पिज़िश्कियान के आने से इस्राईल क्यों चिंतित है?

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पिज़िश्कियान के आने से इस्राईल क्यों चिंतित है?

अटलांटिक परिषद की वेबसाइट पर एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें लेखक ने कुछ उन कारणों को लिखा है जिनकी वजह से इस्राईल ईरान के निर्वाचित राष्ट्रपति पिज़िश्कियान के आने से चिंतित है।

पिज़िश्कियान के ईरान के नये राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने से इस्राईल के अंदर गंभीर चिंता उत्पन्न हो गयी है। रज़ ज़िमत ने "पिज़िश्कियान इस्राईल के लिए दबाव हो सकते हैं" शीर्षक के अंतर्गत एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने कुछ उन असली कारणों का उल्लेख किया है जिसकी वजह से इस्राईल में गम्भीर चिंता उत्पन्न हो गयी है।

 प्रतिरोध के समर्थन का जारी रखना

लेख के लेखक रज़ ज़िमत के अनुसार पिज़िश्कियान के ईरान का राष्ट्रपति चुने जाने की वजह से इस्राईल में जो गंभीर चिंता उत्पन्न हो गयी है उसका एक असली कारण पिज़िश्कियान द्वारा प्रतिरोध का समर्थन है। आठ जुलाई 2024 को पिज़िश्कियान ने लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नस्रुल्लाह के नाम एक पत्र भेजा था जिसमें उन्होंने प्रतिरोध के समर्थन को जारी रखने पर बल दिया था।

पिज़िश्किया ने उस पत्र में लिखा था कि इस्लामी गणतंत्र ईरान अवैध ज़ायोनी सरकार के मुक़ाबले में क्षेत्रीय लोगों के प्रतिरोध का सदैव समर्थक रहा है। प्रतिरोध का समर्थन इस्लामी गणतंत्र ईरान की सिद्धांतिक नीति, स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. और सर्वोच्च नेता की आकांक्षा है और पूरी ताक़त के साथ उसका समर्थन जारी रहेगा।

2-  ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ ईरान की आक्रामक नीति का परिवर्तित न होना

रज़ ज़िमत का मानना है कि पिज़िश्किया का चयन इस्राईलियों के मध्य इस विचार के मज़बूत होने का कारण बना है कि ईरान का नया राष्ट्रपति इस्लामी गणतंत्र ईरान की नीतियों में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन उत्पन्न नहीं करेगा। जैसाकि एक ज़ायोनी अध्ययनकर्ता ने हसन नस्रुल्लाह के नाम पिज़िश्किया के पत्र की प्रतिक्रिया में सोशल साइट एक्स पर लिखा कि यह पत्र उसके लिए है जो यह सोच रहा था कि ईरान का नया राष्ट्रपति ईरान की आक्रामक नीति में, जो इस्राईल का अंत चाहता है, परिवर्तन उत्पन्न करेगा।

3- राष्ट्रपति को विदेशनीति को पूरी तरह परिवर्तित करने का अधिकार का न होना

यह विश्लेषक अपने लेख में यह दावा करता है कि ईरानी नीति के ताने- बाने और ढांचे में ईरानी राष्ट्रपति की ताक़त अधिकतर देश के आंतरिक मामलों में होती है और विदेशनीति को परिवर्तित करने में उसकी क्षमता सीमित है और उसके अनुसार क्षेत्रीय प्रतिरोध में सिपाहे पासदारान और क़ुद्स ब्रिगेड इस संबंध में उसकी शक्ति को कम करती हैं। यद्यपि इस दावे पर बहुत सारे प्रश्न किये जा सकते हैं परंतु अधिकांश डेमोक्रेटिक देशों में केवल सरकार विदेश नीति को तय नहीं करती बल्कि राष्ट्रीय परिषदें और इसी प्रकार देशों की संसदें क़ानून बनाकर इस संबंध में प्रभावी हैं। लेखक के अनुसार ज़ायोनी सरकार के समर्थकों की यह उम्मीद टूट चुकी है कि इस्राईल के संबंध में ईरान की नीति में कोई परिवर्तन होगा।

 

     4- इस्राईल के लिए ईरान और पश्चिम के बीच लगातार वार्ता का होना

लेखक के अनुसार ईरान के राष्ट्रपति पिज़िश्कियान में इस्राईल के लिए एक बुरी ख़बर व संकेत पूर्व परमाणु वार्ताकार अब्बास इराक़ची का नया विदेश मंत्री होना है। अगर ऐसा हो जाता है तो ईरान और पश्चिम के बीच परमाणु मामले के समाधान की उम्मीद में वृद्धि हो जायेगी। यह वह चीज़ है जो इस्राईल के लिए नुकसानदेह है। इस दृष्टिकोण के अनुसार अगर किसी ऐसे विकल्प का चयन हो जाता जो पश्चिम के साथ वार्ता न करता तो इस्राईल आसानी से विश्व समुदाय को यह समझा सकता है कि ईरान के साथ वार्ता का कोई फ़ायदा नहीं है और ईरान पर अधिक दबाव डालना चाहिये।

5-  ईरान के सैनिक व परमाणु कार्यक्रम से चिंता

इस लेख के आधार पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम में प्रगति और इसी प्रकार ईरान के सैनिक कार्यक्रम में प्रगति से इस्राईल के अंदर गम्भीर चिंता उत्पन्न हो गयी है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम में प्रगति, दूर तक मार करने वाली मिसाइल और आधुनिकतम ड्रोन इन चिंताओं में शामिल हैं। हिज़्बुल्लाह, हमास और जेहादे इस्लामी जैसे संगठनों का ईरान द्वारा समर्थन को इस्राईल की सुरक्षा के लिए गम्भीर चुनौती समझा जाता है।

नतीजाः ईरान के नये राष्ट्रपति के रूप में पिज़िश्कियान का चयन इस्राईल की चिंता में वृद्धि का कारण बना है। पिज़िश्कियान द्वारा प्रतिरोध का समर्थन, इस्राईल के ख़िलाफ़ ईरान की आक्रामक नीति से पिज़िश्कियान का सहमत होना, ईरान के सैनिक और परमाणु कार्यक्रम में प्रगति और ईरान और पश्चिम के साथ संबंधों में विस्तार उन चीज़ों में से हैं जिनसे इस्राईल की सुरक्षा चिंताओं में वृद्धि हो गयी है।

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