अमेरिका ही इज़राइल के वजूद की एकमात्र वजह है

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अमेरिका ही इज़राइल के वजूद की एकमात्र वजह है

एक अमेरिकी अख़बार ने रिपोर्ट दी कि वाइट हाउस का बेन्यामीन नेतन्याहू पर महत्वपूर्ण प्रभाव है, क्योंकि ज़ायोनी शासन के इस प्रधानमंत्री का मानना है कि अमेरिका ही उनके राष्ट्र के वजूद की एकमात्र वजह है।

अमेरिकी अख़बार वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने स्पष्ट किया: वाइट हाउस का इज़राइल के साथ घनिष्ठ समन्वय है और नेतन्याहू पर उल्लेखनीय प्रभाव है, क्योंकि इज़राइल का प्रधानमंत्री जानता है कि अमेरिका वास्तव में इज़राइल के अस्तित्व का एकमात्र आधार है।

 अमेरिकी अख़बार ने लिखा: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प समस्याएं उठने पर सीधे इज़राइली प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू से बात करते हैं। हाल ही में, ग़ज़ा पट्टी में एक कैथोलिक चर्च पर इस शासन के हमले के बाद, ट्रंप ने नेतन्याहू से बात की और उनसे घटना के बारे में एक बयान जारी करने को कहा।"

 अख़बार ने आगे लिखा: "लेकिन हाल की कुछ आक्रामक कार्रवाइयों, जैसे चर्चों पर हमले ने इज़राइल के प्रमुख सहयोगी (अमेरिका) की नाराज़गी भड़काई है, जिससे ट्रम्प प्रशासन को इस शासन की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा।

 वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि "हालिया दिनों में, ट्रम्प प्रशासन ने सीरिया और ग़ज़ा में इज़राइल की कार्रवाइयों पर नाराज़गी ज़ाहिर की थी।

वहीं, डोनल्ड ट्रम्प के समर्थकों ने "मैगा" (Make America Great Again) आंदोलन में इज़राइली प्रधानमंत्री के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के समर्थन की आलोचना तेज़ कर दी है। उन्हें चिंता है कि इससे अमेरिका पहले से भी ज़्यादा गहरे तक क्षेत्रीय युद्धों में फँस सकता है।

इज़राइली सरकार ने इसी महीने सीरिया की राजधानी दमिश्क में सेना के मुख्यालय और राष्ट्रपति भवन पर बमबारी की, यह दावा करते हुए कि वह अल्पसंख्यक दुरूज़ कम्युनिटी को सांप्रदायिक हिंसा से बचा रही थी।

 वॉल स्ट्रीट जर्नल का विश्लेषण है कि ट्रम्प प्रशासन ज़ायोनी शासन की कुछ आक्रामक कार्रवाइयों से नाराज़ तो है, लेकिन पहले के समर्थन के कारण वह स्वयं इसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार है।

अख़बार ने लिखा: हाल ही के दिनों में इज़राइल का अधिक मुखर होना काफ़ी हद तक ट्रम्प प्रशासन के समर्थन का नतीजा है। जून में ईरान के ख़िलाफ़ इज़राइली हमलों में अमेरिका के शामिल होने का ट्रंप का फ़ैसला पहली बार दोनों देशों को एक साथ युद्ध में ले आया, जिससे इज़राइल को यह विश्वास हो गया कि अमेरिका पश्चिम एशिया में उसके लक्ष्यों का समर्थन करेगा।

"डैन शापिरो" ने, जो बराक ओबामा के कार्यकाल में अमेरिका के इज़राइली राजदूत थे, कहा: "सीरिया और ग़ज़ा में हालिया बमबारी को लेकर तनाव आंशिक रूप से अमेरिका के मिश्रित संदेशों और इज़राइल की ग़लतफ़हमी की वजह से है।

अख़बार के अनुसार, "ट्रम्प प्रशासन ने पहले ग़ज़ा और लेबनान के ख़िलाफ़ इज़राइली कार्रवाइयों को हरी झंडी दिखाई थी, और पिछले महीने नेतन्याहू द्वारा ईरान पर हमला करने पर भी उसे रोका नहीं लेकिन सीरिया के मामले में, अमेरिका ने पहले इज़राइल की चिंताओं को स्वीकार किया, फिर उसे रोक दिया।

 "कर्ट मिल्स" ने, रूढ़िवादी पत्रिका "अमेरिकन कंज़र्वेटिव" के प्रमुख, जो ट्रंप की "अमेरिका फ़र्स्ट" नीति के समर्थक हैं, का कहना है : "वह (ट्रम्प) इज़राइल को और युद्धों की ओर धकेल रहा है, और अमेरिका को भी उसमें घसीट रहा है। नेतन्याहू जब फ़ैसले लेता है, तो वह हिम्मत (या बेबाकी) दिखाते हुए अमेरिका से समर्थन माँगता है। इससे एक अत्यधिक अस्थिर स्थिति पैदा होती है।"

 

 

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