औपनिवेशिक सभ्यता को बचाने के लिए पश्चिम की ताक़त इस्राईल

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औपनिवेशिक सभ्यता को बचाने के लिए पश्चिम की ताक़त इस्राईल

सदियों से पश्चिम मुसलमानों पर हमलों को उचित ठहराने के लिए इस्लाम को एक हिंसक धर्म के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है।

क्रूसेडर से लेकर ओटोमन साम्राज्य तक और अब ग़ज़ा में साम्राज्यवाद, इस ग़लत धारणा पर अड़ा हुआ है कि इस्लाम पश्चिमी सभ्यता के लिए ख़तरा है।

इसी सोच के आधार पर ज़ायोनी राष्ट्रपति इसहाक़ हर्ज़ोग ने 6 दिसंबर, 2023 को एक साक्षात्कार में इस अवैध शासन द्वारा ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार का उल्लेख किए बिना दावा कियाः ग़ज़ा पट्टी के ख़िलाफ़ युद्ध सिर्फ़ इस्राईल और हमास के बीच युद्ध नहीं है, बल्कि यह पश्चिमी सभ्यता को बचाने का युद्ध है।

यह एक ऐसा दावा है जो सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले और पतनशील विचारधारा के पक्ष में ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी करता है।

एक ऐसा दृष्टिकोण जो फ़िलिस्तीनी सरज़मीन पर 75 वर्षों के क़ब्ज़े, फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए और फ़िलिस्तीनी समाज पर अमरीका, यूरोप और इस्राईल के साम्राज्यवादी आक्रमण का कारण बना है।

इस दृष्टिकोण के मुताबिक़, पश्चिम के अलावा कोई आवाज़ वैध नहीं है और केवल पश्चिम फ़िलिस्तीनियों के पक्ष और उनके आदर्शों व्याख्या कर सकता है।

7 अक्टूबर, 2023 को पश्चिमी देशों के पूर्ण समर्थन से ज़ायोनी शासन ने ग़ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में असहाय और उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ व्यापक युद्ध शुरू कर रखा है और वह फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार कर रहा है।

ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार ग़ज़ा युद्ध में 31,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं और 74,000 से अधिक घायल हुए हैं।

ज़ायोनी शासन की स्थापना की शुरूआत 1917 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की साज़िश और विभिन्न देशों से फ़िलिस्तीनी भूमि पर यहूदियों के आप्रवासन के माध्यम से की गई थी, जबकि अवैध स्थापना की घोषणा 1948 में की गई।

तब से ही ज़ायोनी शासन अमरीका और पश्चिम के समर्थन से, फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए और उनकी पूरी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने के लिए अभियान चला रहा है।

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