رضوی

رضوی

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने मजलिसों को निशाना बनाकर होने वाले आतंकी हमलों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि तकफीरी आतंकी गुट आईएसआईएस गजनी में हमलों की योजना बना रहा है।

अफगानिस्तान के गजनी प्रांत के एक जानकार सूत्र ने घोषणा की कि तालिबान सरकार के सुरक्षा तंत्र ने इस प्रांत के शियाओं को गजनी प्रांत में मुहर्रम के महीने में शोक समारोहों पर हमला करने के आईएसआईएस के इरादे के बारे में चेतावनी दी है।

इस सूत्र ने बताया कि यह चेतावनी तालिबान सरकार के सुरक्षा तंत्र ने अफगानिस्तान के गजनी प्रांत के शिया उलेमाओं की परिषद के साथ एक बैठक में दोहराई। तालिबान के सुरक्षा तंत्र के प्रमुख के प्रतिनिधि मौलवी "हाशमी" ने अफगानिस्तान के गजनी प्रांत के शिया विद्वानों को सूचित किया कि आईएसआईएस तत्व अफगानिस्तान के शियाओं के खिलाफ आतंकवादी हमले को अंजाम देने के लिए पड़ोसी देशों से इस देश में प्रवेश कर चुके हैं।

यमन के लोगों ने शुक्रवार को मिलियन मार्च निकाला और अपने बयान में कहा कि फिलीस्तीन और गाज़ा के मज़लूमों का समर्थन जारी रहेगा और हमलावरों का मुकाबला करते रहेंगे।

यमन के लोगों ने शुक्रवार को मिलियन मार्च निकाला और अपने बयान में कहा कि फिलीस्तीन और गाज़ा के मज़लूमों का समर्थन जारी रहेगा और हमलावरों का मुकाबला करते रहेंगे।

अलआलम के अनुसार यमनी लोगों के लाखों मार्च के बयान में, गाजा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी लोगों और सेनानियों और गाजा के खानाबदोशों की पौराणिक स्थिरता की प्रशंसा की गई जिन्होंने ज़ायोनी शत्रु की साजिशों को विफल कर दिया है।

फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को संबोधित उपरोक्त बयान में कहा गया है फ़िलिस्तीनी राष्ट्र और उसके प्रिय योद्धाओं को आश्वस्त किया जाना चाहिए कि वे अकेले नहीं हैं क्योंकि हम उनके साथ हैं और उनके पक्ष में हैं और दुश्मन की सभी साजिशों को विफल कर देंगे और फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में सैन्य अभियान जारी रखेंगे।

इस वक्तव्य में अमेरिका, इंग्लैंड, इटली, जर्मनी, स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, हॉलैंड, जापान, ऑस्ट्रेलिया, लैटिन अमेरिका और दुनिया के अन्य देशों में जारी छात्र आंदोलनों के महत्व पर जोर दिया गया है।

यमन के मिलियन मार्च के बयान में कहा गया है कि हम मग़रेब के लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने अपनी वफादारी, प्रामाणिकता, मानवता और नैतिकता साबित की और फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में मार्च किया हैं।

 

 

 

 

 

 

भारत ने जटिल हो चुके फिलिस्तीन मसले के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अपनी ऐतिहासिक और अटूट प्रतिबद्धता जताई है। उसने बातचीत के आधार पर दो देश समाधान का समर्थन किया जिससे इस्राईल के साथ शांति से फिलिस्तीन के संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य देश की स्थापना हो सके।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि राजदूत आर रवींद्र ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के एक सम्मेलन में यह बयान दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा बातचीत के आधार पर द्वि-राष्ट्र समाधान का समर्थन किया है, जिससे फिलिस्तीन के एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य राष्ट्र की स्थापना हो सके। उन्होंने फिलिस्तीन के शांतिपूर्ण समाधान के लिए भारत की ऐतिहासिक और अटूट प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि भारत ने ग़ज़्ज़ा में चल रहे जनसंहार एक सैद्धांतिक रुख अपनाया है और महिलाओं तथा बच्चों समेत नागरिकों की मौत की कड़ी निंदा की है।

 

हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास की शहादत करबला के इतिहास में होने वाली मुसीबतों मे से बहुत ही महान और गंभीर संकट माना जाता है।

हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास की व्यक्तित्व और शहादत के बारे मे शेख़ सदूक़, शेख मुफीद, अबुल्फ़रज इस्फ़हानी तबरसी सैय्यद इब्ने ताऊस, अल्लामा मज़लिसी और शेख अब्बास क़ुम्मी, जैसे विद्वानों ने इस प्रकार बयान किया है कि एक दिन अमीरूलमोमेनीन अली ने अपने भाई अक़ील बिन अबी तालिब से (जो अंसाब अरब को खूब जानते थे) कहा

ارید منک ان تخطب لی امراءۃ من ذوی البیوت و الحسب و النسب و الشجاعۃ " "

मैं चाहता हूँ कि तुम मेरा विवाह ऐसी स्त्री से कराओ कि जो परिवार हस्ब, नसब, और बहादुरी मैं पूरे अरब पर गर्व करता हो.

"لکی اصیب منھا ولداً "

ताकि एक ऐसा बच्चा जन्म ले

 " یکون شجاعاً عضداً "

जो शुजा और बहादुर हो

" ینصر ولدی الحسین لیواسیہ لنفسہ فی طفّ کربلا ",

ताकि जब मेरा लाल हुसैन करबला की धरती पर नरग़ए आदा में घिरा हो तो वो अपनी जान निछावर कर उसकी मदद करे, हज़रत अक़ील ने फ़ातिमा कलाबया से जिनका उपनाम उम्मुलबनीन था अमीरुल मोमेनीन का विवाह करा दिया उन से आपके चार पुत्रो क़मरे बनी हाशिम हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास, अब्दुल्ला, जाफर, उस्मान ने जन्म लिया जब हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास ने देखा कि सरकार इमाम आली मक़ान के ज्यादातर बावफ़ा असहाब शहीद हो गए हैं आप ने अपने भाइयों से कहा,

 " یا بنی امّی  تقدموا "

ऐ मेरे भाइ बन्धुऔ! आगे बढ़ो! क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम लोग ख़ुदा, अल्लाह, के लिए यहाँ आए हो तुम्हारे तो कोई औलाद नहीं है तुम लोग अभी जवान हो

" تقدّموا بنفسی انتم "

मेरी जान तुम पर कुर्बान हो उठो!

" فحامواعن سیّدکم حتّیٰ تموتو دونہ "

आगे बढ़ो! और सैयद व सरदार की रक्षा करो, और उनके सामने अपनी जान कुर्बान कर दो यह सुन कर वह सबसे बाकमाल शौक मैदान में गए और हुसैनी मार्ग में शहीद हो गए।

विद्वानों ने हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास के बारे में लिखा है,

" کان فاضلاً ،عالماً ،عابداً،زاھداً، فقیھاًٍٍ تقیّاًًٍ "

आप बाफज़ीलत,ज्ञानी, आबिद, ज़ाहिद, फ़क़ीह और परवर दिगार से अधिक भय रखने वाले थे।

आपके उपनामो में सबसे प्रसिद्ध उपनाम क़मरे बनी हाशिम के बारे में विद्वानों का बयान है कि क्योंकि आपके पुर प्रकाश और आध्यात्मिक चेहरा मुबारक ने आसमान निर्देश के तीन आफ़्ताबों इमाम अली, इमाम हसन, और इमाम हुसैन से कस्बे ज़िया की थी इसलिए आपको क़मर बनी हाशिम कहते हैं।

इसके अलावा आपके अलकाब मे से बाबुलहवायज एक उपनाम है क्योंकि जो व्यक्ति किसी मुश्किल में गिरफ्तार हो और अल्लाह की बारगाह में आपके तवस्सुल से दुआ करे तो उसकी सारी कठिनाईया आसान हो जाता है, इसके अलावा शहीद, अब्दुस्सालेह , सक़्क़ा, अलमुसतजार, क़ाएदूल जैश, अलहामी, अलमुस्तफ़ा, ज़ैग़म भी आप ही के उपनाम हैं।

शेख़ सदूक़ अपनी किताब अलख़ेसाल में इमामे ज़ैनुलआबेदीन का यह क़ौल नक़्ल करते हैं:

" رحم اللہ عمّی العباس فلقد  آثر و ابلیٰ و فدیٰ اخاہ بنفسہ "

ख़ुदा मेरे चचा अब्बास पर अपनी रहमत नाज़िल करे उन्होंने राह खुदा में अपनी जान को निसार करके, महान युद्ध प्रदर्शन करके अपने भाई पर फिदा हो गए

" حتّیٰ قطعت یداہ "

यहाँ तक कि उनके दोनों बाज़ू अल्लाह की राह में कट गए

" فابدلہ اللہ عزّوجل بھما جناحین "

 अल्लाह ने उन्हें हाथों के बदले दो पंख अता किये हैं

       کۃ فی الجنۃ "

जिनके ज़रिए वह अल्लाह के मुकर्रब स्वर्गदूतों के साथ स्वर्ग में उड़ान करते हैं

इसके बाद हज़रत फ़रमाते हैं:

 "  انّ للعباس عند اللہ  تبارک و تعالی منزلۃ  یغبطہ بھا جمیع الشھداء یوم القیامۃ "

हज़रत अब्बास का अल्लाह के नज़दीक इतना बुलंद स्थान है कि क़यामत के दिन जिस पर सभी शोहदा ए ईर्ष्या करेंगे।

सादिक़ आले मुहम्मद इरशाद फ़रमाते हैं:

"کان عمّنا العباس نافذ البصیرۃ ،صلب الایمان ،جاھد مع اخیہ الحسین و ابلی بلاء حسناً و مضی شھیداً،"

हमारे चाचा अब्बास बड़े साहब दूरदर्शी और मजबूत और स्थिर विश्वास वाले थे, अपने भाई के साथ जिहाद किया और दुश्मनों के साथ विशाल युद्ध और अल्लाह की राह में शहीद हो गए

इन सभी फ़ज़ाइल और मनाक़िब के मद्देनजर शेख मुफ़ीद कहते हैं: जब उम्रे सअद ने नवीं मुहर्रम की शाम को आम हमले का आदेश दिया इमाम हुसैन करीब शिविर पर सिर रखे महवे ख़ाब थे हज़रत ज़ैनबे कुबरा ने गुहार लगाई और भाई के पास गई और कहा: मेरे माजाए! शत्रुओ की आवाज़ें नहीं सुन रहे हो ऐसा लगता है जैसे हमले के लिए हमारी ओर आ रहे हैं।

सरकारे सैय्यदुश्शोहदा ने सिर को बुलंद किया एवं कहा मेरी बहन! मैंने अभी अभी नाना रसूल अल्लाह को सपने में देखा है, वह मुझसे कह रहे थे कि मेरे लाल हुसैन तुम बहुत जल्दी हमारे पास आने वाले हो हज़रत ज़ैनब ने अपना सिर पीट लिया और रोने लगीं इमामे आली मक़ाम ने कहा: मेरी बहन! चुप हो जाओ और गिरया न करो!

क़मर बनी हाशिम ने कहा आक़ा! दुश्मन का लशकर हमारी ओर बढ़ रहा है हज़रत अपनी जगह से उठे और कहा

 " عباس بنفسی انت یااخی " 

मेरे भाई अब्बास में तुम पर कुर्बान जाऊं तुम उनके पास जाओ अगर हो सके तो उन्हें रोक दो क्योंकि हम आज रात अपने प्रभु की इबादत करना चाहते हैं

" لعلنا نصلی لربنا اللیلۃ و ندعوہ و نستغفرہ "

आज सारी रात हम नमाज़, इबादत और इस्तिग़फ़ार में रहने चाहते हैं

" فھو یعلم انّی  قد احب الصلاۃ لہ "

 मेरा खुदा खूब जानता है मैं उसकी जाति के लिए नमाज़ का प्रेमी हूँ

 सरकारे सैय्यदुश्शोहदा इमाम हुसैन के इस फरमान

" بنفسی انت " 

कि मेरी जान तुम्हारे ऊपर बलिदान जाए, से हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास के मक़ाम को कुछ हद तक समझने में सहायता मिल सकती है

हज़रत अब्बास के मामो जो इबने ज़्याद के हाशिए नशीनों से था इस विचार के साथ कि अपने भानजों की सेवा कर सके उनके लिए सुरक्षा पत्र लिखवा कर दूत के हाथ करबला भेजा हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास दूत से कहा जा और उसे हमारा यह संदेश दे कि हमारे लिए अल्लाह की सुरक्षा पर्याप्त है हमें तुझ जैसे व्यक्ति की सुरक्षा की जरूरत नहीं है जब रोज़े आशूर शिम्र ज़िल जोशन ने खयाम इमाम हुसैन के पास आकर हज़रत अब्बास और उनके भाइयों को आवाज़ दी और हम बात होना चाहा हज़रत अब्बास के भाइयों ने कोई जवाब नहीं दिया इमाम हुसैन ने फरमाया: जॉन ब्रदर अब्बास यह माना शिम्र एक फ़ासिक़ इंसान है लेकिन उसकी बात का कोई जवाब तो दो! इसलिए फरमाने इमाम सुनकर शिविर से बाहर आए कहा शिम्र तू हम से क्या चाहता है? उसने उत्तर दिया अब्बास तुम और तुम्हारे भाई इब्ने ज़्याद की सुरक्षा में हैं और लश्कर मे से किसी को तुमसे कोई सरोकार नहीं है यह सुनकर आप और आपके भाइयों ने जवाब दिया: ख़ुदा वन्दे आलम तुझ पर और तेरी व्यवस्था पर लानत करे! तू हमारे लिए तो सुरक्षा का पत्र लाया है जबकि पुत्रे रसूल को कोई सुरक्षा देने के लिए तैयार नहीं है।

बिहारुल अनवार और दूसरी किताबों में जिन का हम ने हवाला दिया बयान हुआ है कि जब हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास ने इमामे आली मक़ाम गरीबी और तनहाई को देखा तो न रहा गया खिदमते इमाम में आए और कहा:

 " یا اخی ھل من رخصۃ "

ए मेरे भाई क्या मुझे मैदान में जाने की अनुमति मिल सकती है?

" فبکی الحسین بکاءً شدیداً "

इमाम भाई से जाने का नाम सुनकर ज़ारो क़तार रोने लगे

" ثمّ قال یااخی انت  صاحب لوائی "

फिर उसके बाद कहा अब्बास मैं तुम्हें कैसे अनुमति दूँ तुम तो मेरे लश्कर के अलमबरदार हो

" و اذا مضیت تفرق عسکری "

अगर तुम चले गए तो मेरे लश्कर का शीराज़ा बिखर जाएगा फिर उसके बाद कहा अब्बास

" فاطلب لھؤلاء الاطفال قلیلاً من الماء "

अगर हो सके तो इन प्यासे बच्चों के लिए पानी का कोई प्रबन्ध कर दो! इसके बाद क़मर बनी हाशिम खेमों से चले और लश्करे शाम के सामने पहुँचे आपने लश्कर को नसीहत और लोगों को अल्लाह के अज़ाब से डराया लेकिन कलुषित मनुष्य के ऊपर कोई असर न हुआ

" فرجع الی اخیہ "

इसके बाद इमाम हुसैन के पास लौटे

" فسمع الاطفال ینادون العطش  ،العطش "

आपने बच्चों की अलअतश अलअतश की आवाज़ें सुनी घोड़े पर सवार हुए हाथ में भाला संभाला, मशक को कंधे पर लटकाया और लश्कर दुश्मन पर एक जोरदार हमला किया और 80 यज़ीदयों को वारीद नरक किया अपने आप को फरात तक पहुंचाया आपने  बड़ी जाफिशानी और जवां मर्दी करिश्मा कर दिखाया

 " فلما اراد ان یشرب غرفۃ من الماء " 

और जैसे ही चुल्लू से पानी पीने के लिए उठाया

 " ذکر عطش الحسین و اھل بیتہ "

इमाम हुसैन और उनके अहले बैत की प्यास याद आ गई

 " و قال واللہ لااشربہ "

और कहा खुदा सौगंध किसी प्रकार भी अब मै यह पानी नहीं पी सकता

" واخی الحسین و عیالہ و اطفالہ عطاشا" 

क्योंकि मेरे मौला और उनके परिवार और अयाल पियासे है

" لاکان ذلک ابدا"

यह कभी संभव नहीं कि पानी पी लूँ, मशक को पानी से भरा और अपने दाहिने कंधे पर रखा और खेमों की तरफ चल दिए लेकिन दुश्मनों ने उनको अपने चारं ओर से घेर लिया और हर तरफ से तीरों की बारिश होने लगी।

उलमा ने लिखा है कि आपकी कृह पीढ़ी का सीही (एक जानवर है कि जिस के पीछे कांटे होते है) की तरह हो गई थी, ज़ैन बिन वरक़ा और हकीम बिन तूफ़ेल ने एक खजूर के पेड़ के पीछे से छुपकर आपके दाहिने बाजू पर हमला कर दिया जिस के कारण आप का दाहना दल जुदा हो गया आपने बड़ी तेजी से तलवार को बाएं हाथ में ले लिया और मशक को बाएं कंधेपर लटका लिया और ये अशार पढ़ना शुरू किए:

 “واللہ ان قطعتموا یمینی  انّی احامی ابداً عن دینی

ख़ुदा की क़सम हालांकि तुमने मेरा दाहिने हाथ काट दिया है, फिर भी मैं हमेशा अपने धर्म की रक्षा करता रहूंगा

“عن امام صادق  الیقین نجل النبی الطاھر الامین

और अपने इमाम जो सादिक़ है उनकी भी रक्षा करता रहूंगा जो ताहिर और अमीन नबी की औलाद है।

इस तरह हमले पर हमला करते रहे जब तक कि थकान से चूर चूर हो गए नोफिल अज़रकी और हकीम बिन तूफ़ेल ने क्षुद्र स्थान से हमला किया और आपका बाया बाज़ू बदन से अलग हो गया उसके बाद हज़रत ने यह शेर जबान पर जारी किया

یانفسی لا تخشی من الکفار و ابشری  برحمۃ الجبّار

ऐ मेरे नफ्स इन कुफ़्फ़ार और मशरकीन से ना डर में तुझे रहमते ख़ुदाए जबार की बशारत देता हूँ

लेकिन आप इस हाल में भी बहुत खुश थे क्योंकि अभी भी खेमों में पानी पहुचा सकते थे और अपने हाथों के कटने से ज़रा भी मलूल ना थे अचानक एक तीर आया और मशक में लग गया पानी बहने लगा इसी मौक़े पर एक और तीर आया जो आपके सीने में दर आया और दूसरी तरफ से एक गुर्ज़े आहनी आपके अंतर अक़दस पर मारा जिससे आप घोड़े पर संभल न सके ज़मीन पर तशरीफ़ लाये

" صاح الی اخیہ الحسین ادرکنی " 

अपने भाई हुसैन को मदद के लिए पुकारा यह पहली बार था कि आप ने हज़रत को भाई कहकर पुकारा मौला ने जल्दी से अपने आप को अब्बास तक पहुंचाया, अब्बास के कटे हुए बाजू, अंतर अक़दस पर घाव, और टुकड़े टुकड़े शरीर को देखा गुहार बुलंद की

 " الآن انکسر ظھری "

मेरे भाई तेरे जाने से मेरी कमर टूट गई

 " وقلت حیلتی "

मेरा चाराए कार कम हो गया,

 " وانقطع رجائی " 

मेरी तमन्नाए दम तोड़ गईं,

 " وشمت بی عدّوی " 

तेरे मरने से दुश्मन मुझे ताने दे रहे हैं

" والکمد قاتلی " 

तेरा गम मुझे सूर्यास्त तक मार डालेगा, इमाम आली मक़ाम के आते ही दुश्मन भागने लगे आपने कहा

 این تفرون َ

 "ऐ खुदा के शत्रुओ! कहाँ भाग रहे हो? तुमने मेरे भाई की हत्या कर डाली,

" این تفرون ؟

 "कहाँ भाग रहे हो?

" و قد فتتم عضدی "

तुमने मेरे शक्ति दलों को खत्म कर डाला

चूंकि! हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास का शरीर टुकड़े हो गया था जिस के कारण शरीर को उठाना कठिन था, इसलिए हुसैन ने खेमों की तरफ जाने का क़्सद किया घोड़े पर सवार होना चाहा लेकिन सवार न हो  सके जैसे शरीर की सभी शक्ति चली गई हो आपने बा मुश्किल घोड़े की लगाम को पकड़ा और खेमों की तरफ चल दिए।

जब महिलाओं और बच्चों ने देखा कि इमाम मज़लूम खेमों की तरफ आ रहे हैं सबसे पहले सकीना बाबा के पास आई घोड़े की लगाम को पिता से लिया और कहा

" ھل لک علم بعمی العباس " 

बाबा मेरे चाचा अब्बास की क्या खबर है? उन्होंने मुझसे पानी लाने का वादा किया था और मेरे चाचा कभी वादा खिलाफी नहीं की, बाबा! क्या उन्होंने खुद पानी पी लिया? इमाम ने बेटी की बातें सुन कर रोना शुरू कर दिया और कहा: मेरी लाडली तेरे चाचा शहीद कर दिए गए; जैसे ही ज़ैनब ने भाई की शहादत की खबर सुनी रोने लगी और कहा

" وا اخاہ ،واعباساہ،واقلۃ ناصراہ،واضیعتاہ من بعد ک "

ए मेरे भाई, ए मेरे अब्बास, ऐ बेयारो सहायक, तेरे मरने से हम अपमानित हो गए उसके बाद हुसैन भाई के पास पहुँचे

" اخذ الحسین راسہ "

हुसैन ने अब्बास के सिर को उठाया

" ووضعہ فی حجرہ " 

और अपनी गोद में रख लिया, और आंखों से खून साफ ​​करने लगे अभी कुछ साँसें बाकी थीं हज़रत को देखकर अब्बास रोने लगे सरकार सैय्यदुश्शोहादा ने रोने का कारण पूछा

 

" مایبکیک یا اباالفضل ؟"

 अब्बास रोने का कारण क्या है? कहा:

اخی یانور عینی و کیف لاابکی

"ए मेरे भाई हे मेरी आँखों के प्रकाश में क्यों न रोउं?

" ومثلک الآن جئتنی و اخذت راسی عن التراب "

आप आए और अंतिम समय में मेरे सिर को धूल से उठाकर अपनी गोद में रख लिया

" فبعد ساعۃ من یرفع راسک "

लेकिन मौला कुछ देर बाद जब आप शहीद होंगे आप का सरेअकदस कौन जमीन से उठाएगा? और कौन आप के रूए अक़दस से धूल के ज़र्रों को साफ करेगा? इसके बाद आपकी आत्मा कफस तत्व से उड़ान हो गई।

[1] अलखेसाल, लदूक़, पेज 68, बाबुल इसनैन, हदीस 101

[2] अलइरशाद, भाग 2, पेज 109

3] मक़ातेलुत्तालेबीन, पेज 89

[4] आलामुलवरदी, भाग 1, पेज 395 और 466

[5] अलमलहूफ अला कतलित्तफूफ़, पेज 170

[6] बिहारुल अनवार, भाग 45, पेज 41, अध्याय 37

[7] मुनताहल आमाल, भाग 1, पेज 279

 

 

रविवार, 14 जुलाई 2024 07:02

माहे मुहर्रम

इमाम हुसैन (अ:स) अपने नाना रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) से उम्मत द्वारा किये गए ज़ुल्म को ब्यान करते हुए कहते हैं :

नाना आपके बाद आपकी उम्मत ने माँ फातिमा (स:अ) पर इतना ज़ुल्म ढाया की मेरा भाई उनके कोख में ही मर गया, मेरी माँ और आपकी बेटी पर जलता हुआ दरवाज़ा गिराया गया और उन्हें मार दिया गया! नाना आपकी उम्मत ने बाबा अली (अ:स) को मस्जिद में नमाज़ के सजदे में क़त्ल किया! मेरे भाई हसन (अ:स) को ज़हर देकर मार दिया गया नाना! उसके जनाज़े पर तीरों की बारिश की गयी, फिर भी मैं खामोश रहा! ऐ नाना, मैंने अल्लाह के दीन को आप से किये गए वादे के अनुसार कर्बला के मैदान में अपने तमाम बच्चों, साथियों और अंसारों की क़ुर्बानी देकर बचा लिया! नाना, मेरे 6 महीने के असग़र को तीन दिन की प्यास के बाद तीन फल का तीर मिला ! मेरा बेटा अकबर, जो आप का हमशक्ल था, उसके सीने में ऐसा नैज़ा मारा गया की उसका फल उसके कलेजे में ही टूट गया ! मेरी बच्ची सकीना को तमाचे मार-मार कर इस तरह से उसके कानो से बालियाँ खींची गयी के उसके कान के लौ कट गए ! ऐ नाना,बाबा की दुआओं की तमन्ना मेरा भैय्या अब्बास, जो हमारे कबीले के चमकते चाँद की तरह था, उसको इतने टुकड़ों में काटा गया की उसकी लाश को खैमा तक नहीं लाया जा सका ! ऐ नाना, भाई हसन का बेटा क़ासिम, इस तरह से घोड़ों की टापों से रोंदा गया की उसके जिस्म का एक एक टुकड़ा मक़तल में फैल गया! नाना, आप की उम्मत ने मुझे भी ना छोड़ा! मुझे प्यासा रख़ा नाना ! अंसार, अज़ीज़ और बेटों के शहादत के बाद मै तेरे दीन को बचाने की ख़ातिर कर्बला के उस तपते हुए रेगिस्तान में गया, जहाँ मैंने अकबर, असग़र, अब्बास वा कासिम को भेजा था ! नाना, तेरी उम्मत, दादा अबू तालिब को काफिर कहती थी, लेकिन कर्बला के मैदान में अल्लाह का दीन बचाने के लिए कटी औलादे अबुतालिब ही ना ! मैंने अल्लाह का, आप का और बाबा अली-मुर्तज़ा का नाम लेकर उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वोह न माने! जब निदा के बाद मैंने अपनी तलवार म्यान में रखी तो पहले लोगों में मुझ पर पत्थर मारे, फिर नैज़े, फिर तलवारें, नाना मुझे जब यह ज़ालिम मार रहे थे तो मैंने आपको, माँ फातिमा, बाबा अली, और भाई हसन को बहुत याद कर रहा था! नाना, सच तो यह है की अम्मा बहुत याद आयीं! नाना मुझे इतने तीर लगे थे की जब मै घोड़े से ज़मीन पर ग़िर रहा था, मै भी भाई अब्बास की तरह हाथ के बल ना आ सका. बल्कि तीर इतने थे नाना की मै ज़मीन पर ही नहीं आ सका ! जालिमों ने मेरी उंगली काट कर अंगूठी उतार ली नाना ! कोई आप का अमामा ले गया कोई पैराहन ले गया ! नाना, जब शिमर ज़िल जौशन मेरा सर काट रहा था, मेरी अम्मा ने बचाने की बहुत कोशिश की थी! प्यास की शिद्दत, कुंद छुरी, उलटी गर्दन, 1900 ज़ख़्म नाना! नाना, मैने अपना सर नोके नैज़ा पर चढ़ा कर तेरे दीन की फ़तह का एलान किया! नाना ख़ुदा हाफ़िज़, अब मेरी जैनब व उम्मे कुलसूम की चादर का ख्याल तेरे हवाले, मेरे बीमार सैयदे सज्जाद को जलना से बचाना, नाना!

रविवार, 14 जुलाई 2024 07:01

पयामे आशूरा

वाक़ेया ए आशूरा तारीख़े इंसानी में अपनी मिसाल आप है। जिस की याद हर नबी के कलेजे को बरमाती रही और हर दौर में इस वाक़ेया ने लोगों को जिला बख़्शी है। शबे आशूर में इमाम हुसैन अलैहिस सलाम ने माद्दी चिराग़ों को गुल कर के क़यामत तक आने वाली बशरीयत के लिये नूरे ईंमान की शमा रौशन कर दी जिस की रौशनी कभी माँद नही पड़ सकती और इस शमा से फ़ूटने वाली शुआयें वादी ए ज़ुल्म व सितम में तड़पते बिलकते इंसानों की हिदायत करती हैं।

मुसतज़अफ़ और सितमदीदा इंसानों के कलेजे से ख़ौफ़े ज़ुल्म को दूर कर के उन के दिलों को ख़ौफ़े ख़ुदा का घर करती हैं और जब तक इँसान हक़ीक़ी तौर पर ख़ुदा से डरता है तो ख़ुदा का यह ख़ौफ़ उस को ऐसी हरारत बख़्शता है कि जिस के नतीजे में ख़ौफे दुनिया उस के दिल से रख़्ते सफ़र बाँध कर हमेशा हमेशा के लिये वादी ए फ़ना में अपना बसेरा कर लेता है और फिर उस इंसाने मोमिन की निगाह में ज़ुल्म एक रेत की दीवार की हैसियत रखता है जिस की नाबूदी यक़ीनी होती है और वह इंसान फिर किसी ज़ुल्म से नही डरता और आशूरा बढ़ बढ़ कर उस की हौसला अफ़ज़ाई करती है और कहती है कि अगर तुम जवान हो तो अब्बास व अली अकबर और करबला के जवानों से जीने का सबक़ हासिल करो।

अगर ज़ुल्म के लश्कर की तादाद लाखों में हो और तुम अकेले हो तो भी कभी ज़ालिमों की कसीर तादाद से ख़ायफ़ न होना। ख़ुदा वंदे आलम हमेशा कमज़ोर और ज़ईफ़ों का मददगार है और यही वजह है कि ज़ुल्म व ज़ालिमों की कसरत उन की नाबूदी व पशेमानी का सबब बनती है और फ़तह व ज़फ़र ख़ुदा के मुख़लिस बंदों के क़दम चूमा करती है। अगर तुम बूढ़े हो तो लशकरे हुसैनी को एक बूढ़े फ़ौजी के जवान ख़्यालात से दरसे इबरत हासिल करो जिस के ईमान की जवान क़ुव्वत उस के ज़ईफ़, नातवान जिस्म को सहारा दे कर ज़ालिम की क़वी और मुसल्लह अफ़वाज की शिकस्त के लिये मैदाने कारज़ार में ले जा रही है और यह ऐलान कर रही है कि ज़ुल्म कितना कमज़ोर है कि जिस के मुक़ाबले के लिये बूढ़ों में भी यह जुरअत पैदा हो गई है कि बुढ़ापे के लज़रते हुए हाथों से बुनियादे ज़ुल्म व सितम को मुतज़लज़ल करने चले हैं और उन के क़दमों की आहट से क़सरे इसतिबदाद तरज़ा बर अंदाम है और न सिर्फ़ यह कि यहाँ बूढ़ों के अज़्म जवान हैं बल्कि उस से भी बढ़ कर जरा तारीख़े करबला के इख़तेतामिये तक जाईये और देखिये वह बच्चा जिस को चलना नही आता बे बेज़ाअती ए ज़ुल्म व सितम को देख कर अपने ईमान की तवानाई का मुज़ाहिरा करने मैदान में जा रहा है और बच्चे पर तीर चलाना यह ज़ुल्म व सितम के ख़ायफ़ और बुज़दिल होने की दलील है और बच्चे का तीर खा कर हँसना उस की शुजाअत और दिलेरी का सुबूत है और लशकरे ज़ुल्म का रो देना ईमान की कुफ़्र पर फ़तह है और इस तरह से वादा ए इलाही पूरा हो रहा है कि यक़ीनन असली कामयाबी व कामरानी फ़क़त मोमिनीन व मुत्तक़ीन का हक़ है। करबला दुनिया के मज़लूमों से बा बानगें दोहल वादा कर रही है कि तुम ख़ुदा का राह में क़दम रखो तो सही कामयाबी की राह तुम्हारी क़दम बोसी के लिये मुनतज़िर है।

सलातीने ज़मन के ताज तुम्हारी जूतियों को बोसा देने के लिये आज भी क़सरे शाही की ज़ीनत बने हुए हैं। मगर शर्त यह है कि ख़ुदा पर तवक्कुल के साथ राहे ख़ुदा पर गामज़न हो जाओ। करबला हर दौर के इंसानों के लिये चिराग़े हिदायत है वह चाहे कोई भी दौर हो अगर इंसान आज भी अपनी फ़लाह व बहबूदी चाहता है तो उस को चाहिये कि वह करबला के दामन से मुतमस्सिक हो जाये और उस के अम्र व नही पर आमिल हो जाये। फिर दुनिया की कोई ताक़त उस के सबाते क़दम को लग़ज़िश नही दे सकती।

 

 

 

 

तौहीद का अक़ीदा सिर्फ़ मुसलमानों के ज़हन व फ़िक्र पर असर अंदाज़ नही होता बल्कि यह अक़ीदा उसके तमाम हालात शरायत और पहलुओं पर असर डालता है। ख़ुदा कौन है? कैसा है? और उसकी मारेफ़त व शिनाख्त एक मुसलमान की फ़रदी और इज्तेमाई और ज़िन्दगी में उसके मौक़िफ़ इख़्तेयार करने पर क्या असर डालती है? इन तमाम अक़ायद का असर और नक़्श मुसलमान की ज़िन्दगी में मुशाहेदा किया जा सकता है।
हर इंसान पर लाज़िम है कि उस ख़ुदा पर अक़ीदा रखे जो सच्चा है और सच बोलता है अपने दावों की मुख़ालेफ़त नही करता है जिसकी इताअत फ़र्ज़ है और जिसकी नाराज़गी जहन्नमी होने का मुजिब बनती है। हर हाल में इंसान के लिये हाज़िर व नाज़िर है, इंसान का छोटे से छोटा काम भी उसे इल्म व बसीरत से पोशीदा नही है... यह सब अक़ायद जब यक़ीन के साथ जलवा गर होते हैं तो एक इंसान की ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा मुवस्सिर उन्सुर बन जाते हैं। तौहीद की मतलब सिर्फ़ एक नज़रिया और तसव्वुर नही है बल्कि अमली मैदान में इताअत में तौहीद और इबादत में तौहीद भी उसी के जलवे और आसार शुमार होते हैं। इमाम हुसैन (अ) पहले ही से अपने शहादत का इल्म रखते थे और उसके ज़ुज़ियात तक को जानते थे। पैग़म्बर (स) ने भी शहादते हुसैन (अ) की पेशिनगोई की थी लेकिन इस इल्म और पेशिनगोई ने इमाम के इंके़लाबी क़दम में कोई मामूली सा असर भी नही डाला और मैदाने जेहाद व शहादत में क़दम रखने से आपको क़दमों में ज़रा भी सुस्ती और शक व तरदीद ईजाद नही किया बल्कि उसकी वजह से इमाम के शौक़े शहादत में इज़ाफ़ा हुआ, इमाम (अ) उसी ईमान और एतेक़ाद के साथ करबला आये और जिहाद किया और आशिक़ाना अंदाज़ में ख़ुदा के दीदार के लिये आगे बढ़े जैसा कि इमाम से मशहूर अशआर में आया है:

ترکت الخلق طرا فی ھواک و ایتمت العیال لکی اراک
कई मौक़े पर आपके असहाब और रिश्तेदारों ने ख़ैर ख़्वाही और दिलसोज़ी के जज़्बे के तहत आपको करबला और कूफ़े जाने से रोका और कूफ़ियों की बेवफ़ाई और आपके वालिद और बरादर की मजलूमीयत और तंहाई को याद दिलाया। अगरचे यह सब चीज़ें अपनी जगह एक मामूली इंसान के दिल शक व तरदीद ईजाद करने के लिये काफ़ी हैं लेकिन इमाम हुसैन (अ) रौशन अक़ीदा, मोहकम ईमान और अपने अक़दाम व इंतेख़ाब के ख़ुदाई होने के यक़ीन की वजह से नाउम्मीदी और शक पैदा करने वाले अवामिल के मुक़ाबले में खड़े हुए और कज़ाए इलाही और मशीयते परवरदिगार को हर चीज़ पर मुक़द्दम समझते थे, जब इब्ने अब्बास ने आप से दरख़्वास्त की कि इरा़क जाने के बजाए किसी दूसरी जगह जायें और बनी उमय्या से टक्कर न लें तो इमाम हुसैन (अ) ने बनी उमय्या के मक़ासिद और इरादों की जानिब इशारा करते हुए फ़रमाया

انی ماض فی امر رسول اللہ صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم و حیث امرنا و انا الیہ راجعون
और यूँ आपने रसूलल्लाह (स) के फ़रमूदात की पैरवी और ख़ुदा के जवारे रहमत की तरफ़ बाज़गश्त की जानिब अपने मुसम्मम इरादे का इज़हार किया, इस लिये कि आपने रास्ते की हक्क़ानियत का यक़ीन, दुश्मन के बातिल होने का यक़ीन, क़यामत व हिसाब के बरहक़ होने का यक़ीन, मौत के हतमी और ख़ुदा से मुलाक़ात का यक़ीन, इन तमाम चीज़ों के सिलसिले में इमाम और आपके असहाब के दिलों में आला दर्जे का यक़ीन था और यही यक़ीन उनको पायदारी, अमल की क़ैफ़ियत और राहे के इंतेख़ाब में साबित क़दमी की रहनुमाई करता था।
कलेम ए इसतिरजा (इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहे राजेऊन) किसी इंसान के मरने या शहीद होने के मौक़े पर कहने के अलावा इमाम हुसैन (अ) मंतिक़ में कायनात की एक बुलंद हिकमत को याद दिलाने वाला है और वह हिकमत यह है कि कायनात का आग़ाज़ व अँजाम सब ख़ुदा की तरफ़ से है। आपने करबला पहुचने तक बारहा इस कलेमे को दोहराया ताकि यह अक़ीदा इरादों और अमल में सम्त व जहत देने का सबब बने।
आपने मक़ामे सालबिया पर मुस्लिम और हानी की खबरे शहादत सुनने के बाद मुकर्रर इन कलेमात को दोहराया और फिर उसी मक़ाम पर ख़्वाब देखा कि एक सवार यह कह रहा है कि यह कारवान तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और मौत भी तेज़ी के साथ उनकी तरफ़ बढ़ रही है, जब आप बेदार हुए तो ख़्वाब का माजरा अली अकबर को सुनाया तो उन्होने आप से पूछा वालिदे गिरामी क्या हम लोग हक़ पर नही हैं? आपने जवाब दिया क़सम उस ख़ुदा की जिसकी तरफ़ सबकी बाज़गश्त है हाँ हम हक़ पर हैं फिर अली अकबर ने कहा: तब इस हालत में मौत से क्या डरना है? आपने भी अपने बेटे के हक़ में दुआ की। (1)
तूले सफ़र में ख़ुदा की तरफ़ बाज़गश्त के अक़ीदे को बार बार बयान करने का मक़सद यह था कि अपने हमराह असहाब और अहले ख़ाना को एक बड़ी क़ुरबानी व फ़िदाकारी के लिये तैयार करें, इस लिये कि पाक व रौशन अक़ायद के बग़ैर एक मुजाहिद हक़ के देफ़ाअ में आख़िर तक साबित क़दम और पायदार नही रह सकता है।
करबला वालों को अपनी राह और अपने हदफ़ की भी शिनाख़्त थी और इस बात का भी यक़ीन था कि इस मरहले में जिहाद व शहादत उनका वज़ीफ़ा है और यही इस्लाम के नफ़अ में है उनको ख़ुदा और आख़िरत का भी यक़ीन था और यही यक़ीन उनको एक ऐसे मैदान की तरफ़ ले जा रहा था जहाँ उनको जान देनी थी और क़ुरबान होना था जब बिन अब्दुल्लाह दूसरी मरतबा मैदाने करबला की तरफ़ निकले तो अपने रज्ज़ में अपना तआरुफ़ कराया कि मैं ख़ुदा पर ईमान लाने वाला और उस पर यक़ीन रखने वाला हूँ। (2)

मदद और नुसरत में तौहीद और फक़त ख़ुदा पर ऐतेमाद करना, अक़ीदे के अमल पर तासीर का एक नमूना है और इमाम (अ) की तंहा तकियागाह ज़ाते किर्दगार थी न लोगों के ख़ुतूत, न उनकी हिमायत का ऐलान और न उनकी तरफ़ आपके हक़ में दिये जाने वाले नारे, जब सिपाहे हुर ने आपके काफ़ले का रास्ता रोका तो आपने एक ख़ुतबे के ज़िम्न में अपने क़याम, यज़ीद की बैअत से इंकार, कूफ़ियों के ख़ुतूत का ज़िक्र किया और आख़िर में गिला करते हुए फ़रमाया मेरी तकिया गाह ख़ुदा है वह मुझे तुम लोगों से बेनियाज़ करता है। सयुग़निल्लाहो अनकुम (3) आगे चलते हुए जब अब्दुल्लाह मशरिकी से मुलाक़ात की और उसने कूफ़े के हालात बयान करते हुए फ़रमाया कि लोग आपके ख़िलाफ़ जंग करने के लिये जमा हुए हैं तो आपने जवाब में फ़रमाया: हसबियलल्लाहो व नेअमल वकील (4)
आशूर की सुबह जब सिपाहे यज़ीद ने इमाम (अ) के ख़ैमों की तरफ़ हमला शुरु किया तो उस वक़्त भी आप के हाथ आसमान की तरफ़ बुलंद थे और ख़ुदा से मुनाजात करते हुए फ़रमा रहे थे: ख़ुदाया, हर सख़्ती और मुश्किल में मेरी उम्मीद, मेरी तकिया गाह तू ही है, ख़ुदाया, जो भी हादेसा मेरे साथ पेश आता है उसमें मेरा सहारा तू ही होता है। ख़ुदाया, कितनी सख़्तियों और मुश्किलात में तेरी दरगाह की तरफ़ रुजू किया और तेरी तरफ़ हाथ बुलंद किये तो तूने उन मुश्किलात को दूर किया। (5)

इमाम (अ) की यह हालत और यह जज़्बा आपके क़यामत और नुसरते इलाही पर दिली ऐतेक़ाद का ज़ाहिरी जलवा है और साथ ही दुआ व तलब में तौहीद के मफ़हूम को समझाता है।
दीनी तालीमात का असली हदफ़ भी लोगों को ख़ुदा से नज़दीक करता है चुँनाचे यह मतलब शोहदा ए करबला के ज़ियारत नामों में ख़ास कर ज़ियारते इमाम हुसैन (अ) में भी बयान हुआ है। अगर ज़ियारत के आदाब को देखा जाये तो उनका फ़लसफ़ा भी ख़ुदा का तक़र्रुब ही है जो कि ऐने तौहीद है इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत में ख़ुदा से मुताख़ब हो के हम यूँ कहते हैं कि ख़ुदाया, कोई इंसान किसी मख़लूक़ की नेमतों और हदाया से बहरामद होने के लिये आमादा होता है और वसायल तलाश करता है लेकिन ख़ुदाया, मेरी आमादगी और मेरा सफ़र तेरे लिये और तेरे वली की ज़ियारत के लिये हैं और इस ज़ियारत के ज़रिये तेरी क़ुरबत चाहता हूँ और ईनाम व हदिये की उम्मीद सिर्फ़ तुझ से रखता हूँ। (6)
और इसी ज़ियारत के आख़िर में ज़ियारत पढ़ने वाला कहता है ख़ुदाया, सिर्फ़ तू ही मेरा मक़सूदे सफ़र है और सिर्फ़ जो कुछ तेरे पास है उसको चाहता हूँ। ''फ़ इलैका फ़क़दतो व मा इनदका अरदतो''
यह सब चीज़े शिया अक़ायद के तौहीदी पहलू का पता देने वाली हैं जिनकी बेना पर मासूमीन (अ) के रौज़ों और अवलिया ए ख़ुदा की ज़ियारत को ख़ुदा और ख़ालिस तौहीद तक पहुचने के लिये एक वसीला और रास्ता क़रार दिया गया है और हुक्मे ख़ुदा की बेना पर उन की याद मनाने की ताकीद है।

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हवाले
(1) बिहारुल अनवार जिल्द 44 पेज 367

(2) बिहारुल अनवार जिल्द 45 पेज 17, मनाक़िब जिल्द 4 पेज 101

(3) मौसूअ ए कलेमाते इमाम हुसैन (अ) पेज 377

(4) मौसूअ ए कलेमाते इमाम हुसैन (अ) पेज 378

(5) बिहारुल अनवार जिल्द 45 पेज 4

(6) तहज़ीबुल अहकाम शेख़ तूसी जिल्द 6 पेज 62

रविवार, 14 जुलाई 2024 06:58

इंतेख़ाबे शहादत

वाक़ेया ए करबला रज़्म व बज़्म, सोज़ व गुदाज़ के तास्सुरात का मजमूआ नही, बल्कि इंसानी कमालात के जितने पहलु हो सकते हैं और नफ़सानी इम्तियाज़ात के जो भी असरार मुमकिन हैं उन सब का ख़ज़ीनादार है, सानेहा ए करबला तारीख़ का एक दिल ख़राश वाक़ेया ही नही, ज़ुल्म व बरबरियत और ज़िन्दगी की एक ख़ूँ चकाँ दास्तान ही नही, फ़रमाने शाही में दर्ज नंगी ख़्वाहिशों की रुदादे फ़ितना ही नही बल्कि हुर्रियते फ़िक्र, निफ़ाज़े अदल और इंसान के बुनियादी हुक़ूक़ की बहाली की एक अज़ीमुश शान तहरीक भी है।

वाक़ेया ए करबला बाक़ी तारीख़ी वक़ायए में एक मुम्ताज़ मक़ाम और जुदागाना हैसियत रखता है चुनाँचे वह अपने मुनफ़रिद वसायल व ज़रायेअ और बुलंद व वाज़ेह अहदाफ़ व मकासिद ले कर तारीख़ की पेशानी पर चमकते हुए सितारे की मानिन्द नुमायाँ हुआ और ज़ुल्म व बरबरियत, ला क़ानूनियत, जाहिलियत के अफ़कार व नज़रियात, मुलूकियत के तारीक और इस्लाम दुश्मन अनासिर के बनाए ज़ुल्मत कदों में रौशन चिराग़ बन कर ज़हूर पज़ीर हुआ।

जब इस्लाम का चिराग़ ख़ामोंश किया जा रहा था और बनामे इस्लाम ख़िलाफ़े दीन व शरीयत अमल अंजाम दिये जा रहे थे, ज़लालत की तारीकी ने जहान को अपनी आग़ोश में समेट लिया था इंसान के बुनियादी हुक़ूक़ की ख़िलाफ़ वर्ज़ी आमेराना सोच को जन्म दे चुकी थी आमिरे मुतलक़ की ज़बान से निकला हुआ हर लफ़्ज़ क़ानून का दर्जा इख़्तियार कर चुका था और गुलशने हस्ती से सर उठा कर चलने का दिल नवाज़ मौसम रुख़सत हो चुका था, सिर्फ़ इस्लाम का नाम बाक़ी था, वह भी ऐसा इस्लाम कि जिस का रहबर यज़ीदे पलीद था, लोग कुफ़्र को ईमान, ज़ुल्म को अद्ल, झूट को सदाक़त, मयनोशी व ज़ेनाकारी को तक़वा व फ़ज़ीलत, फ़रेबकारी को इफ़्तेख़ार समझते थे और हक़ को उस के हमराह जानते थे कि जो क़ुदरत के साथ शमशीर ब कफ़ हो, अपने और बेगाने यही तसव्वुर करते थे कि यज़ीद ख़लीफ़ ए पैग़म्बर, हाकिमे इस्लाम और मुजरी ए अहकामे क़ुरआन है चूँ कि उस के क़ब्ज़ा ए क़ुदरत में हुकूमत और ताक़त है और हमेशा ऐसे ही रहेगी क्योकि यह हुकूमते इस्लामी है जिस का शेयार यह है कि व ला ख़बरुन जाआ व ला वहीयुन नज़ल।

गोया नक़्शे इस्लाम हमेशा के लिये सफ़ह ए हस्ती से मिटने वाला था और इंसानियत के लिये कोई उम्मीद बाक़ी न रह गई थी हर तरफ़ तारीकी अपने गेसू फ़ैलाए हुए थी।

ऐसे वक़्त में ख़ुरशीदे शहादत ने तूलू हो कर शहादत की शाहराह पर अज़्म व जुरअत के ऐसे बहत्तर चिराग़ रौशन किये कि जो महकूम अक़वाम, मज़लूम तबक़ात और इस्तेमार के ख़िलाफ़ अपनी आज़ादी की जंग लड़ने वाले हुर्रियत पसंदों के लिये मीनार ए नूर बन गये। इमाम हुसैन (अ) ने अपनी शहादत के ज़रिये ऐलान कर दिया तारीकी नही है, इस्लाम सिर्फ़ ताक़त का नाम नही है, हक़ व हक़ीक़त आशकार हो गई और हुज्जत ख़ल्क़ पर तमाम हो गई।

जब इमाम हुसैन (अ) ने यह देखा कि इस्लाम के पाकीज़ा व आला तरीन निज़ाम की हिफ़ाज़त की ज़मानत फ़राहम करने का सिर्फ़ एक ही रास्ता है तो आप ने दिल व जान से शहादत को क़बूल फ़रमाया क्योकि उसूल व अक़ायद तमाम चीज़ों से बरतर हैं हर शय उन पर क़ुर्बान की जा सकती है मगर उन्हे किसी शय पर क़ुर्बान नही किया जा सकता।

इमाम हुसैन (अ) ने शहादत को इस लिये इख़्तियार किया क्योकि शहादत में वह राज़ मुज़मर थे कि जो ज़ाहिरी फ़तहयाबी में नही थे, फ़तह के अंदर दरख़्शंदी ए शहादत नही थी, फ़तह गौहर को संग से जुदा नही कर सकती थी, शहादत दिल में जगह बनाती है जब कि फ़तह दिल पर असर करती भी है और कभी नही भी करती, शहादत दिलों को तसख़ीर करती है फ़तहयाबी पैकर को, शहादत ईमान को दिल में डालती है, शहादत से हिम्मत व जुरअत लाती है।

शहादत मुक़द्दस तरीन शय है उस को आशकारा होना चाहिये, अगर शहादत अलनी व आशकारा न हो तो हलाकत से नज़दीक होती है।

इमाम हुसैन (अ) शहादत के रास्ते को इख़्तियार व इंतेख़ाब करने में आज़ाद थे, दलील आप का मकतूब है:

हुसैन बिन अली (अ) की जानिब से मुहम्मद हनफ़िया और तमाम बनी हाशिम के नाम:

तुम में से जो हम से आ मिलेगा वह शहीद हो जायेगा और जो हमारे साथ नही आ मिलेगा वह फ़तह व कामयाबी व कामरानी से हम किनार नही होगा।

(कामिलुज़ ज़ियारात पेज 75, बिहारुल अनवार जिल्द 44 पेज 230)

अगर इमाम हुसैन अलैहिस सलाम ज़ाहिरी फ़तह को इंतेख़ाब करते तो दुनिया में शायद पहचाने नही जाते और हुसैन बिन अली (अ) का वह किरदार कि जो किलीदे शआदत था बशरीयत पर आशकार न हो पाता। इमाम हुसैन (अ) चाहते थे कि नबी ए अकरम (स) का दीन मिटने न पाये और इंसानियत तकामुल की राहों को तय कर जाये। लिहाज़ा फ़तहे ज़ाहिरी को छोड़ कर शहादते उज़मा को इख़्तियार किया कि जिस ने फिक्रे बशर की रहनुमाई और अख़लाक़ व किरदार को बुलंद व बाला कर के जुँबिशे फिक्री व जुँबिशे आतिफ़ी को दुनिया में ईजाद कर दिया, अज़ादारी इमाम हुसैन (अ) जुँबिशे आतिफ़ी का एक जावेदान नमूना है।

शहादते हुसैनी (अ) के असरात में मशहूर है कि आशूर के दिन सूरज को ऐसा गहन लगा कि उस दिन दोपहर को सितारे निकल आये।

(नफ़सुल महमूम पेज 484)

ख़ूने हुसैन (अ) आबे हयात था कि जिस ने इस्लाम को जावेद कर के मारेफ़त के गराँ बहाँ दुर को बशरीयत के सामने पेश करते हुए सही राह दिखा कर इंसानियत को हमेशा के लिये अपना मरहूने मिन्नत कर दिया।

पेशवाए शहीदान पेज 97

माहे मोहर्रम में दुनियाभर के कोने कोने में अजादारी का माहौल है। तेहरान के इमाम खुमैनी इमाम बारगाह में आयोजित मजलिस में अयातुल्लाह खामेनेई समेत ईरान के राष्ट्रपति एवं अन्य पदाधिकारी भी मौजूद रहे।

मुहर्रम के महीने की शुरुआत से नाइजीरिया सहित कुछ अफ्रीकी देशों के विभिन्न शहरों में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के शोक में मजलिस आयोजित की गई इस मौके पर जवान नौजवान बच्चे औरतें ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

मुहर्रम के महीने की शुरुआत से नाइजीरिया सहित कुछ अफ्रीकी देशों के विभिन्न शहरों में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के शोक में मजलिस आयोजित की गई इस मौके पर जवान नौजवान बच्चे औरतें ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

अलकफ़ील के अनुसार, मुहर्रम के महीने की शुरुआत में, नाइजीरिया सहित कुछ अफ्रीकी देशों में अबा अब्दुल्ला अलहुसैन अ.स.के लिए शोक सभाएँ आयोजित की हैं।

मोहर्रम के महीने में अफ्रीका देश के विभिन्न शहरों में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के शोक में मजलिस आयोजित की गई

इस केंद्र की प्रचार इकाई के प्रमुख सैय्यद मुस्लिम अल-जाबरी ने कहा, यह हुसैनी सभाएं हुसैनी संस्कृति को फैलाने और इमाम हुसैन अ.स. और उनके परिवार और साथियों पर ज़ुल्म व्यक्त करने के उद्देश्य से मुहर्रम और सफ़र के महीनों के दौरान काले महाद्वीप के कई देशों में आयोजित की जाती हैं।

उन्होंने आगे कहा,इन कार्यक्रमों में तंजानिया, मॉरिटानिया, सेनेगल, घाना, मेडागास्कर, केन्या, रवांडा, कैमरून, नाइजर, नाइजीरिया, बेनिन गणराज्य, सिएरा लियोन आदि देशों में मुहर्रम के महीने के लिए शोक सभाएं और विशेष भाषण आयोजित करना शामिल है।

मोहर्रम के महीने में अफ्रीका देश के विभिन्न शहरों में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के शोक में मजलिस आयोजित की गई

नाइजीरिया में यह समारोह अहलेबेत की एक बड़ी भीड़ की उपस्थिति के साथ कडुना शहर में आयोजित किया गया।

इस शहर में आस्तान अब्बासी के बौद्धिक और सांस्कृतिक मामलों के विभाग के मिशनरी शेख इब्राहीम मूसा यूसुफ़ ने मासूम इमामों के शब्दों में इमाम हुसैन अ.स. के कष्टों पर रोने के गुणों के विषय पर एक भाषण दिया।

मोहर्रम के महीने में अफ्रीका देश के विभिन्न शहरों में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के शोक में मजलिस आयोजित की गई