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ईरान के बारे में तथ्यपरक देशों की रिपोर्ट पर विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के बजाए अन्तर्राष्ट्रीय तथ्यपरक टीम को अपने ही देशों में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करनी चाहिए।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की तथ्यपरक समिति ने ईरान में पिछले साल होने वाले उपद्रवों के बारे अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि ईरान में मानवाधिकारों का हनन देखा गया है।  नासिर कनआनी ने इसका कड़ाई से खण्डन किया है।  उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में पेश की गई बातों का कोई भी क़ानूनी आधार नहीं है।

ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि यह रिपोर्ट बताती है कि इसको जर्मनी, ब्रिटेन, अमरीका और ज़ायोनियों से पैसे लेकर बनाया गया है जिनके आदेश पर इसको तैयार किया गया है।  उन्होंने बताया कि तथ्यपरक समिति का गठन करने वाले देश, ईरान के भीतर शासन की मज़बूती से अप्रसन्न हैं।  पिछले साल ईरान में अशांति फैलाने में उनका हाथ रहा किंतु उसमें भी वे विफल रहे इसलिए बहुत क्रोधित हैं।  अब वे एक रिपोर्ट पेश करके ईरानी राष्ट्र से बदला लेना चाहते हैं।

ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने कहा कि तथाकथित तथ्यपरक समिति का गठन करने वाले देशों के लिए उचित यह होगा कि वे ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के बजाए अपने ही देशों में किये जा रहे मानवाधिकारों के हनन के बारे में कोई कार्यवाही करें।  

पीएमएनएल और पीपीपी के संयुक्त प्रत्याशी अब पाकिस्तान के राष्ट्रपति होंगे। इस प्रकार से वे पाकिस्तान के 14वें राष्ट्रपति बने हैं।

राष्ट्रपति पद के चुनाव में शनिवार को आसिफ़ अली ज़रदारी को 255 वोट मिले जबकि उनके मुक़ाबले में अचकज़ई को 119 मत डाले गए।

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पार्टी ने एक बयान जारी करके इस देश के हालिया संसदीय चुनाव के परिणामों पर सवाल खड़े किये हैं।  इस पार्टी का दावा है कि हालिया चुनावों में गड़बड़ी के ही कारण नए राष्ट्रपति अस्तित्व में आए हैं।

हालिया दिनों में नवाज शरीफ की पार्टी PML-N और बिलावल भुट्टो की पार्टी PPP ने गठबंधन करके नई सरकार बनाने पर समझौता किया था।  इन दोनो दलों का लक्ष्य पहले तो तहरीके इंसाफ़ पार्टी को सत्ता के रास्ते से हटाना था क्योंकि हालिया संसदीय चुनाव में इमरान ख़ान से संबन्ध रखने वाले दल ने अधिक वोट हासिल किये थे।

पाकिस्तान में हालिया राष्ट्रपति चुनाव के संबन्ध में राजनीतिक मामलों के एक टीकाकार अब्बास ख़टक कहते हैं कि यह बात निश्चित रूप में कही जा सकती है कि पीएमएनएल और पीपीपी गठबंधन का मुख्य उद्देश्य तहरीके इंसाफ़ पार्टी को सत्ता में आने से रोकना था जिसमें वे पूरी तरह से सफल रहे।  हालांकि यह बात भी बहुत महत्वपूर्ण हैं कि इस गठबंधन को पाकिस्तान की वर्तमान समस्याओं का समाधान भी करना होगा क्योंकि वहां के लोग इसके इंतेज़ार में बैठे हैं।  दूसरी ओर कुछ हल्क़ों को यह आशा है कि पाकिस्तान की नई सरकार इस देश को आर्थिक दृष्टि से मज़बूत बनाने के प्रयास करेगी।

पिछली बार जिस दौरान आसिफ़ अली ज़रदारी, पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने थे उस दौरान उन्होंने इस देश के पड़ोसी देशों विशेषकर इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ व्यापारिक और आर्थिक क्षेत्रों में संबन्धों को अधिक मज़बूत किया था।  एसे में कहा जा सकता है कि दूसरी बार उनके राष्ट्रपति बनने से ईरान के साथ पाकिस्तान के संबन्धों को एक नई उड़ान मिल सकती है।  इस बात की आशा की जाती है कि आरिफ़ अलवी के राष्ट्रपति पद से हटने के बाद आसिफ़ अली ज़रदारी का राष्ट्रपति काल, अपने पड़ोसी देशों के साथ पाकिस्तान के संबन्धों के अधिक फलने-फूलने के अवसर उपलब्ध करवाएगा।

बहुत से विशलेषक यह मानते हैं कि पाकिस्तान की भूतपूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के पति और इस देश के पूर्व विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो के पिता, 68 वर्षीय ज़रदारी, द्वारा राष्ट्रपति पद के संभालने से पाकिस्तान के पड़ोसी देशों विशेषकर अफ़ग़ानिस्तान में इस बात की प्रतीक्षा की जा रही है कि वहां की नई सरकार, इस्लामाबाद और काबुल के संबन्धों में मौजूद चुनौतियों को दूर करने के लिए निश्चित रूप से सकारात्मक क़दम उठाएगी।

अमरीका के राष्ट्रपति ग़ज़्ज़ा के बारे में अवैध ज़ायोनी शासन को लेकर विरोधाभासी बातें कह रहे हैं।

जो बाइडेन ने जहां यह कहा है कि ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के बारे में इस्राईल को ध्यान रखना चाहिए वहीं पर वे यह भी कहते हैं कि हम इस्राईल का समर्थन जारी रखेंगे।

एमएसएनबीसी के संवाददाता से बात करते हुए अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा कि इस्राईल का समर्थन बहुत ज़रूरी है जिसकी कोई लाल रेखा नहीं है।  उनका यह भी कहना था कि इस्राईल के लिए हथियारों की स्पलाई का काम रुक नहीं सकता।

ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनियों के हाथों 30000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों की शहादत की ओर संकेत करते हुए जो बाइडेन कहते हैं कि हमास को समाप्त करने के कारण इस्राईल को 30000 फ़िलिस्तीनियों की हत्या नहीं करनी चाहिए थी।  एक रेड लाइन होनी चाहिए थी।  अमरीकी राष्ट्रपति के अनुसार इस बारे में उसको अधिक सावधानी से काम लेना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि मैं पुनः इस्राईल जाकर वहां के सांसदों से युद्ध से संबन्धित विषयों पर वार्ता करना चाहता हूं।  इसी के साथ बाइडेन का कहना है कि इस्राईल को अपनी रक्षा का पूरा अधिकार है।

ज्ञात रहे कि फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमलों में अबतक 30960 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।इन पाश्चिक हमलों के दौरान 72524 फ़िलिस्तीनी घायल हो गए जिनमें से बहुत से घायल फ़िलिस्तीनियों के उपचार के लिए दवाएं उपलब्ध नहीं हैं।  विशेष बात यह है कि ग़ज़्ज़ा में अबतक जो 30960 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं उनमें 72 प्रतिशत बच्चे और महिलाएं शामिल हैं।

इस सम्मेलन का आयोजन इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच आपसी समझ और सम्मान को ध्यान में रखते हुए किया गया था जिसमें भारत और ईरान की प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस्लाम और हिंदू धर्म मे महदी मोऊद की अवधारणा पर एक अंतर-धार्मिक सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें मशहूर हस्तियों ने भाग लिया।

यह सम्मेलन "महदी मोऊद" के संबंध में विभिन्न धर्मों की अवधारणाओं और विद्वानों के विचारों का आदान-प्रदान करने और विषय पर मूलभूत मतभेदों को समझने का एक उत्कृष्ट माध्यम था।

इस अवसर पर, भारत में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन महदी महदवीपुर ने इस्लाम में महदीवत और महदी मोऊद की अवधारणा का उल्लेख किया और कहा: इस्लाम में एक उद्धारकर्ता  की अवधारणा हमेशा की अवधारणा से आती है। महदी मोऊद (अ.स.) को शामिल किया गया है, जो ज़ोहूर करेंगे और दुनिया में न्याय स्थापित करेंगे, यह विश्वास विशेष रूप से शियाओं के बीच केंद्रीय स्थान रखता है और यह कुछ मतभेदों के साथ सुन्नी भाइयों के बीच भी देखा जाता है।

ईरान में भारत के सांस्कृतिक सलाहकार, डॉ. बलराम शुक्ला ने हिंदू धर्म में मुंजी आखेरुज ज़मान पर चर्चा करते हुए कहा: हिंदू धर्म मे मुंजी आखर की अवधारणा है जिसे "काल्कि अवतार" के रूप में जाना जाता है। जोकि विष्णु के अंतिम अवतार के रूप में जाहिर होगा, वह कलयुग की बुराई को समाप्त करेगा और दुनिया में व्यवस्था बहाल करेगा, ये दोनों एक उद्धारकर्ता के आने का प्रतिनिधित्व करते हैं जो दुनिया में न्याय लाएगा।

इस सम्मेलन में भारत में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन महदी मेहदीपुर , ईरान में भारत के सांस्कृतिक सलाहकार डॉ. बलराम शुक्ला और अदयान व मज़ाहिब विश्वविद्यालय में धर्म और सूफीवाद विभाग के निदेशक डॉ. मोहम्मद रूहानी ने बात की।

 

हिज़बुल्ला ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा के मामले में न्यूट्रल या तटस्थ रहना संभव ही नहीं है।

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन हिज़बुल्ला के उप महासचिव कहते हैं कि ग़ज़्ज़ा की वर्तमान स्थति के बारे में दो दृष्टिकोंण पाए जाते हैं।

पहला दृष्टिको वहां पर जारी युद्ध से संबन्धित है जिसके अन्तर्गत फ़िलिस्तीनी जियाले पूरी क्षमता और धैर्य के साथ ज़ायोनियों का मुक़ाबला कर रहे हैं।  वे अपनी जान जोखिम में डालकर अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र करवाना चाहते हैं।  इस काम के लिए वे हमले, अत्याचार, विध्वंस, भूख और प्यास सबको सहन कर रहे हैं।

नईम क़ासिम के अनुसार दूसरा दृष्टिकोण यह है कि ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के आक्रमण में अमरीका उसके साथ है।  उसी के समर्थन से अवैध ज़ायोनी शासन, ग़ज़्ज़ा के भीतर हर प्रकार के अपराध कर रहा है जिसमें अस्पतालों पर हमले और घायल फ़िलिस्तीनियों के उपचार में बाधाएं डालना भी शामिल है।

हिज़बुल्ला के नेता कहते हैं कि फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध हर प्रकार की पाश्विकता का प्रयोग करने के बावजूद अवैध ज़ायोनी शासन अबतक वहां पर कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं कर पाया है बल्कि ग़ज़्ज़ा की दलदल में धंसता जा रहा है।

नईम क़ासिम ने कहा कि प्रतिरोध जारी रहेगा जो विजयी होगा।  यही कड़ा प्रतिरोध है जो अवैध ज़ायोनी शासन को उसके लक्ष्यों तक पहुंचने में बाधा बना हुआ है।  उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनियों का अलअक़सा तूफ़ान आपरेशन, पूरे विश्व स्तर पर है जिसके परिणाम पूरी दुनिया को दिखाई देंगे।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन शेख मुहम्मद संफ़ूर ने कहा: दमनकारी इस्राईलीयो ने ग़ज़्ज़ा को सहायता बंद कर दी है और पांच लाख फ़िलिस्तीनियों को भुखमरी के कगार पर खड़ा कर दिया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, बहरीन की राजधानी मनामा में अल-द्राज़ टाउन के इमाम, जुम्मा हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलमान शेख मुहम्मद संफ़ूर ने इमाम सादिक मस्जिद (अ) मे शुक्वार के उपदेश के  दौरान: दमनकारी इस्राईली सरकार ने ग़ज़्ज़ा में घरों को नष्ट कर दिया, अस्पतालों और शरणार्थी केंद्रों को नष्ट कर दिया लेकिन फिर भी उसका दिल नहीं भरा, उसने 30,000 से अधिक लोगों की जान लेना जारी रखा, और 70,000 फ़िलिस्तीनी लोगों को विस्थापित किया। जिनके पास कठोर ठंड और तीव्र बमबारी से बचाने के लिए कोई आश्रय नहीं था, लेकिन यह सब उनके दिल को ठंडा नहीं हुआ और उन्होंने फ़िलिस्तीनियों का पीछा किया और जहां भी वे गए, उन्हें निशाना बनाया।

उन्होंने कहा: इस अकथनीय क्रूरता के बावजूद, इस्राईलीयो का उत्पीड़न दिन-प्रतिदिन और अधिक क्रूर होता जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, आधे से अधिक लोग अकाल और भुखमरी से प्रभावित हुए हैं।

उन्होंने कहा: ज़ायोनी शासन का लक्ष्य फ़िलिस्तीनियों को उनकी ही ज़मीन से खदेड़ना और प्रतिरोध मोर्चे पर उनकी सभी शर्तों को स्वीकार करने के लिए दबाव डालना है, लेकिन गाजा के लोग चाहे कितने भी क्रूर और दमनकारी क्यों न हों, अपनी ज़मीन नहीं छोड़ेंगे। इस्राईली अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सकेंगे और प्रतिरोध के बहादुर सैनिक एक के बाद एक उसे अपमानजनक तरीके से परास्त करते रहेंगे।

यमन के विभिन्न नगरों में निकलकर इस देश के लाखों लोगों ने फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में नारे लगाए।

फ़िलिस्तीनियों के पक्ष में सड़को पर निकलने वाले लाखों यमन वासियों ने अपने देश की सेना की ओर से अमरीका, ब्रिटेन और अवैध ज़ायोनी शासन के जहाज़ों पर किये गए हमलों का खुलकर समर्थन किया।

इसी बीच यमन के स्वास्थ्य मंत्री ताहेर अलमुतवक्किल ने कहा है कि देश की सरकार और उसके सारे ही सदस्य, फ़िलिस्तीनियों की आकांक्षाओं का सम्मान करते हैं।  उन्होंने कहा कि हम फ़िलिस्तीन विरोधी अमरीकी, ब्रिटिश और इस्राईली योजना को कभी स्वीकार नहीं करते।  उनका कहना था कि फ़िलिस्तीनियों को भूखा रखने के ज़ायोनी प्रयासों का हम खुलकर विरोध करते हैं।

यमन की सेना अदन की खाड़ी और लाल सागर में उन जहाज़ों को निशाना बना रही है जो अवैध ज़ायोनी शासन के होते हैं या फिर वहां जा रहे होते हैं।  कल ही यमन की सेना ने 37 ड्रोनों के साथ लाल सागर मे अमरीकी जहाज़ Propel Fortune पर हमला किया था।

यमन के अंसारुल्ला आंदोलन के नेता अलहूसी कहते हैं कि जबसे फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध ग़ज़्ज़ा में अवैध ज़ायोनी शासन ने हमले आरंभ किये हैं उस समय से यमनी सेना ने 96 बार हमले किये है।  इस दौरान 32 बार अवैध ज़ायोनी शासन के भीतर घुसकर कार्यवाही की गई।  इस कार्यवाही ने अमरीका और ब्रिटेन को क्रोधित कर दिया है।  अलहूसी ने बताया कि यमन की सेना ने पिछले 150 दिनों के दौरान 403 मिसाइलों से 61 आपरेशन किये।

अंसारुल्ला के नेता कहते हैं कि जबतक ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध ज़ायोनियों की कार्यवाहियां रुक नहीं जातीं उस समय तक हमारा अभियान जारी रहेगा।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के सोशल मीडिया एकाउंट्स को ब्लॉक करने में अमेरिकी कंपनी "मेटा" या पूर्व फेसबुक की कार्रवाई को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हवाले से पश्चिम की शत्रुता का संकेत क़रार दिया है।

हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान कहते हैं कि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म मेटा से इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का एकाउंट ब्लाक करना उचित काम नहीं है। ईरान के विदेश मंत्री का कहना है कि यह काम जहां पर अभिव्यक्त की स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है वहीं पर आपत्तिजनक, अनैतिक और ग़ैर क़ानूनी है।

मेटा ने 8 फरवरी को एक ग़ैर क़ानूनी काम करते हुए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के एकाउंट को ईंस्टाग्राम और फेसबुक पर ब्लॉक कर दिया था।

हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने शुक्रवार की रात मिडिल ईसट आई से बात करते हुए कहा कि यह काम मेटा के नैतिक पतन और दिवालियेपन को दर्शाता है।  ईरान के विदेशमंत्री के अनुसार मेटा की ओर किया जाने वाला यह काम उन लाखों लोगों का भी अपमान है जो इसपर वरिष्ठ नेता को फालो करते हैं।

इससे पता चलता है कि पश्चिम में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा करने वाले इससे केवल अपने राजनीतिक हितों को साधते हैं।  अब्दुल्लाहियान का कहना था कि मेटा का यह काम, अमरीकी सोशल नेटवर्क द्वारा फ़िलिस्तीन के समर्थकों की आवाज़ को व्यापक स्तर पर सेंसर करने के अभियान का भाग है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में विश्व में ग़ज़्ज़ा के अत्याचारग्रस्त फ़िलिस्तीनियों के सबसे बड़े समर्थक, आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई हैं।  विदेश मंत्री अब्दुल्लाहियान के अनुसार सेलीकोन वैली का साम्राज्य, इस आवाज़ को विश्व के आम जनमत तक पहुंचाने में बाधा नहीं बन सकता।     

2021  तक फ़ेसबुक कंपनी के नाम से चलने वाली अमेरिकी कंपनी मेटा प्लेटफ़ॉर्म ने कुछ समय पहले एक शत्रुतापूर्ण कार्रवाई करते हुए इंस्टाग्राम और फेसबुक पर इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के खातों को ब्लॉक कर दिया जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है।

इस कार्रवाई को सही ठहराते हुए मेटा ने दावा किया कि उसने ख़तरनाक संगठनों और व्यक्तियों के संबंध में कंपनी की नीतियों के उल्लंघन के कारण ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई के एकाउंट्स को ब्लॉक कर दिया।

ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता से संबंधित पेजेज़ को पहले ट्विटर जैसे अन्य पश्चिमी प्लेटफार्मों पर ब्लॉक कर दिया गया था।

यह उन परिस्थितियों में है कि जब हालिया महीनों में इस शासन के अपराधों के बाद दुनियाभर के मुसलमानों का समर्थन, फिलिस्तीनी प्रतिरोध के लिए बढ़ा है क्योंकि सुप्रीम लीडर ने दुनिया की सरकारों पर ज़ायोनी शासन के साथ संबंध तोड़ने के लिए राष्ट्रों के दबाव डालने पर बल दिया था और उनका यह बयान सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हो रहा है और यही कारण है कि पश्चिम समर्थक सोशल मीडिया ने उनके पेजेज़ को ब्लॉक कर दिया है ताकि दुनिया तक सत्य की आवाज़ न पहुंच सके।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के सोशल मीडिया एकाउंट्स को ब्लॉक करने में अमेरिकी कंपनी "मेटा" या पूर्व फेसबुक की कार्रवाई को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हवाले से पश्चिम की शत्रुता का संकेत क़रार दिया है।

हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान कहते हैं कि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म मेटा से इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का एकाउंट ब्लाक करना उचित काम नहीं है। ईरान के विदेश मंत्री का कहना है कि यह काम जहां पर अभिव्यक्त की स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है वहीं पर आपत्तिजनक, अनैतिक और ग़ैर क़ानूनी है।

 

मेटा ने 8 फरवरी को एक ग़ैर क़ानूनी काम करते हुए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के एकाउंट को ईंस्टाग्राम और फेसबुक पर ब्लॉक कर दिया था।

हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने शुक्रवार की रात मिडिल ईसट आई से बात करते हुए कहा कि यह काम मेटा के नैतिक पतन और दिवालियेपन को दर्शाता है।  ईरान के विदेशमंत्री के अनुसार मेटा की ओर किया जाने वाला यह काम उन लाखों लोगों का भी अपमान है जो इसपर वरिष्ठ नेता को फालो करते हैं।

इससे पता चलता है कि पश्चिम में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा करने वाले इससे केवल अपने राजनीतिक हितों को साधते हैं।  अब्दुल्लाहियान का कहना था कि मेटा का यह काम, अमरीकी सोशल नेटवर्क द्वारा फ़िलिस्तीन के समर्थकों की आवाज़ को व्यापक स्तर पर सेंसर करने के अभियान का भाग है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में विश्व में ग़ज़्ज़ा के अत्याचारग्रस्त फ़िलिस्तीनियों के सबसे बड़े समर्थक, आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई हैं।  विदेश मंत्री अब्दुल्लाहियान के अनुसार सेलीकोन वैली का साम्राज्य, इस आवाज़ को विश्व के आम जनमत तक पहुंचाने में बाधा नहीं बन सकता।     

2021  तक फ़ेसबुक कंपनी के नाम से चलने वाली अमेरिकी कंपनी मेटा प्लेटफ़ॉर्म ने कुछ समय पहले एक शत्रुतापूर्ण कार्रवाई करते हुए इंस्टाग्राम और फेसबुक पर इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के खातों को ब्लॉक कर दिया जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है।

इस कार्रवाई को सही ठहराते हुए मेटा ने दावा किया कि उसने ख़तरनाक संगठनों और व्यक्तियों के संबंध में कंपनी की नीतियों के उल्लंघन के कारण ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई के एकाउंट्स को ब्लॉक कर दिया।

ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता से संबंधित पेजेज़ को पहले ट्विटर जैसे अन्य पश्चिमी प्लेटफार्मों पर ब्लॉक कर दिया गया था।

यह उन परिस्थितियों में है कि जब हालिया महीनों में इस शासन के अपराधों के बाद दुनियाभर के मुसलमानों का समर्थन, फिलिस्तीनी प्रतिरोध के लिए बढ़ा है क्योंकि सुप्रीम लीडर ने दुनिया की सरकारों पर ज़ायोनी शासन के साथ संबंध तोड़ने के लिए राष्ट्रों के दबाव डालने पर बल दिया था और उनका यह बयान सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हो रहा है और यही कारण है कि पश्चिम समर्थक सोशल मीडिया ने उनके पेजेज़ को ब्लॉक कर दिया है ताकि दुनिया तक सत्य की आवाज़ न पहुंच सके।

हमास की राजनीतिक शाखा के प्रभारी ने रमज़ान के दौरान युद्ध विराम का आह्वान किया है।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन हमास की राजनीतिक शाखा के प्रमुख इस्माईल हनिया ने पवित्र रमज़ान के दौरान ग़ज़्ज़ा में संघर्ष विराम की मांग की है।

हनिया ने एक बयान जारी करके इस्लामी जगत के देशों के राष्ट्राध्यक्षों से ग़ज़्ज़ा में तत्काल युद्ध विराम का आह्वान किया है।  शनिवार को जारी अपने संदेश में इस्माईल हनिया ने इस्लामी देशों के राष्ट्राध्यक्षों और मुसलमान धर्मगुरूओं का आह्वान किया है कि पवित्र रमज़ान के सम्मान और मस्जिदुल अक़सा की सुरक्षा के उद्देश्य से ग़ज़्ज़ा में तत्काल संघर्ष विराम के लिए कूटनीतिक प्रयास किये जाएं।

इसी साथ उन्होंने ग़ज़्ज़ावासियों के लिए खाद्य पदार्थों, दवाओं और मूलभूत आवश्यकता की वस्तुओं को पहुंचाने के उद्देश्य से मानवीय सहायता की प्रक्रिया को जारी रखने पर बल दिया है।  इससे पहले हमास के नेता हनिया ने मांग की थी कि युद्ध अपराधों के कारण अवैध ज़ायोनी शासन के विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए।

दूसरी ओर ग़ज़्ज़ा की पट्टी में सरकारी स्तर पर बयान जारी करके बताया गया है कि ग़ज़्ज़ा वासियों पर ज़ायोनियों का आक्रमण अब छठे महीने में प्रविष्ट हो गया है। इस दौरान शहीदो, घायलों और लापता लोगों की संख्या लगभग एक लाख दस हज़ार हो चुकी है।

उल्लेखनीय है कि ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनियों के आक्रमण में लगभग 31 हज़ार फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं जबकि घायलों की संखया 72 हज़ार का आंकड़ा पर कर गई है।

रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के मोर्चे से तअल्लुक़ रखने वाले कुछ टीचर्ज़ ने दूसरों को अपने जीवन का आख़िरी पाठ जो पढ़ाया वह शहादत का पाठ था।

ज़ायोनी शासन के साथ जंग में शहीद होने वाले चार टीचरों को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित कार्यक्रम में हिज़्बुल्लाह के डिप्टी सेक्रेटरी जनरल शैख़ नईम क़ासिम ने कहा कि वो अपनी शहादत से सबके लिए आदर्श बन गए हैं। अली साद नाम के टीचर की अपने छात्रों से विदाई की वीडियो वायरल हो गई है।

शहीद के पिता अहम साद कहते हैं कि अली साद अपने छात्रों से दोस्तों की तरह पेश आते थे। अपने छात्रों की कामयबी पर ख़ुशी में डूब जाते थे। अली साद की मां बताती हैं कि अली साद अपना ज़्यादातर समय छात्रों पर ख़र्च करते थे वह आदर्श टीचर थे उन्होंने अपना सारा वक़्त छात्रों को पढ़ाने के लिए समर्पित कर रखा था। उन्होंने अपनी शहादत से हम सबको बहुत बड़ा पाठ दिया।

एक अन्य टीचर अली फ़तूनी अपने छात्रों के साथ कैंपिंग के लिए जाते थे और वहां क्लास आयोजित करते थे। वह अपना ख़ाली समय छात्रों के साथ बिताते थे।....शैख़ अली काज़िम फ़तूनी की बहन बताती हैं कि वह आइडियल टीचर थे और अपनी शहादत के बाद वह सारे टीचरों के लिए आदर्श बन गए।

अली फ़तूनी के पिता बताते हैं कि अली फ़तूनी ने दीनी तालीम भी हासिल की थी और पीएचडी भी कर रहे थे। उनके पास खाली समय नहीं था लेकिन अध्यापन को बहुत अहम फ़रीज़ा मानते थे। वो अपने छात्रों के लिए पूरी जान लगाए रहते थे। लेबनान का समाज दुश्मन के चौतरफ़ा हमलों का सामना कर रहा है बल्कि उसे दुश्मन की तरफ़ से हाइब्रिड जंग का सामना है। यह जंग बिल्कुल भी नहीं रुकती। इन हालात में रेज़िस्टेंस की राह प चलने वाले समाज में अध्यापन और शिक्षा का विषय बहुत अधिक अहम है। शहीद टीचर्ज़ रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के भीतर पाए जाने वाले इसी ईमान और आस्था के उदाहरण हैं।