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फिलिस्तीन की गज्जा पट्टी में जायोनी सरकार द्वारा आवासीय मकानों पर बमबारी और विशेष परिस्थिति का सामना होने के कारण हर घंटे तीन फिलिस्तीनी महिलायें शहीद हो रही हैं। ये महिलायें पुरूषों की अपेक्षा अधिक कठिनाइ से मलबों के नीचे से निकल पाती या आग लगने की घटनाओं से मुक्ति हासिल कर पाती हैं।

 

इस इलाक़े की स्थिति ऐसी हो गयी है कि 60 हज़ार गर्भवती महिलायें किसी प्रकार की चिकित्सा सेवा या बेहोश किये बिना बच्चे को जन्म दे रही हैं और बहुत अधिक भूख की वजह से कम से कम 21 महिलाओं की मौत हो गयी।

 

फिलिस्तीनी प्रशासन में महिलाओं के मामलों की मंत्री आमाल हमद का मानना है कि फिलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों के खिलाफ इस्राईली हमले पूर्व नियोजित हैं और वे नस्ली सफाये के परिप्रेक्ष्य में अंजाम दिये जा रहे हैं।

वह कहती हैं” फ़िलिस्तीन की घायल महिलायें शवों और घायलों के बीच अपने मरने की प्रतीक्षा करती हैं चाहे हवाई हमले की वजह से या चाहे भूख, प्यास या बीमारी की वजह से।

 

एक विश्लेषण के अनुसार इस्राईल जो नस्ली सफाया कर रहा है उसका यह व्यवहार अमेरिका के उस व्यवहार से लिया गया है जो उसने 9 मार्च 1945 को जापान में अंजाम दिया है। नरसंहार की यह शैली इस बात का ज्ञान होने के बावजूद अपनाई जा रही है कि आम नागरिक विशेषकर महिलाओं और बच्चों को कठिन परिस्थितियों का सामना है और आवासीय मकानों और इलाकों पर भारी बमबारी की वजह से धुओं और जलने की समस्या का सामना है। इस तरह का जो नरसंहार हो रहा है।

 

इसका संबंध द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान में होने वाले जनसंहार से है।

 

जापान में अमेरिका की वायुसेना ने जो कृत्य अंजाम दिये उसके संबंध में दो दृष्टिकोण मौजूद थे। एक दृष्टिकोण यह था कि अमेरिकी सैनिक जो बमबारी करते थे उसके संबंध में दावे किये जाते थे कि गैर ज़रूरी चीज़ों को लक्ष्य नहीं बनाया जा रहा है ताकि आम जनमत में यह संदेश दिया जा सके कि न तो अनुचित जगहों पर बमबारी की जा रही है और न ही आम लोग मारे जा रहे हैं जबकि दूसरा दृष्टिकोण यह था कि बमबारी लक्ष्यपूर्ण नहीं है और इस प्रकार का दृष्टिकोण रखने वालों की पूरी कोशिश यह दिखाने की थी कि जो जंग और बमबारी हो रही है उसमें सैनिकों के साथ महिलायें और बच्चे मारे जा रहे हैं।

जो लोग पहले दृष्टिकोण के पक्षधर थे वर्ष 1945 से पहले सत्ता उनके हाथ में थी परंतु अमेरिका की वायुसेना का नेतृत्व एसे कमांडर के हाथ में आया जिससे दृष्टिकोण परिवर्तित हो गया। अमेरिकी जनरल क्रिटिस इमर्सन लेमेय (Curtis emerson lemay) का मानना था कि समय नष्ट नहीं करना चाहिये और भीषण बमबारी करके जापान को हराया जा सकता है।

अमेरिकी कमांडर का कहना था कि इस त्रासदी और भीषण बमबारी में तबाही इतनी अधिक हो कि जापान दोबारा प्रतिरोध की ताकत पैदा न कर सके।

 

इस बीच अमेरिका के हारवर्ड विश्व विद्यालय ने लगभग वर्ष 1942 में एक ऐसे पदार्थ का आविष्कार किया जो विचित्र तरीक़े से ज्वलनशील था। यह जेलेटिन की भांति नेपाल्म नाम का एक पदार्थ था जिसकी कुछ बूंदें लगभग चार वर्गमीटर के क्षेत्रफल में मौजूद हर चीज़ को जलाकर भस्म कर देती थीं। नेपाल्म पर जल का प्रभाव नहीं होता था और उससे काला और दम घुटने वाला धुंआ उठता था और वह महिलाओं के फेफड़े पर अधिक प्रभावी था।

नेपाल्म बम का आविष्कार हो जाने और उससे होने वाली तबाही का पता चल जाने के बाद जंग में इस्तेमाल करने के लिए अमेरिका को अच्छी चीज़ मिल गयी थी। यह ऐसी चीज़ थी जो दुश्मन और उसके घर को जला सकती थी। इस बात के साथ इस महत्वपूर्ण बिन्दु के किनारे से सरसरी तौर पर नहीं गुज़रना चाहिये कि उस समय जापान के अधिकांश लोगों के मकान लकड़ी के बनाये गये थे।

 

अमेरिकी जनरल लेमेय ने जेलेटिन से होने वाली तबाही से आश्वस्त होने के लिए अमेरिका में जापान की तरह लकड़ी के मकान बनाये जाने का आदेश दिया ताकि नेपाल्म बम का उन पर परीक्षण किया जाये। जब अमेरिका में इस बम का परीक्षण किया गया तो उससे होने वाली तबाही चकित करने वाली थी और अमेरिका इस बात से आश्वस्त हो गया कि इस बम के प्रयोग से जापान में भीषण व अनउदाहरणीय तबाही होगी।

 

अगर इस्राईल ख़त्म नहीं होता है तो वह दुनिया के लिए एक बहुत ही ख़तरनाक आदर्श के रूप में बाक़ी रहेगा।

सोशल मीडिया के एक यूज़र ने एक्स पर Eye on Palestine को रीपोस्ट करते हुए इस्राईल को एक एसे शासन के रूप में बताया है जिसने पाश्विक्ता की सारी सीमाएं पार की दी हैं।

इस यूज़र ने सोशल मीडिया नेटवर्क एक्स पर लिखा है कि इस्राईल ने वर्तमान तथाकथित सभ्य युग में जनसंहार की बुराई को ही समाप्त कर दिया है।  इस अवैध शासन ने पाश्विकता की सीमाओं को तोड़ते हुए दुनिया को शैतानी आत्मविश्वास दिया है।  विश्व की प्रतीक्षा में बहुत ही ख़तरनाक दिन हैं।  दुनिया के सारे ही बुरे लोग अब स्वयं से ही यह सवाल करेंगे कि क्यों केवल इस्राईल और अमरीका? क्यों हम नहीं?

हालिया कुछ दिनों के दौरान पवित्र रमज़ान के दौरान ग़ज़्ज़ा के अश्शफ़ा अस्पताल में ज़ायोनी सैनिकों के पाश्विक अपराधों के प्रत्यक्ष दर्शियों के वक्तव्यों और वहां से संबन्धि समाचारों ने पूरी दुनिया से ज़ायोनियों के विरुद्ध नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।  स्वास्थ्य केन्द्रों पर हमले को युद्ध अपराध माना जाता है।  वैश्विक संगठनों की गंभीर चेतावनियों के बावजूद अवैध ज़ायोनी शासन उनकी ओर ध्यान दिये बिना ही फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध जनसंहार जारी रखे हुए है।

अवैध ज़ायोनी शासन ने पश्चिमी देशों के समर्थन से फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध अक्तूबर 2023 से हिंसक कार्यवाहियां आरंभ कर रखी हैं।  फ़िलिस्तीनियों पर ज़ायोनियों की हिंसक कार्यवाही मे अबतक कम से कम 32000 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।  शहीद फ़िलिस्तीनियों के बहुत बड़ी संख्या बच्चों और महिलाओं की है।  इन हमलों में शहीद होने वाले फ़िलिस्तीनियों की संख्या 74000 से भी अधिक हो चुकी है।

अवैध ज़ायोनी शासन का गठन वैसे तो विदित रूप में सन 1948 में हुआ था किंतु इसकी भूमिका 1917 से आरंभ हो चुकी थी।  उस समय ब्रिटेन की षडयंत्रकारी योजना के अन्तर्गत दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से यहूदियों को पलायन करवाकर पहले उनको फ़िलिस्तीन में लाया गया और बाद मे एक अवैध शासन के गठन ही घोषणा की गई जिसकी पाश्विकता आज पूरी दुनिया के सामने उजागर हो चुकी है।

इस्लामी पहचान यह है कि औरत अपनी पहचान और औरत होने की ख़ूबियों को बाक़ी रखने के साथ साथ, तरक़्क़ी के मैदान में आगे बढ़े। यानी अपने कोमल जज़्बात और भीतर से उबलते हुए जज़्बात की, मोहब्बत और कोमलता की और अपनी ज़नाना पाकीज़गी की रक्षा करते हुए रूहानी मूल्यों के मैदान में आगे बढ़े

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया, इस्लामी पहचान यह है कि औरत अपनी पहचान और औरत होने की ख़ूबियों को बाक़ी रखने के साथ साथ, तरक़्क़ी के मैदान में आगे बढ़े।

यानी अपने कोमल जज़्बात और भीतर से उबलते हुए जज़्बात की, मोहब्बत और कोमलता की और अपनी ज़नाना पाकीज़गी की रक्षा करते हुए रूहानी मूल्यों के मैदान में आगे बढ़े, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में सब्र, स्थिरता और दृढ़ता दिखाए,

राजनैतिक भागीदारी, राजनैतिक मांग, राजनैतिक सूझबूझ और होशियारी के साथ अपने मुल्क की पहचान, अपने भविष्य की पहचान, अपने क़ौमी लक्ष्य और इस्लामी मुल्कों व क़ौमों से संबंधित आला इस्लामी लक्ष्य की पहचान, दुश्मन की साज़िशों की पहचान, दुश्मन की पहचान और दुश्मन की शैलियों की समझ में दिन ब दिन इज़ाफ़ा करे और न्याय क़ायम करने की राह में भी घरों और परिवारों के भीतर सुकून व इत्मीनान का माहौल बनाने में आगे निकले।

इमाम ख़ामेनेई,

 

 

 

 

विलायत एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा रात 9.15 बजे जामिया मस्जिद तहसीनगंज में बज़्म-ए-कुरान का आयोजन किया गया है जिसमें रियाज़-उल-कुरान, मदरसा तजवीद वा क़राअत, तंजील अकादमी, ऐन अल-हयात ट्रस्ट शामिल हैं , हैदरी एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी, हिदायत मिशन। , इंस्टीट्यूशन ऑफ रिफॉर्म्स, इलाही घराना, फलाह-उल-मोमिनीन ट्रस्ट, वली असर अकादमी, मदरसा जमीयत अल-ज़हरा ने भी समर्थन दिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ/23 मार्च, रमज़ान कुरान का वसंत महीना है, इसी के मद्देनजर विलायत एजुकेशनल एंड वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा जामी मस्जिद तहसीनगंज में रात 9.15 बजे बज़्म-ए-कुरान का आयोजन किया गया है जिसमें रियाद अल-कुरान, मदरसा तजवीद वा क़राअत, तंजील अकादमी, ऐन अल हयात ट्रस्ट, हैदरी एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी, हिदायत मिशन, इंस्टीट्यूट ऑफ रिफॉर्मेशन, इलाही घराना, फलाह अल मोमिनीन ट्रस्ट, वली असर अकादमी, मदरसा जामिया अल ज़हरा ने भी समर्थन किया।

जिसमें कारी मौलाना नामदार अब्बास साहब, कारी बदरुल दाजी साहब (शिक्षक, फरकानिया मदरसा), कारी मौलाना अज़ादार अब्बास साहब, कारी हाफ़िज़ आफताब आलम साहब, कारी सैयद वासिफ अब्बास रिज़वी और कारी मुहम्मद याह्या साहब के मनमोहक और मनमोहक और बहुत ही सुंदर स्वर हैं .मैंने पवित्र कुरान का पाठ किया और कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को आध्यात्मिक प्रकाश प्रदान किया और उनके मन को खुशी दी, जिससे सभी दर्शकों का मनोरंजन हुआ।

इस कार्यक्रम का संचालन मौलाना हैदर अब्बास रिज़वी साहब ने किया और इस कार्यक्रम को कुरान टीवी के यूट्यूब चैनल के माध्यम से लाइव स्ट्रीम किया गया।

बता दें कि इस साल बिज़्म कुरान का तीसरा दौर था। जिसमें शहर की मशहूर हस्तियों ने शिरकत की. जिसमें विशेष रूप से मौलाना मंजर सादिक साहब, मौलाना हसनैन बाक़ेरी साहब, मौलाना क़मरुल हसन साहब, मौलाना सकलैन बाक़ेरी साहब, मौलाना मशाहिद आलम साहब, मौलाना सईदुल हसन साहब, मौलाना साबिर अली इमरानी साहब, क्लब सब्तैन नूरी साहब और अन्य गणमान्य लोग शामिल हुए। सभी दर्शकों ने यह भी महसूस किया कि इस तरह के और भी आयोजन करने की जरूरत है।

गौरतलब है कि रमजान के इस पवित्र महीने में पवित्र कुरान की तिलावत आम दिनों की तुलना में ज्यादा की जाती है और इस महीने में पवित्र कुरान की तिलावत का महत्व भी बढ़ जाता है. इस महीने में मुसलमान कम से कम पूरी कुरान पढ़ने की कोशिश करते हैं। जो व्यक्ति कुरान को याद कर लेता है और उसे बेहतरीन आवाज में पढ़ता है, उसे कारी कहा जाता है और लोग उसकी तिलावत को सुनने में बहुत रुचि रखते हैं।

 

अमरीका में मेहरदाद रेज़ाई ने प्रतियोगिता जीत कर बनाया रेकार्ड

फेक एम्परर्स गेम की प्रतियोगिता में भाग लेने वाले ईरानी, मेहरदाद रेज़ाई को इस प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार मिला है।

अमरीकन गेम प्रतियोगिता में भाग लेकर मेहरदाद रेज़ाई, फेक एम्परर्स गेम की प्रतियोगिता में मोबाइल और टेबलेट गेम का पुरस्तार जीत गए।

पुरस्कार जीतने के बाद रेज़ाई ने कहा कि मैं कामना करता हूं कि यह इनाम, इस वर्ष ईरान के खेल उद्योग के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलताओं से भरा साल हो।

फेक एम्पर्रस नामक गेम की कहानी विभिन्न प्रकार की प्रेरणाओं वाले कई अलग-अलग पात्रों के संबन्ध में है।  इनमें से प्रत्येक पात्र, गेम में स्वयं को अधिक शक्तिशाली एवं सम्राट दिखाने के प्रयास करता है।  इस गेम में 6 से अधिक नायक थे साथ ही इसमें क्लासिक 2डी हैंड एनीमेशन के 8000 फ्रेम हैं।

 

इंसान इस बात को समझे कि यह दुनिया परीक्षा का स्थान है।

पवित्र क़ुरआन के एक व्याख्याकार अंसारी बताते हैं कि ईश्वर की परंपरा, इस दुनिया में मनुष्य के अमर न होने पर आधारित है।

उस्ताद मुहम्मद अली अंसारी के अनुसार पवित्र क़ुरआन के 21वें सूरे "अंबिया" की 35वीं आयत में कहा गया है कि हर हंसान को मौत का मज़ा चखना है।  हम तुमको मुसीबत और राहत में इम्तेहान के लिए आज़माते हैं। अंततः तुम हमारी ही ओर पलटाए जाओगे।

पवित्र क़ुरआन की इस आयत में कुछ बिंदुओं की ओर इशारा किया जा सकता है।  आयत में बिना किसी अपवाद के हरएक के लिए मौत की बात कही गई है।  आयत कहती है कि हर इंसान, मौत का मज़ा चखेगा।

हर इंसान के लिए मौत के क़ानून के बाद यह सवाल पैदा होता है कि इस अस्थाई जीवन के लक्ष्य क्या है, और इसका क्या फ़ाएदा है?

इसी संदर्भ में पवित्र क़ुरआन आगे कहता है कि मुसीबत और राहत में हम तुमको आज़माते हैं अर्थात तुम्हारी परीक्षा लेते हैं और आख़िर में तुमको पलटकर हमारी ओर ही आना है।

वास्तव में क़ुरआन का जवाब यह है कि इंसान की अस्ली जगह यह दुनिया नहीं है बल्कि कोई दूसरी जगह है।  क़ुरआन के अनुसार तुम यहां पर केवल इम्तेहान देने के लिए आते हो।  इम्तेहान देने और आवश्यक विकास करने के बाद तुम अपनी अस्ली जगह पर वापस चले जाओगे।

 

गाजा में ज़ायोनी सरकार के क्रूर हमलों को पच्चीस महीने बीत चुके हैं।

गाजा के विभिन्न इलाकों में ज़ायोनी सरकार के बर्बर हमले अभी भी जारी हैं।

ग़ाज़ा से ताज़ा रिपोर्टों में कहा गया है कि ज़ायोनी सैनिकों की क्रूर गोलाबारी में दर्जनों फ़िलिस्तीनी मारे गए जो खाद्य सहायता प्राप्त करने के लिए कतार में खड़े थे।

बताया गया है कि ज़ायोनी सैनिकों के ताज़ा बर्बर हमले में कम से कम 10 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए और 20 घायल हो गए। घायलों में से कई की हालत गंभीर बताई जा रही है, इसलिए शहीदों की संख्या बढ़ सकती है।

शम्स न्यूज़ वेबसाइट ने बताया कि सूदखोर ज़ायोनी सरकार ने गाजा के दक्षिण में फ़िलिस्तीनियों से भरे अल-क्विट स्क्वायर पर बमबारी की। गाजा के नागरिक सुरक्षा के प्रवक्ता मोहम्मद बाज़ल ने भी कहा कि फ़िलिस्तीनी नागरिकों के पास उनके लिए खाने-पीने का सामान था। परिवार, महिलाएँ और बच्चे। वे अपने रास्ते पर थे जब ज़ायोनी सैनिकों ने उन पर गोलीबारी की। कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के सैनिकों ने अल-शफ़ा अस्पताल के एक हिस्से में आग लगा दी है।

अल-शफा मेडिकल कॉम्प्लेक्स से जुड़ी कई आवासीय इमारतों को भी ध्वस्त कर दिया गया है।

फ़िलिस्तीनी सूत्रों ने कहा है कि कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के युद्धक विमानों ने रफ़ा शहर के पूर्व में अल-जुनैना नामक क्षेत्र में एक घर पर बमबारी की, जिससे घर में कम से कम सात लोग मारे गए। यूनुस पार ने भी गंभीर हमला किया है। रिपोर्टों में बताया गया है कि ज़ायोनी सैनिकों ने शहर खान यूनिस के उपनगरीय इलाके में स्थित नासर अस्पताल पर गोलाबारी की।

फिलिस्तीनी रेड क्रीसेंट ने यह भी कहा है कि गोलाबारी में खान यूनिस अल-अमल अस्पताल में कई कार्यकर्ता शहीद हो गए।

ज़ायोनी सेना के तोपखाने ने अल-ब्रिज और अल-जदीद नामक शिविरों पर गोलाबारी की।

ग़ज़ा के ख़िलाफ़ ज़ायोनी सरकार के हमलों में शहीद फ़िलिस्तीनियों की संख्या 32,140 तक पहुँच गई है।

याद रहे कि फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार शाम को घोषणा की थी कि पिछले चौबीस घंटों में गाजा के विभिन्न इलाकों में ज़ायोनी सरकार के हमलों में सैकड़ों फिलिस्तीनी शहीद हो गए हैं, जिसके बाद शहीदों की संख्या में वृद्धि हुई है बाईस हजार एक सौ बयालीस तक - इस अवधि में चौरासी हजार चार सौ बारह फिलिस्तीनी घायल हुए हैं।

रिपोर्टों के अनुसार गाजा में ज़ायोनी सरकार के हमलों में कृषि को इतना नुकसान हुआ है कि कुछ क्षेत्र अब कृषि योग्य नहीं रह गये हैं।

क़ुद्स न्यूज़ एजेंसी ने अल-शफ़ा मेडिकल कॉम्प्लेक्स के उपनगरों में आवासीय भवनों के विनाश की तस्वीरें भी प्रकाशित कीं।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन हाज अबुल कासिम ने कहा: गलत काम करने वालों और पापियों की आज्ञाकारिता को ईश्वर के अलावा अन्य की आज्ञाकारिता के रूप में माना जाता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हज़रत मासूमा के पवित्र तीर्थ के खतीब हुज्जत-उल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन हज अबुल कासिम, भगवान उन्हें आशीर्वाद दें और उन्हें शांति प्रदान करें, उन्होंने दिव्य छंदों के कुछ हिस्सों का उल्लेख किया और पापी लोगों को तागुत और आज्ञाकारिता कहा। शिर्क का एक रूप और कहा: अनैतिक अनुष्ठानों के प्रति बिना शर्त आज्ञापालन, जो ईश्वर की उपस्थिति में अस्वीकार और निंदनीय हैं, गैर-ईश्वर की आज्ञापालन और पाप है।

उन्होंने आगे कहा: सूरह अल-मुबारका अत-तौबा आयत 31 में उल्लेख किया गया है कि किताब के लोगों ने अपने विद्वानों और भिक्षुओं को भगवान के बजाय भगवान बना दिया, हालांकि भगवान के अलावा कोई भगवान नहीं है और वह किसी भी साथी से स्वतंत्र है।

हुज्जत-उल-इस्लाम अबुल-कासिम ने कहा: गलत और गैरकानूनी रीति-रिवाजों के प्रति बिना शर्त आज्ञाकारिता, जो ईश्वर की उपस्थिति में अस्वीकार और निंदनीय हैं, ईश्वर के अलावा किसी और की आज्ञाकारिता और पाप है क्योंकि ईश्वर के अलावा किसी और की बिना शर्त आज्ञाकारिता स्वीकार्य नहीं है।

उन्होंने आगे कहा: पवित्र कुरान में कई जगहों पर, सर्वशक्तिमान ने खुद के अलावा किसी और की बिना शर्त आज्ञा मानने से भी मना किया है।

हज़रत मासूमा के खतीब, अल्लाह उन्हें आशीर्वाद दे और उन्हें शांति प्रदान करे, ने कहा: पाप के लोगों की आज्ञाकारिता एक निंदनीय और गंभीर पाप है और इससे ईश्वरीय दंड मिलता है।

 

 

 

 

 

अमरीकी प्रतिबंधों के बावजूद तेल और गैस के निर्यात में ईरान, रेकार्ड बना रहा है।

अलजज़ीरा ने एक रिपोर्ट प्रसारित की है जिसका शीर्षक है, "क्या अमरीका, ईरान के तेल निर्यात पर प्रभाव नहीं डाल सका है"। रिपोर्ट के अनुसार प्रतिबंधों के बावजूद ईरान तेल और गैस के निर्यात में अमरीका को चुनौती देता दिखाई दे रहा है।

स रिपोर्ट में बताया गया है कि अमरीकी प्रतिबंधों की छाया में ईरान की ओर ऊर्जा के निर्यात को लेकर होने वाले व्यापक विवाद की संभावनाओं के बीच इस्लामी गणतंत्र ईरान की सरकार ने इन प्रतिबंधों पर नियंत्रण स्थापित होने पर बल दिया है।

ब्लूमबर्ग का हवाला देते हुए अलजज़ीरा बताता है कि Facts Global Energy के डेटा के अनुसार ईरान के एलपीजी के निर्यात में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो अब 11 मिलयन टन तक पहुंच चुकी है।  इस कंपनी ने अनुमान लगाया है कि इस वर्ष के दौरान ईरान की ओर से एलपीजी का निर्यात 12 मिलयन टन से भी अधिक हो जाएगा।

मानवाधिकारों और महिलाओं के अधिकारों का ढ़िंढोरा पीटने वाले पश्चिमी संगठन बहुत से स्थानों पर महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचरों पे मौन क्यों धारण कर लेते हैं।

पीकेके जैसे ईरान विरोधी प्रथक्तावादी गुटों के नेता, महिलाओं को भर्ती के लिए केवल एक वस्तु या प्रचार सामग्री की दृष्टि से क्यों देखते हैं।

पीकेके के संचार माध्यमों में महिलाएं, आकर्षित करने का मात्र माध्यम हैं।  ईरान विरोधी विघटनकारी गुटों में लड़कियों और महिलाओं का कठिन जीवन, जो उनके झूठे वादों के झांसे में आ गईं, वह इन गुटों के नेताओ और उनके पश्चिमी समर्थकों की सोच का परिणाम हैं। 

जब हम पीकेके जैसे विघटनकारी गुट और उसकी विभिन्न शाख़ाओं में सक्रिय महिलाओं के चित्रों को देखते हैं तो यह बात साफ पता चलती है कि वे बहुत ही बुरी परिस्थतियों में जीवन गुज़ार रही हैं।

 

इन गुटों द्वारा महिलाओं के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया जाता है वह, महिलाओं के अधिकारों का खुला उल्लंघन है जैसे उनसे थका देने वाले काम लेना, उनकी क्षमता से अधिक काम करवाना, उनकी भावनाओं को अनदेखा करना, इन भावनाओं का दमन और महिलाओं की मातृत्व की भावना की पूरी तरह से अनदेखी करना आदि।

एसे में पीकेके के नेता किस प्रकार से महिलाओं के समर्थन का दावा करते हैं, जबकि वे अपने ही गुट की महिला सदस्यों से रोज़ाना उनकी क्षमता से अधिक काम काम करवाते हैं। इस गुट की महिला सदस्यों के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जाता है कि उनके हीतर से परिवार गठन की सोच ही समाप्त हो जाए।

सवाल यह पैदा होता है कि महिलाओं को उनके जो अधिकार मिलने चाहिए वे इस गुट के नेताओं की नज़र में क्या कोई महत्व ही नहीं रखते? क्यों यह गुट, उन महिलाओं और लड़कियों के हाथों में हथियार देकर उनको सैनिक के रूप में प्रयोग करते हैं जबकि महिलाएं तो राष्ट्र का निर्माण करने वाली होती हैं।  हथियारों का प्रयोग, महिलाओं के स्वभाव से मेल नहीं खाता।

सुरैया शफीई, दो बच्चों की मां हैं।  अपनी घरेलू परेशानियों के कारण वे पीकेके के झांसे में आ जाती हैं। उनके बारे में पीकेके से अलग होने वाले एक सदस्य ने बताया कि सुरैया शफीई ने जबसे पीकेके ज्वाइन किया था उस समय से अपनी मौत के बीच वे हमेशा अपने बच्चों की याद में रहा करती थीं किंतु उनके गुट ने उनको कभी भी वापस जाने का मौक़ा नहीं दिया।  इस गुट ने हमेशा ही इस महिला की भवनाओं का दमन किया यहां तक कि उसकी मौत हो गई।

कुर्द क्षेत्रों में अशांति के दौरान, पश्चिम का समर्थन प्राप्त कुछ नेता महिलाओं को उपकरण के रूप में देखते हैं।  एसा ही कटु अनुभव उन महिलाओं या माओं को करना पड़ा जो अपनी किसी मजबूरी के कारण या इन गुटों के नेताओं के धोखे में आकर यहां पहुंची और फिर बहुत ही बुरे हालात में उनको अपना जीवन गुज़ारना पड़ा।

अब सवाल यह है कि मानवाधिकारों और महिलाओं के अधिकारों का ढ़िंढोरा पीटने वाले पश्चिमी संगठन, जो कुछ देशों में अशांति फैलाने के लिए "महिला, जीवन, आज़ादी" के नारे का प्रयोग करते हैं, वे पीकेके जैसे गुटों के भीतर महिलाओं के विरुद्ध इतने व्यापक स्तर पर किये जा रहे महिलाओं के अधिकारों के हनन को देखने के बावजूद कुछ क्यों नहीं बोलते?

इस लेख को ईरान के कूटनीतक स्रोत से लिया गया है।