अफ़्रीक़ी जनता पर ज़ायोनी शासन के यमन और गज़ा के खिलाफ अत्याचारों का क्या प्रभाव पड़ा है?

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अफ़्रीक़ी जनता पर ज़ायोनी शासन के यमन और गज़ा के खिलाफ अत्याचारों का क्या प्रभाव पड़ा है?

यमन पर हमले और गज़ा में इज़राइली शासन के निरंतर अत्याचारों के जवाब में कुछ अफ़्रीक़ी देशों की जनता ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए।

ट्यूनीशिया के नागरिकों ने शनिवार शाम वाशिंगटन में इज़राइल के दूतावास के सामने ज़ायोनी विरोधी प्रदर्शन करके गज़ा पट्टी में नरसंहार जारी रहने और यमन की राजधानी सना पर इजरायल के हालिया हमले की निंदा की। इस प्रदर्शन में शामिल लोगों ने ज़ायोनी शासन को अमेरिकी समर्थन की निंदा करते हुए "अमेरिका, आक्रमणकारी उकसाने वाला", "अमेरिका, इजरायल का प्रोत्साहनकर्ता" और "अमेरिका, गज़ा की नाकेबंदी का समर्थक" जैसे नारे लगाए।

 ग़ैर-सरकारी संगठन "ट्यूनीशिया नेटवर्क अगेंस्ट नॉर्मलाइजेशन" द्वारा आयोजित इस प्रदर्शन में, प्रदर्शनकारियों ने यमन के लोगों को संबोधित करते हुए नारे लगाए: "यमन ज़ायोनिज़्म और साम्राज्यवाद से नहीं डरता", "यमन, जीत की ओर बढ़ो" और "यमन दृढ़, नाकेबंदी के आगे नहीं झुकेगा"।

 पिछले गुरुवार को ज़ायोनी शासन के लड़ाकू विमानों ने सना को निशाना बनाया, जिसमें यमन के प्रधानमंत्री और सरकार के कई सदस्य शहीद हो गए। इस हवाई हमले के जवाब में, देश के अंसारुल्लाह आंदोलन के वरिष्ठ सदस्य मोहम्मद अल-बखिती ने गज़ा के लिए यमन के समर्थन पर जोर देते हुए कहा: ज़ायोनी दुश्मन के साथ हमारी लड़ाई एक नए चरण में प्रवेश कर गई है और यमनी अधिकारियों की हत्या के जुर्म में क़ब्ज़ाधारियों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

 इससे पहले, ट्यूनीशिया के नागरिकों ने शुक्रवार शाम देश की राजधानी में ज़ायोनी विरोधी प्रदर्शन करके फिलिस्तीनी प्रतिरोध के समर्थन में नारे लगाए और गज़ा की नाकेबंदी और वहां के निवासियों के नरसंहार की निंदा करते हुए पुकार लगाई: "नाकेबंदी और भूख, नाश हो जाए", "प्रतिरोध जिंदाबाद", "गज़ा दृढ़ रहो", "जैतून की डाली नहीं गिरेगी"।

मौरितानिया के नागरिकों ने भी नौआकशोट में जुमे की नमाज़ के बाद ज़ायोनी विरोधी प्रदर्शन किए और फिलिस्तीनी प्रतिरोध का समर्थन जारी रखने तथा इजरायल का समर्थन करने वाले देशों के राजदूतों को निष्कासित करने की मांग की। इस प्रदर्शन में मौरितानिया की राजनीतिक-धार्मिक हस्तियाँ भी मौजूद थीं। प्रदर्शनकारियों के बीच एक मौरितानियाई हस्ती ने अपने भाषण में कहा: गज़ा के निवासियों के साथ एकजुटता धार्मिक और मानवीय दायित्व है, और गज़ा में युद्ध रुकने और इस पट्टी की नाकेबंदी टूटने तक मौरितानिया के लोग अपने प्रदर्शन जारी रखेंगे। कुछ समय पहले, कुछ मीडिया ने मौरितानिया सरकार के ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों की खबरें प्रकाशित की थीं, जिनकी अभी तक मौरितानियाई अधिकारियों ने पुष्टि नहीं की है।

 मोरक्को के हज़ारों लोगों ने भी शुक्रवार शाम देश के विभिन्न शहरों में ज़ायोनी विरोधी प्रदर्शन करके गज़ा में नरसंहार जारी रहने और वहाँ के निवासियों को भूखा रखे जाने की निंदा की।

ये प्रदर्शन तन्जा, ततुआन और शफ़शाऊन (उत्तर), दारुल बैज़ा और जदीदा (पश्चिम), अंज़कान, तारौदंत (दक्षिण), बर्केन और ओजदा (पूर्व) जैसे शहरों में आयोजित किए गए। इनमें शामिल लोगों ने गज़ा के अकाल और विनाश की तस्वीरें लहराते हुए इज़राइल द्वारा फिलिस्तीनियों को भूखा रखने की नीति को समाप्त करने की मांग की। मोरक्को के प्रदर्शनकारियों ने "गज़ा में नरसंहार रोको" और "फिलिस्तीन एक अमानत है" जैसे बैनर लेकर "मोरक्को की जय हो, दृढ़ गज़ा की जय हो" और "मोरक्को-फिलिस्तीन एक राष्ट्र है" के नारे लगाए।

 ज़ायोनी सैनिकों द्वारा गज़ा पट्टी पर कब्ज़े के दौरान 63,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं। इसके अलावा, इस पट्टी की नाकेबंदी जारी रहने के कारण, गज़ा के 322 निवासियों की भूख से मौत हो गई है, जिनमें से 121 बच्चे हैं।

 इन कई अफ़्रीक़ी देशों में प्रदर्शन, इस महाद्वीप के लोगों का इजरायल और फिलिस्तीन के कब्जे वाले इलाकों और पश्चिम एशिया में इसके अत्याचारी कार्यों के प्रति दृष्टिकोण का एक उदाहरण है।

 अफ्रीका की जनता का दृष्टिकोण, विशेष रूप से इस महाद्वीप के मुस्लिम देशों में, इजरायल के प्रति, फिलिस्तीन के साथ ऐतिहासिक एकजुटता, साम्राज्यवाद का अनुभव और समकालीन भू-राजनीतिक प्रभावों का मिश्रण है। इस दृष्टिकोण को कुछ मुख्य बिंदुओं में देखा जा सकता है:

 फिलिस्तीन के साथ ऐतिहासिक एकजुटता

 अफ़्रीक़ी देश, खासकर वे जिन्होंने साम्राज्यवादियों के ख़िलाफ़ और स्वतंत्रता संग्राम का अनुभव किया है, अपने आप को फिलिस्तीनी जनता के साथ एक प्लेटफ़ार्म पर देखते हैं।

 अफ़्रीक़ी स्वतंत्रता सेनानी नेताओं जैसे नेल्सन मंडेला ने बार-बार फिलिस्तीन के मकसद का समर्थन किया है और इजरायली कब्जे की तुलना रंगभेद से की है।

 अफ़्रीक़ी इस्लामी देशों के रुख

 इस्लामी देश जैसे सूडान, माली, मौरितानिया और अल्जीरिया आम तौर पर इजरायल के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हैं और फिलिस्तीनियों के अधिकारों का समर्थन करते हैं।

 

हालाँकि, कुछ देशों जैसे मोरक्को और सूडान ने हालिया वर्षों में राजनयिक और आर्थिक दबावों के चलते इजरायल के साथ अपने रिश्ते सामान्य किए हैं (अब्राहम समझौते) जिसकी इन देशों की जनता में काफी आलोचना हुई है।

 जनता की राय और मीडिया

 कई अफ़्रीक़ी समुदायों में, खासकर मुसलमानों के बीच, इजरायल को अत्याचार और कब्जे का प्रतीक माना जाता है।

 

अफ़्रीक़ी देशों के स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया अक्सर गज़ा और यमन पर इजरायली हमलों की खबरों को आलोचनात्मक अंदाज में दिखाते हैं और फिलिस्तीनी पीड़ितों के साथ हमदर्दी आम बात है।

 सरकारों और जनता के नज़रिए में फ़र्क़

  जहाँ कुछ सरकारों ने आर्थिक या राजनीतिक कारणों से इज़राइल के साथ अपने संबंध बढ़ाए हैं, वहीं कई देशों की जनता अब भी इज़राइल की आलोचक बनी हुई है।

 इस अंतर के कारण कुछ सरकारें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अंदरूनी प्रतिक्रियाओं से बचने के लिए संभलकर रुख अपनाती हैं। 

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