رضوی

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शनिवार रात गुजरात विश्वविद्यालय के एक हॉस्टल में नमाज़ पढ़ने वाले कुछ विदेशी छात्रों पर दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के कुछ सदस्यों ने हमला बोल दिया और उनके साथ मारपीट की।

यूनिवर्सिटी हॉस्टल के ए ब्लॉक में अफ़ग़ानिस्तान, उज़्बेकिस्तान, अफ्रीक़ा और दूसरे देशों के छात्रों पर क़रीब 25 लोगों ने पत्थरों और लाठियों से हमला कर दिया। हमले में कम से कम 2 छात्र घायल हो गए हैं। घाटल छात्रों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया है।

गुजरात कांग्रेस के नेता ग़यासुदीन शेख़ ने इस घटना की निंदा करते हुए राज्य में बीजेपी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं।

घटनास्थल पर हर तरफ़ पत्थर बिखरे पड़े थे और वहां आसपास खड़ी छात्रों की गाड़ियों की भी तोड़ दिया गया था। इस्लामोफ़ोबिया की इस घटना से हॉस्टल के छात्र भी डरे हुए और उदास थे।

एक विदेशी छात्र का कहना था कि हम जैसे बाहर से आने वाले छात्रों के लिए अब यहां रहना बड़ी चुनौती है। यह अंतरराष्ट्रीय छात्रों का छात्रावास है। इसकी जांच होनी चाहिए कि यह लोग यहां झुंड बनाकर कैसे घुस जाते हैं। ऐसे लोग अक्सर यहां आते हैं और ज़बरदस्ती जय श्री राम का नारा लगाने के लिए कहते हैं या फिर जान से मार डालने की धमकी देते हैं। ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। दूसरे देशों के छात्रों के लिए यहां बहुत जोखिम है।

इस पूरे मामले में अहमदाबाद पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की है। हालांकि, अभी तक किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है।

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुजरात यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के साथ नमाज़ को लेकर हुई मारपीट की घटना पर कहा है कि अहमदाबाद की गुजरात यूनिवर्सिटी में हिंसा की घटना हुई है। राज्य सरकार अपराधियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्यवाही कर रही है।

उत्तरी ग़ज़्ज़ा में कुपोषण का शिकार फ़िलिस्तीनी बच्चों की संख्या दो बराबर हो चुकी है।

पार्सटुडे के अनुसार यूनिसेफ ने बताया है कि ग़ज़्ज़ा में कुपोषण का शिकार बच्चों की संखया दोगुनी हो गई है।

यूनीसेफ की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार उत्तरी ग़ज़्ज़ा की पट्टी में दो साल के हर तीन फ़िलिस्तीनी बच्चों में से एक बच्चा बुरी तरह से कुपोषण का शिकार है।

यूनीसेफ की प्रबंधक कैटरीन रसेल ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा में कुपोषण, स्तब्ध करने की हद तक बढ चुका है।  उन्होंने कहा कि यहां पर बच्चों की स्थति हर दिन ख़राब होती जा रही है।

फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्रसंघ की संस्था आनरवा ने भी घोषणा की है कि ग़ज़्ज़ा के बच्चों में कुपोषण बहुत ही तेज़ी से अभूतपूर्व ढंग से फैलता जा रहा है।  वहां पर अकाल के हालात बन चुके हैं।

अवैध ज़ायोनी शासन ने पश्चिमी देशों के समर्थन से अक्तूबर 2023 से ग़ज़्ज़ा में व्यापक स्तर पर फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार आरंभ कर रखा है।  ज़ायोनियों के हमलों में अबतक 31000 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।  इन हमलों में घायल होने वाले फ़िलिस्तीनियों की संख्या 72 हज़ार को पार कर चुकी है।

फ़िलिस्तीन की भूमि पर विभिन्न देशों के यहूदियों को भेजने की ब्रिटेन की योजना के अन्तर्गत 1948 में अवैध ज़ायोनी शासन का गठन हुआ था।  उस समय में फ़िलिस्तीनियों को उनकी भूमि से हटाने और उसको हड़पने के लिए अवैध ज़ायोनी शासन, जनसंहार का सहारा लिए हुए है।

विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने ईरान के विभाजन के संबंध में एक पूर्व ज़ायोनी सुरक्षा अधिकारी के बयान की प्रतिक्रिया में कहा है कि यह आरज़ू तुम्हारे साथ कब्र में जायेगी।

जायोनी सरकार के पूर्व सुरक्षा अधिकारी मर्दखायी कीदार ने कहा था कि वह इस्लामी गणतंत्र ईरान को 6 देशों में बटा हुआ देखना चाहता है।

विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने सोशल मिडिया पर इस निर्लज्ज बयान की प्रक्रिया में लिखा कि इस बेचारे जायोनी ने इससे पहले भी कहा था कि ईरान को टुकड़े- टुकड़े करना चाहता है।

इसी प्रकार विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इस पूर्व जायोनी सुरक्षा अधिकारी का बयान ईरान के बारे में दुश्मनों के इरादों का स्पष्ट प्रमाण व सुबूत है यद्यपि यह पहली बार नहीं है कि जायोनी दुश्मन ईरान के बारे में अपनी वास्तविक नीयत को इस तरह से बयान कर रहा है।

इसी प्रकार विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान चार दशकों से अधिक समय से इस प्रकार की बातों को सुन रहा और पूरी शक्ति व गौरव के साथ आगे बढ़ रहा है। नासिर कनआनी ने कहा कि ज़रूरी है कि खत्म हो रहे जायोनियों को एक बार फिर बता दूं कि गत 45 वर्षों के दौरान ईरान में रहने वाली विभिन्न जातियों व कौमों ने देश की एकता के लिए लगभग ढ़ाई लाख लोगों के जानों की कुर्बानी दे दी ताकि ईरान एकजुट बना रहे और इस देश की एक इंच ज़मीन भी कम न हो।

विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने इसी प्रकार कहा कि ईरान के विभाजन की आरज़ू गत 45 वर्षों के दौरान दुश्मन की बातिल व गलत आरज़ूओं की तरह है कि जो प्रतिरोध के एक गुट से नहीं निपट पा रहा है और अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए महिलाओं और बच्चों की हत्या कर रहा है।

विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने ईरान के विभाजन के संबंध में एक पूर्व ज़ायोनी सुरक्षा अधिकारी के बयान की प्रतिक्रिया में कहा है कि यह आरज़ू तुम्हारे साथ कब्र में जायेगी।

जायोनी सरकार के पूर्व सुरक्षा अधिकारी मर्दखायी कीदार ने कहा था कि वह इस्लामी गणतंत्र ईरान को 6 देशों में बटा हुआ देखना चाहता है।

विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने सोशल मिडिया पर इस निर्लज्ज बयान की प्रक्रिया में लिखा कि इस बेचारे जायोनी ने इससे पहले भी कहा था कि ईरान को टुकड़े- टुकड़े करना चाहता है।

इसी प्रकार विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इस पूर्व जायोनी सुरक्षा अधिकारी का बयान ईरान के बारे में दुश्मनों के इरादों का स्पष्ट प्रमाण व सुबूत है यद्यपि यह पहली बार नहीं है कि जायोनी दुश्मन ईरान के बारे में अपनी वास्तविक नीयत को इस तरह से बयान कर रहा है।

इसी प्रकार विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान चार दशकों से अधिक समय से इस प्रकार की बातों को सुन रहा और पूरी शक्ति व गौरव के साथ आगे बढ़ रहा है। नासिर कनआनी ने कहा कि ज़रूरी है कि खत्म हो रहे जायोनियों को एक बार फिर बता दूं कि गत 45 वर्षों के दौरान ईरान में रहने वाली विभिन्न जातियों व कौमों ने देश की एकता के लिए लगभग ढ़ाई लाख लोगों के जानों की कुर्बानी दे दी ताकि ईरान एकजुट बना रहे और इस देश की एक इंच ज़मीन भी कम न हो।

विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने इसी प्रकार कहा कि ईरान के विभाजन की आरज़ू गत 45 वर्षों के दौरान दुश्मन की बातिल व गलत आरज़ूओं की तरह है कि जो प्रतिरोध के एक गुट से नहीं निपट पा रहा है और अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए महिलाओं और बच्चों की हत्या कर रहा है।

जानकार हल्कों का मानना है कि ईरान के दुश्मन विशेषकर अमेरिका और इस्राईल उसे पीछे और कमज़ोर करने के लिए हमेशा षडयंत्र रचते रहते हैं परंतु उन्हें अपने शैतानी लक्ष्यों में मुंह की खानी पड़ती है। 45 साल पहले अमेरिका, ब्रिटेन और ईरान के दूसरे दुश्मनों ने ईरान की इस्लामी क्रांति को सफल होने से रोकने के लिए किसी प्रकार के प्रयास में संकोच से काम नहीं लिया।

ईरान की इस्लामी क्रांति को खत्म करने के लिए तेहरान के दुश्मनों ने सद्दाम को उकसाकर ईरान पर व्यापक हमला करवा दिया और सद्दाम का व्यापक समर्थन किया, उसे सहम के आधुनिकतम हथियारों से लैस किया और यह युद्ध 8 वर्षों तक चला परंतु आक्रमणकारी सद्दाम के नियंत्रण में ईरान की एक इंच ज़मीन भी बाकी न रही और सद्दाम का सपना साकार नहीं हो सका।

दूसरे शब्दों में ईरान के दुश्मनों का सपना साकार न हो सका। आज भी ईरान के दुश्मन उसे पीछे रखने के लिए आये दिन तेहरान के खिलाफ नित नये षडयंत्र रचते हैं। सारांश यह कि ईरान के दुश्मन ईरान को खत्म या उसे कमज़ोर करने के लिए जो भी कर सकते हैं उसे कर रहे हैं और जो नहीं कर सकते उसे नहीं किया।

ईरान के दुश्मनों ने अच्छी तरह समझ लिया है कि उस पर हमला करके इस्लामी व्यवस्था को बदला नहीं जा सकता इसलिए उन्होंने तेहरान के खिलाफ प्रतिबंधों की नीति अपनाई है परंतु गत 45 वर्षों के अनुभव इस बात के सूचक व साक्षी हैं कि ईरान के दुश्मनों के षडयंत्र हमेशा विफल रहेंगे।

रविवार, 17 मार्च 2024 18:19

ईश्चारश आतिथ्श- 6

रमज़ान महीने में पवित्र क़ुरआन को चाहने वाले पहले से अधिक क़ुरआन से निकट हो जाते हैं और पवित्र क़ुरआन की तिलावत करके और उसकी शिक्षाओं को समझकर और उस पर अमल करके अपने दिलों को नया जीवन प्रदान करते हैं।

सालभर में आने वाली फ़सलों में सबसे सुन्दर और प्रफुल्लतादायक फ़सल बहार या बसंत ऋतु है। इस फ़सल में चारों ओर हरियाली ही हरियाली नज़र आती है और पेड़ पौधे हरी हरी कोंपलों का वस्त्र धारण कर लेते हैं। बसंत ऋतु, प्रेम और ताज़गी की संदेशवाहक है। यह ख़ुशियों और आपसी मेलजोल का मौसम है। यही कारण है कि इस मौसम को दुनिया का हर व्यक्ति पसंद करता है। बहार के आने से दिल में ख़ुशियां भर जाती हैं और दिल प्रफुल्लित हो जाता है और इंसान में नयी जान पैदा हो जाती है।

बसंत की सुन्दर प्रकृति में ईश्वर का प्रेम और कृपा को हर समय से अधिक देखा जा सकता है। जो लोग बहार के मौसम से आनंद उठाते हैं और इस मौसम को अधिक पसंद करते हैं वे इस मौसम से ज़्यादा किसी और मौसम में ख़ुश नहीं हो सकते, वे हरियाली के उगने, दुनिया के दोबारा जीवित होने और अपनी आत्मा के प्रफुल्लित होने का दृश्य अपनी आंखों से देखते हैं और परलोक में उड़ान भरने का आभास करता हैं। यहां पर पवित्र क़ुरआन को दोस्त रखने वालों का भी यही हाल होता है वे भी पवित्र क़ुरआन में ईश्वर की कृपा और दया का दीदार करते हैं और पवित्र क़ुरआन की मनमोहक और प्रफुल्लतादायक आयतों की तिलावत सुनकर अपनी जान को तरोताज़ा करते हैं।

यह चीज़ ठीक उसी तरह है जब अंधेरी रात के बाद सूरज अपने प्रकाश से मुर्दा प्रकृति को दोबारा ज़िंदा करता है, क़ुरआन की दमकती धूप भी मुर्दा दिलों और आत्मा के अवसाद को ताज़गी और प्रफुल्लता प्रदान करती और उसको नया जीवन प्रदान करती है। पवित्र क़ुरआन दिलों की बसंत और पवित्र रमज़ान, क़ुरआन की बहार का मौसम है।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के हवाले से एक हदीस में आया है जिसमें वह फ़रमाते हैं कि हर चीज़ के लिए बहार हैं और क़ुरआन की बहार, पवित्र रमज़ान है। यह इस प्रकार कि इस पवित्र महीने में हम सभी को अल्लाह की मेहमानी का निमंत्रण दिया गया है और हम क़ुरआन की बहार और वास्तव में उसकी अद्वितीय सुन्दरता के इस महीने में साक्षी होते हैं।

इस महीने में पवित्र क़ुरआन को चाहने वाले और उसके मित्र पहले से अधिक क़ुरआन से निकट हो जाते हैं और पवित्र क़ुरआन की तिलावत करके और उसकी शिक्षाओं को समझकर और उस पर अमल करके अपने दिलों को नया जीवन प्रदान करते हैं। जैसा कि बहार के मौसम में हर ओर हरियाली होती है और पेड़ों पर कोंपले आ जाती हैं। पवित्र रमज़ान के महीने में पवित्र क़ुरआन की तिलावत और उसमें चिंतन मनन से मनुष्य में नयी जान पैदा हो जाती है और उसमें आत्मा का पुनर्जन्म होता है क्योंकि मनुष्य की प्रकृति, पवित्र क़ुरआन से बहुत मेल खाती है और क़ुरआने मजीद की आयतें, दिलों को तैयार करती हैं और अपनी ओर सम्मोहित करती हैं। पवित्र क़ुरआन सूरए ज़ुमर की आयत संख्या 23 में अपने बयान के अध्यात्यिमक आकर्षण के बारे में कहता है कि अल्लाह ने बेहतरीन बात इस पुस्तक के रूप में उतारी है जिसकी आयतें आपस में मिलती जुलती हैं और बार बार दोहराई गयी हैं कि उनसे ईश्वर का भय रखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, इसके बाद उनके शरीर और दिल यादे ख़ुदा के लिए नर्म हो जाते हैं। यही अल्लाह का वास्तविक मार्गदर्शन है वह जिसको चाहता है प्रदान करता है और जिसको वह पथभ्रष्टता में छोड़ दे उसका कोई मार्गदर्शन करने वाला नहीं है। यही कारण है कि रिवायतों में पवित्र क़ुरआन को दिलों के बहार के रूप में याद किया गया है।

पवित्र क़ुरआन, ईश्वर का बड़ा चमत्कार और इस्लाम के अमर होने का प्रमाण है। यह ईश्वरीय किताब, विभिन्न षड्यंत्रों के बावजूद, हर प्रकार की फेरबदल से सुरक्षित है और मानवीय समाज को पथभ्रष्टता और बुराई से मुक्ति दिला रही है। पवित्र क़ुरआन ने ईश्वर की ओर से आने के अपने आंरभिक समय से पवित्र और साफ़ दिलों को अपनी जीवनदायक आयतों द्वारा आकर्षित किया। पवित्र क़ुरआन ने अपने सार्थक नियमों से पतन का शिकार और पाश्विक जाति को सभ्य समाज और प्रशिक्षित इंसान में परिवर्तित कर दिया। ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन को उतार कर जो पूर्ण और व्यापक है, समस्त लोगों पर यह तर्क पूरा कर दिया और कहा कि क़ुरआन की भांति कोई भी किताब, मनुष्य की आवश्यताओं का जवाब नहीं दे सकता। पवित्र क़ुरआन की आयतें और इसमें वर्णित चीज़ों से पता चलता है कि यह किताब किसी इंसान की नहीं है बल्कि अमर चमत्कार है जो किसी इंसान से ऊपर की ओर से है। चौदह से अधिक शताब्दी गुज़रने के बावजूद दुनिया में आज भी इस्लाम के ज़िंदा प्रभाव से इस वास्तविकता का पता चलता है कि क़ुरआने करीम अपने पक्के और वैज्ञानिक तर्कों, गहरी और सकारात्मक बातों और शिष्टाचारिक नियमों के साथ मनुष्य के जीवन के लिए बेहतरीन किताब है।  इसी ईश्वर की किताब की शिक्षाओं की छत्रछाया में लोग सत्य का मार्ग तलाश करते हैं और सत्य के इच्छुक लोग इसके प्रकाश से ही स्वयं को लाभान्वित करते हैं। ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरए फ़ुस्सेलत की आयत संख्या 41 और 42 में कहता है कि जिसके निकट, सामने या पीछे किसी ओर से असत्य आ भी नहीं सकता कि यह तत्वदर्शी ईश्वर और हमीद की ओर से उतारी हुई किताब है।

पवित्र क़ुरआन का संदेश, समस्त इंसानों के लिए पारदर्शी और स्पष्ट संदेश हैं। पवित्र क़ुरआन अच्छाई को स्वीकार करने और बुराई तथा विस्तारवाद और वर्चस्व को नकाराता है, यह इस प्रकार है कि पवित्र क़ुरआन मानव जीवन में चाहे व व्यक्तिगत हो या सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक या आर्थिक क्षेत्र हो, सभी में मनुष्यों के लिए बेहतरीन शरणस्थली बन सकता है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि जब भी तुम्हें कोई परेशानी हो, रात का अंधेरा हो या कोई भी समस्या तो तुम क़ुरआन की शरण में आ जाओ और तुम्हारे लिए आवश्यक है कि पवित्र क़ुरआन से सहायता मांगो। अन्य महीनों की तुलना में पवित्र रमज़ान में क़ुरआन की तिलावत के बहुत फ़ायदे हैं। रमज़ान का महीना, ईश्वर से निकट करने के लिए मनुष्य द्वारा लाभ उठाने के लिए भूमि समतल करने तथा स्वच्छ माहौल में सांस लेने का माहौल प्रशस्त करता है। इस लक्ष्य की प्राति के लिए बेहतरीन संसाधन, पवित्र क़ुरआन है। इसी संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम शाबान के महीने के अंतिम दिनों में दिए गये ख़ुतबए शाबानिया में कहते हैं कि रमज़ान के महीने क़ुरआन की एक आयत की तिलावत, क़ुरआन ख़त्म करने का सवाब रखती है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई भी पवित्र रमज़ान के महीने में पवित्र क़ुरआन की तिलावत करने और उससे लाभ उठाने पर बल देते हुए कहते हैं कि रमज़ान के महीने की जान रोज़ा है जो रोज़ेदारों के लिए प्रकाशमयी और अध्यात्मिक माहौल होता है और उसे ईश्वरीय कृपा की प्राप्ति के लिए तैयार करता है। रमज़ान के महीने में यह सब चीज़ें, नमाज़, रोज़े, दायित्वों और दुआओं के साथ होती हैं, यदि आप इन चीज़ों पर ध्यान दें और क़ुरआन की तिलावत भी बढ़ा दें कि कहा गय है कि रमज़ान का महीना, क़ुरआन की बसंत है, भ्रष्टाचार, बिखराव और बर्बादी जैसी चीज़ों से अपनी मुक्ति, पुनर्निमाण और आत्मनिर्माण का एक काल है। बहुत ही अच्छा अवसर है। मामला यह है कि हम पवित्र रमज़ान के महीने में अल्लाह की ओर जाने की यह प्रक्रिया अंजाम दें और यह प्रक्रिया अंजाम पा सकती है।

पवित्र रमज़ान, पवित्र क़ुरआन के उतरने का महीना है। सूरए बक़रा की आयत संख्या 185 में आया है कि रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन है और इसमें मार्गदर्शन और सत्य व असत्य की पहचान की स्पष्ट निशानियां मौजूद हैं इसीलिए जो व्यक्ति इस महीने में उपस्थित रहे, उसका दायित्व है कि रोज़ा रखे और जो मरीज़ या यात्री हो वह इतने ही दिन दूसरे समय में रखे, ईश्वर तुम्हारे बारे में आसानी चाहता है, कष्ट नहीं चाहता, और इतने ही दिन का आदेश इसीलिए है कि तुम संख्या पूरे कर दो और अल्लाह के दिये हुए मार्गदर्शन पर उसके बड़प्पन को स्वीकार करो और शायद तुम इस प्रकार आभार व्यक्त करने वाले बंदे बन जाओ। पवित्र क़ुरआन का रमज़ान के महीने में उतरना,  इस विशेष योग्यता के लिए है कि इस महीने से लाभ उठा सके ताकि इस महीने में उतरने वाली किताब की तिलावत करें। चूंकि दूसरी आसमानी किताबें भी रमज़ान के महीने में उतरी हैं।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से रिवायत में हम पढ़ चुके हैं कि तौरेत पवित्र रमज़ान की छह तारीख़ को। इंजील बारह तारीख को और ज़बूर 18 रमज़ान को उतरी और पवित्र क़ुरआन क़द्र की रात उतरा है

 

 

 

रविवार, 17 मार्च 2024 18:18

बंदगी की बहार- 6

पवित्र रमज़ान, ईश्वर का महीना है।

 

इस महीने में रोज़ा रखने वाला ईश्वर का मेहमान होता है।  मेहमानी एसी चीज़ है जिसके बारे में कुछ बातों की जानकारी बहुत आवश्यक है जैसे मेज़बान कौन है, मेहमानी का समय और स्थान क्या है।  इसके अतिरिक्त यह भी ज्ञात चाहिये कि मेहमानी में जाने के लिए किस प्रकार की तैयारी की जाए? यह ज़रूरी है कि ईश्वर की मेहमानी के लिए रोज़ेदार को स्वयं को भीतरी और बाहरी हिसाब से तैयार करना चाहिए।  इस महीने की हमें पहले से तैयारी करनी चाहिए।  सूरे बक़रा की आयत संख्या 185 में ईश्वर कहता हैः रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें ईश्वर की ओर से क़ुरआन उतरा है जो लोगों का मार्गदर्शक है तथा, असत्य से सत्य को अलग करने हेतु स्पष्ट तर्कों व मार्गदर्शन को लिए हुए है, तो तुम में से जो कोई भी ये महीना पाए तो उसे रोज़ा रखना चाहिए और जो कोई बीमार या यात्रा में हो तो वह उतने ही दिन किसी अन्य महीने में रोज़ा रखे, ईश्वर तुम्हारे लिए सरलता चाहता है, कठिनाई नहीं, तो तुम रोज़ा रखो यहां तक कि दिनों की संख्या पूरी हो जाए और मार्गदर्शन देने के लिए तुम ईश्वर का महिमागान करो और शायद तुम (ईश्वर के प्रति) कृतज्ञ हो।

 

एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि रोज़े का अर्थ स्वयं को खाने और पीने से रोकना मात्र नहीं है।  खाने और पीने से रुकने के अतिरिक्त कुछ अन्य शर्तें भी हैं जिनका अनुपालन किया जाना चाहिए।

 

रोज़ा रखने की पहली शर्त उसकी नियत करना है।  वास्तव में नियत हर काम की आत्मा होती है।  इसका कारण यह है कि कोई भी उपासना बिना नियत के सही नहीं है और जो काम ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाए वह काम सबसे सही काम होता है।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने एक साथी हज़रत अबूज़र को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे अबूज़र! हर काम के लिए मनुष्य को पवित्र नीयत करनी चाहिए।  नियत या उद्देश्य के पवित्र होने से उसका महत्व बढ़ता है।  जो काम जितनी अच्छी नियत से किया जाएगा उसका महत्व उतना ही अधिक होगा।  अच्छी या शद्ध नियत की तुलना में बुरी नियत होती है।  बुरी नियत से अगर कोई अच्छा काम भी किया जाएगा तो भी उसका कोई महत्व नहीं होगा।  इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कहना है कि प्रत्येक कर्म के लिए नियत होनी आवश्यक है।

रोज़ा रखने का मामला भी नियत से अपवाद नहीं है।  रोज़े को ईश्वर का समीपता की नियत से करना चाहिए।  जब मनुष्य यह सोच कर कोई काम करेगा कि वह इसे केवल ईश्वर की प्रसन्ता के लिए कर रहा है तो उसका महत्व बढ़ जाता है। रोज़ की नियत जितनी पाक होगी उसका महत्व उतना ही अधिक बढ़ता जाएगा।  अगर ईश्वर की उपासना पूरी निष्ठा के साथ की जाए तो उसे ईश्वर अवश्य स्वीकार करता है।  इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत ज़हरा (स) अपने एक ख़ुत्बे में कहती हैं कि ईश्वर ने रोज़े को तुम्हारे भीतर निष्ठा उत्पन्न करने के लिए अनिवार्य किया है।  इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम भी इस संबन्ध में कहते हैं कि ईश्वर ने रमज़ान के महीने को आत्मा की शुद्धता और विचारों की पवित्रता के लिए निर्धारित किया है।

रोज़े की एक अन्य शर्त एटीकेट या संस्कारों का ध्यान रखना है।  संस्कार, दूसरों के साथ किये जाने वाले उस व्यवहार को कहते हैं जिसमें शालीनता भी सम्मिलित हो।  इस प्रकार के व्यवहार का संबन्ध मनुष्य के प्रशिक्षण से होता है।  इसमें चाल-चलन, वार्ता, लोगों के साथ व्यवहार और इसी प्रकार की बहुत सी चीजें आती हैं।  रोज़े के दौरान अच्छे व्यवहार का अर्थ है पापों से बचना, प्रायश्चित करना, झूठ से दूर रहना, पर नारी पर दृष्टि न डालना और हर प्रकार की बुराई से बचने का प्रयास करते रहना।  रमज़ान में यह काम करना किसी सीमा तक सरल हो जाता है।  रमज़ान के पवित्र महीने में पवित्र क़ुरआन पढ़ने, प्रायश्चित करने, दान-दक्षिणा करने, लोगों की सहायता करने और अन्य भले काम करने से मनुष्य उच्च स्थान तक पहुंच सकता है।

रोज़ा रखने वाले के हृदय को रोज़े के दौरान रोज़े के साथ रहना चाहिए।  जिस प्रकार से रोज़ेदार को कई प्रकार के कामों से बचना चाहिए उसी प्रकार से उसे अपने मन को भी हर बुरी सोच से दूर रखना चाहिए।  इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर, तौरेत में कहता है कि हे आदम की संतान! अपने समय और मन को मेरे लिए स्वच्छ करो।  यदि तू एसा करता है तो हम तुम्हारे हृदय को संतोष्ट देते हुए तुमको आवश्यकता मुक्त कर देंगे।  हम तुमको तुम्हारी आंतरिक इच्छाओं के बंधन से मुक्ति दिलाएंगे।  तुम्हें जिस चीज़ की ज़रूरत होगी उसे हम स्वय उपलब्ध करवाएंगे और हम तुमको दूसरों पर निर्भर नहीं होने देंगे।  हम तुम्हारे हृदय को अपने भय से भर देंगे ताकि किसी अन्य का भय तुम्हारे भीतर न रहने पाए।

रोज़े के लिए यह बहुत आवश्यक है कि रोज़ा केवल मनुष्य का न हो बल्कि उसके शरीर के सारे ही अंगों का भी रोज़ा होना चाहिए।  इस बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जब तुम रोज़ा रखते हो तो फिर तुम्हारे शरीर के अंगों का भी रोज़ा होना चाहिए जैसे कानों, आखों, ज़बान और अन्य अंगों का रोज़ा।  एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं कि तुम्हारे लिए आवश्यक है कि तुम रोज़े के दौरान एक-दूसरे से झगड़ा न करो, हसद न करो, ग़ीबत न करो, झूठी क़सम न खाओ, गाली न बको, दूसरों का अपमान न करो, अत्याचार से बचो, आशान्वित रहो निराशा से बचो, सदैव ईश्वर की याद में रहो, उसकी उपासना करते रहो।  जहां तक हो सके शांत रहो। व्यर्थ की बातें करने से बचो, तुम्हारे मन में ईश्वर का भय होना चाहिए।  अपने हृदय और आंखों को ईश्वर की याद में लगा दो।  कुल मिलाकर तुमको स्वयं को शुद्ध करना चाहिए।  जो बातें बताई गईं अगर उनका ध्यान रखा जाए तो रोज़ेदार ने वास्तव में ईश्वर के आदेश का पालन किया है।  अब यदि इन बातों का अनुपालन न किया जाए या उनमें से कुछ पर अमल न किया जाए तो उसी अनुपात में उसका महत्व कम होता है।

ग़ीबत अर्थात पीठ पीछे बुराई करने से हालांकि रोज़ा बातिल नहीं होता किंतु इससे रोज़े के सकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।  इस प्रकार रोज़े का लक्ष्य ही प्रभावित होता है और मनुष्य तक़वे से दूर हो जाता है।  झूठ बोलना, आरोप लगाना, मज़ाक़ उड़ाना, अनुचित बातें करना, विश्वासघात करना और इसी प्रकार की बुराइयां रोज़े के प्रभाव को कम करती हैं और उससे होने वाले लाभ में कमी आती है।  वास्तविक रोज़ेदार वह होता है जो रोज़े के लक्ष्य को समझता है और उसे प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहता है।  इस प्रकार से वह रोज़े के मूल लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि जो व्यक्ति रोज़े की स्थिति में अपने कानों, आखों और ज़बान पर नियंत्रण रखे तो ईश्वर उसके रोज़े को स्वीकार करेगा।

रोज़े के संबन्ध में एक रोचक बात यह है कि जहां रोज़े में खाने और पीने से रोका गया है वहीं सहर और इफ़्तार में खाने पर बल भी दिय गया है।  इस्लामी शिक्षाओं में सहर के समय खाने की बहुत अनुशंसा की गई है।  कहा गया है कि सहर के समय कुछ न कुछ अवश्य खाना चाहिए चाहे एक खजूर ही क्यों न हो।  इसी प्रकार उस रोज़े से रोक भी गया है जिसमें इफ़्तार में कुछ भी न खाया जाए और फिर सहर में भी कुछ न खाया जाए।

विख्यात धर्मगुरू शेख मुफ़ीद अपनी पुस्तक "मक़ना" में लिखते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में आया है कि सहर खाना चाहिए चाहे एक खजूर या एक घूंट पानी हो क्यों न हो।  रोज़ा खोलने या सहर के समय जो चीज़ खाई जाए उसका हलाल होना आवश्यक है।  तफ़सीरे अलबयान में कहा गया है कि इफ़्तार के समय हलाल से कमाया हुआ एक लुक़्मा ईश्वर के निकट पूरी रात में उपासना करने से अधिक प्रिय है अतः रोज़ेदार को हराम खानों से बचना चाहिए क्योंकि हराम खाना, धर्म की दृष्टि में विष समान है।

पवित्र रमज़ान में पैग़म्बरे इस्लाम (स) की उपासना के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि रसूले ख़ुदा, रमज़ान के अन्तिम दस दिनों में अपने सोने के बिस्तर को अलग रख देते थे और ईश्वर की उपासना में लग जाया करते थे।  22 रमज़ान की रात जब आ जाती थी तो वे अपने घरवालों को रात में सोने नहीं देते और उनसे उपासना करने को कहते।  जब किसी को नींद आती तो उसपर पानी की छींटे डालते थे।  इसी प्रकार से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा भी रमज़ान में रातों को उपासना करतीं।  वे अपने घरवालों को रात में जागने के लिए प्रेरित करती थीं।  वे रात में घरवालों को खाना कम ही देती थीं ताकि उनको नींद न आए।  पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा कहती थीं कि खेद है उस व्यक्ति पर जो इस महत्वपूर्ण रात की अनुकंपाओं से वंचित रह जाए।

अंत में यह कहा जा सकता है कि पवित्र रमज़ान में हमें अधिक से अधिक ईश्वर की उपासना करनी चाहिए, सांसारिक मायामोह से बचना चाहिए, बुराइयों से दूरी बनानी चाहिए, निर्धनों की अधिक से अधिक सहायता करते हुए लोगों के लिए भलाई करते रहना चाहिए।

नए ईरानी साल का पहला दिन (ईदे नौरोज़) रमज़ान मुबारक में पड़ने के मद्देनज़र, इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के ख़ेताब का प्रोग्राम, 1 फ़रवरदीन 1403 हिजरी शम्सी (20 मार्च 2024) को पवित्र शहर मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में आयोजित नहीं होगा बल्कि ये प्रोग्राम 1 फ़रवरदीन को तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में आयोजित होगा, जिसमें अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़े शिरकत करेंगे।

याद रहे कि नब्बे के दशक के आरंभिक वर्षों में ईदे नौरोज़ के रमज़ान मुबारक में पड़ने और इसी तरह कोरोना महामारी के फैलाव के दौरान भी, नए हिजरी शम्सी साल के आग़ाज़ पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के ख़ेताब का प्रोग्राम, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में आयोजित नहीं हुआ था।

 

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّٰهُمَّ لاَ تَخْذُلْنِی فِیهِ لِتَعَرُّضِ مَعْصِیَتِكَ وَلاَ تَضْرِبْنِی بِسِیاطِ نَقِمَتِكَ وَزَحْزِحْنِی فِیهِ مِنْ مُوجِباتِ سَخَطِكَ، بِمَنِّكَ وَأَیادِیكَ یَا مُنْتَهی رَغْبَةِ الرَّاغِبِینَ۔

ऐ माबूद ! आज के दिन मुझे छोड़ ना दें!कि

तेरी नाफ़रमानी में लग जाऊं और ना मुझे अपने ग़ज़ब का ताज़ियाना मार,आज के दिन मुझे अपने एहसान और नेमत से अपनी नाराज़गी के कामों से बचाए रखें ए रग़बत करने वालों की आखिरी उम्मीदगाह,

हौज़ा में तब्लीगी और सांस्कृतिक मामलों के प्रमुख उलमिया खावरान ने कहा: रमज़ान वह महीना है जिसे अल्लाह ताला ने अन्य महीनों की तुलना में सम्मान और महानता प्रदान की है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता के अनुसार, हौज़ा उलमिया खावरान में तब्लीगी और सांस्कृतिक मामलों के प्रमुख होजतुल-इस्लाम वाल-मुस्लिमीन अराश राजाबी ने पवित्र के अवसर पर "शिक्षक की उपस्थिति में शुद्ध क्षण" विषय पर बात की। रमज़ान का महीना। डुरान ने कहा: रमज़ान एक ऐसा महीना है जिसे भगवान ने अन्य महीनों की तुलना में सम्मान और महानता दी है। इसकी महानता इस कारण है कि इसका प्रत्येक क्षण मनुष्य के लिए ईश्वर की निकटता प्राप्त करने का अवसर है।

उन्होंने आगे कहा: रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरान प्रकट हुआ था। हमें यथासंभव उनके आशीर्वाद का आनंद लेना चाहिए।

ख़्वाज़ा उलमिया खावरान में उपदेश और सांस्कृतिक मामलों के प्रमुख ने कहा: सर्वशक्तिमान ईश्वर ने इस महीने को मनुष्य के लिए अपने ज्ञान का स्रोत घोषित किया है। रिवायतों में कहा गया है कि "अलसूम ली वा इन्ना अज्जी बाह" तो मालूम होता है कि खुदा ने इस महीने के तमाम लम्हों को अपने साथ खास बनाया है और बड़ा इनाम देने का वादा किया है।

अंतर्राष्ट्रीय कुरआन प्रदर्शनी में मशहद के अबू सईद हॉल में 20 बूथों के साथ 8 से अधिक देशों के लोगों ने भाग लिया हैं इस कुरआन प्रदर्शनी में बच्चों और किशोरों के लिए विशेष कुरआन कार्यक्रम और मनोरंजन प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,12 मार्च से ईरान के मशहद शहर में 17वीं अंतर्राष्ट्रीय कुरान प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है और 23 मार्च की शाम को यह आधिकारिक तौर पर  अधिकारियों की उपस्थिति में शुरू हुई।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय कुरआन प्रदर्शनी में 20 बूथ वाले मशहद के अबू सईद हॉल में 8 से ज़्यादा देशों के लोग हिस्सा ले रहे हैं।

गौरतलब है कि इस कुरआन प्रदर्शनी में बच्चों और किशोरों के लिए विशेष कुरान कार्यक्रम और मनोरंजन प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी।

संस्थान इरशाद ख़ुरासान रिज़वी के प्रमुख हमीद समदी ने इस प्रदर्शनी के बारे में बात करते हुए कहा इस प्रदर्शनी में सांस्कृतिक उत्पादों और  कुरान शैली के साथ प्रस्तुत किया जायगा।