एक हिब्रू भाषी मीडिया ने एक लेख में ईरान के साथ इज़राइल के युद्ध के आयामों पर रोशनी डालते हुए बताया कि तेल अवीव को तेहरान के साथ संघर्ष से क्यों परहेज़ करना चाहिए।
एक ज़ायोनी विशेषज्ञ एटली लैंड्सबर्ग ने इज़राइल की ज़ीमन समाचार वेबसाइट पर एक लेख में, ज़ायोनी शासन के नेताओं को ऐतिहासिक अनुभवों पर ध्यान देने और हार का सामना करने के बजाय संयम बरतने और ईरान के साथ संघर्ष से बचने की चेतावनी दी।
नूर न्यूज़ के हवाले से पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार, इस लेख में, "लैंड्सबर्ग" 6 कारणों की ओर इशारा करते हैं कि क्यों इज़राइल को ईरान के साथ संघर्ष में शामिल नहीं होना चाहिए, जिनमें से महत्वपूर्ण हिस्सों का उल्लेख यहां किया गया है:
1- इज़राइल और ईरान के बीच बैलिस्टिक युद्ध एक असमान युद्ध है, ईरान एक क्षेत्रीय शक्ति है जो जनशक्ति, हथियारों, ईंधन भंडार और आर्थिक सुविधाओं वग़ैरह से मालामाल है, जबकि इजराइल एक छोटा (ढांचा) है जिसमें सैन्य और मानव शक्ति सीमित है।
2- ईरान के मिसाइल युद्ध से इज़राइल के डिफ़ेंस पॉवर को लगातार नुकसान हो रहा है।
3- ईरान में मातृभूमि की रक्षा और बलिदान देने की कोई सीमा नहीं है। इराक़ द्वारा उसके खिलाफ छेड़े गए 8 साल के युद्ध में ईरान ने हज़ारों लोगों की जान कुर्बान कर दी, लेकिन उसने घुटने नहीं टेके जबकि इज़राइल, ईरान पर ऐसे ही मिलते जुलते ख़र्चे थोप सकता है।
4- ईरान ने अपना परमाणु विस्तार जारी रखा है और इज़राइल इसे रोक नहीं पाएगा क्योंकि उसके पास ईरान की परमाणु शक्ति को नष्ट करने की क्षमता नहीं है।
5- इज़राइली वायु सेना इस समय एक मल्टी फ़्रंट वॉर में शामिल है, ईरान पर हमला करने के लिए इस ताक़त की केन्द्रियताउसके लड़ाकू विमानों की शक्ति को कम कर सकती है और इन लड़ाकू विमानों को मार गिराने और उसके पायलटों को पकड़ने की संभावना बढ़ सकती है।
6- इज़राइल के लिए बेहतर है कि वह संयम बरते और युद्ध के अलावा किसी दूसरे समाधानों को एक्टिव करने के बारे में सोचे, जिसका उपयोग उसने अतीत में ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या के ज़रिए से किया था।
लेखक फिर यह नतीजा निकालता है: अगर ये कारण इज़राइल में निर्णय लेने वाले केंद्रों के लिए पर्याप्त नहीं हैं, तो हमें उन्हें चेतावनी देनी चाहिए कि इज़राइल के हमले से निश्चित रूप से एक क्षेत्रीय ख़तरा पैदा होगा, और फिर हमें इराक़, सीरिया और शायद यमन में भी शक्ति का उपयोग करने के बारे में सोचना चाहिए जबकि दुनिया भर में इज़राइली दूतावासों पर हमले की आशंका भी बढ़ जाएगी है।
वह आगे कहते हैं: इज़राइली सेना की 75 प्रतिशत ताक़त रिज़र्व फ़ोर्स से बनी है, जो सेनाएं एक साल के युद्ध से अलग हैं और पूरी तरह से बिखर गई हैं, ईरान से जंग, लेबनान और ग़ज़ा में युद्ध कई वर्षों तक खिंच सकता है। इसका मतलब यह है कि रिज़र्व ढांचा बुरी तरह से तबाह हो जाएगा और इससे इजराइली सेना की मुख्य ताक़त ख़त्म हो जाएगी।
जो लोग नहीं समझते उन्हें बता देना चाहिए कि इससे इज़राइल की सैन्य, आर्थिक और सामाजिक हार होगी जबकि ईरान पर ऐसी कोई सीमित्ता नहीं है। इज़राइली कैबिनेट इज़राइलियों के लिए केवल एक ही काम कर सकती है और वह है कुछ न करना और विनाशकारी निर्णय लेना बंद करना।