम के एक अत्याधिक भयानक खतरे का सामना है इस लिए हमें उन सभी लोगों के मुक़ाबले में खड़े हो जाना चाहिए जो इस्लाम में चरमपंथ फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि तकफीरी विचार धारा इस्लामी जगत में उत्पन्न होने वाली सब से अधिक घातक चीज़ है और कुछ जगहों में शिया मुसलमान भी विशेष प्रकार की नीति अपनाते हैं जिन्हें ब्रिटिश शिया कहा जाता हैऔर जैसा कि ईरान के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा खामेनई ने कहा है इस विशेष प्रकार के शिया गुट ने भी तकफीरियों की नीति अपनायी है और इस्लामी आस्थाओं का अपमान करते हैं।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि इन दोनों प्रकार की तकफीरी विचारधारा रखने वालों के पास सेटेलाइट टीवी चैनल और संचार माध्यम हैं किंतु इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन के टीवी चैनल पर अरब और नाइल सेट ने प्रतिबंध लगा रखा है और यह कोई संयोग नहीं है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि इस्लामी राष्ट्र किसी भी दशा में फिलिस्तीन के मुद्दे से पीछे नहीं हटेगा और इस राह में किसी भी प्रकार के बलिदान में संकोच नहीं करेगा।
टोक्यो की ग्रांड मस्जिद,जापान में इस्लाम के चमकदार मिनारे
टोक्यो की ग्रांड मस्जिद धार्मिक व महान वास्तुकला के साथ इस्लामी स्मारकों में एक है। यह इबादी जगह जो ऊंचे मीनार रखती है पुराने उस्मानी वास्तुकला की शैली और इस्तांबुल की जामेअ ब्लू मस्जिद के समान(या सुल्तान अहमत मस्जिद)पर बनाई गई है।
इस्लाम और ईसाई धर्म के पैगंबरों के जन्मदिन पर पाकिस्तानी लोगों की एकजुटता
अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी समाचार «पाकिस्तान में ईसाई» के हवाले से, इस कार्यक्रम में मुस्लिम विद्वानों ने मसीह (अ.स) के जन्म और ईसाई विद्वानों ने पैगंबर मुहम्मद (PBUH) के जन्म की एक-दूसरे को बधाई दी और भाषण दिया।
विक्टर Savra पाकिस्तानी पाद्री जो इस कार्यक्रम के आयोजन के जिम्मेदार थे,ने कहाःयह सभा मुसलमानों और ईसाइयों के बीच संबंधों को मजबूत बनाने वाली है।
उन्होंने कहा: हम बाइबल को भी और कुरान को भी पढ़ते हैं। पैगंबर मुहम्मद के जन्म का उत्सव ईसाइयों के घर पर भी आयोजित किया जाता है, और यह सभी पाकिस्तानी नागरिकों के लिए एक मॉडल हो सकता है।
उन्होंने जातियों और धर्मों के बीच शांति और सद्भाव बनाने के लिए कोशिश और अधिक प्रयासों की भी आवश्यकता पर बल दिया।
इसी तरह इटली में पाकिस्तानी दूतावास ने भी मसीह के जन्म का जश्न मुसलमानों और ईसाइयों की उपस्थिति के साथ आयोजित किया।
ज़ायोनी कालोनियों के बारे में सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव, विश्व समुदाय का दृष्टिकोण हैः रूस
रूस ने ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण की निंदा के बारे में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को विश्व समुदाय का दृष्टिकोण क़रार दिया है।
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार रूस के विदेशमंत्रालय ने शनिवार को अपने एक बयान में कहा है कि रूस ने अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर कालोनियों के निर्माण के बारे में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है क्योंकि इसकी विषय वस्तु उस आधार पर तैयार की गयी थी जिसमें कहा गया है कि विश्व समुदाय का मानना है कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर क़ालोनियों का निर्माण ग़ैर क़ानूनी है।
रूस के विदेशमंत्रालय ने अपने बयान में बल दिया है कि बस्तियों के बारे में प्रस्ताव पिछले आठ वर्ष में पहली बार सुरक्षा परिषद में पास हुआ है।
रूसी विदेशमंत्रालय के बयान में कहा गया है कि मध्यपूर्व के विवाद का हल केवल फ़िलिस्तीनी पक्षों और इस्राईल के मध्य बिना पूर्व शर्त और प्रत्यक्ष वार्ता से ही संभव है और फ़िलिस्तीनियों और इस्राईल के मध्य वार्ता आरंभ करने में सहायता करने वाले मध्यपूर्व के अंतर्राष्ट्रीय गुट चार के एक पक्ष के रूप में रूस के प्रयास भी इसी परिधि में हैं।
रूस के विदेशमंत्रालय के बयान में अंत में कहा गया है कि रूस, फ़िलिस्तीनी और इस्राईली पक्षों के मध्य वार्ता की मेज़बानी करने के लिए तैयार है।
ज्ञात रहे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने फ़िलिस्तीनियों की अतिग्रहित ज़मीनों पर इन कॉलोनियों का निर्माण तुरंत रुकने पर आधारित प्रस्ताव नंबर 2334 पारित किया। यह सुरक्षा परिषद का अभूतपूर्व क़दम है। इस प्रस्ताव का मसौदा मलेशिया, वेनेज़ोएला, न्यूज़ीलैंड और सेनेगल ने पेश किया। इस प्रस्ताव के पक्ष में 14 मत पड़े जबकि अमरीका ने मतदान में भाग नहीं लिया।
सुरक्षा परिषद में लगा इस्राईल को झटका
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण को समाप्त करने के उद्देश्य से पेश किया गया प्रस्ताव पारित हो गया है।
अल आलम टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी बस्तियों के निर्माण को समाप्त करने के लिए यह प्रस्ताव मिस्र ने सुरक्षा परिषद में पेश किया जिस पर शुक्रवार को मतदान हुआ।
इस प्रस्ताव के पक्ष में सुरक्षा परिषद के 14 सदस्यों ने मत दिया जबकि केवल अमरीका ने प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।
इस प्रस्ताव के आधार पर इस्राईल की यह ज़िम्मेदारी है कि वह पूर्वी बैतुल मुक़द्दस सहित अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में निर्माण संबंधी अपनी समस्त गतिविधियों को तुरंत रोक दे।
अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण की निंदा में मिस्र ने जो प्रस्ताव का मसौदा सुरक्षा परिषद में पेश किया था उस पर गुरूवार को मतदान होना था किन्तु मिस्र ने घोषणा की कि यह मतदान टल गया है।
न्यूजीलैंड, वेनेज़ुएला, मलेशिया और सिंगापूर ने शुक्रवार को मिस्र से मांग की थी कि वह इस्राईल विरोधी प्रस्ताव पर मतदान के लिए समय सीमा निर्धारित करे। अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण को रोकने से संबंधित प्रस्ताव पर शुक्रवार को मतदान हुआ।
इस्राईल में हिज़्बुल्लाह का सामने करने की हिम्मत नहीं है, ग्यूरा आइलैंड
इस्राईल की सुरक्षा परिषद के पूर्व प्रमुख ने कहा है कि अगर इस्राईल 2006 की 33 दिवसीय जंग की तुलना में पहले से ज़्यादा तय्यार हो तब भी उसमें लेबनान के हिज़्बुल्लाह के साथ नई जंग शुरु करने का साहस नहीं है।
संवाददाता के अनुसार, ग्यूरा आइलैंड हिज़्बुल्लाह के साथ टकराव और उन तत्वों से दूर रहने के इच्छुक हैं जिनके कारण हिज़्बुल्लाह के साथ जंग हो सकती है।
आइलैंड ने कहा कि हिज़्बुल्लाह से जंग न करने के पीछे इस डर का कारण हिज़्बुल्लाह के पास मौजूद हथियार और मीज़ाइलों का भंडार है।
ज़ायोनी शासन के गुप्तचर आंकलन के अनुसार, हिज़्बुल्लाह के पास विभिन्न दूरी की मारक क्षमता वाले लगभग 130000 मीज़ाईल है।
इस्राईल की सुरक्षा परिषद के पूर्व प्रमुख ने कहा कि रक्षा मंत्री अविग्डोर लिबरमैन ने अप्रत्यक्ष तौर पर इस बात को माना है कि हिज़्बुल्लाह की सैन्य शक्ति बढ़ रही है।
ग्यूरा आइलैंड ने कहा कि सीरिया जंग का अंत कि जिसके मोर्चे के विजेताओं में हिज़्बुल्लाह है, इस्राईल को बहुत कठिन विकल्प के सामने क़रार देगा।