
رضوی
आज दुनिया के स्वतंत्रता प्रेमियों का परचम हमारे कांधों पर है: पिज़िश्कियान
ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने इस्लामी क्रांति के सिपाहे पासदारान फ़ोर्स के कमांडरों से मुलाक़ात के बाद ट्वीट पर लिखा कि आज दुनिया के स्वतंत्रता प्रेमियों का परचम हमारे कांधों पर है।
सिपाहे पासदारान के प्रमुख मेजर जनरल हुसैन सलामी और सिपाहे पासदारान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम अब्दुल्लाह हाजी सादेक़ी, सिपाहे पासदारान की थलसेना के कमांडर मोहम्मद पाकपूर, सिपाहे पासदारान में क़ुद्स ब्रिगेड के कमांडर इस्माईल क़ानी और सिपाहे पासदारान में एरो स्पेस के कमांडर अमीर अली हाजीज़ादे, सिपाहे पासदारान की नौसेना कमांडर अलीरज़ा तंगसीरी और सिपाहे पासदारान के दूसरे कमांडरों ने ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान से भेंटवार्ता की।
इस मुलाक़ात में सिपाहे पासदारान के प्रमुख की ओर से शिया मुसलमानों के तीसरे इमाम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ध्वज को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को भेंट किया गया।
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने सोशल साइट एक्स पर लिखा कि सिपाहे पासदारान में प्रिय भाइयों से आज की मुलाक़ात में मुझे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पवित्र रौज़े का परचम भेंट किया गया। आज दुनिया के स्वतंत्रता प्रेमियों का ध्वज हमारे कांधों पर है। इस परचम का ध्वजावाहक बाक़ी रह जाने के लिए हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की भांति न्यायप्रेमी, वफ़ादारी, त्यागी, बलिदानी और शिष्टाचारी होने की ज़रूरत है।
इस्लामी क्रांति की सिपाहे पासदारान फ़ोर्स एक सैनिक इकाई है जिसका गठन स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के आदेश से दो उर्दीबहिश्त सन् 1358 हिजरी शमसी को हुआ था।
26 शहरीवर 1364 हिजरी शमसी को सिपाहे पासदारान को जल, थल और वायु तीन भागों में बांट दिया गया और उसके बाद वर्ष 1369 हिजरी शमसी में ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता सय्यद अली ख़ामेनेई के आदेश से क़ुद्स और साज़माने मुक़ावत बसीज नाम की दो सेनाओं को सिपाहे पासदारान में शामिल कर दिया गया। इस प्रकार सिपाहे पासदान में पांच सेनायें हो गयीं। सिपाहे पासदारान सैनिक गतिविधियों के अलावा, सूचना, निर्माण व आबादकारी और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी सक्रिय रहती है।
आतंकवादी गुट दाइश से मुक़ाबला और उसकी सरकार को ख़त्म कर देना सिपाहे पासदारान की क़ुद्स फ़ोर्स की बड़ी कामयाबियों से एक है।
अमेरिकी सरकार ने 19 फ़रवरदीन 1398 हिजरी शमसी को एक बयान करके सिपाहे पासदारान विशेषकर उसकी क़ुद्स ब्रिगेड का नाम आधिकारिक तौर पर विदेशी आंतकवादी गुटों की सूची में क़रार दे दिया। ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने भी अमेरिका की इस कार्यवाही के जवाब में उसके नाम की घोषणा "आतंकवाद की समर्थक सरकार" के रूप में किया। इसी प्रकार ईरान ने पश्चिम एशिया में अमेरिकी सेना सेंटकॉम को "आतंकवादी गुट" का नाम दिया।
1398 हिजरी शमसी में इराक़ में अमेरिका की सैनिक छावनी एनुल असद पर भारी मिसाइल हमला और इसी प्रकार जारी वर्ष पर इस्राईल पर प्रक्षेपास्त्रिक और ड्रोन हमला इस इकाई के सबसे मशहूर हमले हैं।
सिपाहे पासदारान का साम्राज्यवाद विरोधी दृष्टिकोण और पश्चिम से संबंधित आतंकवादी गुटों को पश्चिम एशिया से ख़त्म करने हेतु उसके प्रयास ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे बहुत लोकप्रिय बना दिया है।
ईरान को धमकी देकर क्यों आत्महत्या पर तुला है इस्राईल?
मिस्र के लेखक और राजनीतिक विश्लेषक हसन बदीअ का कहना है: ईरान के खिलाफ ज़ायोनी शासन की धमकियों का मतलब है कि ज़ायोनी अधिकारियों ने आत्महत्या के बारे में मन बना लिया है और उन्हें लगता है कि वे अपने अंत के क़रीब हैं।
ईरान के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन की धमकियों और इन धमकियों का सही विश्लेषण बहुत ज़रूरी है।
इस संबंध में, ईरान के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के पूर्व युद्धमंत्री एविग्डोर लिबरमैन की बयानबाज़ियों के जवाब में हसन बदीअ का कहना है: हक़ीक़त यह है कि लिबरमैन ने ईरान को परमाणु हमले की धमकी दी है जबकि ज़ायोनी शासन कितने गहरे संकट से जूझ रहा है और अमेरिका और नाटो के समर्थन के बावजूद वह पतन की हालत में पहुंच गया है।
हसन बदीअ कहते हैं:
ईरान के ख़िलाफ़ लिबरमैन की बकवासों का मतलब है कि तेल अवीव ईरान से डरता है और प्रतिरोध के मोर्चे की लगातार कामयाबियों से चिंतित है, ख़ासकर मक़बूज़ा क्षेत्रों पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद।
उन्होंने कहा: इस ब्लैक अटैक और विध्वंसकारी हमले और ज़ायोनी दुश्मन के 2 हवाई अड्डों की तबाही ने तेल अवीव को यह सबक सिखा दिया है कि ईरान की आग और प्रतिरोध के मोर्चे से खिलवाड़ न करे।
ज़ायोनी शासन ईरान को धमकी दे रहा है जबकि इस शासन के मीडिया ने इस्राईल की सेना में बलों की कमी और ज़ायोनी सैनिकों की मनोवैज्ञानिक समस्याओं को स्वीकार किया है।
ज़ायोनी मीडिया ने ज़ायोनी सेना में प्रसिद्ध गोलानी ब्रिगेड के एक सैनिक के हवाले से बताया कि ये सैनिक ग़ज़ा पट्टी और लेबनान में हिज़्बुल्लाह के साथ उत्तरी मोर्चे पर अनिर्णायक और बेनतीजा युद्ध से थक चुके हैं और सेना लेबनान से युद्ध के मोर्चे पर जाने के लिए तैयार नहीं है और युद्ध जारी रहने से सेना को मनोवैज्ञानिक आघात पहुंचेगा।
इससे पहले, मीडिया ने बताया था कि ज़ायोनी शासन ने सैनिकों की तलाश और भर्ती के लिए सोशल मीडिया और फ़ेसबुक पर विज्ञापन देना शुरू कर दिया है क्योंकि ग़ज़ा युद्ध में मौजूद कई सैनिक इस प्रक्रिया को जारी रखने में सक्षम नहीं हैं और कई जवान सेना में शामिल होने के योग्य ही नहीं हैं और सेना के भाग निकले हैं।
इन धमकियों के साथ ही, ज़ायोनी शासन ग़ज़ा में नरसंहार और प्रतिरोध के कमांडरों की टारगेट क्लिंग के प्रयास जारी रखता है और हर बार एक नया अपराध अंजाम देता है।
क्षेत्र में रणनीतिक मुद्दों के विश्लेषक अब्दुल बारी अतवान ने राय अल-यौम अख़बार की वेबसाइट पर एक लेख में लिखा: ग़ज़ा पट्टी में 9 महीने के नरसंहार और जातीय सफ़ाए के बाद, ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अभी भी किसी भी तरह से क़स्साम ब्रिगेड के कमान्डरों में से एक सीनियर कमान्डर यहिया सेनवार या उनके एक प्रतिनिधि और सलाहकार शामिल की हत्या की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ये प्रयास विफल रहे और नेतन्याहू के माथे पर एक और शर्मनाक हार दर्ज हो गयी है।
तेल अवीव के हालिया दावे का ज़िक्र करते हुए कि ख़ान यूनिस शहर के पश्चिम में अल-मवासी इलाक़े पर हाल ही में हुए बर्बर हमलों में क़स्साम ब्रिगेड के कमांडर "मोहम्मद अल-ज़ैफ़ और खान यूनिस ब्रिगेड के कमांडर राफ़ेअ सलामा शहीद हो गये।
उन्होंने कहा: बेशक, यह जीत का जश्न लंबे समय तक नहीं चल सका, और तेल अवीव की जासूसी सेवाएं, जिसके बारे में नेतन्याहू ने निगरानी करने में अत्यधिक सक्षम होने का दावा किया था, प्रतिरोधकर्ताओं और उनके हौसलों के सामने लगातार हजारवीं बार नाकाम रही हैं, और हर तरफ़ उनकी विफलता और नाकामी की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं।
इस क्षेत्रीय विशेषज्ञ ने बताया कि ज़ायोनी शासन को सबसे लंबे और सबसे महंगे युद्ध में उलझाने के लिए प्रतिरोध के कमांडर अपने भूमिगत वॉर रूम में ही रहेंगे।
उन्होंने कहा: ये अपराध ज़ायोनी शासन के लिए बहुत महंगे साबित होंगे और राजनीतिक या सैन्य कमांडरों सहित अपराधियों को उनके कामों के लिए दंडित किया जाएगा और उनकी सज़ाएं नाज़ी जर्मनी या अन्य अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों के मुक़ाबले में सबसे बदतर होगी
कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरा, जम्मू कश्मीर में हुए 78 दिन में 10 से अधिक आतंकी हमले
जम्मू में बीते कुछ महीनों में आतंकी हमले बढ़े हैं। इसे लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार को घेरा है। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कहा है कि सरकार ऐसे काम कर रही है जैसे सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा है और कुछ भी नहीं बदला लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि जम्मू क्षेत्र इन हमलों का खामियाजा तेजी से भुगत रहा है।
जम्मू-कश्मीर के डोडा में बीती रात से आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ जारी है। जंगल में दोनों तरफ से लगातार फायरिंग हो रही है। एनकाउंटर में सेना के एक अधिकारी समेत 4 जवान मारे गए हैं। जानकारी के मुताबिक एक से दो आतंकी जंगल में छिपे हो सकते हैं। सुरक्षाबलों ने इस पूरे इलाके को घेर लिया है और हेलीकॉप्टर की मदद से आतंकियों की तलाश की जा रही है।इस ऑपरेशन को सेना, पुलिस और CRPF की संयुक्त टीम अंजाम दे रही है।
रूस ने इस्राईल को चेतावनी दी
रूसी विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता ने चेतावनी दी है कि सीरिया में इस्राईली अधिकारियों की दायित्वहीन कार्यवाहियां पश्चिम एशिया में लड़ाई के विस्तृत होने व फ़ैलने का कारण बनेंगी।
ज़ायोनी सरकार ने हालिया वर्षों में दमिश्क और सीरिया के दूसरे विभिन्न क्षेत्रों पर बारमबार हवाई हमला किया है परंतु सीरियाई एअरडिफ़ेन्स ने समय पर सक्रिय होकर अधिकांशतः इन हमलों को नाकाम बना दिया।
सीरिया पर इस्राईल के हवाई हमले ऐसी स्थिति में होते रहते हैं जब दमिश्क ने बारमबार राष्ट्रसंघ और सुरक्षा परिषद के नाम पत्र भेजकर इन हमलों की भर्त्सना की और इन हमलों के बंद किये जाने की मांग की है।
रूस की विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़ाख़ारोवा ने अलमयादीन टीवी चैनल से वार्ता में सीरिया पर ज़ायोनी सरकार के हमलों की भर्त्सना करते हुए कहा कि इस्राईली अधिकारियों की ग़ैर ज़िम्मेदाराना कार्यवाहियां पश्चिम एशिया में सशस्त्र झड़पों की संभावना को अधिक कर रही हैं और क्षेत्र को ख़तरनाक तबाही की ओर ले जा रही हैं।
ज़ाख़ारोवा ने दमिश्क में ईरानी काउंसलेट पर इस्राईल के हालिया हमले की ओर संकेत किया और कहा कि इस्राईल के इस हमले से क्षेत्र बड़ी जंग के मुहाने पर पहुंच गया था। उन्होंने कहा कि इस्राईल को चाहिये कि वह सीरिया पर हमले करने से परहेज़ करे और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का सम्मान करे।
उन्होंने कहा कि इस्राईल के स्ट्रैटेजिक घटक यानी अमेरिका और उसके पश्चिमी घटकों ने पश्चिम एशिया के परिवर्तनों के संबंध में चुप्पी साध रखी है और सीरिया पर इस्राईल के बारमबार के प्रक्षेपास्त्रिक हमलों और बमबारी को एक सामान्य व वास्तविक चीज़ के रूप में स्वीकार करते और देखते हैं।
रूसी विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि पश्चिम एशिया में शांति को व्यवहारिक बनाने और इस्राईली हमलों को बंद कराने के संबंध में मॉस्को के पास नियत सुझाव व प्रस्ताव हैं और क्षेत्रीय देशों के साथ इन प्रस्तावों की समीक्षा व मूल्यांकन के लिए उनका देश तैयार है।
ग़ज़्ज़ा में लोकप्रिय प्रतिरोध और शहादत
ग़ज़्ज़ा पर जारी इज़रायली आक्रमण को नौ महीने हो गए हैं। इन नौ महीनों में गाज़ा ने सभी प्रकार की पीड़ित जनता, मुस्लिम शासकों की उदासीनता, विश्व जनमत की फूट और मानव की असहायता देखी है।
ग़ज़्ज़ा पर जारी इजरायली आक्रमण को नौ महीने हो गए हैं। इन नौ महीनों में गाजा ने हर तरह की क्रूरता और आतंक, मुस्लिम शासकों की उदासीनता, अंतरराष्ट्रीय जनमत की सहमति और मानवाधिकार संगठनों की बेबसी देखी है। इसके अलावा, गाजा के लोगों ने जो देखा और सहा है उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। आखिर इन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अस्तित्व का क्या फायदा अगर ये अपनी स्थापना के उद्देश्य को पूरा करने में लगातार विफल हो रहे हैं? संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में युद्धविराम प्रस्ताव पेश किया गया और हर बार अमेरिका ने इस पर वीटो किया। इसके बाद जब युद्धविराम पर सहमति बनी तो इजराइल के इस तानाशाही रवैये को पश्चिम और मानवाधिकार संगठनों ने भी खारिज कर दिया अगर किसी अन्य देश ने विश्व जनमत को इस तरह से देखा होता तो क्या होता, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन इजराइल ने, जिसके हर जुल्म में अमेरिका भी बराबर का भागीदार है अंतर्राष्ट्रीय राय को नजरअंदाज किया, बल्कि उसका तिरस्कार भी किया, अगर अब तक संयुक्त राज्य अमेरिका उसकी पीठ पर न खड़ा होता, तो इजरायल का अंत सफल होता, लेकिन अत्याचारी ने अत्याचारी का समर्थन किया और आज इजराइल इसके बावजूद गाजा छोड़ने को तैयार नहीं है।
अल-अक्सा तूफान के बाद इजराइल ने दावा किया था कि वह हमास को मार डालेगा. हमास आज भी मौजूद है, जिसके साथ इजराइल लगातार संघर्ष विराम पर बातचीत कर रहा है, तो पिछले नौ महीनों में इजराइली सेना ने किसके खिलाफ लड़ाई लड़ी? यह मान लिया गया कि हमास समाप्त हो गया है, तब उसने ज़ायोनी सैनिकों पर भारी हमले किए, नोमा की लगातार लड़ाई के बाद भी हमास के विभिन्न लड़ाके अभी भी मैदान में डटे हुए हैं , तो फिर गाजा में ज़ायोनी सेना से कौन लड़ रहा है? अगर नोमा के लगातार युद्ध के बावजूद इजरायली सेना हमास को खत्म नहीं कर सकी, तो इस युद्ध का क्या फायदा? या क्या इजरायल का लक्ष्य गाजा को नष्ट करना था? क्या ज़ायोनी सेना निर्दोष लोगों का नरसंहार करके फ़िलिस्तीनियों को आतंकित करना चाहती थी ताकि वे गाज़ा लौटने के बारे में सोचें भी नहीं, इसके बाद शरणार्थी शिविरों पर हवाई हमले शुरू हो गए इजरायली सेना का मकसद हमास को खत्म करना था, उसके सैनिकों को ढूंढ-ढूंढ कर मार दिया जाता, लेकिन यह युद्ध गाजा के लोगों के खिलाफ था, इसलिए युद्ध का दायरा भी लोगों तक ही सीमित था अब तक इस दावे पर कि हमास ने शरणार्थी शिविरों को आश्रय स्थल बनाया है, अस्पताल और पूजा स्थल उसके सैनिकों का केंद्र रहे हैं, फिर इन इमारतों पर हमला क्यों किया गया? मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर क्यों नष्ट किया गया? इसका कारण किसी से छिपा नहीं है। इजराइल का लक्ष्य गाजा के लोगों का नरसंहार था, इसलिए वह नहीं चाहता था कि घावों से जूझ रहे और मर रहे लोगों को समय पर इलाज मिले सार्वजनिक इमारतें नष्ट कर दी गईं। लेकिन दुर्भाग्य से दुनिया को इजराइल का यह युद्ध अपराध नजर नहीं आया। अन्यथा, दुनिया अब तक इजराइली आक्रामकता के खिलाफ एक राय पर पहुंच चुकी होती। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में अंतरराष्ट्रीय जनमत की एकता देखने को मिली यूक्रेन के कारण गाजा में मानवीय संकट? यदि नहीं तो दुनिया इस क्रूरता पर चुप क्यों थी? वैश्विक स्तर पर 'चेहरा बचाएं' वर्ना इस युद्ध में अमेरिका ने सबसे ज्यादा हथियार इजराइल को भेजे हैं, अगर अमेरिकी मदद नहीं होती तो अल-अक्सा तूफान के बाद यह युद्ध कब तय होता? इजराइल की सेना को सहायता और हथियार लगातार स्टॉकहोम भेजे गए। अनुसंधान संगठन इंटरनेशनल पीस स्टडीज इंस्टीट्यूट के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2019 से 2023 तक इजरायल को उसकी 69% हथियारों की जरूरतें प्रदान की हैं। 7 अक्टूबर के बाद यह प्रतिशत बढ़ गया है। जिसके सटीक आँकड़े अभी तक जारी नहीं किये गये हैं, उससे अमेरिकी पाखंड का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
यदि ज़ायोनी सेना अपने मंसूबों में सफल होती तो इज़रायली नागरिक कभी भी बंधकों की रिहाई के लिए विरोध प्रदर्शन नहीं करते। उनके लगातार विरोध से पता चलता है कि ज़ायोनी सेना को हर मोर्चे पर हार का सामना करना पड़ रहा है। कुछ इज़रायली मंत्रियों और पूर्व सैनिकों ने भी यह स्वीकार किया है युद्ध हार चुके हैं, अभी तक गाजा पर कब्जा नहीं किया जा सका है, जिसके लिए नेतन्याहू ने दावा किया था कि कुछ ही दिनों में हम गाजा को जीत लेंगे और हमास को खत्म कर देंगे, और हिजबुल्लाह को इससे काफी नुकसान हुआ है गाजा में इजराइल को लाल सागर में भी कम आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है, हिजबुल्लाह ने इजराइल के अंदर ऐसे ठिकानों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया है जिसकी ज़ायोनी शासक कभी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, यही कारण है कि युद्ध अब लेबनान की सीमाओं की ओर बढ़ रहा है पिछले चार महीनों में और अभी भी ऐसा करना जारी है।
लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. क्योंकि ज़ायोनी जितना हिज़्बुल्लाह से डरते हैं, उतना ही शायद किसी अन्य प्रतिरोधी संगठन से भी. इसकी वजह यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका लगातार इज़रायल को हिज़बुल्लाह के साथ हाथ आजमाने से रोकने की कोशिश कर रहा है नुकसान. अमेरिका और इजराइल दोनों का विचार सही है।
7 अक्टूबर के बाद से गाजा के लोग लगातार निर्वासन में रह रहे हैं. वे जहां भी शरण लेते हैं वहां ज़ायोनी सेना बम गिराना शुरू कर देती है. इस दौरान कितने उत्पीड़क बेघर हो गए हैं लोग गाजा छोड़ चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में समन्वयक सिगर्ड काग ने अपने भाषण के दौरान कहा कि "गाजा में 19 मिलियन लोग निर्वासन में रहने को मजबूर हैं। उनकी स्थिति बहुत चिंताजनक है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।" इन परिस्थितियों में, राफा क्रॉसिंग को फिर से खोलने की आवश्यकता है, यदि ऐसा नहीं होता है, तो कुपोषण के कारण एक बड़ी आबादी की मृत्यु हो सकती है, यदि जल्द ही गाजा में मानवीय सहायता का एक बड़ा बैच पहुंचाया गया, तो दस लाख से अधिक फिलिस्तीनियों की जान चली जाएगी इस क्षेत्र में खतरा पैदा हो जाएगा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने लगातार कहा है कि इजरायल गाजा के खिलाफ भूख को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है. शहादत की भावना लगातार दृढ़ता और प्रतिरोध की मांग कर रही है और वे अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं ज़ायोनी सेना की हार का मुख्य कारण। अन्यथा, अगर गाजा के लोग हमास के खिलाफ खड़े होते, तो यह युद्ध आज नौवें महीने में प्रवेश नहीं करता, इसलिए गाजा के लोगों के प्रतिरोध और शहादत के जज्बे को सलाम किया जाना चाहिए।
करबला करामाते इंसानी की मेराज
करबला के मैदान में दोस्ती, मेहमान नवाज़ी, इकराम व ऐहतेराम, मेहर व मुहब्बत, ईसार व फ़िदाकारी, ग़ैरत व शुजाअत व शहामत का जो दर्स हमें मिलता है वह इस तरह से यकजा कम देखने में आता है। मैंने ऊपर ज़िक किया कि करबला करामाते इंसानी की मेराज का नाम है।
वह तमाम सिफ़ात जिन का तज़किरा करबला में बतौरे अहसन व अतम हुआ है वह इंसानी ज़िन्दगी की बुनियादी और फ़ितरी सिफ़ात है जिन का हर इंसान में एक इंसान होने की हैसियत से पाया जाना ज़रुरी है। उसके मज़ाहिर करबला में जिस तरह से जलवा अफ़रोज़ होते हैं किसी जंग के मैदान में उस की नज़ीर मिलना मुहाल है। बस यही फ़र्क़ होता है हक़ व बातिल की जंग में।
जिस में हक़ का मक़सद, बातिल के मक़सद से सरासर मुख़्तलिफ़ होता है। अगर करबला हक़ व बातिल की जंग न होती तो आज चौदह सदियों के बाद उस का बाक़ी रह जाना एक ताज्जुब ख़ेज़ अम्र होता मगर यह हक़ का इम्तेयाज़ है और हक़ का मोजिज़ा है कि अगर करबला क़यामत तक भी बाक़ी रहे तो किसी भी अहले हक़ को हत्ता कि मुतदय्यिन इंसान को इस पर ताज्जुब नही होना चाहिये।
अगर करबला दो शाहज़ादों की जंग होती?। जैसा कि बाज़ हज़रात हक़ीक़ते दीन से ना आशना होने की बेना पर यह बात कहते हैं और जिन का मक़सद सादा लौह मुसलमानों को गुमराह करने के अलावा कुछ और होना बईद नज़र आता है तो वहाँ के नज़ारे क़तअन उस से मुख़्तलिफ़ होते जो कुछ करबला में वाक़े हुआ।
वहाँ शराब व शबाब, गै़र अख़लाक़ी व गै़र इंसानी महफ़िलें तो सज सकती थीं मगर वहाँ शब की तारीकी में ज़िक्रे इलाही की सदाओं का बुलंद होना क्या मायना रखता?
असहाब का आपस में एक दूसरों को हक़ और सब्र की तलक़ीन करना का क्या मफ़हूम हो सकता है?। माँओं का बच्चों को ख़िलाफ़े मामता जंग और ईसार के लिये तैयार करना किस जज़्बे के तहत मुमकिन हो सकता है?। क्या यह वही चीज़ नही है जिस के ऊपर इंसान अपनी जान, माल, इज़्ज़त, आबरू सब कुछ क़ुर्बान करने के लिये तैयार हो जाता है मगर उसके मिटने का तसव्वुर भी नही कर सकता।
यक़ीनन यह इंसान का दीन और मज़हब होता है जो उसे यह जुरअत और शुजाअत अता करता है कि वह बातिल की चट्टानों से टकराने में ख़ुद को आहनी महसूस करता है। उसके जज़्बे आँधियों का रुख़ मोड़ने की क़ुव्वत हासिल कर लेते हैं। उसके अज़्म व इरादे बुलंद से बुलंद और मज़बूत से मज़बूत क़िले मुसख़्ख़र कर सकते हैं।
यही वजह है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पाये सबात में लग़ज़िश का न होना तो समझ में आता है कि वह फ़रज़ंदे रसूल (स) हैं, इमामे मासूम (अ) हैं, मगर करबला के मैदान में असहाब व अंसार ने जिस सबात का मुज़ाहिरा किया है उस पर अक़्ल हैरान व परेशान रह जाती है।
अक़्ल उस का तजज़िया करने से क़ासिर रह जाती है। इस लिये कि तजज़िया व तहलील हमेशा ज़ाहिरी असबाब व अवामिल की बेना पर किये जाते हैं मगर इंसान अपनी ज़िन्दगी में बहुत से ऐसे अमल करता है जिसकी तहलील ज़ाहिरी असबाब से करना मुमकिन नही है और यही करबला में नज़र आता है।
हमारा सलाम हो हुसैने मज़लूम पर
*हमारा सलाम हो बनी हाशिम पर
*हमारा सलाम हो मुख़द्देराते इस्मत व तहारत पर
*हमारा सलाम हो असहाब व अंसार पर।
*या लैतनी कुन्तो मअकुम।
आशूरा के आमाल
रोज़े आशूरा मुहम्मद और आले मुहम्मद (स.अ.) पर मुसीबत का दिन है। आशूर के दिन इमाम हुसैन अ. ने इस्लाम को बचाने के लिए अपना भरा घर और अपने साथियों को ख़ुदा की राह में क़ुर्बान कर दिया है, हमारे आइम्मा-ए-मासूमीन अ. ने इस दिन को रोने और शोक मनाने से विशेष कर दिया है अत: आशूरा के दिन रोने, मजलिस व मातम करने और अज़ादारी की बहुत ताकीद की गई है।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अ. कहते हैं कि अगर कोई आज के दिन इमाम हुसैन अ. की ज़ियारत करे , आपकी मुसीबत पर ख़ूब रोए और अपने घर वालों और रिश्तेदारों को भी रोने का हुक्म दे। अपने घर में अज़ादारी का प्रबंध करे और आपस में एक दूसरे से रोकर मिले, एक दूसरे को इन शब्दों में शोक व्यक्त करे।
"۔" عَظَّمَ اللّٰہُ اُجُورَنٰا بِمُصٰابِنٰا بِالحُسَینِ عَلَیہِ السَّلَام وَ جَعَلَنَا وَاِیَّاکُم مِنَ الطَّالِبِینَ بِشَارِہِ مَعَ وَلِیِّہِ الاِمَامِ المَھدِی مِن آلِ مُحَمَّدٍ عَلَیہِمُ السَّلَام"
अल्लाह तआला उसको बहुत ज़्यादा सवाब अता फ़रमाएगा।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक अ. के हवाले से बयान हुआ है कि अगर कोई आशूर के दिन एक हज़ार बार सूरए तौहीद पढ़े तो ख़ुदावन्दे आलम उसकी तरफ़ रहमत की निगाह करेगा आशूर के दिन इमाम हुसैन अ. के क़ातिलों पर हज़ार बार इस तरह लानत भेजे तो बहुत ज़्यादा सवाब मिलेगा
۔" اَللّٰھُمَّ العَن قَتَلَۃَ الحُسَینِ وَ اَصحٰابِہِ"
आशूरा के दिन के आमाल
आशूरा के दिन रोना और मुसीबत उठाने वालों की तरह सूरत बनाना, नंगे सर और नंगे पैर रहना, आस्तीनों को ऊपर चढ़ाना, गरेबान को चाक करना, सारे दिन फ़ाक़े (भूके प्यासे) से रहना औऱ अस्र के समय फ़ाक़ा तोड़ना, इमाम हुसैन अ. के हत्यारों पर लानत भेजना, सुबह के वक़्त जब कुछ दिन चढ़ जाए तो रेगिस्तान या छत पर जाकर आशूरा के आमाल करने की ताकीद है, सबसे पहले इमाम हुसैन अ. की छोटी वाली ज़्यारत पढ़े
" اَلسَّلاَم ُعَلَیکَ یٰا اَبٰا عَبدِ اللّٰہِ ،اَلسَّلاَمُ عَلَیکَ یَابنَ رَسُولِ اللّٰہِ ، اَلسَّلاَمُ عَلَیکُم وَ رَحمَۃُ اللّٰہ وَ بَرَکٰاتُہ "
इसके बाद दो रकअत नमाज़े ज़्यारते आशूरा सुबह की नमाज़ की तरह पढ़े फिर दो रकअत नमाज़, ज़्यारते इमाम हुसैन अ. इस तरह कि क़ब्रे इमाम हुसैन अ. की तरफ़ इशारा करे और नियत करे कि दो रकअत नमाज़े ज़्यारत इमाम हुसैन अ. पढ़ता हूँ क़ुरबतन इलल्लाह नमाज़ तमाम करने के बाद ज़्यारते आशूरा पढ़े
इमाम जाफ़रे सादिक़ अ. फ़रमाते हैं: इस दुआ को सात बार इस तरह पढ़े कि रोने की हालत में यह दुआ पढ़ता हुआ सात बार आगे बढ़े और इसी तरह सात बार पीछे हटे
" اِنَّا لِلّٰہِ وَ اِنَّااِلَیہِ رَاجِعُونَ رِضاً بِقَضَائِہِ وَ تَسلِیماً لِاَمرِہ
और इमामे जाफ़रे सादिक़ अ. फ़रमाते हैं: जो शख़्स आशूर के दिन दस बार इस दुआ को पढ़े, तो ख़ुदावन्दे आलम तमाम आफ़त व बलाए नागहानी (घटनाओं) से एक साल तक महफ़ूज़ रखता है।
" اَللّٰھُمَّ اِنِّی اَسئَلُکَ بِحَقِّ الحُسَینِ وَ اَخِیہِ وَ اُمِّہِ وَ اَبِیہِ وَ جَدِّہِ وَ بَنِیہِ وَ فَرِّج ± عَنِّی مِمَّا اَنٰا فِیہِ بِرَحمَتِکَ یٰا اَر ±حَمَ الرَّاحِمِینَ "
शेख मुफ़ीद ने रिवायत की है कि जब भी आशूर के दिन इमाम हुसैन अ.की ज़ियारत करना चाहें तो हज़रत की क़ब्र के क़रीब खड़े हों औऱ यह ज़ियारत पढ़ें ज़ियारते नाहिया, दुआए अलक़मा,
आशूर के आख़िरी वक़्त की ज़ियारत
नोट: आशूर को आख़िरी वक़्त पानी से फ़ाक़ा शिकनी करे और ऐसा खाना खाए जो मुसीबत में पड़ने वालों का ख़ाना हो लज़ीज़ व स्वादिष्ट खाने से बचे आज के दिन दुआए सलामती नहीं पढ़नी चाहिए क्योंकि यह चीज़ें दुश्मनों की ईजाद की हैं।
अज़ादाराने हुसैनी
इमाम हुसैन (अ) के अज़ादार अपनी अज़ादारी के ज़रिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) को ताज़ियत (पुरसा) पेश करते थे और उनके ग़म में शिरकत करते हैं,
इमाम सादिक़ (अ) इस बारे में फ़रमाते हैं ।[3] अगर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ज़िन्दा होते तो हम उन्हे ताज़ियत (पुरसा) पेश करते। हम तसव्वुर नही कर सकते कि आशूरा के दिन इमाम हुसैन (अ) के क़ल्बे नाज़नीन पर क्या गुज़री। हरगिज तसव्वुर नही कर सकते।
कभी इंसान के ज़हन में ख़्यालात आते हैं मगर फिर भी वह तसव्वुर नही कर सकता। हमें यह नही कहना चाहिये कि इमाम को मज़बूत और सब्र करने वाला होना चाहिये,यक़ीनन इमामे मासूम दुनिया में सबसे ज़्यादा अहम और सबसे ज़्यादा अक़लमंद होते हैं, उनका दिल तमाम लोगों में सबसे ज़्यादा मज़बूत होता है और इसी तरह उनमें मेहरबानी भी सबसे ज़्यादा होती है और वह उन्हे कंटोल करने में भी महारत रखते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बेटे इब्राहीम जो डेढ़ साल के थे, जब उनका इंतेक़ाल हुआ आप की आँखो से आँसू जारी हो गये और आप इतनी शिद्दत से रो रहे थे कि आपकी रीशे (दाढ़ी) मुबारक हिल रही थी। असहाब ने अर्ज़ या ऐ अल्लाह के नबी, आप हमें सब्र करने को कहते हैं लेकिन आप ख़ुद इस तरह से रो रहे हैं तो आपने फ़रमाया: जब दिल तड़पता है तो आँखो से आँसू निकल ही पड़ते हैं।[4] पैग़म्बरे इस्लाम (स) जिन्होने सिर्फ़ एक अठ्ठारह महीने के बेटे को खोया था इस तरह उसके ग़म में रो रहे थे जबकि इमाम हुसैन (अ) ने आशूर के दिन अपने अज़ीज़ (रिश्तेदार) व अंसार (दोस्त) सब को अल्लाह की राह में क़ुरबान कर दिया जिनमें हज़रत अबुल फ़ज़्लिल अब्बास जैसी श ख़्सियतें शामिल हैं।
अगर उन्हे आम लोगों की हिसाब करें तो यक़ीनन वह एक एक इंसान थे मगर यह बात नही भूलनी चाहिये कि वह आम लोग नही थे और उनमें से अकसर इमामत व इस्मत की आग़ोश के पले थे और वफ़ादारी व बुज़ुर्गी में इमामे मासूम के बाद सबके सरदार थे, उनकी मिसाल इस दुनिया में नही मिल सकती, बल्कि उनकी सच्चा तारीफ़ भी हमारे लिये मुम्किन नही है।
कुछ घंटों में इमाम हुसैन (अ) के दिले नाज़नीन पर इस क़दर मुसीबतें पड़ी और आप ने सब्र किया। अल्लाह इन मुसीबतों का गवाह था उसने सब्र किया इसलिये कि वह बहुत सब्र करने वाला है। एक दिन वह भी आयेगा कि अल्लाह भी उस दिन अपनी हिकमत के मुताबिक़ सब्र नही करेगा और वह दिन उसके इंसाफ़ का दिन होगा, उस दिन इंतेक़ाम लिया जायेगा।
अज़ादारी परंपरा नहीं आन्दोलन है
क्या आप महान व सर्वसमर्थ ईश्वर से प्रेम करने वाले व्यक्तियों को पहचानते हैं? ईश्वर से प्रेम करने वालों का हृदय उसके प्रेम में डूबा होता है। वे लोगों की समस्याओं का समाधान करते हैं और वे हर उस कार्य के लिए कदम बढ़ाते हैं और प्रयास करते हैं जिसमें महान ईश्वर की प्रसन्नता होती है। वे महान ईश्वर के प्रेम में रातों को उपासना करते हैं, प्रार्थना करते हैं और पवित्र कुरआन की तिलावत करते हैं। वे दुनिया में रहते हैं कार्य व प्रयास करते हैं परंतु कभी भी वे दुनिया के क्षणिक आनंदों के धोखे में नहीं आते और पवित्र कुरआन के अनुसार ईश्वर के प्रेम में जीवन बिताने वाले व्यक्ति को व्यापार उसकी याद से निश्चेत नहीं कर सकते।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उन महान हस्तियों में से एक हैं जो ईश्वरीय प्रेम की प्रतिमूर्ति थे और पवित्र कुरआन के अस्तित्व से मिश्रित हो गये थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत अली और हज़रत फातेमा ज़हरा की गोद में पले बढ़े थे और बाल्याकाल से ही वह ईश्वरीय ग्रंथ पवित्र कुरआन से पूर्णरूप से परिचित थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने प्रसिद्ध कथन में कहा है कि हमारे परिजन और कुरआन एक दूसरे से अलग नहीं होगें। उनका कथन है कि मैं तुम्हारे बीच दो मूल्यवान चीज़ें छोड़ कर जा रहा हूं एक अपने परिजन और दूसरे ईश्वरीय किताब कुरआन और यह दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होंगे यहां तक कि वे हौज़े कौसर पर एक साथ मेरे पास आयेंगे” जब पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों और पवित्र कुरआन के मध्य इस प्रकार का संबंध है तो स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सदगुणों व ईश्वरीय विशेषताओं के स्वामी एवं प्रतिमूर्ति हैं।
क्योंकि जिस हस्ती को पैग़म्बरे इस्लाम ने पवित्र कुरआन का समतुल्य बताया है उसे प्रकार के अवगुणों से पवित्र होना चाहिये वरना पैग़म्बरे इस्लाम के प्रसिद्ध कथन पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा। दूसरे शब्दों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कुरआने नातिक़ यानी बोलने वाला कुरआन हैं और उनका सदाचरण पवित्र कुरआन की अमली व्याख्या है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का सदाचरण पवित्र कुरआन से इस प्रकार मिश्रित था कि उन्होंने कर्बला की तपती भूमि पर पवित्र कुरआन की आयतों की तिलावत करके यज़ीद की राक्षसी सेना को उसके परिणामों से अवगत कराया परंतु जब राक्षसी सेना पर उनकी नसीहतों का कुछ असर नहीं हुआ तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यज़ीदी सेना से कहा तुम्हारे पेट हराम से भरे हुए हैं इसलिए मेरी नसीहतों का तुम पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा है। यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि अगर इंसान का पेट हराम से भरा होता है तो नसीहतें उस पर असर नहीं करती हैं और नसीहत करने वाला इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसी महान हस्ती ही क्यों न हो।
मोआविया के मर जाने के बाद जब धर्मभ्रष्ठ व अत्याचारी यज़ीद शासक बना तो पवित्र नगर मदीना के गवर्नर की ओर से यज़ीद की बैअत करने के लिए उन पर दबाव में वृद्धि हो गयी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस दबाव के जवाब में स्वयं को और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को पहचनवाया और उन्हें ज्ञान का स्रोत बताया और यज़ीद को धर्मभ्रष्ठ व्यक्ति बताया तथा उसके बाद पवित्र नगर मदीने के गवर्नर से कहा कि जब वह धर्मभ्रष्ठ व्यक्ति है तो किस प्रकार मैं उसकी बैअत कर सकता हूं? पवित्र नगर मदीना के गवर्नर ने जब यज़ीद की बैअत के लिए आग्रह किया तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उसे कुरआन की ततहीर नाम से प्रसिद्ध आयत की तिलावत करके सुनाया जिसमें महान ईश्वर कहता है कि हमने अहले बैत को हर प्रकार की बुराई व गन्दगी से पवित्र रखा है जिस तरह से पवित्र रखने का हक़ है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर धर्मभ्रष्ठ शासक यज़ीद की बैअत के लिए जब दबाव बहुत बढ़ गया तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने निकट परिजनों के साथ पवित्र नगर मदीना से मक्का की ओर चले गये ताकि वहां पर हज कर सकें और काबे के पास खतरों से सुरक्षित रहें और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन के सूरे क़सस की २१वीं आयत की बार बार तिलावत फरमाते थे कि हे हमारे पालनहार! अत्याचारी कौम से हमें मुक्ति प्रदान कर” यह आयत वह दुआ है जो हज़रत मूसा ने फिरऔन से मुक्ति पाने के लिए किया था। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जिन आयतों की तिलावत की वह इस बात की सूचक हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को जनाब मूसा की भांति केवल अत्याचारी शासक यज़ीद की ओर से खतरा था। इसी प्रकार इन आयतों की तिलावत इस बात की सूचक है कि मुसलमानों ने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के साथ अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाई। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, यज़ीद जैसे धर्मभ्रष्ठ व्यक्ति की न तो बैअत कर सकते थे और न ही इस्लामी शिक्षाओं की उपेक्षा के प्रति निश्चिन्त रह सकते थे इसलिए उन्होंने लोगों को जागरुक बनाने का फैसला किया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने पवित्र नगर मक्का में दो पत्र लिखा एक बसरा के लोगों के नाम और दूसरा कूफा वासियों के लिए। इमाम हुसैन ने बसरा के लोगों को संबोधित करते हुए लिखा” बेशक पैग़म्बरे इस्लाम कुरआन के साथ तुम्हारे पास भेजे गये और मैं तुम्हें ईश्वर की किताब और पैग़म्बरे इस्लाम की परंपरा की ओर बुला रहा हूं क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत व परम्परा को भुला दिया गया है और नई नई चीज़ों को धर्म में उत्पन्न कर दिया गया है। अगर हमारी बात सुनोगे तो हम सफलता व मुक्ति के मार्ग की ओर पथप्रदर्शन करेंगे।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इसी प्रकार कूफा वासियों के नाम पत्र में लिखा” मार्गदर्शक नहीं है मगर यह कि जो ईश्वर की किताब का पालन करने के लिए आमंत्रित करे, न्याय लागू करे और सत्य व हक को समाज के संचालन का आधार बनाये और ईश्वर के सीधे मार्ग में स्वयं की रक्षा करे”
जी हां पवित्र कुरआन और सुन्नत की ओर लोगों का मार्गदर्शन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़िम्मेदारी थी। कूफावासियों ने हज़ारों पत्र लिखकर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को बुलाया जिसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इराक की ओर रवाना हो गये लेकिन शत्रु की सेना ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को कर्बला पहुंचने से पहले उनका रास्ता रोक लिया। उस समय कूफावासियों ने न केवल अपने वचनों पर अमल नहीं किया बल्कि उसके विपरीत व्यवहार किया और बहुत से कूफावासी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद करने के लिए उमर बिन साअद की सेना से जा मिले परंतु इमाम हुसैन अलैहिस्लाम का हृदय ईश्वरीय प्रेम से ओत प्रोत था और वह अच्छी तरह जानते थे कि सच्चा रास्ता वही है जिस पर वे अग्रसर हैं।
जब नवीं मोहर्रम की दोपहर को उमर बिन साद ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के खैमों पर हमले का आदेश दिया और सेना उनके ख़ैमों की तरफ बढने लगी तब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने प्राणप्रिय भाई जनाब अब्बास से कहा कि वह दुश्मन से जाकर कह दें कि एक रात का हमें अवसर दिया जाये ताकि हम नमाज़ पढें और कुरआन की तिलावत करें और ईश्वर से प्रार्थना करें। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आशूरा की रात को एक वाक्य कहा जो महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के प्रति उनके अथाह प्रेम व निष्ठा को दर्शाता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ईश्वर अच्छी तरह जानता है कि मैं हमेशा नमाज़ पढ़ने, कुरआन की तिलावत करने, बहुत दुआ करने और उसकी बारगाह में प्रायश्चित करने को बहुत पसंद करता हूं”
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आशूरा की रात और दिन को लोगों के मार्गदर्शन के लिए विभिन्न आयतों की तिलावत फरमाई। आशूरा की रात को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने पवित्र कुरआन की इस आयत की तिलावत की कि जो लोग काफिर हो गये हैं वे इस बात की कल्पना न करें कि अगर उन्हें अवसर दिया गया है तो उनके फायदे में है! हम उन्हें अवसर देते हैं ताकि वे अपने पापों में वृद्धि करें और उनके लिए अपमानित करने वाला दंड तैयार है। एसा नहीं है कि तुम जैसे हो ईश्वर ने मोमिनों को अपनी हाल पर छोड़ दिया है किन्तु यह कि पवित्र को अपवित्र से अलग करे”
इसी तरह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम आशूरा के दिन जब भी खुत्बा देते थे पवित्र कुरआन की विभिन्न आयतों का सहारा लेते थे ताकि दिग्भ्रमित लोगों व सैनिकों को उनकी ग़लती से अवगत करायें। आशूरा के दिन जब उमरे साअद की सेना के मोहम्मद बिन असअस नाम के एक व्यक्ति ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर कटाक्ष करते हुए कहा कि हे फातेमा के बेटे हुसैन! तुम्हारे अंदर पैग़म्बरे इस्लाम की कौन सी विशेषता व श्रेष्ठता है जो दूसरों में नहीं है? इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उसके उत्तर में सूरे आले इमरान की ३३वीं आयत की तिलावत की कि ईश्वर ने आदम, नूह, आले इब्राहीम और आले इमरान को विश्व वासियों पर श्रेष्ठता प्रदान की है” इस प्रकार उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि मैं हज़रत इब्राहीम की योग्य संतान हूं और ईश्वर ने उन्हें दूसरों पर वरियता दी है। जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने देखा कि शत्रु की सेना पर उनकी नसीहतों का कोई प्रभाव नहीं हो रहा है तो पवित्र कुरआन की इस आयत की तिलावत फरमाई” हे मेरी कौम! अगर मेरी नसीहतें तुम पर भारी हैं तो तुम जो कर सकते हो करो मैंने ईश्वर पर भरोसा किया है अपनी सोचों और अपने पूज्यों की शक्ति एकट्ठा करो उसके बाद तुम पर कोई चीज़ पोशीदा नहीं रहेगी अपने कार्यों के हर आयाम पर सोच लो उसके बाद मेरे जीवन को समाप्त कर दो और एक क्षण का भी मुझे अवसर मत देना!” क्रूर शत्रुओं ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों के साथ भी यही किया और उन्हें तथा उनके वफादार एवं निष्ठावान साथियों को तीन दिन का भूखा प्यासा कर्बला के मरूस्थल में शहीद कर दिया।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन से बहुत प्रेम करते थे उनका यह प्रेम उनके भौतिक जीवन तक सीमित नहीं था बल्कि शहादत के बाद भी जारी था। सल्मा बिन कुहैल कहती हैं” मैंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पवित्र सिर को देखा जो भाले पर इस आयत की तिलावत कर रहा था ईश्वर उनकी बुराई को तुमसे दूर करता है वह देखने व जानने वाला है” इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की नसीहतें, सदाचरण और कथन सबके सबका स्रोत पवित्र कुरआन है। इमाम हुसैन अलैहिस्लाम ने क्षण भर के लिए भी अपमान को स्वीकार नहीं किया और उनका महाआंदोलन प्रतिष्ठा और पवित्र कुरआन पर चलने का सर्वोत्तम उदाहरण है।
आयतुल्लाह अली नेकुनाम के निधन पर आयतुल्ला मकारिम शिराज़ी का शोक संदेश
आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शिराज़ी ने एक संदेश जारी कर आयतुल्लाह अली नेकुनाम के निधन पर शोक व्यक्त किया है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाह श़ेख़ अली नेकुनाम गुलपायगानी के निधन पर आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शिराज़ी ने एक शोक संदेश जारी किया है।
जिसका पाठ कुछ इस प्रकार है:
इन्ना लिल्लाह और इन्ना इलैहे राजेउन
रब्बानी विद्वान, खादिम दीन मुहम्मदी आयतुल्लाह श़ेख़ अली नेकुनाम गुलपायगानी की मृत्यु की खबर सुनकर बहुत दु:ख हुआ।
मृतक ने ईरान के लिए अपार सेवाएँ प्रदान कीं जिनसे लोगों को हमेशा लाभ मिलता रहेगा।
मैं अल्लाह ताला से दुआ करता हूं कि परिवार वालों को सब्र आता करें और मरहूम की मग़फिरत करें और उन्हें जवारे अहलेबैत अ.स. में जगह करार दें।
नासिर मकारिम कुम अलमुकद्देसा