इमाम हुसैन अ.स. का ग़म और अहले सुन्नत

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इमाम हुसैन अ.स. का ग़म और अहले सुन्नत

इमाम हुसैन अ.स. एक ऐसी ज़ात है जिस से पूरी दुनिया में हर मज़हब और जाति के लोग मोहब्बत करते और आपसे ख़ास अक़ीदत रखते हैं। हम सभी यह बात जानते हैं कि अर्मेनियाई, यहूदी और पारसी से ले कर बौध्दों और कम्युनिस्टों तक जिस किसी के दिल में भी ज़ुल्म और अत्याचार से नफ़रत होगी वह इमाम हुसैन अ.स. से दिली लगाव रखता होगा, और यह आसमानी शख़्सियत केवल मुसलमानों से विशेष नहीं है, इसके बावजूद इंसानियत के दुश्मन और बेदीन वहाबी टोले की हमेशा से कोशिश रही है कि अहले सुन्नत के दिल से इमाम अ.स. की मोहब्बत को कम कर दें और उनको पैग़म्बर स.अ. के नवासे इमाम हुसैन अ.स. की मुसीबत पर आंसू बहाने से महरूम रखें। इस लेख में हमारी कोशिश यह है कि हम इमाम हुसैन अ.स. के लिए अहले सुन्नत की मशहूर, अहम और भरोसेमंद किताबों में किस तरह के अक़ाएद और विचार हैं उनको बयान करें और पैग़म्बर स.अ. द्वारा इमाम हुसैन अ.स. की शान में बयान की गई हदीसों को इन्हीं किताबों से पेश करें ताकि इंसानियत के दुश्मन अपनी साज़िशों में हमेशा की तरह नाकाम रहें।

सबसे पहले हम इस बात को बयान करेंगे कि क्या अहले सुन्नत अल्लाह के अलावा किसी दूसरे के लिए आंसू बहाने को हराम और बिदअत समझते हैं? सूरए यूसुफ़ में अल्लाह हज़रत याक़ूब अ.स. के बारे में फ़रमाता है कि वह हमेशा हज़रत यूसुफ़ के बिछड़ने पर रोते रहते थे यहां तक कि आप हज़रत यूसुफ़ के लिए इतना रोए कि आपकी आंखों की रौशनी चली गई। अहले सुन्नत के बड़े आलिम जलालुद्दीन सियूती अपनी मशहूर तफ़सीर दुर्रुल मनसूर में लिखते हैं कि हज़रत याक़ूब अ.स. ने अपने बेटे हज़रत यूसुफ़ अ.स. के बिछड़ने के ग़म में 80 साल आंसू बहाए और उनकी आंखों की रौशनी चली गई। (दुर्रुल मनसूर, जलालुद्दीन सियूती, जिल्द 4, पेज 31) लेकिन क्या अहले सुन्नत की कुछ किताबों के मुताबिक़ मुर्दे के लिए आंसू बहाना जाएज़ है? तो इसका जवाब भी ख़ुद अहले सुन्नत की किताब में ही मौजूद है कि जब पैग़म्बर स.अ. हज़रत हम्ज़ा के जनाज़े पर पहुंचे तो जनाज़े को देख कर इतना रोए कि बेहोश हो गए। (ज़ख़ाएरुल उक़्बा, तबरी, जिल्द 6, पेज 686) तारीख़ में मिलता है कि ओहद के दिन सब अपने अपने शहीदों की लाश के पास बैठे आंसू बहा रहे थे, पैग़म्बर स.अ. की निगाह जब हज़रत हमज़ा की लाश पर पड़ी आपने कहा कि सब अपने अपने अज़ीज़ों की लाश पर आंसू बहा रहे हैं लेकिन कोई हज़रत हम्ज़ा पर आंसू बहाने वाला नहीं है, उन शहीदों की बीवियों ने पैग़म्बर स.अ. की यह बात जैसे ही सुनी सब अपने शहीदों की लाश को छोड़ कर हज़रत हम्ज़ा पर आंसू बहाने लगीं (मजमउज़ ज़वाएद, हैसमी, जिल्द 6, पेज 646) जिस दिन से पैग़म्बर स.अ. ने यह कहा कि मेरे चचा हज़रत हम्ज़ा पर कोई रोने वाला नहीं है, आपके अन्सार की बीवियां जब भी अपने शहीदों पर रोना चाहती थीं पहले हज़रत हम्ज़ा की मज़लूमी पर रोती थीं फिर अपने घर वालों का मातम करती थीं। (सीरए हलबी, जिल्द 2, पेज 247)

अज़ादारी और मरने वालों पर आंसू बहाने के बारे में अहले सुन्नत की किताबों में बहुत ज़्यादा हदीसें मौजूद हैं, लेकिन हम यहां पर संक्षेप की वजह से केवल एक हदीस उस्मान इब्ने अफ़्फ़ान से नक़्ल कर रहे हैं.... उस्मान एक क़ब्र के किनारे बैठ कर इस क़द्र रोए और आंसू बहाए कि उनकी दाढ़ी तक भीग गई थी। (सोनन इब्ने माजा, जिल्द 4, पेज 6246) लेकिन एक अहम सवाल यह है कि क्या अहले सुन्नत की किताबों में इमाम हुसैन अ.स. पर रोने के बारे में सही रिवायत और हदीस मौजूद है या नहीं? उम्मुल फ़ज्ल का इमाम हुसैन अ.स. की शहादत के बारे में ख़्वाब हाकिमे नेशापूरी ने मुस्तदरकुस सहीहैन में हारिस की बेटी उम्मुल फ़ज़्ल से नक़्ल करते हुए लिखा है कि, एक दिन मैंने बहुत अजीब ख़्वाब देखा और फिर पैग़म्बर स.अ. के पास जा कर बताया, पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया अपना ख़्वाब बयान करो, उम्मुल फ़ज़्ल ने कहा ऐ अल्लाह के रसूल बहुत अजीब ख़्वाब है बयान करने की हिम्मत नहीं हो रही, पैंगम्बर स.अ. के दोबारा कहने पर उम्मुल फ़ज़्ल अपना ख़्वाब इस तरह बयान करती हैं, मैंने देखा कि आपके बदन का एक टुकड़ा जुदा हो कर मेरे दामन में आ गया, पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया बहुत अच्छा ख़्वाब देखा है, फिर फ़रमाया बहुत जल्द मेरी बेटी फ़ातिमा स.अ. को अल्लाह एक बेटा देगा, और वह बेटा तुम्हारी गोद में जाएगा, जब इमाम हुसैन अ.स. पैदा हुए तो पैग़म्बर स.अ. ने उन्हें मेरी गोद में दे दिया, एक दिन इमाम हुसैन अ.स. मेरी गोद में थे मैं पैग़म्बर के पास गई, आपने इमाम अ.स. को देखा और आपकी आंखों में आंसू आ गए, मैंने कहा मेरे मां बाप आप पर क़ुर्बान हो जाएं आप क्यों रो रहे हैं, आपने फ़रमाया, अभी जिब्रईल आए थे और मुझे ख़बर दे गए कि मेरी ही उम्मत के कुछ लोग मेरे बेटे को शहीद कर देंगे, और जिब्रईल लाल रंग की मिट्टी भी दे गए हैं। हाकिम नेशापूरी इस रिवायत को लिखने के बाद कहते हैं यह रिवायत सही है लेकिन इसको बुख़ारी और मुस्लिम ने नक़्ल नहीं किया है। (अल-मुस्तदरक अलस-सहीहैन, हाकिम नेशापूरी, जिल्द 3, पेज 194, हदीस न. 4818)

इमाम हुसैन अ.स. पर पड़ने वाली मुसीबतों पर पैग़म्बर का आंसू बहाना अब्दुल्लाह इब्ने नजा अपने वालिद नजा से नक़्ल करते हैं कि वह इमाम अली अ.स. के साथ सिफ़्फ़ीन की जंग में जा रहे थे, रास्ते में इमाम अली अ.स. ने उनसे फ़रमाया कि फ़ुरात के किनारे रुक जाना, मैंने रुकने की वजह पूछी तो फ़रमाया, एक दिन पैग़म्बर स.अ. के पास गया उनकी आंखों में आंसू देखे, मैंने कहा ऐ रसूले ख़ुदा स.अ. आपको किसने रुलाया, पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया अभी कुछ देर पहले जिब्रईल आए थे और ख़बर दे गए कि फ़ुरात के किनारे इमाम हुसैन अ.स. को शहीद किया जाएगा, फिर कहा क्या आप उस जगह की मिट्टी को सूंघना चाहते हैं, मैंने कहा हां, जैसे ही मेरे हाथ में वहां की मिट्टी रखी मैं अपने आंसुओं को नहीं रोक पाया। (मुस्नदे अहमद बिन हंबल, तहक़ीक़ अहमद मोहम्मद शाकिर, जिल्द 1, पेज 446) इन अहले सुन्नत की किताबों से पेश की गई हदीसों और रिवायतों से पैग़म्बर स.अ. का मरने वाले के लिए आंसू बहाना विशेष कर इमाम हुसैन अ.स. की शहादत की खबर सुन कर बेचैन हो कर आंसू बहाना साबित हो जाता है। अब भी वहाबी टोले का इमाम हुसैन अ.स. पर आंसू बहाने पर बिदअत और हारम के फ़तवे लगाने का एकमात्र कारण अहले बैत अ.स. के घराने से दुश्मनी के अलावा कुछ नहीं है।

 

 

 

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