आसमानी अक़्द, ज़मीनी संदेश: सीरत ए ज़हरा (स) और अली (अ) का अमली सबक

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आसमानी अक़्द, ज़मीनी संदेश: सीरत ए ज़हरा (स) और अली (अ) का अमली सबक

यह कोई मिथक नहीं है, यह इतिहास की एक सच्ची, शुद्ध और चमकदार कहानी है। एक ऐसा रिश्ता जिसमें दहेज का कोई घमंड नहीं था, कोई रीति-रिवाज़ और परंपराओं का प्रदर्शन नहीं था। मेहमानों की कोई सूची नहीं थी, कैमरों की कोई चमक नहीं थी। लेकिन एक चीज़ थी- रोशनी! एक ऐसी रोशनी जो आसमान से उतरी और धरती के छोर को रोशन कर गई।

यह कोई मिथक नहीं है, यह इतिहास की एक सच्ची, शुद्ध और चमकदार कहानी है। एक ऐसा रिश्ता जिसमें दहेज का कोई घमंड नहीं था, कोई रीति-रिवाज़ और परंपराओं का प्रदर्शन नहीं था। मेहमानों की कोई सूची नहीं थी, कैमरों की कोई चमक नहीं थी। लेकिन एक चीज़ थी- रोशनी! एक ऐसी रोशनी जो आसमान से उतरी और धरती के छोर को रोशन कर गई।

यह 1 जिलहिज्जा का दिन था जब हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) का विवाह हुआ। यह विवाह सिर्फ़ दो व्यक्तियों का मिलन नहीं था, बल्कि दो महानताओं का मिलन था, दो वलीयो का मिलन था और दो अचूकता का सिलसिला था।

पैगंबर द्वारा आसमानी अक़्द की घोषणा

रसूल अल्लाह (स) ने फ़रमाया:

"अल्लाह ने अली (अ) को स्वर्ग में फ़ातिमा (स) का पति नियुक्त किया, और मुझे धरती पर इस विवाह की घोषणा करने का आदेश दिया।"

और उन्होंने कहा: "यदि अली (अ) न होते, तो फ़ातिमा (स) का कोई साथी नहीं होता।"

यह एक विवाह था, लेकिन कुरान की आयतों की तरह एक दूसरे से जुड़ा हुआ। कोई सौदेबाज़ी नहीं, कोई सांसारिक सुविधा नहीं। केवल ईश्वरीय प्रसन्नता और पैगंबर (शांति उस पर हो) का प्यार।

अली की इच्छा, विनम्रता की खामोशी

जब हज़रत अली (अ) शादी के इरादे से नबी (स) के दरवाज़े पर पेश हुए, तो उनके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे। वे तीन बार आए और हर बार वापस लौट गए। आख़िर में रसूल (स) ने पूछा: “अली (अ)! ऐसा लगता है कि तुम फ़ातिमा का हाथ माँगने आए हो?”

और अली (अ), जिन्होंने बद्र और उहुद में दुश्मनों को चुनौती दी थी, आज शर्म से सिर झुकाकर बोले: “हाँ, ऐ अल्लाह के रसूल!” जब उनसे ज़हरा (स) के बारे में पूछा गया, तो वे चुप रहीं। रसूल (स) ने कहा: “अल्लाह महान है! उनकी खामोशी उनका इक़रार है।”

“अल्लाह महान है! फ़ातिमा की खामोशी फ़ातिमा का इक़रार है।”

यह खामोशी ईमान की सबसे ऊँची आवाज़ थी।

दहेज? या ग़रीबी का अभिमान?

हज़रत अली (अ) के पास क्या था? सिर्फ़ एक तलवार, एक कवच और एक ऊँट। अल्लाह के रसूल (स) ने कहा:

“तलवार जिहाद के लिए रखो और ऊँट सफ़र के लिए; कवच बेचो और शादी तय करो!”

कवच बेचा गया और पाँच सौ दिरहम का मेहेर तय हुआ। ज़हरा का दहेज? एक चरखा, एक चक्की, एक पानी का बर्तन, मिट्टी के बर्तन और एक कमल।

पैगंबर (स) ने कहा: “अल्लाह उन लोगों को बरकत दे जिनके बर्तन मिट्टी के बने हैं!”

रुखसती का क्षण: दुआओं की बौछार

जब सैय्यदा ज़हरा (स) को विदा किया गया, तो कोई ढोल या शोर नहीं हुआ। जिब्रील आसमान से नाजिल हुए और पैगंबर (स) की दुआ धरती पर गूंज उठी: “ऐ फ़ातिमा (स)! अल्लाह तुम्हारी दुनिया और आख़िरत की ग़लतियों को माफ़ करे!” “ऐ अली (अ)! आपको बधाई, फातिमा (स) सबसे अच्छी पत्नी हैं!” और उन्होंने कहा: “नीम अल-बाल-अली (स)!”

घरेलू जीवन: इबादत, मुहब्बत,फ़र्ज़

फातिमा (स) पानी ढोती थीं, चक्की पीसती थीं और बच्चों का पालन-पोषण करती थीं। एक बार, अपनी कड़ी मेहनत से थककर, उन्होंने एक कनीज़ की कामना की। पैगंबर (स) ने कहा: “क्या मैं तुम्हें एक ऐसी दुआ नहीं सिखाऊँ जो कनीज़ से बेहतर हो?”

फातिमा (स) की तस्बीह: “अल्लाह सबसे महान है” 34 बार, “अल्हम्दुलिल्लाह” 33 बार, “सुभान अल्लाह” 33 बार।

यह तस्बीह आज भी आस्थावान महिलाओं का आध्यात्मिक खजाना है।

पर्दे की गरिमा, शालीनता की चमक

पैगंबर (स) ने पूछा: “एक औरत के लिए सबसे अच्छी चीज़ क्या है?”

फ़ातिमा (स) ने कहा: “न तो उसे अपने अलावा किसी और मर्द की तरफ़ देखना चाहिए, न ही किसी मर्द को उसकी तरफ़ देखना चाहिए।”

यह जवाब सिर्फ़ औरत की महानता नहीं थी, यह पवित्रता और जागरूकता का मानक था।

आज की शादी, कल की ज़िम्मेदारी

हमने नबी (स) की बेटी को दहेज़ का ढेर लेकर जाते नहीं देखा, न ही हमने अली (अ) के घर को सोने से सजा हुआ देखा। लेकिन उस घर से इल्म, सब्र, इबादत, इंसाफ़ और मोहब्बत की रोशनी चमकी जिसने सदियों को रोशन कर दिया।

अली (अ) और ज़हरा (स) सिर्फ़ पति-पत्नी नहीं थे- वे दो चिराग़ थे, जो आज भी हर मोमिन के दिल में जलते हैं।

अली (अ) और फातिमा (स) का विवाह हमें यह सिखाता है कि:

  • विवाह दिखावा नहीं है, यह तक़वा का द्वार है।
  • मेहेर और दहेज नीयत से पवित्र होते हैं।
  • सादगी, प्रेम और कर्तव्य - एक सफल घर का रहस्य।

हे प्रभु! जिसने नूर को नूर से जोड़ा, और अली (अ) और फातिमा (स) के पवित्र संबंध को धरती पर अपनी प्रसन्नता का प्रकटीकरण बनाया, हमें वही सादगी, वही गरिमा, वही विनम्रता, वही संतोष प्रदान कर जो उनके घर के वातावरण में था, और जिसकी खुशबू सदियों से मोमिनों के दिलों को सुगंधित कर रही है।

हे प्रभु! हमारे विवाह से अभिमान, प्रदर्शन, दिखावा और सांसारिकता को मिटा दें, और उनमें प्रेम, सेवा, त्याग और आपकी प्रसन्नता की भावना भर दें। हमें एहसास दिलाएँ कि विवाह केवल एक रिश्ता नहीं है, यह इबादत है; यह एक अनुष्ठान नहीं है, यह एक संदेश है; कोई अस्थायी बंधन नहीं है, बल्कि दो आत्माओं का शाश्वत अनुबंध है, जो विलायत के केंद्र और इस्मत की धुरी के इर्द-गिर्द घूमता है।

ऐ हमारे रब! जिसने सय्यदा ज़हरा (स) को गरीबी में गर्व और अली (अ) को जिहाद में सुंदरता प्रदान की, हमें उनके पदचिह्नों पर चलने की क्षमता प्रदान कर। हमारी नस्लों को उनकी विलायत, उनकी पवित्रता और उनके पदचिह्नों पर चलने की क्षमता प्रदान कर। हमारे घरों को ज्ञान और धैर्य, सब्र और विनम्रता, और ईमानदारी और धर्मपरायणता का पालना बना। ऐ रब! अगर हम दुनिया की चाहत में दीन के मानकों को भूल गए हैं, तो हमें जागरूकता प्रदान कर, हमें क्षमता प्रदान कर और हमें दिल की वह रोशनी प्रदान कर:

जो अली (अ) के सजदों में थी,

जो फातिमा (स) की शान में थी,

जो आपके प्रिय (स) की दुआ में थी।

आमीन, या रब्बल आलामीन।

लेखक: मौलाना सैयद करामत हुसैन शऊर जाफ़री

 

 

 

 

 

 

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