
رضوی
सुप्रीम लीडर ने नौरोज़ की बधाई दी और ग़ज़ा की घटना को सबसे कटु अंतर्राष्ट्रीय घटना क़रार दिया
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने हिजरी शम्सी वर्ष 1403 की शुरुआत के अवसर पर एक संदेश में ईरानी जनता विशेष रूप से शहीदों के परिवारों और उन सभी राष्ट्रों को नौरोज़ की बधाई देते हुए नए साल को "जनता की भागीदारी से उत्पादन में छलांग का वर्ष" क़रार दिया है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने शहीदों और शहीदों के इमाम को याद करते हुए ईरानी राष्ट्र को प्रकृति और आध्यात्मिकता की दो बहारों से लाभान्वित होने की कामना करते हुए हिजरी शम्सी वर्ष 1402 की मिठास और कड़वाहटों पर एक संक्षिप्त नज़र डाली।
उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष की अच्छी और बेहतरीन खबरों में, महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगतियां, बुनियादी ढांचों का उत्पादन, विभिन्न समारोहों में जनता की भव्य उपस्थिति, विशेष रूप से विश्व कुद्स दिवस और 22 बहमन की रैलियों में, मार्च में होने वाला शांतिपूर्ण और पारदर्शी चुनाव और विभिन्न आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में सरकार की अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियां इत्यादि थीं।
सुप्रीम लीडर अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई ने जनता की आर्थिक और रोज़गार की समस्याओं को वर्ष 1402 हिजरी शम्सी की कड़वी ख़बरों में बताया।
उन्होंने कहा कि शहीद जनरल सुलेमानी की बरसी के अवसर पर किरमान में हुई कड़वी घटना, बलूचिस्तान में बाढ़ और हालिया महीनों में सुरक्षा बलों के साथ हुई घटनाएं, पिछले साल की अन्य कड़वी घटनाओं में थीं लेकिन ग़ज़ा की घटना को सबसे दुखद और सबसे कड़वी घटना समझा जाना चाहिए।
पिछले साल के नारे और स्लोगन का हवाला देते हुए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने मुद्रास्फीति और उत्पादन वृद्धि पर अंकुश लगाने के क्षेत्र में किए गए कार्यों के मूल्यांकन को अच्छा लेकिन ज़्यादा वांछित क़रार नहीं दिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी को भी एक साल के अंदर इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे के पूरी तरह से साकार होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि नए साल में देश का मुख्य मुद्दा अभी भी "अर्थव्यवस्था" है क्योंकि देश की मुख्य कमज़ोरी यही क्षेत्र है और देश को इसी क्षेत्र में सक्रिय होना चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अर्थव्यवस्था और उत्पादन के क्षेत्र में जनता की उपस्थिति के बिना उत्पादन में उछाल संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कि उत्पादन क्षेत्र में जनता की उपस्थिति में आने वाली बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए और जनता की अपार और बड़ी क्षमताओं को सक्रिय किया जाना चाहिए।
सुप्रीम लीडर ने अपने बयान के अंत में महा मुक्तिदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम को सलाम करते हुए ईश्वर से उनके शीघ्र प्रकट होने की दुआ की जो मानवता को मुक्ति दिलाने वाले हैं।
ईरान के राष्ट्रपति की आयतुल्लाह नूरी हमदानी से बातचीत
ईरान के राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहीम रईसी ने ईरानी नव वर्ष के मौके पर बधाई देते हुए आयतुल्लाह नूरी हमदानी के साथ टेलीफोन पर बातचीत की।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ईरान के राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहीम रईसी ने ईरानी नव वर्ष के मौके पर बधाई देते हुए आयतुल्लाह नूरी हमदानी के साथ टेलीफोन पर बातचीत की देश की स्थिति के बारे में रिपोर्ट पेश की,
हज़रत आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने भी हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद इब्राहीम रईसी को बधाई दी और उनके प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया और कहा अल्लाह ने चाहा, तो देश की सभी समस्याएं जल्द ही हल हो जाएंगी।
बातचीत के अंत में मरजाय तकलीद ने लोगों की समस्याओं को हल करने में सरकार की सफलता के लिए दुआ की और ईरान के सम्मानित लोगों की सेवा में नए साल की शुभकामनाएं व्यक्त कीं हैं।
ईरान ने संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण कन्वेंशन की अध्यक्षता ग्रहण कर ली
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण कन्वेंशन की अध्यक्षता ग्रहण कर ली है।
जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में ईरान के स्थायी प्रतिनिधि अली बहरीनी ने इस कन्वेंशन की पहली बैठक में अपनी अध्यक्षता के दौरान ईरान की योजनाओं और कार्यक्रमों की घोषणा करते हुए कहाः इस्लामी गणतंत्र ईरान, शांति प्रिय और युद्ध और हिंसा के विरोधी देशों के साथ मिलकर सामूहिक विनाश के हथियारों विशेषकर परमाणु हथियारों के उन्मूलन के माध्यम से विश्व शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देगा।
विश्व निरस्त्रीकरण कन्वेंशन की स्थापना 1978 में हुई थी। यह निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय बहुपक्षीय वार्ता संस्था है, जो इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर बातचीत करने और निष्कर्ष निकालने के लिए ज़िम्मेदार है।
निरस्त्रीकरण कन्वेंशन ने जैविक निरस्त्रीकरण कन्वेंशन (बीडब्ल्यूसी) और व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) सहित कई अंतरराष्ट्रीय निरस्त्रीकरण संधियों पर वार्ता की और उन्हें अंतिम रूप दिया।
ईरान ने निरस्त्रीकरण कन्वेंशन की अध्यक्षता के दौरान, परमाणु हथियार धारकों के दायित्वों का कार्यान्वयन, परमाणु हथियारों की प्रतिस्पर्धा का अंत और मध्यपूर्व को सामूहिक विनाश के हथियारों से मुक्त करने जैसे लक्ष्यों का निर्धारण किया है।
ग़ज़ा में बंदरगाह बनाने की पीछे रहस्य
सोशल नेटवर्क एक्स (पूर्व ट्विटर) के एक यूज़र ने एक अपनी एक पोस्ट में ग़ज़ा के पास एक बंदरगाह स्थापित करने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के छिपे लक्ष्यों से पर्दा उठाया है।
नेहला ने एक्स सोशल नेटवर्क पर लिखा: ग़ज़्ज़ा के पास एक बंदरगाह बनाने के बाइडेन के छिपे लक्ष्य? अमेरिका के हीरो पायलट आरोन बुशनेल के समर्थन में होने वाले विरोध प्रदर्शन और ग़ज़ा में युद्ध को रोकने के अनुरोध के बाद अमेरिकियों के गुस्से को कम करना, अमेरिकियों और दुनिया को धोखा देना कि इस बंदरगाह का उद्देश्य ग़ज़ा की जनता की मदद के लिए मानवीय कार्य है जबकि इसका उद्देश्य इन क्षेत्रों से प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर गैस की लूटपाट है।
अमेरिकी वायु सेना के 25 वर्षीय पायलट आरोन बुशनेल ने ज़ायोनी शासन द्वारा ग़ज़ा पट्टी में रहने वाले फिलिस्तीनी लोगों के खुले नरसंहार के लिए वाइट हाउस के समर्थन का विरोध किया और वाशिंगटन में इस्राईल के दूतावास में सामने उन्होंने खुद को आग लगा ली और गंभीर रूप से जलने के कारण अस्पताल ले जाने के बाद उनकी मृत्यु हो गई।
ईरान ने अमेरिका और ब्रिटेन के आरोपों को रद्द कर दिया
संयुक्त राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत ने यमन और लाल सागर के संबंध में अमेरिका और ब्रिटेन के आरोपों को निराधार कहकर उन्हें रद्द कर दिया है।
राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत अमीर सईद ईरवानी ने सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के नाम पत्र में लिखा है कि अमेरिका और ब्रिटेन के राजदूतों ने एक बार फिर सुरक्षा परिषद के मंच का दुरूपयोग करने का प्रयास किया है।
उन्होंने कहा कि तेहरान कड़ाई से इन आरोपों को रद्द करता है और उसका मानना है कि वाशिंग्टन और लंदन अपने राजनीतिक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए उसे बहाने के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार अमेरिका और ब्रिटेन यमन के खिलाफ अपने ग़ैर कानूनी हमलों व कार्यों का औचित्य दर्शाने के लिए इस प्रकार की बातें कर रहे हैं। राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान किसी प्रमाण के बिना उस बयान को रद्द करता है जिसे सुरक्षा परिषद की बैठक में फ्रांसीसी राजदूत ने पढ़ा।
इसी प्रकार उन्होंने कहा कि फ्रांस सुरक्षा परिषद का एक स्थाई सदस्य है इस नाते तेहरान पेरिस का आह्वान करता है कि वह ज़िम्मेदारी से अमल करे और स्वतंत्र व स्वाधीन देशों पर राजनीतिक आरोप का लेबल लगाने से परहेज़ करे।
इसी प्रकार राष्ट्र संघ में ईरानी राजदूत ने यमन के खिलाफ अमेरिका के तथाकथित घटबंधन के हमलों को गैर कानूनी बताया और एक बार फिर उनकी भर्त्सना की और उसे यमन की संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुला उल्लंघन बताया। इसी प्रकार सईद ईरवानी ने इन हमलों को क्षेत्र की शांति व सुरक्षा के गम्भीर खतरा बताया
सहर में उठने से आत्मा को आनन्द एवं शान्ति प्राप्त होती है
माहे रमज़ान के पवित्र महीने में कुछ विशेष क्षण होते हैं। इन विशेष क्षणों में सबसे सुंदर क्षण सहर अर्थात भोर के समय के होते हैं। बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि वर्तमान जीवन शैली तथा शारीरिक एवं मानसिक थकान ने अधिकांश लोगों को भोर समय में उठने से वंचित कर रखा है। माहे रमज़ान के पवित्र महीने में हमें यह सुअवसर प्राप्त होता है कि भोर समय उठने के आनन्द तथा उसके लाभ का हम आभास कर सकें। दिन भर के 24 घण्टों में भोर का समय ही सबसे अच्छा समय होता है। इस समय का महत्व इतना अधिक है कि ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन की आयतों में इसकी सौगंध खाई है ताकि लोग भोर के बारे में अधिक विचार करें।
इस्लाम के बड़े-बड़े महापुरूषों तथा विद्धानों के जीवन पर यदि एक दृष्टि डाली जाए तो हमें ज्ञात होगा कि वे सब ही भोर समय उठा करते थे। वे लोग इस समय ईश्वर की उपासना, चिंतन तथा ज्ञानार्जन में व्यस्त रहा करते थे। भोर समय की प्रार्थना या उपासना मनुष्य के मन तथा आत्मा पर गहरा प्रभाव डालती है। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि दुआ के लिए बेहतरीन समय भोर समय है। भोर समय की अनुकंपाओं के संबन्ध में इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम का कथन है कि ईश्वर अपने मोमिन बंदों में से उस बंदे से अधिक प्रेम करता है जो अधिक दुआ करता है। इसीलिए भोर समय से सूर्योदय तक प्रार्थना किया करो क्योंकि उस समय आकाशों के द्वार खुल जाते हैं, लोगों की रोज़ी बांटी जाती है और बड़ी-बड़ी दुआएं स्वीकार की जाती हैं।
भोर में उठने से आत्मा को आनन्द एवं शान्ति प्राप्त होती है। लगभग सभी धर्मों में भोर समय उठकर उपासना करने के आदेश मिलते हैं। इस्लामी शिक्षाओं में यह भी आया है कि भोर में उठने से आजिविका में वृद्धि होती है। पैग़म्बरे इस्लाम का इस संबन्ध में कथन है कि प्रातःकाल मे अपनी रोज़ी प्राप्त करने के लिए घर से निकल जाओ क्योंकि भोर में उठना विभूतियों की प्राप्ति का कारण बनता है। माहे रमज़ान का पवित्र महीना आत्मनिर्णाण का महीना है। महापुरुषों का कहना है कि आत्मनिर्माण में भोर समय उठने की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।
विश्व में जिन लोगों ने कोई विशेष स्थान प्राप्त किया है उनके जीवन का अध्धयन करने से ज्ञात होता है कि वे प्रातः उठा करते थे। अरबी भाषा में भी एक कथन है जिसका अर्थ यह है कि जो भी सफलता की कामना करता है उसे भोर समय उठना चाहिए। भोर समय उठने से केवल आत्मा को ही लाभ नहीं मिलता बल्कि शरीर को भी इसका लाभ प्राप्त होता है। भोर समय उठने वाला व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से स्वस्थय रहता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भोर समय उठना मनुष्य के लिए हर दृष्टि से लाभकारी है अतः हमें इसे अपनाना चाहिए।
माहे रमज़ान के आठवें दिन की दुआ (8)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّٰهُمَّ ارْزُقْنِی فِیهِ رَحْمَةَ الْاَیْتامِ وَ إِطْعامَ الطَّعامِ وَ إِفْشاءَ السَّلامِ وَصُحْبَةَ الْکِرامِ، بِطَوْلِكَ یَا مَلْجَأَ اللآمِلِینَ
اے معبود! آج کے دن مجھے یتیموں پر رحم کرنے، ان کو کھانا کھلانے اور امن و سلامتی کے اظہار اور اس کو پھیلانے اور شرفاء کے پاس بیٹھنے کی توفیق دے اپنے فضل سے اے آرزومندوں کی پناہ گاہ ۔
ऐ माबूद !आज के दिन मुझे यतीमों पर रहम करने, इनको खाना खिलाने और अमन व सलामती के इज़हार और उसको फैलाने शरीफ लोगों के पास बैठने की तौफीक दें, अपने फज़ल से ए आरजूमंदओं की पनाह गाह,
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम..
ईश्वरीय आतिथ्य- 8
रमज़ान का पवित्र महीना चल रहा है। पूरे संसार में मुसलमान, रोज़े रख रहे हैं।
इस महीने में पवित्र क़ुरआन पढ़ने का विशेष महत्व है। इसको पढ़कर मनुष्य स्वयं को बुराइयों से बचाता है। उचित यह होगा कि पवित्र क़ुरआन पढ़ते समय उसमें सोच-विचार किया जाए। उसके अर्थ को समझ जाए। यह ऐसी किताब है कि जिसके बारे में जितना अधिक सोचा जाए उससे उतना अधिक लाभ होता है। इस पवित्र किताब में बताई गई बातों में सोच-विचार करके नई-नई बातों को समझा जा सकता है।
पवित्र क़ुरआन के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि क़ुरआन, उचित मार्ग का मार्गदर्शन करता है। यह एसी पुस्तक है जिसमें वास्तविकताओं का उल्लेख करते हुए पढ़ने वाले को अधिक से अधिक जागरूक करने का प्रयास किया गया है। इसके दो रूप हैं। एक रूप वह है जो दिखाई देता है और दूसरा वह रूप जो दिखाई तो नहीं देता किंतु मनुष्य के अन्तर्मन को प्रकाशमई करता है। इसका दूसरा रूप बहुत ही गहरा है। क़ुरआन एक सिद्धांत है और इसके हर सिद्धांत से कई सिद्धांत निकलते हैं। इसमें आश्चर्यचकित करने वाली ऐसी बाते हैं जिनका अंत नहीं है। यह हमेशा ताज़ा है कभी पुराना नहीं होता। इसकी आयतें, मार्गदर्शन की मशाल और तत्वदर्शिता का स्रोत हैं।
निःसन्देह, पवित्र क़ुरआन जैसी किताब केवल पढ़ने के लिए नहीं भेजी गई है। यह एसी किताब है जिसमें ईश्वर की वास्तविक पहचान, एकेश्वरवाद के रहस्य, ईश्वरीय दूतों की विशेषताएं, अदृश्य संसार के रहस्य, सृष्टि पर राज करने वाले ईश्वरीय नियम, मानव की सही पहचान और उसके अंत की गाथा, गुज़रे हुए लोगों और आने वाले ज़माने के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। क़ुरआन में उस सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था का उल्लेख किया गया है जिसकी आवश्यकता मनुष्य को सदैव रहती है।
पवित्र क़ुरआन का अनुसरण, मनुष्य को अत्याचारियों के चंगुल से स्वतंत्र कराता है। यह मनुष्य को अज्ञानता, कुरीतियों और शैतानी षडयंत्रों से सुरक्षित बनाता है। इसी के साथ उसका आत्म उत्थान करके पवित्र कर देता है। पवित्र क़ुरआन में अमर मानदंड हैं जो झूठ और सच के बीच स्पष्ट मेयार है। इन विशेषताओं को पहचानकर क़ुरआन की महानता को सरलता से समझा जा सकता है।
आप जानते होंगे कि जहां पर पूरी तरह से अंधेरा छा जाए वहां की कोई भी चीज़ दिखाई नहीं देती। एसे स्थान पर हर चीज़ एक जैसी है याहे छोटी या बड़ी। इसका कारण यह है कि अंधेरे में चीज़ों का पहचनना संभव नहीं है। अब यदि उस अंधकारमय स्थान पर थोड़ा सा भी प्रकाश आ जाए तो फिर वहां पाई जाने वाली चीज़ों को देखा जा सकता है किंतु यदि अधिक प्रकाश हो तो फिर सबकुछ बहुत ही स्पष्ट रूप में दिखाई देने लगेगा। पवित्र क़ुरआन को नूर या प्रकाश कहा गया है। सूरे निसा की आयत संख्या 174 के एक भाग में ईश्वर कहता है कि हमने तुम्हारे लिए स्पष्ट प्रकाश भेजा।
क़ुरआन की शिक्षाओं में हर वह चीज़ जो मनुष्य को विकास की ओर ले जाए उसे प्रकाश कहा जाता है। उदाहरण स्वरूप बुद्धि, मनुष्य के मार्गदर्शन का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। क़ुरआन हमेशा बुद्धिमानों की प्रशंसा करता है। यह किताब सबको चिंतन-मनन और क़ुरआन में गहराई से सोचने का निमंत्रण देती है। क़ुरआन में तफक्कुर, तदब्बुर, हिक्मत और इल्म जैसे शब्दों का प्रयोग इस वास्तविकता को स्पष्ट करता है कि आयतों में गहन सोच-विचार करके ठोस वास्तविकताओं को समझा जा सकता है। आज वैज्ञानिक इस निष्कर्श पर पहुंचे हैं कि क़ुरआन की आयतों के बारे में सोच-विचार करके सृष्टि के बहुत से रहस्यों को समझा जा सकता है। सूरे साद की आयत संख्या 29 में ईश्वर कहता है कि यह वह किताब है जो बरकत वाली है जिसे हमने तुमपर उतारा है ताकि इसकी आयतों में सोच-विचार करो।
इस आयत में ईश्वर, पवित्र क़ुरआन को भेजने का उद्देश्य बयान करते हुए कहता है कि लोगों को केवल इसके पढ़ लेने को ही पर्याप्त नहीं समझना चाहिए बल्कि इसमें सोच-विचार करना चाहिए। लोगों को क़ुरआन के मुख्य लक्ष्य को अनेदखा नहीं करना चाहिए। क़ुरआन में एक शब्द "तदब्बुर" का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ होता है किसी बात को बहुत गहराई से समझना। इसका एक अर्थ यह है कि क़ुरआन की शिक्षाओं से पाठ लेना। मनुष्य को क़ुरआन से पाठ लेकर उसपर अमल भी करना चाहिए क्योंकि क़ुरआन का मुख्य लक्ष्य लोगों को अमल के लिए प्रेरित करना है ताकि वे इसका सही लाभ उठा सकें। क़ुरआन एसे लोगों की निंदा करता है जो इसकी आयतों में सोच-विचार किये बिना ही इसके अच्छे परिणाम की अभिलाषा करते हैं। क़ुरआन का कहना है कि उसकी आयतों में गहराई से सोच-विचार किया जाए। इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि क़ुरआन की आयतों में बड़ी गहराई से सोच-विचार करना, दिलों की बहार है।
निःसन्देह, पवित्र क़ुरआन से दिल लगाने का महत्वपूर्ण मार्ग उसकी शिक्षाओं पर अमल करना है। यह ईश्वरीय किताब, व्यक्ति या समाज के मार्गदर्शन के लिए बहुत अच्छा कार्यक्रम है। यदि इसे उचित ढंग से लागू किया जाए तो संसार की तस्वीर ही बदल जाएगी। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई सबको क़ुरआन की शिक्षाओं पर अमल करने का आह्वान करते हुए कहते हैं कि अगर हम यह मानते हैं कि क़ुरआन पर अमल इस किताब का मुख्य बिंदु है तो फिर इसको केवल पढ़ना काफ़ी नहीं है। हमें अपने समाज में क़ुरआन को प्रचलित करना चाहिए। हमको यह बात समझनी चाहिए कि क़ुरआन में बताई गई बातें सच हैं।
क़ुरआनी शिक्षाओं पर अमल करने के कुछ चरण हैं। इन चरणों को तै करके ही क़ुरआन को समझा जा सकता है। पहला चरण उसे पढ़ना है। दूसरा चरण क़ुरआन के अनुवाद को समझना है। तीसरा चरण अनुवाद को समझने के बाद उसमें सोच-विचार करना है। जो व्यक्ति क़ुरआन में जितना अधिक सोच-विचार करेगा वह उसको उतना ही अधिक समझेगा। वास्तविकता यह है कि क़ुरआन एक सामान्य किताब नहीं है। क़ुरआन ईश्वर की किताब है जिसको बहुत ही स्पष्ट अंदाज़ में पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर नाज़िल किया गया। क़ुरआन सच्चाई और जिसे सच्चाई के साथ ही उतारा गया। इसको भेजने वाला एसा है जिसका कोई समकक्ष नहीं है। इसको लाने वाले जिब्रील हैं। क़ुरआन को पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र सीने पर उतारा गया। यह दोनों ही बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन बिंदुओं को समझने से क़ुरआन की बहुत सी बातें समझ में आती हैं। क़ुरआन में सोच-विचार करने के लिए बुद्धि की आवश्यकता है क्योंकि बुद्धि से ही सही बात को समझा जा सकता है। क़ुरआन शरीफ़ में एक स्थान पर ईश्वर कहता है कि यह एसी मुबारक किताब है जिसको हे पैग़म्बरे तुझपर नाज़िल किया ताकि उसकी आयतों में सोच-विचार करो और उससे पाठ लो।
आयतों में सोच-विचार करने की एक अन्य शर्त, दिल पर लगे हुए जंक को दूर करना है क्योंकि जिस दिल पर ज़ंग लगा होगा वह क़ुरआन को समझ नहीं सकता। क़ुरआन की कुछ आयतें स्पष्ट हैं जिन्हे सरलता से समझा जा सकता है। कुछ ऐसी आयते हैं जिनको समझने के लिए कुछ अन्य बातों का जानना ज़रूरी है। इनको मोहकम और मुतशाबे आयात कहा जाता है। ऐसे लोग जिनके दिलों पर ज़ंग लगा है वे अपनी आसानी और मतभेद फैलाने के लिए मुतशाबे आयातों का दुरूपयोग करते हैं। हालांकि इन आयतों की वास्तविक जानकारी केवल ईश्वर और उनके पास है जो बहुत गहरी जानकारी रखते हैं। इस प्रकार मनुष्य, क़ुरआन को समझकर उसपर अमल करते हुए कल्याण प्राप्त कर सकता है।
जाने माने दार्शनिक मुल्ला सद्रा सूरे वाक़ेआ की भूमिका में लिखते हैं कि मैंने दर्शनशास्त्र की बहुत सी किताबों का अध्ययन किया। इन किताबों को पढ़ने के बाद मैं सोचने लगा था कि मैं बहुत ज्ञानी हूं। बाद में मैंने स्वयं को वास्तविक ज्ञान से दूर पाया। अपनी आयु के अन्तिम समय में मेरे मन में यह विचार आया कि क्यों न मैं पवित्र क़ुरआन की आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों के कथनों में सोच-विचार करूं। मैंने देखा कि अबतक के मेरे प्रयास व्यर्थ गए क्योंकि मैंने देखा कि मैं प्रकाश के स्थान पर छाया में खड़ा हुआ था। बाद में मुझपर ईश्वर की कृपा हुई। मैंने क़ुरआन में बहुत गइराई के साथ सोच-विचार शुरू किया और उसकी व्याख्या करने में लग गया। एसा करने पर मुझको एसा लगा जैसे कि ज्ञान के द्वार मेरे लिए खुल रहे हैं।
बंदगी की बहार- 8
पवित्र रमज़ान को मुसलमानों के बीच विशेष महत्व प्राप्त है।
रमज़ान का महीना वास्तव में एक नई शुरूआत का महीना है। यह महीना पापों से दूरी और ईश्वर से निकटता का महीना है। न केवल इस्लामी देशों में बल्कि उन देशों में भी मुसलमान, रमज़ान को बड़े ही उत्साह से मनाते हैं जहां पर वे बहुसंख्यक नहीं हैं। मुसलमान कहीं पर भी हों वे रमज़ान में रोज़े अवश्य रखते हैं। कार्यक्रम में हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि संसार के विभिन्न देशों में रमज़ान कैसे मनाया जाता है। तो पहले रुख़ करते हैं फ़िलिपीन का।
फ़िलिपीन में लगभग एक करोड़ बीस लाख मुसलमान वास करते हैं। इस देश में पवित्र रमज़ान का स्वागत बहुत ही उत्साह के साथ किया जाता है। फ़िलिपीन में रमज़ान के आगमन की सूचना इस देश का राष्ट्रीय मुसलमान आयोग करता है। इस देश में मुसलमान, रमज़ान आरंभ होने से पहले ही मस्जिदों की सफाई में लग जाते हैं। फ़िलिपीन में रमज़ान आने से पहले ही मस्जिदों की सफाई-सुथराई करके उनको सजाया जाता है। इस महीने में वहां पर मस्जिदों के भीतर नमाज़ पढ़ने और पवित्र क़ुरआन का पाठ करने का चलन अधिक है। फ़िलिपीन की मशहूर मस्जिदों में से एक, "डिमाउकोम" मस्जिद है। यह गुलाबी मस्जिद के नाम से ही जानी जाती है। सन 2014 में गुलाबी मस्जिद बनकर तैयार हुई थी। डिमाउकोम मस्जिद को इसाई मज़दूरों ने बनाया है। यही कारण है कि गुलाबी मस्जिद, फिलिपीन में धर्मों के बीच एकता का प्रतीक है। शांति एवं प्रेम की भावना के दृष्टिगत डिमाउकोम मस्जिद का नाम गुलाबी मस्जिद रखा गया है। रमज़ान के महीने में फ़िलिपीन के मुसलमान, सामान्यतः गुलाबी कपड़े पहनकर जाते हैं। इसका एक उद्देश्य दूसरों के साथ एकता का प्रदर्शन करना है।
फ़िलिपीन में बच्चे, रमज़ान के दौरान बहुत ही सक्रिय दिखाई देते हैं। वे मस्जिदों में एकत्रित होकर उस बच्चे के साथ पवित्र क़ुरआन का पाठ करते हैं जो उनमें सबसे अधिक क़ुरआन पढ़ना जानता हो। वहां पर लोगों के बीच इस्लामी शिक्षाओं को प्रचलित करने का चलन बहुत दिखाई देता है। सहर से पहले बच्चे रंगबिरंगे कपड़े पहनकर हाथ में मोमबत्ती लिए हुए स्थानीय भाषा में गीत गाकर लोगों को सहर खाने के लिए उठाते हैं। रमज़ान के महीने में फ़िलिपीनवासी, खाने का विशेष प्रबंध करते हैं। इस प्रकार वे सहर और इफ़्तार में रंग-बिरंगे खाने खाते हैं। वे लोग रमज़ान के खानों को बहुत सजाते हैं। फ़िलिपीन में सहर और इफ़्तार दोनो समय दस्तरख़ान पर एक विशेष प्रकार का शेक रखा होता है जो दूध, बादाम, केले और शकर से बना होता है। इसके अतिरिक्त खाने के लिए भी वे एक विशेष प्रकार का मीठा व्यंजन तैयार करते हैं जिसका नाम "अलअयाम" है। ईद के दिन फ़िलिपीन के मुसलमान ईद की नमाज़ पढ़ने के बाद मस्जिदों तथा धार्मिक स्थलों से निकलकर" सड़कों पर जश्न मनाते हैं।
अब हम चीन में मुसलमानों के बीच रमज़ान के दौरान होने वाली गतिविधियों के बारे में चर्चा करेंगे। चीन संसार में आबादी की दृष्टि से सबसे बड़ा देश है। यहां की जनसंख्या एक अरब चार करोड़ है। चीन में दो करोड़े से अधिक मुसलमान रहते हैं। चीन में 56 प्रकार की जातियां हैं जिनमें मुसलमान 10 जातियों में बंटे हुए हैं। इन दस जातियों में चीन में मुसलमानों की दो जातियां बहुत प्रसिद्ध हैं उईगूर और हूई जाति। चीन की कुल जनसंख्या की तुलना में इस देश में मुसलमानों की जनसंख्या का अनुपात कम है किंतु फिर भी वे करोड़ो में हैं। चीन के मुसलमान, संसार के अन्य मुसलमानों की तुलना में पवित्र रमज़ान का खुले मन से स्वागत करते हैं। वे लोग अपने घरों और मस्जिदों को साफ-सुथरा करके सजाते हैं। चीनी मुसलमानों के बीच मस्जिदों को बहुत महत्व प्राप्त है। इन मस्जिदों में से एक, न्यूजी मस्जिद है। रमज़ान के महीने में इस मस्जिद में चहल-पहल बहुत बढ़ जाती है। इसमें 1000 से अधिक लोगों के लिए नमाज़ पढ़ने की जगह है। न्यूजी मस्जिद, बीजिंग में स्थित सबसे पुरानी मस्जिद है। न्यूजी मस्जिद का निर्माण सन 996 ईसवी में करवाया गया था।
चीन की मस्जिदों में इफ़्तारी का बहुत ही उपयुक्त प्रबंध किया जाता है। वहां की एक परंपरा यह है कि जिसका घर मस्जिद से निकट होता है वह अपनी क्षमता के अनुसार खाने-पीने का सामान मस्जिद में लाता है। इफ़्तार के समय सबलोग एकसाथ बैठकर रोज़ा खोलते हैं। चीन में रोज़े को सामान्यतः खजूर, केले, किशमिश और ख़रबूज़े से खोला जाता है। रमज़ान के दौरान चीन में एक विशेष प्रकार का व्यंजन तैयार किया जाता है जिसको "डोउज़ोऊ" कहते हैं। इसको चीनी बहुत पसंद करते हैं। जब ईद आती है तो चीनी मुसलमान साफ़ सुथरे होकर उसका स्वागत करते हैं। वे लोग अच्छे-अच्छे कपड़े पहनकर मस्जिदों में एकत्रित होते हैं और ईद की नमाज़ पढ़ते हैं। ईद की नमाज़ पढ़ने के बाद चीन में क़ब्रिस्तान जाने का चलन है। क़ब्रिस्तान जाकर वे अपने मुर्दों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। चीन के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में ईद के दिन सामान्यतः छुट्टी रहती है।
इन्डोनेशिया में मुसलमान बहुसंख्यक हैं। इस देश की जनसंख्या में 86 प्रतिशत मुसलमान हैं। इन्डोनेशिया के मुसलमान, संसार के अन्य मुसलमानों की ही भांति पवित्र रमज़ान का स्वागत करते हैं। इन्डोनेशिया में रमज़ान से संबन्धित कुछ परंपराए हैं जिसमें से Nyorog, Perlon, Nyadran अर्थात नियोराग, परलोन और नियाड्राम की ओर संकेत किया जा सकता है। नियोराग नाम परंपरा इन्डोनेशिया के बेटावी क़बीले में प्रचलित है। इस परंपरा में लोग अपने परिवार के बड़े-बूढ़ों जैसे दादा-दादी, नाना-नानी, मामा, चाचा या अन्य परिजनों के घर जाते हैं। वे लोग अपने साथ परिवार के सदस्यों के लिए खाने की कोई चीज़ अवश्य अपने साथ ले जाते हैं जिसे "नयाराक़" कहते हैं। यह एक प्रकार का उपहार है जिसमें सामान्यतः खाने-पीने की चीज़ें होती हैं।
इन्डोनेशिया में जब रमज़ान का चांद दिख जाता है तो लोग सड़को पर निकलकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं। वहां पर सहर के समय लोगों को उठाने के लिए ढोल बजाई जाती है। अन्य देशों की भांति इन्डोनेशिया में भी इफ़्तार से कुछ पहले ही लोग मस्जिदों में पहुंचने लगते हैं। कुछ मस्जिदों में लोग अपने घरों से खाने का सामान ले जाते हैं जबकि कुछ अन्य मस्जिदों में उस मस्जिद की ओर से इफ़्तार का प्रबंध किया जाता है। इन्डोनेशिया में इफ़्तारी में कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किये जाते हैं।
रमज़ान का अंत इन्डोनेशिया में भी ईद से होता है। जब ईद का चांद दिखाई देता है तो लोग सड़कों पर निकलकर अल्लाहो अकबर के नारे लगाते हैं। बाद में ईद से विशेष संगीत बजाया जाता है। ईद का चांद देखते ही इन्डोनेशिया वासी एक-दूसरे को ईद की बधाई देने लगते हैं। वहां पर ईद के दौरान दूसरे शहरों की यात्रा का भी सफर प्रचलित है। ईद की छुट्टियों में वहां के लोग लंबी-लंबी यात्राओं पर निकलते हैं। इन्डोनेशिया में ईद की छुट्टी एक सप्ताह की होती है।
इन्डोनेशिया के बाद अब हम रुख़ करते हैं मलेशिया का। मलेशिया में मुसलमानों की संख्या लगभग 60 प्रतिशत है। मलेशिया में मलायो जाति के अतिरिक्त चीनी तथा भारतीय भी रहते हैं। मलेशिया के लोग अपनी भाषा में रमज़ान को "बुलान पुआसा" कहते हैं। बुलान का अर्थ होता है महीना और पुआसा का मतलब है रोज़ा रखना। मलेशिया में मस्जिदें सुबह की अज़ान से एक घण्टा पहले खुल जाती हैं जो शाम में इशा की नमाज़ तक खुली रहती हैं। इस दौरान वहां पर मस्जिदों में रमज़ान के दौरान कई प्रकार के आयोजन किये जाते हैं जैसे क़ुरआन पढ़ना, लोगों को इस्लामी जानकारी उपलब्ध कराना। इस दौरान क़ुरआन पढने और पढ़ाने के कार्यक्रमों पर विशेष बल दिया जाता है। इन कार्यक्रमों में बहुत बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। मलेशिया में कुछ टीवी चैनेल रमज़ान के दौरान पवित्र क़ुरआन पढ़ने और पढ़ाने के कार्यक्रम पेश करते हैं। इनपर इस्लामी शिक्षाएं भी दी जाती हैं।
क्वालालंपुर में रमज़ान का प्रभाव केवल वहां की जनता पर ही नहीं पड़ता बल्कि इसे हर ओर देखा जा सकता है। वहां पर कुछ रेस्टोरेंट शाम के समय खुलते हैं जो पूरी रात खुले रहते हैं। मलेशिया में रमज़ान के दौरान मस्जिदों में बहुत रौनक़ होती है। लोग अपनी अधिकांश नमाज़ें मस्जिदों में जाकर ही पढ़ते हैं।
अंत में आपको यह बताना चाहते हैं कि रमज़ान में सहरी खाने पर विशेष बल दिया गया है। आहार विशेषज्ञों का कहना है कि सहरी करना सबसे अहम बिन्दु है। रोज़ा रखने वालों को नींद के चक्कर में सहरी खाना कभी नहीं छोड़नी चाहिए। क्योंकि सहरी खाने से बहुत लाभ हैं। जानकारों का कहना है कि रात का खाना कभी भी सहरी का स्थान नहीं ले सकता। आप सहरी ज़रूर खाएं चाहे कुछ नवाले ही सही। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि सहरी अवश्य खाओ चाहे एक खजूर या एक घूंट पानी ही सही।
ईरान के तेल उद्योग से विदेशी लुटेरों को बेदख़ल
ईरानी कैलेंडर के आख़िरी महीने इसफ़ंद के आख़िरी दिन को ईरान मे तेल के राष्ट्रीयकरण के दिन के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन ईरान की संसद से पूरे ईरान में तेल उद्योग के राष्ट्रीय करण का क़ानून पास हुआ और देश की जनता के अधिकारों व हितों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम उठाया गया। इसके बाद से तेल उद्योग साम्राज्यवादी ताक़तों के चंगुल से आज़ाद हो गया।
यह क़ानून 20 मार्च 1951 को पास हुआ था। उस समय पश्चिमी एशिया में ईरान सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश था जबकि विश्व स्तर पर अमरीका, वेनेज़ोएला और सोवियत संघ के बाद चौथा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश था। अमरीका और रूस दोनों की नज़रें ईरान के तेल पर थीं और दरअस्ल ईरान के तेल पर साम्राज्यवादी ताक़तों के बीच मुक़ाबला था।
इस मुक़ाबले में एक दूसरे को पीछे छोड़ने और अपने अपने हित साधने के लिए यह ताक़तें ईरान के राजनैतिक और आर्थिक मंचों पर हर प्रकार का प्रभाव इस्तेमाल करती थीं। बाहरी ताक़तों की यह कोशिश होती थी कि दरबार में और संसद में उनकी पाठ रहे। इसके लिए तानाशाह को अलग अलग तरीक़ों से दबाव में लाया जाता था।
स्थिति यह हो गई थी कि दरबार से जुड़े लोगों के अनुसार संसद में कि जो एक दिखावटी संस्थान था वही लोग सदस्य बनते थे जिनके नामों पर बाहरी ताक़तों की मुहर लगती थी। यह हालत हो गई थी कि विदेशी दूतावासों में सांसदों और अधिकारों के नामों की सूची तैयार की जाने लगी थी।
ईरान में प्रधानमंत्री मुहम्मद मुसद्दिक़ की सरकार ने तेल उद्योग के राष्ट्रीय करण के क़ानून को अप्रैल 1951 में लागू करने के लिए अपने एजेंडे में शामिल किया तो मुसद्दिक़ सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश शुरू हो गई। अगस्त 1953 में मुसद्दिक़ की सरकार के ख़िलाफ़ अमरीका और ब्रिटेन ने मिलकर बग़ावत करवा दी।
बग़ावत के बाद सरकार गिर गई और ईरान के तेल उद्योग के दरवाज़े एक बार फिर विदेशी कंपनियों के लिए खुल गए। शेल, ब्रिटिश पेट्रोलियम और केलीफ़ोर्निया और टेक्सास की कंपनियों ने ईरान के तेल के कुंओं पर अपना नियंत्रण और भी बढ़ा लिया।
ईरान में 1979 में इस्लामी क्रांति सफल हुई तो उसके बाद ईरान के तेल संसाधनों पर विदेशी कंपनियों के नियंत्रण से संबंधित समझौते रद्द कर दिए गए। अब तेल के संसाधन खोजने और तेल निकालने और रिफ़ाइन करने क ठेके ईरान की नेशनल आयल कंपनी के हाथ में आ गए।
इस्लामी क्रांति की सफलता और अमरीका के दूतावास पर छात्रों के नियंत्रण के बाद जो जासूसी और साज़िश का केन्द्र बन गया था ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका की पाबंदियों का सिलसिला शुरू हो गया। अमरीका को अच्छी तरह पता था कि ईरान की अर्थ व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए तेल उद्योग को निशाना बनाया जाना ज़रूरी है।
पाबंदियां लगाने के पीछे अमरीका का लक्ष्य यह था कि ईरान आर्थिक रूप से बेबस हो जाए वह न तो तेल का उत्पादन कर सके और न तेल की आमदनी उसे हासिल हो। क्योंकि इससे पहले तक ईरान का तेल उद्योग उन उपकरणों पर निर्भर था जो पश्चिमी देशों से इम्पोर्ट किए जाते थे।
मगर व्यवहारिक रूप से यह हुआ कि ईरान तेल और गैस के उद्योग में धीरे धीरे आत्म निर्भर होता गया। दोनों उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले जटिल उपकरण और बड़ी मशीनों भी ईरान के भीतर ही बनाई जाने लगीं। इससे जहां एक तरफ़ तेल व गैस उद्योग में ईरान आत्म निर्भरता की तरफ़ बढ़ा वहीं मशीनों के निर्माण के मैदान में भी उसे अनुभव हासिल होने लगे।
यह तो वास्तविकता है कि तेल और गैस को ईरान की अर्थ व्यवस्था में बहुत बुनियादी पोज़ीशन हासिल है लेकिन ईरान ने इस बीच यह भी किया है कि देश की अर्थ व्यवस्था के स्रोतों में विविधता लाने के लिए भी बड़ी परियोजनाओं पर काम किया है। ईरान इसके लिए प्राइवेट सेक्टर को लगातार सक्रिय करता जा रहा है और उसकी क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोग्राम बनाए और लागू किए जा रहे हैं।