इराक़ी मौकिबदारों, राष्ट्र और सरकार के नाम सुप्रीम लीडर का शुक्रिया का संदेश

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इराक़ी मौकिबदारों, राष्ट्र और सरकार के नाम सुप्रीम लीडर का शुक्रिया का संदेश

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने एक संदेश में अरबईने हुसैनी के दिनों में मेज़बानी के लिए इराक़ी मौकिबदारों और महान इराक़ी राष्ट्र का शुक्रिया अदा किया।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने एक संदेश में अरबईने हुसैनी के दिनों में मेज़बानी के लिए इराक़ी मौकिबदारों और महान इराक़ी राष्ट्र का शुक्रिया अदा किया।

बुधवार 11 सितम्बर 2024 को अपनी इराक़ यात्रा के दौरान राष्ट्रपति श्री डॉक्टर मस्ऊद पेज़िश्कियान ने इराक़ के प्रधान मंत्री श्री शिया अल सूदानी को इस संदेश के अरबी अनुवाद की शील्ड प्रस्तुत की।

रहबरे इंक़ेलाब के इस संदेश का अनुवाद इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

सबसे पहले तो शुक्रिया अदा करना है। दिल की गहराई से, अपनी तरफ़ से और ईरान के महान राष्ट्र की तरफ़ से, मैं मौकिबदारों का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने अरबईन के दिनों में अपनी उदारता, अपने प्रेम और अक़ीदत को आख़री सीमा तक पहुँचा दिया।

मैं महान इराक़ी राष्ट्र और इराक़ी सरकार के अधिकारियों का भी शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने सुरक्षा, अच्छा माहौल और अनुकूल परिस्थितियां प्रदान की हैं। विशेष रूप से, मैं इराकी धर्मगुरुओं और वरिष्ठ मुजतहेदीन का भी शुक्रिया अदा करता हूँ।

जिन्होंने ज़ियारत के माहौल को दोनों राष्ट्रों और जनता के बीच भाईचारे के माहौल में बदल दिया। वास्तव में इसका शुक्रिया अदा करना चाहिए।

रास्ते में बने मौकिबों में आप प्यारे इराक़ी भाइयों के व्यवहार, हुसैनी ज़ायरीन के प्रति आपके उदार व्यवहार की आज की दुनिया में कोई मिसाल नहीं है, जिस तरह से कि अरबईन की पैदल ज़ियारत की मिसाल पूरे इतिहास में कहीं नहीं मिलती और जिस तरह से करोड़ों लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाना आज की अशांत दुनिया में एक बड़ा कारनामा और एक बेमिसाल काम है।

आपने अपने बर्ताव में और अपने रवैये में इस्लामी और अरबी सख़ावत और उदारता दिखाई है और यह सब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के इश्क़ की वजह से है। हुसैन इब्ने अली से यह प्रेम असाधारण है।

इसकी मिसाल हमने न पहले किसी दौर में देखी और न आज कहीं दिखाई देती है। दुआ है कि अल्लाह आपके दिलों में और हमारे दिलों में इस प्यार को दिन ब दिन बढ़ाता जाए।

आज इस मुहब्बत की कशिश का दायरा इतना बढ़ चुका है कि यह ग़ज़ा के पुरजोश मैदान से लेकर कई ग़ैर मुस्लिम समाजों तक फैल गया है।

अलहम्दो लिल्लाह।

 

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