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नौसेना ने एक बयान में कहा भारतीय नौसेना को इस जहाज के अपहरण की सूचना मिलते ही कार्रवाई करते हुए एमवी अब्दुल्ला जहाज को बचाने के लिए एक LRMP एयरक्राफ्ट और वॉरशिप को तैनात कर दिया था।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,भारतीय नौसेना ने बांग्लादेशी जहाज एमवी अब्दुल्लाह पर हमला करने वाले समुद्री डाकुओं पर कार्रवाई की है बांग्लादेशी झंडा लगा ये जहाज मोजाम्बिक से संयुक्त अरब अमीरात के अल हमरियाह बंदरगाह जा रहा था।

तभी कार्गो जहाज को समुद्री डाकुओं ने अपहरण लिया समुद्री डाकुओं द्वारा जहाज के अपहरण की सूचना मिलते ही भारतीय नौसेना ने एमवी अब्दुल्लाह जहाज को बचाने के लिए एक LRMP एयरक्राफ्ट और वॉरशिप को तैनात कर दिया था।

नौसेना ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि भारतीय नौसेना ने बांग्लादेश के फ्लैग्स वाले कार्गो जहाज के एसओएस का जवाब दिया है डाकुओं ने इस हफ्ते की शुरुआत में सोमालिया के तट पर समुद्री डाकुओं ने अपहरण कर लिया था. डाकुओं जहाज के 23 सदस्यीय चालक दल को भी बंधन बना लिया है।

डाकुओं द्वारा जहाज के अपहरण की जानकारी मिलते ही एलआरएमपी को तुरंत तैनात किया गया था और 12 मार्च की शाम को एमवी का पता लगाने पर. जहाज के चालक दल संपर्क करने की कोशिश की गई. हालांकि, जहाज की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

भारतीय नौसेना के प्रवक्ता ने ट्विटर पर कहा कि भारतीय नौसेना ने गुरुवार को 14 मार्च को सोमालिया के पास एक बांग्लादेशी कार्गो जहाज एमवी अब्दुल्ला को समुद्री डाकुओं ने बचाया है।

प्रवक्ता ने बताया कि जहाज पर समुद्री डकैती के हमले की सूचना मिलने के बाद नौसेना ने अपना मिशन तैनात युद्धपोत और एक लंबी दूरी की समुद्री गश्ती (एलआरएमपी) शुरू की. नौसेना ने बांग्लादेशी जहाज को रोक लिया और सोमालियाई जलक्षेत्र में एंट्री करने तक उसका करीब से पीछा करते हुए सभी बंधकों की सलामती का आश्वासन दिया.

 

 

 

 

 

अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बार फिर रूस के राष्ट्रपति व्लादमीर पुतीन को लेकर भाषा की मर्यादा को नज़रअंदाज़ करते हुए उन्हें ठग बता दिया।

जो बाइडन ने एक समरोह को संबोधित करते हुए इस शब्द का इस्तेमाल किया। इससे पहले बाइडन ने रूसी राष्ट्रपति को क़ातिल, तानाशाह, क़साई और युद्ध अपराधी कहा था जबकि रूसी राष्ट्रपति ने इस तरह के ज़बानी हमलों पर कभी भी बाइडन के लिए कोई कठोर शब्द इस्तेमाल नहीं किया। इस तरह के शब्दों के प्रयोग पर वो बाइडन के लिए लंबी उम्र की दुआएं करते रहे हैं।

रूसी राष्ट्रपति पुतीन का कहना है कि बाइडन ट्रम्प से बेहतर हैं क्योंकि उनके कामों और फ़ैसलों के बारे में अनुमान लगाना संभव है।

पार्स टुडे- ज़ायोनी शासन ने हालिया महीनों में झूठ और अफ़वाहें फैलाकर यह कोशिश की कि काल्पनिक उपलब्धियां हासिल करे और ग़ज़ा में अपनी दरिंदगी का तर्क पेश करे मगर अब तक उसे बदनामी के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ।

1-

हम ज़ायोनी शासन के सात बड़े झूठ पर एक नज़र डालें इस्राईल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने एक बड़ झूठ यह बोला कि फ़िलिस्तीन के रेज़िस्टेंस संगठन हमास ने तूफ़ान अलअक़सा आप्रेशन करके संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है।

यह झूठ बड़ी ठिढाई के साथ तब फैलाया गया जब 7 अक्तूबर 2023 के तूफ़ान अलअक़सा आप्रेशन से पहले इस्राईली सेना ने अनेक बार ग़ज़ा पट्टी पर हमले किए थे और वेस्ट बैंक में 230 से अधिक फ़िलिस्तीनियों को क़त्ल कर चुकी थी। इस तरह साबित है कि तूफ़ान अलअक़सा से पहले ही संघर्ष विराम का उल्लंघन इस्राईल ने किया।

2-

इस्राईल का दूसरा झूठ यह है कि उसकी पहली प्राथमिकता ग़ज़ा में मौजूद इस्राईली क़ैदियों की रिहाई है।

जाने माने पत्रकार महदी हसन के बक़ौल सच्चाई यह है कि इस्राईली क़ैदियों की रिहाई ज़ायोनी अधिकारियों की प्राथमिकताओ में है ही नहीं। ग़ज़ा में बड़ी संख्या में इस्राईली क़ैदी ख़ुद इस्राईली सेना के हमलों में मारे गए हैं

3-

तीसरा बड़ा झूठ बच्चों के क़त्ल के बारे में है। इस्राईल ने झूठ बोला कि हमास ने हमास के लड़ाकों ने 40 नवजात शिशुओं के सिर काटे। यह इतना बड़ा झूठ था कि इसे प्रसारित करने के बाद सीएनएन को माफ़ी मांगनी पड़ी थी।

इस्राईल ने यह झूठ पूरी दुनिया में बहुत बड़े पैमाने पर फैलाया। मगर बाद में साबित हुआ कि यह आरोप पूरी तरह बेबुनियाद और झूठ था।

सीएनएन की पत्रकार सारा सिडनर ने इस झूठ के बारे में अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि इस्राईल ने खुद कहा है कि नेतनयाहू के कार्यालय से फैलाए गए झूठ की पुष्टि नहीं की जा सकती। मुझे अपनी बातों पर और अधिक ध्यान रखने की ज़रूरत है और मैं इस बारे में माफ़ी मांगती हूं।

सीएनएन की पत्रकार सारा सैंडर्ज़ का ट्वीट

4-

चौथा झूठ यह कि हमास का हेडक्वार्टर शिफ़ा हास्पिटल के बेसमेंट में है।

अस्पतालों पर हमलों की वजह से ज़ायोनी शासन की सारी दुनिया में थू थू हत रही है। इसलिए इस्राईल ने अपने इस अमानवीय अपराध को सही ठहराने के लिए यह झूठ बोला कि हमास की सैनिक शाखा का कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम ग़ज़ा पट्टी में शिफ़ा अस्पताल के बेसमेंट में है।

अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने इस्राईल के इस झूठ को बेनक़ाब कर दिया।

जिस समय ज़ायोनी सैनिकों ने शिफ़ा अस्पताल पर हमला किया और उसके बेसमेंट तक पहुंचे उसम समय अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रतिनिधि भी वहां पहुंचे तो देखा कि वहां कमांड एंड कंट्रोल सेंटर जैसी कोई चीज़ नहीं है।

वैसे इस्राईल के पूर्व प्रधानमंत्री एहूद बाराक ने सीएनएन को दिए गए इंटरव्यू में भी माना कि यह दावा झूठा है।

5-

पांचवां झूठ फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों ग़लत बताना

जब इस्राईली सेना के हमलों में भारी संख्या में फ़िलिस्तीनी आम नागरिक, महिलाएं और बच्चे शहीद होने लगे तो दुनिया भर में ज़ायोनी शासन की आलोचना होने लगी। इस पर इस्राईली सेना के प्रवक्ता ने यह शिगोफ़ा छोड़ा की ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों पर भरोसा नहीं करना चाहिए लेकिन व्यवहारिक रूप से यह हुआ कि ख़ुद इस्राईली पत्रकारों और टीकाकारों ने देखा कि ग़ज़ा की घटनाओं के मामले में सबसे विश्वस्त जानकारी का स्रो ग़ज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय ही है। इस्राईली अख़बारों ने अपनी ख़बरों में ग़ज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय को भी सोर्स के रूप में इस्तेमाल किया।

ताज़ा आंकड़ों के अनुसार ज़ायोनी सेना के हमलों में अब तक 31 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और घायलों की संख्या 72 हज़ार से ज़्यादा है।

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छठा झूठ ग़ज़ा में खाने पीने की चीज़ों सहित ज़रूरी वस्तुओं की क़िल्लत न होने का दावा है। इस्राईल ने यह दावा किया लेकिन इस दावे को अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने ख़ारिज कर दिया।

युनिसेफ़ के जेम्ज़ एल्डर ने कहा कि ग़ज़ा में मानवीय त्रास्दी के हालात हैं इस दुर्दशा को बयान करने के लिए कोई उपयुक्त शब्द मौजूद नहीं है।

7-

सातवां झूठ फ़िलिस्तीनियों की बड़ी संख्या मं शहादतों की वजह हमास है।

इस्राईल का कहना है कि ग़ज़ा के लोग बड़ी संख्या में इसलिए शहीद हुए और हो रहे हैं कि उन्होंने हमास को वोट दिया। जबकि ग़ज़ा में आख़िरी बार चुनाव 20 साल पहले हुए थे और हज़ारों की संख्या में शहीद वो हैं जिनकी उम्र बीस साल से कम है यानी वो मतदान के समय पैदा भी नहीं हुए थे।

पार्स टुडे- फ़्रांसीसी मैगज़ीन लिबरेशन ने रमज़ान के पवित्र महीने में ग़ज़ा के अवाम की भूख के बारे में नस्लभेदी कैरीकेचर पब्लिश किया है।

फ़्रासीसी मैगज़ीन लिबरासियोन या लिब्रेशन के नस्लभेदी और अपमानजनक कार्टून में दिखाया गया है कि एक फ़िलिस्तीनी महिला अपने मासूम बच्चे के पास बैठी है जिसकी ज़बान भूख की वजह से बाहर निकल आई है। एक क्रोधित मर्द जिसकी मुंह से राल टपक रही है उन चूहों के पीछे दौड़ रहा है जिनके मुंह में हड्डी है।

मर्द कोशिश करता है कि चूहों के मुंह से हड्डी छीने लेकिन महिला पुरुष से कहती है कि सूरज डूबने से पहले यह काम न करो। यहां पर तात्पर्य मग़रिब की अज़ान और इफ़तार का समय है।

ज़न,ज़िंदगी,आज़ादी नामक झूठी किताब, पिछले साल ईरान में पश्चिम के समर्थन से हुए उपद्रव से संबन्धित ईरान विरोधी झूठ का पुलंदा है।

ज़न,ज़िंदगी,आज़ादी नामक किताब को फ़ारसी भाषी 5 पश्चिमी संचार माध्यमों ने केवल 46 दिनों के घटनाक्रम के आधार पर अपने हिसाब से तैयार किया है।

झूठी किताब ज़न,ज़िंदगी,आज़ादी

ईरान की छवि को ख़राब करने के उद्देश्य से फ़ारसी भाषा में एक किताब तैयार की गई है जिसका शीर्षक है, "ज़न,ज़िंदगी, आज़ादी" जिसका हिंदी में अनुवाद होगा-महिला,जीवन, स्वतंत्रता।

पार्सटुडे के अनुसार ज़न, ज़िंदगी, आज़ादी नामक झूठी किताब, पिछले साल ईरान में पश्चिम के समर्थन से हुए उपद्रव से संबन्धित ईरान विरोधी झूठ का पुलंदा है।  ईरान विरोधी कुछ पश्चिमी देशों ने पिछले साल 2023 में ईरान के विरुद्ध एक षडयंत्र लागू किया था।  इस षडयंत्र से उनका उद्देश्य, ईरान की आर्थिक समस्याओं की आड़ में यूनिवर्सिटियों को लक्ष्य बनाकर देश को गृहयुद्ध में झोंकना था।

वाइस आफ अमरीका की सरकारी कर्मचारी महीस अलीनेज़ाद जो ईरान विरोधी अभियान के मुख्य तत्वों में से एक हैं।

ईरान विरोधी पश्चिमी धड़ा, अपने षडयंत्र को लागू कर ही रहा था कि इसी बीच शहरीवर माह अर्थात अगस्त 2023 के अंत में पुलिस की कस्डटी में महसा अमीनी नामक ईरानी लड़की की मौत हो जाती है।वह ईरानी कुर्द जाति से संबन्धित थी जो एक अल्पसंख्यक समुदाय है।  इस मुद्दे ने पश्चिमी नेताओं को एक अच्छा अवसर उपलब्ध करवा दिया।  इस बीच औपनिवेशिक इतिहास रखने वाले देशों से संबन्धित फारसी भाषी चैनेलों ने अपनी गतिविधियां तेज़ कर दीं और वे चौबीसों घंटे ईरान विरोधी दुष्प्रचार में लग गए।  उदाहरण स्वरूप बीबीसी के फारसी भाषी टीवी चैनेल ने अपने चेहरे पर पड़ी तथाकथित निष्पक्षता की नक़ाब हटाते हुए ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध कमर कस ली।

ईरान में फैलाई गई अशांति के काल में अर्थात 14 सितंबर 2023 से 31 अक्तूबर 2023 तक 46 दिनों के भीतर ईरान विरोधी फारसी भाषी 5 संचार माध्यमों ने 38000 झूठ फैलाए।  वे ईरान विरोधी पश्चिमी संचार माध्यम, जिन्होंने 46 दिनों के भीतर 38000 से अधिक झूठ फैलाए उनके नाम इस प्रकार से हैं।  ब्रिटेन सरकार से संबन्धित बीबीसी की फार्सी सेवा, सऊदी अरब और इस्राईल का आशीर्वाद प्राप्त "ईरान इंटरनैश्नल" चैनेल, अमरीकी सरकार से संबन्धित "वाइस आफ अमेरिका" और "रादियो फर्दा" तथा ब्रिटेन और इस्राईल की कृपाद्ष्टि से संचालित "मनोतो" नामक चैनेल।

"ज़न, ज़िंदगी, आज़ादी" नामक उपद्रव से कुछ पश्चिमी राजनेताओं का दिखावटी समर्थन

झूठ का पुलिंदा, ज़न,ज़िंगदी,आज़ादी नामक किताब पिछले वर्ष उपद्रव से संबन्धित उन झूठी बातों का संग्रह है जिसमें एकल ईरान को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से ईरानी जनता की शांति एवं सुकून को छीनने के प्रयास किये गए।

एक उपद्रवी सड़कों और राजमार्गों को बंद करते हुए

इस किताब के पहले अध्याय में पश्चिम द्वारा तैयार की गई योजना के अन्तर्गत आम जनमत को भ्रमित करने के लिए ख़ूब बढा-चढाकर हत्याओं का उल्लेख किया गया।  यहां तक कि उस दौरान ईरान के किसी भी भाग में अगर किसी की भी मौत होती थी तो उसको भी यही दिखाया जाता था कि मानो उसको उपद्रव के दौरान ईरान की सरकार ने मारा है।

सावर्जनिक संपत्तियों, बैंकों और मस्जिदों को नुक़सान पहुंचाते उपद्ववी

उनके लिए उस समय ख़ूबसूरत लड़कियों का अधिक महत्व था क्योंकि उनके द्वारा गढ़े गए नारे ज़न-ज़िंदगी,आज़ादी से वे अधिक निकट दिखाई देती थीं।  इस दौरान ईरान में जो लोग किसी एक्सीडेंट में मर जाते या जो लोग आत्महत्याएं कर रहे थे उन सबको एसे दिखाया जा रहा था कि मानो वे पुलिस कर्मियों के हाथों मारे गए हैं।  बात तो इससे भी बहुत आगे बढ चुकी थी।  यहां तक कि बहुत से वे लोग जो ज़िंदा थे उनको भी मुर्दा दिखाया गया।  इसके अतिरिक्त जो लोग ग़ुडों या लफ़ंगों के हाथो मारे गए उनको भी ईरान की पुलिस के खाते में ही डाल दिया गया।

ज़न,ज़िंदगी,आज़ादी नामक आन्दोलन के समर्थक एटीएम को नष्ट करते हुए।

अमरीका का समर्थन प्राप्त ईरान विरोधी अभियान ने उपद्रव के दौरान जैसे ही मृतकों के बारे में अफवाहें आरंभ कीं तो जनमत को भड़काने, लोगों को निराश करने और अधिकारियों तथा जनता के बीच दूरी पैदा करने के उद्देश्य से व्यापक स्तर पर झूठ फैलाना शुरू कर दिया गया।  जब इस काल्पनिक प्रक्रिया ने अपने हिसाब से इस्लामी गणतंत्र ईरान की समाप्ति को निकट देखा तो उसने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की बीमारी और ईरान के अधिकारियों के पश्चिम की ओर फरार होने की झूठी ख़बरें फैलानी शुरू कर दीं

उपद्रव के दौरान देश में अधिक से अधिक अशांति को दर्शाने के लिए पुरानी फ़िल्मों या अलग-अलग तिथियों के चित्रों को एक साथ दिखाया जाने लगा और फिर इनके माध्यम से झूठी ख़बरों की बमबारी की गई।  दुश्मन के संचार माध्यमों ने व्यापक स्तर पर जाने माने लोगों, विद्धार्थियों और पत्रकारों की गिरफ़्तारियों की झूठी ख़बरों के साथ ही जेल के बंदियों को यातानाएं देने जैसी झूठी ख़बरों को भी खूब चलाया।

अमरीका और पश्चिम ने अपने देशी और विदेशी तत्वों को अलर्ट करने के साथ ही आम लोगों को भड़काने के लिए जो उपाय ढूंढे थे उनमे से एक था सेलिब्रिटी का प्रयोग करना ताकि उनके माध्यम से दुष्प्रचार की आग तेज़ी से भड़काई जा सके।

सेलिब्रिटीज़ में कुछ एसे भी थे जो पहले से विदेशों में रह रहे थे और जिनकी ईरान विरोधी गतिविधियां पूर्व में ही सिद्ध हो चुकी थीं।  इनमें से कुछ एसी भी सेलिब्रिटीज़ थीं जो ईरान विरोधी प्रक्रिया का समर्थन करने के बावजूद देश के भीतर से अपनी गतिविधियां अंजाम दे रही थीं। कुछ एसे चेहरे भी थे जिनका पूरा प्रयास यह था कि किसी तरह से वे पश्चिम का आशीर्वाद प्राप्त करने में सफल हो जाएं।  इन्होंने इस काम के लिए ईरानी जनता और ईरान की शासन व्यवस्था को क्षति पहुंचाने के साथ ही अमरीका और यूरोप में अपनी नागरिक के काम को सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की।

इसी बीच कुछ एसे व्यक्तित्व भी दिखाई दिये जो क्रांति विरोधी मीडिया के दबाव में आकर सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए विवश थे हालांकि उनमें से कुछ माहौल से प्रभावित भी दिखाई दिये।

 

      

इस्लामी सहयोग संगठन ओआईसी ने एक बयान जारी कर कहा है कि बैतुल मुक़द्दस, फिलिस्तीन का अभिन्न अंग और उसकी राजधानी है और मस्जिदुल अल-अक्सा मुसलमानों का एकमात्र इबादत स्थल है।

इस्लामी सहयोग संगठन के बयान के मुताबिक, ज़ायोनी शासन मस्जिदुल अक्सा की सीमाओं पर लोहे की सलाखें लगाकर और इस पवित्र स्थान तक पहुंचने के लिए बाधाएं खड़ी करके पहले क़िबला की कानूनी और ऐतिहासिक स्थिति को बदलना चाहता है।

ओआईसी के इस बयान में ज़ायोनियों की इन हरकतों को अस्वीकार्य और निंदनीय बताया गया है।

इस्लामी सहयोग संगठन के बयान में मस्जिदुल अल-अक्सा और उसके प्रांगणों तथा वहां मौजूद नमाज़ियों पर ज़ायोनी कट्टरपंथियों और सैनिकों के हमलों को अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों का स्पष्ट उल्लंघन बताया गया है।

बयान में कहा गया है कि ज़ायोनी शासन, मस्जिदुल अल-अक्सा और मुसलमानों और ईसाइयों के धार्मिक और पवित्र स्थानों पर लगातार घुसपैठ करके अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता है जो अंतरराष्ट्रीय क़नून के खिलाफ है।

इस्लामी सहयोग संगठन के बयान में कहा गया है कि मस्जिदुल अल-अक्सा और बैतुल मुक़द्दस में पवित्र स्थानों का अनादर और इबादतों की स्वतंत्रता के उल्लंघन के परिणामों की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से ज़ायोनी शासन पर है।

इस बयान में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की गई है कि वह अपनी ज़िम्मेदारियां निभाए और ज़ायोनी शासन की कार्रवाइयों को रोकें जो पूरे क्षेत्र में हिंसा और तनाव पैदा कर रहा हैं और सुरक्षा तथा स्थिरता को प्रभावित कर रहा है।

यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रभारी जोसेफ बोरेल ने ग़ज़ा में इस्राईल के नरसंहार को लेकर चेतावनी दी है।

एक इंटरव्यू में जोसेफ़ बोरेल ने कहा कि आज ग़ज़ा में युद्ध के कारण ज़ायोनी शासन के प्रति दुनिया का नज़रिया बदल रहा है और तेल अवीव का समर्थन कम हो रहा है।

उन्होंने कहा कि जिसे मैं विश्वास के साथ नरसंहार कह सकता हूं, उससे दुनिया के लोग चिंतित हैं।

जोसेफ बोरेल ने कहा कि 30 हज़ार से अधिक नागरिक मारे गए हैं जो कल्पना से परे है।

उन्होंने दावा किया कि यूरोपीय संघ ने फ़िलिस्तीनी मुद्दे के लिए कुछ प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा है जिसमें दो-राज्य समाधान भी शामिल है जिसमें फिलिस्तीनियों को अपनी ज़मीन और सरकार रखने का अधिकार होगा।

जोसेफ बोरेल ने ग़ज़ा में मानवीय संकट पर चिंता व्यक्त की और कहा कि ज़ायोनी शासन भूख को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने कहा कि लाखों लोग सचमुच भूख से मर रहे हैं और कई बच्चे भी कुपोषण से पीड़ित हैं। इस वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं।

उन्होंने ग़ज़ा में सहायता में रुकावट को भोजन और भुखमरी का मुख्य कारण बताया और कहा कि यह कहा जा सकता है कि इस्राईल भूख को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस बात के बहुत से सबूत हैं कि सीमाओं पर बाधाओं के कारण सहायता आपूर्ति ग़ज़ा तक नहीं पहुंच पा रही है और इस संबंध में इस्राईल के दावों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

भारत के निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया है।

इस बार भी सात चरणों में मतदान कराये जाएंगे जबकि रिज़ल्ट चार जून को घोषित किए जाएंगे। चुनाव आयोग ने साथ ही चार राज्यों में भी विधानसभा चुनाव कराए जाने का ऐलान कर दिया है।

543 सीटों के लिए 19 अप्रैल, 26 अप्रैल, 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और एक जून को मतदान होगा. 19 अप्रैल को पहले चरण में 102 सीट, 26 अप्रैल को दूसरे चरण में 89 सीट, 7 मई को तीसरे चरण में 94 सीट, 13 मई को चौथे चरण में 96 सीट, 20 मई को पांचवें चरण में 49 सीट, 25 मई को छठे चरण में 57 सीट और एक जून को सातवें और अंतिम चरण में 57 सीटों पर वोटिंग होगी।

साथ ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव भी कराए जाएंगे। आंध्र प्रदेश की 175 विधानसभा सीटों के लिए 13 मई को मतदान होगा. साथ ही अरुणाचल प्रदेश की 60 और सिक्किम की 32 विधानसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे, ओडिशा विधानसभा चुनाव चार चरणों में होंगे।

वहीं लोकसभा चुनावों के साथ विभिन्न राज्यों में 26 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव भी होंगे।

मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 16 जून को खत्म हो रहा है और नई लोकसभा का गठन उससे पहले होना है। आंध्र प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और ओडिशा में विधानसभाओं का कार्यकाल भी जून में अलग-अलग तारीखों पर खत्म हो रहा है।

चुनाव की घोषणा करते हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि हमारी टीम अब पूरी हो चुकी है, हम भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव के लिए पूरी तरह तैयार हैं, हमारा वादा इस तरह से राष्ट्रीय चुनाव कराने का है, जिससे विश्व स्तर पर भारत का गौरव बढ़े।

निर्वाचन आयोग ने कहा कि देश में 97 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं, 10.5 लाख से अधिक मतदान केंद्र हैं, 55 लाख ईवीएम का इस्तेमाल होगा, कुल मतदाताओं में 49.7 करोड़ पुरुष, 47.1 करोड़ महिलाएं, 48 हजार ट्रांसजेंडर शामिल हैं, वहीं ऐसे मतदाताओं की संख्या 1.8 करोड़ है, जो पहली बार मतदान करेंगे।

उन्होंने कहा कि हमारी मतदाता सूची में 85 साल से अधिक उम्र के 82 लाख और 100 साल से अधिक उम्र के 2.18 लाख मतदाता शामिल हैं. देशभर में मतदाता लिंगानुपात 948 है, 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदाताओं की संख्या अधिक है, पूरे भारत में 85 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाताओं और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए घर से मतदान की सुविधा उपलब्ध होगी।

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि इस बार 85 साल से अधिक उम्र के लोग घर बैठकर वोट कर सकते हैं, 85 वर्ष से अधिक उम्र के जितने भी मतदाता हैं, उनके घर जाकर मतदान करवाया जाएगा। इस बार देश में पहली बार ये व्यवस्था एक साथ लागू होगी कि जो 85 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाता हैं और जिन्हें 40 प्रतिशत से अधिक की विकलांगता है, उनके पास हम फॉर्म पहुंचाएंगे, अगर वो मतदान का ये विकल्प चुनते हैं।

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं है. हिंसा से जुड़ी कोई भी शिकायत 100 मिनट में दूर होगी, हमारा वादा इस तरह से राष्ट्रीय चुनाव कराने का है, जिससे विश्व स्तर पर भारत का गौरव बढ़े, उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गए हैं. अपराधियों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है, वहीं, सीमाओं पर ड्रोन से निगरानी होगी, अब तक 3400 करोड़ का कैश पकड़ा गया था. कुछ राज्यों में धन कुथ में बल का प्रयोग ज्यादा हो रहा है।

इस संसार के अन्त में लौटने का कोई मार्ग नहीं है ठीक उसी प्रकार जैसे अविकसित व विकरित बच्चा विकास करने एवं विकार दूर करने के लिये पुनः माता के पेट में नहीं जा सकता तथा पेड़ से टूटा हुआ फल दोबारा पेड़ में नहीं लग सकता।

यह एक प्रकार से हमारे लिये चेतावनी है कि हम जान लें कि सम्भव है कि एक पल में सब कुछ समाप्त हो जाये, तौबा व प्रायश्चित के मार्ग बन्द हो जायें, भले कर्मों का कोई अवसर न बचे और हम लालसा और हसरत के साथ इस संसार से चले जायें। अतः रमज़ान के पवित्र समय को हमें अपने नैतिक विकास का महत्वपूर्ण अवसर समझना चाहिये।

हज़रत अली (अ) का कथन है कि पापी विचारों से दूरी मन का रोज़ा है जो पेट के रोज़े अर्थात भूख-प्यास सहन करने से बढ़ कर होता है।

अब आइये पैगम्बरे इस्लाम(स) के पौत्र इमाम सज्जाद(अ) की दुआ मकारेमुल अखलाक़ अर्थात शिष्टाचार व नैतिकता के चरण का एक भाग सुनते हैः हे ईश्वर मेरे प्रति पापियों एवं अत्याचारियों की ईष्या को प्रेम व मित्रता में परिवर्तित कर दे।

ईष्या किसी के पास से उस अनुकंपा के समाप्त हो जाने की आरज़ू को कहते हैं जिसे वह अनुकंपा प्राप्त होनी ही चाहिये। जो लोग ईश्वर एवं इस्लामी शिक्षाओं पर पूर्ण विश्वास रखते हैं वे कभी दूसरों के पास से अनुकंपाओं के समाप्त होजाने की कामना नहीं करते बल्कि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि स्वयं उनको भी वह अनुकंपा प्राप्त हो जाये।

परन्तु पाखंण्डी एवं बिना ईमान वाले लोग ईर्ष्या करते हैं और चाहते हैं कि दूसरों के पास कोई अच्छी वस्तु या गुण न रहे। पैगम्बरे इस्लाम(स) के एक अन्य पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़(अ) का कहना है कि ईमान वाला व्यक्ति ईर्ष्या नहीं करता बल्कि इच्छा करता है कि ईश्वर उसे भी वैसी ही अनुकंपा प्रदान करदे जबकि पाखंण्डी ईर्ष्या करता है और अनुकंपा के अन्त की इच्छा करता है।

इस आधार पर दूसरों को प्राप्त अनुकंपाओं से ईर्ष्या का कारण अधिकतर धन या पद होता है परन्तु इमाम सज्जाद(अ) के पास न तो धन था कि ईर्ष्यालु लोग ईर्ष्या करते न ही शासन व सरकार में उन्हें कोई पद प्राप्त था कि जलने वाले उससे जलते, इस लिये उनसे शत्रुओं की ईर्ष्य़ा का कारण उनकी उत्तम क्षमतायें, महान गुण, अद्वतीय आध्यात्मिक स्थान एवं ईश्वर पर उनका दृढ़ विश्वास था।

इमाम की दृष्टि में मनुष्य के लिये सर्वश्रेष्ठ मूल्य अपने पालनहार से उसका विशुद्ध संपर्क है और इमाम के पास यह अनुकंपा मौजूद थी और इसी लिये वे किसी भी भौतिक व सांसारिक वस्तु की परवा नहीं करते थे। इस्लाम में यही वास्तविक वैराग है।

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 17:01

बंदगी की बहार- 4

रमज़ान के महीने ने अपनी अपार विभूतियों और असीम ईश्वरीय क्षमा व दया के साथ हमें अपना अतिथि बनाया है।

इस पवित्र महीने की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व उनके परिजनों ने अनेक हदीसें बयान की हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपनी एक दुआ में रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों के बारे में कहते हैं। प्रभुवर! हमें इस महीने की विशेषताओं को समझने और इसका सत्कार करने का सामर्थ्य प्रदान कर।

रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों को समझने का अर्थ इस महीने की वास्तविकता को समझना है। जो भी इस महीने के गुणों को सही ढंग से समझ लेगा और इस महीने की महानता को पहचान जाएगा निश्चित रूप से वह अपना समय इसमें निष्ठापूर्ण ढंग से उपासना में व्यतीत करेगा। रमज़ान के महीने की एक विशेषता, इसका आध्यात्मिक स्थान और ईश्वर के निकट इसकी विशेष स्थिति है। अनन्य ईश्वर ने इस महीने को एक पवित्र, शीतल व उबलते हुए पानी के सोते की तरह रखा है ताकि उसके बंदे एक महीने के दौरान अपनी आत्मा को उसमें धोएं, अपने अस्तित्व से पापों को दूर करें और ईश्वरीय प्रकाश की ओर आगे बढ़ें। यह महीना, पवित्र होने और आध्यात्मिक छलांग लगाने का है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं कि अगर कोई बंदा रमज़ान के महीने के महत्व को समझ जाता तो यही कामना करता कि पूरा साल, ईश्वर के आतिथ्य का महीना रहे।

रमज़ान के पवित्र महीने की एक अन्य विशेषता इसमें क़ुरआने मजीद व अन्य बड़ी आसमानी किताबों का भेजा जाना है। क़ुरआने मजीद, तौरैत, इन्जील, ज़बूर और हज़रत इब्राहीम व हज़रत मूसा की किताबें इसी पवित्र महीने में भेजी गई हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं। पूरा क़ुरआन रमज़ान के महीने में शबे क़द्र में एक ही बार में पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ अर्थात भेजा गया। फिर वह बीस साल में क्रमबद्ध ढंग से उन पर नाज़िल हुआ। हज़रत इब्राहीम की किताब, रमज़ान महीने की पहली रात में, तौरैत, रमज़ान के छठे दिन, इंजील, रमज़ान के तेरहवें दिन और ज़बूर रमज़ान की 18वीं तारीख़ को नाज़िल हुई है।

 

रमज़ान महीने की विशेषताएं और उसके गुण असीम हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की हदीस है कि रमज़ान के महीने में की गईं भलाइयां स्वीकृत होती हैं और बुराइयां क्षमा की जाती हैं। जिसने रमज़ान के महीने में क़ुरआने मजीद की एक आयत की तिलावत की वह उस व्यक्ति की तरह है जिसने अन्य महीनों में पूरे क़ुरआन की तिलावत की हो। रमज़ान का महीना, विभूति, दया, क्षमा, तौबा व ईश्वर की ओर लौटने का महीना है। अगर किसी को रमज़ान के महीने में क्षमा न किया गया तो फिर किस महीने में क्षमा किया जाएगा? ईश्वर से प्रार्थना करो कि वह इस महीने में तुम्हारे रोज़ों को स्वीकार करे और इसे तुम्हारी आयु का अंतिम वर्ष क़रार न दे, तुम्हें उसके आज्ञापालन का सामर्थ्य प्रदान करे और उसकी अवज्ञा से तुम्हें दूर रखे कि निश्चित रूप से प्रार्थना के लिए ईश्वर से बेहतर कोई नहीं है।

रमज़ान महीने की एक अन्य अहम विशेषता यह है कि ईश्वर इस विभूतियों भरे महीने में, ईमान वालों पर शैतानों को वर्चस्व को रोक देता है और उन्हें बेड़ियों में जकड़ देता है। यही कारण है कि इस महीने में मनुष्य की आत्मा अधिक शांत रहती है और वह इस स्वर्णिम अवसर को अपनी आत्मा के प्रशिक्षण और अध्यात्म तक पहुंच के लिए प्रयोग कर सकता है। दयावान ईश्वर ने आत्मिक व आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक ईमान वालों की पहुंच के लिए रमज़ान के पवित्र महीने और रोज़ों में ख़ास विशेषताएं रखी हैं। उसने न खाने और न पीने जैसी सीमितताओं के मुक़ाबले में अपने बंदों के लिए अत्यंत मूल्यवान पारितोषिक दृष्टिगत रखे हैं जिन्हें बयान करना संभव नहीं है।

इस ईश्वरीय आतिथ्य में न केवल यह कि उपासनाओं का पूण्य कई गुना अधिक मिलता है बल्कि इस महीने में ईमान वालों का सोना और सांस लेना भी उपासना और ईश्वरीय गुणगान समझा जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का कथन है कि इस महीने में तुम्हारी सांसें ईश्वर का गुणगान और तुम्हारी नींद ईश्वर की उपासना है। ईश्वर की यह विशेष व बेजोड़ कृपादृष्टि साल के किसी भी अन्य महीने या दिन में दिखाई नहीं देती।

इस पवित्र महीने में रोज़ा रखने का बहुत अधिक पुण्य और विभूतियां हैं। रोज़ा रखने से मनुष्य की आत्मा कोमल होती है, उसका संकल्प मज़बूत होता है और उसकी आंतरिक इच्छाएं नियंत्रित होती हैं। अगर इंसान अपनी वासना और आंतरिक इच्छाओं को नियंत्रित कर ले और उनकी लगाम अपने हाथ में ले ले तो फिर वह आध्यात्मिक पहलू से अपना प्रशिक्षण कर सकता है और वांछित पवित्रता व परिपूर्णता तक पहुंच सकता है। अगर इंसान अपनी प्रगति की मार्ग की बाधाओं को एक एक करके हटाना और अपने आपको शारीरिक वासनाओं में व्यस्त नहीं रखना चाहता तो रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखना उसके लिए सबसे अच्छा अवसर है। क़ुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 183 में कहा गया हैः हे ईमान वालो! तुम पर रोज़े उसी तरह अनिवार्य किए गए जिस प्रकार तुमसे पहले वालों पर अनिवार्य किए गए थे कि शायद तुममें ईश्वर का भय पैदा हो जाए।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से रमज़ान के महीने में रोज़े की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहाः लोगों पर रोज़ा इस लिए अनिवार्य किया गया ताकि वे भूख और प्यास की पीड़ा और तकलीफ़ को समझ सकें और फिर प्रलय की भूख, प्यास और अभाव की पीड़ाओं को समझ सकें जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि तुम रोज़े में अपनी भूख और प्यास के माध्यम से प्रलय में अपनी भूख और प्यास को याद करो। यह याद मनुष्य को प्रलय के लिए तैयारी करने पर प्रेरित करती है और वह ईश्वर की प्रसन्नता के लिए अधिक कोशिश करता है। यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने रोज़ा रखने वालों को यह मूल्यवान शुभ सूचना दी है कि रमज़ान के पवित्र महीने का आरंभ, दया है, उसका मध्यम भाग, क्षमा है और उसका अंत नरक की आग से मुक्ति है।

रमज़ान का महीना बड़ी तेज़ी से गुज़रता है और हम उन राहगीरों की तरह हैं जिन्हें इस मार्ग पर बिना निश्चेतना के, सबसे अच्छे कर्मों और सबसे अच्छे व्यवहार के साथ आगे बढ़ना है। चूंकि इस्लाम में मनुष्य का सबसे बड़ा दायित्व आत्म निर्माण और अपने आपको बुराइयों से पवित्र करना है इस लिए रमज़ान का महीना, आत्म निर्माण, नैतिकता व मानवता तक पहुंचने का सबसे अच्छा अवसर है। आत्म निर्माण के लिए जिन बातों की सिफ़ारिश की गई है उनमें से एक अहम बात, अधिक बोलने से बचना है। मौन व कम बात करना ऐसा ख़ज़ाना है जो मनुष्य के मन में ईश्वर की पहचान के दरवाज़े खोल देता है। रमज़ान के महीने में, जो ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है, यह सिफ़ारिश और बढ़ जाती है कि कहीं रोज़ेदार व्यक्ति दूसरों की बुराई करने, उन पर आरोप लगाने और झूठ बोलने जैसे पापों में न ग्रस्त हो जाए।

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम एक गली से गुज़र रहे थे कि उन्होंने एक महिला की आवाज़ सुनी जो अपनी दासी को गालियां दे रही थी। महिला ने सुन्नती रोज़ा भी रखा हुआ था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने आदेश दिया कि कुछ भोजन लाया जाए। फिर आपने उस महिला से कहा कि इसे खा लो। उसने कहा कि हे ईश्वर के पैग़म्बर! मैं रोज़े से हूं। उन्होंने कहा कि तू किस प्रकार रोज़े से है कि अपनी दासी को गालियां दे रही है? इसके बाद आपने फ़रमाया कि रोज़ा केवल न खाना और न पीना नहीं है। इसके बाद आपने जो वाक्य कहा वह चिंतन का विषय है। उन्होंने कहाः रोज़ेदार कितने कम हैं और भूखे कितने ज़्यादा हैं।

धर्म व शिष्टाचार के नेताओं ने कम बात करने और मौन के बारे में बहुत सी सिफ़ारिशें की हैं। लुक़मान हकीम ने अपने बेटे से कहा हैः हे मेरे पुत्र! जब भी तुम यह सोचो कि बात करने का मूल्य चांदी है तो यह जान लो कि चुप रहने का मूल्य सोना है। कम बोलने और मौन के कुछ लाभ हैं जिन पर लोग कम ही ध्यान देते हैं और रमज़ान का महीना इस बात का अच्छा अवसर है कि हम उन पर विशेष ध्यान दें। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा है कि बुद्धि, ज्ञान व विनम्रता के चिन्हों में से एक मौन है।

निश्चित रूप से मौन, तत्वदर्शिता के दरवाज़ों में से एक है, मौन, प्रेम का कारण बनता है और हर अच्छे काम का मार्गदर्शक है। रोज़ेदार व्यक्ति, जिसकी आत्मा अधिक शांत होती है, कम बात करने और मौन का प्रयास कर सकता है और बात करने से पहले अधिक सोच-विचार कर सकता है। सोच-विचार एक बड़ी उपासना है जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि एक घंटे सोच विचार करना, सत्तर साल की उपासना से बेहतर है।