क्या अक्ल के होते हुए भी दीन की आवश्यकता है?

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क्या अक्ल के होते हुए भी दीन की आवश्यकता है?

मनुष्य की बुद्धि अकेले अच्छे-बुरे (ख़ैर व शर) के उदाहरणों को पहचानने में असमर्थ है और मानव जीवन के उद्देश्य को भी पूरी तरह समझने में सक्षम नहीं है। इसलिए मनुष्य को मार्गदर्शन के लिए दीन की आवश्यकता है। धर्म ऐसी बारीकियों और विवरणों को प्रदान करता है जिन्हें बुद्धि समझने में अक्षम है।

मानव बुद्धि अच्छे-बुरे की पहचान और जीवन के उद्देश्य के निर्धारण में विस्तृत विवरण देने में असमर्थ है, और इसीलिए मनुष्य धर्म के मार्गदर्शन का मोहताज है। 

  1. क्या मानव बुद्धि अकेले ही अच्छे-बुरे, सही-गलत को पहचान सकती है? 
    2. क्या बुद्धि के होते हुए भी धर्म की आवश्यकता है? 

इसका जवाब नहीं है। बुद्धि सामान्य अवधारणाओं (कुल्ली मफ़ाहीम) को समझने की क्षमता रखती है, लेकिन अधिकांश मौकों पर विभिन्न मामलों की बारीकियों और उदाहरणों को समझने में असमर्थ रहती है। 

बुद्धि कुछ विषयों की अच्छाई-बुराई को सामान्य रूप से समझ सकती है, लेकिन उनके व्यावहारिक उदाहरणों (अमली मिसालों) को पहचानने में अक्सर विफल रहती है। जैसे बुद्धि न्याय (अद्ल) को अच्छा और अत्याचार (ज़ुल्म) को बुरा समझती है, लेकिन न्याय और अत्याचार के वास्तविक उदाहरण क्या हैं? यह बुद्धि की समझ से परे है, और इसके लिए धर्म से पूछना पड़ता है। 

बुद्धि कैसे समझे कि एक पुरुष का एक से अधिक शादी करना अत्याचार है या नहीं? 
बुद्धि कैसे तय करे कि सूद (ब्याज) लेना-देना न्याय है या अत्याचार? 
इसी तरह, बुद्धि सच बोलने की अच्छाई और झूठ बोलने की बुराई को तो समझती है, लेकिन यह नहीं समझ पाती कि युद्ध में झूठ बोलना अच्छा है या बुरा? 
एक और महत्वपूर्ण बात:हालांकि बुद्धि अल्लाह के अस्तित्व, क़यामत की आवश्यकता और नबूवत (पैग़म्बरी) के महत्व को सिद्ध कर सकती है, लेकिन उनकी विस्तृत जानकारी से पूरी तरह अनजान है। 

चूंकि बुद्धि दुनियावी-आख़िरती, भौतिक-आध्यात्मिक, व्यक्तिगत-सामाजिक, मानसिक-शारीरिक लाभ-हानियों को पूरी और सटीक रूप से नहीं पहचान सकती, इसलिए वह कई मामलों की बारीकियों और उदाहरणों के बारे में चुप रहती है।

अगर धर्म हमें फ़िक्ही नैतिक और आस्था संबंधी नियम न सिखाता, तो हम कभी उनसे वाकिफ़ नहीं हो पाते ख़ासकर वे नियम जो आख़िरत से जुड़े हैं। 

बुद्धि यह सिद्ध करती है कि ब्रह्मांड का एक रचयिता (ख़ालिक़) है जो ज्ञानी और तत्वदर्शी (अलीम व हकीम) है। इसलिए, यह ब्रह्मांड और उसका हिस्सा यानी मनुष्य, बिना उद्देश्य और बेमतलब पैदा नहीं किए गए हैं। 

इस प्रकार, मनुष्य भी ब्रह्मांड की तरह एक उद्देश्य की ओर बढ़ रहा है, और उसकी एक अंतिम मंज़िल है। लेकिन बुद्धि यह नहीं जानती कि मनुष्य का वास्तविक उद्देश्य क्या है और वह किस दिशा में जा रहा है। इसलिए बुद्धि स्वीकार करती है कि उसे धर्म की आवश्यकता है  ताकि उसे पता चले कि मनुष्य के जीवन का उद्देश्य क्या है और वह अंततः कहाँ पहुँचने वाला है। 

 

 

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