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बुधवार, 23 नवम्बर 2016 11:45

ज़ियारते अरबईन

20 सफ़र को कर्बला के अमर शहीदों का चेहलुम होता है। इस दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विशेष ज़ियारत है।

यह ज़ियारत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से श्रद्धा दर्शाने के लिए पढ़ी जाती है। वह हुसैन जिन्होंने इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के शब्दों में,  अपनी शहादत व साहस से लोगों को उस अज्ञानता से मुक्ति दिलाई जो बनी उमय्या के दुष्प्रचार से फैली थी कि जिसकी वजह से लोग क़ुरआन की शिक्षाओं और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण से दूर हो गए थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वीरता भरे आंदोलन ने बनी उमय्या के प्रचारिक अभियान की अस्लियत खोल कर रख दी, जो ख़ुद को पैग़म्बरे इस्लाम का वारिस कहते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन ने यज़ीदियों की ग़लत रीतियों का अंत किया और शुद्ध इस्लाम को जीवन दिया।

 

पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम कहते हैं, “ईश्वर पर आस्था रखने वाले मोमिन बंदे की पांच निशानियां हैं। 51 रकअत नमाज़ पढ़ना, (जिसमें 17 रकअत अनिवार्य और 34 रकअत ग़ैर अनिवार्य नमाज़ शामिल है,) अरबईन की ज़ियारत, दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना, सजदे के समय माथे को मिट्टी पर रखना और नमाज़ में बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम ऊंची आवाज़ से कहना।”

 

अरबईन मनाने के लिए कई ज़ियारतें हैं। इनमें से एक ज़ियारत अरबईन के नाम से मशहूर है। यह वह ज़ियारत है जिसे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने लिखवाया है। यह वह ज़ियारत है जो उच्च इस्लामी शिक्षाओं से समृद्ध है। इस ज़ियारत में अध्यात्म व उपासना, बलिदान व शहादत, ईश्वर की प्रसन्नता और उसके मार्ग में संघर्ष की बाते हैं। इस अहम ज़ियारत में इतनी उच्च बाते हैं कि पढ़ने वाला कर्बला के अमर शहीदों के साथ यह प्रतिक्षा करता है कि जहां कहीं भी होगा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मार्ग पर चलेगा।

 

ज़ियारते अरबईन भी दूसरी ज़ियारतों की तरह सलाम से शुरु होती है। श्रद्धालु इस सलाम के द्वारा इमाम हुसैन के प्रति अपने आदर और सद्भावना का एलान करता है। इस सलाम में श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत इब्राहीम और हज़रत आदम की विशेषताओं से संपन्न मानता है। जैसे पैग़म्बरे इस्लाम का ईश्वर का प्रिय होना, हज़रत इब्राहीम का ईश्वर का मित्र होना और हज़रत आदम का ईश्वर का उत्तराधिकारी होना। श्रद्धालु इस सलाम के ज़रिए इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शब्दों में, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व को सभी बड़े ईश्वरीयदूतों के व्यक्तित्व का संग्रह मानता है। इस ज़ियारत में एक जगह पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सभी ईश्वरीय दूतों का वारिस कह कर सलाम किया गया है। इसलिए चेहलुम की याद मनाना हज़रत आदम से लेकर सभी ईश्वरीय दूतों के अभियान की पुष्टि करने के समान है।

 

जो भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और कर्बला की घटना को सुनता है, उसकी आंखों से आंसू निकलने लगता है। यह आंसू उन आंसुओं से अलग है जो एक इंसान किसी मुसीबत या अपने किसी निकटवर्ती की जुदाई पर बहाता है। जो आंसू इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मुसीबत की याद में बहता है, अगर वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के उद्देश्य की पहचान के साथ बहे तो ऐसा आंसू इंसान को परालौकिक दुनिया से जोड़ता है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के मायदा नामक सूरे की 83वीं आयत में ईश्वर कहता है, और जब वे पैग़म्बर पर उतरने वाली आयत को सुनते हैं तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगता है, क्योंकि उन्होंने सत्य को पहचाना और कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! हम ईमान लाए हैं और हमारा नाम गवाहों में लिख। इसी तरह श्रद्धालु भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर सलाम भेजने के साथ उन पर हुए अत्याचारी ओर इशारा करते हुए कहता है, सलाम हो उस हुसैन पर जिन पर ज़ुल्म किया गया, सलाम हो उस महान हस्ती पर जो मुसीबतों में घिरा हुआ था और जिसे रुला रुका कर मारा गया।   

       

ज़ियारते अरबईन के दूसरे भाग में श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विलायत, दानशीलता, मोक्ष और पवित्रता की गवाई देते हुए कहता है, हे ईश्वर! मैं गवाही देता हूं कि हुसैन अलैहिस्सलाम तेरे वली और तेरे वली के बेटे हैं। वह चुने हुए और तेरे चुने हुए बंदे के बेटे हैं। हे ईश्वर मैं गवाही देता हूं कि तूने उन्हें शहादत के ज़रिए सम्मानित किया और उन्हें मोक्ष दिया। उन्हें पवित्र वंश में पैदा किया, उन्हें सभी ईश्वरीयदूतों की मीरास दी, बड़ों में से एक बड़ा, मार्गदर्शकों में से एक मार्गदर्शक, रक्षकों में एक रक्षक और लोगों पर अपने उत्तराधिकारी के रूप में हुज्जत अर्थात तर्क क़रार दिया।

 

 इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का उस ईश्वरीयत दूत ने पालन-पोषण किया, जिसे ईश्वर ने पूरी सृष्टि के लिए कृपा क़रार दिया। जैसा कि ईश्वर ने अंबिया नामक सूरे की 107वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम से कहा, हमने आपको दुनियावालों के लिए सिर्फ़ कृपा बनाकर भेजा है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यज़ीद के सिपाहियों से बहुत ही अच्छे ढंग से बात की। उन्हें नसीहत की यहां तक कि जब वह घोड़े से ज़मीन पर गिरे तब भी उनके मार्गदर्शन की कोशिश की और अंततः अपने पवित्र ख़ून को लोगों की गुमराही से मार्गदर्शन के लिए भेंट कर दिया। इसलिए जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत पढ़ते हैं, तो उसमें यह भी पढ़ते हैं कि हे पालनहार! हुसैन ने लोगों के मार्गदर्शन में किसी प्रकार के बहाने की गुंजाइश नहीं छोड़ी। उन्होंने निःसंकोच लोगों की भलाई की और अपनी जान को तेरे मार्ग में न्योछावर कर दिया।

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मक्के से निकलने से पहले अपने भाई मोहम्मद हनफ़िया को एक वसीयत लिखी, जिसमें अपने अभियान के उद्देश्य का उल्लेख किया है। इस वसीयत में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा, मैंने अपने नाना के धर्म में सुधार, लोगों को भलाई की ओर बुलाने और बुराई से रोकने के लिए अभियान चलाया है। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दौर में धर्म में बहुत से बदलाव कर दिए गए थे। उनके पास पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाए गए धर्म की रक्षा और उसे सही रूप में बाद की नस्लों तक पहुंचाने के लिए अभियान चलाने के सिवा कोई और रास्ता नहीं था ताकि सबको बताएं कि मौजूदा धर्म को बहुत बदल दिया गया है और इस धर्म में, पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाए गए धर्म की तुलना में बहुत अंतर आ गया है। तो श्रद्धालु ज़ियारते अरबईन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अभियान का उद्देश्य यूं बयान करता है, हे प्रभु! हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी जान तुझ पर न्योछावर कर दी और अपने पूरे वजूद को तुझे दे दिया ताकि तेरे बंदों को अज्ञानता और पथभ्रष्टता से मुक्ति दिलाए।

 

जो गुट इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़िलाफ़ था और जिसने उन्हें शहीद किया वे ऐसे लोग थे जो दुनिया से धोखा खा गए। उनका पेट हराम के पैसों से भरा हुआ था। उन्होंने अपनी परलोक को बहुत थोड़ी सी क़ीमत पर बेच दिया। श्रद्धालु ज़ियारते अरबईन में और आगे पढ़ता है, और वे दुनिया पर मर-मिटने वाले पाप का बोझ अपने कांधे पर रखकर नरक की आग में जलने का पात्र बने। तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने पूरे धैर्य के साथ उनके ख़िलाफ़ जिहाद किया यहां तक कि तेरे आदेश के पालन के दौरान उनका ख़ून बहाया गया और उनके अपमान को सही समझा गया।

 

आशूर की पूर्व संध्या और आशूर के दिन कर्बला में इमाम हुसैन के घरवालों और उनके साथियों की उनसे वफ़ादारी की मिसाल कहीं नहीं मिलती और इससे भी बढ़ कर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ओर से ईश्वर से किए गए वादे को पूरा करने की मिसाल कहीं नहीं मिलती।

 

श्रद्धालु एक बार फिर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सलाम करते हुए कहता है, हे हुसैन अलैहिस्सलाम! मैं गवाही देता हूं कि आप ईश्वर की ओर से अमानतदार और ईश्वर के अमानतदार के बेटे हैं। आपने पूरा जीवन भलाई में बिताया, प्रशंसनीय तरीक़े से गुज़र गए और शहीद हुए ऐसी हालत में कि वतन से दूर ज़ुल्म का शिकार हुए। ईश्वर उसे पूरा करने वाला है जिस चीज़ का उसने आपसे वादा किया है, उसे बर्बाद करे जिसने आपको छोड़ दिया, उसे अभिशाप दे जिसने आपको क़त्ल किया। मैं गवाही देता हूं कि आपने ईश्वर से किया हुआ वादा पूरा किया, ईश्वर के मार्ग में जिहाद किया यहां तक कि शहीद हो गए।          

सच्ची दोस्ती के संबंध में एक बात जो बहुत अहम है वह यह कि व्यक्ति अपने दोस्त के दोस्तों से भी मोहब्बत करता है और इसी तरह अपने दोस्त दुश्मनों से दूरी अख़्तियार करता है। ज़ियारते अरबईन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दोस्तों से मोहब्बत और उनके दुश्मनों से विरक्तता की गवाही देते हुए श्रद्धालु कहता है, हे पालनहार!

 

तू गवाह रहना कि मैं उसे अपना दोस्त समझता हूं जो हुसैन अलैहिस्सलाम को अपना दोस्त समझे और जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से दुश्मनी करता है मैं उसे अपना दुश्मन समझता हूं।

 

ज़ियारते अरबईन में श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के नैतिक गुणों को बयान करते हुए कहता है, मेरा धर्म और मेरा कल्याण आपके मार्गदर्शन पर निर्भर है। मेरा मन आपके सामने नत्मस्तक है और सारी बातों में मैं आपका अनुसरण करने वाला हूं। आपकी मदद के लिए तय्यार हूं यहां तक कि ईश्वर इजाज़त दे। तो मैं आपके साथ हूं न कि आपके दुश्मन के साथ। श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आज्ञापालन का दिल से वचन देते हुए पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों पर ईश्वर की कृपा की कामना के साथ अपनी ज़ियारत को ख़त्म करने के लिए कहता है, ईश्वर की कृपा हो आप पर, आपकी पवित्र आत्माओं और आपके पवित्र शवों पर, आपके हाज़िर, ग़ाएब, विदित व निहित पर ईश्वर की कृपा हो। इस तरह श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है ताकि ख़ुद को उनके श्रद्धालुओं में शामिल करा सके। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम के बड़े अनुयायी जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी चेहुलम के दिन अपनी ज़ियारत के अंत में कहते हैं, “उस ईश्वर की क़सम जिसने मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम को सत्य को पहुंचाने के लिए चुना। मैं भी उस चीज़ में आप शहीदों के साथ सहभागी हूं जो आप पर गुज़री है।” इस बात पर जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी के साथ मौजूद लोगों ने उनसे पूछा कि किस तरह हम उनके साथ सहभागी हैं जबकि हमने उनके साथ मिल कर ईश्वर के मार्ग में तलवार नहीं चलाई? जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने कहा, मैंने पैग़म्बरे इस्लाम को यह फ़रमाते सुना है, “जो जिस गुट से प्रेम रखता है प्रलय के दिन उसे उस गुट के साथ उठाया जाएगा और जो व्यक्ति किसी गुट के कर्म को पसंद करता है तो वह भी उनके कर्म में सहभागी होगा।”  

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी izhamburg.de, की वेबसाइट के हवाले से,यह टूर्नामेंट 12 दिसंबर तक जारी रहेगा और, पढ़ने में(भाई), हिफ़्ज़ (भाइयों और बहनों), तर्तील(बहनों) अवधारणाओं के क्षेत्र में (भाइयों और बहनों) , अज़ान (भाई) और तवाशीह (भाई, संगीत के बिना) आयोजित किया जाएगा।

यह टूर्नामेंट 2 आयु समूहों 16 वर्ष से कम और 16 से अधिक वर्षों से विशेष है विभिन्न इस्लामी संप्रदायों से यूरोप में रहने वाले मुसलमान बिना उम्र प्रतिबंध के भाग ले सकते हैं।

टूर्नामेंट का उद्घाटन समारोह शुक्रवार मुक़ाबले, 30 नवंबर से स्थानीय समय 5 बजे और समापन समारोह रविवार 2 दिसंबर को आयोजित किया जाएगा।

कुरान की शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देना और प्रकाशन कुरानी विशषज्ञों के विकास व खिलने के लिऐ ज़मीनासाज़ी, कुरान reciters व हाफ़िज़ो के लिऐ रहस्योद्घाटन के कलाम से बहुत परिचित होना, यूरोप के क़ुरानी समाज में एकजुटता पैदा करना,और उच्चतम reciters और memorizers के अनुभवों का आदान-प्रदान प्रतियोगिता के उद्देश्यों की घोषणा की गई है ।

इस कुरानी घटना के बारे में अधिक जानकारी के लिए, यहां क्लिक करें।

 

22 नवंबर 2016 स्लोवेनिया के राष्ट्रपति बोरत पाहोर (बाएं) और वरिष्ठ नेता (दाएं) की मुलाक़ात की तस्वीर

तेहरान दौरे पर आए स्लोवेनिया गणराज्य के राष्ट्रपति बारूत पाखोर ने वरिष्ठ नेता से मंगलवार को मुलाक़ात की।

इस अवसर पर वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने क्षेत्र की दर्दनाक घटनाओं और कुछ शक्तियों की ओर से राष्ट्रों पर थोपी गयी जंग व अस्थिरता की ओर इशारा करते हुए बल दिया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान स्वाधीन देशों से हमेशा यह कहता रहा है कि वे राष्ट्रों पर दबाव से निपटने में अपना सक्रिय योगदान दें न कि ख़ामोश तमाशा देखते रहें।

इस अवसर पर स्लोवेनिया के राष्ट्रपति ने ईरानी अधिकारियों के साथ सार्थक बातचीत का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका देश ईरान के साथ सभी क्षेत्र में संबंध बढ़ाने में रुचि रखता है।

22 नवंबर 2016 को ईरानी राष्ट्रपति रूहानी(बाएं) स्लोवेनिया के राष्ट्रपति बोरत पाहोर (बीच में) और वरिष्ठ नेता (दाएं) की मुलाक़ात की तस्वीर

 

वरिष्ठ नेता ने पश्चिम एशियाई देशों में हिंसक झड़प और दाइश जैसे आतंकवादी गुट के वजूद को कुछ शक्तियों के हस्तक्षेप का नतीजा बताया।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि सभी देशों का यह कर्तव्य है कि वह इन झड़पों की आग को ख़ामोश करने में अपना योगदान दें और इस्लामी गणतंत्र ईरान भी कुछ वर्चस्ववादी शक्तियों के दुष्प्रचार के विपरीत इस उद्देश्य के लिए सक्रिय है, लेकिन दूसरे देशों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने दाइश के ख़िलाफ़ अमरीकी गठजोड़ को नाकाम बताया और इस नाकामी के कारण की व्याख्या में इस संदर्भ में मौजूद दो दृष्टिकोण का उल्लेख किया। वरिष्ठ नेता ने कहा कि पहले दृष्टिकोण के अनुसार, अमरीका दाइश का सफ़ाया करना नहीं चाहता बल्कि इसके संदर्भ में ऐसा रवैया अपनाना चाहता है कि यह मुश्किल इराक़ और सीरिया में उसी तरह बनी रहे जिस तरह ब्रिटेन ने भारत के उपनिवेश के दौरान कश्मीर के संबंध में रवैया अपनाया कि उसे न भरने वाले घाव की तरह छोड़ दिया जिसके नतीजे में आज तक दो पड़ोसी देश भारत-पाकिस्तान इस विषय पर मतभेद का शिकार हैं।

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने कहा कि दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार, अमरीकी दाइश की समस्या को हल करना चाहते हैं लेकिन तंत्र ऐसा नहीं है कि वे इस काम को कर पाएं। जैसा कि दोनों दृष्टिकोण का नतीजा एक जैसा रहा और आज इराक़ ख़ास तौर पर सीरिया की स्थिति बहुत कठिन है।

उन्होंने यमन पर सऊदी अरब के 20 महीने से जारी हमले और यमन की मूल रचनाओं की तबाही को भी क्षेत्र की मौजूदा कटु घटनाओं में गिनवाते हुए कहा कि स्वाधीन सरकारों को इन घटनाओं से निपटना चाहिए, क्योंकि एक राष्ट्र की पीड़ा वास्तव में पूरी मानवता की पीड़ा के समान है।

वरिष्ठ नेता ने ईरान के परमाणु समझौते जेसीपीओए के क्रियान्वयन पर पूरी तरह प्रतिबद्ध रहने का उल्लेख करते हुए, सामने वाले पक्ष की प्रतिबद्धताओं का पालन न करने के कारण आलोचना की।

 

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी पाकिस्तान में ईरानी सांस्कृतिक हाउस के हवाले से, यह दो दिवसीय सम्मेलन "कुरान और सुन्नते नबवी के दृष्टकोण से समाज में कल्याण और सामाजिक न्याय" अल्लामा इकबाल आज़ाद विश्वविद्यालय इस्लामाबाद में आयोजित किया जाएगा।

शाहिद सिद्दीकी, इस्लामाबाद में अल्लामा इकबाल आज़ाद विश्वविद्यालय के चेयरमैन ने एक संवाददाता सम्मेलन में इस समाचार की घोषणा करते हुऐ कहाः कि अल्लामा इकबाल आज़ाद विश्वविद्यालय के अरबी भाषा और इस्लामी विज्ञान समूह इस सम्मेलन के आयोजक हैं।

पाकिस्तान और अन्य देशों के वैज्ञानिकों को इस्लामाबाद, सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है और अपने लेखों को सम्मेलन विषय के साथ पेश करें।

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी अखबार «ओमान के टाइम्स»के हवाले से,ओमान में भारत महोत्सव के हिस्से में, भारतीय दूतावास ने मस्कट में इस्लामी सुलेख प्रदर्शनी आयोजित करने की कार्वाई की है।

यह सुलेख प्रदर्शनी कल, 21 नवंबर से शुरू होगई है और 3 दिसंबर तक मुफ़्त दर्शकों के लिए मेज़बान रहेगी।

इस प्रदर्शनी में कुरान की चयनित आयतों से सुलेख की कला के 40काम को प्रदर्शित किया गया है।

इन दुर्लभ सुलेखन पांडुलिपियों के बीच इमामों (अ.स) से संबंधित प्रतियां भी प्रदर्शन के लिऐ रखी गई हैं।

प्रदर्शन पर सभी प्रदर्शित काम रामपुर, भारत में इमाम रज़ा (अ.स) पुस्तकालय से वाबस्ता हैं, जो इस्लामी हिन्दी कला का एक खजाना माना जाता है और 1774 में स्थापित किया गया था।

 

 

 

दुनिया के 60 देशों से दसियों लाख की संख्या में पवित्र नगर कर्बला पहुंच कर श्रद्धालुओं ने सोमवार को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहलुम मनाया।

कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम का कार्यक्रम कई दिन पहले शुरु हो जाता है। रविवार को भी दसियों लाख की संख्या में श्रद्धालुओं ने कर्बला पहुंच कर पूरी तरह शांतिपूर्ण माहौल में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में भंग डालने की षड्यंत्रकारियों की योजना के बावजूद, दसियों हज़ार की संख्या में सुरक्षा बल की कोशिश से शांतिपूर्ण माहौल क़ाएम रहा।

 

इस अवसर पर इराक़ी राष्ट्रपति फ़ोआद मासूम ने शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम में पैदल चल कर भाग लेने वाले श्रद्धालुओं और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने वाले सशस्त्र बल की कोशिशों की सराहना की। चेहलुम के शांतिपूर्ण आयोजन के लिए 30000 सुरक्षा बल तैनात थे। इराक़ी सुरक्षा बल ने देश में दाइश के आतंकियों से संघर्ष के दौरान चेहलुम के शांतिपूर्ण आयोजन से अपने दायित्व को अच्छी तरह अंजाम देने की क्षमता साबित कर दी।

रविवार को पवित्र नगर नजफ़ से कर्बला के बीच लगभग 80 किलोमीटर लंबे मार्ग पर दसियों लाख श्रद्धालुओं ने सामूहिक रूप से दोपहर की नमाज़ पढ़ी। यह इतिहास में संयुक्त रूप से नमाज़ पढ़ने की सबसे बड़ी घटना है।  

 

 

फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में मस्जिद से अज़ान देने पर इस्राईल ने मोअज़्ज़िन पर 200 डालर का जुर्माना लगाया है।

रश्या टूडे के अनुसार इस्राईल ने अपने आदेश की अवहेलना के आरोप में फ़िलिस्तीनी क्षेत्र की एक मस्जिद में लाउढय्वरका ये अज़ान देने वाले पर जुर्माने लगाया है।  कुछ दिन पहले ज़ायोनी शासन की संसद ने बैतुल मुक़द्दस की मस्जिदों में अज़ान दिये जाने पर प्रतिबंध की घोषणा की थी।  इस तानाशाही आदेश का फ़िलिस्तीनी, व्यापक स्तर पर विरोध कर रहे हैं।  शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के बाद ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनी नमाज़ियों ने इस ज़ायोनी आदेश का विरोध करते हुए प्रदर्शन किये थे।  इस इस्राईल आदेश के विरोध में उसी दिन सैकड़ों फ़िलिस्तीनियों ने अपने-अपने घरों से अज़ान दी थी।

इस्राईल के आज़ान विरोधी नए क़ानून के अनुसार मस्जिद से अज़ान देने वाले के विरुद्ध तत्काल कार्यवाही की जाएगी जिसमें उसे सज़ा और जुर्माना दोनो हो सकते हैं।

कर्बला में इमाम हुसैन (अ) के श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए कड़े प्रबंध किए गए हैं।

इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के बाद भी इराक़ के पवित्र नगर कर्बला में देश और विदेश से पहुंचने वाले लाखों ज़ायरीन मौजूद हैं, जिसके कारण इराक़ी सुरक्षा बलों ने सुरक्षा प्रबंध को अधिक कड़ा दिया है।

कर्बला के पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इमाम हुसैन के चेहलुम के अवसर पर 2 करोड़ 30 लाख लोग ज़ियारत के लिए कर्बला पहुंचे।

अधिकारियों का कहना है कि इस अवसर पर विश्व भर के देशों से कर्बला पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 30 लाख थी, इनमें सबसे अधिक संख्या ईरानी नागरिकों की थी।

कर्बला के गवर्नर अक़ील तरीही के मुताबिक़, इस वर्ष चेहलुम पर अभूतपूर्व संख्या में श्रद्धालु कर्बला पहुंचे हैं।  

 

 

इस वर्ष हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहलुम, श्रद्धालुओं की भव्य उपस्थिति से मुसलमानों के मध्य एकता का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया है।

ईरान सहित दुनिया के दो करोड़ से अधिक तीर्थयात्री और श्रद्धालु चेहुलुम के दिन करबला पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं जबकि दसियों लाख श्रद्धालु करबला पहुंचकर जूलूसों, शोक सभाओं और विभिन्न कार्यक्रमों में उपस्थित हैं। नन्हें बच्चों से लेकर 80 साल के बूढ़े तक यात्रा की कठिनाईयां सहन करके करबला की ओर रवाना हैं।

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अज़ादार लब्बैक या हुसैन के नारे लगाकर मानो यह कहना चाहते हैं कि हे इमाम यद्यपि हम करबला के मैदान में नहीं थे किन्तु आज भी हम समय के यज़ीद अमरीका और ज़ायोनी शासन, दाइश, नुस्रा फ़्रंट और अलक़ायदा जैसे आतंकियों और साम्राज्यवादी शक्तियों से संघर्ष का अपना दायित्व निभाते रहेंगे।

इस समय शहीदों के सरदार हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और हुसैनी सेना के ध्वजवाहक हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के रौज़ों के बीच श्रद्धालुओं का सैलाब नज़र आ रहा है और करबला का पूरा वातावरण लब्बैक या हुसैन के गगन भेदी नारों से गूंज रहा है। 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर पवित्र नगर नजफ़ से कर्बला तक मार्च करने वालों ने दुनिया के लोगों के नाम एक ख़त प्रकाशित किया है, जिसमें दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों से अत्याचार से संघर्ष की अपील के साथ इस बात को स्पष्ट किया है कि साम्राज्यवादी अपने हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रों के बीच फूट डालते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहुलम के मार्च में भाग लेने वालों ने पीड़ितों के समर्थन और आतंकवाद से संघर्ष पर विशेष बल दिया।

इराक़ी सरकार ने भी अपने बयान में कहा कि लगभग 30 लाख विदेशी तीर्थयात्री करबला पहुंच चुके हैं। भारत, पाकिस्तान, ईरान, बहरैन, सऊदी अरब, क़तर, कुवैत, दक्षिणी अफ़्रीक़ा, ब्रिटेन और अमरीका की अन्जुमनें करबला में जूलूस निकाल रही हैं।

 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अमरीका में संपन्न हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव के परिणाम की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमारा इस चुनाव के बारे में कोई दृष्टिकोण नहीं है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीका वही अमरीका है जिसने ईरानी राष्ट्र को पिछले 37 साल के दौरान कोई भलाई नहीं पहुंचायी, हालांकि इस दौरान डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स दोनों दलों, की सरकारें थीं।

इस्फ़हान के हज़ारों लोगों ने बुधवार की सुबह तेहरान में वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की। इस अवसर पर आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने बल दिया कि दुनिया में उन लोगों के विपरीत कि जिनमें से कुछ अमरीका के राष्ट्रपति पद के चुनावी नतीजे से दुखी और कुछ ख़ुश हैं, हम न तो दुखी हैं और न ही ख़ुश।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमें इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता और न ही किसी प्रकार की चिंता है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईश्वर की कृपा से हर प्रकार की घटना का सामना करने के लिए भी हम तैयार हैं।

उन्होंने अमरीका में राष्ट्रपति पद के चुनावी अभियान के दौरान अमरीकी समाज की भीतरी समस्याओं के बारे में हुई चर्चा की ओर इशारा करते हुए कहा कि जो व्यक्ति अमरीका में राष्ट्रपति के रूप में चुने गए हैं उन्होंने चुनावी प्रतिस्पर्धा के दौरान कहा था कि जो पैसे हमने पिछले कुछ साल के दौरान जंग पर ख़र्च किए, अगर उन पैसों को अमरीका के भीतर उपयोग किया जाता तो इस देश का दो बार निर्माण हो सकता था, क्या वे लोग जिन्हें यह ख़्याली बातें अच्छी लगीं, इसका अर्थ समझते हैं?

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने अमरीका में राष्ट्रपति पद की चुनावी प्रतिस्पर्धा के दौरान इस देश में मौजूद ग़रीबी और व्यापक समस्याओं पर हुई चर्चा की ओर इशारा करते हुए कहा कि अमरीका ने हालिया वर्षो में इस देश की जनता के पैसों को युद्धों में लुटाया जिसके नतीजे में अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, लीबिया, यमन और सीरिया में हज़ारों आम लोगों का जनसंहार हुआ और इन देशों के मूल ढांचे तबाह हो गए।

वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल दिया कि अमरीका में चुनावी प्रतिस्पर्धा के दौरान जिन वास्तविक बातों पर चर्चा हुयी, ये विषय हालिया वर्षों में बार-बार उठे लेकिन कुछ लोग इसे स्वीकार करना नहीं चाहते थे।  उन्होंने कहा कि पहचान का अर्थ यह है कि आपको यह समझ होनी चाहिए कि आपका किससे मुक़ाबला है और वह आपके बारे में क्या सोचता है, अगर आप अपनी आंख बंद कर लेंगे तो निःसन्देह नुक़सान उठाएंगे।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल दिया कि जबतक राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक मज़बूती रहेगी और देश के वरिष्ठ अधिकारी व बुद्धिजीवी मानसिक दृष्टि से मज़बूत रहेंगे, देश को कोई ख़तरा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र की युवा पीढ़ी को ख़ास तौर पर क्रान्तिकारी भावना के साथ आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि देश का मुख्य मुद्दा कुछ बहस, हंगामे और इधर-उधर के विषय नहीं हैं, बल्कि क्रान्तिकारी भावना की रक्षा और इसी भावना के साथ बढ़ना मुख्य मुद्दा है।