रूस और यूक्रेन की जंग ने पश्चिम वालों को यह याद दिलाया कि बड़ी शक्तियों और उनके सहयोगियों के अलावा भी एक दुनिया मौजूद है।
इस दूसरी दुनिया में आम तौर पर अफ़्रीक़ा महाद्वीप, एशिया और लैटिन अमरीका का शुमार होता है, जिन्होंने जंग में किसी एक का पक्ष लेने का विरोध किया है। इसलिए इस जंग की वजह से भू-राजनीति में ग्लोबल साउथ सुर्ख़ियों में आ गया है।
ग्लोबल साउथ की वापसी
कोल्ड वार के बाद एकध्रुवीय दशकों में ऐसा लगने लगा था कि ग्लोबल साउथ हमेशा के लिए हाशिए पर चला गया है। लेकिन आज फिर से ग्लोबल साउथ सुर्ख़ियों में है। यह वापसी किसी एक समूह या संगठित संगठन के तौर पर नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक सच्चाई के रूप में हुई है।
ग्लोबल साउथ की विशालता
ग्लोबल साउथ में दक्षिण पूर्वी एशियाई देश, प्रशांत महासगर के द्वीप और लैटिन अमरीकी देश शामिल हैं।
ग्लोबल साउथ में शामिल होने का मापदंड क्या है
ग्लोबल साउथ में अलग-अलग तरह के देश हैं, लेकिन उनके बीच कुछ विशेषताएं हैं। यूरोपीय उपनिवेश की यादों ने उनके विचारों को समान आकार प्रदान किया है। इन देशों का फ़ोकस, व्यापार विस्तार, निवेश और मूल्य श्रृंखला को उन्नत करने पर है।
ग्लोबल साउथ देशों में धन
ग्लोबल साउथ के कई देश, 20वीं सदी के बाद से अधिक अमीर और स्मार्ट हो गए हैं और उन्होंने सीख लिया है कि अपने लिए लाभ हासिल करने के लिए दोनों पक्षों (एक तरफ़ अमरीका, जापान और यूरोप और दूसरी तरफ़ चीन-रूस गठबंधन) के साथ कैसे खेलना है और अपने हित हासिल करने हैं।
यूक्रेन युद्ध में ग्लोबल साउथ देशों की भूमिका
ग्लोबल साउथ देशों ने इंकार की ताक़त दिखाकर, बड़ी ताक़त हासिल कर ली है। व्यवहारिक रूप से यूक्रेन पर हमले के बाद, रूस पर लगने वाले प्रतिबंधों को सभी ग्लोबल साउथ देशों ने ख़ारिज कर दिया है।
निर्णय लेने वाली वैश्विक संरचनाओं में अपने महत्व को लेकर वैश्विक दक्षिण देशों का असंतोष
ग्लोबल साउथ के सभी देश निर्णय लेने वाली वैश्विक संरचनाओं में अपने महत्व से बहुत असंतुष्ट हैं।
इनमें से कुछ देशों के पास खनिज संसाधन, आपूर्ति श्रृंखलाएं और नए विचार हैं, जो वैश्विक विकास और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ज़रूरी हैं और यह उन्हें 20वीं सदी की तुलना में अधिक शक्ति प्रदान करता है।
संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में सुधार
ग्लोबल साउथ के सभी देश संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में मूलभूत परिवर्तनों और सुधारों की वकालत करते हैं।
अमरीका आज भी अंतर्राष्ट्रीय वित्त प्रणाली पर दबदबा क़ायम रखे हुए है, जिसकी वजह से वह अपने सहयोगियों के साथ मिलकर, ग्लोबल साउथ के देशों पर प्रतिबंध लगाने में सफल हो जाता है।
ग्लोबल साउथ का भविष्य
न्यू ग्लोबल साउथ, समय बीतने के साथ अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में अपनी मांगों को पूरा करने के लिए बड़ी शक्तियों पर ज़ोर दे सकता है और प्रॉक्सी वार्स से दूरी बना सकता है।
ग्लोबल साउथ के देश, अपने राष्ट्रीय हितों के लिए व्यक्तिगत क़दम उठा सकते हैं। उनकी आवाज़ जलवायु परिवर्तन और डॉलर के आधिपत्य के ख़िलाफ़ प्रभावी तौर पर सुनी जा सकती है।
इसके अलावा, न्यू साउथ के देशों का एक-दूसरे से भौगोलिक अलगाव और उनके केंद्रीय हितों को प्रभावित करने वाले मतभेदों की अनुपस्थिति, शायद यह गारंटी देता है कि भविष्य में उनके संबंध सौहार्दपूर्ण बने रहेंगे।