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तुर्की में आतंकी हमला,10 की मौत, कई को बंधक बनाया
तुर्की से बड़े आतंकी हमले की खबर आ रही है। तुर्की की राजधानी अंकारा में एविएशन कंपनी तुर्की एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (TUSAS) के मुख्यालय के बाहर एक बड़ा आतंकी हमला हुआ है। घटनास्थल पर अभी भी गोलीबारी जारी है। यहाँ अब भी दो आतंकवादी मौजूद हैं जो लगातार हमला कर रहे हैं। आतंकियों ने कई लोगों को बंधक भी बना लिया है। अभी तक इस हमले में 10 लोगों की मौत की खबर सामने आ रही है, हालांकि मौत का यह आंकड़ा अभी और बढ़ सकता है।
गृह मंत्रालय की तरफ से पोस्ट में कहा गया है कि “तुर्किए एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज के खिलाफ एक आतंकवादी हमला किया गया। दुर्भाग्यवश हमारे जवान शहीद हुए हैं और कई लोग घायल हैं।
तेहरान में हमास कार्यालय में सरदार क़ानी की उपस्थिति
आईआरजीसी के क़ुद्स फ़ोर्स के कमांडर ने तेहरान में हमास कार्यालय में भाग लेते हुए याह्या सनवर की शहादत पर अपनी संवेदना व्यक्त की।
आईआरजीसी के कुद्स फोर्स के कमांडर ब्रिगेडियर जनरल इस्माइल कानी ने तेहरान में हमास कार्यालय में भाग लिया और याह्या सनवर की शहादत के लिए हमास के प्रतिनिधि के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की।
शहीद सनवार का स्मरणोत्सव समारोह अक्टूबर के 22 और 23 तारीख को तेहरान में हमास कार्यालय में आयोजित किया जाएगा।
लेबनानी और फ़िलिस्तीनी लोगों की मदद के लिए ईरानियों का व्यापक प्रयास
बहुत सी ईरानी महिलाओं ने फ़िलिस्तीनी और लेबनानी लोगों की मदद के लिए अपने आभूषणों को भी भेंट कर दिया।
"बनी आदम एक दूसरे का हिस्सा हैं" शीर्षक के अंतर्गत फ़िलिस्तीनी और लेबनानी लोगों की मदद के लिए ईरानियों के सहायता कार्यक्रम का चौथा दौर आयोजित हुआ।
पिछले महीने ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने फ़िलिस्तीनी और लेबनानी लोगों की सहायता के संबंध में संदेश दिया था जिसके बाद से ईरान के विभिन्न वर्गों के लोग फ़िलिस्तीनी और लेबनानी लोगों की मदद की दिशा में सक्रिय व प्रयासरत हो गये हैं।
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता इमाम ख़ामेनेई ने 28 सितंबर को एक संदेश में फ़रमाया था कि समस्त मुसलमानों का दायित्व व फ़र्ज़ है कि वे अपनी संभावनाओं के साथ लेबनान के लोगों और हिज़्बुल्लाह के शूरवीर जवानों की मदद करें और अतिग्रहणकारी, अत्याचारी और दुष्ट ज़ायोनी सरकार के मुक़ाबले में उनकी सहायता करें।
"ईरान हमदिल" नामक संस्था ग़ज़ा और लेबनान पर ज़ायोनी सरकार द्वारा हमला करने से पहले अपनी पूरी ऊर्जा व संभावना का प्रयोग ईरान के अंदर ग़रीब लोगों पर ख़र्च करती थी और अब उसने फ़िलिस्तीनी और लेबनानी लोगों की सहायता के लिए विस्तृत पैमाने पर प्रयास आरंभ कर दिया है और फ़िलिस्तीनी और लेबनानी लोग उसकी सहायता सेवा में सर्वोपरि हैं।
इस संस्था ने अपनी सहायता का तीसरा दौर वर्ष 2020 से 2022 तक आयोजित किया था जिसमें अरबों तूमान नक़दी और ग़ैर नक़दी के रूप में जमा किये गये।
इस संस्था का चौथा दौर ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के संदेश के बाद आरंभ हुआ जिसमें बहुत सी ईरानी महिलाओं ने अपने ज़ेवर भी भेंट कर दिये।
ईरान के हितैषी व शुभचिंतक लोगों के अलावा बहुत से अधिकारी और ज़िम्मेदार भी ईरान हिमदिल संस्था से जुड़ गये हैं।
ईरानी संसद मजलिसे शुराये इस्लामी के सभापति मोहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ ने इस संस्था से जुड़ने के बाद लोगों का आह्वान किया है कि ईरानी मुसलमान लेबनान और फ़िलिस्तीन के बेघर होने वाले लोगों की सहायता करके अपना नाम प्रतिरोध मोर्चे की सहायता करने वालों में पंजीकृत करायें।
ईरान हमदिल नामक संस्था या चैरेटी लोगों से जो सहायता इकट्ठा कर रही है उसे ईरान की रेड क्रिसेन्ट संस्था और फ़िलिस्तीनी व लेबनानी लोगों की सहायता की दिशा में जो लोग सक्रिय हैं वे उस सहायता को लोगों तक पहुंचा रहे हैं।
फ़िलिस्तीन और लेबनान के पीड़ित लोगों की सहायता चाहे सरकारी संगठन कर रहे हैं या ग़ैर सरकारी एक प्रिय कार्य है और दुनिया के स्वतंत्र लोग इस प्रकार के प्रयास का समर्थन व सराहना कर रहे हैं।
इससे पहले इराक़ के उच्चतम धर्मगुरू आयतुल्लाह सीस्तानी ने भी एक बयान जारी करके इराक़ के मोमिन लोगों का आह्वान किया था कि वे लेबनानी राष्ट्र के दुःखों और समस्याओं को कम करने के लिए उनकी मानवता प्रेमी सहायता करें। इराक के उच्चतम धर्मगुरू के इस आह्वान व संदेश के बाद इराक में लेबनानी लोगों के लिए सहायता एकत्रित करके भेजी गयी।
यमन के बाद सऊदी अरब और ईरान ने लाल सागर में सेना उतारी
लाल सागर में ज़ायोनिहितों को लगातार निशाना बना रहे यमन ने इस समंदर को इस्राईल और उसके पश्चिमी सहयोगी देशों के लिए काल का गाल बना दिया है। पश्चिमी जगत के लिए खतरनाक बन चुके लाल सागर में ईरान और सऊदी अरब ने अपनी सेना उतारने की योजना बनाई है।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब और ईरान जल्द ही लाल सागर में संयुक्त अभ्यास आयोजित करने जा रहे हैं। न्यूज एजेंसी ISNA की रिपोर्ट के मुताबिक़ ईरान की नौसेना के कमांडर एडमिरल शाहराम ईरानी ने कहा है कि दोनों देशों के अधिकारियों के बीच ड्रिल के लिए बातचीत चल रही है और जल्द ही इसका आयोजन किया जाएगा,” हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया है कि ये ड्रिल कब की जाएगी।
शहीद यह्या सनावार ने पूरी ज़िंदगी जनता के साथ और जिहाद में गुज़ारी
इस्लामी रेडियो और टेलीविज़न यूनियन के महासचिव, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन करीमीयन ने कहा कि शहीद यह्या सनावार ने अपनी पूरी ज़िंदगी जिहाद और जनता के समर्थन में गुज़ारी और फ़िलस्तीन की आज़ादी के लिए अनगिनत कुर्बानियाँ दीं हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार,तेहरान में शहीद यह्या सिनवार की याद में आयोजित समारोह के दौरान मीडिया से बात करते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन करीमीयन ने कहा कि शहीद सिनवार ने आशूराई जीवन जिया और उनकी शहादत भी आशूराई थी।
उन्होंने आगे कहा कि दुश्मन ने पिछले साल मानसिक युद्ध के ज़रिए शहीद सनावार को बदनाम करने की कोशिश की लेकिन यह प्रचार असफल साबित हुआ और उनकी आखिरी सांस तक जिहाद के मैदान में उनकी मजबूती दिखाई दी।
करीमीयन ने कहा कि शहीद सिनवार का जीवन शिक्षा और सबक से भरा हुआ था और उनकी शहादत ने उन्हें एक महान आदर्श व्यक्तित्व बना दिया, जिस पर युवा पीढ़ी गर्व करती है और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करेगी।
शाही ईदगाह मामले में हाईकोर्ट ने दिया मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका, री कॉल अर्जी खारिज
शाही ईदगाह और श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका देते हुए मुस्लिम पक्ष द्वारा सभी 15 वाद को अलग अलग सुने जाने की मांग को खारिज कर दिया है। अब सभी 15 वाद को हाईकोर्ट एक साथ सुनवाई करेगा।
मुस्लिम पक्ष की तरफ से मथुरा कोर्ट में दाखिल 15 याचिकाओं की अलग-अलग सुनवाई की मांग की थी। हिंदू पक्ष की तरफ से कहा गया था कि सभी मामलों की एक साथ सुनवाई की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कोर्ट को दो या फिर इससे ज्यादा मामलों को एक साथ सुनने का हक है।
सिन्वार की शहादत से हमास का संकल्प व इरादा और मज़बूत हो गया
अमेरिकी सेना के एक पूर्व अफ़सर ने अलग़द टीवी चैनल के साथ साक्षात्कार में कहा है कि यहिया सिन्वार की शहादत के बाद हमास कमज़ोर नहीं हुआ है।
अलग़द टीवी चैनल के एंकर ने जब अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक अफ़सर Scott Ritter से ग़ज़ा में हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख यहिया सिन्वार की शहादत के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अतिग्रहणकारी इस्राईली सैनिकों से लड़ते हुए यहिया सिन्वार शहीद हो गये। इस प्रकार की हालत में शहीद होने की वजह से वह नायक बन गये हैं।
अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक अफ़सर ने कहा कि यहिया सिन्वार अतिग्रहणकारी सैनिकों से मुक़ाबला करते हुए जंग के मैदान से नहीं भागे और साहस के साथ लड़ते हुए शहीद हुए। अतः इतिहास के अंधेरे में सिन्वार का नाम चमकेगा।
अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक अफ़सर Scott Ritter ने सिन्वार की शहादत के बाद हमास की शक्ति के बारे में कहा कि सिन्वार की शहादत से न केवल फ़िलिस्तीन की आकांक्षा और हमास की ताक़त कम नहीं होगी बल्कि जंग जारी रखने और अपनी रक्षा हेतु हमास के मनोबल में और वृद्धि हो जायेगी।
इसी प्रकार उन्होंने कहा कि सिन्वार की शहादत लड़ाई में एक मोड़ सिद्ध होगी और इस्राईली सरकार अधिक कमज़ोर होगी और हमास अपनी पवित्र लड़ाई व जंग को जारी रखेगा। उन्होंने इस्राईल द्वारा ईरान पर संभावित हमले के बारे में भी कहा कि इसका संबंध ज़ायोनी अधिकारियों से है और व्यक्तिगत रूप से इसका लाभ नेतनयाहू को मिलेगा।
हिंदुस्तानी सुप्रीम कोर्ट की मदारीस बंद करने पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मदरसों की बंदी पर रोक लगा दी है इस फैसले के बाद जमीयतुल उलेमा ए हिंद ने इस निर्णय का स्वागत किया है और इसे धार्मिक स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,नई दिल्ली/भारत की सुप्रीम कोर्ट ने गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की मान्यता रद्द करने और छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने के राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) के आदेशों पर रोक लगा दी।
यह फैसला जमीयत उलेमा ए हिंद की याचिका पर सुनाया गया जिसमें मुस्लिम संगठन ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकारों द्वारा मदरसों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं, ने NCPCR के निर्देशों और राज्य सरकारों के आदेशों की समीक्षा के बाद यह निर्णय दिया। NCPCR ने 7 जून 2024 को उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि जो मदरसे शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम का पालन नहीं कर रहे हैं उनकी मान्यता रद्द की जाए।
जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि यह कार्रवाई अन्यायपूर्ण है और इससे हजारों छात्र प्रभावित होंगे सुप्रीम कोर्ट ने माना कि फिलहाल NCPCR के निर्देशों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
यह फैसला तब आया है जब आयोग ने मदरसों के लिए सरकारी फंडिंग रोकने का सुझाव दिया था यह कहते हुए कि यह संस्थान प्राथमिक शिक्षा प्रदान नहीं कर रहे हैं। NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कन्नगो ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने कभी भी मदरसों को बंद करने की मांग नहीं की बल्कि उन्होंने सभी के लिए समान शैक्षिक अवसरों की वकालत की है।
इस अवसर पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया और इसे अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की जीत बताया उन्होंने कहा कि यह फैसला मदरसों के हक में एक बड़ी कामयाबी है और उम्मीद जताई कि अंतिम फैसला भी मदरसों के पक्ष में आएगा।
यह मामला भारत में धार्मिक शिक्षा और प्राथमिक शिक्षा के अधिकारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आने वाले समय में अहम असर डाल सकता है।
हिज़्बुल्लाह ने हाशिम सफ़ीउद्दीन की शहादत की पुष्टि की
हिज़्बुल्लाह ने एक आधिकारिक बयान में ज़ायोनी शासन के आपराधिक हमले में हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के प्रमुख सय्यद हाशिम सफ़ीउद्दीन की शहादत की पुष्टि की है।
बता दें कि हिज़्बुल्लाह की ओर से इस खबर की पुष्टि से पहले ही अवैध राष्ट्र की ज़ायोनी सेना ने कहा था कि 4 अक्टूबर को ज़ाहियाह क्षेत्र में हिज़्बुल्लाह के खुफिया मुख्यालय को निशाना बनाया गया था, अब यह पुष्टि की जा सकती है कि लगभग तीन हफ्ते पहले हुए इस हमले में हिज़्बुल्लाह की कार्यकारी परिषद के चीफ हाशिम सफ़ीउद्दीन और हिज़्बुल्लाह के खुफिया विभाग के प्रमुख अली हुसैन के साथ हिज़्बुल्लाह के कई कमांडर मारे गए हैं।
सबसे बड़ी ईद, ईदे ग़दीर।
ग़दीर मक्के से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक जगह थी जहां तालाब था। इसके आस पास पेड़ थे। क़ाफ़िले वाले इसकी छाव में अपने सफ़र की थकान उतारते और साफ़ और मीठे पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। समय बीतने के साथ यह छोटा सा तालाब एक अथाह झील में तब्दील हो गया कि जहां से ह
सबसे बड़ी ईद,ईदे ग़दीर।
अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: ग़दीर मक्के से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक जगह थी जहां तालाब था। इसके आस पास पेड़ थे। क़ाफ़िले वाले इसकी छाव में अपने सफ़र की थकान उतारते और साफ़ और मीठे पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। समय बीतने के साथ यह छोटा सा तालाब एक अथाह झील में तब्दील हो गया कि जहां से हजरत अली अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम का जानशीन (उत्तराधिकारी) बनाए जाने की घटना का मैसेज पूरी दुनिया में फैल गया। हज़रत अली की पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्ति की इतिहासिक घटना ग़दीरे ख़ुम की ज़मीन पर घटी इसलिए यह नाम इतिहास में अमर हो गया। दस हिजरी क़मरी की अट्ठारह ज़िलहिज्ज को हज से लौटने वाले क़ाफ़लों को पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.) के आदेश पर रोका गया। सब ग़दीरे में जमा हुए। हाजी हाथों को माथे पर रखकर आंखों के लिए छांव बनाए हुए थे। उनके मन का जोश आंखों से झलक रहा था। सब एक दूसरे को देख कर यह पूछ रहे थे कि पैग़म्बर (स.अ.) को क्या काम है? अचानक चेहरे रौशनी में डूब गए। पैग़म्बरे इस्लाम ने ऊंटों की काठियों से बने ऊंचे मिम्बर पर खड़े होकर हज़रत अली (अ.) को अपने बाद अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और दीन के आख़री मैसेज को लोगों तक पहुंचाया। लोग इस तरह हज़रत अली अलैहिस्सलाम को मुबारकबाद देने व उनके हाथों को चूमने के लिए उनकी ओर लपक लपक कर बढ़ रहे थे कि हज़रत अली (अ.) उस भीड़ में दिखाई नहीं दे रहे थे। वह सबके मौला व पैग़म्बरे इस्लाम के जानशीन (उत्तराधिकारी) नियुक्त हुए थे। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के सहाबियों (साथियों) ने कहा ऐ अली आपको मुबारकबाद हो! आप सभी मोमिनों के मौला हैं! ग़दीर दिवस को ईद मानना और इसके ख़ास संस्कार को अंजाम देना इस्लामी दुनिया की रस्मों में है यह केवल शिया समुदाय से मख़सूस नहीं है। इतिहास के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के दौर में इस दिन को मुसलमानों की बड़ी ईद माना गया और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के पाक अहलेबैत व इस्लाम पर विश्वास रखने वालों ने इस परंपरा को जारी रखा। इस्लामी दुनिया के बड़े आलिम अबु रैहान बैरूनी ने अपनी किताब आसारुल बाक़िया में लिखा हैः ग़दीर की ईद इस्लाम की ईदों में है। इस हवाले से सुन्नी समुदाय के मशहूर आलिम इब्ने तलहा शाफ़ई लिखते हैः यह दिन इसलिए ईद है कि पैग़म्बर इस्लाम (स.) ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को लोगों का मौला चुना और उन्हें पूरी दुनिया पर वरीयता दी। ग़दीर की घटना इतनी मशहूर है कि बहुत ही कम ऐसे इतिहासकार होंगे जिन्होंने इसको न लिखा हो । ईरान के मशहूर आलिम अल्लामा अमीनी ने ग़दीर के संबंध में अपनी कितबा अल-ग़दीर में शिया आलिमों के अलावा सुन्नी समुदाय की मोतबर (विश्वस्त) किताबों से 360 गवाह इकट्ठा किए हैं। ग़दीर कई पहलुओं से महत्वपूर्ण है। इसका एक महत्वपूर्ण पहलू हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बेमिसाल विशेषता व नैतिक महानता पर आधारित है। ग़दीर नामक घाटी में मौजूद बहुत से लोगों ने, जो इस घटना के गवाह थे, हज़रत अली की विशेषताओं को नज़दीक से देखा था और वह जानते थे कि वह बहादुरी, ईमान, निष्ठा व न्याय की निगाह से लोगों के मार्गदर्शन के लिए सबसे अच्छा विकल्प हैं।