رضوی

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हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उद्घाटन की गई भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो लाइन ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में सार्वजनिक परिचालन शुरू किया।

इंजीनियरिंग का एक चमत्कार भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो ट्रेन में यात्रा करते समय लोगों को तालियाँ बजाते देखा गया। आज सुबह 7 बजे कोलकाता के ईस्ट-वेस्ट मेट्रो कॉरिडोर पर हावड़ा मैदान स्टेशन से एक ट्रेन ने अपनी यात्रा शुरू की। इसके साथ ही उसी समय एस्प्लेनेड स्टेशन से एक और ट्रेन रवाना हुई। कोलकाता के महानगरीय परिवहन नेटवर्क का हावड़ा मैदान-एस्प्लेनेड खंड हुगली नदी के नीचे स्थित है। सुरंग का नदी के नीचे का हिस्सा 520 मीटर लंबा है।

मेट्रो रेलवे कोलकाता ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, एक यात्री के हाथ में लगी तख्ती पर लिखा था कि भारत को गौरवान्वित करने के लिए मोदी जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।” एक अन्य यात्री ने कहा कि मैं भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो ट्रेन में यात्रा करने के लिए बहुत उत्साहित हूं। टिकट पाने में मुश्किल से 10 मिनट लगे।

 हुगली नदी के निचले हिस्से को चिह्नित करने के लिए पानी के नीचे मेट्रो की सुरंग को नीली LED रोशनी से सजाया गया है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 मार्च को कोलकाता में मेट्रो परिचालन का उद्घाटन किया था। उद्घाटन के बाद उन्होंने स्कूली छात्रों के साथ मेट्रो की सवारी भी की थी।

इंसीये ख़ज़अली कहती हैं कि पीड़ितों, अत्याचरग्रस्तों, महिलाओं के अधिकारों और उन सारे ही वर्गों का ईरान समर्थन करता है जो वर्तमान समय में अपने अधिकारों से वंचित हैं।

महिलाओं और परिवारों के मामले में राष्ट्रपति की सलाहकार कहती हैं कि ईरान की महिलाओं की प्रगति के लिए उचित परिस्थतियां उपलब्ध करवाई जा सकती हैं।

अमरीकी पत्रिका न्यूज़वीक को दिये अपने इंटरव्यू में इन्सीये ख़ज़अली ने कहा कि ईरान, पीड़ितों, अत्याचरग्रस्तों, महिलाओं के अधिकारों और उन सारे ही वर्गों का समर्थन करता है जो वर्तमान समय में अपने अधिकारों से वंचित हैं।  उन्होंने बताया कि ईरान में महिलाएं शिक्षा, प्रशिक्षण, तकनीक, विज्ञान, राजनीति और आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय हैं।

ख़ज़अली के अनुसार अमरीका में महिलाएं सामान्यतः अधिक लाभ उठाने वाली अर्थव्यवस्था का शिकार हो रही हैं।  राष्ट्रसंघ में महिलाओं के महत्व पर आधारित सम्मेलत में भाग लेने न्यूयार्क पहुंची इन्सीये ख़ज़अली ने कहा कि ईरान की इच्छा है कि वह देश के भीतर और बाहर हर स्थान पर महिलाओं का अधिक से अधिक समर्थन करता रहे।

उन्होंने कहा कि ईरान को इस बात पर आपत्ति है कि बिना किसी आधार के केवल शोर-शराबे के आधार पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के महिला आयोग से ईरान की सदस्यता को निलंबित कर दिया गया।  हालांकि ग़ज़्ज़ा में खुलकर महिलाओं की हत्या के आरोपी अवैध ज़ायोनी शासन की सदस्यता अब भी राष्ट्रसंघ के महिला आयोग में सुरक्षित है।

 

 

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाई हैं।

اَللّهُمَّ ارْزُقني فيہ الذِّهنَ وَالتَّنْبيہ وَباعِدْني فيہ مِنَ السَّفاهَۃ وَالتَّمْويہ وَاجْعَل لي نَصيباً مِن كُلِّ خَيْرٍ .تُنْزِلُ فيہ بِجودِكَ يا اَجوَدَ الأجْوَدينَ

अल्लाह हुम्मरज़ुक़्नी फ़ीहि अज़ ज़िह ना वत तनबीह, व बा एद नी फ़ीहि मिनस सफ़ाहति वत तमवीह, वज अल ली नसीबन मिन कुल्ले ख़ैरिन तुनज़िलु फ़ीहि बेजूदिका या अजवदल अजवदीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! आज के दिन मुझे होश व आगाही अता फ़रमा, मुझे हर तरह की नासमझी बे राह रवी से महफ़ूज़ रख, और मुझे हर भलाई में से हिस्सा दे जो आज तेरी अताओं से नाज़िल हो, ऐ सबसे ज़ियादा अता करने वाले...

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम

गुरुवार, 14 मार्च 2024 15:50

ईश्वरीय आतिथ्य- 3

रमज़ान के महीने को ईश्वर की मेज़बानी का महीना और उत्कृष्टता तक पहुंचने का मार्ग कहा जाता है।

पूरे इतिहास में ईश्वरीय दूतों ने लोगों को ईश्वर की ओर आमंत्रित किया है। ईश्वरीय दूत हज़रत नूह ने कहा था, हे ईश्वर, मैंने अपनी उम्मत को रात-दिन तुझ पर ईमान लाने की दावत दी। अंतिम ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) ने ईश्वर के आदेशानुसार लोगों से कहा, कह दो, यह मेरा मार्ग है, मैं समझदारी और जागरुकता से ईश्वर की ओर दावत देता हूं।

ईश्वर की ओर दावत की कुछ विशेषताएं हैं, जो उसे अन्य दावतों से अलग करती हैं। इस दावत की महत्वपूर्ण विशेषता, बुद्धिमत्ता और अच्छी बात है। क़ुराने मजीद में उल्लेख है, हे पैग़म्बर, लोगों को दृढ़ संकल्प, अच्छे एवं सुन्दर उपदेशों से अपने ईश्वर की ओर बुलाओ, और उनसे बहुत ही अच्छे अंदाज़ में वार्ता करो। निःसंदेह तुम्हारा पालनहार उन लोगों के बारे में अधिक जानता है जो उसके रास्ते से भटक जाते हैं या वे सही रास्ता अपना लेते हैं।

तीन साल तक गोपनीय रूप से लोगों का मार्गदर्शन करने के बाद, पैग़म्बरे इस्लाम (स) सफ़ा की पहाड़ी पर गए और पहली बार स्पष्ट रूप से लोगों को पुकार कर कहा, हे लोगो, कहो अल्लाह के अलावा और कोई ईश्वर नहीं है, ताकि तुम्हारा कल्याण हो जाए।

यह कल्याण या मोक्ष क्या है और किस तरह से प्राप्त किया जा सकता है? कल्याण का अर्थ है, भलाई और स्वास्थ्य के साथ लक्ष्य तक पहुंचना। जो व्यक्ति अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहता है, उसे चाहिए कि उसके लिए तैयारी करे और उस तक पहुंचने के लिए भूमि प्रशस्त करे। मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में उतार चढ़ाव आते हैं, कभी यह अस्थायी होते हैं और इंसान के लिए चुनौतियां उत्पन्न करते हैं। मोक्ष प्राप्ति का कारण, एक ज़ीने की भांति है, जिसकी हर सीढ़ी लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करती है।

मोक्ष का मार्ग पैग़म्बरे इस्लाम (स) और शुरूआत में इस्लाम स्वीकार करने वालों की दावत से जुड़ा हुआ है, जो मक्के के गली कूचों में गूंजी थी और उसने इंसान के विवेक को जगाया था। क़ुराने मजीद के सूरए मोमेनून में हम पढ़ते हैं, वास्तव में मोमेनीन सफल हो गए। इस आयत के आधार पर, इंसान जब ईश्वर और उसके वादों पर ईमान ले आते हैं, तो वे मोक्ष के मार्ग पर क़दम बढ़ाते हैं, हालांकि संभव है इस मार्ग में उन्हें गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़े।

क़ुराने करीम की अन्य आयतों में आत्मा की शुद्धि को भी मोक्ष प्राप्ति का एक कारण बताया गया है। सूरए शम्स में ईश्वर कहता है, जिस किसी ने भी अपनी आत्मा को शुद्ध किया, निश्चित रूप से वह सफल हो गया, और जिसने अपनी आत्मा को गुनाहों से दूषित किया वह नुक़सान में रहा।

नैतिकता और रहस्यवाद के अनुसार, आत्मा की शुद्धि का अर्थ है, अनैतिकता और बुराईयों से आत्मा का शुद्धिकरण करना। जिसके परिणाम स्वरूप, कल्याण और मोक्ष प्राप्त होता है। क़ुरान के मुताबिक़, शुरू में इंसान की आत्मा एक सफ़ेद तख़्ती की तरह होती है, जिसे गुणों से सुसज्जित भी किया जा सकता है और बुराईयों से प्रदूषित भी। इन दोनों स्थितियों के चुनाव में इंसान आज़ाद होता है। अगर कोई व्यक्ति ख़ुद को बुराईयों से पाक रखता है, मानवीय गुणों को प्राप्त करता है और ईश्वर तक पहुंचने के लिए प्रयास करता है तो वह सफल हो जाता है। दूसरे शब्दों में ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण और सही कार्य अंजाम देना, आत्मनिर्माण है, न कि सामाजिक गतिविधियों को बंद कर देना और एक कोने में बैठकर ईश्वर तक पहुंचने की आशा रखना।

आत्मशुद्धता और आत्मनिर्माण का परिणाम, ईश्वर की बंदगी है। बंदगी यानी ईश्वर के सामने पूर्ण रूप से नतमस्तक होना, इसका अर्थ व्यापक है जो इबादत से अधिक विस्तृत है। ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए किसी भी काम को अपनी इच्छा से छोड़ना या उसे अंजाम देना बंदगी का ही भाग है। अगर इंसानों को मोक्ष प्राप्ति और कल्याण प्राप्ति के लिए नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने का आदेश दिया गया है तो वह इसलिए कि इन कार्यों में बंदगी भी उन्हें अन्य इबादतों की भांति लक्ष्य की ओर मार्गदर्शित करती है। 

बंदगी, ईश्वर के ज़िक्र और उसके गुणगान के साथ होती है, यही ज़िक्र मोक्ष प्राप्ति का एक ज़रिया है। क़ुरआन के अनुसार, अल्लाह का अधिक ज़िक्र करो, शायद तुम्हें मोक्ष प्राप्त हो जाए। जो लोग ईश्वर का ज़िक्र करते हैं, वे जानते हैं कि ईश्वर के नामों से ज़बान और दिल को प्रकाशमय करने से ईश्वर के साथ संपर्क स्थापित होता है और ईश्वर की पहचान हासिल होती है। इंसान की आत्मा ईश्वर के गणगान से शुद्ध होती है और इससे पारदर्शिता प्राप्त होती है। ईश्वर अपने गुणगान को दिलों को प्रकाशमय करने का कारण मानता है।

निराशा और मायूसी, इंसान को अँधेरे में डुबो देती है, इस प्रकार से कि हज़रत अली (अ) अपने बड़े को पहली नसीहत करते हुए दिल को तरो-ताज़ा रखने पर बल देते हुए कहते हैं, मेरे प्यारे बेटे, मैं तुम्हें बुराईयों से दूर रहने, ईश्वर के आदेशों का पालन करने, दिल और आत्मा को तरो-ताज़ा रखने और ईश्वरीय रस्सी को मज़बूती से पकड़े रहनी की नसीहत करता हूं।

क़ुरआने मजीद की व्याख्या करते हुए अल्लामा तबातबायी कहते हैं, ईश्वर का ज़िक्र करने से दिलों को शांति प्राप्त होती है। इसलिए कि इंसान के जीवन का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति और कल्याण प्राप्ति के अलावा कुछ नहीं है और उसे किसी अचानक आने वाली आफ़त का कोई भय नहीं होता है। एकमात्र वह हस्ती कि जिसके हाथ में उसका कल्याण और अभिशाप है, वह वही ईश्वर है। समस्त मामले उसकी ही ओर पलटकर जाते हैं, वह वही है जो पालनहार है, जो चाहता है वह करता है और मोमिनों का स्वामी और उन्हें शरण देने वाला है। इसलिए उसका ज़िक्र और गुणगान ऐसे व्यक्ति के लिए जो मुसीबतों में घिरा हुआ है और किसी मज़बूत सहारे की तलाश में है कि जो उसका कल्याण कर सके, वह उसकी ख़ुशी और शांति का कारण है।

रमज़ान का महीना दुआओं के क़बूल होने का महीना और शरीर एवं आत्मा के शुद्धिकरण का महीना है। क़ुराने मजीद के अनुसार, ईश्वरीय अनुकंपाओं के ज़िक्र का एक फल, कल्याण एवं मोक्ष प्राप्ति है। सूरए आराफ़ की आयत 69 में उल्लेख है, ईश्वर की अनुकंपाओं को याद करो, क्योंकि तुम्हें कल्याण प्राप्त होगा।

ध्यान योग्य है कि ईश्वर इंसान को साइप्रेस पेड़ की भांति सिर बुलन्द होने की दावत देता है, इसलिए कि साइप्रेस एकमात्र ऐसा पेड़ है कि जो सीधा आसमान की ओर बढ़ता है, जबकि अन्य पेड़ों की डालियां चारो ओर फैलती हैं।

रमज़ान के महीने में ईश्वर का ज़िक्र और गुणगान हो रहा है, यह आत्मनिर्माण और बंदगी का महीना है, इस महीने में रोज़ेदार ईश्वर की मेज़बानी और प्रेम का लुत्फ़ उठाते हैं। इस महीने में उन लोगों को इस मूल्यवान दावत का फल मिलता है। इसका मूल्यवान फल, स्वयं से संपर्क, ईश्वर से संपर्क और उसके बंदों से संपर्क करना है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मुताबिक़, यह महानता, गौरव और सम्मान का महीना है और इसे अन्य महीनों पर प्राथमिकता दी गई है। बेहतर होगा प्रेम और शुद्ध नीयत के साथ इससे लाभान्वित हों और उसके सुन्दर दिनों और आध्यात्मिक सुबहों को ईश्वर से बातचीत एवं प्रेमपूर्वक दुआओं के लिए लाभ उठाएं और कल्याण प्राप्त करें।                           

 

 

गुरुवार, 14 मार्च 2024 15:48

बंदगी की बहार- 3

पवित्र महीना रमज़ान, बंदों की डायरी के पेज की भांति है जो साल में एक बार बार खोली जाती है।

इस डायरी में प्यास की कहानी लिखी होती और इसमें महान ईश्वर से मांगी गयी हर हर दुआ और उपासना के हर हर क्षण लिखे हुए हैं। रमज़ान का महीना, परिज्ञान के सांचे में इंसान के व्यस्क होने का महीना है। परिज्ञान, रमज़ान की सीमा में प्रविष्ट होने की चाभी का नाम है।

रमज़ान का सूर्य अपनी बरकतों के साथ उदय हो रहा है और जैसे ही यह सूरज दुनिया पर अपनी पहली किरण बिखरता है तभी लाखों हाथ आकाश की ओर उठ जाते हैं और कहते हैं कि हे मेरे पालनकार मैंने तुझसे सृष्टि के आरंभ में जो वादा किया था उसे अपने पापों की आग से तोड़ दिया, अब जब कि आसमान के द्वार खुले हुए हैं, रोज़े और नत्मस्तक होने के स्वाद से मेरे अंगों को स्वादिष्ट कर दे, मेरी आंख तेरे अलावा किसी को न देखे, मेरे कान तेरे अतिरिक्त किसी का न सुनें, मैं एक बार फिर तेरे दस्तरख़ान पर आ गया, क्योंकि तुझने ही मुझे आमंत्रित किया है।

रमज़ान का महीना चल रहा है, हर ओर से दुआओं की आवाज़े सुनाई दे रही हैं, हे मेरे पालनहार मुझे क्षमा कर दे और मेरे पापों को माफ़ कर दे, दुआएं, प्रेम और संदेशों का आदान प्रदान करने वाली होती हैं। दुआ में ही व्यक्ति अपने पालनहार के समक्ष, गिड़गिड़ाकर अपने दिल को खोलकर रख देता है, अपने दिल के भीतर मौजूद सारी चीज़ों को सामने रख देता है, अपने पापों की क्षमायाचना करता है, अपने लिए दुआएं करता है, ख़ुद को पापी समझता है और ईश्वर से अपने पिछड़ने का दर्द बयान करता है, ईश्वर से अपना शिकवा और शिकायत करता है, धोखा दिए जाने, मक्कारी में फंसने और बेवफ़ाइयों की कहानियां सुनाता है, इस प्रकार से वह अपने दिल में छिपे दर्दों को शांत करता है। सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 60 में ईश्वर कहता है कि तुम्हारे पालनहार ने तुमसे कहा है कि दुआ करो मैं तुम्हारी दुआओं को स्वीकार करूंगा।

ईश्वर से दुआ है कि इस पवित्र महीने में हमारी उपासनाओं और दुआओं को स्वीकार करे और हमें भले काम करने का सामर्थ्य प्रदान करे। मनुष्य अपने जीवन में हमेशा से दुआओं से लगा रहा है और इतिहास इस बात का साक्षी है कि उसने दुआओं के ज़रिए ही अपने मन की बात ईश्वर के सामने रखी है।

यह बात केवल मुसलमानों से विशेष नहीं है, इंसान दुआ द्वारा अपने अक्षम अस्तित्व को कभी समाप्त न होने वाले गंतव्य से जोड़ देता है और इस प्रकार वह हर प्रकार की समस्याओं के मुक़ाबले में डट जाता है और इस आत्मिक व अध्यात्मिक शक्ति द्वारा अपनी समस्त समस्याओं और आवश्यकताओं को सर्वसमर्थ ईश्वर के दरबार में तुच्छ समझता है और सिर्फ़ उससे ही सहायता की गुहार लगाता है और इस प्रकार से वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में अधिक मज़बूत हो जाता है।

यद्यपि बंदे की ओर से आवश्यकता का आभास और उसकी आवश्यकताओं को दूर करने की शक्ति ईश्वर में पायी जाती है किन्तु दोनों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए दुआ और दिल की बात करने का क्रम और अधिक मज़बूत होता है। इस विषय की मनोचिकित्सक और विद्वान भी पुष्टि करते हैं। यही काफ़ी है कि मनुष्य अपनी आवश्यकता और ग़रीबी को पहचाने और उसे यह विश्वास होना चाहिए कि उसकी दुआओं को सुनने वाला कोई है और अपनी शक्ति और दया तथा कृपा से उसकी दुआओं को सुनेगा। पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रा की आयत संख्या 186 में कहा गया है कि और हे पैग़म्बर, यदि मेरे बंदे तुमसे मेरे बारे में सवाल करें तो मैं उनसे निकट हूं, पुकारने वाले की आवाज़ सुनता हूं जब भी पुकारता है, इसीलिए मुझसे मांगे और मुझपर ही ईमान व विश्वास रखें कि शायद इस प्रकार सही मार्ग पर आ जाएं।

अगर रोज़ेदार इस महीने में अपने भीतर किसी परिवर्तन का आभास न करे तो उसे यह समझ लेना चाहिए कि यह स्वयं उसकी ग़लती है। इसलिए कि रमज़ान ईश्वरीय अनुकंपाओं और रहमत का महीना है और इस महीने में आसमान के द्वार ज़मीन वालों के लिए खुल जाते हैं। अतः वह कितना आलसी बंदा है जो ईश्वरीय बरकतों और रहमतों में से कुछ भी हासिल नहीं कर सका। अगर यह सही है तो इंसान को ईश्वर से दुआ करना चाहिए कि उसके पापों को क्षमा कर दे और उसे अपनी असीम दया कर पात्र बनाए।

रमज़ान मुबारक व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता में सुधार का बेहतरीन अवसर है। अगर इंसान इस महीने में अपने व्यवहार पर नज़र डाले और नैतिकता को अपने मन में बसा ले तो इस महीने के बाद भी वह इसे जारी रख सकता है। इन नैतिकताओं में से एक अपने मातहतों के साथ अच्छा बर्ताव करना है। इस्लामी शिक्षाओं में अपने अधीन लोगों के साथ कठोरतापूर्ण व्यवहार न करने को ईमान वालों का गुण और अपने अधीन लोगों पर अत्याचार करने को नादान लोगों की विशेषता क़रार दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस संदर्भ में फ़रमाया है, इस महीने में जो कोई भी अधीन लोगों के साथ विनम्रतापूर्ण व्यवहार करेगा, ईश्वर उसके साथ विनम्रता से पेश आएगा।

प्रसिद्ध शायर और विचारक अल्लामा इक़बाल लिखते हैं कि दुआ चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, ख़ामोशी में जवाब हासिल करने के लिए मनुष्य की भीतरी उत्सुकता का चिन्ह है। ऐसे लोग कम नहीं हैं जो ईश्वर पर विश्वास नहीं रखते हैं किन्तु भीतर दुखों और दर्दों को शांत करने के लिए अपने दिल की आवाज़ को दुआ की सांचे में पेश करते हैं। इन हालात में यद्यपि इस प्रकार के पुकारने को दुआ तो नहीं कहा जा सकता किन्तु यह मनुष्य के लिए दुआ की आवश्यता को ज़ाहिर करता है।

इस आधार पर यदि हम दुआ की समग्र और व्यापक परिभाषा पेश करना चाहें तो यह कहना पड़ेगा कि दुआ, आवश्यकताओं को पूरा करने और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ईश्वर के लिए प्रेम ज़ाहिर करना है। फ़्रांसीसी डाक्टर कार्ल का कहना है कि दुआ अपने उच्च चरण में, अपनी मांग की सतह से ऊपर जाती है, मनुष्य अपने पालनहार के समक्ष यह दिखाता है कि वह उसे पसंद करता है, उसकी अनुकंपाओं पर आभार व्यक्त करता है और इस बात के लिए तैयार है अपनी मांग को चाहे जो भी हो, अंजाम दे।

ईश्वरीय महापुरुषों की नज़र में दुआ, उपासना के अतिरिक्त कुछ और नहीं है यहां तक कि दुआ में अधिक ध्यान दिया जाता है, इस बात के दृष्टिगत इसीलिए कुछ उपासनाओं पर इसको प्राथमिकता प्राप्त है। पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से एक रिवायत है कि दुआ उपासना की बुद्धि की जगह है।

ईश्वर की उपासना और उसकी इबादत का स्रोत, इंसान की प्रवृत्ति में पाया जाता है। इस प्रकार से दुनिया के समस्त मनुष्यों में उपासना और बंदगी की भूमिका पायी जाती है किन्तु कुछ लोग उसके कारकों को सक्रिय बना देते हैं और सर्वसमर्थ व अनन्य ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं और कुछ लोग इसकी परवाह ही नहीं करते। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ज्ञान और दूरदर्शिता को इबादत और उपासना की मुख्य भूमिका क़रार देते और कहते हैं कि ज्ञान का फल, उपासना है।

उपासना, त्याग और बलिदान का पाठ सिखाती है, यह हालत उस समय मनुष्य में पैदा होती है जब वह महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की महानता, वैभता और उसकी दयालुता को समझ जाता है। इस आधार पर ईश्वर की उपासना और बंदगी, ईश्वर की सही पहचान से निकलती है। इस संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम को संबोधित करते हुए कहते हैं कि ज्ञान के साथ दो रकअत नमाज़, अज्ञानता के साथ सत्तर रकअत नमाज़ से बेहतर है।

मार्गदर्शन और परिपूर्णता के मार्ग में इंसान के सामने आने वाली बुराइयों में से एक ईश्वर से आवश्यकता मुक्ति का आभास होना है। आवश्यकता मुक्ति की भावना मनुष्य और ईश्वर के संबंधों को विच्छेद कर देती है और इसके परिणाम में ईश्वरीय मार्गदर्शन से लाभ उठाने का अवसर हाथ से निकल जाता है। यही कारण है कि जो व्यक्ति स्वयं को आवश्यकता मुक्त समझने लगता है वह बाग़ी और विद्रोही हो जाता है। पवित्र क़ुरआन की आयत में आया है कि हे लोगो तुम सभी को ईश्वर की आवश्यकता है और वह आवश्यकता मुक्त है।

पवित्र रमज़ान की सुबह सभी विशेषताओं और गुणों को एक साथ एकत्रित कर देती हैं क्योंकि रात के अंतिम समय में उपासना का महत्व ही अलग है और वह रमज़ान में हो तो अलग ही है। इसीलिए पवित्र रमज़ान की रात के अंतिम समय में इबादत का सवाब ही अलग है और इस समय दुआएं स्वीकार होती हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से रिवायत है कि रात के तीसरे पहर से सुबह होने तक ईश्वर पुकारता है क्या कोई मांगने वाला है जिसकी मांग मैं पूरी करूं, क्या कोई पापों की क्षमा मांगने वाला है जिसके पापों को मैं माफ़ कर दूं? क्या कोई आशा रखे हुए है जिसकी आशा मैं पूरी कर दूं? क्या किसी के दिल में कोई कामना है कि उसकी कामना मैं पूरी कर दूं?

ईरानी अधिकारी ने कहा है कि राजनीतिक से प्रेरित काम, किसी भी विषय की वास्तविकता को बदल नहीं सकता।

काज़िम ग़रीबाबादी ने कहा है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, राष्ट्रसंघ की तथाकथित तथ्यपरक टीम को मान्यता नहीं देता है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में ईरान के मानवाधिकार आयोग के प्रमुख ने कहा है कि उनका देश उस तथाकथित तथ्यपरक समिति को मान्यता नहीं देता है जिसका गठन राजनीतिक उद्देश्यों से किया गया है।

ग़रीबाबादी के अनुसार संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद ने सन 2023 में पश्चिमी देशों की अवैध मांगों का अनुसरण करते हुए मानवाधिकारों के हनन की भेंट चढे लोगों को अधिक दुख में डाल दिया।  अब वह हस्तक्षेप के लिए राजनीतिक हथकण्डे में बदल गया है।

राष्ट्रसंघ मे ईरान के मानवाधिकार आयोग के प्रमुख ने कहा कि तेहरान इस बात की पुष्टि करेगा कि राजनीतिक से प्रेरित काम, किसी विषय की वास्तविकता को बदल नहीं पाएंगे।

इससे पहले राष्ट्रसंघ की तथ्यपरक समिति के संदर्भ में ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने कहा था कि ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के बजाए इस समिति को पश्चिमी देशों में किये जा रहे मानवाधिकारों के हनन की जांच करनी चाहिए।

ज्ञात रहे कि ईरान में पिछले वर्ष होने वाले उपद्रव के बारे में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए राष्ट्रसंघ की तथाकथित तथ्यपरक टीम ने ईरान में मानवाधिकारों के हनन का दावा किया है।   

राष्ट्रपति रईसी ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अधिक विकास पर बल दिया है।

सैयद इब्राहीम रईसी कहते हैं कि शत्रु, इस्लामी गणतंत्र ईरान को विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में पिछड़ा रखना चाहते हैं।

बुधवार को ईरान के मेधावियों और बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रईसी ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में विकास मार्ग पर आगे बढ़ते रहने की बात कही।

उन्होंने कहा कि समस्याओं का मुक़ाबला करते समय आसानी से मैदान छोड़कर भागना नहीं चाहिए बल्कि अपने संघर्ष को जारी रखना चाहिए।  उनका कहना था कि कड़े संघर्ष के साथ अपने समाज में मेधावियों और बुद्धिजीवियों को आशा का दीप जलाना चाहिए तथा निराशा को शत्रुओं के लिए रखना चाहिए।

ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि विज्ञान और तकनीक के मार्ग पर हमको पूरी दृढ़ता के साथ आगे की ओर बढते रहना चाहिए।  उनका कहना था कि आज दुनिया में इरादों की लड़ाई है। दुश्मन नहीं चाहते हैं कि ईरान, विकास और प्रगति करे, लेकिन ईरानी लोग मज़बूत इरादों के साथ अपने मार्ग पर डटे हुए हैं।

याद रहे कि आज की बैठक में उन मेधावियों और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया जो इस्लामी गणतंत्र ईरान में वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टि से विकास मार्ग को आगे बढ़ाने के लिए हालिया वर्षों में पश्चिमी देशों से ईरान वापस आए हैं।

ग़ज़ा युद्ध में फ़िलिस्तीनियों के समर्थन और लेबनान में इस्राईली हमलों के जवाब में हिज़्बुल्लाह ने लेबनानी सीमा के पास कई इस्राईली लक्ष्यों को निशाना बनाया है।

हिज़्बुल्लाह ने इस्राईली लक्ष्यों पर किए गए मिसाइल हमलों के वीडियो भी जारी किए हैं, जिनमें देखा जा सकता है कि मिसाइल, इस्राईली सैन्य ठिकानों को नष्ट कर रहे हैं। 

बुधवार को हिज़्बुल्लाह के तोपख़ाने ने हनीता के पूर्व में दुश्मन ज़ायोनी सैनिकों की एक बैठक को निशाना बनाया। हमले के बाद इस साइट से धुएं के बादल उठते दिखाई दिए।

बुधवार को ही शाम में हिज़्बुल्लाह के लड़ाकों ने अवैध क़ब्ज़े वाले लेबनानी शेबा फ़ार्म्स में इस्राईली सेना की बैरक को फ़लक मिसाइल से निशाना बनाया, जो सीधा लक्ष्य पर जाकर लगा।

बुधवार को ही उसके बाद, अवैध क़ब्ज़े वाली कफ़रशुबा की पहाड़ियों में स्थित रुवैसत अल-आलम साइट को मिसाइलों से निशाना बनाया गया।

हिजबुल्लाह से संबंधित मीडिया ने इन हमलों के तीन वीडियो फ़ुटेज जारी किए हैं, जिनमें इस्लामी प्रतिरोध के हमलों में इस्राईल की सैन्य साइटों को नष्ट होते हुए देखा जा सकता है।

लेबनान के दक्षिणी शहर तायर में एक कार पर इस्राईली ड्रोन हमले में हमास के नेता हादी अली मोहम्मद मुस्तफ़ा शहीद हो गए हैं।

लेबनान में हमास की शाख़ा का कहना है कि इस्राईली ड्रोन हमले में उसके एक सदस्य और एक अन्य व्यक्ति की मौत हो गई है।

लेबनानी मीडिया का कहना है कि हमले के दौरान कार के निकट से गुज़रने वाले एक मोटरसाइकल सवार व्यक्ति की भी मौत हुई है।

ज़ायोन सेना ने इस ड्रोन हमले की ज़िम्मेदारी स्वीकार कर ली है।

टेलीग्राम पर एक बयान में ज़ायोनी सेना ने हमास के सदस्य मुस्तफ़ा को एक महत्वपूर्ण लक्ष्य बताया है, जिन्होंने दुनिया भर में इस्राईल के हितों को निशाना बनाया था।

ग़ौरतलब है कि 7 अक्तूबर को क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में हमास के अल-अक़सा स्टॉर्म ऑप्रेश के बाद इस्राईल ने जहां ग़ज़ा के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया वहीं, लेबनान में प्रतिरोधी संगठनों पर भी हमले तेज़ कर दिए।

हालांकि हिज़्बुल्लाह समेत लेबनान में मौजूद प्रतिरोधी गुटों ने इस्राईली हमलों का मुंह तोड़ जवाब दिया है और वे क़रीब हर दिन इस्राईली लक्ष्यों को निशाना बना रहे हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क़ानून सहित किसानों की मांगों को लेकर गुरुवार को हज़ारों की संख्या में किसान दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटे हैं।

किसानों ने अपनी मांगों को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने किए यह क़दम उठाया है।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, किसान मज़दूर महांपचायत नाम के इस सम्मेलन में किसानों ने कृषि से संबंधित केंद्र की बीजेपी सरकार की नीतियों का विरोध करते हुए सरकार के विरोध में नारे लगाए हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा, 37 कृषि संघों का एक समूह है, जिसने 22 फ़रवरी को चंडीगढ़ में एक बैठक में दिल्ली में महापंचायत का आह्वान किया था।

तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में साल 2020-21 में दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के हुए प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का कहना है कि किसान मज़दूर महापंचायत में केंद्र सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ लड़ाई तेज़ करने का प्रस्ताव पारित किया जाएगा।

नई ​दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास मौजूद रामलीला मैदान में यह रैली आयोजित करने के लिए पुलिस ने इस शर्त पर मंज़ूरी दी है कि इसमें 5,000 से अधिक लोग नहीं जुटेंगे, आयोजन स्थल तक कोई ट्रक या ट्रॉली नहीं ले जाई जाएगी और न ही मैदान में कोई मार्च किया जा सकेगा।