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गाजा को पुनर्निर्माण के लिए 80 साल चाहिए: संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र ने गाजा में ज़ायोनी हमले के विनाश और पुनर्निर्माण के बारे में एक रिपोर्ट जारी की है।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, गाजा के विनाश के जवाब में, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि पिछले संघर्षों के बाद पुनर्निर्माण के रुझान का पालन किया जाता है, तो गाजा में घरों का पुनर्निर्माण अगली शताब्दी में किया जा सकता है जाना विदेशी समाचार एजेंसी के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले सात महीनों से इजरायल की बमबारी से गाजा में अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है
फ़िलिस्तीनी आंकड़े बताते हैं कि 7 अक्टूबर को इज़राइल के दक्षिण में हमास लड़ाकों के घातक हमलों से शुरू हुए संघर्ष में लगभग 80,000 घर नष्ट हो गए हैं और पूरी तरह से खंडहर में बदल गए हैं
ग़ज़्ज़ा जनसंहार के बहाने तुर्की ने इस्राईल से कारोबार पर रोक लगाई
ग़ज़्ज़ा में पिछले 7 महीने से अधिक समय से ज़ायोनी सेना जनसंहार मचा रही है लेकिन तुर्की जॉर्डन की तरह ही इस्राईल को सबसे ज़्यादा ज़रूरत का सामान आपूर्ति करता रहा। अब इस्राईल के साथ अपने कारोबार को बंद करने का ऐलान करते हुए तुर्की ने कहा है कि वह ग़ज़्ज़ा में जारी जंग के विरोध में इस्राईल से अपने कारोबारी रिश्ते तोड़ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया की खबरों के मुताबिक तुर्किये के व्यापार मंत्रालय ने ग़ज़्ज़ा की मानवीय स्थिति का हवाला देते हुए तल अवीव से सभी आयात और निर्यात रोक दिए हैं।
तुर्की ग़ज़्ज़ा जनसंहार के बीच भी इस्राईल को गोला बारूद समेत अन्य सामान की आपूर्ति सिर्फ जारी ही नहीं रखे था बल्कि यह कई गुणा बढ़ भी गया था। अब तुर्की ने कहा है कि इस्राईल से जुड़े आयात और निर्यात को रोक दिया गया है, जिसमें सभी उत्पाद शामिल हैं। तुर्की इन नए उपायों को सख्ती से और निर्णायक रूप से लागू करेगा, जब तक इस्राईल सरकार ग़ज़्ज़ा को मानवीय मदद के निर्बाध और पर्याप्त प्रवाह को अनुमति नहीं देती है।
तुर्की की ओर से यह घोषणा तब की गई है, जब ज़ायोनी विदेश मंत्री इस्राइल काट्ज ने तुर्क राष्ट्रपति अर्दोगान पर बंदरगाहों से इस्राईल के आयात और निर्यात में बाधा डालकर समझौतों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था।
इमाम ख़ामनेई के साथ वॉलीबॉल की दुनिया में चैंपियन ईरानी खिलाड़ियों की यादगार तस्वीर
ईरान के वॉलीबॉल खिलाड़ी विश्व चैंपियन का ख़िताब जीतने और स्वदेश वापस आने के बाद इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई से मुलाक़ात के लिए गये और उनके साथ यादगार तस्वीर ली।
अभी हाल ही में ईरान की वॉलीबॉल की राष्ट्रीय टीम ने सर्बिया में होने वाले मुकाबलों में चैंपियन का खिताब जीता और बुधवार की सुबह इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता से मुलाक़ात और वार्ता के साथ उनके साथ यादगार तस्वीर ली।
सर्बिया में होने वाले मुक़ाबलों में वॉलीबॉल की ईरान की राष्ट्रीय टीम ने सीरिया में ईरानी काउंसलेट पर इस्राईल के आतंकवादी हमले में शहीद होने वाले कमांडर सरदार शहीद हाज मोहम्मद रज़ा ज़ाहेदी के नाम के साथ भाग लिया था और लगातार सात मुकाबलों में जीत हासिल करने के बाद उसने दुनिया में पहला स्थान प्राप्त कर लिया।
इजराइल को हथियारों की सप्लाई रोकने की मांग
बर्लिन सरकार द्वारा हड़पने वाली ज़ायोनी सरकार को राजनीतिक और सैन्य समर्थन की आलोचना करते हुए सिंथेसिस अवामी संगठनों ने मांग की है कि जर्मनी इसराइल को हथियारों की आपूर्ति बंद कर दे।
आईआरएनए, पैक्स क्रिस्टी, ऑक्सफैम, एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक यहूदियों और फिलिस्तीनियों के बीच वार्ता को समर्थन देने वाले संगठनों ने जर्मन चांसलर को लिखे अपने पत्र में मांग की है कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों का पालन करते हुए , लोगों के नरसंहार को रोकने के लिए गाजा जर्मनी के प्रभाव का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इन संगठनों ने चेतावनी दी है कि इज़राइल को जर्मन हथियार उपलब्ध कराने से फिलिस्तीनियों के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है, और इज़राइल को ऐसे हथियारों और उपकरणों की आपूर्ति को रोकना आवश्यक है, जिनका उपयोग गाजा और पश्चिमी जॉर्डन में फिलिस्तीनी लोग कर सकते हैं के विरुद्ध प्रयोग किया जाए
संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद, जर्मनी इज़राइल को हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
यह स्पष्ट होना चाहिए कि गाजा में फ़िलिस्तीनियों की कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार द्वारा किए जा रहे नरसंहार और नरसंहारों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की चुप्पी इस हद तक है कि गाज़ा के लोगों का नरसंहार पिछले सात महीनों से जारी है। सबसे ज्यादा बच्चे और महिलाएं किसे निशाना बनाया गया है? वहीं गाजा में फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि पिछले साल 7 अक्टूबर से अब तक गाजा के खिलाफ ज़ायोनी सरकार के क्रूर हमलों में 34,596 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं
ईरान का जवाबी हमला, अमरीका और ब्रिटेन की 10 कंपनियों और 15 लोगों पर पाबंदी
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने पश्चिम एशियाई क्षेत्र में आतंकवादी कार्यवाहियों का मुक़ाबला करने के लिए कई अमेरिकी और ब्रिटिश संस्थानों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं।
ईरान के विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, ये प्रतिबंध "क्षेत्र में अमेरिका के मानवाधिकारों के उल्लंघन और आतंकवादी कार्यवाहियों और कृत्यों का मुक़ाबला" क़ानून पर अमल करते हुए लगाया गया है।
बयान में कहा गया कि प्रतिबंध लगाने की प्रक्रियार पर अमल, उपरोक्त क़ानून के अनुच्छेद 4 और 5 को मद्देनज़र रखते हुए की गयी है जबकि ईरान की संसद मजलिसे शूराए इस्लामी में पास क़ानून (शांति और सुरक्षा के ख़िलाफ ज़ायोनी शासन की शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों का मुकाबला करने वाले क़ानून पर अमल करने की परिधि में इस क़ानून को लागू किया गया है।
ईरान के विदेश मंत्रालय द्वारा प्रतिबंधित अमेरिकी संस्थाओं और व्यक्तियों में शामिल यह हैं:
1- ग़ज़ा युद्ध के दौरान इस्राईल को सैन्य उपकरण उपलब्ध कराने वाली लॉकहीड मार्टिन कॉर्पोरेशन (The Lockheed Martin Corporation) कंपनी।
2 - जनरल डायनेमिक्स कॉर्पोरेशन,( General Dynamics Corporation) ग़ज़ा के ख़िलाफ युद्ध में ज़ायोनी शासन के लिए 155 मिमी गोलियां उपलब्ध कराने वाली कंपनी।
3 –स्काईडियो (Skydio) कंपनी, ग़ज़ा युद्ध में उपयोग के लिए इस्राईल को ड्रोन भेजने वाली कंपनी।
- शेवरॉन कॉर्पोरेशन, (Chevron Corporation) पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित गैस के कुओं से गैस निकालने में इस्राईल के साथ सहयोग और इससे हासिल होने वाले पैसे को गज़ा पर हमले के लिए इस्राईल द्वारा प्रयोग करने वाली कंपनी ।
5 - खारोन कंपनी (Kharon Company) पर क्योंकि हमास के ख़िलाफ़ अमेरिकी वित्तमंतर्लय द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में इस कंपनी की भूमिका है और साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग के बहाने क्रिप्टो करेंसी ट्रांसफर नेटवर्क तक हमास और जेहादे इस्लामी की पहुंच को ख़त्म करने की कोशिश करने वाली कंपनी।
प्रतिबंधित अमेरिकी व्यक्तों के नाम:
1 - हमास के विनाश का समर्थन करने और फिलिस्तीन में किसी भी सुधार उपाय से अधिक इस ग्रुप को ख़त्म करने को प्राथमिकता देने वाले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के वरिष्ठ सलाहकार जेसन ग्रीनब्लाट (Jason Greenblatt) ।
2 - अमेरिकन एंटरप्राइज थिंक टैंक के माइकल रुबिन (Michael Rubin) हमास के पूर्ण विनाश और ग़ज़ा पट्टी में हमास के ख़ात्मे तक पर हमले जारी रखने का समर्थन करने वाले।
3 -जेसन ब्रोडस्की (Jason Brodsky), फिलिस्तीन विरोधी विचारों को पेश करने और तूफ़ान अल-अक़्सा ऑपरेशन में ईरान के बारे में झूठी रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए एलायंस अगेंस्ट न्यूक्लियर ईरान ग्रुप के कार्यकारी निदेशक।
4- ग़ज़ा युद्ध में मानवाधिकार विरोधी बातों का समर्थन करने के लिए फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ़ डेमोक्रेसीज़ के अध्यक्ष क्लिफोर्ड डी. मे. (Clifford D. May) ।
- - जनरल ब्रायन पी. फेंटन (Bryan P. Fenton), अमेरिकी सेना के स्पेशल आप्रेशंस के कमांडर, ज़ायोनी शासन को अपनी ख़ुफिया और सुरक्षा सहायता देने के कारण।
6 -ग़ज़ा युद्ध में मानवाधिकारों के उल्लंघन का समर्थन करने वाले अमेरिकी नौसेना के 5वें बेड़े के कमांडर ब्रैड कूपर (Brad Cooper)।
7 - ग़ज़ा युद्ध में मानवाधिकारों के उल्लंघन का समर्थन करने वाले आरटीएक्स हथियार कंपनी के सीईओ ग्रेगरी जे. हेस (Gregory J. Hayes)।
निम्नलिखित ब्रिटिश कंपनियों और व्यक्तियों पर ज़ायोनी शासन की आपराधिक कार्रवाइयों का समर्थन करने का भी आरोप है जिसमें क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के खिलाफ आतंकवादी कार्यवाही, संगठित मानवाधिकारों का उल्लंघन, युद्ध भड़काना, भारी और प्रतिबंधित हथियारों का उपयोग शामिल है जबकि इंसानों के ख़िलाफ हथियार, इंसानी नाकाबंदी, फिलिस्तीनी जनता का पलायन, अवैध निर्माण और फिलिस्तीनी भूमि पर निरंतर क़ब्ज़े में साथ देने की वजह से ईरान के विदेश मंत्रालय ने ब्रिटिश कंपनियों और लोगों पर प्रतिबंध लगाया है।
संस्थाएं:
1- साइप्रस में ग्रेट ब्रिटेन साम्राज्य का अक्रोटिरी एयर बेस
2- लाल सागर में ब्रिटिश नौसेना का हीरा जहाज
3- ब्रिटिश एल्बिट सिस्टम कंपनी
4- मैगिट पार्कर ब्रिटिश कंपनी
5- ब्रिटिश राफेल कंपनी
प्रतिबंधित व्यक्तियों के नाम:
1- इंग्लैंड के रक्षा मंत्री ग्रांट शाप्स,
2- ब्रिटिश सेना रणनीतिक कमान के कमांडर जेम्स हैकेनहॉल।
3- ब्रिटिश सशस्त्र बलों के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ शेरोन नेस्मिथ,
4- ब्रिटिश सशस्त्र बलों के सहायक चीफ़ ऑफ स्टाफ़ पॉल रेमंड ग्रिफिथ्स
5- ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय में रक्षा ख़ुफ़िया निदेशक एड्रियन बर्ड
6- लाल सागर में ब्रिटिश नौसेना के रिचमंड के कमांडर रिचर्ड कैंप,
- साइमन क्लैक, साइप्रस में ब्रिटिश अक्रोटिरी एयर बेस के कमांडर
- लाल सागर में ब्रिटिश नौसेना के डायमंड के कमांडर पीटर इवांस,
इस्लामी गणतंत्र ईरान के सभी संस्थान, संबंधित अधिकारियों की मंज़ूरी के साथ इन प्रतिबंधों को लागू करने के लिए आवश्यक उपाय करेंगे।
यह बात स्पष्ट है कि यह प्रतिबंध की यह कार्यवाही, अदालतों में आपराधिक कार्यों में शामिल होने की वजह से लोगों के आपराधिक मुकदमे में शामिल नहीं होगी।
कीवर्ड: अमेरिका और इस्राईल, ब्रिटेन और इस्राईल, ग़ज़ा में इस्राईल के अपराध, इस्राईल के अपराधों के लिए पश्चिमी समर्थन, ईरान और फ़िलिस्तीन, फ़िलिस्तीनी जनता के लिए ईरान का समर्थन।
हथियार, युद्ध और भेदभाव द्वारा इस्लामोफ़ोबिया का औचित्यः कई विचार
इस्लामोफ़ोबिया का मानना है कि मुसलमानों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण कार्यवाहियां की जा सकती हैं। उसके अनुसार इस्लाम स्वभाविक रूप पश्चिमी मूल्यों के लिए ख़तरा है।
पार्सटुडे-पूर्वी ब्लाक के बिखरने के बाद संयुक्त राज्य अमरीका ने इसका मुक़ाबला करने और अपनी अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका को पुनः परिभाषित करने के लिए एक विदेशी तत्व को परिभाषित करने का काम किया। अमरीकी राजनेताओं के दृष्टिगत इस्लामोफ़ोबिया को हालीवुड के माध्यम से अधिक ख़तरनाक दिखाया गया।
उपनिवेशवादियों के दिमाग़ की उपज है इस्लामोफ़ोबियाः
ईरान के रेडियो और टेलिविज़न सेंटर में इस्लामी अनुसंधान, कला संचार एवं वर्चुअल स्पेस के निदेशक एहसान आज़र कमंद कहते हैं कि पश्चिमी देशों में इस्लामोफ़ोबिया को उपनिवेशवादी विचारधारा ने जन्म दिया है। इस्लाम से भय, पिछले सौ वर्षों के दौरान इस्लाम की राजनीतिक छवि को बिगाड़ कर पैदा किया गया। जब इस्लामी जगत में आधुनिकतावाद और बौद्धिक आंदोलन आरंभ हुआ तो पश्चिम ने इस्लामोफोबिया का सहारा लिया। कुछ लोगों का यह मानना था कि अगर मुसलमान इसी तरह से अपनी पहचान को बचाते हुए आगे बढ़ते हैं तो यह काम पश्चिमी देशों के लिए बहुत ख़तरनाक होगा।
इस्लामोफ़ोबिया में अमरीका की भूमिकाः
राजनेताओं द्वारा एक शत्रु की आवश्यकता के बारे में यूनिवर्सिटी फेकेल्टी मेंबर बशीर इस्माईली कहते हैं कि दो ध्रुवीय व्यवस्था के विघटन के बाद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीका एक महाशक्ति के रूप में बाक़ी रह गया किंतु वहां पर पहचान का संकट पैदा हो गया।
इस बीच कुछ अमरीकी विचारकों ने इस देश की विदेश नीति को एक नया रुख़ देने के लिए बहुत प्रयास किये किंतु ग्यारह सितंबर 2001 की घटना ने जितना काम कर दिखाया उसकी तुलना में अमरीकी विचार लाख प्रस्ताव देने के बावजूद कुछ नहीं कर पाए।
अमरीकी नेताओं ने इस घटना का दुरूपयोग करते हुए कम्यूनिज़्म के विघटन के बाद वाशिग्टन की विदेश नीति में भटकाव के पश्चात एक नई स्ट्रैटेजी को विश्व मे व्यापक स्तर पर फैलाया। विश्व व्यापार संगठन और पेंटागन पर ग्यारह सितंबर 2001 की संदिग्ध घटना के बाद स्वयं और दुनिया को लेकर अमरीकी दृष्टिकोण हमेशा के लिए बदल गया। यह हमला अमरीका की घरेलू और विदेश नीति में एक नई सोच को लागू करने की भूमिका बना जो था इस्लामोफोबिया का औचित्य पेश करना।
हालीवुड में पहचनवाने के केन्द्रः
प्रोफेस अली दाराई ने इस्लामोफ़ोबिया के लिए कुछ बिंदुओं का उल्लेख किया है जिनपर हालीवुड केन्द्रित रहा है। यही वहज है कि उसको अमरीका की मीडिया कूटनीति का मज़बूत आधार माना जाता है।
1-इस्लाम को न बदलने वाली संरचना के रूप में पेश करना।
2-इस्लाम को इस प्रकार से पेश किया जाता है कि मानो अन्य संस्कृतियों से उसकी कोई समानता नहीं है।
3-यह बताया जाता है कि इस्लाम, पश्चिमी संस्कृति में निम्न श्रेणी का है।
4-इस्लाम को केवल एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में पेश किया जाता है जिसका उपयोग केवल राजनीति और रणनीति में किया जा सकता है।
इस्लामोफ़ोबिया का मानना है कि मुसलमानों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण कार्यवाहियां की जा सकती हैं। उसके अनुसार इस्लाम स्वभाविक रूप पश्चिमी मूल्यों के लिए ख़तरा है।
इस्लाम के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक युद्ध में हालीवुड की शैलीः
इमाम ख़ुमैनी युनिवर्सिटी एक फैकेल्टी मिंबर सैयद हुसैन शरफुद्दीन इस बारे मे कहते हैं कि उसकी विध्वंसकारी नीति में अपमानित करना, दोष मढ़ना और मज़ाक उड़ाना शामिल है। स्वभाविक सी बात है कि इस प्रकार की शैली दर्शकों और पाठकों के मन में एक प्रकार की घृणा को जन्म देती है जो उसके अवचेतन में बाक़ी रहती है।
पश्चिमी सिनेमा में हमेशा यह दिखाया जाता है कि मुसलमान औरत बहुत कमज़ोर और गुमराह है जिसका काम केवल बच्चे पैदा करना है
मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रतः
अंतरसांस्कृतिक संबन्धों में घृणा के प्रभुत्व के माडल की व्याख्या के बारे में आरज़ू मोराली की बात को तेहरान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डाक्टर सईद रज़ा आमेली कहते हैं कि पश्चिमी समाजों पर छाई संस्कृति, घृणा को बढ़ावा देती है। मुसलमानों के बारे में पश्चिम में नफ़रत का माहौल हालिवुड, वहां के क़ानूनों, संचार माध्यमों और शिक्षा व्यवस्था ने बनाया है।
मनोरंजन उद्योग में मुसलमानों को विशेष धार्मिक मान्यताओं का स्वामी बताया जाता है। उनको घटिया इंसान दिखाया जाता है। वहां पर ईरानियों, पाकिस्तानियों या अन्य मुसलमानों को सुनियोजित ढंग से ग़लत दिखाया जाता है। यह काम इस उद्योग के अस्तित्व से ही जारी है। अब हो यह रहा है कि हम मानवता के स्थान से गिर रहे हैं। वे अब एक विशेष वर्ग के ख़िलाफ़ हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं।
जब फ़िल्म, "अमरीकी स्नाइपर" प्रदर्शित हुई तो उस समय कोई यह नहीं कह सकता था कि यह फ़िल्म मुसलमानों की हत्या पर उकसाती है किंतु अब हम देखते हैं कि इस फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद कम से कम अमरीका और कनाडा में मुसलमानों के विरुद्ध गोलीबारी की कई घटनाएं घटीं। वहां पर सड़को पर मुसलमानों पर गोलियां चलाई गईं। वे किसी स्नाइपर की तरह मुसलमानों को मार रहे थे।
वैसे केवल "अमरीकी स्नाइपर" ही नहीं है जो मुसलमानों की हत्या पर उकसाती है बल्कि वर्षों पहले से ही मुसलमानों को, नॉन-ह्यूमन बीइंग के रूप में पेश करने के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।
शहीद मुतह्हरी ईरान की इस्लामी क्रांति के महान विचारक और इमाम ख़ुमैनी के चहेते बेटे
ईरान में शहीद मुतह्हरी की शहादत के दिन को टीचर-डे के रूप में मनाया जाता है।
उस्ताद मुतह्हरी के नाम से मश्हूर, शहीद मुतह्हरी चौदहवी शताब्दी के एक धर्मगुरू, विद्वान, लेखक, विचारक और महान शोधकर्ता थे।
वे स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी और अल्लामा तबातबाई के शागिर्द थे। उन्होंने इस्लामिक स्टडीज़ के लगभग सारे ही क्षेत्रों में दक्षता हासिल कर ली थी। शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी, इस्लामी दर्शन, धर्मशास्त्र और क़ुरआन के बहुत महान शिक्षक थे। उन्होंने बहुत से विषयों पर किताबें लिखी हैं। उनहोंने इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले और बाद में धार्मिक गतिविधियों के अतिरिक्त राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
वे इस्लामी क्रांति के प्रभावशाली लोगों में से एक थे जिनको ईरान की इस्लामी क्रांति के बौद्धिक नेता के रूप में देखा जाता है। शहीद मुतह्हरी, मार्कस्वादी विचारधारा का मुक़ाबला करते और विद्धानों के साथ विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श और शास्त्रार्थ किया करते थे। उन्होंने हुसैनिया इरशाद बनवाया था जहां पर वे विद्वानों से शास्त्रार्थ करते थे। ईरान में शहीद मुतह्हरी की शहादत के दिन को टीचर-डे के रूप में मनाया जाता है।
यूनिवर्सिटी में गतिविधियाः
शहीद मुतह्हरी ने 1954 में तेहरान यूनिवर्सिटी में पढ़ाना शुरू किया था। उन्होंने वहां पर 20 साल से भी अधिक समय तक इस्लामी विषयों की शिक्षा दी।
तेहरान यूनिवर्सिटी में शहीद मुतह्हरी ने स्नातक, डाक्ट्रेट, सामान्य इस्लामी विज्ञान, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, रहस्यवाद, न्याशास्त्र, दर्शन तथा रहस्यवाद के बीच संबन्ध जैस बहुत से विषयों की शिक्षा दी।
इस्लाम पर एक नज़रः
शहीद मुतह्हरी का मानना था कि इस्लाम एसा धर्म है जिसको अभीतक ठीक से पहचाना नहीं गया है। इसकी वास्तविकताएं धीरे-धीरे लोगों के बीच बदल गई हैं जिसका मुख्य कारण कुछ लोगों द्वारा इस्लाम के नाम पर ग़लत शिक्षाओं को देना रहा है। वे यह भी मानते हैं कि इस्लाम को उन लोगों से अधिक नुक़सान पहुंचा जो इसकी हिमायत का दम भरते हैं।
भौतिकवाद की ओर झुकाव के कारणः
सन 1971 में शहीद मुतह्हरी की एक किताब प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक था, "भौतिकवाद की ओर झुकाव के कारण"। इस किताब में उनके दो लेक्चर हैं जो उन्होंने 1969 और 1970 में यूनिवर्सिटी में दिये थे। उनकी यह किताब उस ज़माने में प्रकाशित हुई थी जब देश में जवानों के बीच मार्कस्वाद जैसी भौतिकवादी विचारधाराओं की ओर रुझान बढ़ रहा था। इस किताब में वे भौतिकवाद की ओर झुकाव में गिरजाघरों, दार्शनिक-सामाजिक और राजनीतिक अवधारणाओं की भूमिका की समीक्षा करते हैं। इसी के साथ वे इस ओर आने के कारणों की भी जांच-परख करते हैं।
इस्लामी आइडियालोजी की भूमिकाः
शहीद मुरतज़ा मुतह्हरी ने जब यह देखा कि इस्लाम का दावा करने वाले कुछ मुसलमान बुद्धिजीवियों की रचनाओं में इस्लामी आइडियालोजी के बारे में ग़लत विचारों को पेश किया जा रहा है तो इनको रोकने और इस्लाम की सही छवि को स्पष्ट करने के उददेश्य से इस किताब को लिखा था। इसके माध्यम से उन्होंने कुछ तथाकथित इस्लामी विद्वानों की ग़लतियों को स्पष्ट किया था।
प्रकाशित रचनाएः
शहीद मुतह्हरी ने 50 से अधिक किताबें लिखीं। उनकी इन रचनाओं में से कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं के नाम इस प्रकार से हैं- मुक़द्दमेई बर जहानबीनी इस्लामी, आशनाई बा क़ुरआन, इस्लाम व मुक़तज़ियाते ज़मान, इंसाने कामिल, पीरामूने इन्क़ेलाबे इस्लामी, पीरामूने जम्हूरिये इस्लामी, तालीम व तरबियत दर इस्लाम, तौहीद, नुबूवत, मआद, हमासे हुसैनी, ख़िदमाते मुतक़ाबिले इस्लाम व ईरान, अद्ले इलाही, दास्ताने-रास्तान, सैरी दर नहजुल बलाग़ा, सैरी दर सीरए नबवी, सैरी दर सीरए आइम्मए अतहार, शरहे मबसूते मंज़ूमे, एलले गेराइशे माददिगरी, फ़ितरत, फ़लसफ़ए एख़लाक़, फ़लसफ़ए तारीख़, गुफ़्तारहाए मानवी, मसअलए हेजाब, नेज़ामे हुक़ूक़े ज़न दर इस्लाम, क़ेयाम व इन्क़ेलाबे इमामे मेहदी।
इमाम ख़ुमैनी के भरोसेमंद सलाहकारः
ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता और पहलवी व्यवस्था के गिर जाने के बाद आयतुल्ला मुतह्हरी ने इस्लाम सरकार के गठन के लिए बहुत अधिक प्रयास किये। यही कारण है कि वे स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के बहुत ही भरोसेमंद सलाहकार थे।
उनकी शहादतः
देश से संबन्धित विषयों के बारे में पहली मई सन 1979 की रात एक बैठक के बाद जब वे अपने घर जा रहे थे तो गली में किसी ने पीछे उनको उनके नाम से पुकारा। जैसे ही शहीद मुतह्हरी ने पीछे पलटकर देखा उसी समय उनको गोली मार दी गई। गोली मारने वाले व्यक्ति का नाम "मुहम्मद अली बसीरी" था जो "फ़ुरक़ान" नामक ख़तरनाक गुट का एक सदस्य था। यह वह गुट था जो धर्म और समाज को लेकर अतिवाद का शिकार था। गोली लगने के बाद मुरतोज़ा मुतह्हरी को अस्पताल ले जाया गया जहां पर उनकी शहादत हो गई।
उनकी शहादत पर इमाम ख़ुमैनी के संदेश का एक भागः
बुरा चाहने वालों की इच्छाओं के बावजूद ईरान की इस्लामी क्रांति, ईश्वर की कृपा से सफल हुई लेकिन इस्लाम विरोधी मुनाफ़ेक़ीन के हाथों राष्ट्र और इस्लामी विद्वानों को जो नुक़सान हुआ है उसकी भरपाई बहुत मुश्किल है, जैसाकि महान इस्लामी विद्वान शेख मुरतज़ा मुतह्हरी की निर्मम हत्या। उनके बारे में जो मैं कहना चाहता हूं वह यह है कि उन्होंने इस्लाम और ज्ञान के श्रेत्र में बड़ी मूल्यवान सेवाएं कीं। बड़े अफ़सोस की बात है कि विश्वासघाती हाथों ने इस फलदार वृक्ष को ज्ञान तथा इस्लाम के क्षेत्रों से छीन लिया और इसके बहुमूल्य फलों से सबको वंचित कर दिया।
मुतह्हरी मेरा अज़ीज़ बेटा था। वह धार्मिक एवं ज्ञान के क्षेत्र का मज़बूत समर्थक था। उन्होंने इस्लाम, राष्ट्र और देश के लिए उपयोगी सेवाएं कीं। ईशवर उनको शांति प्रदान करे।
शहीद मुतह्हरी के बारे में इमाम ख़ामेनेई का दृष्टिकोणः
अगर समाज के विभिन्न वर्गों की वैचारिक ज़रूरतों को पूरा करने और समाज के लिए नए मुद्दों के समाधान के लिए उस शहीद के प्रयास न होते तो आज इस्लामी समाज की स्थति कुछ और ही होती।
शहीद मुतह्हरी के कुछ मशहूर भाषणः
जेहादः
क़ुरआन कहता है कि इसलिए कि तुम्हारा रोब, दुश्मनों पर पड़े और उनके दिमाग़ में भी तुमपर हमले की सोच न आए तो तुम ताक़त जमा करो और शक्तिशाली बन जाओ।(जेहाद/पेज-28)
इस्लाम में काम का महत्वः
इस्लाम बेकारी का दुश्मन है। मनुष्य को उपयोगी काम इसलिए भी करने चाहिए क्योंकि उससे समाज को लाभ होता है। काम ही व्यक्ति और समाज का सबसे बड़ा कारक है जबकि बेरोज़गारी या बेकारी, भ्रष्टाचारका सबसे बड़ा कारक है अतः लाभदायक काम किये जाने चाहिए।
(वहय व नुबूवत/पेज-118)
अर्थव्यवस्थाः
इस्लाम की यथार्थवादी विचारधारा, अर्थव्यवस्था को आधार या बुनियाद तो नहीं मानती लेकिन उसकी आवश्यक भूमिका को भी अनदेखा नहीं करती है।
(दह गुफ़्तार/पेज-309)
पूरब में जीवनः
अब वह समय आ गया है कि जब पश्चिम को चाहिए कि वह अपनी सारी प्रगति के बावजूद ज़िंदगी की सीख पूरब से प्राप्त करे।
(अख़लाक़े जिंसी/पेज-28)
एकेश्वरवादी दृष्टिकोणः
एकेश्वर में विश्वास की विचारधारा में कशिश पाई जाती है। यह लोगों को प्रोत्साहन और शक्ति देती है तथा ऊंचे एवं पवित्र लक्ष्य भी प्रदान करती है। यह लोगों को समर्पित भी बनाती है।
(मजमूअए आसार/ भाग-5 पेज-84)
पैग़म्बरे इस्लाम (स) और परामर्शः
पैग़म्बरे इस्लाम (स) हालांकि ईश्वरीय दूत थे और उनको लोगों के विचारों या परामर्श की कोई ज़रूरत नहीं थी लेकिन लोगों को महत्व देने के लिए वे उनके साथ परामर्श किया करते थे।
(हिकमतहा व अंदर्ज़हा/पेज-120)
यमन की दो टूक , हर उस देश पर हमला करेंगे जहाँ से हमे निशाना बनाया जाएगा
मन के लोकप्रिय जनांदोलन अंसारुल्लाह के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य "अली अल-कहुम" ने "एक्स" (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में साफ़ शब्दों में कहा है कि कोई भी सैन्य अड्डा या देश जहाँ से यमन पर हमला किया जाता है यमनी बल उसे निशान बनाने में ज़रा भी संकोच नहीं करेंगे।
उन्होंने कहा कि हम जवाबी कार्रवाई करते हुए अपने अभियान को विस्तृत करते हुए अपने लक्ष्य बढ़ा सकते हैं और संबंधित देश के आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों तथा रणनीतिक और अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों को लक्ष्य में शामिल करेंगे ।
अल-कहूम ने कहा कि हमारे शत्रु को पिछले 9 वर्षों में यमन के खिलाफ हुए आक्रमणों के परिणामों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। आज समीकरण बदल गये हैं और साथ ही शक्ति संतुलन भी बदल गया है।
यमन में शांति स्थापना के बारे में, अल-कहूम ने कहा कि यहाँ शांति बहाल होना यमन, सऊदी अरब, यूएई और पूरे क्षेत्र के हित में है, साथ ही सुरक्षा और स्थिरता हासिल करना भी इलाक़े के सभी देशों के लिए लाभकारी है।
भारत ने दिया इस्राईल को झटका, खुल कर किया फिलिस्तीन का समर्थन
भारत ने एक बार फिर फिलिस्तीन का समर्थन जारी रखने का ऐलान करते हुए अवैध राष्ट्र इस्राईल को ज़ोर का झटका दिया है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन विवाद पर अपने 2 राज्य समाधान की बात दोहराते हुए फिलिस्तीन का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कांबोज ने कहा कि भारत 2 राज्य समाधान का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है, जहां फिलिस्तीन के लोग सुरक्षित सीमा के भीतर एक स्वतंत्र देश में रह सकेंगे।
भारत ने फिलिस्तीन की ओर से पिछले दिनों यूएन की सदस्यता के लिए किये गए आवेदन का भी समर्थन किया जो अमेरिका के वीटो के चलते पास नहीं हो सका था। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के आवेदन पर पुनर्विचार करने की बात कही है। भारत के इस कदम को मक़बूज़ा फिलिस्तीन के ज़ायोनी शासन के लिए झटके के रूप में देखा जा रहा है। ज़ायोनी प्रधानमंत्री फिलिस्तीनी राष्ट्र को खतरे के रूप में देखते हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भरतीय प्रतिनिधि रुचिरा कांबोज ने कहा कि हम आशा करते हैं कि उचित समय पर इस पर पुनर्विचार किया जाएगा और संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के फिलिस्तीन के प्रयास को समर्थन मिलेगा।
पाकिस्तान: ईरान के साथ आतंकवाद विरोधी सहयोग प्रणाली में सुधार
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के साथ सुधरते रिश्तों पर संतोष जताया है.
मुमताज ज़हरा ने गुरुवार को कहा: आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान और ईरान के बीच संयुक्त सहयोग की प्रणाली में सुधार हुआ है.
उन्होंने गुरुवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ईरान और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तंत्र बहुत महत्वपूर्ण है.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हाल के महीनों में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के क्षेत्र में ईरान और पाकिस्तान के बीच सहयोग मजबूत हुआ है और दोनों देश साझा सीमाओं और सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा में सुधार के लिए प्रतिबद्ध हैं।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के संबंध में ईरान, चीन और पाकिस्तान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता का भी जिक्र किया और कहा कि हम इस त्रिपक्षीय प्रणाली को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं और ईरान, चीन और पाकिस्तान के बीच अगली बैठक की तारीख तय की जाएगी. बैठक की घोषणा उचित समय पर की जाएगी।
उन्होंने कहा: ईरान और पाकिस्तान की सीमाएँ मित्रता, शांति और समृद्धि की सीमाएँ हैं और दोनों पड़ोसी देश आतंकवाद से मुक्त सीमाएँ चाहते हैं।
ईरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाइन और अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के पाकिस्तान आगमन के संबंध में उन्होंने कहा: पाकिस्तान की स्थिति स्पष्ट है और हम अमेरिकी पक्ष के साथ रचनात्मक संबंध चाहते हैं, लेकिन साथ ही, हम इस्लामिक गणराज्य के साथ अपने संबंध विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ईरान का और हम अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय चाहते हैं।
उन्होंने सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही अफवाहों का खंडन करते हुए कहा, पाकिस्तान किसी भी हालत में किसी दूसरे देश को अपनी जमीन पर सैन्य कैंप बनाने की इजाजत नहीं देगा.
उन्होंने गाजा के लोगों पर ज़ायोनी सरकार के अत्याचारों के ख़िलाफ़ अमेरिकी छात्रों के विरोध पर कहा कि हम किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं और हम दूसरों से भी यही उम्मीद करते हैं कि वे पाकिस्तान के मामलों में हस्तक्षेप से दूर रहें ध्यान भटकाने से.
उन्होंने कहा, फिलिस्तीनियों पर इजरायल के हमले और गाजा में मानवीय संकट ने दुनिया भर और खासकर पाकिस्तान में लोगों की भावनाओं को आहत किया है।