
رضوی
ग़ज़्ज़ा के पुनर्निर्माण के लिए मिस्र की योजना का हमास ने किया स्वागत
हमास ने अरब देशों के हालिया शिखर सम्मेलन में स्वीकृत मिस्र की ग़ाज़ा पुनर्निर्माण योजना का स्वागत किया और सभी पक्षों से इसके सफल कार्यान्वयन के लिए आवश्यक संसाधन और समर्थन कराने की अपील की।
हमास प्रतिरोध आंदोलन ने एक बयान जारी कर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग की कि वह इज़रायली शासन पर दबाव डाले ताकि ग़ाज़ा में संघर्ष विराम समझौते के दूसरे चरण की वार्ता तुरंत शुरू की जा सके।
हमास ने अपने बयान में इस बात पर जोर दिया कि फिलिस्तीनी जनता अरब जगत के समर्थन से जबरन विस्थापन, ग़ाज़ा पर क़ब्ज़े और ज़ायोनी बस्तियों के निर्माण को रोकने में सक्षम है। बयान में यह भी कहा गया कि इज़रायल की नीतियां ग़ाज़ा में जनसंख्या संतुलन को बदलने और वहां के निवासियों को जबरन बेदखल करने की साजिश का हिस्सा हैं, जिसे किसी भी हाल में सफल नहीं होने दिया जाएगा।
हमास ने अरब देशों के हालिया शिखर सम्मेलन में स्वीकृत मिस्र की ग़ाज़ा पुनर्निर्माण योजना का स्वागत किया और सभी पक्षों से इसके सफल कार्यान्वयन के लिए आवश्यक संसाधन और समर्थन उपलब्ध कराने की अपील की है इस योजना का उद्देश्य ग़ाज़ा में युद्ध से प्रभावित बुनियादी ढांचे को फिर से खड़ा करना और विस्थापित लोगों को पुनः बसाना है।
हमास ने अपने बयान में अरब नेताओं से यह भी अनुरोध किया कि वे ग़ाज़ा में संघर्ष-विराम समझौते के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने, फिलिस्तीनी जनता को राजनीतिक समर्थन प्रदान करने और ज़ायोनी शासन पर दबाव बनाने के लिए संयुक्त प्रयास करें ताकि वह समझौते में किसी भी प्रकार का बदलाव न कर सके।
संघर्ष विराम वार्ता को आगे बढ़ाने की मांग हमास ने इज़रायली शासन पर दबाव डालने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इज़रायल को संघर्ष-विराम समझौते की शर्तों को पूरी तरह लागू करने और अपने दायित्वों को निभाने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए।
संगठन ने इस बात पर जोर दिया कि संघर्ष-विराम वार्ता के दूसरे चरण को शीघ्र शुरू किया जाए और फिलिस्तीनी जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए।
केरल के मंदिर में इफ्तार/धार्मिक एकता की अनोखी मिसाल
केरल कि एक मंदिर में रमज़ान के दौरान मुस्लिम समुदाय के साथ इफ्तार आयोजित कर धार्मिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश की गई।
केरल के कासरगॉड में एक मंदिर ने रमजान के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ इफ्तार की दावत आयोजित कर धार्मिक एकता की मिसाल पेश की गई।
आमतौर पर इफ्तार का कार्यक्रम मस्जिदों में होता है लेकिन इस बार मंदिर परिसर में हुए इस आयोजन ने सभी को हैरान कर दिया यहां के पेरुमकल्याट्टम उत्सव के दौरान मंदिर समिति ने भक्तों के लिए भोजन तैयार किया, लेकिन साथ ही मुस्लिम भाइयों को भी प्रसाद देने की घोषणा की।
सूरज ढलते ही रोजेदार मंदिर पहुंचने लगे मंदिर के लोगों ने उनका प्यार से स्वागत किया और आपस में गपशप भी हुई। जैसे ही अजान की आवाज मंदिर में गूंजी सभी शांत हो गए। मंदिर में रोजा खोलने का यह नजारा दिल को छू गया। स्थानीय निवासी मुनव्वर अली शहाब ने बताया कि उन्होंने 13 मस्जिदों को निमंत्रण दिया था और यह दृश्य बेहद भावुक कर देने वाला था। उन्होंने सोशल मीडिया पर इस अनुभव को साझा करते हुए लिखा यह आयोजन वाकई सुंदर था।
नीलेश्वरम, पल्लीकारा और थारकारीपुर जैसी जगहों पर भी इफ्तार कार्यक्रम हुए। मंदिर समिति के सदस्यों ने मस्जिदों के प्रतिनिधियों को खुद जाकर खाने का सामान दिया, जिससे दोनों समुदायों के बीच रिश्ते और मजबूत हुए।
स्थानीय व्यक्ति साबिर चरमाल ने बताया कि यहां की एकता सिर्फ रमजान तक सीमित नहीं है। उन्होंने बाढ़ के समय मस्जिदों द्वारा लोगों को शरण देने का उदाहरण देते हुए कहा,हम सभी एक-दूसरे को परिवार की तरह मानते हैं।
क़ुरआन: शासन और विकास का स्रोत।इमाम ए जुमआ तेहरान
तेहरान के इमाम ए जुमआ, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मोहम्मद हसन अबूतुराबी फ़रद ने 32वीं अंतर्राष्ट्रीय कुरआन प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में कहा कि कुरआन शासन के उच्च सिद्धांत प्रदान करता है जिन्हें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मामलों में लागू किया जाना चाहिए।
तेहरान के इमाम ए जुमआ, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मोहम्मद हसन अबूतुराबी फ़रद ने 32वीं अंतर्राष्ट्रीय कुरआन प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में कहा कि कुरआन शासन के उच्च सिद्धांत प्रदान करता है जिन्हें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मामलों में लागू किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि क़ुरआन सिर्फ़ एक किताब नहीं है बल्कि यह जीवन और सामाजिक व्यवस्था का संपूर्ण मार्गदर्शक है जैसा कि हज़रत फ़ातिमा (स.) ने फ़रमाया कि पैग़ंबर ए अकरम (स.) का चरित्र ही क़ुरआन था और अमीर-उल-मोमिनीन हज़रत अली (अ.) भी क़ुरआन का एक जीवंत उदाहरण थे।
तेहरान के अस्थायी इमामे जुमा ने क़ुरआन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस्लामी क्रांति और इस्लामी व्यवस्था की स्थापना के बाद अब इस्लामी शासन की ओर बढ़ना आवश्यक है जैसा कि रहबर-ए-इंक़िलाब ने भी इस पर ज़ोर दिया है उन्होंने हज़रत यूसुफ़ (अ.) के शासन की मिसाल देते हुए कहा कि सफल शासन व्यवस्था क़ानून की सर्वोच्चता और योग्य व्यक्तियों के चयन पर आधारित होती है।
उन्होंने आगे कहा कि आर्थिक स्थिरता के बिना विकास संभव नहीं है क़ुरआन अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने पर ज़ोर देता है और आज हमें एक न्यायसंगत वित्तीय प्रणाली की आवश्यकता है ताकि देश प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सके।
अंत में उन्होंने क़ुरआनी प्रदर्शनी को धार्मिक शिक्षाओं के प्रसार का एक बेहतरीन अवसर क़रार दिया और उम्मीद जताई कि यह आयोजन समाज में क़ुरआनी मूल्यों को बढ़ावा देने का कारण बनेगा।
क़ुरआन; रहनुमा ए ज़िंदगी के विषय पर तेहरान में अंतर्राष्ट्रीय क़ुरआन करीम प्रदर्शनी का उद्घाटन
32वीं अंतर्राष्ट्रीय क़ुरआन करीम प्रदर्शनी क़ुरआन; रहनुमा ए ज़िंदगी के विषय पर कल तेहरान के मोसल्लाह इमाम ख़ुमैनी (रह) में शुरू हो चुकी है जो रमज़ान अल मुबारक की 15वीं तारीख़ तक जारी रहेगी।
32वीं अंतर्राष्ट्रीय क़ुरआन करीम प्रदर्शनी क़ुरआन; रहनुमा ए ज़िंदगी के विषय पर कल तेहरान के मोसल्लाह इमाम ख़ुमैनी (रह) में शुरू हो चुकी है जो रमज़ान अल मुबारक की 15वीं तारीख़ तक जारी रहेगी।
उद्घाटन समारोह में ईरान के संस्कृति मंत्री सहित देशी और विदेशी क़ुरआनी विशेषज्ञों बुद्धिजीवियों और बड़ी संख्या में आम जनता ने शिरकत की।
इस वर्ष प्रदर्शनी में 37 विभिन्न विभाग शामिल हैं जिनमें से 28 सार्वजनिक संस्थानों और 15 सरकारी संगठनों के तहत संचालित हैं। 40 सार्वजनिक संस्थान अपने विशिष्ट क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जबकि 300 से अधिक क़ुरआनी विषयों पर पुस्तकें प्रदर्शित की जा रही हैं।
प्रदर्शनी में 9 नई क़ुरआनी किताबों का अनावरण किया जाएगा जबकि 58 विद्वतापूर्ण बैठकें और 26 क़ुरआनी महफ़िलों का आयोजन किया जाएगा।
इस वर्ष प्रदर्शनी में अन्य देशों के क़ुरआनी प्रतिनिधि भी भाग ले रहे हैं जिससे ईरान और अन्य देशों के क़ुरआनी संबंधों को बढ़ावा मिलेगा समापन समारोह में ईरान के राष्ट्रपति की उपस्थिति में ख़ुद्दाम-ए-क़ुरआन को सम्मानित किया जाएगा।
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री, इस्लामोफ़ोबिया को बर्दाश्त नहीं करेंगे
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री, इस्लामोफ़ोबिया को बर्दाश्त नहीं करेंगे, इस्लाम के ख़िलाफ़ संगठित ढंग से नफ़रत फ़ैलाने के प्रति तुर्किये की चेतावनी
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री Anthony Albanese ने इस देश के दक्षिण पश्चिम में एक मस्जिद के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यवाही की सूचना दी है।
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री Anthony Albanese ने सिडनी के दक्षिण पश्चिम में एक मस्जिद के विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही को नफ़रत फ़ैलाने वाली कार्यवाही का नाम दिया। पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि आ᳴स्ट्रेलिया जातिवादी और इस्लामोफ़ोबिया को बर्दाश्त नहीं करेगा।
ब्रिटेन में इस्लामोफ़ोबिया का मुक़ाबला करने के लिए नये कार्यदल का गठन
ब्रिटेन की सरकार ने इस देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ होने वाली नफ़रत की कार्यवाहियों या इस्लामोफ़ोबिया से मुक़ाबला करने के उद्देश्य से एक गुट का गठन किया है। ब्रिटेन में मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपराधों में अभूतपूर्व ढ़ंग से वृद्धि हो गयी है और लंदन सरकार मुसलमानों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर होने वाली कार्यवाहियों को रोकने के लिए जो प्रयास करेगी उसमें यह नया गुट लंदन सरकार का समर्थन करेगा।
तुर्किये ने इस्लाम के ख़िलाफ़ संगठित ढंग से नफ़रत फ़ैलाने के प्रति चेतावनी दी है
तुर्किये ने राष्ट्रसंघ से मांग की है कि वह नफ़रत फ़ैलाने वाली कार्यवाहियों, भाषणों और भेदभाव का मुक़ाबला करने के लिए अपना एक विशेष प्रतिनिधि नियुक्त करे। इसी प्रकार तुर्किये ने पश्चिम में धार्मिक स्थलों और पवित्र क़ुरआन के ख़िलाफ़ होने वाली कार्यवाहियों में वृद्धि के प्रति चेतावनी दी है।
तुर्किये के उपविदेशमंत्री मेहमत कमाल बुज़ाई ने मंगलवार को पिछले सप्ताह जनेवा में मानवाधिकार परिषद की होने वाली बैठक में एक प्रस्ताव व योजना पेश की और उसमें बल देकर कहा कि इस्लाम के ख़िलाफ़ हिंसा दिनचर्या की घटना हो गयी है और अतिवादी गुटों में वृद्धि से इस्लाम विरोधी कार्यवाहियां भी अधिक हो रही हैं।
समीक्षायें इस बात की सूचक हैं कि इस्लाम विरोधी कार्यवाहियां संगठित ढंग से हो रही हैं।
पिछले साल प्रकाशित होने वाली जानकारियों के अनुसार विश्व में इस्लाम और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत और घृणा फ़ैलाने का एक अस्ली ख़िलाड़ी इस्राईल है।
इत्रे क़ुरआन (1) शैतान की चालें और मानव प्रकृति की सुरक्षा
यह आयत हमें चेतावनी देती है कि शैतान का सबसे बड़ा लक्ष्य मनुष्य को उसके वास्तविक स्वरूप से भटकाना और अल्लाह द्वारा निर्धारित सीमाओं को तोड़ना है। अल्लाह की नेमतों में अनावश्यक हस्तक्षेप और अप्राकृतिक तरीके अपनाना हानिकारक है। जो लोग शैतान की चालों से भटक जाते हैं, वास्तव में वे स्पष्ट नुकसान में पड़ जाते हैं। हमें अल्लाह के आदेशों पर दृढ़ता से कायम रहना चाहिए और शैतान की बातों से बचना चाहिए।
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम
وَلَأُضِلَّنَّهُمْ وَلَأُمَنِّيَنَّهُمْ وَلَآمُرَنَّهُمْ فَلَيُبَتِّكُنَّ آذَانَ الْأَنْعَامِ وَلَآمُرَنَّهُمْ فَلَيُغَيِّرُنَّ خَلْقَ اللَّهِ ۚ وَمَنْ يَتَّخِذِ الشَّيْطَانَ وَلِيًّا مِنْ دُونِ اللَّهِ فَقَدْ خَسِرَ خُسْرَانًا مُبِينًا वला ओज़िल्लन्नहुम वला ओमन्नियन्नहुम वला ओमरन्नहुम फ़लायोबत्तेकुन्ना आज़ानल अन्आमे वलआमोरन्नहुम फ़लायोग़य्येरुन्ना ख़ल्क़ल्लाहे वमय यत्तख़िज शैताना वलीयन मिन दूनिल्लाहे फ़क़द खसेरा ख़ुसरानन मुबीना (नेसा 119)
अनुवाद: और मैं उन्हें गुमराह कर दूँगा और उन्हें उम्मीदें दूँगा और उन्हें मवेशियों के कान काटने का हुक्म दूँगा और फिर मैं उन्हें हुक्म दूँगा कि अल्लाह ने जो मख़लूक़ बनाई है उसे बदल दो। और जो कोई अल्लाह के बदले शैतान को अपना सरपरस्त और संरक्षक बनाएगा तो वह खुले तौर पर घाटे में रहेगा।
विषय:
शैतान की धोखे की रणनीति और मानव स्वभाव में परिवर्तन
पृष्ठभूमि:
यह आयत शैतान के इरादों और उसकी भ्रामक चालों का उल्लेख करती है। पवित्र कुरान में कई स्थानों पर शैतान के इरादों का वर्णन किया गया है, अर्थात् वह मनुष्य को सही मार्ग से भटकाने और अल्लाह द्वारा निर्धारित प्रकृति को विकृत करने का प्रयास करता है।
तफ़सीर:
- शैतान की चालें: शैतान लोगों को गुमराह करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाता है, जैसे झूठी उम्मीदें देना और उन्हें काल्पनिक सुख-सुविधाओं में शामिल करना। वह लोगों को यह जताता है कि वे अल्लाह के दिए गए आदेशों से भटक जाएँ और धर्म के सिद्धांतों के विपरीत नवाचार अपनाएँ।
- सृष्टि में परिवर्तन: "आइए हम अल्लाह की रचना में परिवर्तन करें" का अर्थ है कि शैतान मनुष्य को उसके मूल स्वभाव और अल्लाह द्वारा निर्धारित रचनात्मक व्यवस्था से दूर करना चाहता है। इसमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक भ्रष्टाचार शामिल हो सकता है, जैसे कि प्राकृतिक नैतिक मूल्यों को विकृत करना, अप्राकृतिक कार्यों को बढ़ावा देना और ईश्वर की रचना के साथ अनावश्यक रूप से छेड़छाड़ करना।
- शैतान की सरपरस्ती स्वीकार करने से नुकसान: जो व्यक्ति शैतान को अपना मार्गदर्शक और सरपरस्त बनाता है, वह स्पष्ट रूप से नुकसान में है। ऐसा व्यक्ति अल्लाह की रहमत से दूर हो जाता है और शैतान के धोखे का शिकार होकर दुनिया और आखिरत में नुकसान उठाता है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- शैतान की धोखे की मुख्य रणनीति झूठी आशाएँ और सांसारिक लालच है।
- अल्लाह की रचना में अप्राकृतिक परिवर्तन शैतानी कार्रवाई का हिस्सा हैं।
- अल्लाह के बजाय शैतान का अनुसरण करने से इस दुनिया और परलोक में विनाश होता है।
- इस्लाम प्राकृतिक सिद्धांतों की सुरक्षा का आदेश देता है और मनुष्य को अपनी प्राकृतिक अवस्था में रहने के लिए प्रोत्साहित करता है।
परिणाम:
यह आयत हमें चेतावनी देती है कि शैतान का सबसे बड़ा लक्ष्य मनुष्य को उसके वास्तविक स्वरूप से भटकाना और अल्लाह द्वारा निर्धारित सीमाओं को तोड़ना है। अल्लाह की नेमतों में अनावश्यक हस्तक्षेप और अप्राकृतिक तरीके अपनाना हानिकारक है। जो लोग शैतान की चालों से भटक जाते हैं, वास्तव में वे स्पष्ट नुकसान में पड़ जाते हैं। हमें अल्लाह के आदेशों पर दृढ़ता से कायम रहना चाहिए और शैतान की बातों से बचना चाहिए।
सूर ए नेसा की तफ़सीर
रमज़ान उल मुबारक का महीना, अब्द साज़ महीना
जो व्यक्ति एक महीने की अवधि के लिए हलाल और जायज़ चीजों और कार्यों से परहेज करता है, वह अपने जीवन के बाकी समय में हराम चीजों और कार्यों से काफी हद तक दूर रह सकता है।
मुहर्रम से लेकर ज़ुल-हिज्जा तक के सभी महीने अल्लाह तआला ने बनाए हैं, लेकिन सिर्फ़ रमज़ान उल मुबारक के महीने को ही इस पवित्र हस्ती ने अपना महीना घोषित किया है। इसका मतलब यह है कि रमज़ान उल मुबारक के महीने में कुछ ऐसी खूबियाँ ज़रूर पाई जाती हैं जो दूसरे महीनों में नहीं पाई जातीं, और वे खूबियाँ वही हैं जिन्हें दयालु और उदार अल्लाह के आखिरी नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) ने ख़ुतबे शाबानिया में बहुत ही शानदार और खूबसूरत तरीक़े से बयान किया है।
प्रयोजन क्या है? अल्लाह तआला ने इस महीने को इतने विशेष गुण और महानता क्यों प्रदान की है, और इसे "अपना" क्यों बनाया है?
शायद इसलिए कि हम सब इस महीने में "उसके" बन सकें, यानी "अल्लाह के महीने" में हमें एक सच्चे और वास्तविक "अब्दे खुदा" बनने का सौभाग्य प्राप्त हो सके।
मैं क्या कहूँ, सुभान अल्लाह, अल्लाह का शुक्र है कि अल्लाह तआला ने हमें इस "अल्लाह के महीने" में वास्तव में "अब्दे खुदा" बनाने के लिए सभी व्यवस्थाएँ की हैं।
इस महीने का कितना महत्व है क्योंकि यह अल्लाह का महीना है, दया का महीना है, आशीर्वाद का महीना है, क्षमा का महीना है, तौबा का महीना है, तथा हमें धर्मी बनाने में दुआ और तौबा का महीना है।
सुबह की अज़ान से लेकर शाम की अज़ान तक लगातार इताअत और इबादत का यह लंबा सफ़र, जिसमें बन्दा अपने रब की रज़ा के लिए सिर्फ़ कुछ हराम चीज़ों और कामों से ही नहीं बल्कि हलाल चीज़ों और कामों से भी परहेज़ करता है, बेशक "गुलाम बनाने" का एक बहुत बड़ा और हसीन ज़रिया है। जिस सफ़र में बन्दा रोज़े के नाम पर अपने आलिम और महान रब और मालिक का इतना रज़ामंद हो जाता है कि वह उसके हुक्म और हुक्म के सम्मान में "खाने-पीने" जैसी सबसे ज़रूरी, लज़ीज़ और जायज़ चीज़ों से भी परहेज़ कर लेता है। और इन चीज़ों से यह परहेज़ उसके अंदर यह ख़याल जगाना चाहता है कि "ऐ ख़ुदा के बन्दे, जब तुम अपने पैदा करने वाले और मालिक की रज़ा के लिए रमज़ान के महीने में लगातार एक महीने तक ज़रूरी, हलाल और हलाल खाने-पीने की चीज़ों, मौज-मस्ती और कामों से परहेज़ करते हो, तो क्या तुम बाक़ी महीनों में हराम चीज़ों से परहेज़ नहीं कर सकते?"
निस्संदेह, जो व्यक्ति एक महीने की अवधि के लिए हलाल और जायज़ चीजों और कार्यों से दूर रहता है, वह अपने जीवन के बाकी हिस्सों में हराम चीजों और कार्यों से दूर रहने में सक्षम हो जाएगा।
यह "इबादत" का सबक है जो हर बन्दे को इस महीने में खुदा से सीखना है, कि जिसके दिन सभी दिनों से बेहतर हैं, जिसकी रातें सभी रातों से बेहतर हैं, और जिसके घंटे और पल सभी क्षणों से बेहतर हैं, जिसमें हमारी सांसें खुदा की शान में हैं, फिर नींद इबादत है, जिसमें हमारे कर्म स्वीकार किए जाते हैं और दुआएं कबूल होती हैं, और पवित्र कुरान की एक आयत के पाठ में पूरे कुरान को पढ़ने का सवाब है।
इस महान महीने के माध्यम से, हम अहले बैत (अ) के माध्यम से रहीम अल्लाह से दुआ करते हैं कि जिस तरह आपने रमजान के महीने को अपना बनाया है, उसी तरह हमें भी इस महीने में हमेशा के लिए अपना बना लें। आमीन, सुम्मा आमीन।
यमन का अरब नेताओं को संदेश/अमेरिका के वादों पर भरोसा न करें।
यमन की सर्वोच्च राजनीतिक परिषद के अध्यक्ष ने अरब नेताओं की अमेरिका के वादों पर निर्भरता का मज़ाक उड़ाया और कहा कि तेल अवीव और वाशिंगटन की साज़िशों का सामना करने का एकमात्र तरीका आपसी मतभेदों को भुलाना है।
यमन की सर्वोच्च राजनीतिक परिषद के अध्यक्ष ने अरब नेताओं की अमेरिका के वादों पर निर्भरता का मज़ाक उड़ाया और कहा कि तेल अवीव और वाशिंगटन की साज़िशों का सामना करने का एकमात्र तरीका आपसी मतभेदों को भुलाना है।
यमन की सर्वोच्च राजनीतिक परिषद के अध्यक्ष, महदी अलमशात ने अरब नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि किसी भी आने वाले युद्ध में यमन, लेबनान और ग़ज़ा में अपने भाइयों का पूरा समर्थन करेगा।
उन्होंने जोर देकर कहा कि फिलिस्तीन के लिए सही और आवश्यक रास्ता जिहाद और प्रतिरोध है और इसे हर तरह से समर्थन देना चाहिए इसलिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और अमेरिका के वादों पर भरोसा करना बेकार है।
अरब नेताओं का आपातकालीन शिखर सम्मेलन 27 फरवरी को होने वाला था लेकिन यह अब तक टलता रहा है मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इस बैठक से पहले ही अरब देशों में मतभेद और विभाजन के संकेत उभर आए हैं।
अल्जीरिया के राष्ट्रपति अब्दुल मजीद ताबुन ने बैठक में भाग नहीं लिया क्योंकि कुछ अरब देश बिना समन्वय के बैठक के निर्णयों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे।
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, फिलिस्तीनी प्रतिरोध को कमजोर करने के लिए ग़ज़ा से उसके नेताओं को बाहर निकालने और उनके हथियार छीनने पर ज़ोर दे रहे हैं ताकि भविष्य में इस क्षेत्र पर फिर से युद्ध न थोपा जाए। लेकिन कतर ने इसका विरोध किया है और मिस्र ने भी इस पर आपत्ति जताई है।
अलमशात ने कहा कि अमेरिका, इस्राइल के हर अपराध और साज़िश में उसका भागीदार है।इसलिए, ग़ाज़ा की नाकाबंदी को तोड़ने और इसके पुनर्निर्माण के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है साथ ही जबरन विस्थापन की योजनाओं का भी विरोध किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि किसी भी योजना को जो पश्चिमी तट पर इस्राइली संप्रभुता को स्वीकार करे, खारिज कर देना चाहिए उन्होंने अरब एकता और फिलिस्तीन के समर्थन के लिए सामूहिक कदम उठाने पर ज़ोर दिया।उन्होंने अरब देशों से इस्राइल के साथ संबंध सामान्य करने को रोकने उसे आर्थिक प्रतिबंधों में डालने और उसे तेल की आपूर्ति बंद करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि अमेरिका और इस्राइल की विस्तारवादी योजनाओं का मुकाबला सिर्फ अरब एकता और आंतरिक मतभेदों को हल करके किया जा सकता है।उन्होंने दक्षिणी लेबनान से इस्राइली कब्ज़े को समाप्त करने की मांग की और कहा कि लेबनानी जनता को अपने क्षेत्र से इस्राइली कब्ज़ाधारियों को खदेड़ने के लिए हर संभव उपाय करने का अधिकार है।
माहे रमज़ान तौबा, इबादत और एकता का महीना
इमाम जुमआ बाना मौलवी अब्दुर्रहमान खुदाई ने कहा है कि माहे मुबारक रमज़ान अल्लाह तआला की तरफ से बंदगाने ख़ुदा के लिए एक खास रहमत और बरकत का महीना है इस मुकद्दस महीने में तौबा के दरवाज़े खुले होते हैं और हर इंसान को मौका मिलता है कि वह अल्लाह के करीब हो।
इमाम जुमआ बाना मौलवी अब्दुर्रहमान खुदाई ने माहे रमज़ान की मुबारकबादी देते हुए कहा है कि यह महीना मुसलमानों के लिए सबसे बाबरकत और अज़ीम महीनों में से एक है, जिसमें बेहिसाब रहमतें और बरकतें छुपी हुई हैं।
उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला ने रमज़ान को अपने बंदों के लिए तौबा और क़ुर्ब-ए-इलाही का सुनहरी मौका बनाया है इस महीने में इंसान को चाहिए कि हर लम्हा अल्लाह की तरफ रुजू करे, कुरआन मजीद की तिलावत करे और उसके पैग़ाम पर ग़ौर व फिक्र करे क्योंकि यही महीना कुरआन के नुज़ूल का महीना है।
उन्होंने रमज़ान को खुद शनासी और आज़िज़ी सीखने का बेहतरीन मौका क़रार देते हुए कहा कि यह महीना हमें अपनी हकीकत और अल्लाह की बेपनाह कुदरत को समझने का मौका देता है यह हमें याद दिलाता है कि हम अल्लाह के मोहताज हैं और उसकी रहमत के बिना कुछ भी नहीं।
उन्होंने आगे कहा कि रमज़ान इत्तेहाद (एकता) और भाईचारे का महीना भी है इस महीने में तमाम मुसलमान, चाहे वे शिया हों या सुन्नी, एक ही मकसद के तहत इबादत करते हैं और वह मकसद अल्लाह की रज़ा और उसकी क़ुर्बत हासिल करना है।मौलवी खुदाई ने मुसलमानों को याद दिलाया कि रमज़ान के दौरान ग़रीबों और मोहताजों का खास ख्याल रखना चाहिए।
आखिर में उन्होंने कहा कि रमज़ान का सबसे बड़ा पैग़ाम खुदा-शनासी, आज़िज़ी और मुसलमानों के दरमियान इत्तेहाद है और आज उम्मत-ए-मुस्लिमा को इस वहदत (एकता) की पहले से ज्यादा ज़रूरत है।
सात दिन के नवजात के साथ ओलंपियाड परीक्षा में माँ ने लिया भाग
एक छात्रा ने अपने सात दिन के नवजात शिशु के साथ धार्मिक छात्रों के ओलंपियाड परीक्षा में भाग लिया जो शैक्षिक के लिए शानदार उदाहरण है।
एक छात्रा ने अपने सात दिन के नवजात शिशु के साथ धार्मिक छात्रों के ओलंपियाड परीक्षा में भाग लिया जो शैक्षिक के लिए शानदार उदाहरण है।
इस कदम की प्रशंसा करते हुए परीक्षा आयोजकों ने उसे सहारा दिया और नवजात की देखभाल भी की यह घटना महिलाओं के ज्ञान और मातृत्व में संघर्ष को प्रदर्शित करती है जो समाज के वैचारिक और नैतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।परीक्षा के दौरान आयोजकों ने इस मेहनती मां की सहायता करने के लिए नवजात की देखभाल की।
यह घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि महिलाओं का शैक्षिक और मातृत्व संघर्ष समाज के वैचारिक और नैतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ऐसे महिलाएं न केवल देश की शैक्षिक प्रगति में योगदान करती हैं, बल्कि सार्थक और जिम्मेदार नागरिकों को भी जन्म देती हैं।
हम इस युवा छात्रा और सभी मेहनती माताओं के लिए सफलता की कामना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनका यह कदम युवा धार्मिक छात्रों के लिए प्रेरणा बने जिससे वे ज्ञान और शिक्षा के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए और भी प्रेरित हों।