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हुज्जत अल-इस्लाम वा मुस्लिमीन सैयद सद्र अल-दीन कबानची ने कहा: रमज़ान का महीना खुद को नैतिकता से सुशोभित करने का महीना है और यही कारण है कि नैतिकता के विद्वान इस महीने को आत्म-प्रशिक्षण के लिए एक नए साल की शुरुआत कहते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, नजफ अशरफ जुमा हुजतुल इस्लाम वा मुस्लिमीन के इमाम सैयद सदरुद्दीन कबानची ने कल अपने शुक्रवार के प्रार्थना उपदेश में कहा: बिडेन ने इस सप्ताह अपने एक भाषण में कहा है कि हमने मध्य पूर्व पर अपना नियंत्रण बढ़ा दिया है। .ईरान के खतरों को नियंत्रित करने के लिए किया गया है।

उन्होंने कहा: बिडेन के अनुसार, यमन के खिलाफ युद्ध में अमेरिका के समर्थन का उद्देश्य आईएसआईएस का पूर्ण समर्थन, क्षेत्रीय देशों के राष्ट्रपतियों को उखाड़ फेंकना और नए राष्ट्रपतियों का चुनाव, रूस के खिलाफ युद्ध में यूक्रेन का समर्थन करना है। गाजा के खिलाफ युद्ध। इजराइल के लिए मजबूत समर्थन है और ईरान के खतरे को नियंत्रित करने का प्रयास है।

हिज्जत अल-इस्लाम वा अल-मुसलमीन कबान्ची ने कहा: यद्यपि अमेरिका की नीति और विचारधारा पूरी दुनिया पर हावी होने की है, लेकिन सच्चाई यह है कि हम एक ऐसे दौर में हैं जहां राष्ट्र जाग गए हैं और इस्लाम के मार्गदर्शन में उनकी स्वतंत्रता शुरू हो गई है।

इमाम जुमा नजफ अशरफ ने अपने उपदेश के दूसरे भाग में कहा: अल्लाह के दूत, भगवान उन्हें आशीर्वाद दें और उन्हें शांति प्रदान करें, उन्होंने शाबान के आखिरी शुक्रवार को अपना उपदेश देते हुए 15 शैक्षिक और नैतिक मुद्दों का उल्लेख किया। सलीम ने निम्नलिखित बातों का उल्लेख किया इस उपदेश में:

  1. भगवान आपको उपवास करने में मदद करें, 2. अल्लाह आपको कुरान पढ़ने में सक्षम बनाए, 3. कयामत के दिन रोजा रखते हुए भूख और प्यास को याद रखें। 4- गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें और दान दें। 5- अपने बड़ों का सम्मान करें. 6- छोटों पर दया करें. 7- दयालु बनो. 8- अपनी ज़ुबान को क़ाबू में रखें, 9- अपनी आँखों को वर्जनाओं से बचाएं। 10- जिन बातों को सुनना जायज़ नहीं है उनसे बचो, 11- अनाथों से सहानुभूति रखो. 12- अल्लाह से तौबा करो। 13- ईश्वर से प्रार्थना करें. 14- इस्तिग़फ़ार के ज़रिए अपने आप को जहन्नम की आग से बचाएं। 15- लंबे सजदे से अपने गुनाहों का बोझ हल्का करें।

उन्होंने कहा: यह सब दर्शाता है कि रमज़ान का महीना खुद को नैतिक आभूषणों से सजाने का महीना है और यही कारण है कि नैतिकता के विद्वान इस महीने को आत्म-प्रशिक्षण के लिए एक नए साल की शुरुआत कहते हैं और कहते हैं। रमज़ान का महीना इस बात का प्रतीक है वर्ष की शुरुआत उन लोगों के लिए है जो पूजा और दासता का मार्ग तय करना चाहते हैं और इस महान मार्ग पर चलना चाहते हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मंगलवार की सुबह पूरे मुल्क के नमाज़े जुमा के इमामों से मुलाक़ात की।

उन्होंने इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में रजब के महीने को साल के सबसे महान दिनों में बताया और सभी लोगों तथा मोमिनों को अल्लाह की इस अज़ीम नेमत और इसकी दुआओं से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने के साथ ही तौबा करने और गुनाहों की माफ़ी मांगने की सिफ़ारिश की।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ग़ज़ा के मसले और ग़ज़ा के अवाम के सब्र व दृढ़ता की ओर इशारा किया और इस बात पर बल देते हुए कि आज ग़ज़ा के मसले में जो एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा है, अल्लाह की क़ुदरत साफ़ तौर पर नज़र आ रही है, कहा कि ग़ज़ा के मज़लूम और ताक़तवर लोग, दुनिया को अपनी जद्दोजेहद से प्रभावित करने में कामयाब रहे हैं और आज दुनिया इन लोगों और इन रेज़िस्टेंस गुटों को, महानायक के तौर पर देख रही है।

उन्होंने दुनिया की नज़रों में ग़जा के अवाम की मज़लूमियत के साथ ही उनकी फ़तह को उनके सब्र और अल्लाह पर भरोसे का फल और बरकत बताया और कहा कि इसके मुक़ाबले में आज दुनिया में कोई भी जंग में क़ाबिज़ व घटिया ज़ायोनी फ़ौज की फ़तह को नहीं मानता और दुनिया भर के लोगों और राजनेताओं की नज़र में यह शासन ज़ालिम, बेरहम, ख़ूंखार भेड़िये, पराजित और तबाह होने वाला है।

उन्होंने कहा कि ग़ज़ा के लोगों ने अपने प्रतिरोध से दुनिया के लोगों की निगाहों में इस्लाम का प्रचार किया और क़ुरआन मजीद को लोकप्रिय बना दिया है और हम अल्लाह से प्रतिरोध के मोर्चे ख़ास तौर पर ग़ज़ा के अवाम और मुजाहिदों के लिए दिन दूनी रात चौगुनी कामयाबी की दुआ करते हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इसी तरह ग़ज़ा के अवाम के सपोर्ट में यमनी क़ौम और अंसारुल्लाह की सरकार के अज़ीम कारनामे को सराहते हुए कहा कि यमन के लोगों ने ज़ायोनी शासन के वजूद पर वार किया है और वो अमरीका की धमकी से नहीं डरे क्योंकि अल्लाह से डरने वाला इंसान, किसी दूसरे से नहीं डरता और उनका यह काम सचमुच अल्लाह की राह में जेहाद की मिसाल है।

उन्होंने उम्मीद ज़ाहिर की कि अल्लाह की मरज़ी से यह संगर्ष, दृढ़ता और जद्दोजेहद, फ़तह तक जारी रहेगी और अल्लाह उन सभी लोगों को अपनी मदद देगा जो उसकी मरज़ी की राह में क़दम बढ़ा रहे हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने ख़ेताब के एक दूसरे हिस्से में जुमे की इमामत को बहुत सख़्त कामों में से एक बताया क्योंकि जुमे के इमाम को अल्लाह की ओर ध्यान केन्द्रित रखना होता है और उसकी मरज़ी की प्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाना होता है और साथ ही अवाम के हितों और उनकी रज़ामंदी को भी मद्देनज़र रखने की ज़रूरत होती है।

उन्होंने जुमे की नमाज़ में लोगों पर ख़ास ध्यान को इस्लाम में अवाम की बुनियादी पोज़ीशन की निशानी बताया और कहा कि इस्लामी सिस्टम में अवाम का किरदार और उनका हक़ इस तरह का है कि अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के बक़ौल अगर लोग न चाहें और न आएं तो उनके जैसे हक़दार शख़्स की ज़िम्मेदारी भी हट जाती है लेकिन अगर लोगों ने चाहा तो ज़िम्मेदारी क़ुबूल करना उस पर वाजिब है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इसी तरह मुल्क और वैश्विक वाक़यों, दुश्मन की साज़िशों और योजनाओं, समाज की ज़रूरतों और तथ्यों से लोगों को आगाह करने को जुमे की नमाज़ के ख़ुतबों की ज़रूरी बातों का हिस्सा क़रार दिया।

उन्होंने जुमे की नमाज़ के ख़ुतबों के लिए ज़रूरी बातों के चयन और सुनने वालों की पहचान पर ताकीद करते हुए आज के जवानों के मन के मुख़्तलिफ़ क़िस्म की बातों व प्रोपैगंडों का निशाना बनने की ओर भी इशारा किया और कहा कि ज़रूरी बातों के चयन और सुनने वाले की मानसिकता की सही पहचान के लिए जुमे के इमाम का लोगों के साथ रहना और उनके साथ घुलना मिलना ज़रूरी है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने जुमे की इमामत की अहम ज़िम्मेदारी को अदा करने के लिए लोगों से हमदर्दी और उनसे लगाव को दूसरा ज़रूरी तत्व बताया।

उन्होंने ईरानी अवाम की बेमिसाल ख़ुसूसियतों का भी ज़िक्र किया और कहा कि हमारे अवाम, बहुत अच्छे और मोमिन हैं और जो लोग कुछ ज़ाहिरी बातों की पाबंदी नहीं करते उनका दिल अल्लाह के साथ और आत्मिक मामलों की ओर उनका ध्यान है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दुश्मनों के तरह तरह के हमलों के मुक़ाबले में ईरान और इस्लामी सिस्टम की रक्षा के मुख़्तलिफ़ मैदानों में मौजूदगी के लिए तैयारी और वफ़ादारी को ईरानी अवाम की एक और नुमायां ख़ुसूसियत बताया और कहा कि जब भी मुल्क और इंक़ेलाब को रक्षा की ज़रूरत पड़ी हमारे अवाम ने सड़कों पर आकर सब्र और सपोर्ट का प्रदर्शन किया यहाँ तक कि जंग के मैदान में जाकर अपनी वफ़ादारी भी दिखाई है।

उन्होंने चुनावों में अवाम की भरपूर शिरकत पर बल देते हुए, चुनाव में शिरकत को, क़ानून बनाने और उसे लागू करने वालों के चयन के लिए अवाम का हक़ बताया।

भारतीय तट से 1400 मील दूर एक व्यापारी जहाज को बंधक बनाने वाले जलदस्युओं पर नौसेना ने ऐसा हमला किया जिसके कारण उन्हें सरेंडर होने पर बाध्य होना पड़ा।

भारतीय नौसेना ने रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर बंधक जहाज के चालक दल के 17 सदस्यों की सुरक्षित रिहाई भी सुनिश्चित की। समुद्री लुटेरों के खिलाफ अपने इस अभियान के लिए नौसेना ने अपने पी-8I समुद्री गश्ती विमान, फ्रंटलाइन जहाज आईएनएस कोलकाता और आईएनएस सुभद्रा और मानव रहित हवाई यान को तैनात किया।

अभियान के लिए सी-17 विमान से विशिष्ट मार्कोस कमांडो को उतारा गया। इससे पहले, नौसेना ने सोमालिया के पूर्वी तट पर जहाजों के अपहरण के सोमालियाई समुद्री डाकुओं के एक प्रयास को विफल कर दिया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार समुद्री डाकू रुएन नामक एक मालवाहक जहाज पर सवार थे जिसका करीब तीन महीने पहले अपहरण किया गया था।

भारतीय नौसेना के प्रवक्ता ने कहा कि आईएनएस कोलकाता ने पिछले 40 घंटों में ठोस कार्रवाई करके सभी 35 जलदस्यु को सफलतापूर्वक घेर लिया और आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया तथा बंधक बनाए गए जहाज से चालक दल के 17 सदस्यों की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित की।

नौसेना ने बताया कि एमवी रुएन का सोमालियाई जलदस्युओं ने 14 दिसंबर को अपहरण कर लिया था। पहले के बयान में नौसेना ने बताया था कि जहाज से भारतीय युद्धपोत पर गोलीबारी की गई और भारतीय जहाज की ओर से आत्म रक्षा में और नौवहन तथा नाविकों को जलदस्युओं के खतरे से बचाने के लिए आवश्यक न्यूतनम बल के साथ समुद्री डकैती से निपटने के वास्ते अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार कार्रवाई की गई। नौसेना ने कहा है कि जहाज पर सवार समुद्री डाकुओं से आत्मसमर्पण करने तथा उनके द्वारा बंधक बनाए जहाज तथा नागरिक को रिहा करने को कहा गया।

सीरिया के सैनिक सूत्र ने बताया है कि जायोनी सरकार के युद्धक विमानों ने आज सुबह लगभग 12 बजकर 42 मिनट पर दमिश्क के पास हमला किया जो एक सुरक्षा कर्मी के घायल होने और कुछ क्षति पहुंचने का कारण बना।

समाचार एजेन्सी फार्स ने सीरिया की सरकारी समाचार एजेन्सी सना के हवाले से बताया है कि जायोनी दुश्मन ने गोलान पहाड़ की ऊंचाइयों की ओर से दक्षिण के कुछ क्षेत्रों को लक्ष्य बनाया। इसी प्रकार सीरिया के सैनिक सूत्र ने बताया है कि सीरिया के एअर डिफेन्स ने दुश्मनों के कई मिसाइलों को हवा में ही मार गिराया।

कुछ समय पहले लेबनान के अलमयादीन टीवी चैनल ने भी रिपोर्ट दी थी कि सीरिया के एअर डिफेन्स सिस्टम मिसाइलों को अलकलून की ऊंचाइयों और दमिश्क के समीप अलकस्तल क्षेत्र में मिसाइलों को निष्क्रिय बनाने के प्रयास में हैं।

जायोनी युद्धक विमान लेबनान की वायु सीमा का उल्लंघन करके या सीरिया की अतिग्रहित गोलान पहाड़ की ऊंचाइयों का प्रयोग करके सीरिया के पूरब और उत्तर में हमला करते हैं। सीरिया की सरकार ने बारमबार एलान किया है कि जायोनी सरकार और उसके क्षेत्रीय और पश्चिमी घटक आतंकवादी गुटों का समर्थन कर रहे हैं। सीरिया की सेना ने अब तक बारमबार आतंकवादी गुटों के पास से इस्राईल निर्मित हथियारों की खेप पकड़ी है।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने नवंबर में चुनाव हारने पर अमेरिका में रक्तपात होने की चेतावनी दी है।

उन्होंने कहा कि यदि इस बार वह चुनाव हार गए तो अमेरिका में खून- खराबा शुरू हो जाएगा और ऐसा मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन की वजह से होगा। फिर इसे वह या मैं कोई भी रोक नहीं पाएगा।

ओहियो में चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि यदि इस बार भी बाइडेन जीते और मैं नवंबर में हार गया तो पूरे देश में "रक्तपात" होना शुरू हो जाएगा। ट्रंप ने ओहियो में सीनेट के उम्मीदवार बर्नी मोरेनो के लिए प्रचार कर रहे थे। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हालात बिगड़ जाने पर फिर वह या जो बाइडेन सामाजिक सुरक्षा की रक्षा नहीं कर पाएंगे।

शनिवार को डेटन के बाहर बोलते हुए ट्रम्प ने अमेरिकी राष्ट्रपति की दौड़ में रिपब्लिकन पार्टी की ओर "प्रथम अमेरिकन चैंपियन" और "बाहरी राजनीतिक व्यक्ति" के रूप चुने जाने पर गर्व किया। ट्रंप ने कहा कि उन्होंने अपना पूरा जीवन ओहियो समुदायों के निर्माण में बिताया है।  ''वह वाशिंगटन में एक योद्धा बनने जा रहे हैं।''

अगर यह चुनाव मैं नहीं जीतो तो नहीं लगता कि देश में कोई दूसरा भी चुनाव होगा। डोनॉल्ड ट्रंप ने बाइडेन को अमेरिका का अब तक का सबसे बुरा राष्ट्रपति बताया। उन्होंने कहा कि यदि इस बार मैं चुनाव नहीं जीता तो मुझे नहीं लगता कि देश में कोई अगला भी चुनाव होगा। ट्रंप ने कहा कि अगर मैं निर्वाचित नहीं हुआ, तो यहां रक्तपात होने वाला है।

ट्रम्प के "रक्तपात" वाले बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद राष्ट्रपति बाइडेन की ओर से इस पर प्रतिक्रिया दी गई है। बाइडेन की ओर से कहा गया है कि उन्हें 2020 में मतपेटी में "हारा हुआ" कहा गया था, ट्रंप का यह बयान एक बार फिर "राजनीतिक हिंसा की अपनी धमकियों को दोगुना कर देता है। बाइडेन के प्रचारक ने 2021 का जिक्र करते हुए कहा, "वह एक और 6 जनवरी दोहराना चाहते हैं, लेकिन अमेरिकी लोग उन्हें इस नवंबर में एक और चुनावी हार देने जा रहे हैं, क्योंकि वे ट्रंप के उग्रवाद और हिंसा के खिलाफ हैं।

 

हज़रत इमाम मोहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम ने फरमाया ,हर चीज़ की कोई एक बहार होती है और क़ुरआने करीम की बहार माहे रमज़ान है।

,यह वह महीना है जिसमें हम रोज़ा, इबादत, मुनाजात, दुआ और आध्यात्मिक तैयारी के माध्यम से क़ुरआन की इलाही तालीमात का इस्तक़बाल करते हैं, और हमारा मक़सद होता है कि हम रौज़े, नमाज़ , इबादत, दुआ और मुनाजात के ज़रिये क़ुरआन से अपने रिश्ते को और मज़बूत कर लें।

रमज़ान का महीना पवित्र क़ुरआन की बहार का महीना है। इस महीने में क़ुरान से ख़ास फैज़ हासिल किया जा सकता है क्यों कि रमज़ान का महीना कुरान के नाज़िल होने का महीना है। इस महीने में कुरान से परिचित होते हुए तिलावत के अलावा कुरान की आयतों की गहराई पर भी गौर करना चाहिए।

रमज़ान का महीना क़ुरआने करीम की बहार है:

रमज़ान का पाकीज़ा महीना क़ुरआने करीम की बहार है और क़ुरआने करीम से उन्स और उल्फत पैदा करने का महीना है। यह वह महीना है जिसमें इंसान क़ुरआने पाक के ज़रिये मानसिक और व्यावहारिक रूप से अपने आप को संवार सकता है। यह वह महीना है जिसमें अल्लाह के नबी के मुबारक दिल पर शबे क़द्र में पूरा नाज़िल हुआ।

यह वह महीना है जिसमें हम रौज़ा, इबादत, मुनाजात, दुआ और आध्यात्मिक तैयारी के माध्यम से क़ुरआन की इलाही तालीमात का इस्तक़बाल करते हैं, और हमारा मक़सद होता है कि हम रौज़े, नमाज़ , इबादत, दुआ और मुनाजात के ज़रिये क़ुरआन से अपने रिश्ते को और मज़बूत कर लें। क़ुरआने करीम माहे मुबारके रमज़ान की आत्मा है जिसने इस महीने की अज़मत और महानता को बढ़ा दिया है।

क़ुरआने करीम दिलों की बहार है और क़ुरआन की बहार माहे रमज़ान है। जैसा कि इमाम बाक़िर अ.स.  इरशाद फरमाते हैं: لِكُلِّ شي‏ءٍ رَبيعٌ و رَبيعُ القُرآنِ شَهرُ رَمَضان،

हर चीज़ की कोई एक बहार होती है और क़ुरआने करीम की बहार माहे रमज़ान है।

उसूले काफी जिल्द 2 पेज 10

इमाम अली अ.स. फरमाते हैं:   تَفَقَّهُوا فِيهِ فَاِنَّهُ رَبيعُ الْقُلوبِ क़ुरआन में ग़ौर करो क्योंकि क़ुरआन दिलों की बहार है।

 

 

 

 

शनिवार, 16 मार्च 2024 16:36

ईश्वरीय आतिथ्य- 5

रमज़ान का महीना जारी है।

रमज़ान वह महीना है जिसके बारे में पैगम्बरे इस्लाम (स) ने फरमाया है कि रमज़ान का महीना ईश्वर के निकट सब से अच्छा महीना है, उसके दिन सब से अच्छे दिन, उसकी रातें सब से अच्छी रातें और उसके क्षण सब से अच्छे क्षण हैं। इस महीने में सांस लेना, ईश्वर का गुणगान करना है, सोना , उपासना है, इस महीने के कर्म स्वीकार होते हैं और दुआएं पूरी होती हैं। इस लिए इस महीने में सच्ची नीयत और पवित्र ह्रदय के साथ, अपने पालनहार को बुलाएं ताकि वह तुम्हें इस महीने में रोज़ा रखने और क़ुरआने मजीद की तिलावत का अवसर प्रदान करे।

एक निर्धारित समय तक खाने पीने से दूरी, रमज़ान की मुख्य विशेषता है लेकिन सवाल यह है कि इस पवित्र महीने में सब से अच्छा काम क्या है? यह वह सवाल है जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पैगम्बरे इस्लाम से उनके उस भाषण के बाद पूछा जिसमें उन्होंने रमज़ान की विशेषताओं का वर्णन किया था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पूछा था कि हे ईश्वरीय दूत! इस पवित्र महीने में सब से अच्छा कर्म क्या है? तो उनके उत्तर में पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया कि, इस पवित्र महीने में सब से अच्छा कर्म, ईश्रर की ओर से वर्जित कामों से दूर रहना है।

रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने वाला हालांकि भूख और प्यास सहन करता है लेकिन उसके बदले उसे ऐसी चीज़ें मिलती हैं जो बहुत मूल्यवान हैं। रोज़ा रखने वाला भूखा और प्यासा रह कर जो सब बड़ा इनाम प्राप्त करता है वह, उन चीज़ों से दूरी है जिनसे ईश्वर ने मनुष्य को रोका है। क्योंकि यह किसी के लिए भी बहुत बड़ा इनाम है। रोज़ा रखने वाला, भूख और प्यास  सहन करके, अपनी सहन शक्ति बढ़ाता है  और इस तरह से उसे हराम काम और चीज़ों से बचने की शक्ति भी मिलती है और यह " तक़वा " अर्थात ईश्वरीय भय है। तक़वा वास्तव में वह कर्तव्य बोध और प्रतिबद्धता है जो दिल में धर्म पर आस्था के समा जाने के बाद मनुष्य में पैदा होती है और यह चीज़ मनुष्य को पापों से रोकती और अच्छाइयों की ओर ले जाती है।

तक़वा या ईश्वरीय भय के विभिन्न चरण होते हैं कभी किसी में " तक़वा" इस हद होता है कि वह नर्क के भय से हराम काम नहीं करता । यह साधारण चरण है बल्कि न्यूनतम चरण है जो धर्म पर विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति में होना चाहिए इसके बाद के चरण में पहुंचने वाला मनुष्य केवल हराम व वर्जित चीज़ों से दूरी ही नहीं करता बल्कि उन कामों और चीज़ों से भी दूर रहता है जिनके हराम होने का उसे शक होता है । यह विशेष तक़वा है लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो हराम या संदिग्ध रूप से हराम चीज़ों से ही नहीं बचते बल्कि वह उस चरण पर पहुंच चुके होते हैं कि वह हलाल चीज़ों से भी बस आवश्यकता भर लाभ उठाते हैं। यह वास्तव में तकवा का उच्च दर्जा है।

एक आध्यात्मवादी से " तक़वा" के बारे में पूछा गया तो उसने कहाः क्या कभी आप कांटों भरी राह पर चले हैं? सवाल करने वाले ने कहा हां तो उसने कहाः कैसे आगे बढ़े? सवाल पूछने वाले ने कहा कि पूरी राह कांटों से बच बच कर चलता रहा ताकि कोई कांटा पैरों में न चुभ जाए। उस आध्यात्मवादी ने कहा कि धर्म में भी यही स्थिति है और धर्म में भी एेसे ही सतर्क रहें ताकि उच्च स्थान तक पहुंच सको। छोटे बड़े पापों से बचें कि तक़वा यही है और उस व्यक्ति की तरह बनो जो कांटों भरी राह पर चलता है । इस प्रकार से हमने देखा कि तक़वा के विभिन्न चरण हैं और हर व्यक्तिअपनी अपनी क्षमता के अनुसार इस के विभिन्न चरणों तक पहुंच सकता है वह जितना हराम कामों और पापों से दूर होगा, ईश्वर से उतना ही निकट होगा।

एक महीने तक रोज़ा रखने से, गलत आदतों को छोड़ने में मदद मिलती है। रमज़ान में मिले अवसर को प्रयोग करके रोज़ा रखने वाला, अपने जीवन में बुनियादी  परिवर्तन लाता है और अपना स्वभाव बदलता है और अपने जीवन में नये नये परिवर्तनों का अनुभव करता है। रोज़ा रखने वाला अपनी आंतरिक इच्छाओं के दबा कर, अपनी आत्मशक्ति को मज़बूत करता है । जो इन्सान विभिन्न प्रकार की खाने पीने की चीज़े अपने पास रखता है और जब जी में आता है उसे खा लेता है वह नहर व नदी के किनारे उगने वाले पेड़ की तरह होता है जो बड़ी आसानी से फलते फूलते हैं लेकिन अगर नहर कर पानी सूख जाए तो उसके बिना कुछ दिन भी हरे भरे नहीं रह सकते। लेकिन जो पेड़ रेगिस्तानों  में पहाड़ का सीना चीर कर उगते हैं वह आरंभ से ही आंधी व तूफान का सामना करते करते फलते फूलते हैं इस लिए उन्हें इनकी आदत होती है और वह बेहद मज़बूत होते हैं । रोज़ा भी मनुष्य की आत्मा को इसी प्रकार से मज़बूत बनाता है और मनुष्य को कठिन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम बना देता है क्योंकि रोज़ा, इधर उधर भटकने वाली मन की इच्छाओं पर लगाम कसता है।

तक़वे की भांति रोज़े के भी कई चरण हैं। आध्यात्मवादियों ने रोज़े को तीन प्रकारों में बांटा है। साधारण रोज़ा, विशेष रोज़ा और अति विशिष्ट रोज़ा। साधारण रोज़ा, खाने पीने और मन की इच्छाओं से दूरी है। जब मनुष्य खाने पीने की चीज़ों और रोज़े को भंग करने वाली सभी चीज़ों से परहेज़ करता है तो वह इस प्रकार से अपना कर्तव्य पूरा कर देता है। यह रोज़े का पहला और सब से आसान चरण है। जैसा कि पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि ईश्वर ने रोज़ा रखने वाले पर सब से आसान चीज़ जो वाजिब की है वह यह है कि वह खाने पीने से परहेज़ करे।

रोज़े के उच्च चरण में , रोज़ा दार, रोज़े को भंग करने वाली चीज़ों से ही दूरी नहीं करता बल्कि वह ईश्वर की ओर से वर्जित किये गये हर काम से दूरी करता है। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पुत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम रमज़ान से विशेष अपनी एक दुआ में कहते हैंः

 हे ईश्वर तू इस महीने के रोज़ों द्वारा हमारी मदद कर ताकि हम अपने शरीर के अंगों को तेरी अवज्ञा से सुरक्षित रहें और उन्हें एेसे कामों में प्रयोग करें जिनसे तुम प्रसन्न हो, ताकि हम अपने कानों से गलत बात न सुनें ताकि अपनी आंखों से निर्रथक चीज़ें न देखें ताकि अपने हाथों को हराम की ओर न बढ़ाएं ताकि अपने पैरों को उस ओर न बढ़ाएं जिस ओर जाने से हमें रोका गया हो ताकि हम अपने पेटों में केवल उन्हीं चीज़ों को जगह दें जिन्हें तूने वैध किया है ताकि अपनी ज़बानों पर वही लाएं जिसकी तूने खबर दी है और बताया है।

इतिहास की किताबों में बताया गया है कि एक महिला, रोज़ा रखे थी लेकिन अपने पड़ोसी को हमेशा बुरा भला कहती रहती थी और उसे दुखी करती। इस का पता पैगम्बरे इस्लाम को चला तो पैगम्बरे इस्लाम ने आदेश दिया कि उस महिला के लिए खाने का इंतेज़ाम किया जाए। फिर पैगम्बरे इस्लाम ने उस महिला से खाना खाने को कहा। उस महिला ने कहा हे ईश्वरीय दूत! मैं कैसे खा सकती हूं मैं तो रोज़ा रखे हूं। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि किस प्रकार दावा करती हो कि तुम रोज़ा रखे हो जब कि अपने पड़ोसी को बुरा भला कहती हो? जान लो कि रोज़ा सिर्फ खाने पीने से बचना ही नहीं है। ईश्वर ने रोज़े को करनी व कथनी में बुराइयों से रुकावट बनाया है। कितने कम हैं रोज़ा रखने वाले और कितने ज़्यादा हैं भूखे रहने वाले। इस प्रकार से यह स्पष्ट होता है कि जो लोग रोज़ा रखने के लिए सिर्फ भूखे और प्यासे रहने  को ही पर्याप्त समझते हैं वह इस ईश्वरीय दावत के आध्यात्मिक लाभाों से वंचित रह जाते हैं।

 रोज़े के अधिक ऊंचे चरण में जो विशेष रोज़ा होता है , उसमें रोज़ा रखने वाला केवल खाने पीने से ही नहीं बचता बल्कि वह अपने सोच में भी पवित्रता लाता है और पाप के बारे में सोचता भी नहीं ताकि इस प्रकार से वह पवित्र मन व ह्रदय के साथ ईश्वरीय आथित्य का आघ्यात्मिक लाभ उठाए। रोज़ा रखने वाले की सब से पवित्र भावना यह होती है कि वह रोज़ा स्वर्ग की लालच या नर्क के भय से नहीं रखता बल्कि रोज़ा इस लिए रखता है क्योंकि उसका आदेश ईश्वर ने दिया है और वह ईश्वर को इस योग्य समझता है जिसके हर आदेश का पालन किया जाना चाहिए और इस प्रकार की भावना के साथ रोज़ा रखने वाले के मन में बस एक ही चाहत होती है कि वह इस प्रकार से ईश्वरीय आदेशों का पालन करके , उसकी निकटता का असीम आनंद प्राप्त कर ले। इस प्रकार का रोज़ा ईश्वर के वही दास रखते हैं जिन्होंने लंबे समय तक स्वंय को पवित्र बनाने के लिए परिश्रम किया हो ऐसे लोग जब इस भावना के साथ रोज़ा रख कर ईश्वर को पुकारते हैं तो ईश्वर तत्काल उनकी पुकार का उत्तर देता है। पैगम्बरे इस्लाम के बारे में कहा जाता है कि जब रमज़ान का महीना आ जाता तो पैगम्बरे इस्लाम के गालों का रंग बदल जाता, वह अधिक नमाज़ पढ़ने लगते और अल्लाह से दुआ करते समय बहुत ज़्यादा गिड़गिड़ाने लगते थे।

वास्तविक रोज़ादार रोज़े से प्राप्त होने वाली पवित्रता , सही बोध व समझ के साथ अपने शरीर और अपनी आत्मा को उन सभी कामों और चीज़ों से दूर रखता है जिनसे ईश्वर ने उसे रोका है यहां तक  कि पापों के बारे में सोचने से भी बचता है। इस प्रकार की सतर्कता की वजह से मनुष्य की आत्मा , दर्पण की भांति चमकने लगती है और मनुष्य के भीतर बहुत बड़ा परिवर्तन आ जाता है और यही रोज़े का उच्च उद्देश्य है। जो लोग साधारण रोज़ा रखने हैं उनमें और विशेष प्रकार का रोज़ा रखने वालों में अंतर , उन दो तैराकों की भांति होता है जिनमें से एक केवल पानी के ऊपर तैरता हो और केवल समद्र की लहरों को ही देख पाता हो और दूसरा वह हो जो समुद्र की तह में उतर कर तैरता हो और जल के नीचे मौजूद विशाल जगत को भी अपनी आंखों से देखता हो।

शनिवार, 16 मार्च 2024 16:35

बंदगी की बहार- 5

रमज़ान के महीने ने अपनी अपार विभूतियों और असीम ईश्वरीय क्षमा व दया के साथ हमें अपना अतिथि बनाया है।

इस पवित्र महीने की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व उनके परिजनों ने अनेक हदीसें बयान की हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपनी एक दुआ में रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों के बारे में कहते हैं। प्रभुवर! हमें इस महीने की विशेषताओं को समझने और इसका सत्कार करने का सामर्थ्य प्रदान कर।

रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों को समझने का अर्थ इस महीने की वास्तविकता को समझना है। जो भी इस महीने के गुणों को सही ढंग से समझ लेगा और इस महीने की महानता को पहचान जाएगा निश्चित रूप से वह अपना समय इसमें निष्ठापूर्ण ढंग से उपासना में व्यतीत करेगा। रमज़ान के महीने की एक विशेषता, इसका आध्यात्मिक स्थान और ईश्वर के निकट इसकी विशेष स्थिति है। अनन्य ईश्वर ने इस महीने को एक पवित्र, शीतल व उबलते हुए पानी के सोते की तरह रखा है ताकि उसके बंदे एक महीने के दौरान अपनी आत्मा को उसमें धोएं, अपने अस्तित्व से पापों को दूर करें और ईश्वरीय प्रकाश की ओर आगे बढ़ें। यह महीना, पवित्र होने और आध्यात्मिक छलांग लगाने का है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं कि अगर कोई बंदा रमज़ान के महीने के महत्व को समझ जाता तो यही कामना करता कि पूरा साल, ईश्वर के आतिथ्य का महीना रहे।

रमज़ान के पवित्र महीने की एक अन्य विशेषता इसमें क़ुरआने मजीद व अन्य बड़ी आसमानी किताबों का भेजा जाना है। क़ुरआने मजीद, तौरैत, इन्जील, ज़बूर और हज़रत इब्राहीम व हज़रत मूसा की किताबें इसी पवित्र महीने में भेजी गई हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं। पूरा क़ुरआन रमज़ान के महीने में शबे क़द्र में एक ही बार में पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ अर्थात भेजा गया। फिर वह बीस साल में क्रमबद्ध ढंग से उन पर नाज़िल हुआ। हज़रत इब्राहीम की किताब, रमज़ान महीने की पहली रात में, तौरैत, रमज़ान के छठे दिन, इंजील, रमज़ान के तेरहवें दिन और ज़बूर रमज़ान की 18वीं तारीख़ को नाज़िल हुई है।

 रमज़ान महीने की विशेषताएं और उसके गुण असीम हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की हदीस है कि रमज़ान के महीने में की गईं भलाइयां स्वीकृत होती हैं और बुराइयां क्षमा की जाती हैं। जिसने रमज़ान के महीने में क़ुरआने मजीद की एक आयत की तिलावत की वह उस व्यक्ति की तरह है जिसने अन्य महीनों में पूरे क़ुरआन की तिलावत की हो। रमज़ान का महीना, विभूति, दया, क्षमा, तौबा व ईश्वर की ओर लौटने का महीना है। अगर किसी को रमज़ान के महीने में क्षमा न किया गया तो फिर किस महीने में क्षमा किया जाएगा? ईश्वर से प्रार्थना करो कि वह इस महीने में तुम्हारे रोज़ों को स्वीकार करे और इसे तुम्हारी आयु का अंतिम वर्ष क़रार न दे, तुम्हें उसके आज्ञापालन का सामर्थ्य प्रदान करे और उसकी अवज्ञा से तुम्हें दूर रखे कि निश्चित रूप से प्रार्थना के लिए ईश्वर से बेहतर कोई नहीं है।

रमज़ान महीने की एक अन्य अहम विशेषता यह है कि ईश्वर इस विभूतियों भरे महीने में, ईमान वालों पर शैतानों को वर्चस्व को रोक देता है और उन्हें बेड़ियों में जकड़ देता है। यही कारण है कि इस महीने में मनुष्य की आत्मा अधिक शांत रहती है और वह इस स्वर्णिम अवसर को अपनी आत्मा के प्रशिक्षण और अध्यात्म तक पहुंच के लिए प्रयोग कर सकता है। दयावान ईश्वर ने आत्मिक व आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक ईमान वालों की पहुंच के लिए रमज़ान के पवित्र महीने और रोज़ों में ख़ास विशेषताएं रखी हैं। उसने न खाने और न पीने जैसी सीमितताओं के मुक़ाबले में अपने बंदों के लिए अत्यंत मूल्यवान पारितोषिक दृष्टिगत रखे हैं जिन्हें बयान करना संभव नहीं है।

इस ईश्वरीय आतिथ्य में न केवल यह कि उपासनाओं का पूण्य कई गुना अधिक मिलता है बल्कि इस महीने में ईमान वालों का सोना और सांस लेना भी उपासना और ईश्वरीय गुणगान समझा जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का कथन है कि इस महीने में तुम्हारी सांसें ईश्वर का गुणगान और तुम्हारी नींद ईश्वर की उपासना है। ईश्वर की यह विशेष व बेजोड़ कृपादृष्टि साल के किसी भी अन्य महीने या दिन में दिखाई नहीं देती।

इस पवित्र महीने में रोज़ा रखने का बहुत अधिक पुण्य और विभूतियां हैं। रोज़ा रखने से मनुष्य की आत्मा कोमल होती है, उसका संकल्प मज़बूत होता है और उसकी आंतरिक इच्छाएं नियंत्रित होती हैं। अगर इंसान अपनी वासना और आंतरिक इच्छाओं को नियंत्रित कर ले और उनकी लगाम अपने हाथ में ले ले तो फिर वह आध्यात्मिक पहलू से अपना प्रशिक्षण कर सकता है और वांछित पवित्रता व परिपूर्णता तक पहुंच सकता है। अगर इंसान अपनी प्रगति की मार्ग की बाधाओं को एक एक करके हटाना और अपने आपको शारीरिक वासनाओं में व्यस्त नहीं रखना चाहता तो रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखना उसके लिए सबसे अच्छा अवसर है। क़ुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 183 में कहा गया हैः हे ईमान वालो! तुम पर रोज़े उसी तरह अनिवार्य किए गए जिस प्रकार तुमसे पहले वालों पर अनिवार्य किए गए थे कि शायद तुममें ईश्वर का भय पैदा हो जाए।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से रमज़ान के महीने में रोज़े की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहाः लोगों पर रोज़ा इस लिए अनिवार्य किया गया ताकि वे भूख और प्यास की पीड़ा और तकलीफ़ को समझ सकें और फिर प्रलय की भूख, प्यास और अभाव की पीड़ाओं को समझ सकें जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि तुम रोज़े में अपनी भूख और प्यास के माध्यम से प्रलय में अपनी भूख और प्यास को याद करो। यह याद मनुष्य को प्रलय के लिए तैयारी करने पर प्रेरित करती है और वह ईश्वर की प्रसन्नता के लिए अधिक कोशिश करता है। यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने रोज़ा रखने वालों को यह मूल्यवान शुभ सूचना दी है कि रमज़ान के पवित्र महीने का आरंभ, दया है, उसका मध्यम भाग, क्षमा है और उसका अंत नरक की आग से मुक्ति है।

रमज़ान का महीना बड़ी तेज़ी से गुज़रता है और हम उन राहगीरों की तरह हैं जिन्हें इस मार्ग पर बिना निश्चेतना के, सबसे अच्छे कर्मों और सबसे अच्छे व्यवहार के साथ आगे बढ़ना है। चूंकि इस्लाम में मनुष्य का सबसे बड़ा दायित्व आत्म निर्माण और अपने आपको बुराइयों से पवित्र करना है इस लिए रमज़ान का महीना, आत्म निर्माण, नैतिकता व मानवता तक पहुंचने का सबसे अच्छा अवसर है। आत्म निर्माण के लिए जिन बातों की सिफ़ारिश की गई है उनमें से एक अहम बात, अधिक बोलने से बचना है। मौन व कम बात करना ऐसा ख़ज़ाना है जो मनुष्य के मन में ईश्वर की पहचान के दरवाज़े खोल देता है। रमज़ान के महीने में, जो ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है, यह सिफ़ारिश और बढ़ जाती है कि कहीं रोज़ेदार व्यक्ति दूसरों की बुराई करने, उन पर आरोप लगाने और झूठ बोलने जैसे पापों में न ग्रस्त हो जाए।

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम एक गली से गुज़र रहे थे कि उन्होंने एक महिला की आवाज़ सुनी जो अपनी दासी को गालियां दे रही थी। महिला ने सुन्नती रोज़ा भी रखा हुआ था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने आदेश दिया कि कुछ भोजन लाया जाए। फिर आपने उस महिला से कहा कि इसे खा लो। उसने कहा कि हे ईश्वर के पैग़म्बर! मैं रोज़े से हूं। उन्होंने कहा कि तू किस प्रकार रोज़े से है कि अपनी दासी को गालियां दे रही है? इसके बाद आपने फ़रमाया कि रोज़ा केवल न खाना और न पीना नहीं है। इसके बाद आपने जो वाक्य कहा वह चिंतन का विषय है। उन्होंने कहाः रोज़ेदार कितने कम हैं और भूखे कितने ज़्यादा हैं।

धर्म व शिष्टाचार के नेताओं ने कम बात करने और मौन के बारे में बहुत सी सिफ़ारिशें की हैं। लुक़मान हकीम ने अपने बेटे से कहा हैः हे मेरे पुत्र! जब भी तुम यह सोचो कि बात करने का मूल्य चांदी है तो यह जान लो कि चुप रहने का मूल्य सोना है। कम बोलने और मौन के कुछ लाभ हैं जिन पर लोग कम ही ध्यान देते हैं और रमज़ान का महीना इस बात का अच्छा अवसर है कि हम उन पर विशेष ध्यान दें। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा है कि बुद्धि, ज्ञान व विनम्रता के चिन्हों में से एक मौन है।

निश्चित रूप से मौन, तत्वदर्शिता के दरवाज़ों में से एक है, मौन, प्रेम का कारण बनता है और हर अच्छे काम का मार्गदर्शक है। रोज़ेदार व्यक्ति, जिसकी आत्मा अधिक शांत होती है, कम बात करने और मौन का प्रयास कर सकता है और बात करने से पहले अधिक सोच-विचार कर सकता है। सोच-विचार एक बड़ी उपासना है जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि एक घंटे सोच विचार करना, सत्तर साल की उपासना से बेहतर है। 

 

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं

اَللّٰهُمَّ اجْعَلْنِی فِیهِ مِنَ الْمُسْتَغْفِرِینَ، وَاجْعَلْنِی فِیهِ مِنْ عِبادِكَ الصَّالِحِینَ الْقانِتِینَ وَاجْعَلْنِی فِیهِ مِنْ أَوْلِیائِكَ الْمُقَرَّبِینَ بِرَأْفَتِكَ یَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ

اے معبود! آج کے دن مجھے توبہ و استغفار کرنے  والوں میں سے قرار دے آج کے دن مجھے اپنے نیکوکار عبادت گزار بندوں میں سے قرار دے اور آج مجھے اپنے مقرب اولیاء میں سے قرار دے اپنی محبت سے اے سب سے زیادہ رحم کرنے والے۔

ऐ माबूद! आज के दिन मुझे तौबा व इस्तेग़फार करने वालों में से क़रार दें। आज के दिन मुझे अपने नेकु़कार (अच्छा)इबादत गुज़ार बंदे में से करार दे और आज मुझे अपने मुकर्रब ओलिया में से करार दें, अपनी मोहब्बत से आए सबसे ज़्यादा रहम करने वाले,

 

इस्राईल के प्रधानमंत्री कार्यालय ने ग़ज़ा में युद्धविराम पर हमास के जवाब पर प्रारंभिक प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नेतन्याहू हमास की शर्तों को स्वीकार नहीं करते हैं।

 

फ़िलिस्तीनी समाचार एजेंसी समा के अनुसार, ग़ज़ा में संघर्ष विराम समझौते के संबंध में हमास द्वारा दिए गये गई प्रारंभिक प्रतिक्रिया पर ज़ायोनी प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी बयान में दावा किया गया है कि हमास ने जिन शर्तों की पेशकश की है वे अनुचित हैं और हम उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते। बयान में यह भी दावा किया गया कि संघर्ष विराम वार्ता को लेकर हमास का नया रुख भी उनकी आधारहीन मांगों पर आधारित