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भारतीय संसद में अधिनियम पारित होने के चार साल बाद केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) नियम, 2024 को अधिसूचित करने के एक दिन बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया नियमों पर रोक लगाने की मांग को लेकर अपनी याचिकाओं के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने आवेदन में आईयूएमएल ने जिसकी अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है, कहा कि नियम नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2(1)(बी) द्वारा बनाई गई छूट के तहत कवर किए गए व्यक्तियों को नागरिकता देने के लिए एक अत्यधिक संक्षिप्त और फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया बनाते हैं, जो स्पष्ट रूप से मनमाना है और केवल उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर व्यक्तियों के एक वर्ग के पक्ष में अनुचित लाभ पैदा करता है, जो अनुच्छेद 14 और 15 के तहत अनुमति योग्य नहीं है।

आईयूएमएल ने कहा कि अधिकार प्राप्त समिति, जो आवेदनों की जांच कर सकती है, की संरचना परिभाषित नहीं है। इसने आगे कहा कि नियम नागरिकता नियम 2009 के तहत पंजीकरण के लिए ‘जांच के स्तर’ को खत्म करते हैं और दस्तावेजों को सत्यापित करने की शक्ति जिला स्तरीय समिति को देते हैं।

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, आईयूएमएल ने इस बात का भी जिक्र किया है कि कैसे केंद्र ने लगभग पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट में विवादास्पद सीएए के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के प्रयास को यह तर्क देकर टाल दिया था कि नियम तैयार नहीं किए गए थे।

आईयूएमएल ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अधिनियम पर रोक लगाने के लिए दबाव डाला था। हालांकि, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि नियम तैयार नहीं किए गए हैं और इसलिए कार्यान्वयन नहीं होगा, ये रिट याचिकाएं साढ़े चार वर्षों से लंबित हैं।

गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सीएए के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई) को भारतीय नागरिकता प्रदान करना चाहती है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे।

सीएए को दिसम्बर 2019 में भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था और बाद में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई. हालांकि, मुस्लिम संगठनों और समूहों ने धर्म के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया और इसका विरोध किया।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड से संबंधित विवरण देने के लिए अतिरिक्त समय देने की अर्ज़ी खारिज किए जाने के बाद बैंक ने चुनाव आयोग को यह डेटा सौंप दिया है।

रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने इस बात की पुष्टि है कि बैंक विवरण दे चुका है. 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताकर रद्द करते हुए कोर्ट ने बैंक से योजना से जुड़ी जानकारियां निर्वाचन आयोग को सौंपने को कहा था, जिसे अपनी वेबसाइट पर यह विवरण 13 मार्च तक अपलोड करना था।

सोमवार को अदालत ने यह समयसीमा 15 मार्च तक कर दी है। बताया गया है कि बैंक ने साल 2018 में इस योजना की शुरुआत के बाद से 30 किश्तों में 16,518 करोड़ रुपये के बॉन्ड जारी किए हैं, जिसमें से सर्वाधिक राशि भाजपा को प्राप्त हुई है।

तुर्की की गृह और सामाजिक सेवा की मंत्री ने ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी शासन द्वारा फ़िलिस्तीनियों के चल रहे नरसंहार का विरोध करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के महिला आयोग की बैठक में ज़ायोनी शासन के सामाजिक मामलों के मंत्री के भाषण का बहिष्कार कर दिया।

संयुक्त राष्ट्र संघ के महिला आयोग का 68वां सत्र 11 मार्च को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में ईरान सहित 111 प्रतिनिधिमंडलों की भागीदारी के साथ शुरू हुआ।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, महिला आयोग की बैठक में जब ज़ायोनी मंत्री ने अपना भाषण शुरू किया तो तुर्की के घरेलू और सामाजिक सेवा की मंत्री ओज़डेमिर गोक्टस उठकर चली गयीं।

महिला आयोग की बैठक से बाहर निकलने के बाद ज़ायोनी मंत्री का भाषण शुरू होते ही उन्होंने कहा कि ग़ज़्ज़ा संकट को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि यह संकट ज़ायोनी आक्रमण के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ है जिसमें अब तक हज़ारों निर्दोष नागरिक मारे जा चुके हैं।

इन हालात में कि जब विश्व के लोग पिछले कुछ महीनों से प्रदर्शन करके ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के अत्याचारों की निंदा कर रहे हैं, इस्लामी गणतंत्र ईरान का विपक्ष, पश्चिमी नेताओं के साथ अवैध ज़ायोनी शासन के समर्थन में लगा हुआ है।

ईरान का विपक्ष, रज़ा पहलवी का समर्थक है जो ईरान के अन्तिम शाह, मुह्मद रज़ा पहलवी का बेटा है।  ईरान की इस्लामी क्रांति के साथ 1979 में मुहम्मद रज़ा पहलवी के शासन का अंत हो गया था।  रज़ा पहलवी के समर्थक, अपनी रैलियों में ईरान के पुराने झंडे को लेकर अवैध ज़ायोनी शासन और नेतनयाहू का समर्थन करते हैं।

वास्तविकता यह है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध के आरंभ से ईरान के राजतंत्रवादी आंदोलन के समर्थकों की रणनीति ने फ़िलिस्तीन के अधिकांश समर्थकों को चिंतित कर रखा है।  NUFDI की ही भांति पहलवी की समर्थक लाबी, फ़िलिस्तीनी समर्थकों को डराने-धमकाने में लगी है।  रज़ा पहलवी के समर्थकों का फ़िलिस्तीनियों के समर्थकों के साथ टकराव, दर्शाता है कि वे ईरान के आम जनमत के विरोधी हैं जो आरंभ से भी फ़िलिस्तीनियों की आकांक्षाओं का समर्थन करता आया है।  इस्लामी गणतंत्र ईरान का विपक्ष, ईरान के संदर्भ में अमरीका के आक्रमक रुख़ का समर्थन करता है जिमसें ईरानी जनता के विरुद्ध लगे प्रतिबंधों में वृद्धि भी शामिल है।  ईरान के अन्तिम शाह, मुहम्मद रज़ा पहलवी की सत्ता 1979 तक रही।  इस दौरान उसके इस्राईल के साथ मैत्रीपूर्ण संबन्ध थे।  वह ऊर्जा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में इस्राईल के साथ सहयोग करता था।  शीतयुद्ध के काल में वह अमरीकी ख़ेमे में था।

उसके बेटे रज़ा पहलवी ने हालिया कुछ वर्षों के दौरान इस्राईल से निकट होने के लिए अधिक प्रयास किये हैं।  वे इस्राईल को अपना बहुत ही महत्वपूर्ण सहयोगी मानते हैं।  उनका यह सहयोग उस समय अधिक सार्वजनिक हो गया जब अप्रैल सन 2023 में रज़ा पहलवी ने अपनी पत्नी के साथ अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में जाकर नेतनयाहू और इस शासन की सूचना मंत्री गीला गामलील के साथ बहुत ही गर्मजोशी के साथ मुलाक़ात की थी।

यह वह मुलाक़ात थी जिसमें रज़ा पहलवी के सलाहकार अमीर हुसैन एतेमादी और सईद क़ासिमी नेज़ाद भी उपस्थित थे जो वाशिगटन डीसी में डिफेंस आफ डेमोक्रेसी फाउंडेशन के दक्षिणपंथी थिंक टैंक के कर्मचारी हैं।

यह वे विवादित लोग हैं जो फ़िलिस्तीन विरोधी दृष्टिकोणों और युद्धोन्मादी सोच के कारण ईरानी राष्ट्र के निकट घृणा के पात्र हैं।  यह लोग, ईरान के विरुद्ध प्रतिबंध लगाने और उसपर हमला करने के पक्षधर हैं।  इन्होंने तो "फ़िलिस्तीन मुर्दाबाद" के नारे भी ट्वीट किये हैं।  रज़ा पहलवी ने अवैध ज़ायोनी शासन की अपनी यात्रा में FDD के प्रमुख मार्क दूबोवीटर्ज़ से भी मुलाक़ात की थी।  इस मुलाक़ात को संयुक्त राज्य अमरीका में इस्राईल के समर्थक गुटों ने काफ़ी हाईलाइट किया था।

ईरान के विपक्ष ने पिछली साल ज़न, ज़िंदगी, आज़ादी के नारे के साथ ईरानी समाज को नुक़सान पहुंचाने के प्रयास किये थे।  ईरान का विपक्ष, वास्तव में ईरानी जनता का हमफ़िक्र नहीं है बल्कि इस्राईल और अमरीका में विरोधियों के साथ हैं।  वे मानवीय एवं क्षेत्रीय दुष्परिणामों पर नज़र किये बिना ही ईरान की सरकार को गिराना चाहते हैं।  यही वह चीज़ है जो ईरान की जनता में उनकी अविश्वसनीयता, अवैधता तथा जनता के लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति उनकी उपेक्षा को दर्शाती है।        

ज़ायोनी शासन के एक पूर्व सैन्य जनरल ने ज़ायोनी अधिकारियों की आलोचना करते हुए तेल अवीव के अपने सैन्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफलता को स्वीकार करते हुए कहा है कि इस्राईल पहले ही ग़ज़्ज़ा में युद्ध हार चुका है।

ज़ायोनी शासन के पूर्व और रिज़र्व सेना के जनरल इसहाक़ बराक ने ग़ज़्ज़ा युद्ध को लेकर ज़ायोनी सैन्य प्रमुख की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि ज़ायोनी सरकार के कार्यों से उसकी जीत नहीं हो सकती है और इस्राईल, ग़ज़्ज़ा युद्ध हार गया है।

इस ज़ायोनी सैन्य जनरल ने कहा कि इस्राईल की सेना इस समय अपने मुक्ति की दोहाई दे रही है और उसे ख़ुद को बचाने के लिए सैन्य मज़बूती की आवश्यकता है।

ज़ायोनी सेना के पूर्व जनरल ने कहा कि जैसे ही ग़ज़्ज़ा युद्ध शुरू हुआ था तो उन्होंने ज़ायोनी अधिकारियों को चेतावनी दी कि इस्राईल को कोई परिणाम नहीं मिलेगा।

ज़ायोनी शासन के एक पूर्व और रिज़र्व सैन्य जनरल इसहाक बराक ने कहा कि ग़ज़्ज़ा पर हमले के बाद इस्राईल की सेना पहले से भी बदतर स्थिति का सामना कर रही है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लेबनान के एक रणनीतिक क्षेत्र पर इस्राईल के हमले के बाद हिज़्बुल्लाह ने जवाबी कार्यवाही करते हुए इस्राईली ठिकानों पर कम से कम 100 मिसाइल दाग़े हैं।

हिज़्बुल्लाह का कहना है कि उसके लड़ाकों ने कीला बैरक में इस्राईली वायु और मिसाइल कमांड सेंटर और दूसरे दो महत्वपूर्ण ठिकानों पर 100 से ज़्यादा मिसाइलों से हमला किया है।

इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन का कहना है कि यह कार्यवाही ग़ज़ा पट्टी में साहसी फ़िलिस्तीनियों के समर्थन और लेबनान में इस्राईली हमलों के जवाब में की गई है।

ग़ौरतलब है कि ज़ायोनी सेना ने बालबेक के इलाक़े को निशाना बनाया था, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।

ज़ायोनी सेना ने पुष्टि की है कि मंगलवार सुबह, लगभग 100 रॉकेट दाग़े गए, जिनमें से कुछ को हवा में ही मार गिराया गया।

इस्राईली सेना का कहना है कि हिज़्बुल्लाह के रॉकेट हमलों में गैलिली क्षेत्र और क़ब्जे वाले गोलान हाइट्स को निशाना बनाया गया है, हालांकि ज़ायोनी शासन ने इस हमले में किसी तरह के नुक़सान की बात स्वीकार नहीं की है।

 

 

 

 

 

विभिन्न फ़िलिस्तीनी गुटों ने ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी शासन के नरसंहार का जवाब लगातार अलग-अलग कार्रवाइयों को अंजाम देकर दिया है।

फ़िलिस्तीन के जेहादे इस्लामी संगठन की सैन्य शाखा सराया अल-कुद्स ने घोषणा की है कि फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन ने तूल अल-करम में बम विस्फोट किया और अल मंशिया क्षेत्र में ज़ायोनी सैनिकों के वाहन को उड़ा दिया जिसमें कई ज़ायोनी सैनिक मारे गये और घायल हुए।

फ़तह आंदोलन की सैन्य शाखा अल-अक्सा ब्रिगेड ने भी नाब्लस शहर में घोषणा की है कि उसने इस शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित ज़ायोनी चेक पोस्ट शाफ़ी शिम्रोन पर भारी गोलीबारी की है। शोहदाए अल-अक्सा ब्रिगेड ने रामल्लाह के उत्तर में बिस्गूत ज़ायोनी क्षेत्र में ज़ायोनी सैनिकों पर जवाबी हमला किया जहां भयंकर झड़पें भी हुईं।

बैतेलहम के अल-ख़िज़्र इलाके में ज़ायोनी सैनिकों और फ़िलिस्तीनी युवाओं के बीच भीषण झड़पें भी हुईं। इस्राईली सैनिकों ने तूल अल-करम में फ़िलिस्तीनियों पर गोलीबारी की और दो फ़िलिस्तीनियों को घायल कर दिया।

,माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाई हैं।

اَللّهُمَّ اجْعَلْ صِيامي فيہ صِيامَ الصّائِمينَ وَقِيامي فيِہ قِيامَ القائِمينَ وَنَبِّهْني فيہ عَن نَوْمَة الغافِلينَ وَهَبْ لي جُرمي فيہ يا اِلهَ العالمينَ وَاعْفُ عَنّي يا عافِياً عَنِ المُجرِمينَ.

अल्लाह हुम्मज अल सियामी फ़ीहि सियामस्साएमीन व क़ियामी फ़ीहि क़ियामल क़ाएमीन व नब्बिह नी फ़ीहि अन नौमतिल ग़ाफ़िलीन व हब ली जुरमी फ़ीहि या इलाहल आलमीन वअफ़ु अन्नी या आफ़ियन अनिल मुजरिमीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! हमारे रोज़ों को इस महीने में रोज़ेदारों के रोज़े जैसा क़रार दे, और हमारे क़याम (इबादत) को नमाज़ गुज़ारों जैसा क़रार दे, हमें ग़ाफ़िलों की नींद से जगा दे, आज के दिन हमारे गुनाहों को माफ़ कर दे, ऐ आलमीन के माबूद! ऐ गुनाहगारों को माफ़ करने वाले! हमारे गुनाहों को माफ़ कर दे।

आज मस्जिदों का वातावरण कुछ बदला हुआ है।

जवान मस्जिद की सफाई कर रहे हैं। मस्जिद में बिछे फर्शों को धुल रहे हैं उसकी दीवारों आदि पर जमी धूलों की सफाई कर रहे हैं। वास्तव में दिलों की सफाई करके बड़ी मेहमानी की तैयारी की जा रही है। मानो मस्जिदों की सफाई करके स्वयं को महान ईश्वर की मेहमानी के लिए तैयार किया जा रहा है। इस नश्वर संसार में यह एक प्रकार की छोटी सी चेतावनी है और हम यह सोचें कि एक दिन हमें अपने पालनहार की ओर पलट कर जाना है उसी जगह पलट कर जाना है जब हम मिट्टी से अधिक कुछ नहीं थे और महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने हमें जीवन प्रदान किया।

इमामे जमाअत की आवाज़ सुनकर सभी नमाज के लिए खड़े हो जाते हैं और नमाज़ की पंक्ति को सही करते हैं और पूरी निष्ठा के साथ महान ईश्वर को याद करते हैं। अल्लाहो अकबर की आवाज़ सुनाई देती है जिसका अर्थ होता है ईश्वर महान है यानी ईश्वर उससे भी बड़ा व महान है जिसकी विशेषता बयान की जाये। इस वाक्य की पुनरावृत्ति दिलों को मज़बूत बनाती है और यह बताती है कि केवल उस पर भरोसा करना चाहिये और उससे मदद मांगना चाहिये। नमाज़ खत्म हो जाने के बाद मस्जिद में धोरे -धीरे शोर होने लगता है, दस्तरखान बिछने लगता है, कोई कहता है आज रमज़ान तो नहीं है क्यों इफ्तारी देना चाहते हैं? उसके जवाब में एक जवान कहता है" आज बहुत से लोगों ने पवित्र रमज़ान महीने के स्वागत में रोज़ा रखा है। आज शाबान महीने की अंतिम तारीख़ है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि शाबान मेरा महीना है और रमज़ान ईश्वर का महीना है तो जो मेरे महीने में रोज़ा रखेगा मैं प्रलय के दिन उसकी शिफाअत करूंगा यानी उसे क्षमा करने के लिए ईश्वर से विनती करूंगा और जो रमज़ान महीने में रोज़ा रखेगा वह नरक की आग से सुरक्षित रहेगा।“

जो लोग महान ईश्वर की मेहमानी से लाभांवित होना चाहते हैं और उसकी प्रतीक्षा में रहते हैं वे शाबान महीने में रोज़ा रखकर रमज़ान महीने का स्वागत करते हैं।

इसी मध्य मस्जिद के लाउड स्पीकर से रमज़ान महीने का चांद हो जाने की घोषणा की जाती है। लोग पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर दुरुद व सलाम भेजते हैं। उसके बाद इमामे जमाअत सभी को रमज़ान महीने के आगमन की मुबारकबाद पेश करता है और मस्जिद में मौजूद लोग दुआओं की किताब “सहीफये सज्जादिया” की 44वीं दुआ के एक भाग को पढ़ते हैं जिसका अनुवाद है” समस्त प्रशंसा उस पालनहार व ईश्वर से विशेष है जिसने अपने महीने, रमज़ान को पथप्रदर्शन का माध्यम करार दिया है, रमज़ान का महीना रोज़ा रखने, नतमस्तक होने, उपासना करने, पापों से पवित्र होने और रातों को जागने का महीना है। रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरआन नाज़िल हुआ है ताकि वह लोगों का पथ-प्रदर्शन करे और सत्य- असत्य के बीच स्पष्ट तर्क व प्रमाण को पेश करे”

रमज़ान के महीने पर सलाम हो, रमज़ान का महीना उस जल की भांति है जो बुराइयों और पापों की आग की लपटों को बुझा देता है। सलाम हो इस्लाम व ईश्वरीय आदेशों के समक्ष नतमस्तक होने के महीने पर, सलाम हो पवित्रता के महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जो हर प्रकार के दोष व कमी से शुद्ध करता है, सलाम हो रातों को जागने और महान ईश्वर की उपासना करने वाले महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जिसकी अनगिनत आध्यात्मिकता से बहुत से लोग लाभ उठाते हैं और उसके विशुद्ध व अनमोल क्षण, ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हैं। यह चरित्र निर्माण का बेहतरीन महीना है, यह इंसान बनने और मानवता को परिपूर्णता का मार्ग का तय करने का बेहतरीन महीना है। यह वह महीना है जिसमें इंसान हर दूसरे महीने की अपेक्षा बेहतर ढंग से स्वंय को सद्गुणों से सुसज्जित कर सकता है। इसी प्रकार यह वह महीना है जिसमें इंसान बुराइयों से दूर रहने का अभ्यास दूसरे महीनों की अपेक्षा बेहतर ढंग से कर सकता है।

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को सबके लिए आदर्श बनाया है। जब वह रमज़ान महीने के चांद को देखते थे तो अपना पवित्र चेहरा किबले की ओर कर लेते थे और आसमान की ओर दुआ के लिए हाथ उठाते थे और प्रार्थना करते थेः हे पालनहार! इस महीने को हमारे लिए शांति, सुरक्षा, स्वास्थ्य, सलामती, रोज़ी को अधिक करने वाला और समस्याओं को दूर करने वाला करार दे। हे पालनहार! हमें इस महीने में रोज़ा रखने, उपासना करने और कुरआन की तिलावत करने की शक्ति प्रदान कर और इस महीने में हमें सेहत व सलामती प्रदान कर”

जब रमज़ान का पवित्र महीना आता था तो पैग़म्बरे इस्लाम बहुत अधिक प्रसन्न होते थे और रमज़ान के पवित्र महीने में नाज़िल होने वाली अनवरत बरकतों व अनुकंपाओं का स्वागत करते और उनसे लाभ उठाते और महान ईश्वर के उस आदेश पर अमल करते थे जिसमें वह कहता है” हे पैग़म्बर कह दीजिये कि ईश्वर की कृपा और दया की वजह से मोमिनों को प्रसन्न होना चाहिये और यह हर उस चीज़ से बेहतर है जिसे वे एकत्रित करते हैं।“

पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने में हर दूसरे महीने से अधिक उपासना की तैयारी करते थे। इस प्रकार रमज़ान के पवित्र महीने का स्वागत करते थे कि अच्छा कार्य करना उनकी प्रवृत्ति बन जाये और पूरे उत्साह के साथ रमज़ान के महीने में महान ईश्वर की उपासना करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने के आने से पहले कुछ महत्वपूर्ण कार्य अंजाम देते थे और यह कार्य उपासना करने में पैग़म्बरे इस्लाम की अधिक सहायता करते थे।

रमज़ान के पवित्र महीने में अच्छे ढंग से रोज़ा रखने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम शाबान महीने में ही गैर अनिवार्य रोज़े रखते थे और अपने साथियों व अनुयाइयों को रमज़ान महीने में अधिक उपासना करने के लिए कहते थे। इस उद्देश्य को व्यवहारिक बनाने के लिए लोगों को पवित्र रमज़ान महीने की विशेषता बयान करते और इस महीने में किये जाने वाले कर्म के अधिक पुण्य पर ध्यान देते थे। शाबान महीने के अंतिम खुत्बे में पैग़म्बरे इस्लाम बल देकर कहते थे” हे लोगों! बरकत, दया, कृपा और प्रायश्चित का ईश्वरीय महीना आ गया है। यह एसा महीना है जो ईश्वर के निकट समस्त महीनों से श्रेष्ठ है। इसके दिन बेहतरीन दिन और इसकी रातें बेहतरीन रातें और उसके क्षण बेहतरीन क्षण हैं। यह वह महीना है जिसमें तुम्हें ईश्वरीय मेहमानी के लिए आमंत्रित किया गया है, ईश्वरीय सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान की गयी है, तुम्हारी सांसें ईश्वरीय गुणगान व तसबीह हैं, इसमें तुम्हारा सोना उपासना और तुम्हारे कर्म स्वीकार और तुम्हारी दुआयें कबूल हैं। इस महीने की भूख- प्यास से प्रलय के दिन की भूख- प्यास को याद करो, गरीबों, निर्धनों और वंचितों को दान दो, अपने से बड़ों का सम्मान करो और छोटों पर दया करो और सगे-संबंधियों के साथ भलाई करो। अपने पापों से प्रायश्चित करो, नमाज़ के समय अपने हाथों को दुआ के लिए उठाओ कि वह बेहतरीन क्षण है और ईश्वर अपने बंदों को दयादृष्टि से देखता है।“

इस आधार पर कहा जा सकता है कि रमज़ान के पवित्र महीने का रोज़ा और दूसरी उपासनायें केवल शारीरिक गतिविधियां नहीं हैं बल्कि उनका स्रोत बुद्धि और हृदय है। इसी कारण अगर कोई अमल अंजाम दिया जाये और उसका आधार बुद्धि और दिल न हो तो वह अमल प्राणहीन व परंपरागत है जिसने हमें स्वयं में व्यस्त कर रखा है और उसका कोई लाभ व प्रभाव नहीं है। अगर हम यह चाहते हैं कि हमारी शारीरिक गतिविधियों का आधार बुद्धि व दिल हो तो हमें चाहिये कि सोच- विचार करके अपनी बुद्धि से काम लें और अपने अमल को अर्थपूर्ण बनायें।

इस समय जीवन का आदर्श बदल गया है। दिलों में प्रेम, मोहब्बत और निष्ठा कम हो गयी है और जीवन में उपेक्षा की भावना का बोल- बाला हो गया है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के शब्दों में हर साल रमज़ान महीने का आध्यात्मिक समय स्वर्ग के टुकड़े की भांति आता है और ईश्वर उसे भौतिक संसार के जलते हुए नरक में दाखिल करता है और हमें इस बात का अवसर देता है कि हम इस महीने में स्वयं को स्वर्ग में दाखिल करें। कुछ लोग इस महीने की बरकत से इसी तीस दिन में स्वर्ग में दाखिल हो जाते हैं, कुछ लोग इस 30 दिन की बरकत से पूरे साल और कुछ इस महीने की बरकत से पूरे जीवन लाभ उठाते और स्वर्ग में दाखिल होते हैं जबकि कुछ इस महीने से लाभ ही नहीं उठा पाते और वे सामान्य ढंग से इस महीने गुज़र जाते हैं जो खेद और घाटे की बात है।"

इस प्रकार अगर इंसान रोज़ा रखता है, भूख- प्यास सहन करता है, ईश्वर की राह में खर्च करता है और दूसरों से प्रेम करता है तो यह महान ईश्वर की प्रसन्नता है जो हर चीज़ से श्रेष्ठ है और इंसान महान ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त करता है यहां तक कि स्वयं इंसान और महान ईश्वर के बीच में किसी प्रकार की कोई रुकावट व दूरी नहीं रह जाती है और यह महान ईश्वर से प्रेम करने वालों का स्थान है।

हदीसे कुद्सी में आया है कि रोज़ा रखने और कम खाने के परिणाम में इंसान को तत्वदर्शिता प्राप्त होती है और तत्वदर्शिता भी ज्ञान व विश्वास का कारण बनती है। जब जिस बंदे को विश्वास हो जाता है तो वह इस बात से नहीं डरता है कि दिन कठिनाई में गुजरेंगे या आराम में और यह प्रसन्नता का स्थान है। महान ईश्वर ने कहा है कि जो मेरी प्रसन्नता के अनुसार व्यवहार करेगा मैं उसे तीन विशेषताएं प्रदान करूंगा। प्रथम आभार प्रकट करने की विशेषता जिसके साथ अज्ञानता नहीं होगी। दूसरे एसी याद जिसे भुलाया नहीं जा सकता और तीसरे उसे एसी दोस्ती प्रदान करूंगा कि वह मेरी दोस्ती पर मेरी किसी रचना की दोस्ती को प्राथमिकता नहीं देगा। जब वह मुझे दोस्त रखेगा तो मैं भी उसे दोस्त रखूंगा। उसके प्रेम को अपने बंदों के दिलों में डाल दूंगा और उसके दिल की आंखों को खोल दूंगा जिससे वह मेरी महानता को देखेगा और अपनी सृष्टि के ज्ञान को उससे नहीं छिपाऊंगा और रात के अंधरे और दिन के प्रकाश में उससे बात करूंगा

पवित्र रमज़ान महीने के आगमन पर हम इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआ के एक भाग को पढ़ते हैं जिसमें इमाम महान ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं" पालनहार! मोहम्मद और उनके परिजनों पर दुरूद व सलाम भेज और रमज़ान महीने की विशेषता और उसके सम्मान को पहचानने की मुझ पर कृपा कर"

मंगलवार, 12 मार्च 2024 17:59

रमज़ान, बंदगी की बहार-1

रमज़ान अरबी कैलेंडर के उस महीने का नाम हैं जिस महीने में पूरी दुनिया में मुसलमान, रोज़ा रखते हैं।

 

अर्थात सुबह से पहले एक निर्धारित समय से, शाम को सूरज डूबने के बाद एक निर्धारित समय तक खाने पीने से दूर रहना होता है। कुरआने मजीद में इस संदर्भ में कहा गया है कि रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन, सही मार्ग का चिन्ह और सत्य व असत्य के मध्य अंतर करने वाला है तो जो भी रमज़ान के महीने तक पहुंचे वह रोज़ा रखे और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो फिर वह कभी और रोज़े रखे, अल्लाह तुम्हारे लिए आराम चाहता है, तकलीफ नहीं चाहता, रमज़ान के महीने को रोज़ा रख कर पूरा करो और अल्लाह को इस लिए बड़ा समझो कि उस ने तुम्हारा मार्गदर्शन किया है और शायद इस प्रकार से तुम उसका शुक्र अदा कर सको। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने शाबान महीने के अंतिम दिनों में रमज़ान महीने के बारे में एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा कि हे लोगो! अपनी विभूतियों व , कृपा के साथ रमज़ान का महीना आ गया  यह महीना ईश्वर के निकट सब से अच्छा महीना है।ऐसा महीना है, जिसमें तुम्हें ईश्वर का अतिथि बनाने के लिए आमंत्रित किया गया है और तुम्हें ईश्वरीय बंदों में गिना गया है। इस महीने में तुम्हरी सांसें, ईश्वर का नाम जपती हैं, तुम्हारी नींद इबादत होती है, तुम्हारे ज्ञान और दुआओं को स्वीकार किया जाता है। अपने पालनहार से चाहो कि वह तुम्हें रोज़ा रखने और क़ुरान की तिलावत का अवसर प्रदान करे। रमज़ान की भूख प्यास से प्रलय के दिन की भूख प्यास को याद करो और गरीबों तथा निर्धनों की मदद करो , बड़ों का सम्मान करो, छोटों पर दया करो, रिश्तेदारों से मेल जोल रखो, ज़बान पर क़ाबू रखो और जिन चीज़ों को देखने से ईश्वर ने रोका है उन्हें न देखो जिन बातों को सुनने से उसने रोका है उन्हें न सुनो, अनाथों के साथ स्नेह से पेश आओ, ईश्वर से अपने पापों की क्षमा मांगो और नमाज़ के समय दुआ के लिए हाथ उठाओ कि यह दुआ का सब से अच्छा समय है। जान लो कि ईश्वर ने अपने सम्मान की सौगंध खायी है कि नमाज़ पढ़ने वालों और सजदा करने वालों को अपने प्रकोप का पात्र न बनाए और उन्हें प्रलय के दिन, नर्क की आग से न डराए। ... हे लोगो! इस महीने में स्वर्ग के द्वार खोल दिये जाते हैं ईश्वर से दुआ करो कि वह तुम्हारे लिए बंद न हों  और नर्क के दरवाज़े बंद कर दिये जाते हैं  ईश्वर से दुआ करो कि वह तुम्हारे लिए खोले न जाएं। इस महीने में शैतानों को बंदी बना लिया जाता है तो अपने ईश्वर से दुआ करो कि उन्हें अब कभी तुम पर अपने प्रभाव डालने का अवसर न दिया जाए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि इस अवसर पर मैंने खड़े होकर उनसे पूछा कि हे पैगम्बरे इस्लाम! इस महीने में सब से अच्छा कर्म क्या है? तो उन्होंने फरमाया कि हे अबुलहसन! इस महीने में सब से अच्छा काम, उन चीज़ों से दूरी है जिन्हें अल्लाह ने हराम कहा है।

रमज़ान का महीना, हिजरी क़मरी कैलैंडर का नवां और सब से श्रेष्ठ महीना है। इस महीने में ईश्वरीय आथित्य की छाया में अल्लाह के सारे बंदे, उसकी नेमतों से लाभान्वित होते हैं रमज़ान का महीना, सुनहरे अवसरों का समय है।  पैगम्बरे इस्लाम के शब्दों में इस महीने में मनुष्य के साधारण कर्मों का भी बहुत अच्छा फल मिलता है और ईश्वर छोटी सी उपासना के बदले में भी बड़ा इनाम देता है। थोड़े से प्रायश्चित से बड़े बड़े पाप माफ कर देता है और उपासना व दासता द्वारा कल्याण व परिपूर्णता तक पहुंचने के रास्ते आसान बना देता है । इस प्रकार से धार्मिक दृष्टि से इस महीने में जिस प्रकार का अवसर मनुष्य को मिलता है वैसा साल के अन्य किसी महीने में नहीं मिलता इसी लिए इन ईश्वरीय विभूतियों से भरपूर लाभ उठाने पर बल दिया गया है और यह भी निश्चित है कि यदि कोई सच्चे मन से इस महीने में रोज़ा रखे, उपासना करे और सही अर्थों में इस आथित्य से लाभ उठाए तो उसे एेसा आध्यात्मिक लाभ मिलेगा जिसकी उसने कल्पना भी न की होगी। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने रमज़ान के महीने को अपने बंदों के लिए मुक़ाबले का मैदान बनाया है जहां वे ईश्वर की दासता और उपसना में एक दूसरे को पीछे छोड़ने का प्रयास करते हैं।

 पैग़म्बरे इस्लाम  (स) ने कहा है कि सही अर्थों में अभागा वह है जो रमज़ान का महीना गुज़ार दे और उसके पाप माफ न किये गये हों।  इस प्रकार से हम देखते हैं कि रमज़ान, ईश्वर पर आस्था रखने वाले के लिए किस हद तक अहम है। ईश्वर ने इस महीने में लोगों को अपना मेहमान बनाया है और उन्हें अपने अतिथि गृह में जगह दी है इसी लिए बुद्धिजीवी कहते हैं कि इस ईश्वरीय अतिथि गृह में रहने के अपने नियम हैं जिन का पालन करके ही रोज़ा रखने वाला , आघ्यात्म की चोटी पर चढ़ सकता है। हमें इस महीने में पापों से बच कर ईश्वरीय आथित्य का सम्मान करना चाहिए और इस अवसर को ईश्वर से मन में डर पैदा करने का अवसर समझना चाहिए।  ईश्वरीय भय या धर्म की भाषा में तक़वा, निश्चित रूप  से धर्म में आस्था रखने वाले के लिए एक बहुत बड़ा चरण है कि जिस पर पहुंचने के बाद उपासना का वह आनंद मिलता है जिसकी कल्पना भी उसके बिना करना संभव नहीं होता। तक़वा अर्थात ईश्वर का भय , अर्थात हमेशा यह बात मन में रखना कि हमारे हर एक काम को एक एक गतिविधि को ई्श्वर देख रहा है। वह ऐसा शक्तिशाली है जो उसी क्षण जो चाहे कर सकता है। यदि सही अर्थों में मनुष्य इस पर विश्वास कर ले कि ईश्वर उसे हमेशा देखता है तो फिर निश्चित रूप  से पाप  और भ्रष्टाचार से कोसों दूर हो जाएगा, रमजा़न का एक लाभ यह भी है कि वह मनुष्य को मोह माया और सांसारिक झंझटों से छुटकारा दिलाता है और एक महीने के लिए उसे आत्मा के पोषण के आंनद से अवगत कराता है।

पैगम्बरे इस्लाम के कथनों के अनुसार, रमज़ान में ईश्वर की उपासना को चार हिस्सों में बांंटा जा सकता है, दुआ, क़ुरआने मजीद की तिलावत, अल्लाह की याद , और तौबा व मुस्तहब नमाज़ , वह उपासना है जिसका पुण्य, रमज़ान के महीने में कई गुना बढ़ जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों ने रमज़ान के लिए विशेष दुआएं बतायी हैं जिन्हें पढ़ने का आंनद ही अलग है। इन दुआओं में जहां ईश्वर से पापों की क्षमा मांगी गयी है वहीं, इन दुआओं को इस्लामी शिक्षाओं और दर्शन का भंडार भी कहा जाता है। पैगम्बरे इस्लाम के कथनों में है कि हर चीज़ की एक बहार होती है और कु़रान की बहार, रमज़ान का महीना है।

वास्तव में  ईश्वर मनुष्य को किसी भी एेसे काम  का आदेश नहीं देता जिसमें उसका हित न हो अर्थात ईश्वर के हर आदेश का उद्देश्य मनुष्य के हितों की रक्षा होता है। यदि ईश्वर लोगों को किसी काम से रोकता है तो इसका अर्थ यह है कि उस काम से मनुष्य को हानि होती है। इसी तथ्य के दृष्टिगत ईश्वर ने मनुष्य के लिए उन कामों को अनिवार्य किया है जिनकी सहायता से वह परिपूर्णता के चरण तक पहुंच सकता है और जिनके बिना परिपूर्णता के गतंव्य की ओर उसकी यात्रा अंसभव है। इस प्रकार के कामों को छोड़ने पर ईश्वर ने दंड की बात कही है। वास्तव में इस प्रकार से ईश्वर ने मनुष्य को एसे कामों को करने पर बाध्य किया है जिसका लाभ स्वंय मनुष्य को ही होने वाला है और उसे छोड़ने तथा शैतान के बहकावे में आने की दशा में हानि भी उसे ही होने वाली है। रोज़ा भी ईश्वर के इसी प्रकार के आदेशों में से एक है क्योंकि रोज़ा रखने का मनुष्य को आध्यात्मिक व शारीरिक व मानसिक हर प्रकार का लाभ पहुंचता है।

रमज़ान के महीने में मनुष्य अपना आध्यात्मिक , मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर करके, स्वंय को इस योग्य बनाता है कि वह ईश्वर से निकट हो सके। रमज़ान में एक विशेष दुआ में रोज़ा रखने वाला जब ईश्वर के सामने गिड़गिड़ा कर कहता है कि हे ईश्वर! मेरी मदद कर कि मैं संसारिक मोहमाया से मुक्त होकर तेरी तरफ आ जाऊं तो निश्चित रूप से इससे ईश्वर की दासता की वह चोटी नज़र आती है जिस पर पहुंचना हर मनुष्य के लिए बहुत कठिन काम है। इस प्रकार से दास, अपने पालनहार के सामने अपनी असमर्थता व अयोग्यता को स्वीकार करते हुए उससे मदद मांगता है और ईश्वर से निकट होने में अपनी रूचि भी दर्शाता है ताकि ईश्वर उसकी मदद करे और वह इस मायाजाल से निकल कर सुख के अस्ली रूप से परिचित हो सके।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने रोज़ेदार के मन में विश्वास उत्पन्न होने के सब से महत्वपूर्ण चिन्ह के रूप में ईश्वर से भय व मन व आत्मा में पवित्रता उत्पन्न होने के बारे में इस प्रकार से कहा हैः

दास उसी समय ईश्वर से भय रखने वाला होगा जब उस वस्तु को ईश्वर के मार्ग में त्याग दे जिसके लिए उसने अत्यधिक परिश्रम किया हो और जिसे बहुत परिश्रम से प्राप्त किया हो। ईश्वर से वास्तिविक रूप में भय रखने वाला वही है जो यदि किसी मामले में संदेह ग्रस्त होता है तो उसमें धर्म के पक्ष को प्राथमिकता देता है।