
رضوی
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ग़ैरों की ज़बानी
शियों के छठे इमाम का नाम, जाफ़र कुन्नियत (उपनाम), अबू अब्दुल्लाह, और लक़ब (उपाधि) सादिक़ है। आपके वालिद इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम और माँ जनाबे उम्मे फ़रवा हैं। आप 17 रबीउल् अव्वल 83 हिजरी में पैदा हुए और 114 हिजरी में इमाम बने। आपके ज़माने में बनी उमय्या के बादशाहों में हेशाम, वलीद, यज़ीद बिन वलीद, इब्राहीम इब्ने वलीद और मरवान हेमार थे। इसी तरह बनी अब्बास के बादशाहों में अब्दुल्लाह बिन मोहम्मद सफ़्फ़ाह और मंसूर दवानिक़ी थे। इन बादशाहों में इमाम पर सबसे ज़्यादा ज़ुल्म मंसूर ने किया है।
उसके सिपाही कभी कभी आपके घर पर हमला करते थे और आपको खींचते हुए मंसूर के पास ले जाते थे। मंसूर इतना बदतमीज़ हो गया था कि एक दिन उसने आपके घर में आग लगवा दी जबकि आप घर से बाहर थे और आपके बीवी बच्चे घर के अन्दर ही थे। आख़िर कार 25 शव्वाल 148 हिजरी को मदीने मुनव्वरा में इमाम को अंगूर में ज़हर देकर शहीद कर दिया जबकि उस समय आपकी आयु 65 साल थी। आपको मदीने में बक़ीअ के क़ब्रिस्तान में दफ़्न कर दिया गया। यहाँ हम आपके सामने इस्लामी इतिहास और इस्लामी दुनिया के बड़े-बड़े उल्मा की निगाह में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का इल्मी मक़ाम (स्थान) बयान करना चाहते हैं।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की बड़ाई, महानता और आपका बुलंद मक़ाम आपके शियों और शिया उल्मा की नज़र में बिल्कुल साफ़ है और इस बारे में उन्हे कोई शक नहीं है। शियों की नज़र में आप इतने महान हैं कि उनका मज़हब ही आपके नाम से जाना जाता है और उसे मकतबे जाफ़री या फ़िरक़ए जाफ़रिया कहा जाता है। अगर अपने उनकी तारीफ़ में कोई बात कहें तो कहा जाएगा कि यह तो उनके अपने हैं उन्हें तो उनकी तारीफ़ करना ही है, बात तो तब है जब दूसरे भी उनकी महानता बयान करें। इमाम को जहाँ अपने महान मानते हैं वहीं दूसरे सम्प्रदाय के मानने वालों, यहाँ तक कि आपके विरोधियों ने भी आपकी महानता को स्वीकार किया है। हम उनमें से कुछ उदाहरण पेश करते हैं।
- मंसूर दवानीक़ीः
वह इमाम की जान का जानी दुश्मन था लेकिन उनकी महानता और बुलंद मक़ाम को क़ुबूल करता था, उसका कहना हैः अल्लाह की क़सम जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिमस्सलाम) उन लोगों में से हैं जिनके बारे में क़ुरआने मजीद में आया हैः फिर हमनें इस किताब (क़ुरआने मजीद) का वारिस अपने ख़ास लोगों को बनाया। वह (इमामे सादिक़) उन लोगों में से थे जो ख़ुदा के ख़ास बन्दे थे और अच्छे काम अंजाम देने वालों में सबसे आगे थे। ( तारीख़े याक़ूबी- जि.3 पेज 17)
- मालिक इब्ने अनसः
मालकी फ़िरक़े के इमाम कहते हैं, मैं एक समय तक जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिस्सलाम) के पास जाता था और हमेशा उन्हें तीन हालतों में पाता था- या नमाज़ पढ़ रहे होते थे, या रोज़े की हालत में होते थे, या क़ुरआने मजीद की तिलावत कर रहे होते थे। मैंने उन्हे कभी बिना वुज़ू के कोई हदीस बयान करते हुए नहीं देखा। (इब्ने हजर अस्क़लानी, तहज़ीबुल तहज़ीब, बैरूत दारुल फ़क्र, जि.1 पेज 88) फिर वह कहते हैः इल्म, इबादत और तक़वे में इस आँख ने जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिस्सलाम) से अफ़ज़ल व श्रेष्ठ इन्सान नहीं देखा, इस कान नें उनसे ज़्यादा किसी के बारे में अच्छा नहीं सुना और इस दिल उनसे ज़्यादा किसी की महानता को क़ुबूल नहीं किया। (अल इमामुस सादिक़ वल मज़ाहिबुल अरबआ, हैदर असद, बैरूत, दारुल कुतुबुल अरबी, जि.1 पेज 53)
- इब्ने ख़लकानः
यह मशहूर इतिहासकार लिखता हैः वह शियों के एक इमाम, पैग़म्बर (स.) के घराने के एक अज़ीम इन्सान हैं और अपनी बात और अमल में सच्चा होने की वजह से उन्हे सादिक़ कहा जाता है। वह इतने ज़्यादा बड़ाई और अच्छाइयों के मालिक हैं कि उसे बयान करने की ज़रूरत नहीं है। (वफ़यातुल आयान, डाक्टर एहसान अब्बास, क़ुम, मंशूरात शरीफ़ुर्रज़ी, जि.1 पेज 328)
- अब्दुर्रहमान इब्ने अबी हातिम राज़ीः
वह कहते हैं कि मेरे पिता हमेशा कहा करते थे, जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) इतने क़ाबिले ऐतबार व विश्वसनीय इन्सान हैं कि वह जो भी कहते हैं उस बारे में कोई सवाल नहीं किया जा सकता, यानी वह जो भी कहते हैं या बयान करते हैं वह सही होता है। (अल जरह वत तादील, जि.2, पेज 487)
- अबू हातिम मोहम्मद इब्ने हय्यानः
वह कहते हैः अहलेबैत (अ.) में जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) फ़िक़्ह, इल्म और फ़ज़ीलत में बहुत अज़ीम इन्सान थे। (आलामुल हिदायः, जि. 1 पेज 22)
- अबू अब्दुर्रहमान असलमी कहते हैंः
जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) अपने परिवार वालों में सबसे अफ़ज़ल व श्रेष्ठ थे, उनके पास बहुत ज़्यादा इल्म था, एक ज़ाहिद (सन्यासी) इन्सान थे, इच्छाओं से बिल्कुल दूर और हिकमत (ज्ञान एंव नीत) में संपूर्ण अदब के मालिक थे। (अल इमामुस् सादिक़ वल मज़ाहिबुल अरबआ, हैदर असद, बैरूत, दारुल कुतुबुल अरबी, जि.1 पेज 58)٫
- मोहम्मद इब्ने तलहा शाफ़ेईः
उन्होंने इमाम जाफ़र सादिक़ अ. की महानता और उनके मरतबे के बारे में बहुत ख़ूबसूरत बात कही है, वह कहते हैः जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) अहलेबैत के बुज़ुर्गों और उनके सरदारों में से थे, बहुत ज़्यादा क़ुरआन पढ़ा करते थे, उसकी आयतों के बारे में सोचते थे और इस दरिया से क़ीमती ख़ज़ाने निकालते थे और क़ुरआने करीम के छुपे हुए राज़ों और मोजिज़ों (रहस्यों और चमत्कारों) को सबके सामने बयान करते थे। उन्होंने अपने समय को इताअत, बन्दगी (आज्ञापालन व भक्ति) और दूसरे कामों के लिये बांटा हुआ था और उसका हिसाबो किताब भी करते थे। उन्हे देख कर इन्सान को क़यामत की याद आती थी और उनकी बातें सुन कर इन्सान का दुनिया से मुँह मोड़ने का दिल चाहता था।
जो उनके बताये रास्ते का अनुसरण करेगा उसके लिये जन्नत है। उनकी पेशानी में एक ऐसा नूर था जिससे मालूम होता था कि वह नुबूव्वत के पाक ख़ानदान से हैं और उनके नेक अमल से इस बात का अंदाज़ा होता था कि वह रिसालत की नस्ल से हैं। इस्लामी मज़हबों के इमामों और बुज़ुर्गों के एक गुट ने उनसे हदीसें नक़्ल की हैं और उनकी शागिर्दी की है और वह सब इस शागिर्दी पर गर्व करते थे और उसे अपने लिये एक फ़ज़ीलत और शरफ़ (सम्मान) समझते थे। उनके चमत्कार और उनकी विशेषताएं इतनी ज़्यादा हैं कि इन्सान उन्हे गिन नहीं सकता और इन्सान की अक़्ल उन तक पहुँच नहीं सकती। (अल इमामुस् सादिक़ वल मज़ाहिबुल अरबआ, हैदर असद, बैरूत, दारुल कुतुबुल अरबी, जि.1 पेज 23)
- बुख़ारीः
वह लिखते हैं, पूरी उम्मत उनकी बुज़ुर्गी और सरदारी पर सहमत है। (आलामुल हिदाया, जि.1, पेज 24- यनाबीउल मवद्दा क़न्दौज़ी, जि. 3, पेज 160)
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की उपाधि पहले से ही सादिक़ थी।
इमाम जाफ़र सादिक़ का नाम जाफ़र, आपकी कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह, अबू इस्माईल और आपकी उपाधियां, सादिक़, साबिर व फ़ाज़िल और ताहिर हैं, अल्लामा मज़लिसी लिखते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. कि पैग़म्बरे इस्लाम स.अ ने अपनी ज़िंदगी में हज़रत इमाम जाफ़र बिन मोहम्मद (अ) को सादिक़ की उपाधि दी और उसका कारण यह था कि आसमान वालों के नज़दीक आप की उपाधि पहले से ही सादिक़ थी।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ 17 / रबीउल अव्वल 83 हिजरी में मदीना में पैदा हुए।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की विलादत की तारीख को खुदा वंदे आलम ने बड़ा सम्मान और महत्व दिया है हदीसों में है कि इस तारीख़ को रोज़ा रखना एक साल रोज़ा रखने के बराबर है आपके जन्म के बाद एक दिन हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि मेरा यह बेटा उन कुछ ख़ास लोगों में से है कि जिनके वुजूद से ख़ुदा ने लोगों पर एहसान फ़रमाया और यह मेरे बाद मेरा जानशीन व उत्तराधिकारी होगा।
अल्लामा मज़लिसी ने लिखा है कि जब आप मां के पेट में थे तब कलाम फरमाया करते थे जन्म के बाद आप ने कल्मा-ए-शहादतैन ज़बान पर जारी फ़रमाया।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत
उल्मा के अनुसार 15 या 25 / शव्वाल 148 हिजरी में 65 साल की उम्र में मंसूर ने आपको ज़हर देकर शहीद कर दिया।
अल्लामा इब्ने हजर, अल्लामा इब्ने जौज़ी, अल्लामा शिब्लन्जी, अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि
مات مسموما ایام المنصور
मंसूर के समय में आप ज़हेर से शहीद हुए हैं। (1)
उल्मा-ए-शिया सहमत हैं कि आप को मंसूर दवानेक़ी ने ज़हर से शहीद कराया था, और आप की नमाज़ हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने पढ़ाई थी अल्लामा कुलैनी और अल्लामा मज़लिसी का फ़रमाते हैं कि आप अच्छा कफ़न दिया गया और आपको जन्नतुल बक़ीअ में उन्हें दफ़्न किया गया।
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(सवाएक़े मुहरेक़ा पेज 121, तज़केरा-ए-ख़वासुल उम्मः, नूरूल अबसार पेज 133, अर्जहुल मतालिब पेज 450
स्वीट्ज़रलैंड में जाति भेदभाव में तीव्र वृद्धि
पिछले वर्ष स्वीट्ज़रलैंड में जातिवादी घटनायें हर समय से अधिक घटी हैं। अधिकांश जातिवादी और नस्ली घटनाओं का संबंध काम करने के स्थान से नहीं था बल्कि उनका संबंध स्कूलों से था यानी स्कूलों में घटी हैं।
क्लास में वार्ता के दौरान एक 11वर्षीय छात्र को बारमबार जाति व नस्ली भेदभाव का सामना हुआ और उसका अपमान किया गया। श्यामवर्ण के दूसरे छात्र को स्टोर रूम में बंद कर जाता है और क्लास के दूसरे बच्चे अभद्र शब्दों के साथ उसे बुलाते हैं। स्वीट्ज़रलैंड की पुलिस ऐसी हत्या करती है जिसका कोई औचित्य नहीं दर्शाया जा सकता। यह उस रिपोर्ट का मात्र एक छोटा सा नमूना है जिसे मानवाधिकार संगठन और जातिवादी भेदभाव परामर्श नेटवर्क के सहयोग से स्विट्ज़रलैंड में जातिवाद के खिलाफ तैयार किया गया है।
इस रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2023 में स्विट्ज़रलैंड में जाति व नस्ली भेदभाव की 876 घटनायें दर्ज की गयीं जो वर्ष 2022 की तुलना में 24 प्रतिशत अधिक हैं। जातिवादी भेदभाव की अधिकांश घटनाओं का संबंध शिक्षा केन्द्रों व विभागों से हैं और वे भी श्यामवर्ण के छात्रों के साथ।
एक सर्वे के अनुसार स्विट्ज़रलैंड में जो भी रहता है पिछले पांच सालों में हर 6 में से एक व्यक्ति को जातीय व नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा है।
जातिवाद से मुकाबला करने वाली सर्विस की ओर से कराये गये एक सर्वे के अनुसार 17 प्रतिशत लोगों ने यानी दस लाख दो हज़ार लोगों ने कहा कि उनके साथ भेदभाव किया गया।
समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट में आया है कि जिन लोगों को नस्ली व जाति भेदभाव का निशाना बनाया गया उनमें से अधिकांश की उम्र 15 से 39 साल के बीच है और नस्ली व जाति भेदभाव ज़िन्दगी के हर क्षेत्र में है। जिन लोगों पर सर्वे किया गया उनमें से लगभग 69 प्रतिशत लोगों ने कहा कि दिनचर्या या काम ढूंढने के दौरान उनके साथ जाति व नस्ली भेदभाव किया गया। इसके अलावा सार्वजनिक स्थानों पर 30 प्रतिशत और स्कूलों में 27 प्रतिशत भेदभाव का सामना करना पड़ा।
इससे पहले राष्ट्रसंघ के एक कार्यदल ने एलान किया था कि स्विट्ज़रलैंड में श्यामवर्ण के लोगों के साथ प्रतिदिन भेदभाव होता है और इस देश की पुलिस भी काले लोगों के साथ गम्भीर रूस से नस्ली भेदभाव का बर्ताव करती है। इसी प्रकार इस कार्यदल ने एलान किया था कि वह स्विट्ज़रलैंड में अफ्रीकी मूल के लोगों की मानवाधिकार की स्थिति और जातिवादी भेदभाव के फैलने से चिंतित है।
इसी प्रकार रिपोर्ट में उन विभिन्न कठिनाइयों व समस्याओं का भी उल्लेख किया गया है जिनका स्विट्ज़रलैंड में रहने वाले श्यामवर्ण के लोगों को सामना है। इसी प्रकार इस रिपोर्ट में श्यामवर्ण के लोगों के साथ पुलिस के बर्बरतापूर्ण रवइये का भी उल्लेख किया गया है।
मुसलमानों के घर पर भाजपा सरकार ने चलाया बुल्डोज़र, कोर्ट ने दिया मुआवज़े का आदेश
भाजपा शासित राज्यों में वर्ग विशेष के खिलाफ बुल्डोज़र कार्रवाई को लेकर समय समय पर सवाल उठते रहे हैं। सरकार द्वारा आरोपियों के घर तोड़े जाने को लेकर कई बार संबंधित राज्यों के हाईकोर्ट ने सरकारों को फटकार लगाते हुए इसे पूरी तरह गैर-कानूनी कृत्य बताया है। हालिया मामले में गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक फैसले से असम सरकार और वहां का पुलिस प्रशासन बैकफुट पर आ गया है, जिसमें कोर्ट ने 10 लोगों के घर तोड़ने पर सभी को 10- 10 लाख का मुआवज़ा देने का आदेश सुनाया है।
असम के नौगांव जिले के बत्ताद्रोबा थाने मे 2 साल पहले लॉकअप में सफीकुल इस्लाम नाम के एक व्यक्ति की मौत के बाद हिंसा भड़क उठी थी जिसके बाद स्थानीय लोगों ने थाने में आग लगा दी थी। बाद में इस घटना के बदले की कार्रवाई के तहत पुलिस ने भीड़ में शामिल लोगों के घरों पर बुल्डोजर चलाकर उनका घर तोड़ दिया था। इस घटना के लगभग दो साल बाद हाईकोर्ट ने पुलिस के बुल्डोजर की कार्रवाई को अवैध बताते हुए पीड़ितों को 10- 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। कोर्ट के इस फैसले से असम सरकार बैकफुट पर आती दिख रही है।
ग़ौर तलब है कि असम में भाजपा की सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और मध्य प्रदेश की तत्कालीन शिवराज सिंह चौहान की सरकार की राह पर चलते हुए हिमंत विश्वा सर्मा की सरकार ने जब भी मौका मिला मुसलमानों के घरों और संपत्तियों पर बुल्डोजर चलवा दिया। असम सरकार ने सबसे पहले कुछ मदरसों को अवैध बताते हुए और कुछ मदरसों में गैर-कानूनी गतिविधियों के संचालन का इल्जाम लगाकर उनपर बुल्डोजर चलवा दिया था। इसी तरह किसी मामले में फंसते ही मुस्लिम आरोपियों के घरों पर भी बुल्डोजर चलवाने का काम किया। असम सरकार के इस रवैये और कृत्य पर हाईकोर्ट सरकार को कड़ी फटकार लगा चुका है।
फिलिस्तीन का समर्थन करने पर मुंबई की स्कूल प्रिंसिपल से मांगा इस्तीफा
फिलिस्तीन में पिछले 7 महीने से जनसंहार कर रहे इस्राईल के अत्याचारों पर आधारित एक सोशल मीडिया पोस्ट को लाइक और उसपर कमेंट करना मुंबई की एक स्कूल प्रिंसपल को भारी पड़ गया और उनसे इस्तीफ़ा मांग लिया गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार मुंबई में एक स्कूल प्रिंसिपल को ग़ज़्ज़ा जनसंहार से जुड़े सोशल मीडिया पोस्ट को लाइक-कमेंट करना भारी पड़ गया है। स्कूल प्रबंधन ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा है। यह मामला मुंबई के विद्याविहार के सोमैया स्कूल का है। प्रिंसिपल परवीन शेख पर आरोप है कि वह न केवल हमास के प्रति सहानुभूति रखती हैं, बल्कि हिन्दू विरोधी भी हैं।
सोमैया स्कूल की प्रिंसिपल परवीन शेख ने अपने पद से इस्तीफा देने से साफ इनकार कर दिया है। शेख ने आरोप लगाया है कि उनसे स्कूल प्रबंधन ने पद छोड़ने के लिए कहा है और मुझ पर दबाव बनाया जा रहा है।
एक वेबसाइट ने हाल में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि जिसमें दावा किया गया था कि परवीन शेख ने एक्स अकाउंट से पिछले कुछ दिनों में फिलिस्तीन और हमास के प्रति सहानुभूति दिखाने वाले कई पोस्ट को लाइक और कमेंट किया था। उन्होंने बीजेपी, पीएम मोदी और हिंदू धर्म के अपमान से जुड़े पोस्ट को भी लाइक किया है।
यह मामला सामने आने के बाद स्कूल प्रबंधन ने परवीन शेख से इस्तीफा देने को कहा है। वह पिछले 12 सालों से इस स्कूल में काम कर रही हैं और पिछले 7 साल से स्कूल की प्रिंसिपल हैं। परवीन शेख ने कहा, मैं लोकतांत्रिक देश में रहती हूं और मुझे मुझे बोलने की आजादी है। सोमैया स्कूल की राजनीतिक विषयों पर सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करने को लेकर कोई नीति नहीं है।
पूरी दुनिया में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन
दुनिया भर के विभिन्न शहरों के लोगों ने गाजा पट्टी के फिलिस्तीनियों के समर्थन में प्रदर्शन किया है।
ज़ायोनी सरकार 7 अक्टूबर, 2013 से गाजा पट्टी के विभिन्न क्षेत्रों पर भारी मशीनगनों से हमला कर रही है और यह एक क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया रही है। इस संबंध में हमारे प्रतिनिधि ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि लेबनानी इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के हजारों छात्रों ने गाजा पट्टी के लोगों के समर्थन में प्रदर्शन किया और ज़ायोनी कब्जे के अत्याचारों की निंदा की.
इस प्रदर्शन में छात्र साझेदारों ने अमेरिकी विश्वविद्यालयों के छात्र प्रदर्शनों को अपना समर्थन देने की भी घोषणा की. लेबनानी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के निदेशक अहमद फ़राज़ ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका हमेशा मानवाधिकारों का सम्मान करता है, लेकिन आज वह वीटो के अधिकार का उपयोग ज़ायोनी सरकार के अत्याचारों को सही ठहराने के लिए करता है। प्रदर्शन में छात्र प्रतिभागियों ने अपने हाथों में ऐसे बैनर ले रखे थे जो ओर्स्क की ज़ायोनी कब्ज़ा करने वाली सरकार के अत्याचारों के ख़िलाफ़ थे।
इस बीच लेबनान की राजधानी बेरूत में अमेरिका यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन किया गया. प्रदर्शन में भाग लेने वालों ने भी फ़िलिस्तीनियों के प्रति अपने समर्थन की घोषणा की और ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए अत्याचारों की निंदा की। क़ुद्स फ़ीड टेलीग्राम चैनल ने वीडियो भी साझा किया है जिसमें जॉर्डन के युवा राजधानी अम्मान में ज़ायोनी सरकार के दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ नारे लगा रहे हैं। अल-अरबी टीवी चैनल ने ट्यूनिस में मनौबा विश्वविद्यालय के छात्रों के वीडियो भी प्रकाशित किए, इसमें देखा जा सकता है कि छात्र अपने हाथों में फिलिस्तीनी झंडा लेकर गाजा के फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता व्यक्त कर रहे हैं। फ्रांसीसी छात्र ने गाजा पट्टी में ज़ायोनी सरकार के अत्याचारों की भी निंदा की है।
पाकिस्तान में दर्दनाक बस हादसा, 20 लोगों की मौत
पाकिस्तान के पहाड़ी क्षेत्रों में एक बड़े बस हादसे में कम से कम 20 लोगों के मारे जाने की खबर आ रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ उत्तर पश्चिम पाकिस्तान में शुक्रवार को एक यात्री बस के पहाड़ी इलाके से फिसलकर गड्ढे में गिर जाने से कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह घटना गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र के डायमेर जिले में काराकोरम राजमार्ग पर हुई। बस लगभग 30 यात्रियों को लेकर रावलपिंडी से गिलगित जा रही थी। दुर्घटना का कारण चालक का वाहन से नियंत्रण खोने को बताया जा रहा है।
पुलिस अधिकारी ने कहा कि अभी यह यक़ीन से नहीं कहा जा सकता कि बस में कितने यात्री सवार थे। घटना में घायल हुए कम से कम 15 लोगों को चिलास के एक अस्पताल में ले जाया गया है। बचाव प्रयास जारी हैं और शवों को अस्पताल पहुंचाया जा रहा है। अस्पताल के एक सूत्र ने बताया कि मृतकों में तीन महिलाएं भी शामिल हैं। सूत्र ने कहा कि मरने वालों की संख्या और बढ़ने की आशंका है क्योंकि घायलों में से कई की हालत गंभीर है।
पाकिस्तान का पहला सैटेलाइट मिशन 'आई क्यूब कमर' लॉन्च
चीन से पाकिस्तान के लिए पहला पाकिस्तानी उपग्रह मिशन दोपहर 2:28 बजे चंद्रमा के लिए लॉन्च किया गया, जो 5 दिनों में चंद्रमा की कक्षा में पहुंच जाएगा।
सहर न्यूज़/पाकिस्तान: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी संस्थान की कोर कमेटी के सदस्य डॉ. खोर्रम खुर्शीद ने कहा कि उपग्रह मिशन चीन के हैनान अंतरिक्ष प्रक्षेपण स्थल से चांद के लिए लॉन्च किया गया था।
एस-सैटेलाइट COIST को चीन की शंघाई यूनिवर्सिटी और पाकिस्तान की कौमी स्पेस एजेंसी स्पार्को के सहयोग से डिजाइन और विकसित किया गया था।
यह सैटेलाइट मिशन 3 से 6 महीने तक एक ही चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगाएगा और चंद्रमा की किस सतह की तस्वीरें लेगा। जेस के लिए एस सैटेलाइट में दो ऑप्टिकल कैमरे भी लगाए गए हैं।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने आई-क्यूब की लॉन्चिंग का नजारा देखकर खुशी जताई और कहा कि पाकिस्तान और चीन की दोस्ती सीमा पार कर गई है.
प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के पहले आई-क्यूब कमर उपग्रह को चंद्रमा पर भेजने पर भी खुशी जाहिर की है.
उन्होंने कहा कि चंद्रमा उपग्रह भेजने वाले देशों में शामिल होना पाकिस्तान के लिए खुशी का समय है, आई-क्यूब कमर उपग्रह अंतरिक्ष में पाकिस्तान का पहला कदम है.
उन्होंने कहा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान 28 मई 1998 को उच्च आर्थिक स्तर पर पहुंच जाएगा।
याद रहे कि 2019 में पाकिस्तान ने पाकिस्तान में अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने और अंतरिक्ष मिशन शुरू करने के लिए चीन के साथ एक अंतरिक्ष अनुसंधान समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
नाइजर, अमेरिकी सेना के अड्डों पर पहुंचे रूसी सैनिक
नाइजर में सैन्य तख्ता पलट के बाद इस देश से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को लेकर अटकलों का दौर जारी है। नाइजर की सत्ता संभाल रहे सैन्य परिषद् ने अमेरिका को देश से निकल जाने का फरमान सुनाया है जबकि अमेरिका की ओर से भी इस देश अपने सैनिकों को वापस बुलाने की बात कही गई है।
पश्चिम अफ्रीकी देश नाइजर ने अमेरिका को बड़ा झटका देते हुए अपने एयरबेस में रूसी सेना के प्रवेश की इजाजत दी है। रूस के सैनिकों को जिस एयरबेस में प्रवेश दिया गया है, वह अमेरिकी सैनिकों के पास रहा है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक रूसी सैन्यकर्मियों ने नाइजर में एक एयरबेस में प्रवेश कर लिया है।
यह कदम नाइजर के सैन्य परिषद् द्वारा अमेरिकी सेना को देश से बाहर निकालने के फैसले के बाद उठाया गया है। नाइजर के सैन्य शासन ने हाल ही में अमेरिका से कहा था कि वह अपने 1,000 सैन्यकर्मियों को वापस बुलाए। पिछले साल तख्तापलट तक विद्रोहियों के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई में नाइजर एक प्रमुख भागीदार बना हुआ था।
अमेरिकी अधिकारी ने बताया है कि रूसी सैन्यकर्मी अमेरिकी सैनिकों के साथ घुल-मिल नहीं रहे बल्कि एक अलग हैंगर का उपयोग कर रहे हैं। यह एयरबेस नाइजर की राजधानी निआमी में डियोरी हमानी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास है।
अमेरिका और उसके सहयोगियों को बीते कुछ समय में कई अफ्रीकी देशों से सेना वापस बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। नाइजर के अलावा अमेरिकी सैनिकों ने हाल ही में चाड भी छोड़ दिया है। इसी तरह, माली और बुर्किना फासो से फ्रांसीसी सेना को बाहर कर दिया गया है।
तेल अवीव के विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत प्रतिरोध समूहों ने हमले का जवाब दिया
इराकी इस्लामी प्रतिरोध के मुजाहिदीन ने बार अल-सबा और तेल अवीव में ज़ायोनी सैन्य ठिकानों पर कई रॉकेट दागे हैं।
अल-मयादीन टीवी चैनल ने अपनी रिपोर्ट में सैटेलाइट तस्वीरें प्रकाशित की हैं और कहा है कि इराकी इस्लामिक स्टेट के कब्जे वाले बेयर अल-सबा और तेल अवीव में ज़ायोनीवादियों का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है। अल-अर्कुब क्रूज मिसाइलें।
गाजा की ज़ायोनी सरकार की आक्रामकता के जवाब में इराक के इस्लामी प्रतिरोध ने मूसा बिन जाफ़र के कोडवर्ड के साथ मिसाइल हमला किया। मृत सागर में इराक का इस्लामी धैर्य एक मौजूदा बयान है जो ज़ायोनी सरकार के आक्रामक लक्ष्यों से संबंधित है, जिसमें फिलिस्तीनी बच्चों, महिलाओं और बूढ़े लोगों की तुलना में उपयुक्त हथियारों के साथ एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
जब इस्लामिक इराक ज़ायोनी गढ़ों पर अपने हमले जारी रखने पर आमादा है।