
رضوی
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की ईरान से अपील
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बार फिर खुलकर इजराइल का समर्थन किया है और इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान से कहा है कि वह सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी कांसुलर सेक्शन पर इजराइली हमले का जवाब न दे.
सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग पर इज़राइल के हमले पर ईरान की प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने एक हस्तक्षेपवादी बयान में एक बार फिर से ज़ायोनी सरकार का समर्थन किया है इजराइल की सुरक्षा के लिए और उसे अपनी रक्षा करने में मदद कर रहा है।
इस संबंध में जब बिडेन से ईरान को दिए गए संदेश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने आक्रामक ज़ायोनी शासन की आक्रामकता का जिक्र किए बिना कहा कि ईरान को ऐसा नहीं करना चाहिए।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि मैं गोपनीय जानकारी का खुलासा नहीं करना चाहता, लेकिन मुझे उम्मीद है कि इजरायल पर ईरान का हमला जल्द होगा.
इज़राइल के प्रति वाशिंगटन के अटूट समर्थन की निरंतरता में, जिसने क्षेत्र में मौजूदा गाजा युद्ध का दायरा बढ़ा दिया है, अमेरिकी राष्ट्रपति ने हमले की विफलता का दावा करके इजरायली सरकार को प्रोत्साहित किया है, जिससे ईरान की रक्षा क्षमताओं को नुकसान हुआ है
औरत की हैसियत
و من آیاته ان خلق لکم من انفسکم ازواجا لتسکنوا الیها و جعل بینکم مودہ و رحمه (سوره روم آيت ۲۱)
उसकी निशानियों में से एक यह है कि उसने तुम्हारा जोड़ा तुम ही में से पैदा किया है ताकि तुम्हे उससे सुकूने ज़िन्दगी हासिल हो और फिर तुम्हारे दरमियान मुहब्बत व रहमत का जज़्बा भी क़रार दिया है।
आयते करीमा में दो अहम बातों की तरफ़ इशारा किया गया है:
- औरत आलमे इंसानियत का ही एक हिस्सा है और उसे मर्द का जोड़ा बनाया गया है। उसकी हैसियत मर्द से कमतर नही है।
- औरत का मक़सदे वुजूद मर्द की ख़िदमत नही है मर्द का सुकूने ज़िन्दगी है और मर्द व औरत के दरमियान दोनो तरफ़ा मुहब्बत और रहमत ज़रुरी है यह एक तरफ़ा मामला नही है।
و لهن مثل الذی عليهن بالمعروف و للرجال عليهن درجه (بقره آيت ۲۲۸)
औरतों के लिये वैसे ही हुक़ूक़ है जैसे उनके ज़िम्मे फ़रायज़ हैं मर्दों को उनके ऊपर एक और दर्जा हासिल है।
यह दर्जा हाकिमियत मुतलक़ा का नही है बल्कि ज़िम्मेदारी का है, मर्दों में यह सलाहियत रखी गई है कि वह औरतों की ज़िम्मेदारी संभाल सकें और इसी बेना पर उन्हे नान व नफ़्क़ा और इख़राजात का ज़िम्मेदार बनाया गया है।
فاستجاب لہم ربہم انی لا اضیع عمل عامل منکم من ذکر و انثی بعضکم من بعض (سورہ آل عمران آیت ۱۹۵)
तो अल्लाह ने उनकी दुआ को क़बूल कर लिया कि हम किसी अमल करने वाले के अमल को ज़ाया नही करना चाहते चाहे वह मर्द हो या औरत, तुम में बाज़ बाज़ से हैं।
ولا تتمنوا ما فضل اللہ بعضکم علی بعض للرجال نصیب مما اکتسبوا و للنساء نصیب مما اکتسبن (سورہ نساء آیہ ۳۲)
और देखो जो ख़ुदा ने बाज़ को बाज़ से ज़्यादा दिया है उसकी तमन्ना न करो, मर्दों के लिये उसमें से हिस्सा है जो उन्होने हासिल कर लिया है और इसी तरह से औरतों का हिस्सा है। यहाँ पर भी दोनो को एक तरह की हैसियत दी गई है और हर एक को दूसरे की फ़ज़ीलत पर नज़र लगाने से रोक दिया गया है।
و قل رب ارحمهما کما ربيانی صغيرا (سوره اسراء آيت ۲۳)
और यह कहो कि परवरदिगार उन दोनो (मा बाप) पर उसी तरह से रहमत नाज़िल फ़रमा जिस तरह उन्होने मुझे पाला है।
इस आयते करीमा में माँ बाप दोनो को बराबर की हैसियत दी गई है और दोनो के साथ अहसान भी लाज़िम क़रार दिया गया है और दोनो के हक़ में दुआ ए रहमत की भी ताकीद की गई है।
يا ايها الذين آمنوا لا يحل لکم ان ترثوا النساء کرها و لا تعضلوهن لتذهبوا ببعض ما آتيتموهن الا ان ياتين بفاحشه مبينه و عاشروهن بالمعروف فان کرهتموهن فعسی ان تکرهوا شیءا و يجعل الله فيه خيرا کثيرا (نساء ۱۹)
ईमान वालो, तुम्हारे लिये जायज़ नही है कि औरत को ज़बरदस्ती वारिस बन जाओ और न यह हक़ है कि उन्हे अक़्द से रोक दो कि इस तरह जो तुम ने उनको दिया है उसका एक हिस्सा ख़ुद ले लो जब तक वह कोई खुल्लम खुल्ला बदकारी न करें और उनके साथ मुनासिब सुलूक करो कि अगर उन्हे ना पपसंद करते हो तो शायद तुम किसी चीज़ को ना पसंद करो और ख़ुदा उसके अंदर ख़ैरे कसीर क़रार दे।
و اذا طلقتم النساء فبلغن اجلهن فامسکوا هن بمعروف او سرحوين بمعروف ولا تمسکوهن ضرارا لتعتقدوا و من يفعل ذالک فقد طلم نفسه (سوره بقره آيت ۱۳۲)
और जब औरतों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दते इद्दा क़रीब आ जाएँ तो उन्हे नेकी के साथ रोक लो वर्ना नेकी के साथ आज़ाद कर दो और ख़बरदार नुक़सान पहुचाने की ग़रज़ से मत रोकना कि इस तरह से ज़ुल्म करोगे और जो ऐसा करेगा वह अपने ही ऊपर ज़ुल्म करेगा।
ऊपर बयान होने वाली दोनो आयतों में मुकम्मल आज़ादी का ऐलान किया गया है। जहाँ आज़ादी का मक़सद शरफ़ और शराफ़त का तहफ़्फ़ुज़ है और जान व माल दोनो के ऐतेबार से साहिबे इख़्तियार होना है और फिर यह भी वाज़ेह कर दिया गया है कि उन पर ज़ुल्म हक़ीक़त में उन पर ज़ुल्म नही है बल्कि अपने ही ऊपर ज़ुल्म है इस लिये कि इससे सिर्फ़ उनकी दुनिया ख़राब होती है और इंसान उससे अपनी आख़िरत खराब कर लेता है जो दुनिया ख़राब कर लेने से कहीं ज़्यादा बदतर बर्बादी है।
الرجال قوامون علی النساء بما فضل اللي علی بعض و بما انفقوا من اموالهم (سوره نساء آيت ۳۴)
मर्द, औरतों के संरक्षक हैं और उस लिये कि उन्होने अपने माल को ख़र्च किया है।
आयते करीमा से बिलकुल साफ़ वाज़ेह हो जाता है कि इस्लाम का मक़सद मर्द को हाकिमे मुतलक़ बना देना और औरत से उसकी आज़ादी छीन लेना नही है बल्कि उसने मर्द को उसकी बाज़ ख़ुसूसियात की वजह से घर का ज़िम्मेदार बनाया है और उसे औरत के जान माल और आबरू का संरक्षक बनाया है। इसके अलावा इस मुख़्तसर हाकिमियत या ज़िम्मेदारी को भी मुफ़्त नही क़रार दिया है बल्कि उसके मुक़ाबले में उसे औरत के तमाम ख़र्चों का ज़िम्मेदार बना दिया है और ज़ाहिर सी बात है कि जब दफ़्तर का आफ़िसर या कारखाने का मालिक सिर्फ़ तन्ख़वाह देने की वजह से हाकिमियत के बेशुमार इख़्तियारात हासिल कर लेता है और उसे कोई आलमे इंसानियत की तौहीन क़रार नही देता है और दुनिया का हर मुल्क इसी पालिसी पर अमल कर लेता है तो मर्द ज़िन्दगी की तमाम ज़िम्मेदारियाँ क़बूल करने के बाद अगर औरत पर पाबंदियाँ लगा दे कि वह उसकी इजाज़त के बिना घर बाहर न जाये और घर ही में उसके लिये सुकून के वसायल फ़राहम कर दे ताकि उसे बाहर न जाना पड़े और दूसरे की
तरफ़ हवस भरी निगाह से न देखना पड़े तो कौन सी हैरत की बात है यह तो एक तरह का बिलकुल साफ़ और सादा इंसानी मामला है जो शादी की शक्ल में मंज़रे आम पर आता है और मर्द का कमाया हुआ माल औरत का हो जाता है और औरत की ज़िन्दगी की सरमाया मर्द का हो जाता है मर्द औरत की ज़रुरियात को पूरा करने के लिये घंटों मेहनत करता है और बाहर से सरमाया फ़राहम करता है और औरत मर्द की तसकीन के लिये कोई ज़हमत नही करती है बल्कि उसका सरमाया ए हयात उसके वुजूद के साथ है इंसाफ़ किया जाये कि इस क़दर फ़ितरी सरमाए से इस क़दर मेहनती सरमाया का तबादला क्या औरत के हक़ में ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी कहा जा सकता है जबकि मर्द की तसकीन में भी औरत बराबर की शरीक और हिस्सेदार बनती है और यह जज़्बा एक तरफ़ा नही होता है और औरत के माल ख़र्च करने में मर्द को कोई हिस्सा नही मिलता है। मर्द पर यह ज़िम्मेदारी उसकी मर्दाना ख़ुसूसियात और उसके फ़ितरी सलाहियत की बेना पर रखी गई है वर्ना या तबादला मर्दों के हक़ में ज़ुल्म हो जाता और उन्हे यह शिकायत होती कि औरत ने हमें क्या सुकून दिया है और उसके मुक़ाबले में हम पर ज़िम्मेदारियों का किस क़दर बोझ लाद दिया गया है यह ख़ुद इस बात की दलील है कि यह जिन्स और माल का सौदा नही है बल्कि सलाहियतों की बुनियाद पर काम का बटवारा है। औरत जिस क़दर ख़िदमत मर्द के हक़ में कर सकती है उसका ज़िम्मेदार औरत को बना दिया गया है और मर्द जिस क़दर और की ख़िदमत कर सकता है उसका उसे ज़िम्मेदार बना दिया गया है और यह कोई हाकिमियत व जल्लादियत नही है कि इस्लाम पर नाइंसाफ़ी का इल्ज़ाम लगा दिया जाएँ और उसे औरत के हक़ का बर्बाद और ज़ाया करने वाला क़रार दिया जाये।
यह ज़रुर है कि आलमें इस्लाम में ऐसे मर्द बहरहाल पाये जाते हैं जो मेजाज़ी तौर पर ज़ालिम, बेरहम और जल्लाद हैं और उन्हे अगर जल्लादी के लिये कोई मौक़ा नही मिलता है तो उसकी तसकीन का सामान घर के अंदर फ़राहम करते हैं और अपने ज़ुल्म का निशाना औरत को बनाते हैं कि वह सिन्फ़े नाज़ुक होने की बेना पर मुक़ाबला करने के क़ाबिल नही है और उस पर ज़ुल्म करने में उन ख़तरों का अंदेशा नही है जो किसी दूसरे मर्द पर ज़ुल्म करने में पैदा होते हैं और उसके बाद अपने ज़ुल्म का जवाज़ क़ुरआने मजीद के इस ऐलान में तलाश करते हैं और उनका ख़्याल यह है कि क़व्वामियत निगरानी और ज़िम्मेदारी नही है बल्कि हाकिमियते मुतलक़ा और जल्लादियत है। हालाँकि क़ुरआने मजीद ने साफ़ साफ़ दो वुजूहात की तरफ़ इशारा कर दिया है जिसमें से एक मर्द की ज़ाती ख़ुसूसियत और इम्तेयाज़ी कैफ़ियत है और उसकी तरफ़ से औरत के इख़राजात की ज़िम्मेदारी है और खुली हुई बात है कि दोनो असबाब में न किसी तरह की हाकिमियत पाई जाती है और न जल्लादियत बल्कि शायद बात उसके बर अक्स नज़र आये कि मर्द में फ़ितरी इम्तेयाज़ था तो उसे उस इम्तेयाज़ से फ़ायदा उठाने के बाद एक ज़िम्मेदारी का मरकज़ बना दिया गया और इस तरह उसने चार पैसे हासिल किये तो उन्हे तन्हा खाने के बजाए उसमें औरत का हिस्सा क़रार दिया है और अब और औरत वह मालिका है जो घर के अंदर चैन से बैठी रहे और मर्द वह ख़ादिमें क़ौम है जो सुबह से शाम तक अहले खाने के आज़ूक़े की तलाश में हैरान व सरगरदान रहे। यह दरहक़ीक़त औरत की निसवानियत की क़ीमत है जिसके मुक़ाबले में किसी दौलत, शौहरत, मेहनत और हैसियत की कोई क़दर व क़ीमत नही है।
क़ुरआने मजीद और नारी
इस्लाम में नारी के विषय पर अध्धयन करने से पहले इस बात पर तवज्जो करना चाहिये कि इस्लाम ने इन बातों को उस समय पेश किया जब बाप अपनी बेटी को ज़िन्दा दफ़्न कर देता था और उस कुर्रता को अपने लिये इज़्ज़त और सम्मान समझता था। औरत दुनिया के हर समाज में बहुत बेक़ीमत प्राणी समझी जाती थी। औलाद माँ को बाप की मीरास में हासिल किया करती थी। लोग बड़ी आज़ादी से औरत का लेन देन करते थे और उसकी राय का कोई क़ीमत नही थी। हद यह है कि यूनान के फ़लासेफ़ा इस बात पर बहस कर रहे थे कि उसे इंसानों की एक क़िस्म क़रार दिया जाये या यह एक इंसान नुमा प्राणी है जिसे इस शक्ल व सूरत में इंसान के मुहब्बत करने के लिये पैदा किया गया है ताकि वह उससे हर तरह का फ़ायदा उठा सके वर्ना उसका इंसानियत से कोई ताअल्लुक़ नही है।
इस ज़माने में औरत की आज़ादी और उसको बराबरी का दर्जा दिये जाने का नारा और इस्लाम पर तरह तरह के इल्ज़ामात लगाने वाले इस सच्चाई को भूल जाते हैं कि औरतों के बारे में इस तरह की आदरनीय सोच और उसके सिलसिले में हुक़ुक़ का तसव्वुर भी इस्लाम ही का दिया हुआ है। इस्लाम ने औरत को ज़िल्लत की गहरी खाई से निकाल कर इज़्ज़त की बुलंदी पर न पहुचा दिया होता तो आज भी कोई उसके बारे में इस अंदाज़ में सोचने वाला न होता। यहूदीयत व ईसाईयत तो इस्लाम से पहले भी इन विषयों पर बहस किया करते थे उन्हे उस समय इस आज़ादी का ख़्याल क्यो नही आया और उन्होने उस ज़माने में औरत को बराबर का दर्जा दिये जाने का नारा क्यों नही लगाया यह आज औरत की अज़मत का ख़्याल कहाँ से आ गया और उसकी हमदर्दी का इस क़दर ज़ज़्बा कहाँ से आ गया?
वास्तव में यह इस्लाम के बारे में अहसान फ़रामोशी के अलावा कुछ नही है कि जिसने तीर चलाना सीखाना उसी को निशाना बना दिया और जिसने आज़ादी और हुक़ुक का नारा दिया उसी पर इल्ज़ामात लगा दिये। बात सिर्फ़ यह है कि जब दुनिया को आज़ादी का ख़्याल पैदा हुआ तो उसने यह ग़ौर करना शुरु किया कि आज़ादी की यह बात तो हमारे पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है आज़ादी का यह ख़्याल तो इस बात की दावत देता है कि हर मसले में उसकी मर्ज़ी का ख़्याल रखा जाये और उस पर किसी तरह का दबाव न डाला जाये और उसके हुक़ुक़ का तक़ाज़ा यह है कि उसे मीरास में हिस्सा दिया जाये उसे जागीरदारी और व्यापार का पाटनर समझा जाये और यह हमारे तमाम घटिया, ज़लील और पुराने लक्ष्यों के ख़िलाफ़ है लिहाज़ा उन्होने उसी आज़ादी और हक़ के शब्द को बाक़ी रखते हुए अपने मतलब के लिये नया रास्ता चुना और यह ऐलान करना शुरु कर दिया कि औरत की आज़ादी का मतलब यह है कि वह जिसके साथ चाहे चली जाये और उसका दर्जा बराबर होने के मतलब यह है कि वह जितने लोगों से चाहे संबंध रखे। इससे ज़्यादा इस ज़माने के मर्दों को औरतों से कोई दिलचस्बी नही है। यह औरत को सत्ता की कुर्सी पर बैठाते हैं तो उसका कोई न कोई लक्ष्य होता है और उसके कुर्सी पर लाने में किसी न किसी साहिबे क़ुव्वत व जज़्बात का हाथ होता है और यही वजह है कि वह क़ौमों की मुखिया होने के बाद भी किसी न किसी मुखिया की हाँ में हाँ मिलाती रहती है और अंदर से किसी न किसी अहसासे कमतरी में मुब्तला रहती है। इस्लाम उसे साहिबे इख़्तियार देखना चाहता है लेकिन मर्दों का आला ए कार बन कर नही। वह उसे इख़्तियार व इंतेख़ाब देना चाहता है लेकिन अपनी शख़्सियत, हैसियत, इज़्ज़त और करामत का ख़ात्मा करने के बाद नही। उसकी निगाह में इस तरह के इख़्तियारात मर्दों को हासिल नही हैं तो औरतों को कहाँ से हो जायेगा जबकि उस की इज़्ज़त की क़ीमत मर्द से ज़्यादा है उसकी इज़्ज़त जाने के बाद दोबारा वापस नही आ सकती है जबकि मर्द के साथ ऐसी कोई परेशानी नही है।
इस्लाम मर्दों से भी यह मुतालेबा करता है कि वह जिन्सी तसकीन के लिये क़ानून का दामन न छोड़े और कोई ऐसा क़दम न उठाएँ जो उनकी इज़्ज़त व शराफ़त के ख़िलाफ़ हो इसी लिये उन तमाम औरतों की निशानदहीकर दी गई जिनसे जिन्सी ताअल्लुक़ात का जवाज़ नही है। उन तमाम सूरतों की तरफञ इशारा कर दिया गया जिनसे साबेक़ा रिश्ता मजरूह होता है और उन तमाम ताअल्लुक़ात को भी वाज़ेह कर दिया जिनके बाद दूसरा जिन्सी ताअल्लुक़ मुमकिन नही रह जाता। ऐसे मुकम्मल और मुरत्तब निज़ामें ज़िन्दगी के बारे में यह सोचना कि उसने एक तरफ़ा फ़ैसला किया है और औरतों के हक़ में नाइंसाफ़ी से काम लिया है ख़ुद उसके हक़ में नाइंसाफ़ी बल्कि अहसान फ़रामोशी है वर्ना उससे पहले उसी के साबेक़ा क़वानीन के अलावा कोई उस सिन्फ़ का पुरसाने हाल नही था और दुनिया की हर क़ौम में उसे ज़ुल्म का निशाना बना लिया गया था।
आयतुल्लाह आराफी का इस्माईल हानियह के नाम शोक संदेश
हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने अपने एक संदेश में तहरीक हमास के राजनीतिक के प्रमुख ब्यूरो के बेटों और पोतो की शहादत पर दुख व्यक्त करते हुए शोक संदेश भेजा हैं।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख का जनाब इस्माईल हानियह के नाम शोक संदेश कुछ इस प्रकार हैं:
इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख:
सलामुन अलैकुम:
अलशाती शिविर में ज़ायोनीवादियों के बर्बर हमले में शहीद हुए आपके बेटों और पोते-पोतियों की शहादत पर मैं आपको और आपके परिवार को संवेदना व्यक्त करता हूँ।हज़ारों मज़लूम फिलिस्तीन नौजवानों औरतों और बच्चों के साथ आपके बच्चों की शहादत जिहाद के विश्वास, धार्मिकता, धैर्य और सहनशक्ति को और बढ़ाएगा।
इसराईल शासन अपने अंत के करीब है और उसे प्रतिरोध के मोर्चे पर ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है और इस तरह के हताश और कम प्रयास उसकी असहायता और हताशा का संकेत हैं जो ईश्वर की कृपा से इस शासन के पूर्ण विनाश का कारण बनेंगे।
इस्लामी राष्ट्र का इतिहास और विवेक गहरी इस्लामी आस्था और कुरान की शिक्षाओं से पैदा हुए इन बलिदानों और शहादतों को कभी दुनिया नहीं भूलेगी।
हौज़ा ए इल्मिया आपके बेटों और हज़ारों फ़िलिस्तीनियों की शहादत पर हम दुख व्यक्त करते हैं और हम कुद्स शरीफ़ और फ़िलिस्तीन राष्ट्र की पूर्ण मुक्ति तक अपनी पूरी ताकत से आपके साथ खड़े हैं जिसके लिए हम कुछ करने को तैयार है और पूरी जिम्मेदारी के साथ आपके साथ खड़े हैं।
अली रज़ा अराफ़ी
प्रमुख हौज़ा ए इल्मिया
अमेरिका ने चिंतित होकर, इज़राइल में अपने राजनयिक कर्मचारियों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया
तेल अवीव में अमेरिकी दूतावास ने घोषणा की है कि उसने सुरक्षा चिंताओं के कारण कब्जे वाले क्षेत्रों में अपने राजनयिकों और उनके परिवारों की आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया है।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकृत फ़िलिस्तीन में अमेरिकी दूतावास ने एक बयान में अपने सभी राजनयिकों और नागरिकों को तेल अवीव, अधिकृत येरुशलम और बेर अल-सबा के बाहर यात्रा न करने की चेतावनी दी है। बयान में कहा गया है कि दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग पर इजरायली हमले के लिए ईरानी प्रतिशोध की संभावना और सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए, अमेरिकी दूतावास के कर्मचारी और नागरिक तेल अवीव, येरुशलम और बेर्शेबा के बाहर यात्रा नहीं करते हैं
आईआरएनए की रिपोर्ट के अनुसार, रिपब्लिकन प्रतिनिधि और अमेरिकी कांग्रेस की खुफिया समिति के अध्यक्ष माइक टर्नर ने पहले कहा था कि जहां वाशिंगटन ईरान को गाजा में युद्ध से दूर रखने की कोशिश कर रहा है, वहीं इज़राइल दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास में हमला करना कोई बुद्धिमानी की बात नहीं थी.
एशियाई कुश्ती प्रतियोगिताओं में ईरानी पहलवानों का उत्कृष्ट प्रदर्शन
एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में, ईरानी पहलवान ने 89 किलोग्राम वर्ग में अपने मंगोलियाई प्रतिद्वंद्वी को हराकर ईरान के लिए तीसरा और अंतिम स्वर्ण पदक जीता।
यह एशियाई फ्रीस्टाइल कुश्ती प्रतियोगिता किर्गिस्तान में हो रही है। इन स्पर्धाओं में दो स्वर्ण और एक कांस्य पदक के साथ, ईरान के पहलवान मोहम्मद नाखुदी ने उनहत्तर किलोग्राम स्पर्धाओं के फाइनल में अपने मंगोलियाई प्रतिद्वंद्वी को दो के मुकाबले बारह अंकों से हराया और देश ने पहली पांच भार कुश्ती स्पर्धाओं में तीसरा स्वर्ण जीता के लिए पदक
इससे पहले, ईरानी पहलवान रहमान अमौज़ाद और अमीर मोहम्मद यज़दानी ने पैंसठ और सत्तर किलोग्राम प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीते थे, जबकि मोहम्मद हुसैन मोहम्मदियन ने अट्ठानवे किलोग्राम प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता था।
गाजा में नरसंहार और अकाल पर सुरक्षा परिषद की बैठक
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने वर्ल्ड सेंट्रल किचन टीम पर ज़ायोनी सेना के हमलों की जांच की मांग की है।
प्राप्त समाचार के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पंद्रह सदस्यों ने एक बयान में गाजा युद्ध में जानमाल के नुकसान, मानवीय त्रासदी की स्थिति और क्षेत्र में अकाल के खतरे पर चिंता व्यक्त की है सहायता वितरण के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को तत्काल दूर करने की मांग की।सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया कि इजरायल को घिरे गाजा पट्टी में मानवीय सहायता भेजने की अंतरराष्ट्रीय मांगों को स्वीकार करना चाहिए।
ज्ञात हो कि मंगलवार की सुबह ज़ायोनी सरकार ने मध्य गाजा के दीर अल-बलाह क्षेत्र में फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को भोजन वितरित करने वाले एक गैर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन वर्ल्ड सेंट्रल किचन के कार्यकर्ताओं के वाहन पर हमला किया, क्योंकि जिसके परिणामस्वरूप छह विदेशियों सहित सात लोग मारे गए वर्ल्ड सेंट्रल किचन एक गैर-सरकारी संगठन है जो प्राकृतिक आपदाओं के बाद प्रभावित लोगों को खाद्य सामग्री वितरित करता है।
पाकिस्तानी राष्ट्रपति की ईरानी राष्ट्रपति से टेलीफोन पर बातचीत
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने इस्लामिक गणराज्य ईरान के राष्ट्रपति को पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया है और कहा है कि इस्लामाबाद विभिन्न क्षेत्रों में तेहरान के साथ घनिष्ठ सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहिम रायसी के साथ टेलीफोन पर बातचीत में आश्वासन दिया कि पाकिस्तान आपसी हित के सभी क्षेत्रों में ईरान के साथ घनिष्ठ सहयोग जारी रखेगा और इसे मजबूत बनाएगा
आसिफ अली जरदारी ने ईरान के राष्ट्रपति को ईद-उल-फितर की बधाई देते हुए दोनों देशों की सुरक्षा चुनौतियों पर काबू पाने के लिए सूचनाओं के आदान-प्रदान को बढ़ाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया और शोक संतप्त परिवारों और ईरानी अधिकारियों के प्रति संवेदना व्यक्त की, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया इजरायली सरकार के हमले में.
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने भी ज़ायोनी ताकतों द्वारा फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार और मानवीय संकट पर चिंता व्यक्त की और गाजा में तत्काल युद्धविराम की आवश्यकता पर बल दिया।
फ़िलिस्तीनियों के जेनीन शरणार्थी शिविर पर 2002 के इस्राईल के अपराधों की समीक्षा
सन 2002 में जेनीन शर्णार्थी शिविर पर इस्राईल की हिंसक कार्यवाही की समीक्षा
मार्च सन 2002 के अंत में अवैध ज़ायोनी शासन के भूतपूर्व बदनाम और घृणित प्रधानमंत्री एरियल शेरून के आदेश पर ज़ायोनी सेना ने फ़िलिस्तीनी क्षेत्र पर हमला कर दिया। सन 1967 से लेकर उस समय तक, ज़ायोनियों की यह सबसे बड़ी सैन्य कार्यवाही थी। यह हमला रामल्ला, तूलकर्म, क़िलक़ीलिए, नाबलुस, बैते लहम और जेनीन पर किया गया।
इस हमले का मुख्य लक्ष्य, जार्डन नदी के पश्चिमी तट के अधिक जनसंख्या वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों पर ज़ायोनियों द्वारा नियंत्रण करना था। 3 से लेकर 7 अप्रैल 2002 तक ज़ायोनी सेना ने एरियल शेरून के आदेश पर फ़िलिस्तीनियों के जेनीन नामक शर्णार्थी शिविर पर यह हमला किया था।/यह हमला टैंकों, बख़्तरबंद गाड़ियों, युद्धक हैलिकाप्टरों, एफ-16 युद्धक विमानों, दो पैदल बटालियनों, कमांडोज़ और कई बुल्ड़ोज़रों तथा बहुत से बख़्तरबंद बुल्डोज़रों से किया गया था। ज़ायोनियों की ओर से पूरी तैयारी के साथ किये गए इस हमले में 52 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए। ज़ायोनियों के इस हमले में उसके 23 सैनिक भी मारे गए। संयुक्त राष्ट्रसंघ के ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट के अनुसार जेनीन शरणार्थी शिविर में शहीद होने वाले 52 फ़िलिस्तीनी शहीदों में 22 आम नागरिक थे।
इस जनसंहार के बारे में संयुक्त राष्ट्रसंघ के ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट बताती है कि ज़ायोनियों के इस हमले के समय वे फ़िलिस्तीन, पत्रकार और विदेशी लोग जो इस शिविर से बाहर थे उन्होंने फ़िलिस्तीनियों के शर्णार्थी शिविर पर मिसाइलों, हैलिकाप्टरों और युद्धक विमानों को हमला करते हुए देखा था। इस हमले के बारे में सैन्य विशेषज्ञों और संचार माध्यमों का मानना है कि कार्यवाही के दौरान बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनी मारे गए। 4 अप्रैल से 14 अप्रैल तक फ़िलिस्तीनी शिविर और वहां के अस्पताल के इर्दगिर्द का घेराव इसीलिए किया गया था ताकि बाहर की दुनिया को यह पता ही न चलने पाए कि फ़िलिस्तीनियों के जेनीन शरणार्थी शिविर में इस दौरान क्या हुआ?
जेनीन शर्णार्थी शिविर में 2002 में नष्ट किये गए अपने घर के बाहर रोती हुई एक फ़िलिस्तीनी महिला
ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट यह भी बताती है कि वहां पर फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार के अतिरिक्त उनको मानवीय ढाल के रूप में प्रयोग करने, दर्दनाम यातनाएं देने, गिरफ्तार किये गए फ़िलिस्तीनियों के साथ दुर्वयव्हार करने, उनको खाने-पीने से रोकने, उनतक दवाएं ले जाने में बाधाएं डालने और इस शिविर की भूलभूत सुविधाओं को नष्ट करने जैसे अमानवीय काम भी किये गए।
प्रोफेसर जेनीफर लोवेंशटाइन को, जो स्वतंत्र पत्रकारिता भी करती हैं, 2002 के वसंत के मौसम में फ़िलिस्तीनियों के जेनीन शर्णार्थी शिविर में भेजा गया था। वहां के बारे में अपनी रिपोर्ट में वे लिखती हैं कि आरंभ में तो मुझको यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या मैं सही जगह पर पहुंची हूं? मेरी आंखों के सामने एक खण्डहर था। मुझको याद है कि मैंने एक बूढ़े व्यक्ति से पूछा था कि क्या यहां पर कोई शिविर है? उसने एक बार मुझको बहुत ही ग़ौर से देखा और फिर उसी खण्डहर की ओर संकेत करते हुए कहा कि वह है। उसको देखकर मेरी समझ में आया कि इस शिविर पर कितना भयावह हमला किया गया होगा। मुझको तो उस खण्डहर में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कुछ टीले से दिखाई दे रहे थे। वहां की ज़मीन कीचड़ वाली थी। वहां पर मौजूद लोग उस खण्डहर से अपना सामान निकाल रहे थे। कुछ लोग कीचड़ में रास्ता बना रहे थे ताकि मारे गए लोगों को निकाला जा सके या घायलों तक सहायता पहुंचाई जा सके।
वहां पर लाशों की बू फैली हुई थी। वहां के लोग इस बदबू के बारे में बातें कर रहे थे। उस समय तक मैंने कभी भी एसा दृश्य नहीं देखा था। मैं लोगों से दूर वहां पर मौजूद अस्पताल में गई। वहां के कर्मचारी, मारे गए लोगों को सफेद कपड़ों में लपेट रहे थे। कफन पहनाकर लाशों को वहीं पर तपते हुए सूरज में रखा जा रहा था। उसी के पीछे कुछ क़ब्रे बनी हुई थीं। उनको देखकर लग रहा भा कि उनको जल्दी में खोदा गया है ताकि लाशों को फौरन की दफ़्न कर दिया जाए और कोई बीमारी न फैलने पाए।
जेनीन शर्णार्थी शिविर में जघन्य अपराध करने वाले यह नहीं चाहते थे कि उन्होंने वहां पर जो अमानवीय कार्यवाही की है उसकी ख़बर दूसरों तक पहुंचे। वे इसके पक्ष में नहीं थे कि कोई उस स्थान की तस्वीर खींचे या फ़िल्म बनाए। स्वाभाविक सी बात है कि आक्रमणकारी इस बात को छिपाने में लगे हुए थे कि इस शिविर की बिजली और पानी की सप्लाई काटी जा चुकी है और वहां पर मेडिकल फैसिलिटी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। इसीलिए उस स्थान पर किसी को भी जाने नहीं दिया जा रहा था। बड़ी मुश्किल से वहां पर कुछ विदेशी पत्रकार पहुंच पाए थे। विडंबना यह है कि ज़ायोनी सैनिकों ने जेनीन शर्णार्थी शिविर पर हमला करके फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार करने के बाद फ़िलिस्तीनियों के बरतनों में पेशाब किया और उनको उसी हालत में छोड़ दिया। जब वे यह काम कर चुके तो यह इस्राईली सैनिक हंसते हुए वहां से चले गए और आगे जाकर आइसक्रीम खाने लगे।
परिवेष्टन का शिकार जेनीन कैंप के लिए बचाव एवं सहायता संगठन सहायता नहीं भेज पा रहे थे। हालांकि वहां पर मौजूद फ़िलिस्तीनियों को इसकी ज़रूरत थी। किसी को फ़िल्म बनाने का अधिकार नहीं था। कोई एसा फोटो नहीं दिखाई दिया जिसमें किसी बच्चे को डर ही वजह से अपनी मां से चिपटा हुए दिखाया गया हो। खेद की बात यह है कि ज़ायोनियों से सहानुभूति जताई जा रही थी। दुखी करने वाले यह दृश्य उस समय सामने आए जब बहुत बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी तेलअवीव और येरूश्लम पहुंचे और उन्होंने घटना को अंजाम देने वालों से हाथ मिलाए और उनसे सहानुभूति प्रकट की।
जेनीन को भुलाया जा चुका है। यह घटना 20 साल पहले की है। उस समय से लेकर अबतक ग़ज़्ज़ा में कई ख़तरनाक कार्यवाहियां की जा चुकी हैं। ऐसे में इस दुखद घटना की याद को बाक़ी रखना बहुत ज़रूरी है। इसकी वजह यह है कि सामान्यतः प्रतिरोध और विशेषकर विश्व वर्चस्ववाद के विरुद्ध कड़ा प्रतिरोध ऐसी ही ऐतिहासिक घटनाओं की पुनरावृत्ति से आरंभ होते हैं।
ऐतिहासिक घटनाओं की पुनरावृत्ति, लोगों को प्रेरित करने में सहायक सिद्ध होती है। अगर अपनी सरकारों की हां-हुज़ूरी के कारण संचारा माध्यम इस काम को अंजाम न दें तो फिर हम इंसानों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे उस काम को आगे बढ़ाएं। जेनीन को भुला दिया गया है। जेनीन या इस जैसी अन्य भुलाई जाने वाली घटनाओं को याद दिलाना भी एक प्रकार का प्रतिरोध है। अतीत को याद रखना और वर्तमान को बदलने की हिम्मत, वह चीज़ है जो भविष्य के निर्माण का पहला क़दम है।
राष्ट्रपति रईसी और हमास के प्रमुख के बीच टेलीफोन पर बातचीत
ईरान के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहिम रायसी ने हमास के प्रमुख के तीन बेटों और तीन पोतों की शहादत पर कहा है कि स्टैजमैट फ्रंट के नेता भी कुद्स की आजादी के लिए बलिदान देने और मरने में अपने लोगों के साथ अग्रिम पंक्ति में हैं।
आईआरएनए के मुताबिक, देश के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहिम रईसी ने हमास के प्रमुख इस्माइल हनियेह से टेलीफोन पर बातचीत में अपने बेटों की शहादत पर संवेदना व्यक्त की. ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि इस कायरतापूर्ण हमले ने बर्बर और बच्चों की हत्या करने वाली ज़ायोनी सरकार की विनम्रता और असहायता को पहले से कहीं अधिक स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा के दावेदार निरंकुश और घृणित ज़ायोनी शासन के अपराधों में समान रूप से शामिल हैं, ज़ायोनी शासन के अपराधों के लिए उनकी चुप्पी और कायरतापूर्ण समर्थन है।
ईरान के राष्ट्रपति ने इस दर्दनाक परीक्षा पर हमास के प्रमुख के धैर्य और बलिदान की प्रशंसा की और कहा कि प्रतिरोध मोर्चे के नेता अपने लोगों के साथ कुद्स की मुक्ति के लिए बलिदान की पहली पंक्ति में हैं।
इस टेलीफोन बातचीत में हमास के प्रमुख इस्माइल हनिएह ने ईरान के राष्ट्रपति को उनके फोन कॉल और सहानुभूति की अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि इस खून से हम अपने राष्ट्र के लिए आशा और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेंगे। उन्होंने कहा कि आपराधिक दुश्मन सोचता है कि नेता दृढ़ता के बच्चों को निशाना बनाकर हमारे दृढ़ संकल्प और हमारे राष्ट्र को कमजोर कर सकते हैं, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि यह खून हमें दृढ़ता के रास्ते पर मजबूत और अधिक स्थिर बना रहा है