رضوی

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माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट टम्बलर पर एक यूज़र ने अपनी एक पोस्ट में फ़िलिस्तीनी बच्चों को इंसान नहीं बताने की पश्चिमी मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।

अगर यह मीडिया आउटलेट्स बच्चों को बच्चा नहीं कह सकते, तो हक़ीक़त में उनके बारे में क्या सोचा जाए?

इस यूज़र ने जो फ़ोटो पोस्ट किए हैं, उससे पता चलता है कि एसोसिएटेड प्रेस, गार्जियन और वाशिंगटन पोस्ट जैसे मीडिया आउटलेट्स बच्चों को बच्चा कहने के बजाए उन्हें 18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति कहते हैं और उनकी मौत के बारे में बात करने के बजाए, उनके लिए हताहत जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।

अवैध ज़ायोनी शासन की स्थापना की शुरुआत से अब तक लाखों निर्दोष फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए, लाखों अन्य विस्थापित हुए हैं। इस बीच, कुछ पश्चिमी मीडिया आउटलेस्ट इस शासन के अपराधों पर पर्दा डालकर, उसके मानव विरोधी अपराधों में वृद्धि के लिए भूमि प्रशस्त करते हैं।

लेबनान संस्कृति मंत्री के सलाहकार ने प्रतिरोध के मोर्चे और मानवाधिकारों का समर्थन करने के क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में ईरान को याद किया है।

गुरुवार को पवित्र कुरआन की 31वीं अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी के मौके पर, लेबनान के संस्कृति मंत्री के सलाहकार, रोनी अल्फ़ा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ईरान हमेशा फिलिस्तीनी प्रतिरोध, इस्लामी उम्मा और मानवाधिकारों का समर्थन करने में अग्रणी रहा है।

लेबनान के संस्कृति मंत्री के सलाहकार ने ईरान की प्रशंसा की और सभी गुटों को ग़ज़ा और दक्षिणी लेबनान में प्रतिरोध के मोर्चे का समर्थन करने के लिए एकजुट होने की सलाह दी।

बुधवार को हिजरी शम्सी नव वर्ष के पहले दिन इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरानी जनता के विभिन्न वर्गों के हज़ारों लोगों से अपनी मुलाक़ात में इस बात पर ज़ोर दिया कि इस क्षेत्र में मौजूद सबसे बड़े अत्याचार को यानी  ज़ायोनी शासन के अस्तित्व को ख़त्म होना चाहिए।

उन्होंने कहा किहम हर उस शख़्स के समर्थक और मददगार हैं जो इस इस्लामी, इंसानी और अंतरात्मा के जेहाद में शामिल हो।

एक्स सोशल नेटवर्क पर एक ईरानी पत्रकार ने ग़ज़ा की ख़बरों को कवर करने में न्यूयॉर्क टाइम्स की मीडिया चौकड़ी व शरारत का ख़ुलासा किया है।

इल्हाम आबेदीनी ने लिखा कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने किसी तरह एक तस्वीर ली और उसका शीर्षक दिया कि ग़ज़ा तक अधिक सहायता क्यों नहीं पहुंचती? मानो ग़ज़ा परिवेष्टन का शिकार है और सहायता पहुंचाना कितना कठिन है।

ईरान की महिला पत्रकार इल्हाम आब्दीनी लिखती हैं कि यदि कोई ख़बर के अंदर की विषय वस्तु न पढ़ेता है और केवल शीर्षक देखे तो वह स्वभाविक रूप से इस्राईली शासन और नाकाबंदी के मुख्य तत्व पर कम से कम दोष लगाएगा, देखें किस तरह से वे शब्दों को कैसे बदलते हैं और उनसे कैसा खिलवाड़ करते हैं।

यह पहली बार नहीं है कि जब पश्चिमी मीडिया फिलिस्तीन में नरसंहार की सच्चाई छिपाने के लिए ग़ज़ा की जनता की मज़लूमियत और अवैध ज़ायोनी शासन के अपराधों को इस तरह से पेश कर रहा है ताकि हक़ीक़त को नजरअंदाज किया जाए कि ग़ज़ा युद्ध, इस्राईल के माथे पर एक कलंक है और वह पश्चिमी मीडिया कभी भी इन हरकतों से इस्राईल के इस कलंक को जनता की आंखों से छिपा नहीं सकता

सदियों से पश्चिम मुसलमानों पर हमलों को उचित ठहराने के लिए इस्लाम को एक हिंसक धर्म के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है।

क्रूसेडर से लेकर ओटोमन साम्राज्य तक और अब ग़ज़ा में साम्राज्यवाद, इस ग़लत धारणा पर अड़ा हुआ है कि इस्लाम पश्चिमी सभ्यता के लिए ख़तरा है।

इसी सोच के आधार पर ज़ायोनी राष्ट्रपति इसहाक़ हर्ज़ोग ने 6 दिसंबर, 2023 को एक साक्षात्कार में इस अवैध शासन द्वारा ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार का उल्लेख किए बिना दावा कियाः ग़ज़ा पट्टी के ख़िलाफ़ युद्ध सिर्फ़ इस्राईल और हमास के बीच युद्ध नहीं है, बल्कि यह पश्चिमी सभ्यता को बचाने का युद्ध है।

यह एक ऐसा दावा है जो सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले और पतनशील विचारधारा के पक्ष में ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी करता है।

एक ऐसा दृष्टिकोण जो फ़िलिस्तीनी सरज़मीन पर 75 वर्षों के क़ब्ज़े, फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए और फ़िलिस्तीनी समाज पर अमरीका, यूरोप और इस्राईल के साम्राज्यवादी आक्रमण का कारण बना है।

इस दृष्टिकोण के मुताबिक़, पश्चिम के अलावा कोई आवाज़ वैध नहीं है और केवल पश्चिम फ़िलिस्तीनियों के पक्ष और उनके आदर्शों व्याख्या कर सकता है।

7 अक्टूबर, 2023 को पश्चिमी देशों के पूर्ण समर्थन से ज़ायोनी शासन ने ग़ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में असहाय और उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ व्यापक युद्ध शुरू कर रखा है और वह फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार कर रहा है।

ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार ग़ज़ा युद्ध में 31,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं और 74,000 से अधिक घायल हुए हैं।

ज़ायोनी शासन की स्थापना की शुरूआत 1917 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की साज़िश और विभिन्न देशों से फ़िलिस्तीनी भूमि पर यहूदियों के आप्रवासन के माध्यम से की गई थी, जबकि अवैध स्थापना की घोषणा 1948 में की गई।

तब से ही ज़ायोनी शासन अमरीका और पश्चिम के समर्थन से, फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए और उनकी पूरी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने के लिए अभियान चला रहा है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने यूपी बोर्ड आप मदरसा एजुकेशनल एक्ट 2004  को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला असंवैधानिक घोषित किया।

कानून को अल्ट्रा वायर्स घोषित करते हुए जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को योजना बनाने का भी निर्देश दिया, जिससे वर्तमान में मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित किया जा सके।

हाईकोर्ट का फैसला अंशुमान सिंह राठौड़ द्वारा दायर रिट याचिका पर आया जिसमें यूपी मदरसा बोर्ड की शक्तियों को चुनौती दी गई साथ ही भारत सरकार और राज्य सरकार और अन्य संबंधित अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा मदरसा के प्रबंधन पर आपत्ति जताई गई।

वर्तमान समय में भारत में सरकारी स्तर पर कुछ एसे काम हो रहे हैं जो इस देश की वैश्विक छवि के लिए हानिकार हैं।

पार्स टुडे के अनुसार भारत में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने दिखा दिया है कि वह अपने अतिवादी संदेशों को फैलाने के लिए द केरल स्टोरी जैसी फिल्म का सहारा ले रही है।

यह संदेश हालांकि कुछ लोगों के लिए फाएदेमंद हो सकते हैं लेकिन दूसरे हिसाब से वे भारतीय समाज की शक्ति को कमज़ोर करने वाले भी हैं।  भारत जैसे देश में विभिन्न धर्मों के बीच मतभेद, उस देश की राष्ट्रीय पहचान को कमज़ोर करने के अर्थ में हैं जिसको विश्व पटल पर एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है।  भारत जैसे देश का राजनीतिक दृष्टि से कमज़ोर होने का परिणाम उसका आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर होना है।  यह उन देशों के लिए बहुत अच्छा है जिन देशों ने भारत का लंबे समय तक दोहन किया है।

बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्घ से पश्चिम का यह दावा रहा है कि वह स्वतंत्रता और लोकतंत्र का पालना है।  उनका यह भी दावा है कि वे विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों की विविधता को समायोजित करने में सक्षम हैं।  पश्चिम का यह प्रयास रहा है कि वह पूरी दुनिया को यह समझाए कि हम ही सांस्कृतिक विविधताओं को सहन कर सकते हैं।  स्वभाविक सी बात है कि एसे में अपने मुक़ाबले में किसी एसे देश को देखना जो एशिया जैसे प्राचीन महाद्वीप का देश हो, उसके लिए असहनीय है।  अगर भाजपा केवल इसी बिंदु पर थोड़ा विचार कर ले तो फिर वह कभी भी इस बात की अनुमति नहीं देगी कि उन संदिग्ध अतिवादियों को सक्रिय रहने दिया जाए जो भारत की सामाजिक एकता को नुक़सान पहुंचाने के लिए लोगों के दिमाग़ों में सांप्रदायिकता का ज़हर घोलते हों।

द केरल स्टोरी के प्रदर्शन से मुसलमानों में नाराज़गी

द केरल स्टोरी नामक फिल्म, एक एसी हिंदु महिला के बारे में काल्पनिक कहानी पर आधारित है जो अतिवादी मुसलमान बन जाती है।  यह फिल्म वास्तव में भारतीय मुसलमानों की छवि को ख़राब करने वाली है।  यह इस्लाम जैसे शांतिप्रिय धर्म को हिंसक और अमानवीय दिखाने की कोशिश करती है।  भारत की जनसंख्या के मात्र 14 प्रतिशत लोगों ने इसे देखा जिसको साल की दूसरी सबसे अधिक बिकने वाली फिल्म का शीर्षक मिल गया।  एक पत्रकार एवं लेखक निलांजन मोकोपाध्याय के अनुसार भारतीय लोगों में सिनेमा को विशेष महत्व हासिल है इसीलिए जनता तक पहुंचने का यह अनूठा माध्यम है।

द केरल स्टोरी को उस काल में रिलीज़ किया गया था जब पिछली मई में कर्नाटका में विधानसभा के चुनाव होने वाले थे।  इन चुनाव में भाजपा ने भी भाग लिया था।  अपने चुनावी प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी ने इस फ़िल्म का समर्थन किया था।  इसी के साथ उन्होंने विपक्ष पर आतंकवाद की ओर झुकाव का आरोप लगाया था।  भाजपा के सदस्यों ने इस फ़िल्म को मुफ्त में दिखाने का प्रबंध किया था।

नरेन्द्र मोदी एक चुनावी सभा में

उस समय की भाजपा सरकार ने लोगों को इस फ़िल्म को देखने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से टेक्स माफ कर दिया था।  द केरल स्टोरी जैसी फ़िल्म के संदर्भ में एक अन्य फ़िल्म, कश्मीर फाइल्स का भी उल्लेख किया जा सकता है।  इसमें भारत नियंत्रित कश्मीर में सन 1989 से 1990 के बीच की हिंसक घटनाओं को दिखाया गया है।  एसी ही एक अन्य फ़िल्म गोधरा है जिसमें 2002 के गुजरात दंगों को दिखाया गया है।  इसमें गोधरा ट्रेन कांड भी शामिल है।

कश्मीर फाइल्स को कश्मीर में मतभेद फैलाने के उद्देश्य से बनाया गया

भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं के साथ इस्राईल की बढ़ती नज़दीकियां और भारत के भीतर अमरीका और फ्रासं का खेल, इस संदेह को गहरा करता है कि एक ग़ैर भारतीय खिलाड़ी, भारतीय समाज के भीतर सांप्रदायिकता का ज़हर घोलने में लगा हुआ है।  यह वह काम है जो भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को नुक़सान पहुंचा रहा है जिसके परिणाम स्वरूप पश्चिम की प्रतिस्पर्धा में भारत पिछड़ जाएगा।

इस बात को समझना चाहिए कि जातीय एवं धार्मिक मतभेद, जो वास्वत में विश्व के देशों को कमज़ोर करने की औपनिवेशिक देशों की रणनीति रही है, उसको भाजपा के माध्यम से लागू करवाया जा रहा है।  इस धोख में आकर भारत और वहां के सत्ताधारी दल को राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से भारी नुक़सान उठाना पड़ेगा

इंसान ज़मीन पर अल्लाह का ख़लीफ़ा है, इरशाद होता है, और जब तुम्हारे रब ने इंसान को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से बताया, फ़रिश्तों ने कहा, क्या तू ज़मीन में उसको पैदा करेगा जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा, अल्लाह ने फ़रमाया, बेशक मुझे वह मालूम है जिसे तुम नहीं जानते।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी दुनिया में इंसान की एक अजीब दास्तान सामने आती है, इस्लामी तालीमात की रौशनी में इंसान केवल एक चलने फिरने और बोलने बात करने वाली मख़लूक़ नहीं है बल्कि क़ुर्आन की निगाह में इंसान की हक़ीक़त इससे कहीं ज़्यादा अहम है जिसे कुछ जुमलों में नहीं समेटा जा सकता, क़ुर्आन में इंसान की ख़ूबियों को भी बयान किया है और उसके बुरे किरदार को भी पेश किया है।

क़ुर्आन ने ख़ूबसूरत और बेहतरीन अंदाज़ से तारीफ़ भी की है और उसकी बुराईयों का ज़िक्र किया है, जहां इस इंसान को फ़रिश्तों से बेहतर पेश किया गया है वहीं इसके जानवरों से भी बदतर किरदार का भी ज़िक्र किया है, क़ुर्आन की निगाह में इंसान के पास वह ताक़त है जिससे वह पूरी दुनिया पर कंट्रोल हासिल कर सकता है और फ़रिश्तों से काम भी ले सकता है लेकिन उसके साथ साथ अगर नीचे गिरने पर आ जाए तो असफ़लुस साफ़ेलीन में भी गिर सकता है।

इस आर्टिकल में इंसान की उन तारीफ़ का ज़िक्र किया जा रहा है जिसे क़ुर्आन मे अलग अलग आयतों में अलग अलग अंदाज़ से इंसानी वैल्यूज़ के तौर पर ज़िक्र किया है।

 इंसान ज़मीन पर अल्लाह का ख़लीफ़ा है, इरशाद होता है, और जब तुम्हारे रब ने इंसान को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से बताया, फ़रिश्तों ने कहा, क्या तू ज़मीन में उसको पैदा करेगा जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा, अल्लाह ने फ़रमाया, बेशक मुझे वह मालूम है जिसे तुम नहीं जानते। (सूरए बक़रह, आयत 30)

एक दूसरी जगह इरशाद फ़रमाता है, और उसी अल्लाह ने तुम (इंसानों) को ज़मीन पर अपना नायब बनाया है ताकि तुम्हें दी हुई पूंजी से तुम्हारा इम्तेहान लिया जाए। (सूरए अनआम, आयत 165)

इंसान की इल्मी प्रतिभा और क्षमता दूसरी सारी उसकी पैदा की हुई मख़लूक़ से ज़्यादा है।

इरशाद होता है कि, और अल्लाह ने आदम को सब चीज़ों के नाम सिखाए (उन्हें सारी हक़ीक़तों का इल्म दे दिया) फिर फ़रिश्तों से कहा, मुझे उनके नाम बताओ, वह बोले हम सिर्फ़ उतना इल्म रखते हैं जितना तूने सिखाया है, फिर अल्लाह ने हज़रत आदम से फ़रमाया, ऐ आदम तुम इनको उन चीज़ों के नाम सिखा दो, फिर आदम ने सब चीज़ों के नाम सिखा दिए, तो अल्लाह ने फ़रमाया, क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि मैं आसमानों और ज़मीन की छिपी चीज़ों को अच्छी तरह जानता हूं जिसे तुम ज़ाहिर करते हो और छिपाते हो। (सूरए बक़रह, आयत 31 से 33)

इंसान की फ़ितरत ख़ुदा की मारेफ़त है और वह अपनी फ़ितरत की गहराईयों में अल्लाह की मारेफ़त रखता है और उसके वुजूद को पहचानता है, इंसान के दिमाग़ में पैदा होने वाली शंकाएं और शक और उसके बातिल विचार उसका अपनी फ़ितरत से हट जाने की वजह से है।

इरशाद होता है कि, अभी आदम के बेटे अपने वालेदैन की सुल्ब में ही थे कि अल्लाह ने उनसे अपने वुजूद के बारे में गवाही ली और उन लोगों ने गवाही दी। (सूरए आराफ़, आयत 172)

या एक दूसरी जगह फ़रमाया, तो अपना चेहरा दीन की तरफ़ रख दो, वही जो ख़ुदाई फ़ितरत है और उसने सारे लोगों को उसी फ़ितरत पर पैदा किया है। (सूरए रूम, आयत 43)

इंसान में पेड़ पौधों, पत्थरों और जानवरों में पाए जाने वाले तत्वों के अलावा एक आसमानी और मानवी तत्व भी मौजूद हैं यानी इंसान जिस्म और रूह से मिल कर बना है।

इरशाद होता है कि, उसने जो चीज़ बनाई वह बेहतरीन बनाई, इंसान की पैदाइश मिट्टी से शुरू की फिर उसकी औलाद को हक़ीर और पस्त पानी से पैदा किया फिर उसे सजाया और उसमें अपनी रूह फ़ूंकी। (सूरए सजदा, आयत 7 से 9)

इंसान की पैदाइश कोई हादसा नहीं है बल्कि उसकी पैदाइश यक़ीनी थी और वह अल्लाह का चुना हुआ है।

इरशाद होता है कि, अल्लाह ने आदम को चुना फिर उनकी तरफ़ ख़ास ध्यान दिया और उनकी हिदायत की। (सूरए ताहा, आयत 122)

 

इंसान आज़ाद और आज़ाद शख़्सियत का मालिक है, वह अल्लाह का अमानतदार और उस अमानत को दूसरों तक पहुंचाने का ज़िम्मेदार है।

उससे यह भी चाहा गया है कि वह अपनी मेहनत और कोशिशों से ज़मीन को आबाद करे और सआदत और बदबख़्ती के रास्तों में से एक को अपनी मर्ज़ी से चुन ले।

इरशाद होता है कि, हमने आसमानों, ज़मीन और पहाड़ों के सामने अपनी अमानत पेश की (उसकी ज़िम्मेदारी) किसी ने क़ुबूल नहीं की और (सब) डर गए हालांकि इंसान ने इस (ज़िम्मेदारी) को उठा लिया, बेशक यह बड़ा ज़ालिम और नादान है। (सूरए अहज़ाब, आयत 72)

या एक दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है कि, हमने इंसान को मिले जुले नुत्फ़े से पैदा किया ताकि उसका इम्तेहान लें फिर हमने उसको सुनने वाला और देखने वाला बनाया फिर हमने उसको रास्ता दिखाया अब वह शुक्र करने वाला है या नाशुक्री करने वाला है, या वह हमारे दिखाए हुए रास्ते पर चलेगा और सआदत तक पहुंच जाएगा या नेमत का कुफ़रान करेगा और गुमराह हो जाएगा। (सूरए दहर, आयत 2-3)

 इंसान ज़ाती शराफ़त और करामत का मालिक है।

अल्लाह ने इंसान को दूसरी बहुत सी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत अता की है लेकिन वह अपनी हक़ीक़त को ख़ुद उसी समय पहचान सकता है जब वह अपने अंदर पाई जाने वाली शराफ़त को समझ ले और अपने आपको पस्ती, ज़िल्लत और नफ़्सानी ख़्वाहिशों से दूर समझे।

इरशाह होता है कि, बेशक हमने औलादे आदम को इज़्ज़त दी और हमने उनको ज़गलों और समुद्र पर हाकिम क़रार दिया और हमने उनको अपनी बहुत सारी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत दी। (सूरए बनी इस्राईल, आयत 70)

इंसान का बातिन अच्छे अख़लाक़ का मालिक होता है और वह अपनी उसी बातिन की ताक़त से हर नेक और बद को पहचान लेता है।

अल्लाह का इरशाद है कि, और क़सम है इंसान के नफ़्स की और उसके संयम की कि उसको (अल्लाह ने) अच्छी और बुरी चीज़ों की पहचान दी। (सूरए शम्स, आयत 7 से 9)

इंसान के दिल के सुकून का केवल इलाज अल्लाह की याद और उसका ज़िक्र है, उसकी ख़्वाहिशें बे इंतेहा हैं लेकिन ख़्वाहिशों के पूरा हो जाने के बाद वह उन चीज़ों से दूरी बना लेता है, लेकिन अगर वही ख़्वाहिशें अल्लाह की ज़ात से मिला देने वाली हों तो उसे उस समय तक चैन नहीं मिलता जब तक वह अल्लाह की ज़ात तक न पहुंच जाए।

इरशाह होता है कि, बेशक अल्लाह के ज़िक्र से ही दिलों को चैन मिलता है। (सूरए रअद, आयत 28)

या अल्लाह फ़रमाता है कि, ऐ इंसान तू अपने रब तक पहुंचने में बहुत तकलीफ़ बर्दाश्त करता है और आख़िरकार तुम्हें उससे मिलना है। (सूरए इंशेक़ाक़, आयत 6)

ज़मीन के सारी नेमतें इंसान के लिए पैदा की गई हैं।

इरशाद होता है कि, वही है जिसने जो कुछ ज़मीन में है तुम्हारे लिए पैदा किया है। (सूरए बक़रह, आयत 29)

या इरशाद होता है कि, और अपनी तरफ़ से तुम्हारे कंट्रोल में दे दिया है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है उसमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो फ़िक्र करते हैं। (सूरए जासिया, आयत 13)

 अल्लाह ने इंसान को केवल इस लिए पैदा किया है कि वह दुनिया में केवल अपने अल्लाह की इबादत करे और उसके अहकाम की पाबंदी करे, उसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के अम्र की इताअत करना है।

इरशाद होता है कि, और हमने इंसान को नहीं पैदा किया मगर केवल इसलिए कि वह मेरी इबादत करें। (सूरए हश्र, आयत 19)

 इंसान अल्लाह की इबादत और उसकी याद के बिना नहीं रह सकता, अगर वह अल्लाह को भूल जाए तो अपने आप को भी भूल जाता है और वह नहीं जानता कि वह कौन है और किस लिए है और क्या करे क्या न करे कहां जाए कहां न जाए उसे कुछ समझ नहीं आता।

इरशाद होता है कि, बेशक तुम उन लोगों में से हो जो अल्लाह को भूल गए, और फिर अल्लाह ने उनके लिए उनकी जानें भुला दीं। (सूरए हश्र, आयत 19)

इंसान जैसे ही दुनिया से जाता है और उसकी रूह के चेहरे से जिस्म का पर्दा जो कि रूह के चेहरे का भी पर्दा है उठ जाता है तो उस समय उस पर ऐसी बहुत सी हक़ीक़तें ज़ाहिर होती हैं जो उसके लिए इस दुनिया में छिपी रहती हैं।

अल्लाह फ़रमाता है कि, हमने तुझसे पर्दा हटा दिया, तेरी नज़र आज तेज़ है। (सूरए क़ाफ़, आयत 22)

 इंसान दुनिया में हमेशा भौतिक (माद्दी) मामलों के हल के लिए ही कोशिशें नहीं करता और उसको केवल भौतिक ज़रूरतें ही हाथ पैर मारने पर मजबूर नहीं करतीं, बल्कि कभी कभी वह किसी बुलंद मक़सद को हासिल करने के लिए भी कोशिशें करता है और मुमकिन है कि उस अमल से उसके दिमाग़ में केवल अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करने के और कोई मक़सद न हो।

इरशाद होता है कि, ऐ नफ़्से मुतमइन्ना तू अपने रब की तरफ़ लौट जा, तू उससे राज़ी वह तुझ से राज़ी। (सूरए फ़ज्र, आयत 27-28)

इसी तरह एक दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है कि, अल्लाह ने ईमान वाले मर्दों और औरतों से बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नहरें बहती हैं जिनमें वह हमेशा रहेंगे और आलीशान मकानों का भी वादा किया है, लेकिन अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करना उनकी सबसे बड़ी कामयाबी है। (सूरए तौबा, आयत 73)

ऊपर बयान की गई बातों से यह नतीजा सामने आता है कि इंसान वह मौजूद है जो पैदा तो एक कमज़ोर चीज़ से होता है लेकिन वह धीरे धीरे कमाल की तरफ़ क़दम बढ़ाता है और अल्लाह की ओर से ज़मीन पर ख़लीफ़ा होने की फ़ज़लीत को हासिल कर लेता है, और उसको सुकून केवल तभी हासिल होता है जब वह अल्लाह का ज़िक्र करता है और उसकी याद में ज़िंदगी गुज़ारता है, वह अल्लाह की याद में ख़ुद को फ़ना कर दे उसके बाद वह ख़ुद ही अपनी इल्मी और अमली प्रतिभाओं और क्षमताओं को महसूस करेगा।

पिछले हिजरी शम्सी वर्ष 1402 में, ईरान के मेहनती, जज़्बों से ओतप्रोत और प्रयास करने वाले शोधकर्ताओं, मेधावियों और बुद्धिजीवी वर्ग ने क्रूर पश्चिमी प्रतिबंधों और ईरान की वैज्ञानिक प्रगति के रास्ते में खड़े किए जाने वाले अनगिनत उतार-चढ़ाव के बावजूद बड़ी कामयाबियां और उपलब्धियां हासिल की हैं।

ऐसी सफलताएं और तकनीकी प्रगतियां जो अक्सर आयातित और महंगी होती हैं और प्रतिबंधों के कारण उन्हें हासिल करना और बनाए रखना मुश्किल था।

इस रिपोर्ट में हम हिजरी शम्सी वर्ष 1402 में ईरानी शोधकर्ताओं और मेधावी वर्ग की कुछ उपलब्धियों को बयान करने का प्रयास करेंगे।

स्नो फ़ीवर वैक्सीन

हिजरी शम्सी वर्ष 1402 के दूसरे ही महीने में, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नालेज बेस्ड अर्थव्यवस्था के मामले में राष्ट्रपति के सलाहकार की उपस्थिति में, एक ईरानी नालेज बेस्ड कंपनी ने "स्नो फीवर एक्टिमाई वागिर" वैक्सीन की प्रोडक्शन लाइन का अनावरण किया।

स्नो फीवर एक्टिमाई वागिर वैक्सीन की प्रोडक्शन लाइन का अनावरण

"स्नो फीवर" वैक्सीन का स्थानीयकरण और उत्पादन करके, इस कंपनी के शोधकर्ताओं ने संक्रमित जानवरों की जटिलताओं और बीमारियों की गंभीरता को कम करने और बाकी झुंड के जानवरों को संक्रमित होने से बचाने में मदद की।

स्नो फीवर" या जिसे स्थानीय ज़बान में खुरपका और मुंहपका रोग कहा जाता है, सबसे हानिकारक पशुधन रोगों में से एक है जो पशुधन उद्योग को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है।

कैंसर कोशिकाओं को अलग करने के लिए माइक्रोफ्लुइडिक चिप (सीटीसी)

पिछले वर्ष, ईरान मोतमद कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने माइक्रो-बेस प्रेजेंटेशन (एमपीए-चिप) (MPA-Chip) को आधार बनाकर माइक्रोफ्लुइडिक चिप्स को डिज़ाइन करने और उसे बनाने में सफलता हासिल की थी।

माइक्रोफ्लुइडिक चिप

इस किट में, इसी की तरह के विदेशी नमूनों की तुलना में कैंसर कोशिकाओं को अलग करने की शुद्धता और दक्षता बढ़ जाती है और संक्रमित कोशिकाओं पर यांत्रिक तनाव का प्रभाव कम हो जाता है।

क्रायोजेनिक तकनीक

एक और तकनीक जिसे ईरानी वैज्ञानिकों ने पिछले हिजरी शम्सी वर्ष 1402 में जो उपलब्धि हासिल की है उनमें "क्रायोजेनिक तकनीक" की ओर भी इशारा किया जा सकता है।

तापमान को शून्य से 196 डिग्री सेल्सियस तक कम करके पर्यावरण में हवा को द्रवीकृत करके, क्रायोजेनिक तकनीक मौजूदा गैसों को तरल पदार्थ में बदल देती है और विभिन्न गैसों को उनके अलग-अलग घनत्व के अनुसार विभिन्न स्तरों पर रखा जाता है  और जिसकी वजह से विभिन्न प्रयोगों के लिए उन्हें अलग करना संभव हो जाता है।

क्रायोजेनिक टेक्नालाजी

अब इस तकनीक का उत्पादन, दुनिया के केवल पांच देश ही कर पा रहे हैं।

चिकित्सा क्षेत्र में प्रयोग होने वाले 4 नालेज बेस्ट प्रोडक्शन

"एंजियोग्राफी टूर्निकेट" जो एंजियोग्राफी ऑप्रेशन के बाद कलाई की रगों और धमनी को बंद करने के लिए प्रयोग होता है, "बायोप्सी फ़ोरपेस" जो एंडोस्कोपिक और कोलोनोस्कोपी ऑपरेशन में नमूने लेने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक उपकरण है, "लिगेशन क्लिप" जो लैप्रोस्कोपिक ऑपरेशन के बाद वाहिकाओं और रगों को बंद करने के लिए इस्तेमाल होता है, और "ऑर्थोडॉन्टिक वायर",  वे चार उच्च उपयोगी और उन्नत चिकित्सा उत्पादन हैं जिन्हें वर्ष 1402 में ईरान की नालेज बेस्ड कंपनियों ने स्थानीयकृत किया था।

ईरान में बने चिकित्सा उत्पाद

ईरान के अंदर इन उन्नत चिकित्सा उत्पादों का उत्पादन कम से कम 6 मिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा के वार्षिक रूप से विदेशों में जाने से रोकता है।

जहाज़ के इंजन रूम का सिम्युलेटर

इंजन रूम सिम्युलेटर (Engine room simulator) उन अन्य उत्पादों में था जिसकी वर्ष 1402 में ईरानी नालेज बेस्ड कंपनियों ने डिज़ाइनिंग की और बनाया है।

इस उत्पाद में विभिन्न प्रकार के शिप प्रपोलशन सिस्टम (Ship propulsion systems) और डीजल इंजन, गैस टर्बाइन, भाप टर्बाइन और इलेक्ट्रिक मोटर से संबंधित सहायक मशीनरियों की जगह ही भरपाई करने की क्षमता पायी जाती है।

जहाज़ के इंजन रूम का सिम्युलेटर

इस सिम्युलेटर सिस्टम का आंतरिककरण करके, जहाज़ों के यांत्रिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम आपातकालीन स्थितियों में संचालन की कमियों को दूर किया जा सकता है जबकि इंजन कक्ष में लगने वाली आग के प्रकार और इसे बुझाने तथा अनेक प्रकार की समस्याओं को दूर करने को सिखाया जाता है और इसका और अभ्यास कराया जाता सकता है।

इंसुलिन के कच्चे माल का उत्पादन

हिजरी शम्सी वर्ष 1402 के छठें महीने में ईरान में इंसुलिन के कच्चे माल की प्रोडक्शन लाइन का उद्धटान हुआ और जिसके बाद इस लाइन ने काम करना शुरु किया।

यह वह उत्पादन लाइन है जिसने ईरान की शक्ति को बढ़ाया, क्योंकि पिछले वर्षों में ईरान में प्रतिबंधों और इंसुलिन की कमी के कारण देश को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ा है।

इंसुलिन के कच्चे माल की प्रोडक्शन लाइन

इससे पहले, भारत और यूरोपीय देशों से ईरान में इंसुलिन का आयात किया जाता था और दवाओं की शीशियों की पैकेजिंग और भरने की प्रक्रिया ईरान में ही हुआ करती थी।

वैक्यूम ब्लीडिंग ट्यूब

"वैक्यूम ब्लीडिंग" ट्यूब हिजरी शम्सी वर्ष 1402 में ईरानी वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित एक और महत्वपूर्ण चिकित्सा उपकरण था।

"वैक्यूम ब्लीडिंग" ट्यूब तरल पदार्थ के नमूनों और रक्त संग्रह के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरणों में है, जो अपनी विशेषताओं के कारण ख़ून निकालने की प्रक्रिया को सुविधाजनक और तेज़ बनाता है।

वैक्यूम ब्लीडिंग ट्यूब

प्रतिवर्ष 60 मिलियन यूनिट की उत्पादन क्षमता के साथ हिजरी शम्सी वर्ष 1402 के सातवें महीने में खोले गए इस उत्पाद की प्रोडक्शन लाइन में, पहली बार पश्चिम एशिया में, अल्ट्रासोनिक तरंगों पर आधारित नोज़ल का उपयोग करके पाइपों में रसायनों को कोटिंग करने की तकनीक का उपयोग किया जाता है जो एक अनोखा, पूर्णतया स्वदेशी व स्थानीय एवं आधुनिक तकनीक से संपन्न तकनीक समझी जाती है।

 

पुलिस विभाग के लिए पांच स्मार्ट टेक्नालाजीज़

गाड़ियों के काग़ज़ात, लाइसेंस और अन्य चीज़ों के असली होने का पता करने वाला स्मार्ट सिस्टम, "एकल कमांड डैशबोर्ड जिसका लक्ष्य सेवाओं को शीघ्र प्रदान करना, भौगोलिक और समय व स्थान के आधार पर अपराधों के नोट करना और सही समय पर रिपोर्ट प्राप्त करना है, डेटा आब्ज़र्वर सिस्टम जिसका मक़सद सुरक्षा और डेटा निगरानी और ट्रैकिंग होता है, "पुलिस और ट्रैफिक नेटवर्क सिस्टम, जो पुलिस नेटवर्क, ट्रैफिक डेटा और यूज़र्स के बैंडविड्थ का सटीक अनुमान लगाने और उन्हें दर्ज करने के लिए प्रयोग होता है, ये वे सिस्टम हैं जिनें ईरान के जनरल पुलिस कमांड के लिए एक ईरानी नालेज बेस्ड कंपनी ने बनाया। इन उपकरणों का हिजरी शम्सी वर्ष 1402 में किया गया था।

एंटी कैंसर मेडिसिन

वर्ष 1402 हिजरी शम्सी में ईरानी वैज्ञानिकों की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि कैंसर रोधी दवा "साइक्लोफॉस्फ़ामाइड" का स्थानीयकरण था। एक दवा जिसका उपयोग ल्यूकेमिया, डिम्बग्रंथि, स्तन, आंख आदि जैसे विभिन्न प्रकार के कैंसरों के इलाज के लिए अन्य कीमोथेरेपी दवाओं के साथ मिलाकर किया जा सकता है।

ईरान में कैंसर रोधी दवा "साइक्लोफॉस्फ़ामाइड" का स्थानीयकरण

यह दवा ईरान पर लगाए गये प्रतिबंधों में शामिल प्रतिबंधित वस्तुओं में थी और हर साल इसके लिए ईरान लगभग पांच मिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा ख़र्च करता था।

16-स्लाइस सीटी स्कैन प्रोडक्शन

हिजरी शम्सी वर्ष 1402 के नवें महीने के अंत में सीटी स्कैन मशीन की उत्पादन लाइन और वेंटिलेटर का निर्यात, ईरान के खुरासान रज़वी प्रांत में शुरु किय गया था ।

16-स्लाइस सीटी स्कैन प्रोडक्शन

सीटी स्कैन मशीन का आयात मूल्य 2 लाख 20 हज़ार यूरो है। ईरान में इसके स्थानीय उत्पादन की वजह से प्रत्येक डिवाइस पर लगभग 30 हज़ार यूरो की बचत होगी।

इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस ट्रांसफार्मर

एक और तकनीक जिसे ईरानी शोधकर्ताओं और मेधावी वर्ग हासिल करने में कामयाब रहा है, वह इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस ट्रांसफार्मर का निर्माण है।

ईरान में इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस ट्रांसफार्मर का निर्माण

इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (Electric Arc Furnace) एक भट्ठी है जहां धातुओं को इलेक्ट्रिक आर्क का उपयोग करके पिघलाया जाता है। इस भट्टी को लोहा और इस्पात गलाने वाले उद्योग के सबसे महत्वपूर्ण और मूल्यवान उपकरणों में माना जाता है और उच्च तापमान वाले उत्पादन और उच्च उत्पादन दर जैसी विशेषताओं की वजह से इसका व्यापक रूप से लौह और अलौह वस्तुओं को पिघलाने में उपयोग किया जाता है।

यह एक ऐसा उत्पाद है जिसे हालिया वर्षों में प्रतिबंधों के कारण ईरान में आयात करना बहुत मुश्किल हो गया था।

नैनोबबल वाटर रिफ़ाइनरी सिस्टम

ईरान में इस प्रणाली के स्थानीयकरण की वजह से ईरान के उन सभी क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाला पेयजल उपलब्ध कराना संभव हो गया जो पीने के पानी में स्वाद और गंध की समस्या का सामना कर रहे थे।

ईरान में नैनोबबल जल शोधन प्रणाली का स्थानीयकरण

इस प्रोजेक्ट ने स्वाद और गंध पैदा करने वाले शैवालों, पदार्थों और यौगिकों को हटाने की दक्षता में वृद्धि की है, पानी की गुणवत्ता में सुधार किया है, उपचार संयंत्र के प्रवेश द्वार पर क्लोरीन और सक्रिय कार्बन इंजेक्शन प्रक्रियाओं को समाप्त किया है, लागत में काफी कमी की है और ओज़ोन गैस की खपत में 60 प्रतिशत कमी की है।

इस्लाम को लेकर यह गलतफहमी है और फैलाई जाती है कि इस्लाम में औरत को कमतर समझा जाता है। सच्चाई इसके उलट है। हम इस्लाम का अध्ययन करें तो पता चलता है कि इस्लाम ने महिला को चौदह सौ  साल पहले वह मुकाम दिया है जो आज के कानून दां भी उसे नहीं दे पाए।

इस्लाम में औरत के मुकाम की एक झलक देखिए।

जीने का अधिकार शायद आपको हैरत हो कि इस्लाम ने साढ़े चौदह सौ साल पहले स्त्री को दुनिया में आने के साथ ही अधिकारों की शुरुआत कर दी और उसे जीने का अधिकार दिया। यकीन ना हो तो देखिए कुरआन की यह आयत-

और जब जिन्दा गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा, बता तू किस अपराध के कारण मार दी गई?"(कुरआन, 81:8-9) )

यही नहीं कुरआन ने उन माता-पिता को भी डांटा जो बेटी के पैदा होने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हैं-

'और जब इनमें से किसी को बेटी की पैदाइश का समाचार सुनाया जाता है तो उसका चेहरा स्याह पड़ जाता है और वह दु:खी हो उठता है। इस 'बुरी' खबर के कारण वह लोगों से अपना मुँह छिपाता फिरता है। (सोचता है) वह इसे अपमान सहने के लिए जिन्दा रखे या फिर जीवित दफ्न कर दे? कैसे बुरे फैसले हैं जो ये लोग करते हैं।' (कुरआन, 16:58-59))

बेटी

इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-बेटी होने पर जो कोई उसे जिंदा नहीं गाड़ेगा (यानी जीने का अधिकार देगा), उसे अपमानित नहीं करेगा और अपने बेटे को बेटी पर तरजीह नहीं देगा तो अल्लाह ऐसे शख्स को जन्नत में जगह देगा।इब्ने हंबल) अन्तिम ईशदूत हजऱत मुहम्मद सल्ल. ने कहा-'जो कोई दो बेटियों को प्रेम और न्याय के साथ पाले, यहां तक कि वे बालिग हो जाएं तो वह व्यक्ति मेरे साथ स्वर्ग में इस प्रकार रहेगा (आप ने अपनी दो अंगुलियों को मिलाकर बताया)।

मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-जिसके तीन बेटियां या तीन बहनें हों या दो बेटियां या दो बहनें हों और वह उनकी अच्छी परवरिश और देखभाल करे और उनके मामले में अल्लाह से डरे तो उस शख्स के लिए जन्नत है। (तिरमिजी)

पत्नी

वर चुनने का अधिकार : इस्लाम ने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि वह किसी के विवाह प्रस्ताव को स्वेच्छा से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। इस्लामी कानून के अनुसार किसी स्त्री का विवाह उसकी स्वीकृति के बिना या उसकी मर्जी के विरुद्ध नहीं किया जा सकता।

बीवी के रूप में भी इस्लाम औरत को इज्जत और अच्छा ओहदा देता है। कोई पुरुष कितना अच्छा है, इसका मापदण्ड इस्लाम ने उसकी पत्नी को बना दिया है। इस्लाम कहता है अच्छा पुरुष वही है जो  अपनी पत्नी के लिए अच्छा है। यानी इंसान के अच्छे होने का मापदण्ड उसकी हमसफर है।

पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-

तुम में से सर्वश्रेष्ठ इंसान वह है जो अपनी बीवी के  लिए सबसे अच्छा है। (तिरमिजी, अहमद)

शायद आपको ताज्जुब हो लेकिन सच्चाई है कि इस्लाम अपने बीवी बच्चों पर खर्च करने को भी पुण्य का काम मानता है।

पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-

तुम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए जो भी खर्च करोगे उस पर तुम्हें सवाब (पुण्य) मिलेगा, यहां तक कि उस पर भी जो तुम अपनी बीवी को खिलाते पिलाते हो। (बुखारी,मुस्लिम)।

पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने कहा-आदमी अगर अपनी बीवी को कुएं से पानी पिला देता है, तो उसे उस पर बदला और सवाब (पुण्य) दिया जाता है। (अहमद)

मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-महिलाओं के साथ भलाई करने की मेरी वसीयत का ध्यान रखो। (बुखारी, मुस्लिम)

माँ

क़ुरआन में अल्लाह ने माता-पिता के साथ बेहतर व्यवहार करने का आदेश दिया है,

'तुम्हारे स्वामी ने तुम्हें आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की पूजा न करो और अपने माता-पिता के साथ बेहतरीन व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों बुढ़ापे की उम्र में तुम्हारे पास रहें तो उनसे 'उफ् ' तक न कहो बल्कि उनसे करूणा के शब्द कहो। उनसे दया के साथ पेश आओ और कहो

'ऐ हमारे पालनहार! उन पर दया कर, जैसे उन्होंने दया के साथ बचपन में मेरी परवरिश की थी।(क़ुरआन, 17:23-24))

इस्लाम ने मां का स्थान पिता से भी ऊँचा करार दिया। ईशदूत हजरत मुहम्मद(सल्ल) ने कहा-'यदि तुम्हारे माता और पिता तुम्हें एक साथ पुकारें तो पहले मां की पुकार का जवाब दो।'

एक बार एक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से पूछा'हे ईशदूत, मुझ पर सबसे ज्यादा अधिकार किस का है?'

उन्होंने जवाब दिया 'तुम्हारी माँ का',

'फिर किस का?' उत्तर मिला 'तुम्हारी माँ का',

'फिर किस का?' फिर उत्तर मिला 'तुम्हारी माँ का'

तब उस व्यक्ति ने चौथी बार फिर पूछा 'फिर किस का?'

उत्तर मिला 'तुम्हारे पिता का।'

संपत्ति में अधिकार-औरत को बेटी के रूप में पिता की जायदाद और बीवी के रूप में पति की जायदाद का हिस्सेदार बनाया गया। यानी उसे साढ़े चौदह सौ साल पहले ही संपत्ति में अधिकार दे दिया गया।

 

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने यह दुआ बयान फ़रमाई हैं।

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّهُمَّ اجْعَلني فيہ مِنَ المُتَوَكِلينَ عَلَيْكَ وَاجْعَلني فيہ مِنَ الفائِزينَ لَدَيْكَ وَاجعَلني فيه مِنَ المُقَرَّبينَ اِليكَ بِاِحْسانِكَ يا غايَةَ الطّالبينَ...

अल्लाह हुम्मज अल नी फ़ीहि मिनल मुतवक्किलीना अलैक, वज अलनी फ़ीहि मिनल फ़ाएज़ीना लदैक, वज अलनी फ़ीहि मिनल मुक़र्रिबीना इलैक, बे एहसानिका या ग़ायतल तालिबीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली )

ख़ुदाया! मुझे आज उन लोगों में क़रार दे जो तुझ पर भरोसा करें, तेरी बारगाह में कामयाब हों और तेरे मुक़र्रब बन्दे हों, अपने एहसान से, ऐ तलबगारों की इंतहा...

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम..