
رضوی
यमन और ग़ज़ा पर हमलों से लेकर इस्राईली शासन को भारी नुक़सान पहुंचाने की प्रतिरोध की योजना
यमन के जनांदोलन अंसारुल्लाह के महासचिव सैयद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हूसी ने ज़ायोनी शासन को चेतावनी दी है और स्पष्ट किया कि इस्राईली ठिकानों के ख़िलाफ़ यमनी सेना के आप्रेशन का दायरा, हिंद महासागर और भूमध्य सागर तक फैला जाएगा।
इस्राईली शासन भीषण हमलों की प्रतिरोध की योजना, यमन, लेबनान और ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के लगातार हमलों, मक़बूज़ा क्षेत्रों में नेतन्याहू के ख़िलाफ़ प्रदर्शन और यमन की बंदरगाह अल-हुदैदा पर ज़ायोनी शासन के हमले की निंदा, हालिया घंटों में पश्चिम एशिया के कुछ सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम हैं जो आज आपकी सेवा में पेश किए जा रहे हैं।
यमन पर अमेरिकी और ब्रिटिश हवाई हमला
अल-मयादीन चैनल के मुताबिक, रविवार को अमेरिकी-ब्रिटिश गठबंधन ने यमन के अल-सलीफ़ इलाक़े में स्थित "रासे ईसा" बंदरगाह पर हमला किया।
उसी वक़्त, यमन के हज्जा प्रांत में मौजूद अल-मसीरा चैनल के संवाददाता ने यह भी बताया कि मीदी सेक्टर में "बहीस" क्षेत्र पर भी अमेरिकी-ब्रिटिश युद्धक विमानों ने दो बार हमला किया।
अब तक, इन हमलों में होने वाले जानी और माली नुक़सान का ब्योरा हासिल नहीं हो सका है।
यमन पर ज़ायोनी शासन के हमले पर कुवैत, सीरिया और ओमान की प्रतिक्रियाएं
अल-मयादीन के अनुसार, तीन देशों कुवैत, ओमान और सीरिया के विदेश मंत्रालयों ने रविवार को बयान जारी कर यमनी इलाक़ों पर ज़ायोनी सेना के हमलों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की और इन क्रूर हमलों की कड़े शब्दों में निंदा की।
वहीं, इराक़ के नोजबा इस्लामिक रेजिस्टेंस मूवमेंट के महासचिव अकरम अल-काबी ने यमन की हुदैदा बंदरगाह पर ज़ायोनी शासन के हमले की निंदा की।
उन्होंने कहा: मारे गये ज़ायोनियों की संख्या में वृद्धि और उनके शांत क्षेत्रों के अशांत होने के बाद प्रिय यमनियों के आधारभूत ढांचों को निशाना बनाने में ज़ायोनी शासन और उसके मूर्ख गठबंधन की कार्रवाईयां, कि किसी भी क्षण मौत उनके पास आ सकती है, ज़ायोनी शासन के अपराधों की की नाकामियों का एक नया अध्याय है।
ज्ञात रहे कि शनिवार शाम को यमन की अल-हुदैदा बंदरगाह पर ज़ायोनी शासन के लड़ाकू विमानों ने बमबारी की थी। इस हमले के बाद इस तटीय शहर के तेल टैंकों में आग लग गई।
अब्दुल मलिक अल-हूसी, बड़े ऑप्रेशन अंजाम दिए जाने वाले हैं/ क़ब्ज़ाधारी इस्राईलियों को भयभीत रहना चाहिए
अल-मसीरा चैनल के अनुसार, यमन के जनांदोलन अंसारुल्लाह के महासचिव अब्दुल मलिक अल-हूसी ने रविवार को एक बयान में कहा: क़ब्ज़ाधारी इस्राइलियों को डरना चाहिए और पहले से कहीं अधिक चिंतित होना चाहिए, यह जानकर कि उनके मूर्ख नेताओं ने उनके लिए बढ़ते ख़तरे पैदा कर दिए हैं।
श्री बदरुद्दीन अल-हूसी ने कहा: इस्राईली दुश्मन ने तेल कंपनी के टैंक और अल-हुदैदा बिजली विभाग के टैंक पर सीधा हमला किया। इन लक्ष्यों को चुनने की वजह, यमन की अर्थव्यवस्था को निशाना बनाना और हमारे प्रिय राष्ट्र और उसकी आजीविका को नुक़सान पहुंचाना है।
यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के महासचिव ने कहा: यमन पर हमला करके दुश्मनों को कोई फ़ायदा नहीं होगा और यह हमले उसकी रक्षा नहीं कर सकते और ग़ज़ा के समर्थन में हमारे आप्रेश्न्ज़ के पांचवें चरण को जारी रखने से बाज़ नहीं रख सकते।
मुहम्मद अब्दुस्सलाम: हम ज़ायोनीयों के साथ संघर्ष तेज़ करने को तैयार हैं
अल जज़ीरा चैनल की रविवार की रिपोर्ट के अनुसार, यमन की राष्ट्रीय मुक्ति सरकार की वार्ता समिति के प्रमुख और मुख्यवार्ताकार मुहम्मद अब्दुस्सलाम का भी कहना था: यमनवासी संघर्ष के बढ़ने से डरते नहीं हैं और फ़िलिस्तीनियों की न्यायपूर्ण उमंगों की रक्षा के मार्ग पर बढ़ रहे हैं।
बेन गुरियन एयरपोर्ट पर नेतन्याहू के ख़िलाफ प्रदर्शन
रविवार को अल जज़ीरा चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बेंन्यामीन नेतन्याहू की वाशिंगटन यात्रा से पहले ज़ायोनी प्रदर्शनकारियों ने बेन गुरियन हवाई अड्डे पर विरोध प्रदर्शन किया।
इस प्रदर्शन में ज़ायोनी प्रदर्शनकारियों ने ज़ायोनी शासन और ग़ज़ा पट्टी में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के बीच क़ैदियों के आदान प्रदान के समझौते पर हस्ताक्षर की मांग की।
इससे पहले, मक़बूज़ा क्षेत्रों में कई बार ज़ायोनी निवासियों द्वारा इसी तरह के विरोध प्रदर्शन देखने में नज़र आए हैं।
ज्ञात रहे कि ग़ज़ा के ख़िलाफ़ युद्ध जारी रहने और ज़ायोनी शासन द्वारा कोई सैन्य उपलब्धि हासिल न होने की वजह से मक़बूज़ा क्षेत्रों में इस्राईली प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू और उनके मंत्रिमंडल की आलोचनाएं तेज़ हो गई हैं।
यमनी प्रतिरोध के संभावित हमलों का ख़ौफ़, ज़ायोनी शासन बौखलाया
फ़िलिस्तीन की समा समाचार एजेंसी के अनुसार, ज़ायोनी शासन के मीडिया ने सोमवार की सुबह एलान किया कि यमन की अल-हुदैदा बंदरगाह पर इस्राईल के हालिया हमलों पर संभावित यमनी प्रतिक्रिया के डर से इस्राईल की वायु और नौसेना को पूरी तरह से अलर्ट पर रखा गया है।
कुछ ज़ायोनी सूत्रों ने बैतुल मुक़द्दस, वेस्ट बैंक और मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन के उत्तरी क्षेत्रों में इस्राईली युद्धक विमानों की उड़ानों और गश्त लगाए जाने की भी सूचना दी।
शनिवार शाम को यमन की पश्चिमी प्रांत अल-हुदैदा की बंदरगाह पर ज़ायोनी शासन के हमलों के बाद यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता यहिया सरी ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि इस अपराध का जवाब ज़ायोनियों के लिए निश्चित रूप से बड़ा और दर्दनाक होगा।
ख़ान यूनुस पर क्रूर इस्राईली हवाई हमलों में 13 शहीद और घायल
फ़िलिस्तीन की वफ़ा समाचार एजेंसी ने सोमवार को एलान किया: ख़ान यूनुस पर ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए 2 हवाई हमलों के दौरान 2 महिलाएं शहीद हो गईं जबकि 11 अन्य नागरिक घायल हो गए। इन हमलों में ख़ान यूनिस के पश्चिम में एक घर और इसी इलाक़े के पूरब में स्थित बनी सहेला क्षेत्र में एक घर को निशाना बनाया गया।
लेबनानी सेना के वॉच टॉवर पर ज़ायोनी शासन का हमला
अल जज़ीरा के मुताबिक, इस्राईली सेना ने रविवार को लेबनानी सेना के एक निगरानी टॉवर को निशाना बनाया जिसके दौरान 2 लेबनानी सैनिक घायल हो गये।
इस रिपोर्ट के अनुसार, एक ज़ायोनी टैंक ने दक्षिणी लेबनान के "एता अल-शाब" शहर के आसपास स्थित लेबनानी सेना के एक वॉच टॉवर को निशाना बनाया।
ग़ज़ा में शहीदों की संख्या बढ़ी
फ़ार्स समाचार एजेंसी के अनुसार, ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने रविवार को कहा कि मलबे के नीचे अभी भी कई फ़िलिस्तीनी शहीद दबे हुए हैं। बयान में कहा गया है कि ग़ज़ा में शहीदों की संख्या 38980 से अधिक हो गई है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 36 घंटों में इस्राईली सेना ने ग़ज़ा पट्टी में 4 और सामूहिक हत्याओं को अंजाम दिया है जिसके परिणामस्वरूप 64 शहीदों और 105 घायलों को ग़ज़ा के अस्पतालों में स्थानांतरित किया गया।
अल-जज़ीरा ने सोमवार की अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया कि रविवार सुबह से दोपहर तक ज़ायोनी शासन के हमलों में 60 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए। अल जज़ीरा ने ग़ज़ा में अल-नुसैरत और अल-बुरैज कैंपों पर ज़ायोनी शासन के तोपख़ाने द्वारा भारी हमलों के जारी रहने की सूचना दी है।
इस्राईल के 3 सैन्य ठिकानों पर हिज़्बुल्लाह का मिसाइल हमला
तस्नीम समाचार एजेंसी के अनुसार, लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह ने अलग-अलग बयान जारी कर एलान किया कि प्रतिरोधकर्ताओं ने रविवार को ज़ायोनी शासन के तीन सैन्य ठिकानों को कामयाबी से निशाना बनाया।
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन ने अपना पहला बयान जारी कर बताया कि ग़ज़ा में दृढ़ फिलिस्तीनी जनता का समर्थन करने, ज़ायोनी शासन के हमलों और अदलून शहर में नागरिकों को निशाना बनाने के जवाब में, इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह ने रविवार को ज़ायोनी बस्ती दफ़्ना को कत्युशा रॉकेटों से निशाना बनाया।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह ने अपने दूसरे और तीसरे बयान में कहा कि उसके जियालों ने मक़बूज़ा कफ़र शबआ के पहाड़ी इलाक़ों में समाक़ा और अल-रमसा के सैन्य ठिकानों पर मिसाइलों से हमला किया।
हिज़्बुल्लाह आंदोलन के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने आशूर के दिन ज़ायोनियों को खुलेआम धमकी देते हुए बल दिया था कि अगर इस्राईली सेना दक्षिणी लेबनान में घुसपैठ का इरादा रखती है तो उसके पास कोई टैंक ही नहीं बचेगा।
रविवार को हिब्रू भाषा के अख़बार येदीयेत अहारोनोत ने एक्स सोशल नेटवर्क पर अपने पेज पर ज़ायोनी शासन के पूर्वयुद्ध मंत्री एविग्डोर लिबरमैन के हवाले से कहा कि इस्राईल की सैन्य संरचना अभी भी विफलता की स्थिति में फंसी हुई है जबकि ख़ुफ़िया विफलताएं भी साथ ही जारी हैं।
14 मोहर्रम को 72 ताबूतों का निकाला गया जूलूस
कर्बला के शहीदों की याद में 14 मोहर्रम को उतरौला के ग्राम अमया देवरिया में हज़रत अब्बास से गमगीन माहौल में 72 ताबूतों का जुलूस निकाला गया।
उतरौला,कर्बला के शहीदों की याद में 14 मोहर्रम को उतरौला के ग्राम अमया देवरिया में हज़रत अब्बास से गमगीन माहौल में 72 ताबूतों का जुलूस निकाला गया।
जुलूस में बड़ी संख्या में अजादार शामिल हुए जुलूस से पूर्व दरगाह हज़रत अब्बास पर अंजुमन ए हुसैनिया के बैनर तले एक मजलिस हुई।
मजलिस को मौलाना ज़ायर अब्बास ने खिताब किया मजलिस का आगाज़ तिलावते कलामे पाक से किया गया अली अम्बर रिज़वी, साजिब रिज़वी, आलम मेहंदी, मीसम उतरौलवी, सदाकत उतरौलवी, मोनिस रिज़वी, कामिल हाशमी ने अपना कलाम पेश किया।
मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना ज़ायर अब्बास ने कहा कि अल्लाह के नज़दीक मेयारे इज़्ज़त तालीम है, जिहाद है, ईमान है, और खौफे परवरदिगार है।
खौफे परवर दिगार सबसे ज़्यादा कर्बला वालों में पाया जाता था। अंत में मौलाना ने कर्बला के 72 शहीदों पर आई मुसीबतों का ज़िक्र किया तो सोगवारों की आंखें नम हो गईं इस दौरान हजरत इमाम हुसैन की चार साल की बेटी सकीना की कैद खाने में शहादत का ज़िक्र भी किया जिसको सुनकर लोग रोने लगे।
मजलिस के बाद कर्बला के शहीदों की याद में 72 ताबूत शबीहे व ज़ुलजना की ज़ियारत कराई गई। जिसमें इमाम हुसैन उनके 18 बरस के बेटे जनाबे अली अकबर, 11 बरस के भतीजे हजरत कासिम नौ और 11 बरस के भांजे औन व मोहम्मद के ताबूतों के साथ ही इमाम के छह माह के शीरख्वार अली असगर का झूला भी मौजूद था। जिसका तार्रुफ मौलाना जमाल हैदर हल्लौरी ने कराया।
हरम ए हज़रत मासूमा स.ल.में आयोजित मजलिस में 22हज़ार महिलाओ ने शिरकत की
हरम ए हज़रत मासूमा स.ल.में पहली मोहर्रम से 12 मोहरम तक आयोजित होने वाली औरतों की मजलिस में 22000 औरतों ने शिरकत की इस दौरान 17000 से भी ज़्यादा औरतों में नज़रे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के उनवान से खाना बाटा गया।
हरम ए हज़रत मासूमा स.ल.में पहली मोहर्रम से 12 मोहरम तक आयोजित होने वाली औरतों की मजलिस में 22हज़ार औरतों ने शिरकत की।
हरम ए हज़रत मासूमा स.ल. में इन सभाओं का आयोजन हरम के सांस्कृतिक कार्यालय द्वारा किया गया था, जिसे ईरान के प्रसिद्ध खतीब हज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हबीबुल्लाह फरहज़ाद ने संबोधित किया था और मुजतबा ने नौहा पडा और यह कार्यक्रम इमाम खैमानी हाल में आयोजित किया गया।
मजलिस के अंत में 17000 से भी ज़्यादा औरतों में नज़रे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के उनवान से खाना बाटा गया।
रूस और अमेरिका के बीच टकराव का मैदान बनेगा जर्मनी
नाटो के हालिया शिखर सम्मेलन में अमेरिका ने एलान किया था कि वह जर्मनी में लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियार तैनात करना चाहता है। अमेरिका की इस घोषणा का कई जर्मन पार्टियों और नेताओं ने विरोध किया लेकिन जर्मन सरकार ने इसका स्वागत किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि देश में अमेरिकी हथियारों की तैनाती का मतलब, वाशिंगटन के सामने बर्लिन का आत्मसमर्पण करना है।
जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बायरबॉक का कहना है कि पुतिन के राष्ट्रपतिकाल के दौरान, रूस ने अपने हथियारों का ज़ख़ीरा बढ़ाया है, इसलिए वह जर्मनी में लम्बी दूरी तक मार करने वाले मिसाइलों की तैनाती का समर्थन करती हैं।
हालांकि, संसद में जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख रॉल्फ़ मोत्सेनिश ने अमेरिका के साथ इस तरह के किसी भी समझौते को चिंताजनक बताते हुए चेतावनी दी है कि अमेरिकी हथियारों को तैनात करने के ख़तरों को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
इस बीच, रूस के उप विदेश मंत्री सर्गेई रयाबकोव ने अमेरिका द्वारा जर्मनी में 2026 तक लंबी दूरी के मिसाइलों की तैनाती की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि मास्को इसके जवाब में परमाणु मिसाइलों को तैनात कर सकता है।
अंग्रेज़ी अख़बार फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने अमेरिका में आगामी राष्ट्रपति चुनाव और डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा चुने जाने की संभावना का ज़िक्र करते हुए कहा की बर्लिन के नेताओं के लिए ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल डरावना होगा। बर्लिन में नीति निर्माताओं की चिंताओं में से एक यह भी है कि फ्रांस की तरह अमेरिका में राजनीतिक रुझान, जर्मनी में अराजक राजनीतिक माहौल को बढ़ावा देगा।
मोमिन बाकी रहना मोमिन होने से अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक है
हरम मुताहर हज़रत मासूमा (स) के खतीब ने कहा: सांसारिक कष्ट और परीक्षण मानव धर्मपरायणता के सबसे महत्वपूर्ण मानदंड हैं।
हरम मुताहर में अपने संबोधन के दौरान, हज़रत मासूमा (स) के खतीब हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमिन सैयद हामिद मीर बाकेरी ने अच्छे स्वास्थ्य में दुनिया छोड़ने के महत्व का जिक्र करते हुए कहा: "ऐहदे नस्सेरातल मुस्तकीम" का अर्थ है अच्छे भाग्य के लिए सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करना क्योंकि मोमिन बाकी रहना मोमिन होने से अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक है।
उन्होंने कहा: जो लोग धर्म और धार्मिक सिद्धांतों से बंधे नहीं हैं वे भी इस दुनिया से खुशी और खुशी के साथ अपना जीवन समाप्त करना चाहते हैं।
हुज्जुतल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मीर बाक़ेरी ने कहा: दुनिया का अच्छा अंत और अच्छा अंत सभी संतों और दिव्य पैगंबरों की सबसे महत्वपूर्ण इच्छाओं में से एक थी।
उन्होंने कहा: मोमिन बाकी रहना मोमिन होने से अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक है, क्योंकि बहुत से लोगों ने शहादतें पढ़ीं, प्रार्थना की और उपवास किया, लेकिन रास्ते में वे धर्म से अलग हो गए और मोमिन नहीं रहे।
हज़रत मासूमा के खतीब ने इमाम हुसैन की एक रिवायत का जिक्र करते हुए कहा: हज़रत सैय्यद अल-शाहदा अपने सभी उच्च रैंकों के बावजूद, भविष्य के लिए प्रार्थना करते हैं।
मुस्लिम जगत के दो लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध विद्वानों की ऐतिहासिक मुलाकात
डॉ. ताहिर-उल-कादरी ने अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान हज्जत-उल-इस्लाम और मुसलमानों के मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी से मुलाकात की और मुस्लिम उम्माह की समस्याओं, उनके समाधानों और उम्माह की एकता पर चर्चा की।
मुहर्रम के मौके पर मिन्हाज-उल-कुरान के संस्थापक और संरक्षक डॉ. ताहिर-उल-कादरी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर हैं मुहर्रम के महीने के सिलसिले में शहर का दौरा करने वाले हिज्जत-उल-इस्लाम और मुसलमानों के उपदेशक अबुल कासिम रिज़वी ने कल अहल-ए-सुन्नत विद्वानों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ डॉ. ताहिर-उल-कादरी से मुलाकात की उन्हें हल करने के प्रयासों और उम्माह की एकता पर जोर दिया गया।
ऑस्ट्रेलिया में मिन्हाज-उल-कुरान इंस्टीट्यूशन के अध्यक्ष श्री मोहसिन साहब और ऑस्ट्रेलिया में मिन्हाज-उल-कुरान इंस्टीट्यूशन के प्रतिनिधि धार्मिक विद्वान मौलाना रमजान कादरी ने मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी द्वारा प्रदान की गई मूल्यवान सेवाओं का उल्लेख किया। मुस्लिम उम्माह और धर्मों का उत्सव।
डॉ. ताहिर-उल-कादरी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा: मैं मौलाना से मिलने के लिए उत्सुक था, आज की मुलाकात मेरे लिए यादगार रहेगी
डॉ. ताहिर-उल-कादरी ने कायनात के आकाओं (अ.स.) के गुणों और इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान के विषय पर बात की, जिस पर मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी ने कहा: तौहीद और रसूल के बाद, कुरान और काबा, इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ.स.) की संरक्षकता और इमाम हुसैन (उन पर शांति) का बलिदान उम्माह के लिए एकता का बिंदु है। वकार अनबलवी के अनुसार:
इस्लाम के मूल में केवल दो चीजें हैं
एक ज़र्ब-ए यदुल्लाही, एक सजदा शबीरी
ज्ञात हो कि डॉ. ताहिर-उल-कादरी को ज़िलहिज्जा के अंत में ऑस्ट्रेलिया आना था, लेकिन वे मुहर्रम की तीसरी तारीख को पहुंचे, इसलिए मिन्हाज-उल-कुर के कार्यक्रमों के बीच कव्वाली का कार्यक्रम आयोजित किया गया शोक के दिनों को देखते हुए सेमिनार का आयोजन रद्द कर दिया गया.
मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी से सिडनी, ब्रिस्बेन, पर्थ के कार्यक्रमों में विशेष अतिथि के रूप में भाग लेने का अनुरोध किया गया, लेकिन मौलाना ने सम्मान के लिए धन्यवाद दिया और बैठकों की व्यस्तता के लिए माफी मांगी। मेलबर्न आज का दिन ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में एक स्मारक है प्रार्थना के साथ समाप्त हुआ
मनुष्य को कमाल तक पहुँचने के लिए ईश्वर का आज्ञाकारी होना चाहिए
ईरान के दक्षिण खुरासान प्रांत में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने कहा: कमाल तक पहुंचने के लिए मनुष्य को ईश्वर का आज्ञाकारी होना चाहिए। सारी कठिनाइयाँ तब आती हैं जब कोई व्यक्ति फिरौनवाद में फंस जाता है और दुनिया के सभी अपराध ईश्वर की दूरी के कारण होते हैं।
बिरजंद के प्रतिनिधि की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण खुरासान प्रांत में वली फकीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अली रज़ा इबादी ने कहा: मनुष्य को देखना चाहिए कि उसके दुनिया में आने का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है।
उन्होंने आगे कहा: यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम अपनी रचना के उद्देश्य को पहचानें। कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति कई वर्षों तक जीवित रहता है लेकिन उसे अपना लक्ष्य और उद्देश्य समझ नहीं आता।
दक्षिण खुरासान प्रांत मे वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने कहा: अगर हम ज्ञान की वास्तविकता को देखें, तो यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम कहां से आए हैं, कहां जा रहे हैं और इंसान के भीतर समस्याओं की उत्पत्ति क्या है।
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन सैयद अली रजा इबादी ने कहा: कमाल तक पहुंचने के लिए मनुष्य को ईश्वर का आज्ञाकारी होना चाहिए। सारी कठिनाइयाँ तब उत्पन्न होती हैं जब मनुष्य फिरौनवाद से बंध जाता है और दुनिया के सभी अपराध ईश्वर की दूरी के कारण होते हैं।
दुनिया के सामने हाकीकी इस्लाम को पेश किया जाए
इंकलाबे इस्लामी का बयान किया हुआ इस्लाम व कुरआन और अहलेबैत अ.स.की हाकीकी शिक्षाओं के अनुसार एक सच्चा और तार्किक इस्लाम है और किसी भी अतिशयोक्ति और अतिवाद से मुक्त हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार,हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने आज मंगलवार, 23 जुलाई को रूसी विचारकों के एक समूह के साथ एक बैठक के दौरान कहा, इस्लामी गणतंत्र ईरान और रूस के बीच राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों से दोनों देशों के बीच संबंध बहुत अच्छा हुआ हैं।
लेकिन हमें मौजूदा स्थिति से संतुष्ट नहीं होना चाहिए हमें इसे बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि रूस के साथ हमारे संबंध न केवल इन दोनों देशों के लिए बल्कि क्षेत्र के सभी लोगों के लिए फायदेमंद हैं।
हौज़ा ए इल्मिया के सुप्रीम काउंसिल के सदस्य ने कहा;इंकलाबे इस्लामी का बयान किया हुआ इस्लाम व कुरआन और अहलेबैत अ.स.की हाकीकी शिक्षाओं के अनुसार एक सच्चा और तार्किक इस्लाम है और किसी भी अतिशयोक्ति और अतिवाद से मुक्त हैं।
इस बैठक के दौरान अपने दूसरे बयान में ईरान के हौज़ा ए इलमिया के प्रमुख ने ईरान की इस्लामी क्रांति के परिप्रेक्ष्य से इस्लाम के अध्ययन पर जोर दिया और कहा इस्लाम के सच्चे धर्म का वर्णन हौज़ा ए इलमिया और इमाम खुमैनी र.ह.ने किया था यही सही और संतुलित इस्लाम है जिसे दुनिया के सामने पेश किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा इस्लाम के बारे में दो तरह के अध्ययन लोग करते हैं
पहला: इस्लाम की गलत व्याख्या (तफसीक) जिसे एक लिबरल इस्लाम कहा जाता है हम इस इस्लाम को अमेरिकी इस्लाम कहते हैं।
उन्होंने आगे कहा दूसरा वह इस्लाम है जो बुनियाद परस्ती पर निर्भर है, यह भी इस्लाम की गलत व्याख्या हैं इसका एक उदाहरण खुद आईएसआईएस है, जिसके खिलाफ ईरान और रूस सीरिया में लड़ रहे हैं। ऐसी सोच कभी कभी विभिन्न क्षेत्रों में गुमराह आंदोलनों को जन्म देती हैं।
गाज़ा में तत्काल युद्धविराम की ज़रूरत है। संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र के उप महासचिव और चीन के प्रतिनिधि ने सोमवार शाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में अलग अलग भाषणों के दौरान गाज़ा युद्ध को तत्काल समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार,संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने गाज़ा में युद्ध और लाल सागर में यमनी सेना के संचालन सहित पश्चिम एशिया क्षेत्र की स्थिति की समीक्षा के लिए सोमवार शाम को एक तत्काल बैठक की हैं।
संयुक्त राष्ट्र के उप महासचिव रोज़मेरी डी कारलो ने बैठक की शुरुआत में कहा मध्य पूर्व में मौजूदा स्थिति से क्षेत्रीय में तनाव बढ़ने की संभावना है।
अलजज़ीरा ने डिकार्लो के हवाले से बताया हमें गाज़ा में तत्काल युद्धविराम और बंधकों की बिना शर्त रिहाई की ज़रूरत है।
संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधि ने बैठक के दौरान इस बात पर भी जोर दिया हमें गाजा पट्टी के लोगों की सामूहिक सजा को रोकना चाहिए और जल्द से जल्द उन तक पहुंचने में मदद करनी चाहिए।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा मध्य पूर्व में स्थिति खराब हो रही है और हम इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हालात जल्द से जल्द ठीक होने चाहिए।
दूसरी ओर अलहुदैदा समझौते का समर्थन करने वाले संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख ने भी कहा मैं सभी पक्षों से नागरिकों को निशाना बनाने वाले हमलों से बचने का आह्वान करता हूं।
कर्बला की घटना के घटित होने में बौद्धिक एवं वैचारिक विचलन की भूमिका
आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने अपने एक लेख में "कर्बला घटना की घटना में बौद्धिक और वैचारिक विचलन की भूमिका" पर शोध किया और कहा कि वास्तव में बानू उमय्यद इस्लाम में विश्वास नहीं करते थे और उनका विश्वास सिर्फ एक दिखावा था जिसे लोग स्वीकार करते हैं ।
अयातुल्ला मकारेम शिराज़ी ने अपने एक लेख में "कर्बला की घटना में बौद्धिक और वैचारिक विचलन की भूमिका" पर शोध किया और कहा कि वास्तव में बनी उमय्या इस्लाम और उनके अकीदा में विश्वास नहीं करते थे। यह लोगों को अपना शासन स्वीकार कराने का एक दिखावा मात्र था।
यहां सवाल उठता है कि इमाम हुसैन (अ) के समय के लोगों के बौद्धिक और वैचारिक विचलन क्या थे जो कर्बला की घटना का कारण बने?
पैगम्बर (स) की मृत्यु के बाद विचलनों का सिलसिला शुरू हुआ। ये विचलन ऐसी चीजों में थे जिनका राजनेता आसानी से फायदा उठा सकते थे और उनका उपयोग लोगों को समझाने और उनके उत्पीड़न को सही ठहराने के लिए कर सकते थे , इन विचलनों को पैदा करने में बानी उमय्या की बहुत बड़ी भूमिका रही है।
"इमाम के प्रति आज्ञाकारिता", "एकता की आवश्यकता", "निष्ठा की पवित्रता" ये तीन शब्द खलीफाओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले सबसे आम राजनीतिक शब्द थे, यह कहा जा सकता है कि ये तीन अवधारणाएं खलीफा का आधार हैं इसके अस्तित्व के गारंटर थे, ये तीन शर्तें ऐसी थीं जिनमें सभी इस्लामी-राजनीतिक अवधारणाएं शामिल थीं, तर्क के दृष्टिकोण से, ये शर्तें समाज की स्थिरता और सामाजिक सुरक्षा के लिए आवश्यक थीं, इमाम की आज्ञाकारिता का अर्थ है शासन प्रणाली का पालन करना और खलीफा के सामने अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि शासक का पालन किस हद तक किया जाना चाहिए? क्या केवल धर्मी इमाम की आज्ञा मानना आवश्यक है या हमें क्रूर और अत्याचारी शासक की भी आज्ञा माननी चाहिए?
उमय्यद ख़लीफ़ाओं और बाद में बानी अब्बास ख़लीफ़ाओं ने इन तीन शर्तों का दुरुपयोग किया और लोगों को अपना शासन स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। सुन्नत ने इसे अत्याचार के खिलाफ विद्रोह के रूप में नहीं देखा, बल्कि इसे केवल शासक के खिलाफ एक अवैध पलायन और विद्रोह के रूप में देखा।
इस्लामी समाज में एक और धार्मिक विचलन फैलाया गया जिसे "अक़ीदा जब्र" कहा जाता था, इस विश्वास को बढ़ावा देना और इसे अपनी नीतियों के लिए उपयोग करना, और जब मुआविया ने लोगों से यज़ीद के प्रति निष्ठा रखने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा: "यज़ीद की समस्या एक ईश्वरीय आदेश है, ईश्वर चाहता है कि यज़ीद ख़लीफ़ा बने।" जब उमर बिन साद से पूछा गया कि आपने 'रे' का शासन पाने के लिए इमाम हुसैन (अ) को क्यों मार डाला? कहा: "ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ईश्वर ने ऐसा ठहराया था।" काब अल-अहबर जब तक जीवित थे, कहते थे कि बनी हाशिम को कभी सरकार नहीं मिलेगी!