
رضوی
इस्लामी गणराज्य में जनादेश के अनुमोदन का अर्थ और अहमियत
इस्लामी गणराज्य ईरान के संविधान की धारा 110 ने निर्वाचित राष्ट्रपति के आदेशपत्र पर दस्तख़त को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के फ़रीज़ों और अख़्तियार के दायरे में रखा है। ‘तन्फ़ीज़ʼ अर्थात जनादेश का अनुमोदन, फ़िक़्ह की एक पुरानी व मशहूर शब्दावली है और इस्लामी इंक़ेलाब के बाद यह लफ़्ज़ मुल्क के क़ानूनी पाठ्यक्रम में शामिल हो गया है।
इस्लामी गणराज्य ईरान के संविधान की धारा 110 ने निर्वाचित राष्ट्रपति के आदेशपत्र पर दस्तख़त को इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के फ़रीज़ों और अख़्तियार के दायरे में रखा है। ‘तन्फ़ीज़ʼ अर्थात जनादेश का अनुमोदन, फ़िक़्ह की एक पुरानी व मशहूर शब्दावली है और इस्लामी इंक़ेलाब के बाद यह लफ़्ज़ मुल्क के क़ानूनी पाठ्यक्रम में शामिल हो गया है।
सबसे पहले ‘तन्फ़ीज़ʼ के क़ानूनी अर्थ और प्रवृत्ति की ओर इशारा किया जाएगा और फिर इस्लामी गणराज्य ईरान के संविधान के तहत इस सिलसिले में पाए जाने वाले सबसे अहम सवालों की समीक्षा की जाएगी। जैसे यह सवाल कि ‘तन्फ़ीज़ʼ की प्रक्रिया का एतबार कहाँ तक और किस तरह का है? क्या ‘तन्फ़ीज़ʼ सिर्फ़ एक औपचारिकता है या यह एक क़ानूनी प्रक्रिया है? ‘तन्फ़ीज़ʼ के क़ानूनी लेहाज़ से क्या असर हैं?
सबसे पहले ज़रूरी है कि उक्त सवालों में से आख़िरी सवाल का जवाब दिया जाए और वह यह है कि हर क़ानूनी सिस्टम अपने सामाजिक मूल्यों, परंपराओं और अनुभवों की बुनियाद पर कुछ उसूल व नियम बनाता है जो मुमकिन है कि दूसरे क़ानूनी सिस्टमों से अलग हों और ऐसा नहीं है कि सारे क़ानूनी सिस्टम समान और एक दूसरे से मिलते जुलते हों,
जिस तरह से कि कॉमन लॉ का क़ानूनी सिस्टम, रोमन और जर्मन क़ानूनी सिस्टम से अलग है और मुमकिन है कि हर क़ानूनी सिस्टम के सौ से ज़्यादा क़ानूनी सिस्टम हों। यहाँ तक कि इनमें से हर सिस्टम एक दूसरे से अलग है और किसी मुल्क में, जिसका एक क़ानूनी सिस्टम है।
मुमकिन है कि पचास क़ानूनी सिस्टम हों, इसलिए इस सिलसिले में हर मुल्क की कसौटी और कार्यशैली अलग हो। जो चीज़ क़ानूनी सिस्टमों के एक दूसरे से अलग होने का सबब बनती है वो उनकी बुनियादें हैं। बुनियाद वही चीज़ है जो क़ानूनी उसूल और नियमों के पालन को अनिवार्य बनाती है।
ईरान के इस्लामी गणराज्य सिस्टम में ‘तन्फ़ीज़ʼ के बारे में भी, इस बात के मद्देनज़र कि इस्लामी गणराज्य का क़ानूनी सिस्टम, दूसरे क़ानूनी सिस्टमों से अलग है और वह प्रायः इस्लामी बुनियादों पर और ख़ास तौर पर फ़िक़्ह की बुनियाद पर आधारित एक सिस्टम है और चूंकि राष्ट्रपति, कार्यपालिका के प्रमुख के ओहदे पर ऐसे फ़ैसले करता है और ऐसे काम करता जो ‘विलायत’ के कार्यक्षेत्र मे आते हैं,
इसलिए कार्यपालिका प्रमुख के पद से राष्ट्रपति के फ़ैसले या ऐक्शन, विलायत के ओहदे के सहायक के तौर पर होते हैं और उन्हें पहले से वलीए फ़क़ीह से हासिल इजाज़त या मुसलसल इजाज़त की ज़रूरत होती है और उसके बिना उनका कोई एतबार व हैसियत नहीं होगी। ‘तन्फ़ीज़ʼ के प्रोग्राम में जो कुछ होता है वह राष्ट्रपति को क़ानूनी तौर पर नियुक्ति के अलावा, जिसकी नज़ीर दूसरे मुल्कों में भी पायी जाती है, इस ओहदे को क़ानूनी हैसियत देना होता है।
‘तन्फ़ीज़ʼ का मक़सद
‘तन्फ़ीज़ʼ एक क़ानून और शरीअत के लेहाज़ से एक अहम अर्थ है जिसका मानी "अमान्य क़रार दिए जाने के क़ाबिल किसी क़ानूनी प्रक्रिया को मान्यता देना" है। दूसरे शब्दों में ‘तन्फ़ीज़ʼ या जनादेश को अनुमोदित करना ऐसी प्रक्रिया है जिसके नतीजे में एक शख़्स एक क़ानूनी प्रक्रिया को अमान्य नहीं करता।
अब सवाल यह है कि ‘तन्फ़ीज़ʼ का मक़सद क्या है और अवाम की ओर से राष्ट्रपति को चुने जाने के बाद इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की ओर से इसके अनुमोदन व पुष्टि की क्या ज़रूरत है? इस सवाल के जवाब में कहना चाहिए कि विलायते फ़क़ीह के नज़रिए के तहत, मासूम इमाम के ग़ैबत में होने के दौर में, आम लोगों की विलायत व नेतृत्व ऐसे फ़क़ीह (वरिष्ठ धर्मगुरू) के ज़िम्मे है जो न्याय का पालन करता हो और उसके अलावा किसी भी दूसरे की विलायत को सरकशी समझा जाता है।
इस नज़रिए की बुनियाद पर समाज के मामलों की लगाम उसके हाथ में है और सरकारी अधिकारियों को उसकी इजाज़त से ही क़ानूनी हैसियत हासिल होती है। दूसरी ओर समाज के संचालन के मामले भी, विलायते फ़क़ीह के कार्यक्षेत्र में आते हैं और इसी वजह से कार्यपालिका के प्रमुख को वलीए फ़क़ीह की ओर से नियुक्त किया जाना चाहिए या उसे वलीए फ़क़ीह की इजाज़त हासिल होनी चाहिए वरना उसके पास क़ानूनी हैसियत नहीं होगी।
इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने वलीए फ़क़ीह की ओर से राष्ट्रपति की नियुक्ति पर बारंबार बल दिया है। उन्होंने 4 अक्तूबर सन 1979 को विशेषज्ञ असेंबली के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा थाः "अगर वलीए फ़क़ीह का अनुमोदन न हो फिर वह सरकश है। अगर ये काम अल्लाह के हुक्म से न हों, राष्ट्रपति, फ़क़ीह की ओर से नियुक्त न हो तो वह ग़ैर क़ानूनी है।
जब वह ग़ैर क़ानूनी हो गया तो वह सरकश है, उसका आज्ञापालन सरकश का आज्ञापालन है।" उन्होंने अपने ख़ेताब में विलायते फ़क़ीह की ख़ास अहमियत की ओर इशारा करते हुए कहा थाः "राष्ट्रपति के आदेशपत्र पर दस्तख़त वलीए फ़क़ीह के अधिकारों में से है और बिल्कुल साफ़ है कि अगर फ़र्ज़ करें कि यह बात साबित हो जाए कि अगर कोई शख़्स निगरानी करने वाले विभाग को धोखा देकर आख़िरी राउंड में पहुंचा हो वरिष्ठ नेतृत्व का ओहदा रखने वाला शख़्स चाहे तो उसके आदेशपत्र को अनुमोदित न करे, लेकिन इस बात की संभावना बहुत कम है बल्कि क़रीब क़रीब यह नामुमकिन है।"
राष्ट्रपति के आदेशपत्र के इंडोर्समेंट की दलीलें
1 संविधान की विशेषज्ञ असेंबली की तफ़सीली बहसः इस्लामी गणराज्य ईरान के संविधान की अंतिम समीक्षा करने वाली परिषद के कुछ सदस्यों की बातों से साफ़ ज़ाहिर होता है कि वह वरिष्ठ नेता के दस्तख़त को क़ानूनी हैसियत देने वाला मानते थे। संविधान की धारा 110 के मसौदे की समीक्षा के ज़माने में संसद के सदस्य जनाब फ़ातेही कहते हैं कि मेरे लिए यह बात स्पष्ट नहीं थी कि राष्ट्रपति के आदेशपत्र पर दस्तख़त सिर्फ़ एक औपचारिकता है या अगर उस पर वरिष्ठ नेता के दस्तख़त न हुए तो क्या होगा?
उपसंसद सभापति आयतुल्लाह शहीद बहिश्ती उनके जवाब में कहते हैं: " नहीं जनाब! यह ‘तन्फ़ीज़ʼ अर्थात जनादेश का अनुमोदन है। (राष्ट्रपति को मिले जनादेश की पुष्टि है) उससे पहले आयतुल्लाह मुंतज़ेरी ने भी सिस्टम के इस्लामी और गणराज्य होने के दरमियान पाए जाने वाले रिश्ते के बारे में कहा थाः "अगर एक राष्ट्रपति को पूरी क़ौम वोट दे दे लेकिन फ़क़ीह और मुज्तहिद उसके राष्ट्रपति होने को अनुमोदित न करे तो मेरे लिए उसके अनुमोदन की कोई गैरंटी नहीं है और उसकी हुकूमत ज़ुल्म करने वाली सरकारों में से होगी।"
2 राष्ट्रपति चुनाव का क़ानूनः राष्ट्रपति चुनाव के क़ानून में जो 26 जून 1985 को मंज़ूर हुआ, साफ़ शब्दों में राष्ट्रपति पद के आदेशपत्र पर दस्तख़त और अनुमोदन की बात कही गयी है। इस क़ानून के पहले अनुच्छेद में कहा गया हैः "इस्लामी गणराज्य ईरान के राष्ट्रपति पद की मुद्दत 4 साल है और वरिष्ठ नेतृत्व की ओर से उसके आदेशपत्र के अनुमोदन की तारीख़ से उसका आग़ाज़ होगा।" इस क़ानून की कई बार समीक्षा की गयी और इसमें सुधार भी किया गया है लेकिन सभी सुधार में उक्त बात बिना किसी बदलाव के बाक़ी रही है, इसलिए आम क़ानून निर्माता की नज़र से भी राष्ट्रपति के आदेशपत्र पर दस्तख़त ज़रूरी हैं।
क्या अनुमोदन सिर्फ़ एक औपचारिकता है?
वरिष्ठ नेता की ओर से राष्ट्रपति के आदेशपत्र के अनुमोदन के क़ानून का मतलब उसका एक औपचारिकता होना और दूसरे प्रोग्रामों में एक और प्रोग्राम का इज़ाफ़ा करना नहीं है।
इस क़ानून का मतलब यह है कि इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के दस्तख़त के बिना, राष्ट्रपति को क़ानूनी हैसियत हासिल नहीं होती और वह शरीअत के लेहाज़ से इस मैदान में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। हमारे धार्मिक अक़ीदे और फ़िक़्ह के बुनियादी नज़रिए भी और हमारा संविधान भी, जिसके लिए हम यही मानते हैं कि उसकी कोई भी धारा और अनुच्छेद मात्र औपचारिकता के लिए नहीं लिखी गयी है, इस बात की पुष्टि करता है। दस्तख़त का औपचारिकता होना एक सतही और ग़ैर इल्मी सोच है जिसे किसी भी स्थिति में संविधान में मद्देनज़र नहीं रखा गया है। इसलिए ये दस्तख़त, राष्ट्रपति के बुनियादी कामों के चरणों में से एक है।
अगर हम क़ानूनी लेहाज़ से भी बात करना चाहें तो चुनाव में अवाम की ओर से चुने गए राष्ट्रपति को, वरिष्ठ नेता की ओर से आदेशपत्र पर अनुमोदन और उसके बाद शपथ ग्रहण के प्रोग्राम से पहले राष्ट्रपति नहीं कह सकते क्योंकि राष्ट्रपति के काम अवाम के अधिकार और उसके फ़रीज़ों में हस्तक्षेप हैं और इसके लिए वलीए फ़क़ीह की इजाज़त की ज़रूरत है और उस इजाज़त पर संविधान में, राष्ट्रपति के आदेशपत्र पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के दस्तख़त के तहत ताकीद की गयी है।
‘तन्फ़ीज़ʼ अर्थात जनादेश के अनुमोदन की मुद्दत और उसका जारी रहना
जैसा कि बयान किया गया, राष्ट्रपति को सिर्फ़ अपनी ज़िम्मेदारी शुरू करने या राष्ट्रपति के ओहदे पर काम शुरू करने के चरण में ही अपने फ़ैसलों और कामों के लिए क़ानूनी इजाज़त की ज़रूरत नहीं है बल्कि उसे अपनी ज़िम्मेदारी जारी रखने के लिए भी इस क़ानूनी इजाज़त की ज़रूरत है।
यानी ऐसा नहीं है कि अगर कोई बहुमत हासिल कर ले और वरिष्ठ नेता उसके आदेशपत्र पर दस्तख़त भी कर दें तो वह अगले चार साल तक राष्ट्रपति बना ही रहेगा, जी नहीं, इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के दस्तख़त और उनकी ओर से पुष्टि राष्ट्रपति को निरंतर हासिल होनी चाहिए और जब भी इस्लामी इंक़ेलाब के नेता अपनी पुष्टि को वापस ले लें यानी अनुमोदन को वापस ले लें तो राष्ट्रपति अपना क़ानूनी ओहदा और फ़िक़्ह के लेहाज़ से दीनी हैसियत खो देगा।
इसी वजह से इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने ज़माने के राष्ट्रपति के लिए जो आदेशपत्र जारी किए उनमें जनादेश के अनुमोदन के बाद साफ़ लफ़्ज़ों में कहा कि मेरी ओर से अनुमोदन सशर्त है और इस बात पर निर्भर है कि आप शरीअत के उसूलों की पाबंदी करें, सिस्टम के क़ानूनी उसूलों की पाबंदी करें और अगर एक जुमले में कहा जाए तो एक राष्ट्रपति होने की हालत को हाथ से जाने न दें।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने भी अपने नेतृत्व के दौरान राष्ट्रपति के जिस आदेशपत्र पर भी दस्तख़त किए उसमें इसी अंदाज़ पर क़ायम रहे हैं और उन्होंने अनुमोदन के लफ़्ज़ के साथ इस शर्त को भी लगाया है कि मेरी ओर से पुष्टि और अनुमोदन तब तक क़ायम है जब तक आप क़ानून और शरीअत के उसूलों की पाबंदी करेंगे।
इसलिए शरीअत की इजाज़त और राष्ट्रपति को नियुक्त किया जाना, सशर्त है और उसे स्थायी हैसियत हासिल नहीं है, इस मानी में कि यह आदेशपत्र और मुल्क के संचालन के मामलों में कंट्रोल की क़ानूनी इजाज़त सशर्त व सीमित है।
ख़ैरुल्लाह परवीन-तेहरान यूनिवर्सिटी की लॉ फ़ैकल्टी के प्रोफ़ेसर
ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति आज से संभालेंगे बागडोर
तेहरान के इमाम बारगाह इमाम खुमैनी में नवनिर्वाचित ईरानी राष्ट्रपति डॉ. मसूद पीजिशकयान का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया जिसमें आयतुल्लाह ख़ामेनई से खास तौर पर हिस्सा लिया।
इस समारोह में देश की शीर्ष राजनीतिक और रक्षा हस्तियों के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी मेहमानों ने भाग लिया। समारोह के दौरान सुप्रीम लीडर का फरमान पढ़ा गया, जिसमें उन्होंने डॉ. मसूद को ईरान के राष्ट्रपति के रूप में बागडोर संभालने का औपचारिक आदेश जारी किया।
अपने बयान मेसुप्रीम लीडर ने कहा कि शहीद रईसी की दुखद दुर्घटना में मौत के बाद नये राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की गयी, जिसका परिणाम ईश्वर की इच्छा से भविष्य में देखने को मिलेगा।
उन्होंने कहा कि कार्यवाहक राष्ट्रपति की देखरेख में सरकार ने अच्छे तरीके से शासन किया और अपने कार्यकाल के अंत तक सभी मामलों को अच्छे से निभाया।
उन्होंने ईरान के दिवंगत राष्ट्रपति और विदेश मंत्री की प्रशंसा करते हुए नई सरकार को दूसरों से प्रभावित होने के बजाय वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रभावी भूमिका निभाने की सलाह दी।
मजलिस के बाद बड़ी अकीदत के साथ ताबूत व आलम निकला गया
अंजुमन जाफरी के नेतृत्व में 19 मोहर्रम को जुलूस -ए- आमारी अलम ताबूत व ज़ुल्जन्हा निकाल कर कर्बला के शहीदों को पुरसा दिया गया।
जौनपुर नगर के इमामबाड़ा कल्लू मरहूम में शुक्रवार की देर रात्रि अंजुमन जाफरी के नेतृत्व में 19 मोहर्रम का जुलूस -ए- आमारी अलम ताबूत व ज़ुल्जन्हा निकाल कर कर्बला के शहीदों को पुरसा दिया गया।
इससे पूर्व सोज़खानी गौहर अली ज़ैदी व उनके हमनवा ने किया।पेशखानी एहतेशाम व मेहदी शिराज़ी ने किया,मर्सियाखानी व संचालन मेंहदी रज़ा एडवोकेट ने किया।
मजलिस को खेताब करते हुए मौलाना सैय्यद मोहम्मद आबिद रिज़वी फतेहपुर ने कहा कि से दस मोहरम को कर्बला में हजरत इमाम हुसैन वह उनके साथियों की शहादत के बाद पूरे परिवार को यजीदी फौजियों ने कैदी बनाकर कर्बला से ऊँट पर बैठकर कूफ़े की गलियों से होते हुए मक्का मदीना लाया गया था।
इस दौरान उन पर जुल्म इतने ढाए गए थे कि रास्ते में कई लोगों को शहादत हो गई थी ।आज हम सब लोग उन्ही की याद में यह जुलूस निकाल रहे है ।डॉ क़मर अब्बास ने तकरीर के ज़रिए सभी आमारियो का तआरुफ़ कराया व अंजुमन जाफरी ने नौहा व मातम कर नज़राने अकीदत पेश किया।आयोजक सकलैन अहमद खां "बल्लन" अध्यक्ष सैय्यद अब्बास हैदर फ़हद,तहसीन शाहिद सभासद ने सभी का आभार प्रकट किया।
बड़ी अकीदत के साथ मनाया गया इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का दसवां
हज़रत इमाम हुसैन व कर्बला के प्यासे शहीदों का दसवां रविवार की रात अकीदत के साथ मनाया गया। मरसिया-मजलिस बरपा हुई, नौहा-मातम के बीच अलम व ताबूत का जुलूस निकाला गया।
हज़रत इमाम हुसैन व कर्बला के प्यासे शहीदों का दसवां रविवार की रात अकीदत के साथ मनाया गया। मरसिया-मजलिस बरपा हुई, नौहा-मातम के बीच अलम व ताबूत का जुलूस निकाला गया जो आधी रात तक कस्बे में गश्त करता रहा इस बीच हर हुसैनी गमों के सागर में डूबे नज़र आए।
हल्लौर स्थित बड़े इमाम बाड़े में अंजुमन इमामिया मातम के बैनर तले पहले मजलिस बरपा हुई जिसकी मरसिया हैदरे कर्रार व उनके हमनवां ने पढ़ी। इसके बाद मजलिस खिताब करते हुए मौलाना जमाल हैदर ने कर्बला के वाकये पर रोशनी डालते हुए इमाम हुसैन की शहादत बयान की।
इसके बात ताबूत की शबीह निकाली गई जिसका बोसा लेने के लिए अकीदत मंदों का पूरा हुजूम उमड़ पड़ा, फिर नौहा पढ़ते हुए मातमी जुलूस निकला गया। दरगाह हजरत अब्बास, जन्नतुल बकी, सेठ बाबा इमाम बाड़ा, हुसैनिया बाबुल सहित प्रमुख मार्ग होता हुआ जुलूस कस्बे के सभी इमाम बाड़े में गया, रात करीब बारह बजे वक्फ शाह आलम गीर सानी में आकर जुलूस खत्म हुआ। जहां मजलिस की मरसिया हैदरे कर्रार ने पढ़ी व जाकिरी साबिर हल्लौरी ने की।
जुलूस में नफीस सैयद, हसन जमाल, कायनात, मो. हैदर शब्लू, कामयाब हैदर, खुशनूद, संजू, छोटे आदि ने इमाम हुसैन की याद में मखसूस नौहे पढ़े। आखिर में अंजुमन के सदर मेंहदी हैदर व सेक्रेटरी रिजवान अहमद ने सभी लोगों के प्रति शुक्रिया अदा किया। इमाम के दसवें के मौके पर कस्बे में घर-घर में भी मजलिस का आयोजन हुआ।
दिल्ली आईएएस स्टडी सेंटर हादसा, छात्रों का दावा मरने वालों की संख्या 9 से अधिक
मध्य दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर स्थित राव आईएएस स्टडी सेंटर में शनिवार शाम हुए बड़े हादसे में मारे गए छात्रों की मौत के बाद प्रदर्शन हो रहा है। छात्रों ने सरकार, एमसीडी और कोचिंग सेंटरों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
देर रात ही पुलिस, दमकल विभाग और एनडीआरएफ की टीम रेस्क्यू ऑपरेशन में जुट गई। इस घटना को लेकर छात्रों ने एमसीडी, दिल्ली सरकार और कोचिंग सेंटरों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वहीं एक छात्र ने दावा किया है कि बेसमेंट में तीन हीं बल्कि आठ से दस छात्रों की मौत हुई है। फिलहाल, रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म हो चुका है। दिल्ली पुलिस ने आंकड़ों पर जबाव भी दे दिया है। मामले की जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं।
घटना को लेकर एक छात्र ने कहा कि एमसीडी का कहना है कि यह आपदा है, लेकिन मैं कहूंगा कि यह पूरी तरह से लापरवाही है। आधे घंटे की बारिश में घुटनों तक पानी भर जाता है। आपदा कभी-कभी होती है। मेरे मकान मालिक ने कहा कि वह पिछले 10-12 दिनों से पार्षद से कह रहा था कि नाले की सफाई होनी चाहिए।
ज़ायोनी सेना की दरिंदगी चरम पर, खान यूनुस में 170 की मौत
ज़ायोनी सेना ने खान यूनुस में दरिंदगी की सभी सीमाएं लांघते हुए कम से कम 170 फिलिस्तीनी नागरिकों की बर्बरता पूर्वक हत्या कर दी।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार ज़ायोनी सेना ने ग़ज़्ज़ा के खान यूनुस शहर पर हमला किया, इस हमले में 170 फिलिस्तीनी लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए हैं। शनिवार को हमलावर सेना ने शहर के लोगों को खान यूनुस छोड़ने के आदेश दिए थे, जिसके बाद यूएन ने जानकारी दी कि अब तक 1 लाख 80 हजार लोग शहर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।
सिविल डिफेंस एजेंसी के प्रवक्ता महमूद बासल ने बताया, खान यूनुस क्षेत्र में ज़ायोनी सेना का ऑपरेशन शुरू होने के बाद से लगभग 170 लोग शहीद हो गए हैं और सैकड़ों लोग घायल हो गए हैं। साथ ह प्रवक्ता ने बताया कि हजारों लोग ज़ायोनी ऑपरेशन के चलते खान यूनुस शहर को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं।
ज़ायोनी शासन कोई सरकार नहीं यह अपराधियों और आतंकवादियों का एक गैंग है
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने देश के राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान को राष्ट्रपति चुनाव में मिलने वाले जनादेश को अनुमोदित करने और उन्हें राष्ट्रपति पद का आदेशपत्र देने के कार्यक्रम के बाद अपने संबोधन में अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन की क्रूर कार्रवाइयों का उल्लेख किया और उसे अपराधी, हत्यारा और आतंकवादी गैंग क़रार दिया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई ने रविवार की सुबह एक कार्यक्रम के दौरान संविधान के अनुच्छेद 110, की धारा 9 के आधार पर निर्वाचित राष्ट्रपति डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान को राष्ट्रपति चुनाव में मिलने वाले जनादेश को अनुमोदित किया और उन्हें राष्ट्रपति पद का आदेशपत्र दिया।
जनादेश को अनुमोदित करने के बाद आयातुल्लाह ख़ामेनेई ने स्पष्ट किया: ज़ायोनी शासन एक सरकार नहीं है, बल्कि उसने दुनिया के सामने एक आपराधिक गिरोह का सबसे घिनौना चेहरा पेश किया है और मानव अपराधों के इतिहास में एक नया मानक और मापदंड बनाया है।
ग़ज़ा में बड़ी संख्या में शिशुओं, बच्चों, अस्पतालों में मरीजों और महिलाओं की शहादत की ओर इशारा करते हुए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा: उन लोगों पर भारी ज़ायोनी बम गिराए जा रहे हैं जिन्होंने एक भी गोली नहीं चलाई।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ग़ज़ा के विषय को एक वैश्विक मुद्दा क़रार दिया और कहा: फ़िलिस्तीन कभी सिर्फ़ मुस्लिम दुनिया के देशों का मुद्दा था, लेकिन आज यह एक सार्वजनिक और वैश्विक मुद्दा है जो अमेरिकी कांग्रेस, संयुक्त राष्ट्र संघ, ओलंपिक और दूसरे सभी इलाक़ों तक फैला हुआ है।
प्रतिरोध की ताक़त में निरंतर वृद्धि की ओर इशारा करते हुए सुप्रीम लीडर का कहना था: ज़ायोनी, अमेरिका और कुछ विश्वासघाती सरकारों की भरपूर मदद से, प्रतिरोधकर्ताओं को ख़त्म करने में कामयाब नहीं हुए, और हमास को ख़त्म करने का उनका घोषित लक्ष्य है भी नाकाम जबकि हमास, जिहादे इस्लामी और प्रतिरोध, पूरी ताकत से डटा हुआ है।
उन्होंने दो दिन पहले एक ज़ायोनी अपराधी की अपनी बातों पर अड़े रहने पर अमेरिकी कांग्रेस की कार्रवाई को बहुत बड़ा कलंक का टीका क़रार दिया और जोर दिया: पूरी दुनिया को ग़ज़ा की घटनाओं के बारे में गंभीर निर्णय लेना चाहिए और सरकारों, राष्ट्रों और राजनीतिक व बौद्धिक हस्तियों को विभिन्न क्षेत्रों और मैदानों में कुछ करना चाहिए।
सुप्रीम लीडर ने विदेश नीति के विषयों के संबंध में ईरान की नई सरकार को सलाह दी: वैश्विक और विशेष रूप से क्षेत्रीय घटनाओं और राजनीतिक और यहां तक कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जैसे वैज्ञानिक मुद्दों के सामने निष्क्रिय न हों बल्कि सक्रिय और प्रभावी ढंग से इन मुद्दों से निपटें।
सुप्रीम लीडर ने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि दुनिया और क्षेत्र की घटनाओं की अनदेखी करना और उनसे निश्चेत रहना, जाएज़ नहीं है, कहा: हर घटनाओं के बारे में देश की नीति को पूरे स्पष्ट तरीक़े से और संयमित ढंग से बयान किया जाना चाहिए ताकि दुनिया ईरान की स्थिति को बेहतर तरीक़े से जान सके।
उन्होंने ईरान की विदेश नीति की प्राथमिकताओं को बयान करते हुए कई देशों के साथ पड़ोस में स्थित होने को ईरान की एक ख़ासियत क़रार दिया और पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए काम करने और गंभीर प्रयास करने को ज़रूरी बताया।
उन्होंने कहा: विदेश नीति की एक अन्य प्राथमिकता, अफ़्रीक़ी और एशियाई जैसे देशों के साथ संपर्क और संचार है जो ईरान के राजनयिक क्षेत्र को विस्तृत कर सकते हैं।
आयतुल्लाह खामेनेई ने ईरान की विदेश नीति की एक और प्राथमिकता, उन देशों के साथ संबंधों का विस्तार और मज़बूती क़रार दिया है जिन्होंने दबाव की हालत में ईरान का समर्थन किया और राजनयिक और आर्थिक क्षेत्र में तेहरान की मदद की।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस संबंध में कहा: यह बात कि मैंने विदेश नीति की प्राथमिकताओं में यूरोपीय देशों का नाम नहीं लिया, इसका मतलब विरोध और दुश्मनी नहीं है, बल्कि इसकी वजह यह है कि उनके प्रतिबंधों, तेल और मानवाधिकार जैसे फ़र्ज़ी मामलों जैसे मुद्दों पर ईरान के साथ अच्छे रवैये नहीं रहे हैं, अगर उनके यह बुरे बर्ताव न होते, तो उनके साथ संचार और संपर्क हमारी प्राथमिकताओं में होते, बेशक, कुछ ऐसे भी देश हैं जिनका दुश्मनीपूर्ण रवैया और उनका परेशान करना, हम कभी भी नहीं भूल सकते।
इज़रायल के ज़ुल्फ के खिलाफ जॉर्डन में विरोध प्रदर्शन हुआ
जॉर्डन में ग़ाज़ा और फ़िलिस्तीनियों के समर्थन और इज़राईल के ज़ुल्म के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ लोगों ने इस प्रदर्शन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया
फिलिस्तीनी वफ़ा समाचार एजेंसी के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने फिलिस्तीन और हमास आंदोलन के झंडे उठाए और फिलिस्तीन और अलअक्सा तूफान ऑपरेशन के साथ प्रतिरोध और एकजुटता के समर्थन में नारे लगाए।
इज़राइल-हमास युद्ध में संघर्ष विराम के लिए बातचीत में प्रगति हाल के महीनों में शुरू हुई है, और बिडेन और उनके शीर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी एक समझौते पर पहुंचने के प्रयासों में निकटता से शामिल हुए हैं।
हज़रत बुरैर इब्ने हजीर अलहमदानी की कर्बला के मैदान में महान कुर्बानी और फेदाकारी
जनाब बुरैर इब्ने हजीरअल हमदानी मशरकी था आपका कबीला हमदान की शाख बनू मशरिक की एक अज़ीम शख्सियत थे आप काफी उम्र रसीदा और ताबइ होने के साथ आबिद-व-जाहिद,कारी-ऐ-कुरआन बल्कि उस्ताद-ऐ-कुरआन थे आप का शुमार अमीरुल मोमिनीन के असहाब और शुराफाए कूफा में था
आप का पूरा नाम बुरैर इब्ने हजीर-अल-हमदानी मशरकी था । आपका कबीला हमदान की शाख बनू मशरिक की एक अज़ीम शख्सियत थे । आप काफी उम्र रसीदा और ताबइ होने के साथ आबिद-व-जाहिद,कारी-ऐ-कुरआन बल्कि उस्ताद-ऐ-कुरआन थे आप का शुमार अमीरुल मोमिनीन के असहाब और शुराफाए कूफा में था।
आपने कूफा से मक्का जाकर इमाम हुसैन अ० के हमराही इख्तेयार की थी आपने इमाम हुसैन अलै० और उनके अहलेबैत अ० की जैसी खिदमत की है उस की मिसाल नज़र नहीं आती शबे आशूर पानी की जद्दो जहद में आप ने जो कारनामा किया है वो सफ्हाते तारिख में सोने के हर्फ़ से लिखने के काबिल है।
शबे आशूर के बाद सुबह आशूर आपने जबरदस्त नबर्द आजमाई की बुढ़ापे के बा-वजूद आप ने ऐसी जंग की की दुश्मनों के दांत खट्टे हो गए आप जिस पर भी हमला करते थे उसे फ़ना के घाट उतार देते थे सब से पहले आप से जिसने मुकाबला किया वह यजीद इब्ने मअक्ल था।
आपने उसे चन्द वारो में फ़ना कर दिया आखिर इसी तरह आपने तीस दुश्मनों को फ़ना के घाट उतार दिया आखिर में राज़ी इब्ने मनक्ज़ सामने आया आपने उसे ज़मीन पर दे मारा और उस के सीने पर सवार हो गए इतने में कअब इब्ने अज्वी ने आप की पुश्ते मुबारक पर तीर का गहरा वार किया।
कअब ने नेजा और तलवार से कई वार करके जनाब बुरैर को सख्त जख्मी कर दिया और आखिर आप को बहिर इब्ने औरा-अल-जबी ने शहीद कर डाला । शहादत के वक़्त आपने हजरते इमामे हुसैन अले० को आवाज़ दी और आप उनकी लाश पर पहुचे और आपने निहायत दर्द भरे लहजे में फरमाया “अन-बुरैर मिन्न अबदिल्लाह-हिस्सालेहींन” हाय बुरैर हमसे जुदा हो गए जो खुदा के बेहतरीन बन्दों में से थे।
मलेशिया के higher education मंत्री ने प्रतिबंधों के बावजूद ईरानी प्रतिभाशालियों की कामयाबियों की सराहना की
मलेशिया के higher education मंत्री ने ईरान और मलेशिया के विश्वविद्यालयों के मध्य संबंधों में विस्तार हेतु अपने देश की तस्परता की घोषणा की है।
मलेशिया के higher education मंत्री ज़म्बरी अब्दुल क़ादिर ने क्वालालांपुर में इस्लामी गणतंत्र ईरान के राजदूत वलीउल्लाह मोहम्मदी से मुलाक़ात में ईरानी विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग में विस्तार हेतु अपने देश की तत्परता की घोषणा की।
मलेशिया के higher education मंत्री ने इस मुलाक़ात में पिछले वर्ष ईरान की अपनी यात्रा की ओर संकेत किया और उत्पाद, उद्योग, कृषि और विश्वविद्यालयों सहित विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिका के एकपक्षीय प्रतिबंधों के बावजूद ईरानी प्रतिभाशालियों की उपलब्धियों और कामयाबियों की सराहना की।
क्वालालांपुर में ईरानी राजदूत वलीउल्लाह मोहम्मदी ने भी इस भेंट में कहा कि दोनों देशों के मध्य उच्च शिक्षा के संबंध में जो सहमतियां हुई हैं उन्हें दोनों देशों के विश्वविद्यालयों के मध्य होने वाले सहयोग में विस्तार की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम समझा जा रहा है। ईरानी राजदूत मोहम्मदी ने इसी प्रकार इस भेंट में उम्मीद जताई कि दोनों देशों के अधिकारियों व ज़िम्मेदारों के ध्यान की छत्रछाया में ईरान और मलेशिया के विश्वविद्यालयों के मध्य सहकारिता पहले से अधिक होगी।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राजदूत ने इसी प्रकार दोनों देशों के विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधिमंडलों के एक दूसरे के यहां आवाजाही का स्वागत किया और उसे एक रचनात्मक और एक दूसरे के विश्वविद्यालयों को पहचानने की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम क़रार दिया।
अगले शहरीवर महीने में तेहरान में विश्वविद्यालयों की बड़ी उपलब्धियों के बारे में एक प्रदर्शनी आयोजित होने वाली है जिसे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों से अवगत होने के लिए ईरानी राजदूत ने बेहतरीन अवसर बताया और इस प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए मलेशियाई पक्ष को आमंत्रित किया।