बिस्मिल लाहिर रहमानिर रहीम

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अल्लाहोम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद

ऐ अल्लाह मै तुझ से इल्तेजा करता हूँ, तुझे तेरी उस रहमत का वास्ता जो हर चीज़ को घेरे हुए है, तेरी उस कुदरत का वास्ता जिस से तू हर चीज़ पर ग़ालिब है, जिस के सबब हर चीज़ तेरे आगे झुकी है और जिस के सामने हर चीज़ आजिज़ है, तेरी इस जब्र्रुत का वास्ता जिस से तू हर चीज़ पर हावी है, तेरी इस इज्ज़त का वास्ता जिस के आगे कोई चीज़ ठहर नहीं पाती, तेरी उस अजमत का वास्ता जो हर चीज़ से नुमाया है, तेरी उस सल्तनत का वास्ता जो हर चीज़ पर कायेम है, तेरी उस ज़ात का वास्ता जो हर चीज़ के फ़ना हो जाने के बाद भी बाकी रहेगी, तेरे उन नामो का वासता जिन के असरात ज़र्रे ज़र्रे में तारी व सारी हैं, तेरे उस इल्म का वास्ता जो हर चीज़ का अहाता किये हुए हैं, तेरी ज़ात के उस नूर का वास्ता जिस से हर चीज़ रोशन है!

ऐ हकीकी नूर! ऐ पाक व पाकीज़ा! ए सब पहलों से पहले, ऐ सब पिछलो से पिछले ( ए अल्लाह मेरे सब गुनाह माफ़ कर दे जो अताब का मुस्तहक बनाते हैं! ऐ अल्लाह! मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जिन की वजह से बालाएं आती हैं! ऐ अल्लाह मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जो तेरी नेमतों से महरूमी का सबब बनते हैं! ऐ अल्लाह, मेरे वोह सब गुनाह बख्श दे जो दुआएं कबूल नहीं होने देते! ए अल्लाह, मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जो मुसीबत लाते हैं! ऐ अल्लाह, मेरी इन सारी खाताओं से दर गुज़र कर जो मैंने जान बूझ कर या भूले से की हैं! ए अल्लाह, मैं तुझे याद करके तेरे करीब आना चाहता हूँ! तेरी जनाब में तुझी को अपना सिफारशी ठहराता हूँ, और तेरे करम का वास्ता दे कर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मुझे अपना कुर्ब अता कर) मुझे अदाए शुक्र की तौफीक दे और अपनी याद मेरे दिल में डाल दे!

ऐ अल्लाह, मैं तुझ से खोज़ू व खुशू और गिरया व ज़ारी से अर्ज़ करता हूँ के तू मेरी भूल चूक माफ़ कर, मुझ पर रहम फार्म और तू में मेरा जो हिस्सा मुक़र्रर किया है, मुझे इस पर राज़ी, काने और हर हाल में मुतमईन रख! ए अल्लाह, मै तेरे हजूर में इस शख्स की मानिंद सवाल करता हूँ जिस पर सख्त फाके गुज़र रहे हों, जो मुसीबतों से तंग आकर अपनी ज़रुरत तेरे सामने पेश करे, जो तेरे लुत्फो करम का ज्यादा से ज्यादा खाहिश्मंद हो! ऐ अल्लाह, तेरी सल्तनत बहुत बड़ी है, तेरा रुतबा बहुत बुलंद है, तेरी तदबीर पोशीदा है, तेरा हुकुम साफ़ ज़ाहिर है, तेरा कहर ग़ालिब है, तेरी कुदरत कार फरमा है, और तेरी हुकूमत से निकल जाना मुमकिन नहीं है! ऐ अल्लाह, मेरे गुनाह बख्शने, मेरे ऐब ढाँकने और मेरे किसी बुरे अमल को अच्छे अमल से बदलने वाला तेरे सिवा कोई नहीं है! तेरे इलावा और कोई माबूद नहीं है! तू पाक है, और मै तेरी ही हम्दोसेना करता हूँ!

मैं ने अपनी ज़ात पर ज़ुल्म किया और अपनी नादानी के बाएस बेग़ैरत बन गया! मै यह सोच कर मुतमईन हो गया के तू ने मुझे पहले भी याद रखा और अपनी नेमतों से नवाज़ा है! ऐ अल्लाह, ऐ मेरे मालिक, तू ने मेरी कितनी ही बुराईयों की परदापोशी की, कितनी ही सख्त बालाओं को मुझ से टाला, कितनी ही नाज़िशों से मुझ को बचाया, कितनी ही आफतों को रोका! और मेरी कितनी ही ऐसी खूबियाँ लोगो में मशहूर कर दीं जिन का मै अहल भी ना था! ऐ अल्लाह, मेरी मुसीबत बढ़ गयी है, मेरी बदहाली हद से गुज़र गयी है, मेरे नेक अमाल कम हैं, दुनयावी तालुक्कात के बोझ ने मुझ को दबा रखा है, मेरी उम्मीदों की दराजी ने मुझे नफा से महरूम कर रखा है, दुनिया ने अपनी झूटी चमक दमक से मझे धोका दिया है, और मेरे नफस ने मझे मेरे गुनाहों और मेरी टाल मटोल के बाअस फरेब दिया है! ऐ मेरे आका अब मै तेरी इज्ज़त का वास्ता दे कर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मेरी बदअमालियाँ और ग़लतकारियां मेरी दुआ के कबूल होने में रुकावट ना बने!

मेरे जिन भेदों से तू वाकिफ है इन की वजह से मुझे रुसवा ना करना, मै ने अपनी तन्हाईयों में जो बदी, बुराई और मुसलसल कोताही की है और नादानी, बढ़ी हुई खाहिशाते नफस और गफलत के सबब जो काम किये हैं मुझे उनकी सजा देने में जल्दी ना करना! ऐ अल्लाह, अपनी इज्ज़त के तुफैल हर हाल में मुझ पर मेहरबान रहना, और मेरे तमाम मामलात में मुझ पर करम करते रहना! ऐ मेरे अल्लाह, ऐ मेरे परवरदिगार, तेरे सिवा मेरा कौन है जिस से मै अपनी मुसीबत को दूर करने और अपने बारे में नज़रे करम करने का सवाल करूँ! ऐ मेरे माबूद और मेरे मालिक, मै ने खुद अपने खिलाफ फैसला दे दिया क्योंके मै हवाए नफस के पीछे चलता रहा और मेरे दुश्मन ने जो मुझे सुनहरे खाव्ब दिखाए मै ने इन से अपना बचाओ नहीं किया, चुनान्चेह इस ने मुझे खाहिशात के जाल में फंसा दिया, इस में मेरी तकदीर ने भी इस की मदद की! इस तरह मै ने तेरी मुक़र्रर की हुई बाज़ हदें तोड़ दीं और तेरे बाज़ अहकाम की नाफ़रमानी की!

बहरहाल तू हर तारीफ़ का मुस्तहक है और जो कुछ पेश आया इस में खता मेरी ही है! इस बारे में तुने जो फैसला किया, तेरा जो हुक्म जारी हुआ और तेरी तरफ से मेरी जो आजमाईश हुई इस के खिलाफ मेरे पास कोई उज्र नहीं है! ऐ मेरे माबूद, मै ने अपनी इस कोताही और अपने नफस पर ज़ुल्म के बाद माफ़ी मांगने के लिए हाज़िर हुआ हूँ! मै अपने किये पर शर्मसार हूँ, दिल शिकस्ता हूँ, मै अपने करतूतों से बाज़ आया, बक्शीश का तलबगार हूँ, पशेमानी के साथ तेरी जनाब में हाज़िर हूँ, जो कुछ मुझ से सरज़द हो चूका, उस के बाद मेरे लिए ना कोई भागने की जगह है और ना कोई ऐसा मददगार जिस के पास मै अपना मामला ले जाऊं! सिर्फ यही है के तू मेरी माज़रत कबूल कर ले, मुझे अपने दामने रहमत में जगह देदे! ऐ मेरे माबूद, मेरी माफ़ी की दरखास्त मंज़ूर कर ले, मेरी सख्त बदहाली पर रहम कर और मेरी गिरह कुशाई फर्मा दे! ऐ मेरे परवरदिगार, मेरे जिस्म की नातवानी, मेरी जिल्द की कमजोरी और मेरी हड्डियों की नाताक़ती पर रहम कर!

ऐ वोह ज़ात जिस ने मुझे वजूद बख्शा, मेरा ख्याल रखा, मेरी परवरिश का सामान किया, मेरे हक में बेहतर की और मेरे लिए ग़ज़ा के असबाब फराहम किये! बस जिस तरह तू ने इस से पहले मुझ पर करम किया और मेरे लिए बेहतरी के सामन किये, अब भी मुझ पर वो पहला सा फज़ल व करम जारी रख! ऐ मेरे माबूद, मेरे मालिक, ऐ मेरे परवरदिगार, मै हैरान हूँ के क्या तू मुझे अपनी आतिशे जहन्नम का अज़ाब देगा हालांकि मै तेरी तौहीद का इकरार करता हूँ, मेरा दिल तेरी मार्फ़त से सरशार है, मेरी ज़बान पर तेरा ज़िक्र जारी है, मेरे दिल में तेरी मुहब्बत बस चुकी है और मै तुझे अपना परवरदिगार मान कर सच्चे दिल से अपने गुनाहों का एतेराफ करता हूँ, और गिडगिडा कर तुझ से दुआ मांगता हूँ! नहीं ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि तेरा करम इस से कहीं बढ़ कर है के तू इस शख्स को बेसहारा छोड़ दे जिसे तुने खुद पाला हो या उसे अपने से दूर कर दे जिसे तू ने खुद अपना कुर्ब बख्शा हो या उसे अपने यहाँ से निकाल दे जिसे तुने खुद पनाह दी हो, या उसे बालाओं के हवाले कर दे जिस का तुने खुद ज़िम्मा लिया हो और जिस पर रहम किया हो, यह बात मेरी समझ में नहीं आती!

ऐ मेरे मालिक, ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे मौला, क्या तू आतिशे जहन्नम को मुसल्लत कर देगा इन चेहरों पर जो तेरी अजमत के बायेस तेरे हजूर में सज्दारेज़ हो चुके हैं, इन ज़बानों पर जो सिद्क़ दिल से तेरी तौहीद का इकरार करके शुक्रगुजारी के साथ तेरी मधा कर चुकी हैं, इन दिलों पर जो वाकई तेरे माबूद होने का ऐतेराफ कर चुके हैं, इन दिमागों पर जो तेरे इल्म से इस कद्र बहरावर हुए के तेरे हुज़ूर में झुके हुए हैं या इन हाथ पाँव पर जो इताअत के जज्बे के साथ तेरी इबादतगाहों की तरफ दौड़ते रहे और गुनाहों के इकरार करके मग्फेरत तलब करते रहे? ऐ रब्बे करीम, ना तो तेरी निस्बत ऐसा गुमान ही किया जा सकता है और ना ही तेरी तरफ से हमें ऐसी कोई खबर दी गयी है! ऐ मेरे पालने वाले तू मेरी कमजोरी से वाकिफ है, मुझ में इस दुनिया की मामूली आज्मायीशों, छोटी छोटी तकलीफों और इन सख्तियों को बर्दाश्त करने की ताब नहीं जो अहले दुनिया पर गुज़रती हैं हालांकि वोह आजमाईश, तकलीफ और सख्ती मामूली होती है और इस की मुद्द्त भी थोड़ी होती है, फिर भला मुझ से आखेरत की ज़बरदस्त मुसीबत क्योंकर बर्दाश्त हो सकेगी, जब की वहां की मुसीबत तूलानी होगी और इस में हमेशा हमेशा के लिए रहना होगा और जो लोग इस में एक मर्तबा फँस जायेंगे इन के अज़ाब में कभी कमी नहीं होगी क्योंकि वो अज़ाब तेरे गुस्से, इंतकाम और नाराजगी के सबब होगा जिसे ना आसमान बर्दाश्त कर सकता है ना ज़मीन! ऐ मेरे मालिक, फिर ऐसी सूरत में मेरा क्या हाल होगा जबकि मै तेरा एक कमज़ोर, अदना, लाचार, और आजिज़ बंदा हूँ ! ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे मालिक, ऐ मेरे मौला, मै तुझ से किस किस बात पर नाला व फरयाद और आहोबुका करूँ? दर्दनाक अज़ाब और इसकी सख्ती पर या मुसीबत और इस की तवील मीयाद पर! बस अगर तू ने मुझे अपने दुश्मनों के साथ अज़ाब में झोंक दिया और मुझे इन लोगों में शामिल कर दिया जो तेरी बालाओं के सज़ावार हैं और अपने अहिब्बा और औलिया के और मेरे दरम्यान जुदाई डाल दी तो ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे मालिक, ऐ मेरे मौला, ऐ मेरे परवरदिगार, मै तेरे दिया हुए अज़ाब पर अगर सब्र भी कर लूं तो तेरी रहमत से जुदाई पर क्योंकर सब्र कर सकूंगा? इस तरह अगर मै तेरे आग की तपिश बर्दाश्त भी कर लूं तो तेरी नज़रे करम से अपनी महरूमी को कैसे बर्दाश्त कर सकूंगा और इस के इलावा मै आतिशे जहन्नुम में क्योंकर रह सकूंगा जबके मुझे तो तुझ से माफ़ी की तवक्का है. बस ऐ मेरे आका, ऐ मेरे मौला, मै तेरी इज्ज़त की सच्ची क़सम खा कर कहता हूँ के अगर तू ने वहां मेरी गोयाई सलामत रखी तो मै अहले जहन्नम के दरम्यान तेरा नाम लेकर तुझे इस तरह पुकारूँगा जैसे करम के उम्मेदवार पुकारा करते हैं, मै तेरे हुज़ूर में इस तरह आहोबुका करूंगा जैसे फरयाद किया करते हैं और तेरी रहमत के फ़िराक में इस तरह रोवूँगा जैसे बिछुड़ने वाले रोया करते हैं! मैं तुझे वहां बराबर पुकारूंगा के तू कहाँ है ऐ मोमिनो के मालिक, ऐ आरिफों की उम्मीदगाह, ऐ फर्यादीयों के फरयादरस, ऐ सादिकों के दिलों के महबूब, ऐ इलाहिल आलमीन, तेरी ज़ात पाक है, ऐ मेरे माबूद, मै तेरी हम्द करता हूँ!

मैं हैरान हूँ की यह क्योंकर होगा की तू इस आग में से एक मुस्लिम की आवाज़ सुने जो अपनी नाफ़रमानी की पादाश में इस के अंदर क़ैद कर दिया गया हो, अपनी मुसीबत की सजा में इस अज़ाब में गिरफ्तार हो और जुर्मो खता के बदले में जहन्नुम के तबकात में बंद कर दिया गया हो मगर वोह तेरी रहमत के उम्मीदवार की तरह तेरे हुज़ूर में फरयाद करता हो, तेरी तौहीद को मानने वालों की सी जुबान से तुझे पुकारता हो और तेरी जनाब में तेरी रबूबियत का वास्ता देता हो! ऐ मेरे मालिक, फिर वो इस अज़ाब में कैसे रह सकेगा जबके इसे तेरी गुज़िश्ता राफ्त ओ रहमत की आस बंधी होगी या आतिशे जहन्नम उसे कैसे तकलीफ पहुंचा सकेगा जबके उसे तेरी फज़ल और तेरी रहमत का आसरा होगा या इस को जहन्नम का शोला कैसे जला सकेगा जबकि तू खुद इस की आवाज़ सुन रहा होगा और जहाँ वो है तू इस जगह को देख रहा होगा या जहन्नुम का शोर उसे क्योंकर परेशान कर सकेगा, जबकि तू इस बन्दे की कमजोरी से वाकिफ होगा या फिर वो जहन्नुम के तबकात में क्योंकर तड़पता रहेगा जबकि तू इस की सच्चाई से वाकिफ होगा या जहन्नुम की लपटें इस को क्योंकर परेशान कर सकेंगी जबकि वो तुझे पुकार रहा होगा! ऐ मेरे परवरदिगार, ऐसे क्योंकर मुमकिन है के तू वो तो जहन्नुम के निजात के लिए तेरे फज्लो करम की आस लगाये हुए हो और तू उसे जहन्नुम ही में पड़ा रहने दे! नहीं, तेरी निस्बत ऐसा गुमान नहीं किया जा सकता, ना तेरे फज़ल से पहले कभी ऐसी सूरत पेश आयी और ना ही यह बात इस लुत्फो करम के साथ मेल खाती है जो तू तौहीद परस्तों के साथ रवा रखता रहा है, इस लिए मै पुरे यकीन के साथ कहता हूँ के अगर तुने अपने मुन्कीरों को अज़ाब देने का हुक्म ना दे दिया होता और इनको हमेशा जहन्नुम में रखने का फैसला ना कर लिया होता तो तू ज़रूर आतिशे जहन्नुम को ऐसा सर्द कर देता के वो आरामदेह बन जाती और फिर किसी भी शख्स का ठिकाना जहन्नुम ना होता लेकिन खुद तू ने अपने पाक नामो की क़सम खाई है के तू तमाम काफिर जिन्नों और इंसान से जहन्नुम भर देगा और अपने दुश्मनों को हमेशा के लिए इसमें रखेगा! तू जो बहुत ज्यादा तारीफ के लायेक है और अपने बन्दों पर एहसान करते हुए अपनी किताब में पहले ही फरमा चुका है : "क्या मोमिन, फ़ासिक़ के बराबर हो सकता है? नहीं, यह कभी बाहम बराबर नहीं हो सकते"! ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे मालिक, मै तेरी इस कुदरत का जिस से तुने मौजूदात की तकदीर बनाई, तेरे इस हतमी फैसले का जो तू ने सादिर किये हैं और जिन पर तू ने इन को नाफ़िज़ किया है इन पर तुझे काबू हासिल है! वास्ता देकर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के हर वो जुर्म जिस का मै मुर्तकिब हुआ हूँ और हर वो गुनाह जो मैंने किया हो, हर वो बुराई जो मैंने छुपा कर की हो और हर वो नादानी जो मुझ से सरज़द हुई हो, चाहे मैंने उसे छुपाया हो या ज़ाहिर किया हो, पोशीदा रखा हो या अफशा किया हो इस रात 1 और ख़ास कर इस साअत में बख्श दे. मेरी हर ऐसी बदअमली को माफ़ करदे जिस को लिखने का हुक्म तुने किरामन कातेबीन को दिया हो, जिन को तुने मेरे हर अमल की निगरानी पर मामूर किया है और जिन को मेरे अजा व जवारेह के साथ साथ मेरे अमाल का गवाह मुक़र्रर किया है, फिर इन से बढ़ कर तू खुद मेरे अमाल के निगरान रहा है और इन बातों को भी जानता है जो इन की नज़र से मख्फी रह गयीं और जिन्हें तुने अपनी रहमत से छुपा लिया और जिन पर तुने अपने करम से पर्दा डाल दिया! ऐ अल्लाह, मै तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मुझे ज्यादा से ज्यादा हिस्सा दे हर इस भलाई से जो तेरी तरफ से नाज़िल हो, हर उस एहसान से जो तू अपने फज़ल से करे, हर उस नेकी से जिसे तू फैलाये, हर उस रिजक से जिस में तू वुसअत दे, हर उस गुनाह से जिसे तू माफ़ करदे, हर उस ग़लती से जिसे तू छुपा ले! ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे आका, ऐ मेरे मौला, ऐ मेरे जिस्मो जान के मालिक, ऐ वो ज़ात जिसे मुझ पर काबू हासिल है, ऐ मेरी बदहाली और बेचारगी को जान्ने वाले, ऐ मेरे फिकरो फाका से आगही रखने वाले, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, मै तुझे तेरी सच्चाई और तेरी पाकीजगी, तेरी आला सेफात और तेरे मुबारक नामो का वासता देकर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मेरे दिन रात के औकात को अपनी याद से मामूर कर दे के हर लम्हा तेरी फरमाबरदारी में बसर हो, मेरे अमाल को कबूल फर्मा , यहाँ तक के मेरे सारे आमाल और अज्कार की एक ही लए हो जाए और मुझे तेरी फरमाबरदारी करने में दवाम हासिल हो जाए! ऐ मेरे आका, ऐ वो ज़ात जिस का मुझे आसरा है और जिस की सरकार में, मै अपनी हर उलझन पेश करता हूँ! ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, मेरे हाथ पाँव में अपनी इताअत के लिए कुवत दे, मेरे दिल को नेक इरादों पर कायेम रहने की ताक़त बख्श, और मुझे तौफीक दे के मै तुझ से करार, वाकई डरता रहूँ और हमेशा तेरी इताअत में सरगर्म रहूँ ताकि मै तेरी तरफ सबक़त करने वालों के साथ चलता रहूँ, तेरी सिम्त बढ़ने वालों के हमराह तेज़ी से क़दम बढाऊँ, तेरी मुलाक़ात का शौक़ रखने वालो की तरह तेरा मुश्ताक रहूँ, तेरे मुखलिस बन्दों की तरह तुझ से नज़दीक हो जाऊं, तुझ पर यकीन रखने वालों की तरह तुझ से डरता रहूँ, और तेरे हुज़ूर में जब मोमिन जमा हों मै उन के साथ रहूँ! ऐ अल्लाह, जो शख्स मुझ से कोई बदी करने का इरादा करे, तू उसे वैसी ही सज़ा दे और जो मुझ से फरेब करे तू उस को वैसी ही पादाश दे! मुझे अपने उन बन्दों में करार दे जो तेरे यहाँ से सबसे अच्छा हिस्सा पाते हैं जिन्हें तेरी जनाब में सबसे ज्यादा तक़र्रुब हासिल है और जो ख़ास तौर से तुझ से ज्यादा नज़दीक हैं क्योंकि यह रूतबा तेरे फज़ल के बग़ैर नहीं मिल सकता! मुझ पर अपना ख़ास करम कर और अपनी शान के मुताबिक मेहरबानी फर्मा ! अपनी रहमत से मेरी हिफाज़त कर, मेरी ज़बान को अपने ज़िक्र में मशगूल रख, मेरे दिल को अपनी मुहब्बत की चाशनी अता कर, मेरी दुआएं कबूल करके मुझ पर एहसान कर, मेरी खताएं माफ़ करदे और मेरी नाज़िशें बख्श दे! चूंके तुने अपने बन्दों पर अपनी इबादत वाजिब की है, इन्हें दुआ मांगने का हुक्म दिया है और इनकी दुआएं कबूल करने की ज़िम्मेदारी ली है, इसलिए ऐ परवरदिगार, मै ने तेरी ही तरफ रुख किया है और तेरे ही सामने अपना हाथ फैलाया है! बस अपनी इज्ज़त के सदके में मेरी दुआ कबूल फरमा और मुझे मेरी मुराद को पहुंचा! मुझे अपने फजल ओ करम से मायूस ना कर, और जिन्नों और इंसानों में से जो भी मेरे दुश्मन हों मुझ को इन के शर से बचा! ऐ अपने बन्दों से जल्दी राज़ी हो जाने वाले, इस बन्दे को बख्श दे जिस के पास दुआ के सिवा कुछ नहीं, क्योंकि तू जो चाहे कर सकता है, तू ऐसा है जिस का नाम हर मर्ज़ की दवा है, जिस का ज़िक्र हर बीमारी से शिफा है, और जिस की इताअत सबे बेनेयाज़ कर देने वाली है, इस पर रहम कर जिस की पूंजी तेरा आसरा और जिस का हथियार रोना है! ऐ नेमतें अता करने वाले, ऐ बलाएँ टालने वाले, ऐ अंधेरों से घबराये हुओं के लिए रोशनी, ऐ वो आलिम जिसे किसी ने तालीम नहीं दी, मुहम्मद (सा) और आले मुहम्मद (सा) पर दरूद ओ सलाम भेज और मेरे साथ वो सुलूक कर जो तेरे शायाने शान हो!

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