इंतेज़ार के आसार जो लोगों पर खास हालात है, अगर वे हक़ीक़ी इंतेज़ार करने वाले हों, तो वे बहुत ही अहम और बहूमूल्य स्थान और सम्मान रखते हैं।
मासूमीन (अ) की बहूमूल्य शिक्षाओं में, इमाम महदी (अ) के सच्चे इंतेज़ार करने वालों के लिए इतनी बड़ा स्थान और सम्मान बताया गया है कि यह सच में आश्चर्यजनक और हैरान करने वाला है। इससे यह सवाल उठता है कि ऐसी हालत कैसे इतनी बड़ी क़ीमत रख सकते है।
अब हम मासूमीन (अ) की हदीसों के माध्यम से इंतेज़ार करने वालों की कुछ खूबियों और फज़ीलतों का उल्लेख करेंगे।
- सबसे अच्छे लोग
विशेष हालात जो इंतेज़ार के दौर के लोगों पर हैं, अगर वे हक़ीक़ी इंतेज़ार करने वाले हों, तो उनका स्थान बहुत ही क़ीमती होता है।
इमाम सज्जाद अलेहिस्सलाम इस बारे में फ़रमाते हैं:
إِنَّ أَهْلَ زَمَانِ غَیْبَتِهِ وَ الْقَائِلِینَ بِإِمَامَتِهِ وَ الْمُنْتَظِرِینَ لِظُهُورِهِ عجل الله تعالی فرجه الشریف أَفْضَلُ مِنْ أَهْلِ کُلِّ زَمَان لِأَنَّ اللَّهَ تَعَالَی ذِکْرُهُ أَعْطَاهُمْ مِنَ الْعُقُولِ وَ الْأَفْهَامِ وَ الْمَعْرِفَةِ مَا صَارَتْ بِهِ الْغَیْبَةُ عَنْهُمْ بِمَنْزَلَةِ الْمُشَاهَدَةِ इन्ना अहल ज़माने ग़ैबतेहि वल क़ाएलीना बेइमामतेहि वल मुंतज़ेरीना लेज़ोहूरेहि अज्जल्लाहो तआा फ़रजहुश शरीफ़ अफ़ज़लो मिन अहले क़ुल्ले ज़मान लेअन्नल्लाहा तआला ज़िक्रोहू आताहुम मेनल ओक़ूले वल अफ़्हामे वल मअरफ़ते मा सारत बेहिल ग़ैबतो अंहुम बेमंज़ेलतिल मुशाहदते
उस इमाम की ग़ैबत के समय के लोग, जो उनकी इमामत पर यकीन करते हैं और उनके ज़ुहूर का इंतेज़ार करते हैं, सभी समय के लोगों से बेहतर हैं; क्योंकि अल्लाह ने उन्हें ऐसी समझ, बुद्धि और मारफ़त दी है कि ग़ैबत उनके लिए देखने के समान है। (कमालुद्दीन तमानुन नेअमा, भाग 1, पेज 319)
- ज़ुहूर के समय ख़ैमे मे उपस्थित लोग
दुनिया के सभी अच्छे लोगों की सबसे बड़ी ख्वाहिश होती है कि वे उस दौर में मौजूद हों जहाँ कोई भ्रष्टाचार, अत्याचार या बर्बादी न हो। यह खास स्थान तब पूरी तरह महत्वपूर्ण बनता है जब वह दिन आए, और वह उस समय, जो नेतृत्व कर रहा हो, उसके सबसे करीब हो, यानी उस शख्स के ख़ैमे मे मौजूद हो।
इमाम सादिक़ (अ) ने उन सच्चे इंतेज़ार करने वालों के लिए जो ज़ुहूर का वक्त न देख सकें, फ़रमाया:
مَنْ مَاتَ مِنْکُمُ عَلی هَذا الْاَمْرِ مُنتَظِراً کانَ کَمَنْ هُوَ فِی الفُسْطَاطِا الَّذِی لِلْقائم मन माता मिंकुम अला हाज़ल अम्रे मुंतज़ेरन काना कमन होवा फ़िल फ़ुस्तातन अल लज़ी लिलक़ाएम
जो कोई भी आप में से इस अम्र का इंतेज़ार करते हुए दुनिया से चला जाए, वह उस शख्स के ख़ैमे में मौजूद होने के समान है। (काफ़ी, भाग 5, पेज 23)
3.उनका सवाब नमाज़ और रोज़ा रखने वालों के सवाब के समान है
सबसे बेहतरीन इबादतों में से नमाज़ और रोज़ा है। हदीसों से पता चलता है कि अगर कोई अपनी ज़िंदगी इंतेज़ार में बिताता है तो वो उस इंसान के समान है जो नमाज़ और रोज़ा कर रहा हो।
इमाम बाक़िर (अ) इस बारे में फ़रमाते हैं:
وَاعْلَمُوا اَنَّ المُنتَظِرَ لِهذا الاَمْرِ لَهُ مِثْلُ اَجْرِ الصَّائِمِ القائِمِ वअलमू अन्नल मुंतज़ेरा लेहाज़ल अम्रे लहू मिस्लो अज्रिस साएमिल का़एमे
जान लो कि इस अम्र का इंतेज़ार करने वाले को रोज़ा रखने वाले और रात भर नमाज़ पढ़ने वाले जैसा ही सवाब मिलेगा। (काफ़ी, भाग 2, पेज 222)
- सबसे सम्मानित राष्ट्र और पैग़म्बर (स) के साथी
इंसानों में सबसे मुकर्रम कौन है? निश्चित रूप से हज़रत रसूल ए इस्लाम (स) जो अल्लाह के सबसे बड़े नबी और सबसे प्यारी मख़लूक़ हैं। अब जो कोई भी दौर-ए-इंतजार में वैसा ज़िन्दगी गुज़ारे जैसा उसकी शोहरत के लायक़ हो, वह रसूल के सबसे मुकर्रम उम्मत का हिस्सा होगा। खुद हज़रत ने फरमाया:
... اُولئِکَ رُفَقائی وَاکْرَمُ اُمَّتی عَلَی उलाएका रोफ़ाक़ाई व अकरमो उम्ती अला ...
यानी वे मेरे दोस्त हैं और मेरी उम्मत में सबसे मुकर्रम हैं। (कमालुद्दीन तमानुन नेअमा, भाग 1, पेज 286)
- अल्लाह के रास्ते मे जंग करने वालो और रसूल अल्लाह की रक़ाब मे जंग करने वाले
अल्लाह के रास्ते में जंग करने वाले लोग भी सबसे मुकर्रम इंसान होते हैं। यह फज़ीलत तब पूरी होती है जब यह जंग इंसान-ए-कामिल और हज़रत रसूल (स) के साथ रहते हुए हो।
इमाम हुसैन (अ) फ़रमाते हैं:
إِنَّ الصَّابِرَ فِی غَیْبَتِهِ عَلَی الْأَذَی وَ التَّکْذِیبِ بِمَنْزِلَةِ الْمُجَاهِدِ بِالسَّیْفِ بَیْنَ یَدَیْ رَسُولِ اللَّهِ ص इन्नस साबेरे फ़ी ग़ैबतेहि अलल अज़ा वत तकज़ीबे बेमंज़िलतिल मुजाहिदे बिस सैफ़े बैना यदय रसूलिल्लाह (स)
जो शख्स ग़ैबत के दौर में तंग किए जाने और झूठा कहे जाने पर सब्र करता है, वह उस जंगजू के बराबर है जिसने तलवार के साथ हज़रत रसूल के साथ लड़ाई की हो। (ओयून अख़बार अल रज़ा, भाग 1, पेज 68)
- प्रारंभिक इस्लाम के शहीदों से एक हजार शहीदों का सवाब
सच्चे और स्थिर इंतेज़ार करने वालों की विलायत अहले-बैत पर इतनी बड़ी फज़ीलत है कि उन्हें इस्लाम के शुरूआती दौर के हज़ारों शहीदों के बराबर सवाब मिलता है।
इमाम सज्जाद (अ) इस बारे में फ़रमाते हैं:
مَن ثَبَتَ عَلی مُوالاتِنا فِی غَیْبَةِ قائِمِنا اَعْطاهُ اللَّهُ عَزَّوَجَلَّ اَجْرَ اَلْفَ شَهیدٍ مِنْ شُهَداءِ بَدْرٍ وَاُحُدٍ मन सबता अला मुवालातेना फ़ी ग़ैबते क़ाऐमेना आताहुल्लाहो अज़्ज़ा व जल्ला अज्रा अल्फ़ा शहीदिन मिन शोहदाए बदरिन वा ओहदिन
जो कोई हमारे क़ायम की ग़ैबत के दौर में वफादार और मजबूत रहे, अल्लाह उसे इस्लाम के शुरूआती दौर के बदर और ओहद के हज़ार शहीदों का सवाब देगा। (कमालुद्दीन तमानुन नेअमा, भाग 1, पेज 323)
श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : "दर्स नामा महदवियत" नामक पुस्तक से से मामूली परिवर्तन के साथ लिया गया है, लेखक: खुदामुराद सुलैमियान