رضوی

رضوی

ईश्वर की श्रद्धा और उपासना उनके अस्तित्व में इस प्रकार समा गई थी कि वह बड़े ही आश्चर्यजनक और अनुदाहरणीय व्यक्तित्व के स्वामी हो गए थे।

ईश्वर का बोध और ईश्वर के प्रति श्रद्धा हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के समाज सुधारक आंदोलन और उनके बलिदान का आधार थी।

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की उच्च विशेषताएं उनकी , उपासनाएं और प्रार्थनाएं ऐसी थीं कि ईश्वरप्रेमियों की भीड़ उनके आसपास एकत्रित रहती थी।

इमाम हुसैन के आंदोलन का भाग बनने वाले सारे व्यक्ति जिन्होंने इतिहास के इस स्वतंत्रता

प्रसारक मार्गदर्शक की पाठशाला में साहस व वीरता का पाठ सीखा था ऐसे सदाचारी और उच्च स्वभाव के लोग थे जो उस समय के अंधकारमय क्षितिज पर तारों की भांति चमके।

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एक विख्यात वाक्य में कहा है कि हे लोगो, ईश्वर ने अपने बंदों की रचना केवल इस लिए की है कि
वह उसे पहचानें और जब उसे पहचान लें तो उसकी उपासना करें। इस वाक्य में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मनुष्य की रचना का रहस्य ईश्वर की पहचान प्राप्त करना बताया है

क्योंकि ईश्वरीय पहचान के माध्यम से ही मनुष्य सांसारिक और इच्छा के बंधनों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है और वास्तविक स्वतंत्रता पा सकता है।

ऐसे समाज में जहां प्रेम स्नेह और मानवीय संबंधों को भुला दिया गया था हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने नई धारा प्रवाहित की जिससे नैतिक मूल्यों को नया जीवन

और मानवीय संबंधों को बल मिला। लोगों से प्रेम व मनुष्यों के साथ उपकार हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के निकट सर्वोपरि सिद्धांतों में था। इस संदर्भ में उनका कहना थाः

हे लोगो, उच्च नैतिक मूल्यों के साथ जीवन व्यतीत कीजिए और मोक्ष व कल्याण की पूंजी प्राप्त करने के लिए प्रयास कीजिए।

यदि आप ने किसी के साथ भलाई की और उसने आपका उपकार न माना तो चिंतित न होइए क्योंकि ईश्वर सबसे अच्छा पारितोषिक देने वाला है।

याद रखिए कि लोगों को आपकी आवश्यकता हो तो यह आप पर ईश्वर की अनुकंपा है। तो अनुकंपाओं को न गंवाइए वरना ईश्वरीय प्रकोप का पात्र बन जाएंगे।

इतिहास में आया है कि हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम बड़े अतिथि प्रेमी थे। लोगों की आवश्याकताएं पूरी करते थे, रिश्तेदारों से मिलने जाते और ग़रीबों का ध्यान रखते थे।

वह ग़रीबों के साथ उठते बैठते थे। समाज में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का सम्मान इस लिए भी था कि वह हमेशा आम लोगों के बीच रहते कभी उनसे दूर नहीं होते थे।

उनके पास न भव्य महल थे न अंग रक्षक। वह लोगों से बड़ी विनम्रता से मिलते। एक दिन वह एसे कुछ भिखारियों के पास से गुज़र रहे थे जो बैठक सूखी रोटी खा रहे थे। उन्होंने इमाम हुसैन को खाने के लिए निमंत्रित किया और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम बड़ी विनम्रता से उनके साथ बैठे गए और उन्होंने उनके साथ खाना खाया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि ईश्वर घमंड करने वालों को पसंद नहीं करता। इसके बाद उन्होंने इन लोगों को अपने घर खाने पर आमंत्रित किया। अपने घर उनकी बड़ी आवभगत की और सबको उपहार में कपड़े दिए।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम संपूर्ण मनुष्य और महान आदर्श हैं। वह ऐसे महापुरुषों में हैं जिन्होंने समूची मानवता को जीने और स्वतंत्र रहने की सीख दी।
उनकी जीवनी प्रकाशमान सूर्य के समान सफल मानवीय जीवन का मार्ग दिखाती है। हम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के

शुभ जन्म दिवस पर एक बार फिर अपने सभी श्रोताओं को हार्दिक बधाइयां प्रस्तुत करते हैं और उनके कुछ मूल्यवान कथनों पर यह कार्यक्रम समाप्त कर रहे हैं।

उनका कथन है। जो कठिनाइयों में घीर जाए और उसकी समझ में यह न आए कि क्या करे तो उसकी कठिनाइयों के समाधान की कुंजी लोगों से विनम्रता, स्नेह और सहिष्णुता है।



इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक अन्य कथन है। सबसे अधिक क्षमाशील व्यक्ति वह है जो शक्ति रखते हुए भी क्षमा कर दे।
 

 

 

तीन शाबान, 4 हिजरी को, मदीना मुनव्वरा के बनी हाशिम परिवार में एक ऐसी महान शख्सियत का जन्म हुआ, जिसे समय ने "अबू अब्दिल्लाह" के उपनाम से, "सय्यदश शबाब अहले जन्ना" (जन्नत के जवानों के सरदार), "सिब्तुन नबी" (नबी के पोते), "मुबारक" और "सय्यदुश शोहदा" (शहीदों के सरदार) जैसे कई उपनामों से नवाज़ा। ये शख्सियत कोई और नहीं, बल्कि इमाम हुसैन (अ) थे।

इमाम हुसैन (अ) का जीवन इंसानियत का प्रतीक है। आपने अपनी पूरी ज़िंदगी में न केवल संघर्ष और दृढ़ता की मिसाल पेश की, बल्कि अपने खून से हक और सच्चाई की झंकार भी की। आपने समाज में न्याय, शांति, और इंसाफ की स्थापना की, और दुनिया भर के लोगों को इंसानियत के मूल्य सिखाए। जब अरब में ज़ुल्म और अत्याचार अपने चरम पर था, और इंसानियत अपना अस्तित्व खो रही थी, तब इमाम हुसैन (अ) ही थे जिन्होंने अपनी जान की क़ीमत पर इंसानियत को नया जीवन दिया।

इमाम हुसैन (अ) की ज़िंदगी का मुख्य उद्देश्य समाज के संकटों से छुटकारा दिलाना, लोगों को न्याय दिलाना और समाज में शांति और सद्भाव को स्थापित करना था। आपकी ज़िन्दगी का यह उद्देश्य इतना महान है कि हमारी संस्कृति में आपकी याद को पूजा जाता है। इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की याद में मनाना हमारी श्रद्धा का एक रूप है, क्योंकि उनका उल्लेख हमेशा इंसानियत के उच्चतम स्तर तक पहुंचाने में मदद करता है।

इमाम हुसैन (अ) की शहादत पर ग़म और आँसू बहाना एक आत्मिक बदलाव का कारण बनता है, और यह हमें यह सिखाता है कि अपने विश्वास के लिए हमें अपनी जान की कुर्बानी देने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। इमाम हुसैन (अ) की याद दुनिया की बड़ी क्रांतिकारी आंदोलनों में गूंजती रही है। उनका संदेश आज भी जीवित है और सभी समुदायों, धर्मों और संस्कृतियों में फैल रहा है।

इमाम हुसैन (अ) की शहादत ने न केवल इस्लाम को बल्कि पूरी मानवता को एक सार्वभौमिक संदेश दिया। महात्मा गांधी ने कहा था: "हुसैनी सिद्धांतों पर अमल करके इंसान मुक्ति पा सकता है।" पंडित नेहरू ने कहा: "इमाम हुसैन (अ) की शहादत में एक विश्वव्यापी संदेश है।" प्रसिद्ध लेखक कार्लाइल ने कहा था: "इमाम हुसैन (अ) की शहादत पर जितना विचार किया जाएगा, उतना ही इसके उच्चतम अर्थ खुलेंगे।" भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था: "इमाम हुसैन (अ) की कुर्बानी किसी एक देश या जाति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी मानवता की महान धरोहर है।" बांग्लादेश के प्रसिद्ध लेखक रवींद्रनाथ ठाकुर ने कहा: "सत्य और न्याय को बनाए रखने के लिए सैनिकों और हथियारों की ज़रूरत नहीं होती, बल्के कुर्बानियां देकर भी विजय प्राप्त की जा सकती है, जैसे इमाम हुसैन (अ) ने करबला में दी। निःसंदेह, इमाम हुसैन (अ) इंसानियत के नेता हैं।"

इमाम हुसैन (अ) ने अपनी कुर्बानी से इंसानियत को अमर बना दिया, और उनकी याद हमेशा इंसानी समाजों में जिंदा रहेगी। इस पवित्र अवसर पर, मैं दुनिया भर के सभी इंसानियत प्रेमियों और खासकर इमाम हुसैन (अ) के अनुयायियों को बधाई देता हूँ और अल्लाह से दुआ करता हूँ कि ज़हरा के चाँद की सच्चाई के लिए, दुनिया से ज़ुल्म और अत्याचार को समाप्त कर दे और आखिरी हज़रत (अ) का ज़ुहूर फर्मा दे। आमीन, और अलहम्दुलिल्लाह रब्बिल आलमीन।

इमाम हुसैन (अ) पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स.) के पोते और हज़रत अली (अ) और हज़रत फातिमा (स) के बेटे थे। इमाम हुसैन (अ) का जन्म इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 3 शाबान, 5 हिजरी को मदीना में हुआ। उनके जन्म ने इस्लामिक समुदाय में न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया।

इमाम हुसैन (अ) इस्लामी इतिहास में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वे पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स.) के पोते और हज़रत अली (अ) और हज़रत फातिमा (स) के बेटे थे। इमाम हुसैन (अ) का जन्म इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 3 शाबान, 5 हिजरी को मदीना में हुआ। उनके जन्म ने इस्लामिक समुदाय में न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया।

इमाम हुसैन (अ) का जन्म उस समय हुआ जब इस्लाम अपने प्रारंभिक चरण में था और मदीना में मुस्लिम समाज अपनी धार्मिक और सामाजिक पहचान को स्थापित कर रहा था। उनके जन्म के समय, हज़रत अली (अ) और हज़रत फातिमा (स) पहले से ही पैगंबर मुहम्मद (स.) के प्रिय और सबसे सम्मानित व्यक्तित्वों में से थे।

शिया स्रोतों में वर्णित है कि जब इमाम हुसैन (अ) का जन्म हुआ, तो हज़रत अली (अ) और हज़रत फातिमा (स) बेहद खुश थे। पैगंबर मुहम्मद (स.) ने उनके जन्म के अवसर पर उन्हें विशेष आशीर्वाद दिए थे। इस संबंध में शिया किताबों में विशेष रूप से "कामिल उज ज़ियारात" और "तफ़सीर अली बिन इब्राहीम" जैसी किताबों में विस्तृत वर्णन मिलता है।

इमाम हुसैन (अ) के जन्म के बाद, पैगंबर मुहम्मद (स.) ने उन्हें अपनी गोदी में लिया और उनके साथ बहुत स्नेह और प्रेम दिखाया। एक प्रसिद्ध घटना है जिसमें पैगंबर ने इमाम हुसैन (अ) और उनके भाई इमाम हसन (अ) के बारे में कहा था, "ये दोनों मेरे घराने के फूल हैं।" यह घटना शिया स्रोतों में "अल-मुसन्नफ" और "तफ्सीर अली बिन इब्राहीम" में उल्लेखित है।

इमाम हुसैन (अ) के जन्म के समय के घटनाक्रम को शिया इतिहासकारों ने अपनी किताबों में दर्ज किया है। विशेष रूप से "निहायतुल-आराब" और "ताफसीरुल-आयात" जैसी किताबों में उनके जन्म के बारे में विस्तार से बताया गया है। इन किताबों में यह भी उल्लेख है कि इमाम हुसैन (अ) का जन्म न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि मानवता के लिए एक आदर्श बनकर सामने आया।

इमाम हुसैन (अ) का जन्म इस्लामिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो न केवल शिया समुदाय बल्कि समूचे इस्लामी विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। उनका जीवन उनके उच्च नैतिक और धार्मिक आदर्शों का प्रतीक है, जिनका पालन मुसलमानों द्वारा किया जाता है। उनका जन्म एक ऐसे समय में हुआ था, जब इस्लाम के पालन-पोषण के लिए संघर्ष आवश्यक था, और उनके जीवन ने सत्य, न्याय और धर्म के प्रति समर्पण की मिसाल प्रस्तुत की।

इमाम हुसैन (अ) के जीवन और उनके संघर्ष को समझना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें समाज में न्याय और समानता की स्थापना के लिए प्रेरित करता है।

मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने जुमआ के खुतबे में अमीरुल मोमिनीन अ.स. की हदीस बयान करते हुए कहा,ख़ुदावंदे आलम ने दौलतमंदों के माल में फ़क़ीरों की रोज़ी फर्ज़ की है कोई फ़क़ीर भूखा नहीं सोता मगर ये कि मालदार ने उसके हक़ को रोक लिया है और अल्लाह इस सिलसिले में उससे सवाल करेगा।अगर हमारे समाज में कोई भूखा है तो इसका मतलब यह है कि अमीरों ने लापरवाही की है।

लखनऊ / शाही आसिफी मस्जिद में 31 जनवरी 2025 को जुमा की नमाज हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी साहब क़िब्ला प्रिंसिपल हौज़ा इल्मिया हज़रत ग़ुफ़रानमाब लखनऊ की इमामत में अदा की गई।

मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने नमाज़ियों को तक़वा-ए-इलाही की नसीहत करते हुए फ़रमाया,मैं अपने आप को और आप तमाम हज़रात को तक़वा-ए-इलाही इख्तियार करने की नसीहत कर रहा हूँ। परवरदिगार हम सब को इतनी तौफ़ीक़ दे कि हमारे दिलों में उसका तक़वा मौजूद हो हम हमेशा उससे डरते रहें और उसके अहकाम पर अमल करते रहें।

 

मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी ने अमीरुल मोमिनीन अ.स. के खुत्बा-ए-ग़दीर को बयान करते हुए फ़रमाया,जो ग़दीर के दिन कुछ मोमिनों की किफालत की ज़िम्मेदारी लेगा तो अमीरुल मोमिनीन अ.स. ज़ामिन होंगे कि उस शख्स की मौत कुफ्र पर न हो और न ही वह तंगदस्त हो।

मौलाना ने हदीस की रौशनी में आगे फ़रमाया,अगर कोई मोमिनों की किफालत की ज़िम्मेदारी ले और उसे मौत आ जाए तो उसका अज्र अल्लाह पर है।

मौलाना ने इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. की हदीस बयान करते हुए कहा,हमारे शिया अहल-ए-मुरव्वत होते हैं बा इज़्ज़त होते हैं, सख़ी होते हैं, कंजूस नहीं होते, करीम होते हैं और अपने भाइयों की हाजत पूरी करने वाले होते हैं।

मौलाना ने अमीरुल मोमिनीन अ.स. की हदीस दोहराते हुए कहा,ख़ुदावंदे आलम ने दौलतमंदों के माल में फ़क़ीरों की रोज़ी फर्ज़ की है कोई फ़क़ीर भूखा नहीं सोता मगर ये कि मालदार ने उसके हक़ को रोक लिया है और अल्लाह इस सिलसिले में उससे सवाल करेगा।अगर हमारे समाज में कोई भूखा है तो इसका मतलब यह है कि अमीरों ने लापरवाही की है।

बहरैन की संसद ने एक नया कानून पारित किया है जिसके तहत सुन्नी और शिया औक़ाफ़ को शूरा-ए-आला बराए इस्लामी उमूर के अधीन कर दिया जाएगा इस फैसले को शिया समुदाय की स्वायत्तता को सीमित करने का एक और प्रयास माना जा रहा है।

बहरैन की संसद ने एक नया कानून पारित किया है, जिसके तहत सुन्नी और जाफरी (शिया) औक़ाफ़ को "शूरा-ए-आला बराए इस्लामी उमूर" (उच्च इस्लामी मामलों की परिषद) के अधीन कर दिया जाएगा। इस फैसले को शिया समुदाय की स्वायत्तता को सीमित करने का एक और प्रयास माना जा रहा है।

संसद का फैसला और सरकारी तर्क

बहरैनी संसद ने बहुमत से इस कानून को मंज़ूरी दी जिससे दोनों औक़ाफ़ की निगरानी और प्रबंधन अब "शूरा-ए-आला बराए इस्लामी उमूर" के तहत आ जाएगा सरकार का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य मस्जिदों और औक़ाफ़ के बेहतर प्रबंधन को सुनिश्चित करना है।

संसद के एक सदस्य अहमद कराता ने कहा कि चूंकि शूरा-ए-आला के अधीन मस्जिदों का प्रबंधन बेहतर है इसलिए सुन्नी और जाफरी औक़ाफ़ को भी इसके अधीन लाना ज़रूरी है ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

शिया औक़ाफ़ की स्वायत्तता पर प्रभाव

यह निर्णय बहरैन की धार्मिक विविधता की नीति के विपरीत है और शिया समुदाय के धार्मिक, सांस्कृतिक और वित्तीय अधिकारों को सीधे प्रभावित करेगा।

इतिहास में शिया औक़ाफ़ को एक स्वतंत्र दर्जा प्राप्त था, विशेष रूप से शाह हमद बिन ईसा के शासन से पहले, जब सरकार औक़ाफ़ के मामलों या न्यायिक निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करती थी।

इस कानून से यह साफ़ होता है कि सरकार एक विशेष धार्मिक दृष्टिकोण को थोप रही है और शिया समुदाय के फैसलों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है।

लोकतंत्र और राजनीतिक असंतोष

यह निर्णय एक ऐसी संसद द्वारा लिया गया है, जिसमें जनता की वास्तविक भागीदारी नहीं है। 2018 और 2022 के चुनावों में विपक्ष को भाग लेने से रोका गया था जिससे संसद जनता की भावनाओं का सही प्रतिनिधित्व नहीं करती। कई राजनीतिक विरोधियों को या तो निर्वासित कर दिया गया है या जेल में डाल दिया गया है, और चुनावी क्षेत्रों के विभाजन भी सरकार के पक्ष में किए गए हैं।

शिया समुदाय के लिए संभावित परिणाम

यह कदम शिया समुदाय के बचे हुए धार्मिक और वित्तीय अधिकारों को खत्म करने की कोशिश है इस फैसले के बाद सरकार सीधे तौर पर शिया औक़ाफ़ के वित्तीय मामलों ज़मीन और अन्य संपत्तियों पर नियंत्रण हासिल कर लेगी जिससे आर्थिक शोषण का खतरा बढ़ जाएगा।

धार्मिक स्वतंत्रता और उलेमा की बेबसी

बहरीन में सरकार पहले से ही शिया औक़ाफ़ पर कड़ा नियंत्रण रखती है और उलेमा की स्वायत्तता की मांगों को खारिज कर चुकी है औक़ाफ़ के आंतरिक सदस्य भी सरकारी फैसलों पर आपत्ति जताने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें उनके पद से हटा दिया जा सकता है।

2011 में इसका एक उदाहरण देखने को मिला जब बहरैनी राजा ने शिया औक़ाफ़ के सभी 10 सदस्यों को बर्खास्त कर दिया क्योंकि उन्होंने मस्जिदों को ध्वस्त किए जाने के खिलाफ एक विरोधी बयान जारी किया था।

इस कानून से शिया समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और वित्तीय स्वायत्तता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। सरकार द्वारा धार्मिक मामलों पर बढ़ता नियंत्रण बहरीन में धार्मिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक चुनौती बन सकता है।

मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी ने जुमआ के खुत्बे में नमाज़ियों को मुतवज्जह करते हुए फ़रमाया,खुशी के महीने आज़ादी के नहीं बल्कि इबादत के महीने हैं ख़ुदावंदे आलम ने यह महीने, यह मौसम इबादतों, नमाज़ों, दुआओं और इस्तग़फार के लिए रखा है।

मुंबई/ ख़ोजा शिया इस्ना अशरी जामा मस्जिद, पालागली में 31 जनवरी 2025 को जुमआ की नमाज़ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी की इमामत में अदा की गई।

मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी ने फ़रमाया:माहे मुक़द्दस शाबान आपकी ख़िदमत में हाज़िर है और यह हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा स.अ.व.व. का महीना है यह बरकतों का महीना है, जिसमें अल्लाह ने बड़ी बड़ी नेमतें अता की हैं हज़रत ज़ैनब (स.अ.), इमाम हुसैन सैय्यदुश्शोहदा (अ.), हज़रत अबुल फ़ज़ल अब्बास (अ.), हज़रत अली अकबर (अ.) और हज़रत इमाम-ए-ज़माना (अ.ज.फ) की विलादत इसी महीने में हुई है।

मौलाना ने आगे फ़रमाया:यह महीना बरकतों, अज़मतों और मग़फ़िरत का महीना है यह नेक आमाल और रोज़े रखने का महीना है। जो शख़्स इस महीने में रोज़ा रखेगा अल्लाह उसे जहन्नम की आग से दूर कर देगा।

इबादत की अहमियत पर तज़किरा करते हुए मौलाना ने कहा,ख़ुशी के महीने आज़ादी के नहीं बल्कि इबादत के महीने हैं ख़ुदावंदे आलम ने यह महीने इबादतों, नमाज़ों, दुआओं और इस्तग़फ़ार के लिए मुक़र्रर किए हैं।

मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी ने एक रिवायत बयान करते हुए कहा,तौबा जन्नत का दरख़्त है और ज़क़्क़ूम जहन्नम का दरख़्त है। जो नेकी के आमाल अंजाम देता है वह दरख़्त-ए-तूबा की शाख़ से मुतमस्सिक (लिपटा) होता है, और जो बुरे आमाल अंजाम देता है, वह दरख़्त-ए-ज़क़्क़ूम की शाख़ से जुड़ जाता है। ये शाख़ें इंसान को उसकी अस्ल तक ले जाती हैं।

अच्छी आवाज़ में अज़ान और दुआ पढ़ने पर ज़ोर देते हुए मौलाना ने कहा,रिवायात में आया है कि अज़ान देने वाला ख़ुश-लहजा हो और उसकी आवाज़ दिलों को छूने वाली हो।

मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी ने माहे शाबान में सलवाते शाबानिया की अहमियत को बयान करते हुए कहा,हमें अपने इमाम, अपने साहिब, अपने मौला इमाम-ए-ज़माना अ.ज.फ. की तरफ़ मुतवज्जेह रहना चाहिए और उनसे तवस्सुल करना चाहिए।

ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़ेश्कियान और उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने इस्लामी क्रांति की 46वीं वर्षगांठ और अशरा-ए-फज्र के अवसर पर इमाम खुमैनी रह. के मजार पर हाजिरी दी और उनके सिद्धांतों के प्रति अपनी निष्ठा दोहराई हैं।

ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़ेश्कियान और उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने इस्लामी क्रांति की 46वीं वर्षगांठ और अशरा-ए-फज्र के अवसर पर इमाम खुमैनी रह. के मजार पर हाजिरी दी और उनके सिद्धांतों के प्रति अपनी निष्ठा दोहराई हैं।

शनिवार को राष्ट्रपति और उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने तेहरान में इमाम खुमैनी र.ह.के मजार की गुलपोशी की और सूरह फातिहा की तिलावत की इस अवसर पर उन्होंने इस्लामी क्रांति और ईरानी इस्लामी गणराज्य के संस्थापक को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके विचारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया।

इस समारोह में राष्ट्रपति और मंत्रियों ने आयतुल्लाह हाशमी रफसंजानी और इमाम खुमैनी र.ह.के पुत्र सैयद अहमद खुमैनी को भी याद किया और उनके लिए सूरह फातिहा पढ़ी।

इसके अलावा राष्ट्रपति मसऊद पेज़ेश्कियान और उनकी कैबिनेट ने क्रांति के शहीदों, जिनमें शहीद मोहम्मद अली रजाई, मोहम्मद जवाद बा हुनर और आयतुल्लाह बहिश्ती शामिल हैं, के मजारों पर भी श्रद्धांजलि दी और उनकी आत्मा के लिए प्रार्थना की।

इस अवसर पर इमाम खुमैनी र.ह.के नवासे और उनके मजार के संरक्षक, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हसन खुमैनी ने राष्ट्रपति और उनकी कैबिनेट का स्वागत किया और पूरे कार्यक्रम में उनके साथ रहे।

ईरानी विदेश मंत्री ने कहा,अमेरिका द्वारा ईरान की जब्त संपत्तियों की बहाली विश्वास बहाली की दिशा में पहला कदम साबित होगी।

ईरानी विदेश मंत्री ने कहा,अमेरिका द्वारा ईरान की जब्त संपत्तियों की बहाली विश्वास बहाली की दिशा में पहला कदम साबित होगी।

ईरानी विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची ने कहा कि यदि अमेरिका ईरान की जब्त की गई संपत्तियों को बहाल करता है तो यह विश्वास बहाली की दिशा में पहला कदम होगा उन्होंने यह भी कहा कि ईरान और अमेरिका के बीच लंबे समय से अविश्वास की स्थिति बनी हुई है, जिसे केवल शब्दों से खत्म नहीं किया जा सकता।

  1. अमेरिका की नई सरकार की नीति पर नजर:

अराक़ची ने कहा कि ईरान अमेरिकी नीतियों पर कड़ी नजर रखे हुए है और जो बाइडेन प्रशासन ईरान, परमाणु समझौते और ईरानी परमाणु कार्यक्रम को लेकर क्या नीति अपनाता है उसी के अनुसार ईरान अपनी रणनीति तय करेगा।

  1. ईरान का परमाणु कार्यक्रम अविनाशी:

ईरानी विदेश मंत्री ने कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम ईरानी वैज्ञानिकों के दिमाग में है, ज़मीन पर नहीं इसे बमबारी या हवाई हमलों से नष्ट नहीं किया जा सकता। ईरान की परमाणु सुविधाएं केवल एक या दो स्थानों तक सीमित नहीं हैं बल्कि कई जगहों पर फैली हुई हैं और उनकी सुरक्षा बेहद कड़ी है, जिससे उन पर हमला करना आसान नहीं।

  1. परमाणु हमले की स्थिति में ईरान की कड़ी प्रतिक्रिया:

अराक़ची ने चेतावनी दी कि यदि ईरानी परमाणु स्थलों पर हमला किया गया, तो ईरान तत्काल और निर्णायक प्रतिक्रिया देगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका और इजराइल जानते हैं कि ईरान किन लक्ष्यों को निशाना बना सकता है।

  1. परमाणु हथियार बनाना हराम

अराक़ची ने कहा कि ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं हैं और यह उसके सैन्य सिद्धांत का हिस्सा भी नहीं है ईरान की सुरक्षा अन्य तरीकों से सुनिश्चित की जाती है और परमाणु हथियार हमारे लिए इस्लामी दृष्टि से हराम हैं।

ईरान के सर्वोच्च नेता ने एक स्पष्ट फतवा जारी किया है जिसमें परमाणु हथियारों समेत सभी विध्वंसक हथियारों के निर्माण, भंडारण और उपयोग को इस्लाम में निषिद्ध (हराम) बताया गया है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हमारे पास परमाणु हथियार बनाने की तकनीकी क्षमता है लेकिन क्या हम इसे बनाएंगे? बिल्कुल नहीं। न पहले हमारा ऐसा इरादा था न अब है, और न ही भविष्य में होगा।

 

ईरान इस्लामिक गणराज्य में दस दिवसीय फ़ज्र समारोह की शुरुआत हो गई है। ये समारोह इस्लामिक गणराज्य ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी की मातृभूमि पर वापसी और इस्लामी क्रांति की सफलता की चवालिस्वीं वर्षगांठ के मौके पर पूरे देश में आयोजित किए जाते हैं।

ईरान इस्लामिक गणराज्य में दस दिवसीय फ़ज्र समारोह की शुरुआत हो गई है। ये समारोह इस्लामिक गणराज्य ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी की मातृभूमि पर वापसी और इस्लामी क्रांति की सफलता की चवालिस्वीं वर्षगांठ के मौके पर पूरे देश में आयोजित किए जाते हैं। अशरा ए फ़ज्र के पहले दिन से पूरे देश के स्कूलों में घंटी बजाई गई।

फ़ज्र समारोह की शुरुआत के मौके पर, इस्लामिक क्रांति के नेता आयतुल्लाह सय्यद अली खामेनेई ने इमाम खुमैनी के मज़ार पर नमाज अदा की।

फ़ज्र समारोह की शुरुआत के अवसर पर अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे, जिनमें तेहरान के महराबाद हवाई अड्डे से ऐतिहासिक बहेश्ते ज़हरा कब्रिस्तान तक, इमाम खुमैनी की वापसी के मार्ग पर हेलीकॉप्टरों द्वारा फूलों की वर्षा, सशस्त्र बलों की मोटरसाइकिल परेड और इमाम खुमैनी की मज़ार में विशेष कार्यक्रम प्रमुख रूप से शामिल हैं।

इस्लामी क्रांति की सफलता के जश्न और इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम खुमैनी की मातृभूमि पर वापसी के अवसर पर पूरे देश में विभिन्न रंग-बिरंगे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें खलीज फारस में समुद्री जहाजों के हार्न बजाना भी शामिल है।

28 रजब को इमाम हुसैन अ.स. ने मदीने से हिजरत की, और पूरी दुनिया वालों के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का खुला संदेश था यज़ीद की बैय्यत से इनकार और दीने खुदा की सुरक्षा करना,

28 रजब को इमाम हुसैन अ.स. ने मदीने से हिजरत की, और पूरी दुनिया वालों के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का खुला संदेश था यज़ीद की बैय्यत से इनकार और दीने खुदा की सुरक्षा करना,

इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय वलीद के दरबार में जाना आपके लिए ख़तरनाक हो सकता है، इमाम ने कहा कि में जाऊँगा तो ज़रूर लेकिन अपनी सुरक्षा का इंतेज़ाम करके वलीद से मिलूँगा खुद अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रातों रात मदीने से मक्के की तरफ फरार कर गए।

मुआविया जहन्नम रसीद हुआ तो मदीने में बनी उमय्या के गवर्नर वलीद ने इमाम हुसैन (अ.स.) को संदेश भेजा कि वह दरबार में आयें उनके लिए यज़ीद का एक ज़रूरी पैग़ाम है। इमाम हुसैन (अ.स.) उस समय इब्ने ज़ुबैर के साथ मस्जिद-ए-नबवी में बैठे थे।

जब यह संदेश आया तो इमाम से इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय इस तरह का पैग़ाम आने का मतलब क्या हो सकता है? इमाम हुसैन (अ.स.) ने कहा कि लगता है कि मुआविया की मौत हो गई है और शायद यज़ीद की बैअत के लिए वलीद ने हमें बुलाया है। इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय वलीद के दरबार में जाना आपके लिए ख़तरनाक हो सकता है। इमाम ने कहा कि में जाऊँगा तो ज़रूर लेकिन अपनी सुरक्षा का इंतेज़ाम करके वलीद से मिलूँगा। खुद अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रातों रात मदीने से मक्के की तरफ फरार कर गए।

इमाम बनी हाशिम के जवानों को लेकर वलीद के दरबार में पहुँच गए। लेकिन अपने साथ आये बनी हाशिम के जवानों से कहा कि वह लोग बाहर ही ठहरे और अगर इमाम की आवाज़ बुलंद हो तो अन्दर आ जाएँ।

इमाम वलीद के दरबार में पहुँचे तो उस समय वलीद के साथ बनी उमय्या का अहम् सरदार और रसूलो अहले बैते रसूल का बदतरीन दुश्मन मरवान भी बैठा हुआ था। इमाम हुसैन (अ.स.) तशरीफ़ लाए तो वलीद ने मुआविया की मौत कि ख़बर देने के बाद यज़ीद की बैअत के लिए कहा। इमाम हुसैन (अ.स.) ने यज़ीद की बैअत करने से साफ़ इनकार कर दिया और वापस जाने लगे तो पास बैठे हुए मरवान ने कहा कि अगर तूने इस वक़्त हुसैन को जाने दिया तो फिर ऐसा मौक़ा नहीं मिलेगा यही अच्छा होगा कि इनको गिरफ़्तार करके बैअत ले ले या फिर क़त्ल कर के इनका सर यज़ीद के पास भेज दे।

यह सुनकर इमाम हुसैन (अ.स.) को जलाल आ गया और आपने बुलंद आवाज़ में फ़रमाया “भला तेरी या वलीद कि यह मजाल कि मुझे क़त्ल कर सकें?” इमाम हुसैन (अ.स.) की आवाज़ बुलंद होते ही उनके छोटे भाई हज़रत अब्बास के नेतृत्व मैं बनी हाशिम के जवान तलवारें उठाये दरबार में दाखिल हो गए लेकिन इमाम ने इन नौजवानों को सब्र की तलक़ीन की और घर वापस आ कर मदीना छोड़ने के बारे मैं मशविरा करने लगे।

बनी हाशिम के मोहल्ले मैं इस खबर से शोक का माहौल छा गया। इमाम हुसैन (अ.स.) अपने खानदान के साथ मदीना छोड़ कर मक्का की ओर हिजरत कर गए जहाँ आप लगभग साढ़े चार महीने खाना ए काबा के नज़दीक रहे लेकिन हज का ज़माना आते ही इमाम को खबर मिली कि यज़ीद ने हाजियों के लिबास में क़ातिलों का एक ग्रुप भेजा है जो इमाम को हज के दौरान क़त्ल करने की नीयत से आया है। वैसे तो हज के दौरान हथियार रखना हराम है और एक चींटी को भी मार दिया जाए तो इंसान पर कफ्फ़ारा लाज़िम हो जाता है लेकिन यज़ीद और बनी उमय्या के लिए इस्लामी उसूल या काएदे कानून क्या मायने रखते थे?

जिस वक़्त पूरा आलमे इस्लाम सिमट कर मक्का की तरफ आ रहा था इमामे हुसैन ने हुरमते काबा बचाने के लिए हज को उमरह में बदल कर मक्का से कर्बला की तरफ हिजरत का फैसला किया।